CURRENTS AFFAIRS – 5th MAY 2021
कृषि क्षेत्र को और सुचारू करने के लिए केंद्र सरकार ने उठाए ठोस कदम
कृषि क्षेत्र को और सुचारू करने के लिए केंद्र सरकार ने ठोस कदम उठाते हुए विभिन्न नियम-कायदों के अनुपालन का बोझ कम कर दिया है। साथ ही प्रणाली सरल करते हुए बदलाव किए गए हैं। इससे देशभर के किसानों सहित कृषि क्षेत्र से सम्बद्ध लोगों को सुविधा होगी। इस संबंध में लिए गए निर्णयों की केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बुधवार को समीक्षा की।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कृषि क्षेत्र में सुधार पर लगातार जोर दिया है। इस दिशा में भारत सरकार ने एक के बाद एक अनेक कदम उठाए है। इसी तारतम्य में केंद्रीय कृषि मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर के दिशा-निर्देशानुसार, मंत्रालय के अंतर्गत प्रभावी कार्यवाही की गई है। कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा भी मंत्री श्री तोमर के अनुमोदन से किसानों की सुविधा के लिए कामकाज की प्रणाली सरल करते हुए अनेक बदलाव किए गए है।
न्यूनतम विनियामक अनुपालन पर आज केंद्रीय मंत्री श्री तोमर द्वारा ली गई समीक्षा बैठक में बताया गया कि एगमार्क का डिजिटलीकरण एवं सरलीकरण किया जा रहा है, अब एगमार्क के तहत प्राधिकार प्रमाण-पत्र (सीए) के नवीनीकरण की प्रक्रिया को सरल कर 5 वर्षों की वैधता के साथ सीए जारी किए जाएंगे। इसके लिए अधिकृत पैकर भौतिक रूप से दौरा करने की, न्यूनतम मात्रा में ग्रेडिंग करने की एवं औपचारिक आवेदन करने की आवश्यकता नहीं होगी। केवल उसे ऑनलाइन मोड के माध्यम से निर्धारित नवीनीकरण शुल्क का भुगतान कर संबंधित कार्यालय को सूचित करना होगा। एगमार्क के तहत कृषि जिंसों के श्रेणीकरण एवं चिह्नांकन हेतु वाणिज्यिक/ संघ/ सहकारी प्रयोगशालाओं का अनुमोदन/ नवीनीकरण भी सरल किया गया है। प्राधिकार प्रमाण-पत्र के नवीनीकरण के लिए भौतिक निरीक्षण की आवश्यकता नहीं होगी। एगमार्क प्रतिकृति क्रम संख्याओं के निर्गमन हेतु आवेदन अधिकृत पैकरों द्वारा ऑनलाइन/ ई-मेल द्वारा जमा तथा निर्गत किया जाएगा। निर्यात हेतु एगमार्क के तहत श्रेणीकरण तथा चिह्नांकन के संबंध में प्रयोगशालाओं के अनुमोदन के लिए संयुक्त आकलन टीम (जेएटी) द्वारा प्रयोगशाला का आकलन/निरीक्षण आवश्यक नहीं होगा, यदि संबंधित प्रयोगशाला एनएबीएल प्रत्यायित/आईएसओ प्रमाणित है।
ईज ऑफ़ डूइंग इन एग्री बिज़नेस की दिशा में, कृषि मंत्रालय के पौध संरक्षण विभाग ने उद्योग/ व्यवसाय पर नियामक अनुपालन बोझ को कम करने के उद्देश्य से कीटनाशकों से संबंधित कई पहल की हैं। ऐसा किसानों से, ‘व्यापार करने में आसानी’ को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया है। कीटनाशक अधिनियम-1968 और नियमों के तहत 31 मार्च 2021 तक कमी के लिए विनियामक प्रक्रियाओं की 15 आयटम की पहचान की गई थी, जिनमें से 11 अनुपालन, जो कीटनाशकों के पंजीकरण के लिए मौजूदा दिशा-निर्देशों से संबंधित हैं, रिकॉर्ड प्रस्तुत करना आदि को युक्तिसंगत बना दिया गया है या हटा दिया गया है। यह कदम कीटनाशकों के लिए पंजीकरण प्रमाण-पत्र जारी करने में तेजी लाएगा।
