Current Affairs – 13 December, 2021
कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 16 दिसंबर 2021 को पूर्वाह्न 11 बजे से कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करेंगे, जिसमें प्राकृतिक खेती की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत की जाएगी। यह शिखर सम्मेलन 14 से 16 दिसंबर 2021 तक गुजरात के आणंद में आयोजित होने वाले प्री-इवेंट गुजरात शिखर सम्मेलन से पहले एक हिस्से के रूप में आयोजित किया जा रहा है।
सरकार ने पिछले छह वर्षों के दौरान किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि को बदलने के लिए कई उपाय शुरू किए हैं। प्रणाली की स्थिरता, लागत में कमी, बाजार पहुंच और किसानों को बेहतर प्राप्ति के लिए पहल को बढ़ावा देने और समर्थन देने के प्रयास चल रहे हैं।
शून्य बजट प्राकृतिक खेती के बारे में:
शून्य बजट प्राकृतिक खेती को उत्पादन के एक भाग पर किसानों की निर्भरता को कम करने, पारंपरिक क्षेत्र आधारित प्रौद्योगिकियों पर भरोसा करके कृषि की लागत को कम करने के लिए एक आशाजनक उपकरण के रूप में पहचाना गया है जिससे मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह कृषि पद्धतियों को एकल-फसल से विविध बहु-फसल प्रणाली में स्थानांतरित करने पर जोर देता है। देसी गाय, उसका गोबर और मूत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिससे विभिन्न निविष्टियां जैसे बीजामृत, जीवामृत और घनजीवमृत खेत पर बनते हैं और अच्छे कृषि उत्पादन के लिए पोषक तत्वों और मिट्टी के जीवन का स्रोत हैं। अन्य पारंपरिक प्रथाएं जैसे कि बायोमास के साथ मिट्टी में गीली घास डालना या साल भर मिट्टी को हरित आवरण से ढक कर रखना, यहां तक कि बहुत कम पानी की उपलब्धता की स्थिति में भी ऐसे कार्य किए जाते हैं जो पहले वर्ष अपनाने से निरंतर उत्पादकता सुनिश्चित करती हैं।
ऐसी रणनीतियों पर जोर देने और देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में किसानों को संदेश देने के लिए गुजरात सरकार 14 दिसंबर से 16 दिसंबर 2021 तक आणंद, गुजरात में प्राकृतिक खेती पर ध्यान देने के साथ कृषि और खाद्य प्रसंस्करण पर एक राष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का आयोजन कर रही है। प्रख्यात वक्ताओं को प्राकृतिक खेती के विषय पर अपने विचार साझा करने के लिए आमंत्रित किया गया है। देश भर से 300 से अधिक प्रदर्शकों की प्रदर्शनी एक अतिरिक्त आकर्षण होगी।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है?
जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है
पर्यावरण पर असर
कृषि वैज्ञानिकों एवं इसके जानकारों के अनुसार फसल की बुवाई से पहले वर्मीकम्पोस्ट और गोबर खाद खेत में डाली जाती है और इसमें निहित 46 प्रतिशत उड़नशील कार्बन हमारे देश में पड़ने वाली 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान खाद से मुक्त हो वायुमंडल में निकल जाता है। इसके अलावा नायट्रस, ऑक्साइड और मिथेन भी निकल जाती है और वायुमंडल में हरितगृह निर्माण में सहायक बनती है। हमारे देश में दिसम्बर से फरवरी केवल तीन महीने ही ऐसे है, जब तापमान उक्त खाद के उपयोग के लिये अनुकूल रहता है।
आयातित केंचुआ या देसी केंचुआ?
वर्मीकम्पोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल किये जाने वाले आयातित केंचुओं को भूमि के उपजाऊपन के लिये हानिकारक मानने वाले श्री पालेकर बताते है कि दरअसल इनमें देसी केचुओं का एक भी लक्षण दिखाई नहीं देता। आयात किया गया यह जीव केंचुआ न होकर आयसेनिया फिटिडा नामक जन्तु है, जो भूमि पर स्थित काष्ट पदार्थ और गोबर को खाता है। जबकि हमारे यहां पाया जाने वाला देशी केंचुआ मिट्टी एवं इसके साथ जमीन में मौजूद कीटाणु एवं जीवाणु जो फसलों एवं पेड़- पौधों को नुकसान पहुंचाते है, उन्हें खाकर खाद में रूपान्तरित करता है। साथ ही जमीन में अंदर बाहर ऊपर नीचे होता रहता है, जिससे भूमि में असंख्यक छिद्र होते हैं, जिससे वायु का संचार एवं बरसात के जल का पुर्नभरण हो जाता है। इस तरह देसी केचुआ जल प्रबंधन का सबसे अच्छा वाहक है। साथ ही खेत की जुताई करने वाले “हल” का काम भी करता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टॉरपीडो प्रणाली
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टॉरपीडो सिस्टम 13 दिसम्बर, 2021 को ओडिशा के व्हीलर द्वीप से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया। यह प्रणाली अगली पीढ़ी की मिसाइल आधारित स्टैंडऑफ टॉरपीडो डिलीवरी प्रणाली है। मिशन के दौरान मिसाइल की पूरी रेंज क्षमता का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया। यह प्रणाली टॉरपीडो की पारंपरिक सीमा से कही अधिक एंटी-सबमरीन युद्ध क्षमता बढ़ाने के लिए डिजाइन की गई है।
इस नियोजित लॉन्च में सम्पूर्ण मार्ग की निगरानी इलैक्ट्रो ऑप्टिक टेलीमीटरी प्रणाली, विभिन्न रेंज के रडारों द्वारा की गई। इनमें डाउन रेंज उपकरण और डाउन रेंज जहाज शामिल हैं। मिसाइल में एक टॉरपीडो पैराशूट डिलीवरी प्रणाली तथा रिलीज तंत्र है।
यह मिसाइल प्रणाली उन्नत टेक्नोलॉजी की है, यानी इसमें टू-स्टेज़ सॉलिड प्रोपल्सन इलैक्ट्रो मैकेनिकल एक्चुएटर्स तथा प्रिसिजन इनर्शल नैवीगेशन हैं। यह मिसाइल ग्राउंड मोबाइल लॉन्चर से लॉन्च की गई और यह लंबी दूरी को कवर कर सकती है।
डीआडीओ की अनेक प्रयोगशालाओं ने इस उन्नत मिसाइल के लिए विभिन्न तकनीकों का विकास किया। उद्योग द्वारा भी विभिन्न उप-प्रणालियों के विकास और उत्पादन में भाग लिया गया।
रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने सुपरसोनिक मिसाइल असिस्टेड टॉरपीडो सिस्टम के सफल प्रशिक्षण में शामिल दलों को बधाई दी और कहा कि इस प्रणाली का विकास देश में भविष्य की रक्षा प्रणालियों को तैयार करने का सबसे बढि़या उदाहरण है।
रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के सचिव तथा डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. जी. सतीश रेड्डी ने सफल प्रशिक्षण में शामिल सभी लोगों को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली हमारी नौसेना की शक्ति को आगे बढ़ाएगी और विशेषज्ञता तथा क्षमताओं का उपयोग करते हुए रक्षा क्षेत्र में आत्म-निर्भरता को बढ़ावा देगी।
क्या होती है सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल
क्रूज मिसाइल उसे कहते हैं जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरती है और रडार की आंख से बच जाती है। सूत्रों ने बताया कि मिसाइल पहले से ही थलसेना, नौसेना और वायुसेना के पास है।
हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल
उम्मीद जताई जा रही है कि यह मैक-5 यानी करीब 4000 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ेगा। भारत सरकार के साथ एक निजी कंपनी मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इसका आधिकारिक नाम HGV-202F रखा गया है। इसके डिजाइन की तस्वीर सामने नहीं आई है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
पशुपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज
पशुपालन और डेयरी विभाग ने स्टार्टअप इंडिया के साथ साझेदारी में, डॉ वर्गीस कुरियन की जन्म शताब्दी के अवसर पर गुजरात के आणंद में ‘राष्ट्रीय दुग्ध दिवस‘ मनाने के एक कार्यक्रम के दौरान ‘पशुपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज‘ का दूसरा संस्करण लॉन्च किया।
स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज का पहला संस्करण 12 सितंबर, 2019 को प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था। पशुपालन स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज 2.0 को केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री, श्री पुरुषोत्तम रूपाला द्वारा पशुपालन और डेयरी क्षेत्र के सामने आने वाली छह समस्याओं के समाधान के लिये नवीन और व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक हल को तलाशने के लिये लॉन्च किया गया है। स्टार्टअप इंडिया पोर्टल – www.startupindia.gov.in – पर यह चुनौती सभी स्टार्टअप के लिये निम्नलिखित समस्या कथन के लिये खुली है :
- सीमन डोज के भंडारण और आपूर्ति के लिए लागत प्रभावी, दीर्घकालिक और उपयोगकर्ता के अनुकूल विकल्प
समस्या के बारे में विस्तार में
- सीमन उत्पादन केंद्रों से किसान के घर तक, जहां सीमन का उपयोग किसान की गाय/भैंस के गर्भाधान के लिये किया जाता है, सीमन डोज की आपूर्ति के लिए कोल्ड चेन का रखरखाव, भारत में एआई वितरण प्रणाली की रीढ़ है।
- तरल नाइट्रोजन और तरल नाइट्रोजन कंटेनर सीमन डोज को रखने और परिवहन के लिए उपयोग किया जाता है। भंडारण और परिवहन के दौरान एलएन2 का नुकसान अधिक होता है, जिससे कोल्ड चेन के रखरखाव की लागत में वृद्धि होती है।
- एलएन 2स्टील और ऑक्सीजन उद्योग का उप-उत्पाद है। इसलिये, जहां कहीं भी ये उद्योग उपलब्ध हैं, एलएन 2 की लागत अपेक्षाकृत कम है, लेकिन अन्य भागों में यह अधिक है।
- गलत तरीके से किये गये एलएन 2 के रखरखाव से स्वास्थ्य को जोखिम हो सकता है।
- एलएन 2 भंडारण कंटेनर विशाल आकार के और भारी होते हैं, इसलिये इन कंटेनरों की आवाजाही में अत्यधिक श्रमशक्ति की आवश्यकता होती है।
उपाय से उम्मीदें
- सीमन डोज के भंडारण और परिवहन (क्रायोप्रिजर्वेशन) के कुछ वैकल्पिक लागत प्रभावी, लंबी अवधि और उपयोगकर्ता के अनुकूल साधनों को तलाशा जा सकता है और उन्हें लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
- भंडारण कंटेनर को इस तरह से डिजाइन किया जा सकता है कि यह छोटा और ले जाने में आसान हो।
- पशुओं की पहचान (आरएफआईडी) और उनका पता लगाने की लागत प्रभावी तकनीक का विकास
समस्या के बारे में
- जानवरों की पहचान एक विशिष्ट पहचान संख्या के साथ पॉलीयूरेथिन टैग का उपयोग करके की जाती है। अनुमान है कि 5 से 10 प्रतिशत टैग खो जाते हैं क्योंकि ये टैग बाहरी तरफ लगाये जाते हैं। पहचान संख्या पढ़ना भी मुश्किल है। इसलिए गाय-भैंस को स्थायी पहचान देना समय की मांग है।
- वर्तमान में जानवरों के बीच इस्तेमाल हो रही रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी) का उपयोग करने वाली तकनीक बहुत महंगी है। इसकी लागत 50 रुपये से 100 रुपये तक है, और रीडर की लागत भी बहुत अधिक है, 15,000 रुपये से 20,000 रुपये तक। आरएफआईडी एक स्थायी पहचान संख्या है क्योंकि इसे त्वचा के नीचे लगाया जाता है और इसे आसानी से हटाया नहीं जा सकता है। चूंकि तकनीक महंगी है, इसका उपयोग भारत में पशुधन पर नहीं किया जाता है।
