CURRENT AFFAIRS – 19th JUNE 2021
श्री मिल्खा सिंह
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महान एथलीट श्री मिल्खा सिंह जी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। श्री मोदी ने उन्हें एक चमत्कारी खिलाड़ी बताया जिसने राष्ट्र को सम्मोहित कर लिया था और अनगिनत भारतीयों के दिल में जगह बनाई थी।
प्रधानमंत्री ने कई ट्वीट करते हुए कहा ‘ श्री मिल्खा सिंह जी के निधन के साथ हमने एक ऐसा चमत्कारी खिलाड़ी खो दिया है जिसने राष्ट्र को सम्मोहित कर लिया था और अनगिनत भारतीयों के दिल में जगह बनाई थी। उनके प्रेरणादायी व्यक्तित्व ने उन्हें लाखों लोगों का प्रिय बना दिया था। उनके निधन से व्यथित हूं।
मैंने कुछ ही दिन पहले श्री मिल्खा सिंह जी से बात की थी। मुझे नहीं पता था कि यह हमारी अंतिम बातचीत होगी। कई उदीयमान एथलीट उनकी जीवन यात्रा से प्रेरणा ग्रहण करेंगे। उनके परिवारजनों तथा दुनिया भर में फैले उनके प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं।
मिलखा सिंह (जन्म: २० नवंबर १९२९ – मृत्यु: १८ जून २०२१) एक भारतीय धावक थे, जिन्होंने रोम के १९६० ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के १९६४ ग्रीष्म ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उन्हें “उड़न सिख” उपनाम दिया गया था। वे भारत के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ एथलीट्स में से एक थे। वे एक सिक्ख राजपूत परिवार से थे। उनका पूरा नाम मिल्खा सिंह राठौर था।भारत सरकार ने १९५९ में उन्हें पद्म श्री की उपाधि से भी सम्मानित किया।
मिलखा सिंह का जन्म २० नवंबर १९२९ को गोविन्दपुर (जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में पड़ता है) में एक सिख जाट परिवार में हुआ था।भारत के विभाजन के बाद की अफ़रा तफ़री में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप को खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन से पाकिस्तान से भारत आए। ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी।
मिल्खा सिंह सेना में भर्ती होने की कोशिश करते रहे और अंततः वर्ष 1952 में वह सेना की विद्युत मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा में शामिल होने में सफल हो गये। एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवीलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें दौड़ (रेस) के लिए प्रेरित कर दिया, तब से वह अपना अभ्यास कड़ी मेहनत के साथ करने लगे। वह वर्ष 1956 में पटियाला में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से सुर्खियों में आये।
एक होनहार धावक के तौर पर ख्याति प्राप्त करने के बाद उन्होंने २०० मीटर और ४०० मीटर की दौड़े सफलतापूर्वक की और इस प्रकार भारत के अब तक के सफलतम धावक बने। कुछ समय के लिए वे ४०० मीटर के विश्व कीर्तिमान धारक भी रहे।
कार्डिफ़, वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में १९५८ के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक स्वीकारने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा। इसी समय पर उन्हें पाकिस्तान में दौड़ने का न्यौता मिला, लेकिन बचपन की घटनाओं की वजह से वे वहाँ जाने से हिचक रहे थे। लेकिन न जाने पर राजनैतिक उथल पुथल के डर से उन्हें जाने को कहा गया। उन्होंने दौड़ने का न्यौता स्वीकार लिया। दौड़ में मिलखा सिंह ने सरलता से अपने प्रतिद्वन्द्वियों को ध्वस्त कर दिया और आसानी से जीत गए। अधिकांशतः मुस्लिम दर्शक इतने प्रभावित हुए कि पूरी तरह बुर्कानशीन औरतों ने भी इस महान धावक को गुज़रते देखने के लिए अपने नक़ाब उतार लिए थे, तभी से उन्हें फ़्लाइंग सिख की उपाधि मिली।
सेवानिवृत्ति के बाद मिलखा सिंह खेल निर्देशक, पंजाब के पद पर थे। मिलखा सिंह ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ खेलकूद के प्रोत्साहन के लिए काम करना शुरू किया। वे चंडीगढ़ में रहते थे। जाने-माने फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने वर्ष 2013 में इनपर भाग मिल्खा भाग नामक फिल्म बनायी। ये फिल्म बहुत चर्चित रही। ‘उड़न सिख’ के उपनाम से चर्चित मिलखा सिंह देश में होने वाले विविध तरह के खेल आयोजनों में शिरकत करते रहते थे। हैदराबाद में 30 नवंबर,2014 को हुए 10 किलोमीटर के जियो मैराथन-2014 को उन्होंने झंड़ा दिखाकर रवाना किया।