किसानों पर नियामक अनुपालन बोझ को कम करने के लिए आईसीएआर ने ऐसी 19 प्रक्रियाओं की पहचान की है, जो मुख्य रूप से बीज/ रोपण सामग्री/ लाइव स्टॉक/ टीके/ तकनीकी आदि की बिक्री व परीक्षण से संबंधित हैं। इन प्रक्रियाओं को सुगम किया गया है, जिससे किसानों का बोझ कम होगा व उन्हें सुविधा रहेगी। इन प्रक्रियाओं को आईसीएआर के विभिन्न संस्थानों द्वारा संचालित किया जाता है। इसके साथ ही मंत्री जी द्वारा अब तक की लंबित शिकायतों की भी समीक्षा की गई। वर्तमान में निपटान दर 98% है। श्री तोमर ने निर्देश दिया कि जनशिकायतों का निराकरण कम से कम समय में किया जाएं।
मंत्री श्री तोमर ने वर्ष 2020 में शुरू किए गए आत्मनिर्भर भारत अभियान के घटकों की भी समीक्षा की। इस दौरान बताया गया कि आत्मनिर्भर भारत अभियान के पैकेजों का उद्देश्य कृषि में प्रशासनिक सुधारों के साथ ही बुनियादी ढांचे, क्षमता निर्माण आदि को मजबूत करना है।
SOURCE-PIB
जैविक बाजरा
देश से जैविक उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए, देवभूमि (देव भूमि) में पिघली हुई बर्फ से बने गंगा जल से हिमालय में उगाए गए बाजरा की पहली खेप, उत्तराखंड से डेनमार्क को निर्यात की जाएगी।
एपीडा, उत्तराखंड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड (यूकेएपीएमबी) और एक निर्यातक के रूप में जस्ट ऑर्गनिक उत्तराखंड के किसानों से रागी (फिंगर मिलेट), और झिंगोरा (बार्न यार्ड मिलेट) खरीदकर और उसे प्रसंस्कृत निर्यात करता है, जो यूरोपीय संघ के जैविक प्रमाणीकरण मानकों को पूरा करता है।
यूकेएपीएमबी ने इन किसानों से सीधे बाजरे की खरीद की है, जिन्हें मंडी बोर्ड द्वारा निर्मित और जस्ट ऑर्गनिक द्वारा संचालित अत्याधुनिक प्रसंस्करण इकाई में प्रसंस्कृत किया गया है।
इस मौके पर एपीडा के अध्यक्ष डॉ.एम. अंगामुथु ने कहा “बाजरा भारत की एक अद्भुत फसल है जिसकी वैश्विक बाजार में बेहद मांग है। हम हिमालय से आने वाले उत्पादों पर विशेष ध्यान देने के साथ बाजरा का निर्यात बढ़ाने पर खास जोर देंगे ।” उन्होंने कहा कि भारतीय जैविक उत्पाद अपनी पोषकता और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने की खासियत की वजह से विदेशी बाजार में अधिक मांग प्राप्त कर रहे हैं।
उत्तराखंड की पहाड़ियों में बाजरा की किस्में भोजन का प्रमुख हिस्सा है। उत्तराखंड सरकार जैविक खेती का समर्थन करती रही है। यूकेएपीएमबी एक अनूठी पहल के माध्यम से जैविक प्रमाणीकरण प्राप्त के लिए हजारों किसानों का समर्थन कर रहा है। ये किसान मुख्य रूप से रागी, बार्नयार्ड मिलेट, अमरनाथ आदि जैसे बाजरा की किस्में पैदा करते हैं।
डेनमार्क को बाजरा के निर्यात से यूरोपीय देशों में निर्यात के अवसरों का विस्तार होगा। निर्यात से जैविक खेती से जुड़े हुए हजारों किसानों को भी फायदा मिलेगा। उच्च पोषकता और ग्लूटेन मुक्त होने के कारण भी बाजरा विश्व स्तर पर बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
इस बीच पिछले वित्त वर्ष (2019-20) की अप्रैल-फरवरी की अवधि की तुलना में अप्रैल-फरवरी (2020-21) के दौरान भारत में जैविक खाद्य उत्पादों का निर्यात 51 फीसदी बढ़कर 7078 करोड़ रुपये ( 1040 मिलियन डॉलर) हो गया है। वहीं मात्रा के आधार पर अप्रैल-फरवरी (2019-20) में 638,998 मीट्रिक टन की तुलना में अप्रैल-फरवरी (2020-21) के दौरान जैविक खाद्य उत्पादों का निर्यात 39 फीसदी बढ़कर 888,179 मीट्रिक टन हो गया है। कोविड-19 महामारी द्वारा उत्पन्न लॉजिस्टिक और परिचालन चुनौतियों के बावजूद जैविक उत्पादों के निर्यात में वृद्धि हासिल हुई है।
