Current Affairs – 16 December, 2021
प्राकृतिक खेती विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से प्राकृतिक खेती विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन में किसानों को संबोधित किया। इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री श्री अमित शाह, श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, गुजरात के राज्यपाल, गुजरात और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री उपस्थित थे।
किसानों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि अब आज़ादी के 100वें वर्ष तक का जो हमारा सफर है, वो नई आवश्यकताओं, नई चुनौतियों के अनुसार अपनी खेती को ढालने का है। प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते 6-7 साल में बीज से लेकर बाज़ार तक, किसान की आय को बढ़ाने के लिए एक के बाद एक अनेक कदम उठाए गए हैं। मिट्टी की जांच से लेकर सैकड़ों नए बीज तक, पीएम किसान सम्मान निधि से लेकर लागत का डेढ़ गुणा एमएसपी तक, सिंचाई के सशक्त नेटवर्क से लेकर किसान रेल तक, अनेक कदम उठाए हैं। उन्होंने इस आयोजन से जुड़े सभी किसानों को बधाई दी।
हरित क्रांति में रसायनों और उर्वरकों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा ये सही है कि केमिकल और फर्टिलाइज़र ने हरित क्रांति में अहम रोल निभाया है। लेकिन ये भी उतना ही सच है कि हमें इसके विकल्पों पर भी साथ ही साथ काम करते रहना होगा। उन्होंने कीटनाशकों और आयातित उर्वरकों के खतरों के प्रति आगाह किया, जिससे इनपुट की लागत बढ़ जाती है और स्वास्थ्य को भी नुकसान होता है। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि खेती से जुड़ी समस्याओं के विकराल होने से पहले बड़े कदम उठाने का ये सही समय है। प्रधानमंत्री ने कहा, “हमें अपनी खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ना ही होगा। जब मैं प्रकृति की प्रयोगशाला की बात करता हूं तो ये पूरी तरह से विज्ञान आधारित ही है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया जितना आधुनिक हो रही है, उतना ही ‘बैक टू बेसिक’ की ओर बढ़ रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, “इस बैक टू बेसिक का मतलब क्या है? इसका मतलब है अपनी जड़ों से जुड़ना! इस बात को आप सब किसान साथियों से बेहतर कौन समझता है? हम जितना जड़ों को सींचते हैं, उतना ही पौधे का विकास होता है।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि “कृषि से जुड़े हमारे इस प्राचीन ज्ञान को हमें न सिर्फ फिर से सीखने की ज़रूरत है, बल्कि उसे आधुनिक समय के हिसाब से तराशने की भी ज़रूरत है। इस दिशा में हमें नए सिरे से शोध करने होंगे, प्राचीन ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक फ्रेम में ढालना होगा। प्रधानमंत्री ने प्राप्त किए गए ज्ञान के प्रति सतर्क रहने को कहा। उन्होंने कहा, “जानकार ये बताते हैं कि खेत में आग लगाने से धरती अपनी उपजाऊ क्षमता खोती जाती है। हम देखते हैं कि जिस प्रकार मिट्टी को जब तपाया जाता है, तो वो ईंट का रूप ले लेती है। लेकिन फसल के अवशेषों को जलाने की हमारे यहां परंपरा सी पड़ गई है।” उन्होंने कहा कि एक भ्रम ये भी पैदा हो गया है कि बिना केमिकल के फसल अच्छी नहीं होगी जबकि सच्चाई इसके बिलकुल उलट है। पहले केमिकल नहीं होते थे, लेकिन फसल अच्छी होती थी। मानवता के विकास का, इतिहास इसका साक्षी है। उन्होंने कहा, “नई चीजें सीखने के साथ-साथ हमें उन गलत प्रथाओं को दूर करने की जरूरत है जो हमारी कृषि में आ गई हैं।” श्री मोदी ने कहा कि आईसीएआर, कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्र जैसे संस्थान कागजों से परे व्यावहारिक सफलता तक ले जाकर इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक खेती से जिन्हें सबसे अधिक फायदा होगा, वो हैं देश के 80 प्रतिशत किसान। वो छोटे किसान, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है। इनमें से अधिकांश किसानों का काफी खर्च, केमिकल फर्टिलाइजर पर होता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अगर वो प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ेंगे तो उनकी स्थिति और बेहतर होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं आज देश के हर राज्य से, हर राज्य सरकार से, ये आग्रह करूंगा कि वो प्राकृतिक खेती को जनआंदोलन बनाने के लिए आगे आएं। इस अमृत महोत्सव में हर पंचायत का कम से कम एक गांव ज़रूर प्राकृतिक खेती से जुड़े, ये प्रयास हम कर सकते हैं।”
प्रधानमंत्री ने याद करते हुए कहा कि क्लाइमेट चेंज समिट में मैंने दुनिया से लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट यानि लाइफ (एलआईएफई) को ग्लोबल मिशन बनाने का आह्वान किया था। 21वीं सदी में इसका नेतृत्व भारत करने वाला है, भारत का किसान करने वाला है। प्रधानमंत्री ने लोगों का आह्वान करते हुए कहा, “आइये, आजादी के अमृत महोत्सव में मां भारती की धरा को रासायनिक खाद और कीटनाशकों से मुक्त करने का संकल्प लें।”
जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है?
जीरो बजट प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर जीरो बजट खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तथा जामन बीजामृत बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है। जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। फसलों की सिंचाई के लिये पानी एवं बिजली भी मौजूदा खेती-बाड़ी की तुलना में दस प्रतिशत ही खर्च होती है।
पर्यावरण पर असर
कृषि वैज्ञानिकों एवं इसके जानकारों के अनुसार फसल की बुवाई से पहले वर्मीकम्पोस्ट और गोबर खाद खेत में डाली जाती है और इसमें निहित 46 प्रतिशत उड़नशील कार्बन हमारे देश में पड़ने वाली 36 से 48 डिग्री सेल्सियस तापमान के दौरान खाद से मुक्त हो वायुमंडल में निकल जाता है। इसके अलावा नायट्रस, ऑक्साइड और मिथेन भी निकल जाती है और वायुमंडल में हरितगृह निर्माण में सहायक बनती है। हमारे देश में दिसम्बर से फरवरी केवल तीन महीने ही ऐसे है, जब तापमान उक्त खाद के उपयोग के लिये अनुकूल रहता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
साइबर सुरक्षित भारत पहल
देश के सरकारी संगठनों में साइबर सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य से इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के तहत राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन विभिन्न मंत्रालयों और विभागों, केंद्र और राज्य सरकारों के सरकारी और अर्ध-सरकारी संगठनों, सार्वजनिक उपक्रमों, बैंकों आदि के मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारियों (सीआईएसओ) और अग्रिम पंक्ति के आईटी अधिकारियों के लिए छह दिवसीय डीप डाइव प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर रहा है।