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नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया
नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया (एनआईएक्सआई) ने आज अपना 18वां स्थापना दिवस मनाया। पिछले 18 वर्षों से एनआईएक्सआई भारतीय इंटरनेट पारिस्थितिकी तंत्र में अपना अहम योगदान दे रहा है। एनआईएक्सआई देश का पहला इंटरनेट एक्सचेंज है जो अमेरिका या विदेश की जगह देश के भीतर ही घरेलू इंटरनेट ट्रैफिक को रूट कर आईएसपी को आपस में जोड़ने की सुविधा प्रदान करता है। ऐसा होने से सेवा की गुणवत्ता न केवल बेहतर होती है बल्कि कम बैंडविड्थ शुल्क लगता है। इससे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा की भी बचत होती है। एनआईएक्सआई इसके अलावा डॉट आईएन रजिस्ट्री भी है। जो भारत यानी देश कोड के टॉप लेवल डोमेन (सीसीटीएलडी) – डॉट आईएन का भी प्रबंधन करता है। और वह राष्ट्रीय इंटरनेट रजिस्ट्री का प्रबंधन भी करता है जो भारतीय मामलों के इंटरनेट प्रोटोकॉल एड्रेस (आईपीवी 4 और आईपीवी 6) और स्वायत्त सिस्टम नंबर को प्रदान करता है।
“सरकार और एमईआईटीवाई द्वारा लगातार डिजिटल एजेंडा को आगे बढ़ाने के प्रयासों का ही परिणाम है कि भारत विश्व डिजिटल प्रतिस्पर्धा रैंकिंग में आगे बढ़ रहा है। यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जैस-जैसे भारत इस दिशा में आगे बढ़ रहा है, रोजगार के अवसर भी तेजी से बढ़ेंगे। डिजिटल उत्पादकता में बढ़ोतरी के वजह से भारत में 2025 तक लाखों नौकरियां पैदा होने की क्षमता है। इसका मतलब है कि भारत 2025 तक 1 ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था के सपने को साकार करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। यह एक रोमांचक यात्रा है और हम एमईआईटीवाई में इस डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रहे हैं। डिजिटल का भविष्य इससे उज्जवल कभी नहीं दिखा था!”
एनआईएक्सआई के बारे में
नेशनल इंटरनेट एक्सचेंज ऑफ इंडिया (एनआईएक्सआई) एक गैर-लाभकारी संगठन है। जो निम्नलिखित गतिविधियों के माध्यम से भारत के नागरिकों तक इंटरनेट प्रौद्योगिकी का विस्तार करने के लिए 2003 से काम कर रहा है:
(1) इंटरनेट एक्सचेंज जिसके माध्यम से आईएसपी और सीडीएन के बीच इंटरनेट डेटा का आदान-प्रदान किया जाता है।
(2) डॉट आईएन रजिस्ट्री, देश कोड डोमेन और डॉट भारत आईडीएन डोमेन का प्रबंधन और संचालन।
(3) आईआरआईएनएन इंटरनेट प्रोटोकॉल का प्रबंधन और संचालन
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न्यूनतम मजदूरी
केन्द्र सरकार ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर अजीत मिश्रा की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया है, जो सरकार को न्यूनतम मजदूरी और राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के बारे में तकनीकी जानकारी और सिफारिशें देगा। इस विशेषज्ञ समूह का कार्यकाल तीन वर्ष है। यह ध्यान में आया है कि प्रेस के कुछ वर्गों और कुछ हितधारकों ने इस कदम को सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी और राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण में देरी करने के प्रयास के रूप में देखा है।
यहां यह स्पष्ट किया जाता है कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है और विशेषज्ञ समूह जल्द से जल्द सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपेगा। इस विशेषज्ञ समूह का कार्यकाल तीन वर्ष रखा गया है ताकि न्यूनतम मजदूरी और राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण के बाद भी, जब भी जरूरत हो सरकार न्यूनतम मजदूरी और राष्ट्रीय स्तर पर न्यूनतम मजदूरी से संबंधित विषयों पर इस विशेषज्ञ समूह से तकनीकी इनपुट / सलाह ले सके। इस समूह की पहली बैठक 14 जून, 2021 को हुई और इसकी दूसरी बैठक 29 जून, 2021 को निर्धारित है।
भारत में न्यूनतम मजदूरी कितनी है?