उपाय से उम्मीदें
उद्यमी फार्म में रखे जाने वाले पशुओं, विशेष रूप से मवेशियों और भैंसों की पहचान के लिए लागत प्रभावी आरएफआईडी पहचान प्रणाली विकसित कर सकता है। रीडर की लागत को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।
- हीट डिटेक्शन किट का विकास
समस्या के बारे में
- कृत्रिम तरीके से पशुओं के प्रजनन को सीमित करने में सबसे महत्वपूर्ण कारण गायों या बछिया में मदकाल का गलत अनुमान लगाना है। पारंपरिक रूप से मदकाल का पता देखकर लगाया जाता रहा है। हालाँकि, यह विधि थकाने वाली है और इसमें लगने वाली श्रम लागत ऊंची है। डेयरी गायों में मद से जुड़े संकेतों में, गायों के द्वारा विशेष व्यवहार दिखाना मदकाल का सबसे विश्वसनीय संकेत है।
- भैंसों में मदकाल के संकेत नहीं होते। इसलिए, यह पता लगाना मुश्किल है कि वे कब मद में हैं, और भैंसों के मामले में बछड़ों के जन्म के बीच लंबा अंतराल होने का यह एक प्रमुख कारण है।
उपाय से उम्मीदें
- मदकाल का पता लगाने के लिए पश्चिमी देशों की डेयरियों में हीट माउंट डिटेक्टर (एचएमडी) अधिक लोकप्रिय हो गये हैं। शारीरिक गतिविधि का अध्ययन करने के लिए पैडोमीटर/गर्दन पर लगे कॉलर का उपयोग किया गया है और इससे मद का समय निर्धारित किया गया है, लेकिन समस्या वही है, ये तकनीकें महंगी हैं।
- भैंसों और/या मवेशियों के बीच मद का पता लगाने के लिए उद्यमी लागत प्रभावी तकनीक विकसित कर सकता है।
- डेयरी पशुओं के लिए प्रेग्नेन्सी डाइग्नोसिस किट का विकास
समस्या के बारे में
- एआई कार्यक्रमों में, गर्भावस्था के 70 से 90 दिनों में रेक्टल पेल्पेशन के माध्यम से गर्भावस्था का सफलतापूर्वक पता लगाया जाता है। रेक्टल पैल्पेशन एक पशुचिकित्सक द्वारा, या एक पशुचिकित्सक की उपस्थिति में तकनीशियनों द्वारा किया जाता है।
- किसानों के लिए प्रारंभिक अवस्था में (गर्भावस्था के लगभग 30 दिनों में) गर्भावस्था का पता लगाना संभव नहीं है।
उपाय से उम्मीदें
- रक्त प्रोटीन के आधार पर प्रेग्नेन्सी डाइग्नोसिस किट विकसित की जाये।
- उद्यमी आईडीईएक्सएक्स द्वारा विपणित अलर्टिस रुमिनेंट प्रेग्नेन्सी टेस्ट किट की तर्ज पर प्रेग्नेन्सी टेस्ट किट विकसित कर सकता है और इसके उत्पादन के लिए सुविधा स्थापित कर सकता है। इससे पशुओं के प्रबंधन की लागत में काफी कमी आयेगी।
- ग्राम संग्रहण केन्द्र से डेयरी संयंत्र तक मौजूद दुग्ध आपूर्ति श्रृखंला में सुधार
समस्या के बारे में
- ऐसे गांव का पता लगाने और उसकी पहचान करने का कोई तंत्र नहीं है जहां से संग्रह केंद्र द्वारा दूध एकत्र किया जा रहा है। इसलिए, पूरे देश में सभी गांवों को कूटबद्ध किया जाना है।
- संग्रह केंद्र से बीएमसी (बल्क मिल्क कूलिंग) केंद्र तक दूध ले जाने के लिये उपयोग होने वाले मार्ग (टैंकर/ट्रक द्वारा) के बारे में कोई जानकारी नहीं होती है। इसलिए, सहकारी और निजी क्षेत्र के डेयरी प्रोसेसर के सभी दूध ले जाने वाले मार्गों को कूटबद्ध किया जाना है।
- दूध के किस टैंकर या दूध परिवहन करने वाले वाहन ने संग्रह केंद्र से बीएमसी केंद्र तक दूध पहुंचाया, इसकी कोई जानकारी नहीं होती है। इसलिए, सभी दूध टैंकरों/दूध परिवहन वाहनों को कूटबद्ध और जीपीएस-सक्षम होना चाहिये।
- इसकी कोई जानकारी नहीं होती है कि दूध को किस बीएमसी केंद्र ने ठंडा किया। इसलिए सभी बीएमसी केंद्रों को कूटबद्ध किया जाना है।