यह प्रशिक्षण कार्यक्रम साइबर सुरक्षित भारत पहल के तहत राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिवीजन द्वारा एमईआईटीवाई में आयोजित कार्यशालाओं की श्रृंखला का एक हिस्सा है। यह सीआईएसओ और अन्य प्रतिभागियों को उभरते साइबर खतरे के परिदृश्य की बेहतर समझ के साथ खुद को लैस करने और साइबर सुरक्षा के सर्वश्रेष्ठ तरीकों को समझने में मदद करेगा ताकि वे अलग-अलग संगठनों और बड़े पैमाने पर नागरिकों को एक सुरक्षित साइबर स्पेस मुहैया कराने में सक्षम हों।
एमईआईटीवाई में साइबर सुरक्षा विभाग की निदेशक सुश्री तुलिका पांडे ने क्षमता निर्माण कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में बताया कि कैसे किसी संगठन के लिए साइबर खतरे से निपटने के साधनों को बनाए रखने और उन्हें अद्यतन करने के लिए सीआईएसओ की भूमिका महत्वपूर्ण है और कैसे डीप डाइव प्रशिक्षण कार्यक्रम उन्हें अपने कर्तव्यों का बेहतर ढंग से निर्वहन करने के लिए पूरी तरह तैयार कर सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) द्वारा राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस डिविज़न (एनईजीडी) एवं उद्योग जगत के सहयोग से साइबर सुरक्षित भारत पहल की घोषणा की गई।
विशेषताएँ
- इसके माध्यम से सभी सरकारी विभागों में मुख्य सूचना सुरक्षा अधिकारियों (सीआईएसओ) एवं अग्रिम पंक्ति के आईटी कर्मचारियों के लिये सुरक्षा उपायों हेतु क्षमता निर्माण करने एवं साइबर अपराध के बारे में जागरूकता फैलाने का कार्य किया जाएगा।
- इस मिशन का परिचालन जागरूकता, शिक्षा एवं सक्षमता के तीन सिद्धांतों पर किया जाएगा।
- इसमें साइबर सुरक्षा के महत्त्व पर एक जागरूकता कार्यक्रम, सर्वश्रेष्ठ प्रचलनों पर कार्यक्रम की एक श्रृंखला तथा साइबर खतरों को प्रबंधित करने तथा इनमें कमी लाने के लिये साइबर सुरक्षा हेल्थ टूल किट्स के साथ अधिकारियों की सक्षमता जैसे पक्षों को शामिल किया गया है।
- साइबर सुरक्षित भारत अपनी तरह की पहली सार्वजनिक-निजी साझीदारी है और यह साइबर सुरक्षा में आईटी उद्योग की विशेषज्ञता का लाभ उठाएगा।
संस्थापक सदस्य
- इस सहायता संघ के संस्थापक साझीदारों में आईटी क्षेत्र की अग्रणी कंपनियाँ माइक्रोसॉफ्ट, इंटेल, विप्रो, रेडहैट एवं डाइमेंशन डाटा शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त, नॉलेज साझीदारों में सर्ट-इन, एनआईसी, नेसकॉम एवं एफआईडीओ अलायंस तथा कंसल्टेंसी क्षेत्र की अग्रणी कंपनियाँ डेलॉयट एवं ईवाई शामिल हैं।
अन्य मुख्य बिंदु
- देश के साइबर स्पेस की सुरक्षा सुनिश्चित करना डिजिटल इंडिया के विज़न का सबसे अहम् पक्ष है। वस्तुतः इसका उद्देश्य यह है कि विकास का लाभ समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचना चाहिये।
- जैसा की हम सभी जानते हैं कि डिजिटल इंडिया की वज़ह से अभिशासन प्रणाली में त्वरित रूपांतरण हुआ है। अत: सुशासन व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिये निश्चित रूप से निजी क्षेत्र की कपंनियों को आगे आना होगा, ताकि भविष्य के संदर्भ में इसकी राह को और अधिक दृढ बनाया जा सके।
- वर्तमान में भारत में 118 करोड़ से अधिक आधार खाते मौजूद हैं जो लोगों को एक विशिष्ट पहचान उपलब्ध कराते हैं। जो इस बात को स्पष्ट करता है कि जैसे-जैसे हम आर्थिक संवृद्धि की तरफ बढ़ते जाते हैं, वैसे-वैसे हमें निश्चित रूप से यह सुनिश्चित करते जाना चाहिये कि हमारी डिजिटल व्यवस्था उसी के अनुरूप सुरक्षित रहे और हमारे डाटा की ठीक से हिफाज़त सुनिश्चित हो।