ऑयल केक देश से जैविक उत्पाद निर्यात की एक प्रमुख उत्पाद है। जिसके बाद ऑयल सीड, फलों की पल्प और प्यूरी, अनाज और बाजरा, मसाले, चाय, औषधीय पौधों के उत्पाद, सूखे फल, चीनी, दालें, कॉफी, आवश्यक तेल आदि शामिल हैं। भारत के जैविक उत्पादों को संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ, कनाडा, ग्रेट ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, इजरायल और दक्षिण कोरिया सहित 58 देशों में निर्यात किया जाता है।
वर्तमान में उन जैविक उत्पादों का निर्यात किया जाता है जो जैविक उत्पादन के राष्ट्रीय कार्यक्रम (एनपीओपी) की आवश्यकताओं के अनुसार फसलों का उत्पादन, प्रसंस्करण, पैकिंग और लेबल किए जाते हैं। एनपीओपी को एपीडा ने 2001 में अपनी स्थापना के बाद से लागू किया है। जिसे विदेशी व्यापार (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1992 के तहत अधिसूचित किया गया है।
एनपीओपी प्रमाणीकरण को यूरोपीय संघ और स्विट्जरलैंड द्वारा मान्यता दी गई है। जो अतिरिक्त प्रमाणन की आवश्यकता के बिना भारत को इन देशों से बिना प्रमाणीकरण के प्रसंस्कृत पौधों के उत्पादों का निर्यात करने में सक्षम बनाता है। एनपीओपी ब्रेक्जिट के बाद भी यूनाइटेड किंगडम में भारतीय जैविक उत्पादों के निर्यात की सुविधा प्रदान करता है।
प्रमुख आयात करने वाले देशों के बीच व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए, भारत से जैविक उत्पादों के निर्यात के लिए आपसी समझौते करने के लिए ताइवान, कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, यूएई, न्यूजीलैंड के साथ बातचीत चल रही है।
एनपीओपी को भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) द्वारा घरेलू बाजार में जैविक उत्पादों के व्यापार के लिए भी मान्यता दी गई है। एनपीओपी के साथ द्विपक्षीय समझौते के तहत शामिल उत्पादों को भारत में आयात के लिए दोबारा प्रमाणीकरण की जरूरत नहीं है।
SOURCE-PIB
सामाजिक सुरक्षा संहिता – 2020
केन्द्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने आधार की प्रासंगिकता को कवर करने वाली सामाजिक सुरक्षा संहिता – 2020 की धारा 144 को अधिसूचित कर दिया है। इस धारा की अधिसूचना जारी होने से श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के अंतर्गत अपने डेटाबेस के लिए लाभार्थियों के आधार का विवरण प्राप्त करने में सक्षम होगा।
असंगठित श्रमिकों का राष्ट्रीय डेटाबेस (एनडीयूडब्ल्यू) को राष्ट्रीय सूचना केन्द्र विकसित कर रहा है, जो अभी एडवांस स्टेज में है। इस पोर्टल का उद्देश्य प्रवासी मज़दूरों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों का डाटा एकत्रित करना है, ताकि सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ इन श्रमिकों तक पहुँचाया जा सके। अंतर-राज्यीय प्रवासी मज़दूर केवल आधार कार्ड के विवरण के माध्यम से अपने आप को इस पोर्टल पर पंजीकृत कर सकता है।
केन्द्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री संतोष गंगवार ने स्पष्ट किया है कि सामाजिक सुरक्षा संहिता के तहत इस धारा को प्रवासी मज़दूरों सहित अन्य श्रमिकों के डेटाबेस को एकत्रित करने के लिए अधिसूचित किया गया है। आधार के अभाव में किसी भी मज़दूर को सरकारी लाभ से वंचित नहीं रखा जाएगा।
100 मिलियन वर्ष पुरानी हड्डियों की खोज