केंद्र सरकार के निर्णय से सड़क, इमारत, मरम्मत कार्य में लगे अकुशल श्रमिकों को स्थान के अनुसार क्रमश: ए, बी और सी श्रेणी में 645, 539 और 431 रुपये मिलेंगे। वहीं अर्धकुशल श्रमिक को 714, 609, 505 जबकि कुशल श्रमिक को 784, 714, 609 रुपये मिलेंगे। वहीं कुशलतम मजदूर को 853, 784, 714 रुपये मिलेंगे।
न्यूनतम वेतन कानून क्या है?
न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948 की परिभाषा (संक्षिप्त एवं सरल अर्थों में):- अगर कोई कर्मचारी(कुशल, अकुशल, असंगठित श्रमिक सभी प्रकार के) से सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन पर काम नहीं करवाता है, या 12 घण्टे से ज्यादा काम लेता या ओवरटाइम का भुगतान नहीं करता, वेबजह वेतनमान में कटौती करता है।
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948
असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करनेके उद्देश्य से तथा उनके हितों की रक्षा के लिए यह कानून बनाया गया। जिसमें मजदूरी की न्यूनतम दरों का निर्धारण करना, समय पर मजदूरी का भुगतान करना तथा समयोपरि भत्ता इत्यादि की उचित दरें तय कर भुगतान कराना इस कानून का उद्देश्य रहा है।
न्यूनतम वेतन कौन निश्चित करता है?
राज्य सरकारें सभी अन्य रोजगारों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित करेंगी। संहिता प्रावधान करती है कि राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
वर्तमान मजदूरी दर क्या है?
100 दिन के हिसाब से साल में 18200 रुपये एक मजदूर को मिलते हैं। अब केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जॉबकार्डधारकों को खुश करने के लिए मजदूरी में इजाफा कर दिया है। इस वित्तीय वर्ष यानि 1 अप्रैल 2020 से जिले के मनरेगा मजदूरों को 201 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिलने लगेगी।
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सेंसिट रैपिड कोविड-19 एजी किट
पूरी दुनिया मौजूदा समय में चल रही कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुई है। कोविड-19 संक्रमण के दौरान मरीज में होने वाले लक्षणों की गंभीरता का पता समय पर नहीं चलने पर यह जीवन के लिए खतरा पैदा कर देता है। संक्रमित मरीजों की त्वरित परीक्षण प्रक्रिया में एंटीजन परीक्षण शामिल है जो थोड़े समय के भीतर लिए गए सैकड़ों नमूनों का परिणाम प्रदान करता है। इस तरह के रैपिड टेस्ट को हमारे देश के नागरिकों के लिए सुलभ और आसानी से उपलब्ध कराने के लिए भारत सरकार के प्रयास सराहनीय हैं। कई नवोन्मेषक और उद्यमी सटीक, सस्ती और सुलभ परीक्षण किट विकसित करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं ताकि न केवल स्वास्थ्य कर्मियों को ऐसे कठिन समय में आसानी से जांच कर पता लगाने के लिए सहायता प्रदान की जा सके बल्कि भारत में जैव प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा दिया जा सके।
कोविड-19 रिसर्च कंसोर्टियम के तत्वावधान में डीबीटी-बीआईआरएसी समर्थित उत्पाद ‘सेंसिट रैपिड कोविड-19 एजी किट’ को यूबियो बायोटेक्नोलॉजी सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया है। यह किट 15 मिनट के समय में सार्स कोव-2 न्यूक्लियो कैप्सिड प्रोटीन की जांच कर परिणाम देने में सक्षम है। संदिग्ध व्यक्ति से नासॉफिरिन्जियल स्वैब का उपयोग करके नमूने एकत्र किए जाते हैं। यह आईसीएमआर अनुमोदित किट एक क्रोमैटोग्राफिक इम्यूनोसे है, जो स्वास्थ्य कर्मियों को दृष्टिगत रूप से जांच