- इस चिंता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार द्वारा साइबर सुरक्षित भारत पहल लॉन्च की गई है जिसका मुख्य उद्देश्य हमारे डाटा को भली-भाँति सुरक्षित रखना है।
- हालाँकि, इसके लिये सरकार के साथ-साथ उद्योग जगत की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को भी एकजुट होकर एक सुरक्षित साइबर स्पेस सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
साइबर अपराध
- ये ऐसे गैर-कानूनी कार्य हैं जिनमें कंप्यूटर एवं इंटरनेट नेटवर्क का प्रयोग एक साधन अथवा लक्ष्य अथवा दोनों के रूप में किया जाता है। ऐसे अपराधों में हैकिंग, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, साइबर स्टॉकिंग, सॉफ्टवेयर पाइरेसी, क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, फिशिंग आदि को शामिल किया जाता हैं।
साइबर अपराधों से निपटने की दिशा में भारत के प्रयास
- भारत में ‘सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000’ पारित किया गया जिसके प्रावधानों के साथ-साथ भारतीय दंड संहिता के प्रावधान सम्मिलित रूप से साइबर अपराधों से निपटने के लिये पर्याप्त हैं।
- इसके अंतर्गत 2 वर्ष से लेकर उम्रकैद तथा दंड अथवा जु़र्माने का भी प्रावधान है। सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति, 2013’ जारी की गई जिसके तहत सरकार ने अति-संवेदनशील सूचनाओं के संरक्षण के लिये ‘राष्ट्रीय अतिसंवेदनशील सूचना अवसंरचना संरक्षण केंद्र (National Critical Information Infrastructure protection centre-NCIIPC) का गठन किया।
- सरकार द्वारा ‘कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम (CERT-In)’ की स्थापना की गई जो कंप्यूटर सुरक्षा के लिये राष्ट्रीय स्तर की मॉडल एजेंसी है।
- विभिन्न स्तरों पर सूचना सुरक्षा के क्षेत्र में मानव संसाधन विकसित करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘सूचना सुरक्षा शिक्षा और जागरूकता’ (Information Security Education and Awareness: ISEA) परियोजना प्रारंभ की है।
- भारत सूचना साझा करने और साइबर सुरक्षा के संदर्भ में सर्वोत्तम कार्य प्रणाली अपनाने के लिये अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे देशों के साथ समन्वय कर रहा है।
- अंतर-एजेंसी समन्वय के लिये ‘भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र’ (Indian Cyber Crime Co-ordination Centre-I4C) की स्थापना की गई है।
बुडापेस्ट कन्वेंशन क्या है?
Budapest Convention on cyber crime
- हाल ही में साइबर अपराध के संबंध में बुडापेस्ट कन्वेंशन (Budapest Convention on cyber crime) पर हस्ताक्षर करने के लिये गृह मंत्रालय द्वारा साइबर अपराध (cyber crime), क्रांतिकारीकरण (radicalization) और डेटा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया जा रहा है।
- बुडापेस्ट कन्वेंशन साइबर क्राइम पर एक कन्वेंशन है, जिसे साइबर अपराध पर बुडापेस्ट कन्वेंशन या बुडापेस्ट कन्वेंशन के नाम से जाना जाता है।
- यह अपनी तरह की पहली ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय कानूनों को सुव्यवस्थित करके, जाँच-पड़ताल की तकनीकों में सुधार करके तथा इस संबंध में विश्व के अन्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ाने हेतु इंटरनेट और कंप्यूटर अपराधों पर रोक लगाने संबंधी मांग की गई है।
- इस कन्वेंशन में 56 सदस्य हैं, जिनमें अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश भी शामिल हैं।
सीसीटीएनएस क्या है?
