Current Affairs – 15 December, 2021
प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से आंध्रप्रदेश के वेस्ट गोदावरी में हुई बस दुर्घटना के मृतकों के लिये मुआवजे की घोषणा की है।
पाकिस्तान से विस्थापित लोगों की मदद करने के लिए जनवरी, 1948 में तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की अपील पर जनता के अंशदान से प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की स्थापना की गई थी। प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष की धनराशि का इस्तेमाल अब प्रमुखतया बाढ़, चक्रवात और भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों के परिजनों तथा बड़ी दुर्घटनाओं एवं दंगों के पीड़ितों को तत्काल राहत पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, हृदय शल्य-चिकित्सा, गुर्दा प्रत्यारोपण, कैंसर आदि के उपचार के लिए भी इस कोष से सहायता दी जाती है। यह कोष केवल जनता के अंशदान से बना है और इसे कोई भी बजटीय सहायता नहीं मिलती है। समग्र निधि का निवेश अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों तथा अन्य संस्थाओं में विभिन्न रूपों में किया जाता है। कोष से धनराशि प्रधान मंत्री के अनुमोदन से वितरित की जाती है। प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का गठन संसद द्वारा नहीं किया गया है। इस कोष की निधि को आयकर अधिनियम के तहत एक ट्रस्ट के रूप में माना जाता है और इसका प्रबंधन प्रधान मंत्री अथवा विविध नामित अधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष को आयकर अधिनियम 1961 की धारा 10 और 139 के तहत आयकर रिटर्न भरने से छूट प्राप्त है। प्रधान मंत्री, प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष के अध्यक्ष हैं और अधिकारी/कर्मचारी अवैतनिक आधार पर इसके संचालन में उनकी सहायता करते हैं। प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किए गए अंशदान को आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 (छ) के तहत कर योग्य आय से पूरी तरह छूट हेतु अधिसूचित किया जाता है। प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष का स्थाई खाता संख्या (पैन नं.) AACTP4637Q है।
प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में स्वीकार किए जाने वाले अंशदान के प्रकार
प्रधान मंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में किसी व्यक्ति और संस्था से केवल स्वैच्छिक अंशदान ही स्वीकार किए जाते हैं। सरकार के बजट स्रोतों से अथवा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बैलेंस शीट्स से मिलने वाले अंशदान स्वीकार नहीं किए जाते हैं। विनाशकारी स्तर की प्राकृतिक आपदा के समय प्रधान मंत्री इस कोष में अंशदान करने हेतु अपील करते हैं। ऐसे सशर्त अनुदान जिसमें दाता द्वारा यह उल्लेख किया जाता है कि अनुदान की राशि किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए है, स्वीकार नहीं किये जाते!
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.2
यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में कोलकाता की दुर्गा पूजा को शामिल किए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की है।
अमूर्त संस्कृति?
- अमूर्त संस्कृति किसी समुदाय, राष्ट्र आदि की वह निधि है जो सदियों से उस समुदाय या राष्ट्र के अवचेतन को अभिभूत करते हुए निरंतर समृद्ध होती रहती है।
- अमूर्त सांस्कृतिक समय के साथ अपनी समकालीन पीढि़यों की विशेषताओं को अपने में आत्मसात करते हुए मौजूदा पीढ़ी के लिये विरासत के रूप में उपलब्ध होती है।
- अमूर्त संस्कृति समाज की मानसिक चेतना का प्रतिबिंब है, जो कला, क्रिया या किसी अन्य रूप में अभिव्यक्त होती है।
- उदाहरणस्वरूप, योग इसी अभिव्यक्ति का एक रूप है। भारत में योग एक दर्शन भी है और जीवन पद्धति भी। यह विभिन्न शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