परिणाम को पढ़ने की सुविधा देता है। जांच सैंडविच इम्यूनोएसे के सिद्धांत पर काम करता है और मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की एक जोड़ी का उपयोग करता है जो कोविड-19 विशिष्ट एंटीजन से बंधे होते हैं। जांच परिणाम एक रंगीन रेखा के रूप में दिखाई देती है। किट क्रमशः 86 प्रतिशत और 100 प्रतिशत की संवेदनशीलता और विशिष्टता प्रदर्शित करती है और इसकी शेल्फ लाइफ 24 महीने है। सेंसिट रैपिड कोविड-19 एजी किट का सफलतापूर्वक वाणिज्यीकरण किया जा चुका है।
इस तरह के त्वरित परीक्षण स्वास्थ्य पेशेवरों को संक्रमित व्यक्तियों का शीघ्रता से पता लगाने, उनके समय की बचत करने और उन्हें संक्रमित व्यक्ति को बेहतर सलाह और उपचार प्रदान करने की सुविधा प्रदान करता है।
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सूखे पर UNDRR ने रिपोर्ट जारी की
Global Assessment Report on Disaster Risk Reduction: Special Report on Drought 2021” शीर्षक वाली रिपोर्ट 18 जून, 2021 को UNDRR (United Nations Office for Disaster Risk Reduction) द्वारा प्रकाशित की गई थी। यह नवंबर 2021 में ग्लासगो में होने वाली Cop26 नामक महत्वपूर्ण संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में चर्चा का एक हिस्सा होगा।
मुख्य निष्कर्ष
इस रिपोर्ट के अनुसार, सूखा एक छिपा हुआ वैश्विक संकट है जो जल और भूमि प्रबंधन और जलवायु आपातकाल से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई नहीं करने पर “अगली महामारी” बन सकता है।
इस सदी में लगभग 5 अरब लोग सीधे तौर पर सूखे से प्रभावित हैं।
आर्थिक लागत का अनुमान मोटे तौर पर $124 अरब था। हालांकि, वास्तविक लागत कई गुना अधिक होने की संभावना है क्योंकि इन अनुमानों में विकासशील देशों में अधिक प्रभाव शामिल नहीं है।
अगले कुछ वर्षों में दुनिया के अधिकांश हिस्से में पानी की कमी होगी और कुछ निश्चित अवधि के दौरान मांग पानी की आपूर्ति से आगे निकल जाएगी।
इस रिपोर्ट पर प्रकाश डाला गया, सूखा अब व्यापक है और इस सदी के अंत तक अधिकांश देश किसी न किसी रूप में इसका अनुभव करेंगे।
विकसित देशों पर परिदृश्य
इस रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि विकसित देश भी सूखे से अछूते नहीं हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी यूरोप ने हाल के दिनों में सूखे का अनुभव किया है। सूखे की कीमत अमेरिका में 6 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष से अधिक है जबकि यूरोपीय संघ में 9 बिलियन यूरो।
सूखे के कारण
जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के बदलते पैटर्न सूखे के प्रमुख कारक हैं। हालाँकि, इस रिपोर्ट में जल संसाधनों के अकुशल उपयोग, गहन कृषि के तहत भूमि का क्षरण और खराब कृषि पद्धतियों की पहचान भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वनों की कटाई, उर्वरकों और कीटनाशकों का ज्यादा उपयोग, खेती के लिए पानी का अतिचारण और अति-निष्कर्षण कुछ अन्य कारक हैं।
SOURCE-GK TODAY
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हीरा खोजा गया
देबस्वाना डायमंड कंपनी (Debswana Diamond Company) ने बोत्सवाना की जवानेंग खदान में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा हीरा खोजा है।
प्रमुख बिंदु
बोत्सवाना को अफ्रीका में हीरों का सबसे बड़ा उत्पादक कहा जाता है।
1,098 कैरेट वजन के हीरे का पता चलने के बाद उसे राष्ट्रपति मोकग्वेत्सी मासीसी (Mokgweetsi Masisi) को भेंट किया गया।
