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मेघालय ने CBI की सहमति वापस ली

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मेघालय राज्य में मामलों की जांच के लिए CBI से सहमति वापस लेने वाला देश का नौवां राज्य बन गया है।

सामान्य सहमति

दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (DSPE) अधिनियम, 1946 CBI को नियंत्रित करता है और किसी राज्य में किसी अपराध की जांच शुरू करने से पहले संबंधित राज्य सरकार की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य है। राज्य आमतौर पर अपने राज्यों में केंद्र सरकार के कर्मियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की निर्बाध जांच करने में सीबीआई की सहायता करने के लिए आम सहमति देते हैं। यह डिफ़ॉल्ट रूप से सहमति है अन्यथा सीबीआई को हर मामले में राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी, यहां तक कि छोटे कार्यों के लिए भी।

सहमति वापस लेने का अर्थ क्या है?

इसका मतलब है कि सीबीआई राज्य सरकार की अनुमति के बिना राज्य में केंद्र सरकार के अधिकारियों या निजी व्यक्तियों से जुड़े कोई भी नए मामले दर्ज नहीं कर पाएगी। राज्य में प्रवेश करने वाले CBI अधिकारी राज्य में प्रवेश करते ही एक पुलिस अधिकारी की सभी शक्तियों को खो देंगे, यदि उन्हें राज्य की सरकार से अनुमति नहीं मिली हो।

किन राज्यों ने सहमति वापस ली?

मेघालय से पहले, आठ अन्य राज्य जिन्होंने CBI से सहमति वापस ले ली थी, वे हैं : पंजाब, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड, मिजोरम और केरल।

सहमति वापस लेने वाला पहला राज्य मिजोरम था जिसने 2015 में ऐसा किया था।

  1. क्या है सीबीआई?

सीबीआई, कार्मिक विभाग, कार्मिक पेंशन तथा लोक शिकायत मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन कार्यरत एक प्रमुख अन्वेषण पुलिस एजेंसी है। यह नोडल पुलिस एजेन्सी भी है, जो इंटरपोल के सदस्य-राष्ट्रों के अन्वेषण का समन्वयन करती है। एक भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसी से हटकर सीबीआई एक बहुआयामी, बहु-अनुशासनात्मक केंद्रीय पुलिस, क्षमता, विश्वसनीयता और विधि शासनादेश का पालन करते हुए जाँच करने वाली एक विधि प्रवर्तन एजेंसी है और यह भारत में कहीं भी अपराधों का अभियोजन करती है।

  1. देश को सीबीआई की आवश्यकता क्यों पड़ी?

माना जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत में ब्रिटिश सरकार के खर्चों में उल्लेखनीय रूप से तीव्र वृद्धि हुई थी, जिसकी वजह से देश में भ्रष्ट कारोबारियों तथा सरकारी अधिकारियों की लूट-खसोट काफी बढ़ गई थी। चूँकि स्थानीय पुलिस इस प्रकार के मामलों की पड़ताल करने में समर्थ नहीं थी, इसलिये ब्रिटिश सरकार को आवश्यकता महसूस हुई एक दक्ष और विशिष्ट बल की। इसलिये युद्ध तथा आपूर्ति विभाग में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच-पड़ताल के लिये 1941 में विशेष पुलिस की स्थापना (Special Police Establishment-SPE) की गई थी। युद्ध के बाद के वर्षों में भी एक केंद्रीय जाँच एजेंसी की आवश्यकता महसूस की गई और तब 1946 में अस्तित्व में आया दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (Delhi Special Police Establishment-DPSE Act)। इस अधिनियम ने विशेष पुलिस स्थापना की देखरेख गृह विभाग को हस्तांतरित कर दी और इसके कार्यों की परिधि में भारत सरकार के सभी विभागों को शामिल कर लिया गया। राज्यों की सहमति से इसे राज्यों में भी लागू किया जाता है। बाद में 1963 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना का नाम बदलकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation-CBI) कर दिया गया। हालाँकि, आज भी सीबीआई का कार्यक्षेत्र 1946 में बने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम से ही निर्धारित होता है।

  1. सीबीआई किस प्रकार के मामलों की जाँच करती है?

