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Current Affair 11 May 2021

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CURRENTS AFFAIRS – 11th MAY 2021

 राष्ट्रीय बांस मिशन ने एमआईएस मॉड्यूल

राष्ट्रीय बांस मिशन ने प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) का शुभारंभ किया, जो अगरबत्ती उत्पादन से जुड़ी सभी सूचनाओं का एक मंच होगा।इस पर अगरबत्ती उत्पादन इकाइयों के बारे में सूचना उपलब्ध रहेगी। साथ ही अगरबत्ती बनाने के लिए कच्चे माल की उपलब्धता की सूचना, इकाइयों की कार्यप्रणाली, उत्पादन क्षमता, विपणन इत्यादि की जानकारियां भी उपलब्ध रहेंगी। इस मॉड्यूल की मदद से अगरबत्ती क्षेत्र को उद्योगों से जोड़ा जा सकेगा और इससे उत्पादन इकाइयों से निर्बाध खरीद की व्यवस्था बनेगी और जानकारी के अभाव की जो स्थिति की उसमें सुधार होगा। राष्ट्रीय बांस मिशन से जुड़े सभी राज्य अगरबत्ती उत्पादन इकाइयों का दस्तावेजीकरण करने की प्रक्रिया में हैं ताकि ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘मेक फॉर द वर्ल्ड’ अभियानों के तहत इन इकाइयों को मदद देने के तौर तरीकों का आकलन हो सके और भारतीय अगरबत्ती की वैश्विक लोकप्रियता का लाभ उठाते हुए इस क्षेत्र को और सशक्त किया जा सके।

राष्ट्रीय बांस मिशन (एनबीएम), सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), राज्य सरकारें और उद्योग जगत एक साथ आए हैं ताकि भारत को अगरबत्ती क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाकर स्थानीय समुदायों की आजीविका को बेहतर किया जा सके। साथ ही इस क्षेत्र का आधुनिकीकरण किया जा सके। अगरबत्ती क्षेत्र आमतौर पर स्थानीय लोगों को बड़े स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराता है। हालांकि यह क्षेत्र विभिन्न बाधाओं के चलते सिकुड़ता जा रहा था, जिसमें सस्ते दर पर अगरबत्ती के लिए गोल तीलियों और कच्चे माल की आयात प्रमुखता से शामिल है। राष्ट्रीय बांस मिशन द्वारा 2019 में अगरबत्ती क्षेत्र पर एक वृहद अध्ययन किया गया जिसके उपरांत सरकार द्वारा कई नीतिगत बदलाव किए गए। अगरबत्ती के लिए किए जाने वाले कच्चे माल के आयात को आयात शुल्क मुक्त श्रेणी से हटाकर प्रतिबंधित श्रेणी में अगस्त 2019 में डाला गया और जून 2020 में इस पर आयात शुल्क बढ़ाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया, जिससे घरेलू अगरबत्ती उद्योग को बल मिला।