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में सॉरोपोड डायनासोर (Sauropod dinosaurs) के जीवाश्म हड्डी के टुकड़े पाए। वे 100 मिलियन वर्ष के थे। ये डायनासोर की हड्डियाँ मेघालय जिले के पश्चिम खासी पहाड़ियों (West Khasi Hills) में पाई गई थीं। यह इस क्षेत्र में सॉरोपोड की खोज की पहली घटना है।
सॉरोपोड्स (Sauropods)
उनकी गर्दन लंबी, छोटे सिर, लंबी पूंछ और स्तंभ की तरह 4 पैर होते थे।
मेघालय ऐसा 5वां राज्य बन गया है जहाँ सॉरोपोड्स के साक्ष्य मिले हैं, इससे पहले गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में इस तरह के साक्ष्य पहले ही मिल हैं। इसके अलावा, मेघालय उत्तर-पूर्व में एकमात्र राज्य है जहाँ सॉरोपोड की हड्डियाँ मिली हैं।
पहली डायनासोर की हड्डी की खोज जबलपुर छावनी के बड़ा सिमला हिल (Bara Simla Hill) में की गई थी।
भारत में डायनासोर (Dinosaurs in India)
भारत में डायनासोर्स ट्राइसिक काल के अंत से लेकर क्रेटेशियस काल तक मौजूद थे।
राजासौरस डायनासोर (Rajasaurus dinosaur) भारत में उत्पन्न हुआ था।
भारत में पाए जाने वाले सभी डायनासोरों में से, बारापासॉरस (Barapasaurus) भारत में सबसे बड़ा था। यह चार मीटर ऊँचा और 24 मीटर लंबा था। सबसे खतरनाक टायरानोसॉरस रेक्स (Tyranno-
saurusrex) था।
डायनासोर पृथ्वी पर विलुप्त क्यों हुए?
एक बड़ा उल्कापिंड पृथ्वी में गिर गया था, जिसने पृथ्वी की जलवायु परिस्थितियों को बदल दिया। इन जलवायु परिस्थितियों में डायनासोर जीवित नहीं रह सकते थे। इसके अलावा उल्कापिंड के प्रभाव के कारण बनाई गई खाद्य श्रृंखला के असंतुलन से डायनासोरों भुखमरी के कारण भी मारे गये। उल्कापिंड के प्रभाव से कई जानवर मारे गए और अधिकांश जंगल जल गए।
पहला ग्रीन सोलर एनर्जी हार्नेसिंग प्लांट
भारतीय सेना ने हाल ही में सिक्किम में पहला ग्रीन सोलर एनर्जी हार्नेसिंग प्लांट (Green Solar Energy Harnessing Plant) शुरू किया। इसे भारतीय सेना के सैनिकों को लाभ पहुंचाने के लिए लॉन्च किया गया था।
प्लांट के बारे में
यह प्लांट वैनेडियम (Vanadium) आधारित बैटरी तकनीक का उपयोग करता है।
इसे 16,000 फीट की ऊंचाई पर बनाया गया है।
इस प्लांट की क्षमता 56 KVA है।
यह आईआईटी मुंबई के सहयोग से पूरा हुआ है।
भारतीय सेना की अन्य हरित पहल
भारतीय सेना ने हाल ही में (अप्रैल, 2021) जालंधर छावनी में एक सौर ऊर्जा संयंत्र शुरू किया है।इसे विश्व पृथ्वी दिवस पर लॉन्च किया गया था। इसके अलावा, इसे “गो ग्रीन” पहल के एक भाग के रूप में लॉन्च किया गया था।
इस सयंत्र का निर्माण 16 करोड़ रुपये की लागत से किया गया था।
यह छावनी में सैन्य अस्पताल के लिए समर्पित है।
यह संयंत्र पांच एकड़ भूमि में स्थापित किया गया था।
इस परियोजना ने 1MW सौर ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए 3,176 सौर पैनल स्थापित किए हैं।
इस परियोजना से सालाना 15 लाख यूनिट सौर ऊर्जा का उत्पादन होगा और इससे प्रति वर्ष 1 करोड़ रुपये की बचत होगी।
वैनेडियम (Vanadium)
जनवरी 2021 में, वनैडियम अरुणाचल प्रदेश में खोजा गया था।यह भारत में वनैडियम की पहली खोज थी।
भारत विश्व में वैश्विक वेनेडियम उत्पादन का 4% उपभोग करता है।
यह 60 विभिन्न खनिजों और अयस्कों में पाया जाता है जिसमें कारनोटाइट, वनाडेट, रोसकोलाइट, पेट्रोनाईट शामिल हैं।