यूनेस्को (UNESCO) और भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
- यूनेस्को की स्थापना वर्ष 1945 में स्थायी शांति बनाए रखने के रूप में “मानव जाति की बौद्धिक और नैतिक एकजुटता” को विकसित करने के लिये की गई थी।
- यूनेस्को सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्त्व के स्थलों को आधिकारिक तौर पर विश्व धरोहर की मान्यता प्रदान करती है।
- ध्यातव्य है कि ये स्थल ऐतिहासिक और पर्यावरण के लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- भारत में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त कुल 38 मूर्त विरासत धरोहर स्थल (30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित) हैं और 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें हैं।
- यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल हैं (1) वैदिक जप की परंपरा (3) रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन (3) कुटियाट्टम, संस्कृत थिएटर (4) राममन, गढ़वाल हिमालय के धार्मिक त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान, भारत (5) मुदियेट्टू, अनुष्ठान थियेटर और केरल का नृत्य नाटक (6) कालबेलिया लोक गीत और राजस्थान के नृत्य (7) छऊ नृत्य (8) लद्दाख का बौद्ध जप: हिमालय के लद्दाख क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, भारत में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ (9) मणिपुर का संकीर्तन, पारंपरिक गायन, नगाडे और नृत्य (10) पंजाब के ठठेरों द्वारा बनाए जाने वाले पीतल और तांबे के बर्तन (11) योग (12) नवरोज़, नोवरूज़, नोवरोज़, नाउरोज़, नौरोज़, नौरेज़, नूरुज़, नोवरूज़, नवरूज़, नेवरूज़, नोवरूज़ (13) कुंभ मेला (14) दुर्गा पूजा।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1
सरदार पटेल की पुण्यतिथि
प्रधानमंत्री ने कहा हैः
“सरदार पटेल का उनकी पुण्य तिथि पर स्मरण। उनकी अद्वितीय सेवाओं, उनके प्रशासनिक कौशल और हमारे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने के उनके अथक प्रयासों के लिये देश हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा।
वल्लभभाई झावेरभाई पटेल (३१ अक्टूबर १८७५ – १५ दिसम्बर १९५०), जो सरदार पटेल के नाम से लोकप्रिय थे, एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। वे एक भारतीय अधिवक्ता और राजनेता थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता और भारतीय गणराज्य के संस्थापक पिता थे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए देश के संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई और एक एकीकृत, स्वतंत्र राष्ट्र में अपने एकीकरण का मार्गदर्शन किया। भारत और अन्य जगहों पर, उन्हें अक्सर हिंदी, उर्दू और फ़ारसी में सरदार कहा जाता था, जिसका अर्थ है “प्रमुख”। उन्होंने भारत के राजनीतिक एकीकरण और 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान गृह मंत्री के रूप में कार्य किया।
खेडा संघर्ष
स्वतन्त्रता आन्दोलन में सरदार पटेल का सबसे पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेडा संघर्ष में हुआ। गुजरात का खेडा खण्ड (डिविजन) उन दिनों भयंकर सूखे की चपेट में था। किसानों ने अंग्रेज सरकार से भारी कर में छूट की मांग की। जब यह स्वीकार नहीं किया गया तो सरदार पटेल, गांधीजी एवं अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिये प्रेरित किया। अन्त में सरकार झुकी और उस वर्ष करों में राहत दी गयी। यह सरदार पटेल की पहली सफलता थी।
बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ एक प्रमुख किसान आंदोलन था, जिसका नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी ब्लूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसान संघर्ष एवं राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम के अंर्तसबंधों की व्याख्या बारदोली किसान संघर्ष के संदर्भ में करते हुए गांधीजी ने कहा कि इस तरह का हर संघर्ष, हर कोशिश हमें स्वराज के करीब पहुंचा रही है और हम सबको स्वराज की मंजिल तक पहुंचाने में ये संघर्ष सीधे स्वराज के लिए संघर्ष से कहीं ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते।