एनबीएम की पृष्ठभूमि

बांस क्षेत्र के समग्र विकास के लिए राष्ट्रीय बांस मिशन को 2018-19 में नए स्वरूप में शुरू किया गया,हब (उद्योग) और स्पोक मॉडल पर क्लस्टर आधारित व्यवस्था थी। इसके अंतर्गत सभी पक्षों को किसानों और बाज़ारों से जोड़ा जाना था। बांस से बने भारतीय उत्पादों के लिए न सिर्फ घरेलू बल्कि वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बनाने के लिए प्रबल संभावनाएं हैं। इसके लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी, आधुनिक प्रणाली और निर्यात किए जाने वाले देशों के मानदंडों पर खरा उतरने के लिए जागरूकता का सृजन शामिल है। राष्ट्रीय बांस मिशन घरेलू उद्योग गतिविधियों को बढ़ाने के साथ-साथ तकनीकी एजेंसियों के माध्यम से सपोर्ट और सुविधा जनक क़दमों के द्वारा किसानों की आय बढ़ाने के लिए अपनी सक्रियता को व्यवस्थित कर रहा है। विभिन्न उत्पादों से जुड़ी इकाइयां इत्यादि स्थापित करने के लिए किसानों को प्रति हेक्टेयर 50 प्रतिशत की सीधी सब्सिडी दी गई जो कि 1 लाख रुपये है। सरकारी एजेंसियों और उद्यमियों द्वारा ऐसी इकाइयों को स्थापित करने पर छूट शत प्रतिशत दी गई। यह मिशन इस समय 21 राज्यों में संचालित किया जा रहा है जिसमें पूर्वोत्तर भारत के सभी 9 राज्य अपने अपने बांस मिशन के द्वारा इससे जुड़े हैं। राष्ट्रीय बांस मिशन राज्यों को यह भी सुझाव दे रहा है कि वाणिज्य क्षमता वाली प्रजातियों की खेती के लिए अपेक्षित और गुणवत्तापूर्ण पौधारोपण सामग्री उपलब्ध कराए जाने चाहिए, कॉमन फैसिलिटी सेंटर और अन्य पोस्ट हार्वेस्ट इकाइयों की स्थापना की जानी चाहिए, जो पहले से स्थापित और नए उद्योगों के साथ पूरी तरह जुड़ा हुआ हो। यह किसानों और भारतीय बांस उद्योग दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन होगी।

Source –PIB

 

OSIRIS-Rex

नासा के अंतरिक्ष यान ने “ओसिरिस-रेक्स” (Osiris Rex) ने पृथ्वी के लिए दो साल की लंबी यात्रा शुरू कर दी है। यह अंतरिक्ष यान 2018 में क्षुद्रग्रह बेन्नू (asteroid Bennu) पर पहुंचा था। इस अन्तरिक्षयान ने इस क्षुद्रग्रह के चारों ओर दो साल तक उड़ान भरी और कई नमूने इकट्ठा किये।

OSIRIS-Rex

इस मिशन को क्षुद्रग्रह बेनु का अध्ययन करने के लिए लॉन्च किया गया था।इस मिशन ने बेन्नू की सतह को मैप करने में 5 साल व्यतीत किये।

2020 में, वैज्ञानिकों ने ओसिरिस रेक्स को 60 किलो ग्राम रेजोलिथ (शीर्ष मिट्टी) को लाने करने का निर्देश दिया था।

यह मिशन सौर प्रणाली की उत्पत्ति और विकास को समझने में मदद करेगा।

बेन्नू ही क्यों?

यह वर्तमान में पृथ्वी के लिए ज्ञात सबसे खतरनाक क्षुद्रग्रह है। इसके 22वीं शताब्दी में पृथ्वी से टकराने की 1/2700 संभावना है।

यह 6 साल में एक बार पृथ्वी के सबसे करीब पहुंचता है।

क्या यह एक क्षुद्रग्रह पर लैंडिंग वाला पहला मिशन था?

जापान ने हायाबुसा भेजा था और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने रोज़ेटा मिशन भेजा था। इस प्रकार, यह एक क्षुद्रग्रह पर लैंड करने वाला पहला मिशन नहीं था।

हायाबुसा मिशन (Hayabusa Mission)

2014 में रयुगु (Ryugu) से नमूने एकत्र करने के लिए यह मिशन लॉन्च किया गया था। यह 2018 में रयुगु तक पहुंच गया गया। इसने वहां 18 महीने बिताए और दिसंबर 2020 में पृथ्वी पर लौट आया।

रोज़ेटा मिशन (Rosetta Mission)

रोज़ेटा मिशनयूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा 2004 में धूमकेतु चुरयीमोव-गेरासिमेंको (Churyumov-Gerasimenk) की खोज के लिए लांच किया गया था।