- इस बात की कोई जानकारी नहीं होती है कि डेयरी प्लांट पहुंचने से पहले किस दूध के टैंकर ने उस ठंडे दूध को पहुंचाया।
- किस डेयरी प्लांट ने उस दूध को प्राप्त किया, इसकी कोई जानकारी नहीं होती है। इसलिए सभी डेयरी संयंत्रों को कूटबद्ध किया जाना है। इसके अलावा, प्रत्येक डेयरी प्लांट में, सभी मिल्क साइलो, मिल्क पास्चराइज़र, मिल्क पैकिंग मशीन, सभी प्रोसेसिंग बैच/प्रोसेसिंग शिफ्ट आदि को कूटबद्ध किया जाना है। उस संयत्र की सभी डेयरी उत्पाद बनाने की प्रक्रिया लाइनों को कूटबद्ध किया जाना है, यदि कोई हो।
- उपरोक्त जियो-कोड के आधार पर, एसएपी-आधारित समाधान प्रदाता द्वारा एक व्यापक और विशिष्ट कोड उत्पन्न करने की आवश्यकता होती है, जिसे पाश्चुरीकृत दूध/डेयरी उत्पादों जैसे दही, पनीर आदि के पाउच में अंकित किया जाना है।
उपाय से उम्मीदें
- संचालन के दौरान नुकसान में कमी
- दूध को लाने ले जाने में लगने वाला समय घटने से रखरखाव के दौरान नुकसान/कच्चे दूध के खराब होने से नुकसान को कम करना : दूध पाउडर के नुकसान में कमी
- कच्चे दूध की गुणवत्ता में सुधार और तरल दूध को मूल्य वर्धित उत्पादों में बदलने के अवसर में वृद्धि के कारण बिक्री में वृद्धि, जिससे उच्च रिटर्न और डेयरी निर्यात में वृद्धि
- कम लागत वाली कूलिंग और दुग्ध परिरक्षण प्रणाली और डेटा लॉगर का विकास
समस्या के बारे में
- पहाड़ी क्षेत्रों में दूध को 40 लीटर और 20 लीटर क्षमता के दूध के डिब्बे में सड़क किनारे डीसीएस तक ले जाया जाता है। दूध निकाले जाने के समय से दूध संग्रह केंद्र तक पहुंचने में 2 घंटे तक का समय लग सकता है। इसी तरह, रेगिस्तान, नदी डेल्टा क्षेत्रों में द्वीपों और अन्य दूरदराज के क्षेत्रों में, किसानों को संग्रह केंद्र तक पहुंचने के लिए कोल्ड चेन से जुड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, जिससे दूध की गुणवत्ता में गिरावट आती है और आर्थिक नुकसान होता है। एफएसएसएआई के नियमों के अनुसार, जानवरों से दूध प्राप्त करने के बाद उसे साफ करना चाहिये। छोटे आकार के डिब्बे/कंटेनरों (5 लीटर, 10 लीटर, 20 लीटर) में कम लागत वाली दूध परिरक्षण प्रणाली को लेकर इनोवेशन की आवश्यकता है।
- डेटा लॉगर: प्राथमिक उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण मापदंडों की निगरानी के हिस्से के रूप में, कुछ सहकारी समितियों के द्वारा सॉफ्टवेयर आधारित स्वचालित आंकड़ा संग्रह प्रणाली शुरू की गयी थी। यह प्राथमिक उत्पादन में पूर्ण जानकारी की क्षमता स्थापित करता है जो एफएसएसएआई के अनुसार अनिवार्य है। यह मूल रूप से बीएमसी (बल्क मिल्क कूलर) की बेहतर निगरानी और दक्षता के लिए ज्यादा रिपोर्टिंग, चोरी में कमी, और छेड़छाड़ पर रोकथाम की सुविधाओं के साथ बीएमसी का एक इंटरनेट-आधारित, वास्तविक-समय आधारित प्रबंधन है। क्लाउड-आधारित प्रणाली बीएमसी के विभिन्न मापदंडों जैसे तापमान, मात्रा, सयंत्र स्थल पर सफाई (सीआईपी) कार्य, दक्षता, खराबी और संभावित दुरुपयोग पर दूर से निगरानी और समय पर निदान में मदद करती है। एसएमएस अलर्ट जैसे सूचना अलर्ट (सारांश अलर्ट, कंप्रेसर चालू/बंद, पहले से तय सक्रिय रखरखाव, पावर स्रोत स्थिति, आदि) और महत्वपूर्ण अलर्ट (अंडर/ओवर कूलिंग, रखरखाव अलर्ट, आदि) विभिन्न हितधारकों को मोबाइल फोन पर प्रदान किये जायेंगे। बीएमसी के संचालन और संबंधित दूध भंडारण डेटा की दैनिक/साप्ताहिक/मासिक रिपोर्ट भी मोबाइल फोन और इंटरनेट पर उपलब्ध होगी। यह प्रणाली क्लस्टर सोसायटियों में सभी किसान-वार खरीद डेटा को सीधे दूध विश्लेषक के साथ-साथ बीएमसी से भी प्राप्त करती है, जिसे सॉफ्टवेयर सिस्टम से जोड़ा जा सकता है।