Crime and Criminal Tracking Network and Systems (CCTNS)
- जून 2009 में शुरू किया गया सीसीटीएनएस एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसका उद्देश्य पुलिस स्टेशनों के स्तर पर पुलिस की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने हेतु एक व्यापक और एकीकृत प्रणाली तैयार करना है।
- सीसीटीएनएस (CCTNS-Crime and Criminal Tracking Network & Systems) सभी स्तरों पर, विशेष रूप से पुलिस स्टेशन स्तर पर दक्षता और प्रभावी पुलिस कार्रवाई करने के लिये ई-शासन के सिद्धांतों को अपनाते हुए एक व्यापक और एकीकृत प्रणाली पर आधारित व्यवस्था है।
- सीसीटीएनएस सरकार की राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (National e-Governance Plan of Govt) के अंतर्गत एक मिशन मोड प्रोजेक्ट (Mission Mode Project -MMP) है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता की स्थिति पर रिपोर्ट
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) ने भारत में बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता की स्थिति पर रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट को इंस्टीट्यूट फॉर कंपिटिटिवनेस ने तैयार किया है। इसमें एक बच्चे के समग्र विकास में शिक्षा के शुरुआती वर्षों के महत्व को रेखांकित किया गया है। इसके आगे यह रिपोर्ट सुनियोजित प्रारंभिक हस्तक्षेपों जैसे कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020) और निपुण भारत के दिशा-निर्देशों की भूमिका को भी रेखांकित करता है, जिससे दीर्घावधि के लिए बेहतर शिक्षण परिणाम प्राप्त होते हैं।
शुरुआती बचपन की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच सभी बच्चों का एक मौलिक अधिकार है। एक बच्चे के जीवन के शुरुआती वर्षों को उनके सामने आने वाली सामाजिक-आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और तकनीकी बाधाओं की पृष्ठभूमि में समझने की जरूरत है, जो आगे चलकर बच्चे की क्षमता को कई तरह से प्रभावित करते हैं। इस अवसर पर आयोजित पैनल चर्चा के दौरान ईएसी-पीएम के अध्यक्ष डॉ बिबेक देबरॉय ने कहा, “शिक्षा सकारात्मक बहिर्भावों की ओर ले जाती है और विशेष रूप से शुरुआती वर्षों के दौरान दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। उपचारात्मक कार्रवाई के लिए साक्षरता और संख्यात्मकता में मौजूदा योग्यताओं और राज्यों के बीच विविधताओं पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।”
एक बच्चे की मजबूत बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता (एफएलएन) कौशल विकसित करने की जरूरत है। एफएलएन बुनियादी पढ़ने, लिखने और गणित कौशल के बारे में है। शुरुआती शिक्षा के वर्षों में पिछड़ना, जिसमें प्री-स्कूल और प्राथमिक शिक्षा शामिल है, बच्चों को अधिक कमजोर बनाते हैं, क्योंकि यह उनके सीखने के परिणामों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं। सीखने के बुनियादी वर्षों से संबंधित मौजूदा मुद्दों के अतिरिक्त कोविड-19 महामारी ने भी बच्चे की समग्र शिक्षा में प्रौद्योगिकी के महत्व को रेखांकित किया है। इसे देखते हुए भारत में पूर्व-प्राथमिक और प्राथमिक कक्षाओं में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सभी बच्चों की सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी शिक्षा पर ध्यान देना इस समय की जरूरत है।
बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता सूचकांक इस दिशा में पहला कदम है, जो भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 10 साल से कम उम्र के बच्चों में बुनियादी शिक्षा की समग्र स्थिति की समझ पैदा करता है। इस सूचकांक में 41 संकेतकों वाले पांच आधार शामिल हैं। ये पांच आधार हैं: शैक्षणिक बुनियादी ढांचा, शिक्षा तक पहुंच, बुनियादी स्वास्थ्य, सीखने के परिणाम और शासन। वहीं, भारत सतत विकास लक्ष्यों- 2030 को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। शून्य भूख (जीरो हंगर), अच्छा स्वास्थ्य व कल्याण और शिक्षा तक पहुंच विशिष्ट लक्ष्य हैं, जिनका मापन बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मकता सूचकांक के साथ किया गया है।