लेखन कार्य एवं प्रकाशित पुस्तकें
निरन्तर संघर्षपूर्ण जीवन जीने वाले सरदार पटेल को स्वतंत्र रूप से पुस्तक-रचना का अवकाश नहीं मिला, परंतु उनके लिखे पत्रों, टिप्पणियों एवं उनके द्वारा दिये गये व्याख्यानों के रूप में बृहद् साहित्य उपलब्ध है, जिनका संकलन विविध रूपाकारों में प्रकाशित होते रहा है। इनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तो सरदार पटेल के वे पत्र हैं जो स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में दस्तावेज का महत्व रखते हैं। 1945 से 1950 ई० की समयावधि के इन पत्रों का सर्वप्रथम दुर्गा दास के संपादन में (अंग्रेजी में) नवजीवन प्रकाशन मंदिर से 10 खंडों में प्रकाशन हुआ था। इस बृहद् संकलन में से चुने हुए पत्र-व्यवहारों का वी० शंकर के संपादन में दो खंडों में भी प्रकाशन हुआ, जिनका हिंदी अनुवाद भी प्रकाशित किया गया। इन संकलनों में केवल सरदार पटेल के पत्र न होकर उन-उन संदर्भों में उन्हें लिखे गये अन्य व्यक्तियों के महत्वपूर्ण पत्र भी संकलित हैं। विभिन्न विषयों पर केंद्रित उनके विविध रूपेण लिखित साहित्य को संकलित कर अनेक पुस्तकें भी तैयार की गयी हैं। उनके समग्र उपलब्ध साहित्य का विवरण इस प्रकार है:-
हिन्दी में
- सरदार पटेल : चुना हुआ पत्र-व्यवहार (1945-1950) – दो खंडों में, संपादक- वी० शंकर, प्रथम संस्करण-1976, (नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
- सरदारश्री के विशिष्ट और अनोखे पत्र (1918-1950) – दो खंडों में, संपादक- गणेश मा० नांदुरकर, प्रथम संस्करण-1981 (वितरक- नवजीवन प्रकाशन मंदिर, अहमदाबाद)
- भारत विभाजन (प्रभात प्रकाशन, नयी दिल्ली)
- गांधी, नेहरू, सुभाष
- आर्थिक एवं विदेश नीति
- मुसलमान और शरणार्थी
- कश्मीर और हैदराबाद
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1
सोलर हमाम
सोलर हमाम, स्थानीय रूप से डिज़ाइन किया गया हीटिंग सिस्टम लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के गांवों में काफी लोकप्रियता हासिल कर रहा है।
सोलर हमाम का उद्देश्य क्या है?
सोलर हमाम का उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों के घरों में स्वच्छ ऊर्जा समाधान प्रदान करना है। यह वनों को संरक्षित करने, महिलाओं को ईंधन की लकड़ी इकट्ठा करने से मुक्त करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने का प्रयास करता है।
यह तकनीक कैसे महत्वपूर्ण है?
- इस तकनीक का विकास महत्वपूर्ण है क्योंकि पहाड़ों में परिवार ईंधन, चारा, स्वास्थ्य, पोषण, कृषि, आजीविका और रोजगार पाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 85% ग्रामीण परिवार पारंपरिक बायोमास ईंधन पर निर्भर हैं।
- हिमालयी क्षेत्र में 2000 मीटर की ऊंचाई पर, सर्दियां काफी कठोर होती हैं और पूरे साल ठंड रहती है। यह घरों को एक दिन में 16-17 घंटे तक ऊर्जा के स्रोत के रूप में लकड़ी की आग पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करता है। इस क्षेत्र में, एकत्रित लकड़ी का लगभग 50% पानी गर्म करने और रहने की जगहों में उपयोग किया जाता है। इससे वनों का क्षरण होता है।
पृष्ठभूमि
ग्रामीण घरों के लिए सरल और लागत प्रभावी सौर जल और तापन प्रणाली का विकास 2004 में शुरू किया गया था। 2008 में, एक कारीगर-निर्मित प्रोटोटाइप, सोलर हमाम, विकसित किया गया। ग्रामीण घरों में प्रदर्शन, सुरक्षा और रखरखाव के लिए सोलर हमाम का मूल्यांकन किया गया था। हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और उत्तराखंड में अब तक 1,200 से अधिक सोलर हमाम सिस्टम लगाए जा चुके हैं।
सोलर हमाम क्या है?