यह धूमकेतु की परिक्रमा करने वाला पहला मिशन था।इसके अलावा, यह पहला मिशन था जिसने इसकी सतह पर एक प्रोब को लैंड किया था।

असमयूनिसेफ ऑनलाइन बाढ़ रिपोर्टिंग प्रणाली

असम राज्य आपदा प्रबंधन एजेंसी (Assam State Disaster Management Agency) और यूनिसेफ (UNICEF) ने संयुक्त रूप से एक ऑनलाइन बाढ़ रिपोर्टिंग प्रणाली (Online Flood Reporting System) विकसित की है। इसके साथ, असम बाढ़ के दौरान प्रभाव संकेतकों (impact indicators) का पता लगाने के लिए डिजिटल रिपोर्टिंग प्रणाली को अपनाने वाला पहला राज्य बन गया।

सिस्टम के बारे में

यह नई प्रणाली असम में बाढ़ के स्तर को दैनिक आधार पर रिपोर्ट करेगी। इससे पहले, राज्य में बाढ़ प्रबंधन प्रणाली में कई हितधारक शामिल थे, इसमें काफी समय लगता था।

नई प्रणाली पूरी तरह से डिजिटल है।

नई प्रणाली वेब-और-मोबाइल एप्लीकेशन तकनीक द्वारा संचालित है।

सिस्टम डिलीवरी

यह फसलों के नुकसान और पशुधन के नुकसान की ट्रैकिंग सुविधा प्रदान करेगा और बहाली के दौरान वित्तीय सहायता प्रदान करने में भी मदद करेगा।

इसके अलावा, सिस्टम परिभाषित स्तरों पर तत्काल अलर्ट-आधारित सत्यापन प्रदान करेगा।

पृष्ठभूमि

असम में, हर साल 15 मई से 15 अक्टूबर के बीच दैनिक बाढ़ के स्तर के बारे में रिपोर्ट करना अनिवार्य है।

असम में बाढ़

असम में बाढ़ बहुत आम है।इसका मुख्य कारण ब्रह्मपुत्र नदी है। यह  नदी काफी अस्थिर है। इसका मुख्य कारण खड़ी ढलान और उच्च अवसादन है।

असम बाढ़ के पीछे के कारण मानव निर्मित और प्राकृतिक दोनों हैं।क्षेत्र में बांधों से पानी की अनियमित रिहाई भी बाढ़ का कारण बनती है।

गुवाहाटी का आकार एक कटोरे की तरह है जो इस क्षेत्र को जल जमाव के लिए अतिसंवेदनशील बनाता है।

SOURCE-GK TODAY

 

राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस

भारत की तकनीकी प्रगति को याद दिलाने के लिए हर साल 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस (National Technology Day) मनाया जाता है।

11 मई को ही क्यों?

11 मई को, भारत ने अपनी पहली सफल शक्ति-I (Shakti-I) परमाणु मिसाइल का परीक्षण किया था। इस मिसाइल का परीक्षण भारतीय सेना ने पोखरण टेस्ट रेंज, राजस्थान में किया गया था। इस ऑपरेशन को “ऑपरेशन शक्ति” कहा जाता था। शक्ति- I परमाणु मिसाइल के परीक्षण के बाद, भारत ने दो परमाणु हथियारों का सफलतापूर्वक परीक्षण भी किया था।

11 मई के दिन ही DRDO (रक्षा अनुसंधान विकास संगठन) ने त्रिशूल मिसाइल (Trishul missile) का परीक्षण पूरा किया था। यह हंस-3 (Hansa-3) नामक पहले स्वदेशी विमान की उड़ान को भी चिह्नित करता है।

ऑपरेशन शक्ति (Operation Shakti)