पूरे भारत में राज्यों के विकास के विभिन्न स्तरों और उनके बच्चों की अलग-अलग जनसंख्या आकार को देखते हुए, बेहतर विश्लेषण प्राप्त करने में सहायता के लिए राज्यों को विभिन्न स्तरों में वर्गीकृत किया गया। पूरे देश में विभिन्न राज्यों को उनकी बाल जनसंख्या यानी दस वर्ष और उससे कम आयु के बच्चे के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।
प्रमुख बिंदु :
- कुछ राज्य खास पहलुओं में दूसरों के लिए रोल मॉडल के रूप में काम कर सकते हैं, लेकिन उन्हें भी अपनी चुनौतियों का समाधान करते हुए अन्य राज्यों से सीखने की जरूरत है। यह बात न केवल अच्छा प्रदर्शन करने वालों के लिए बल्कि खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों पर भी लागू होता है। उदाहरण के लिए, छोटे राज्य में केरल का सबसे अच्छा प्रदर्शन है, लेकिन यह कुछ कम अंक वाले राज्यों से भी सीख सकता है, जैसे कि आंध्र प्रदेश (50), जिसका शिक्षा तक पहुंच के मामले में केरल (36.55) से बेहतर प्रदर्शन है।
- राज्यों ने विशेष रूप से शासन में खराब प्रदर्शन किया है, क्योंकि आधे से अधिक राज्यों के अंक राष्ट्रीय औसत 05 से भी नीचे है, जो सभी आधारों में सबसे कम है। ये आधार-वार विश्लेषण राज्यों को शिक्षा की स्थिति में सुधार के लिए आवश्यक बजट संबंधित उपायों और कदमों की स्थिति का आकलन करने में सहायता करते हैं और उनके विकास में बाधा उत्पन्न करने वाले मौजूदा खाई की पहचान करते हैं।
- शिक्षा तक पहुंच एक ऐसा मुद्दा है, जो राज्यों की ओर से त्वरित कार्रवाई की मांग करता है। बड़े राज्यों जैसे कि राजस्थान (67), गुजरात (22.28) और बिहार (18.23) का प्रदर्शन औसत से काफी नीचे है। वहीं, पूर्वोत्तर राज्यों को उनके बेहतर प्रदर्शन के चलते उच्चतम अंक प्राप्त हुए हैं।
परिचय :
- EAC-PM एक गैर-संवैधानिक, गैर-सांविधिक, स्वतंत्र निकाय है जिसका गठन भारत सरकार, विशेष रूप से प्रधानमंत्री को आर्थिक तथा अन्य संबंधित मुद्दों पर सलाह देने के लिये किया गया है।
- यह परिषद तटस्थ दृष्टिकोण के साथ भारत सरकार के लिये प्रमुख आर्थिक मुद्दों को उजागर करने का कार्य करती है।
- यह प्रधानमंत्री को मुद्रास्फीति, सूक्ष्म वित्त/माइक्रो फाइनेंस और औद्योगिक उत्पादन जैसे आर्थिक मुद्दों पर सलाह देती है।
- प्रशासनिक, रसद, नियोजन और बजट जैसे उद्देश्यों हेतु नीति आयोग EAC-PM के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- EAC-PM की संदर्भ शर्तें:
- प्रधानमंत्री द्वारा संदर्भित, आर्थिक या अन्यथा, किसी भी मुद्दे का विश्लेषण करना और उस पर सलाह देना।
- वृहत् आर्थिक महत्त्व के मुद्दों को संबोधित करना और प्रधानमंत्री के सम्मुख विचार प्रस्तुत करना।
- ये विचार स्वप्रेरित अथवा प्रधानमंत्री या किसी अन्य के संदर्भ में हो सकते हैं।
- इसमें समय-समय पर प्रधानमंत्री द्वारा वांछित किसी अन्य कार्य में भाग लेना भी शामिल है।
आवधिक रिपोर्ट:
- वार्षिक आर्थिक परिदृश्य (Annual Economic Outlook)
- अर्थव्यवस्था की समीक्षा (Review of the Economy)
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.2
हिंद महासागर संवाद
आठवां हिंद महासागर संवाद 15 दिसंबर, 2021 को आयोजित किया गया था।
मुख्य बिंदु
- इस संवाद की मेजबानी विदेश मंत्रालय और भारतीय विश्व मामलों की परिषद (Indian Council of World Affairs) ने संयुक्त रूप से की।
- इस संवाद की मेजबानी “Leveraging Digital Technologies for Health, Education, Development, and Trade in Indian Ocean Rim Association (IORA) Member States” थीम के तहत की गई।