वैनेडियम का उपयोग स्टील मिश्र धातु, अंतरिक्ष वाहन, परमाणु रिएक्टर आदि बनाने में किया जाता है। इसका उपयोग गर्डर्स, पिस्टन रॉड बनाने में भी किया जाता है।वैनेडियम रेडॉक्स बैटरी का उपयोग सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट में किया जाता है। उनका उपयोग ऊर्जा के विश्वसनीय अक्षय स्रोतों को बनाने के लिए भी किया जाता है।
वनैडियम का रंग सिल्वर है।यह एक संक्रमणकालीन धातु है, जो गर्मी और बिजली का अच्छा संवाहक है।
SOURCE-GK TODAY
विश्व अस्थमा दिवस
हर साल विश्व अस्थमा दिवस का आयोजन ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर अस्थमा (Global Initiative for Asthma) द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य अस्थमा के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। प्रति वर्ष मई के पहले मंगलवार को दिन मनाया जाता है।
आवश्यकता
WHO के अनुसार, पूरी दुनिया में लगभग 235 मिलियन लोग अस्थमा से पीड़ित हैं। यह गैर-संचारी रोगों में से एक है। बच्चों में अस्थमा सबसे आम बीमारी है।
अस्थमा के लिए वैश्विक पहल (Global Initiative for Asthma)
विश्व स्वास्थ्य संगठन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान, राष्ट्रीय हृदय, फेफड़े और रक्त संस्थान के सहयोग से 1993 में अस्थमा के लिए वैश्विक पहल शुरू की गई थी। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को चिकित्सा दिशानिर्देश प्रदान करती है।
भारत में अस्थमा
भारत में लगभग 6% बच्चे और 2% वयस्क अस्थमा के कारण प्रभावित हैं। भारत में अस्थमा का इलाज किया जाता है और निदान किया जाता है।
इतिहास
पहला विश्व अस्थमा दिवस 1998 में 35 से अधिक देशों में मनाया गया था। पहला विश्व अस्थमा दिवस स्पेन में विश्व अस्थमा बैठक के संयोजन में मनाया गया था।
कोरोनावायरस का N प्रोटीन और संचरण
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (Indian Institute of Science Education and Research) के शोधकर्ताओं ने हाल ही में बताया कि स्पाइक प्रोटीन के अलावा, COVID -19 वायरस में अन्य प्रोटीन जैसे कि न्यूक्लियोकैस्पिड प्रोटीन (Nucleocaspid protein) या एन प्रोटीन (N protein) भी वायरस के संचरण (या संक्रामकता) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस प्रकार, यह केवल स्पाइक प्रोटीन के आधार पर एंटीबॉडी, चिकित्सीय दवाओं और प्रवेश अवरोधकों को विकसित करना पर्याप्त नहीं है।
जाँच – परिणाम
COVID-19 में एक RNA जीनोम होता है जो एक गोलाकार संरचना से घिरा होता है। इस संरचना में विभिन्न प्रकार के प्रोटीन शामिल हैं। उनमें से एक स्पाइक प्रोटीन है।
एन–प्रोटीन के बारे में
शोधकर्ताओं के अनुसार, एन प्रोटीन या न्यूक्लियोकैप्सिड प्रोटीन में अन्य प्रोटीन की तुलना में अधिक संक्रामकता होती है।शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि स्पाइक छद्म प्रकार को बेअसर करने वाले एंटीबॉडी एन प्रोटीन के खिलाफ कम प्रभावी थे।
COVID-19 में अन्य प्रोटीन
COVID-19 सभी RNA विषाणुओं में सबसे बड़ा जीनोम है। यह एक हेलिकल कैप्सिड (helical capsid) में पैक होता है। यह कैप्सिड न्यूक्लोकैस्पिड प्रोटीन से बना होता है। इसके अलावा यह एक लिफाफे से घिरा हुआ है। लिफाफे के साथ तीन प्रोटीन जुड़े होते हैं। वे मेम्ब्रेन प्रोटीन, एनवलप प्रोटीन और स्पाइक प्रोटीन हैं। मेम्ब्रेन प्रोटीन और एन्वेलोप प्रोटीन वायरस असेंबली में शामिल हैं। स्पाइक प्रोटीन मेजबान कोशिकाओं में वायरस की मध्यस्थता करता है।
SOURCE-GK TODAY