उपाय से उम्मीदें
- कम लागत वाली ग्रामीण स्तर की कूलिंग प्रणाली जैसे, छोटी क्षमता के दूध के डिब्बे बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों, एफएसएसएआई नियमों के अनुपालन, किसानों को उच्च आय आदि में मदद करेंगे।
- दूध के टैंकर, थोक वेंडिंग मशीनों, दूध के डिब्बे में वर्गीकृत लागत पर स्मार्ट डेटा लॉगिंग डिवाइस, उत्पाद की गुणवत्ता और सुधारात्मक कार्यों की अधिक निगरानी में मदद करेगा।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
एबीयू रोबोकॉन 2022
दूरदर्शन अगले वर्ष अगस्त माह में रोबोकॉन 2022 के अंतर्राष्ट्रीय फाइनल की मेजबानी करेगा, इसे प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की असाधारण उपलब्धियों की स्वीकृति के रूप में देखा जा रहा है। एबीयू रोबोकॉन एशिया-पैसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन द्वारा आयोजित की जाने वाली रोबोट प्रतियोगिता है और हर साल विभिन्न सदस्य देशों द्वारा इसका आयोजन किया जाता है, वर्ष 2022 में इसे नई दिल्ली में आयोजित किया जाएगा।
एबीयू रोबोकॉन 2021 का संचालन चीन द्वारा किया गया था, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय रोबोकॉन प्रतियोगिता 12 दिसंबर 2021 को आयोजित हुई थी। भारत की तरफ से फाइनलिस्ट बनी अहमदाबाद में निरमा विश्वविद्यालय और गुजरात प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की टीमों ने इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लिया।
प्रसार भारती बोर्ड की सदस्य शाइना एनसी ने इस अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और भाग लेने वाले अहमदाबाद से निरमा विश्वविद्यालय एवं गुजरात प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग छात्रों को संबोधित किया। उन्होंने सभी इंजीनियरिंग छात्रों, विशेषकर लड़कियों से दूरदर्शन द्वारा आयोजित होने वाले अगले वर्ष के रोबोकॉन में भाग लेने की अपील की।
प्रसार भारती बोर्ड की सदस्य शाइना एनसी ने अगस्त 2022 में नई दिल्ली में एबीयू रोबोकॉन 2022 अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के संचालन के लिए शांडोंग रेडियो और टीवी स्टेशन चीन से एबीयू रोबोकॉन ध्वज को प्राप्त किया।
रोबोकॉन 2022 के आयोजन से पहले दूरदर्शन 15-16 दिसंबर 2021 को दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित कर रहा है, जिसमें डीडी रोबोकॉन 2022 के बारे में पहली बार आधिकारिक विस्तृत जानकारी दी जाएगी, कार्यक्रम के दौरान पिछली रोबोकॉन प्रतियोगिताओं पर प्रतिक्रिया एवं सुझाव प्रस्तुत किए जाएंगे, विशेषज्ञ अपनी राय साझा करेंगे और प्रतियोगिता में भाग लेने वाली टीमों के साथ संवादात्मक सत्र आयोजित किए जाएंगे। डीडी रोबोकॉन 2022 की थीम लगोरी होगी और प्रतियोगिता की पद्धति प्रारंभिक लीग तथा फाइनल टूर्नामेंट होगी। अधिक जानकारी के लिए आप नीचे दिए गए वीडियो देख सकते हैं।
रोबोकॉन एशिया-पैसिफिक ब्रॉडकास्टिंग यूनियन (एबीयू) द्वारा साल 2002 में शुरू किया गया था, एबीयू रोबोकॉन प्रतियोगिता एक निश्चित अवधि में एक चुनौतीपूर्ण कार्य को पूरा करने के लिए रोबोटों को एक-दूसरे के सामने खड़ा करती है। एबीयू रोबोकॉन के अनुसार, प्रतियोगिता का उद्देश्य समान रुचियों वाले युवाओं के बीच मित्रतापूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना है जो 21वीं सदी में अपने-अपने देशों का नेतृत्व करेंगे, साथ ही इस क्षेत्र में इंजीनियरिंग एवं प्रसारण प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में मदद करेंगे।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1 PRE