- सोलर हमाम एक एंटी-फ्रीजिंग आउटलेट प्रदान करता है। 30-35 मिनट की पहली सूरज रोशनी के भीतर यह सुबह 90 डिग्री सेल्सियस के अधिकतम तापमान पर 15-18 लीटर गर्म पानी प्रदान करता है।
- गर्म पानी के लगातार बैच 15-20 मिनट अलग उपलब्ध होते हैं।
- सोलर हमाम के लिए स्थापना के बाद रखरखाव न्यूनतम है।
- यह ग्रामीण कारीगरों, मुख्य रूप से बढ़ई द्वारा निर्मित किया जाता है। इस प्रकार, इसने रोजगार पैदा करने में भी मदद की है।
- सोलर हमाम ने 2016-17 के लिए “हिमाचल प्रदेश स्टेट इनोवेशन अवार्ड” जीता था।
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.1
आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता से संबंधित संधि
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत गणराज्य और पोलैंड गणराज्य की सरकारों के बीच आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता से सम्बन्धित संधि को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य परस्पर कानूनी सहायता के माध्यम से आतंकवाद से संबंधित अपराधों समेत अन्य अपराधों की जांच और अभियोजन में दोनों देशों की क्षमता और प्रभावशीलता में वृद्धि करना है।
लाभ:
इस संधि का उद्देश्य आपराधिक मामलों में सहयोग और आपसी कानूनी सहायता के माध्यम से अपराध की जांच और अभियोजन में दोनों देशों की प्रभावशीलता को बढ़ाना है। अंतरराष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद के साथ इसके संबंधों के संदर्भ में, प्रस्तावित संधि, अपराध की जांच और अभियोजन के साथ-साथ अपराध के बढ़ने, इसके मददगार उपकरणों तथा आतंकवादी कृत्यों के वित्तपोषण के लिए धनराशि आदि का पता लगाने, रोकने और जब्त करने में पोलैंड के साथ द्विपक्षीय सहयोग के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करेगी।
इस संधि पर हस्ताक्षर और पुष्टि के बाद, सीआरपीसी, 1973 के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत उपयुक्त राजपत्र अधिसूचना जारी की जाएगी, ताकि भारत में संधि के प्रावधानों को प्रभावी तरीके से लागू किया जा सके। राजपत्र अधिसूचना सरकारी कार्यक्षेत्र के बाहर, आम जनता के लिए उपलब्ध है और यह संधि आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता के सन्दर्भ में भारत एवं पोलैंड के बीच आपसी सहयोग पर और अधिक जागरूकता एवं पारदर्शिता प्रदान करेगी।
यह पोलैंड से जुड़ी आपराधिक गतिविधियों से निपटने में भारत की प्रभावशीलता को बढ़ाएगा। एक बार इसके संचालन में आने के बाद, संधि के माध्यम से संगठित अपराधियों और आतंकवादियों के तौर-तरीकों के बारे में इनपुट और बेहतर जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। इसके साथ ही इनका उपयोग आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में नीतिगत निर्णयों को बेहतर बनाने के लिए भी किया जा सकता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.2
दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीन हाइड्रोजन
एनटीपीसी ने सिम्हाद्री (विशाखापत्तनम के पास) के एनटीपीसी गेस्ट हाउस में इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करके हाइड्रोजन उत्पादन के साथ ही “एकल ईंधन-सेल आधारित माइक्रो-ग्रिड” परियोजना की शुरुआत की है। यह भारत की पहली हरित हाइड्रोजन आधारित ऊर्जा भंडारण परियोजना है। इसकी बड़े पैमाने पर हाइड्रोजन ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं में अग्रणी भूमिका होगी और यह देश के विभिन्न ऑफ ग्रिड तथा महत्वपूर्ण स्थानों में माइक्रोग्रिड की स्थापना एवं अध्ययन के लिए उपयोगी साबित होगी।
परियोजना के तहत नजदीक के फ्लोटिंग सोलर प्रोजेक्ट से इनपुट पावर लेकर उन्नत 240 किलोवाट सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलाइजर का उपयोग करके हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा। धूप रहने के समय के दौरान घंटों तक उत्पादित हाइड्रोजन को उच्च दबाव में संग्रहित किया जाएगा और फिर 50 किलोवाट ठोस ऑक्साइड ईंधन सेल का उपयोग करके इसे विद्युतीकृत किया जाएगा। यह प्रणाली शाम 5 बजे से सुबह 7 बजे तक एकल आधार पर कार्य करेगी।
इस अनूठी परियोजना की रूपरेखा एनटीपीसी द्वारा इन-हाउस डिजाइन और तय की गई है। यह भारत के लिए एक विशिष्ट परियोजना है और देश के दूर-दराज के क्षेत्रों जैसे लद्दाख तथा जम्मू-कश्मीर इत्यादि, जो अब तक केवल डीजल जनरेटर पर निर्भर हैं, उनको डीकार्बोनाइज करने के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। यह परियोजना माननीय प्रधानमंत्री के वर्ष 2070 तक कार्बन न्यूट्रल बनने और लद्दाख को कार्बन न्यूट्रल क्षेत्र बनाने के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1PRE