ऑपरेशन शक्ति के पहले चरण का कोड नाम “स्माइलिंग बुद्धा” (Smiling Buddha) था। यह मई 1974 में आयोजित किया गया था। दूसरा परमाणु परीक्षण, 1998 में आयोजित ऑपरेशन शक्ति के दूसरे चरण को पोखरण II भी कहा जाता था और यह परमाणु बमों की 5 परीक्षणों की एक श्रृंखला थी। इसका नेतृत्व दिवंगत राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। इस सफल परीक्षण के बाद, पीएम वाजपेयी ने भारत को पूर्ण परमाणु राज्य घोषित किया था।

इन परमाणु परीक्षणों के बाद भारत के खिलाफ कई प्रतिबंध लगाए गये थे। भारत पर प्रतिबंध लगाने वाले प्रमुख देश अमेरिका और जापान थे।

तीसरी आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने हाल ही में घोषणा की कि भारत ने आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक (Arctic Science Ministerial Meeting) में भाग लिया। केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बैठक में भारत का प्रतिनिधित्व किया।

परिणाम

भारत ने इस बैठक के दौरान आर्कटिक में अनुसंधान और दीर्घकालिक सहयोग के लिए योजनाएं साझा कीं।

भारत ने Sustained Arctic Observational Network में अपना योगदान जारी रखने का वादा किया।

भारत ने यह भी घोषणा की कि वह ऊपरी महासागर चर और समुद्री मौसम विज्ञान मानकों की लंबी अवधि की निगरानी के लिए आर्कटिक में मूरिंग तैनात करेगा। मूरिंग एक तार से जुड़े उपकरणों का संग्रह है और जिन्हें समुद्र तल तक एंकर किया जाता है।

भारत ने अगले या भविष्य के आर्कटिक विज्ञान मंत्री की बैठक की मेजबानी करने का प्रस्ताव रखा।

आर्कटिक विज्ञान मंत्रीस्तरीय बैठक (Arctic Science Ministerial)

पहली दो आर्कटिक विज्ञान मंत्रिस्तरीय बैठक 2016 में अमेरिका और 2018 में जर्मनी में आयोजित की गई थी।

यह बैठक 2021 में जापान और आइसलैंड द्वारा आयोजित की गई थी और यह एशिया में आयोजित होने वाली पहली बैठक है।

इसका उद्देश्य विभिन्न हितधारकों जैसे सरकारों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं को आर्कटिक क्षेत्र की सामूहिक समझ बढ़ाने के लिए अवसर प्रदान करना है।

भारत 2013 से आर्कटिक परिषद में एक “पर्यवेक्षक” है।

स्वालबार्ड संधि (Svalbard Treaty)

आर्कटिक क्षेत्र में भारत की उपस्थिति 1920 में पेरिस की स्वालबार्ड संधि पर हस्ताक्षर के साथ शुरू हुई।

भारत ने 2008 में आर्कटिक क्षेत्र में एक स्थायी अनुसंधान स्टेशन का निर्माण किया। इसे हिमाद्री कहा जाता है। हिमाद्री नॉर्वे के न्यालेसुंड में स्थित है।

2014 में, भारत ने 2014 में Kongfjiorden fjord में IndARC नामक एक मल्टी सेंसर पर्यवेक्षक की तैनाती की।

नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च, गोवा आर्कटिक क्षेत्र में अनुसंधान का समन्वय और संचालन करता है।

NISER

NISER का NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar उपग्रह मिशन है। इसका लक्ष्य रडार इमेजिंग का उपयोग करके भूमि की सतह के परिवर्तनों का वैश्विक माप करना है। यह परियोजना वर्तमान में चालू है।

भारत की आर्कटिक नीति (India’s Arctic Policy)

हाल ही में जारी मसौदा आर्कटिक नीति दस्तावेज भारत की नीति के पांच स्तंभों की रूपरेखा तैयार करता है। वे इस प्रकार हैं :

  • मानव संसाधन क्षमताओं का विकास
  • वैश्विक शासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
  • अर्थशास्त्र और मानव विकास
  • वैज्ञानिक अनुसंधान
  • कनेक्टिविटी

SOURCE-GK TODAY

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