हरनाज़ संधू
भारत की हरनाज़ संधू (Harnaaz Sandhu) ने मिस यूनिवर्स (Miss Universe 2021) का खिताब जीता। गौरतलब है कि 21 साल बाद किसी भारतीय ने यह खिताब जीता है।
मुख्य बिंदु
2000 में लारा दत्ता के खिताब जीतने के 21 साल बाद भारत की हरनाज़ संधू नई मिस यूनिवर्स बनीं हैं। हरनाज़ संधू ने इजराइल के इलियट में आयोजित 70वें मिस यूनिवर्स 2021 में भारत का प्रतिनिधित्व किया। पंजाब की 21 वर्षीय हरनाज़ संधू ने पराग्वे की नादिया फरेरा और दक्षिण अफ्रीका की लालेला मसवाने को हराकर ताज अपने नाम किया। संधू को मेक्सिको की पूर्व मिस यूनिवर्स 2020 एंड्रिया मेजा द्वारा ताज पहनाया गया। चंडीगढ़ बेस्ड मॉडल से पहले मिस यूनिवर्स का खिताब सिर्फ दो भारतीयों ने जीता है- 1994 में एक्ट्रेस सुष्मिता सेन और 2000 में लारा दत्ता। 17 साल की उम्र में पेजेंट्री में अपनी यात्रा शुरू करने वाली हरनाज़ संधू ने पहले मिस दिवा 2021, फेमिना मिस इंडिया पंजाब 2019 का ख़िताब भी जीता है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.1PRE
बक्सा रिजर्व
पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में बक्सा टाइगर रिजर्व में स्थापित एक कैमरा ट्रैप ने रॉयल बंगाल टाइगर का एक दृश्य कैद किया है, जो इस क्षेत्र में दो दशकों से अधिक समय से नहीं देखा गया है।
मुख्य बिंदु
बक्सा रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर बुद्धराज शेवा ने बाघ देखे जाने की पुष्टि के बाद बताया कि 150 के अलावा 70 और ट्रैप कैमरे लगाने की योजना है।
महत्व
बंगाल टाइगर का दिखना महत्वपूर्ण है क्योंकि बक्सा रिजर्व में 23 साल से अधिक समय से किसी भी बाघ की तस्वीर नहीं ली गई थी। आखिरी ज्ञात बाघ की तस्वीर 1998 में ली गई थी।
बक्सा टाइगर रिजर्व (Buxa Tiger Reserve)
बक्सा टाइगर रिजर्व उत्तरी पश्चिम बंगाल में स्थित है। यह 760 वर्ग किमी के क्षेत्र को कवर करता है। यह गंगा के मैदानों में 60 मीटर से लेकर उत्तर में हिमालय की सीमा से लगे 1,750 मीटर तक है। यह रिजर्व लगभग 284 पक्षी प्रजातियों का घर है। यह एशियाई हाथी, गौर, तेंदुए, सांभर हिरण और भारतीय तेंदुए जैसे स्तनधारियों का भी घर है।
बक्सा टाइगर रिजर्व की स्थापना 1983 में भारत के 15वें टाइगर रिजर्व के रूप में की गई थी।
यह कहां पर स्थित है?
बक्सा टाइगर रिजर्व पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार जिले में स्थित है। इसकी उत्तरी सीमा भूटान के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा के समानांतर चलती है। इस रिजर्व के उत्तरी हिस्से के साथ, सिंचुला पहाड़ी श्रृंखला स्थित है, जबकि यह असम राज्य के साथ पूर्वी सीमा साझा करती है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31C मोटे तौर पर रिजर्व की दक्षिणी सीमा के पार चलता है।
रॉयल बंगाल टाइगर
रॉयल बंगाल टाइगर पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस उप-प्रजाति की विशिष्ट आबादी से संबंधित है, जो भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। अवैध शिकार और आवास के विखंडन से इस बाघ प्रजाति को खतरा है। 2018 में भारत की बाघों की आबादी 2,603-3,346 थी। बांग्लादेश में 300-500 बाघ, नेपाल में 220-274 जबकि भूटान में 103 बाघ पाए जाते हैं। IUCN की रेड लिस्ट में इसे लुप्तप्राय श्रेणी में रखा गया है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.1PRE