इसका वजन दुनिया के दूसरे सबसे बड़े 1,109 कैरेट के लेसेडी ला रोना (Lesedi la Rona) हीरे से थोड़ा कम है जो 2015 में बोत्सवाना में पाया गया था और दुनिया का सबसे बड़ा 3,106 कैरेट कलिनन (Cullinan) हीरा था जो 1905 में दक्षिण अफ्रीका में पाया गया था।
इसके अंतिम मूल्य का अनुमान अभी जारी नहीं किया गया है।
दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा 1,109 कैरेट का लेसेडी ला रोना हीरा 53 मिलियन डॉलर में बिका था।
तीसरा सबसे बड़ा हीरा
यह हीरा 73mm लंबा, 52mm चौड़ा और 27mm मोटा है। इसका नामकरण होना बाकी है।
पृष्ठभूमि
देबस्वाना कंपनी ने कोविड -19 महामारी के बीच उत्पादन में 29% की गिरावट और बिक्री में 30% की गिरावट देखी थी। इस प्रकार, तीसरे सबसे बड़े हीरे की खोज काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।
देबसवाना डायमंड कंपनी के बारे में
यह वैश्विक हीरा दिग्गज डी बीयर्स (De Beers) और सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम है। देबस्वाना द्वारा हीरे की बिक्री से अर्जित आय का 80% रॉयल्टी, लाभांश और करों के माध्यम से सरकार को जाता है।
हीरा
हीरा एक पारदर्शी रत्न है। यह रासायनिक रूप से कार्बन का शुद्धतम रूप है। हीरा में प्रत्येक कार्बन परमाणु चार अन्य कार्बन परमाणुओं के साथ सह-संयोजी बन्ध द्वारा जुड़ा रहता है। कार्बन परमाणुओं के बाहरी कक्ष में उपस्थित सभी चारों इलेक्ट्रान सह-संयोजी बन्ध में भाग ले लेते हैं तथा एक भी इलेक्ट्रान संवतंत्र नहीं होता है। इसलिए हीरा ऊष्मा तथा विद्युत का कुचालन होता है। हीरा में सभी कार्बन परमाणु बहुत ही शक्तिशाली सह-संयोजी बन्ध द्वारा जुड़े होते हैं, इसलिए यह बहुत कठोर होता है। हीरा प्राक्रतिक पदार्थो में सबसे कठोर पदार्थ है इसकी कठोरता के कारण इसका प्रयोग कई उद्योगो तथा आभूषणों में किया जाता है। हीरे केवल सफ़ेद ही नहीं होते अशुद्धियों के कारण इसका शेड नीला, लाल, संतरा, पीला, हरा व काला होता है। हरा हीरा सबसे दुर्लभ है। हीरे को यदि ओवन में ७६३ डिग्री सेल्सियस पर गरम किया जाये, तो यह जलकर कार्बन डाइ-आक्साइड बना लेता है तथा बिल्कूल ही राख नहीं बचती है। इससे यह प्रमाणित होता है कि हीरा कार्बन का शुद्ध रूप है। हीरा रासायनिक तौर पर बहुत निष्क्रिय होता है एव सभी घोलकों में अघुलनशील होता है। इसका आपेक्षिक घनत्व ३.५१ होता है। बहुत अधिक चमक होने के कारण हीरा को जवाहरात के रूप में उपयोग किया जाता है। हीरा उष्मीय किरणों के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होता है, इसलिए अतिशुद्ध थर्मामीटर बनाने में इसका उपयोग किया जाता है। काले हीरे का उपयोग काँच काटने, दूसरे हीरे के काटने, हीरे पर पालिश करने तथा चट्टानों में छेद करने के लिए किया जाता है।
SOURCE-DANIK JAGARAN
QCI ने Indian Certification of Medical Devices Plus Scheme लांच की
Quality Council of India (QCI) और Association of Indian Manufacturers of Medical Devices (AiMeD) ने “Indian Certification of Medical Devices Plus (ICMED) Scheme” लॉन्च किया है।
ICMED 13485 योजना
ICMED योजना ने ICMED योजना में और सुविधाएँ जोड़ीं, जिसे 2016 में चिकित्सा उपकरणों के प्रमाणन के लिए लॉन्च किया गया था।
यह योजना चिकित्सा उपकरणों की गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावकारिता का सत्यापन करेगी।