आरंभ में एसपीई की दो शाखाएं थीं—1. सामान्य अपराध शाखा 2. आर्थिक अपराध शाखा। डीएसपीई अधिनियम के तहत सामान्य अपराध शाखा केन्द्र सरकार और सरकारी क्षेत्र के उपक्रमों के उन कर्मचारियों की जाँच करती थी, जिनके बारे में यह संदेह होता था कि वे रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तथा आर्थिक अपराध शाखा आर्थिक/राजकोषीय नियमों के उल्लंघन के विभिन्न मामलों की जाँच करती थी। प्रतिभूति घोटाले से संबंधित मामलों और आर्थिक अपराधों में वृद्धि होने के कारण कार्य की अधिकता और भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की वज़ह से 1994 में अलग से एक अपराध शाखा स्थापित की गई थी।

इसे आयात-निर्यात, विदेशी मुद्रा, पासपोर्ट आदि तथा ऐसे अन्य सम्बद्ध केंद्रीय कानूनों के उल्लंघन के मामलों की जाँच करने की शक्ति दी गई थी। यह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में बेईमानी, धोखाधड़ी और गबन के उन गंभीर मामलों की भी जाँच कर सकती थी, जो कई राज्यों में संगठित गिरोहों द्वारा किये जाते थे। इसके अलावा, यह सार्वजनिक सेवाओं तथा सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं और उपक्रमों में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में जानकारी एकत्र करती थी।

  1. सीबीआई ने परंपरागत अपराधों की जाँच करना कब शुरू किया?

एक भ्रष्टाचार निरोधी जाँच एजेंसी के रूप में काम शुरू करने वाली सीबीआई को समय बीतने के साथ-साथ सरकार और न्यायपालिका के विभिन्न क्षेत्रों से पारंपरिक अपराध और भागलपुर अंखफोड़वा कांड, भोपाल गैस कांड आदि जैसे अन्य विशिष्ट मामलों की जाँच के अनुरोध मिलने शुरू हो गए। 1980 के दशक की शुरुआत से संवैधानिक न्यायालयों  ने भी खोजबीन और जाँच के लिये सीबीआई को मामले भेजने शुरू कर दिये। वर्ष 1987 में यह निर्णय लिया गया कि सीबीआई के तहत दो जाँच प्रभागों अर्थात् भ्रष्टाचार निरोधक प्रभाग और विशेष अपराध प्रभाग का गठन किया जाए। इसके बाद में सीबीआई भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराधों के अलावा परंपरागत अपराधों जैसे हत्या, अपहरण, आतंकवादी अपराध इत्यादि जैसे चुनिंदा मामलों की जाँच का कार्य भी करने लगी। इसके अलावा, राजीव गाँधी हत्याकांड तथा बाबरी विध्वंस आदि जैसे राष्ट्रीय महत्त्व के बहुचर्चित मामलों की जाँच के लिये समय-समय पर स्पेशल सेल का भी गठन किया जाता रहा।

  1. सीबीआई का अधिकार क्षेत्र क्या है?

डीएसपीई अधिनियम 1946 की धारा 2 के तहत केवल केन्द्रशासित प्रदेशों में अपराधों की जाँच के लिये सीबीआई को शक्ति प्राप्त है। हालाँकि, केंद्र द्वारा रेलवे तथा राज्यों जैसे अन्य क्षेत्रों में उनके अनुरोध पर इसके अधिकार क्षेत्र को बढ़ाया जा सकता है। वैसे सीबीआई केवल केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित मामलों की जाँच के लिये अधिकृत है। कोई भी व्यक्ति केंद्र सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और राष्ट्रीयकृत बैंकों में भ्रष्टाचार के मामले की शिकायत सीबीआई से कर सकता है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामलों में सीबीआई स्वयं कार्रवाई कर सकती है। जब कोई राज्य केंद्र से सीबीआई की मदद के लिये अनुरोध करता है तो यह आपराधिक मामलों की जाँच करती है या तब जब सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय इसे किसी अपराध या मामले की जाँच करने का निर्देश देते हैं।

SOURCE-THE HINDU

PAPER-G.S.2

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