- इस संवाद के दौरान, विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह ने महामारी से उबरने के लिए IORA सदस्य राज्यों के बीच अधिक सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
- उन्होंने नई और उभरती प्रौद्योगिकियों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला और इस पर सहयोग करने के लिए भारत की तत्परता की फिर से पुष्टि की।
हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association – IORA)
IORA को पहले Indian Ocean Rim Association for Regional Cooperation (IOR-ARC) और Indian Ocean Rim Initiative के रूप में जाना जाता था। यह एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसमें 23 राज्य शामिल हैं जो हिंद महासागर के साथ सीमा साझा करते हैं। यह एक क्षेत्रीय मंच है, प्रकृति में त्रिपक्षीय है। यह सहयोग को बढ़ावा देने और उनके बीच घनिष्ठ संपर्क को बढ़ावा देने के लिए सरकार, शिक्षा और व्यवसाय के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
IORA के सिद्धांत
IORA आर्थिक सहयोग को मजबूत करने के लिए खुले क्षेत्रवाद के सिद्धांतों पर आधारित है, विशेष रूप से व्यापार सुविधा और निवेश, प्रचार और क्षेत्र के सामाजिक विकास पर।
IORA का सचिवालय
IORA का समन्वय सचिवालय मॉरीशस के एबेन (Ebene) में स्थित है।
IORA
IORA को पहली बार मार्च 1995 में Indian Ocean Rim Initiative के रूप में स्थापित किया गया था। इसे औपचारिक रूप से मार्च 1997 में “Charter of the Indian Ocean Rim Association for Regional Co-operation” नामक एक बहुपक्षीय संधि के समापन के साथ शुरू किया गया था।
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.2
विजय दिवस
16 दिसम्बर को प्रतिवर्ष भारत में विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है, यह 1971 के युद्ध में भारत की विजय का प्रतीक है। इस दिवस के अवसर पर 1971 के युद्ध में शहीद हुए वीर सैनिकों के सम्मान में श्रद्धांजली समर्पित की जाती है। इस युद्ध के द्वारा बांग्लादेश पाकिस्तान से स्वतंत्र हुआ और पाकिस्तानी सेना को भारत के सामने बिना किसी शर्त आत्म-समर्पण करना पड़ा। इस युद्ध में भारत के 2500-3843 सैनिक शहीद हुए थे। दूसरी ओर पाकिस्तान के लगभग 9000 सैनिक इस युद्ध में मारे गये थे।
रोचक तथ्य : 1971 के युद्ध में शहीद वीर सैनिकों के सम्मान में नई दिल्ली में इंडिया गेट के पास अमर जवान ज्योति का निर्माण करवाया गया था। इसका उद्घाटन 26 जनवरी, 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा किया गया था।
पृष्ठभूमि
1947 में भारत का विभाजन करके नया देश पाकिस्तान अस्तित्व में आया था, पाकिस्तान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “पूर्वी पाकिस्तान” (वर्तमान बांग्लादेश) था। पूर्वी पाकिस्तान भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से काफी दूर था, इसके अलावा यह भाषाई व सांस्कृतिक रूप से पाकिस्तान से काफी अलग था। अतः समय के साथ-साथ पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता की मांग उठने लगी।
1971 का युद्ध
भारत और पाकिस्तान के बीच 1971 का युद्ध दो मोर्चों पर लड़ा गया था। इस युद्ध की शुरुआत 3 दिसम्बर, 1971 को हुई थी। इस युद्ध में पूर्वी तथा पश्चिमी मोर्चे पर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई। जिसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान के लेफिनेंट जनरल ए.ए. के. नियाजी ने 16 दिसम्बर, 1971 को आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े, उनके साथ 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने भी आत्मसमर्पण किया। इस युद्ध के साथ ही पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तथा वह बांग्लादेश के रूप में एक नया राष्ट्र बना।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.1 PRE