इस योजना को परिभाषित उत्पाद मानकों और विशिष्टताओं के संबंध में उत्पादों के परीक्षण और उत्पाद संबंधी गुणवत्ता सत्यापन प्रक्रियाओं को एकीकृत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
यह दुनिया भर में पहली ऐसी योजना है जिसमें गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली (quality management systems) और उत्पाद प्रमाणन मानकों (product certification standards) को नियामक आवश्यकताओं के साथ एकीकृत किया गया है।
यह भारत में चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्र के लिए गुणवत्ता आश्वासन योजना होगी।
योजना का महत्व
यह योजना नकली उत्पादों और नकली प्रमाणीकरण से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए खरीद एजेंसियों की सहायता करेगी। यह घटिया चिकित्सा उत्पादों या संदिग्ध मूल के उपकरणों के प्रचलन और उपयोग को भी समाप्त कर देगा।
भारतीय गुणवत्ता परिषद (Quality Council of India – QCI)
QCI की स्थापना 1997 में नीदरलैंड में मौजूद मॉडल के आधार पर सार्वजनिक निजी भागीदारी मॉडल के रूप में की गई थी। QCI को एक स्वतंत्र स्वायत्त निकाय के रूप में संगठित किया गया था जो आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करने के लिए काम करता था। यह उत्पाद, सेवाओं और व्यक्तियों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में मान्यता सेवाएं प्रदान करने के लिए 1997 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था।
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वैक्सीन अंतर्राष्ट्रीयवाद के लिए शिखर सम्मेलन
प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल (Progressive International) द्वारा वैक्सीन अंतर्राष्ट्रीयवाद (vaccine internationalism) के लिए चार दिवसीय शिखर सम्मेलन 18 जून, 2021 को शुरू हुआ।
मुख्य बिंदु
यह शिखर सम्मेलन “कोविड -19 महामारी को जल्द से जल्द समाप्त करने और सभी के लिए कोविड-19 टीकों को सुरक्षित करने” के लक्ष्य के साथ शुरू किया गया था।
यह वैक्सीन शिखर सम्मेलन लगभग 20 देशों के राजनीतिक नेताओं, वैश्विक दक्षिण सरकारों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और वैक्सीन निर्माताओं को एक साथ लाता है।
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र के सहायता प्रमुख मार्क लोकॉक ने G-7 योजना की गंभीर नहीं होने और आवश्यक तात्कालिकता की कमी के रूप में आलोचना की थी।
शिखर सम्मेलन का एजेंडा
इस शिखर सम्मेलन के प्रतिभागी दुनिया भर में टीकों के उत्पादन, वितरण और वितरण को बढ़ावा देना चाहते हैं, क्योंकि वर्तमान में दुनिया की केवल 2% आबादी को पूरी तरह से COVID के खिलाफ टीका लगाया गया है।
इस शिखर सम्मेलन में प्रौद्योगिकी लाने, पेटेंट छूट को लागू करने और टीकों के तेजी से उत्पादन में निवेश करने के लिए ठोस प्रस्तावों पर विचार करने की उम्मीद है।
अर्जेंटीना, मैक्सिको, बोलीविया, क्यूबा, वेनेज़ुएला, केरल (भारत) और किसुमू (केन्या) की सरकारों के प्रतिनिधियों सहितचार वैक्सीन निर्माताओं, फिओक्रूज़ (ब्राज़ीलियाई निर्माता), विरचो लेबोरेटरीज (भारतीय निर्माता), बायोलिस (कनाडाई फर्म) और बायोफार्मा क्यूबा (क्यूबा निर्माता) इसमें हिस्सा ले रहे हैं।
पृष्ठभूमि
यह शिखर सम्मेलन वैक्सीन राष्ट्रवाद पर आशंकाओं की पृष्ठभूमि में आयोजित किया जा रहा है, जहां विकसित अर्थव्यवस्थाओं को घरेलू वैक्सीन के उत्पादन से लाभ हो रहा था, जबकि गरीब देशों को वैक्सीन तक पहुंच नहीं मिल रही थी।
SOURCE-GK TODAY