CURRENT AFFAIRS – 17th AUGUST 2021
भारत की अगुवाई में मनेगा अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष
वर्ष 2023 में भारत की अगुवाई में दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष बड़े पैमाने पर मनाया जाएगा। इस संबंध में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर की अध्यक्षता में आज उच्चस्तरीय बैठक हुई। इसमें पोषक अनाज को बढ़ावा देने के लिए विविध कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में केंद्र सरकार द्वारा पहले से भी पोषक अनाज संबंधी योजनाएं-कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
श्री तोमर ने बताया कि भारत में खेती-किसानी व किसानों को समृद्ध करने के दृष्टिकोण के साथ, प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत के प्रस्ताव पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फैसला किया है कि वर्ष 2023 में भारत के प्रायोजन में अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष मनाया जाएगा। इसकी घोषणा के लिए भारत द्वारा वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) को पत्र भेजा गया था, जिसके बाद एफएओ की कृषि संबंधी समिति व परिषद द्वारा प्रस्ताव को स्वीकार करने तथा एफएओ के 41वें सत्र में प्रस्ताव का समर्थन किए जाने सहित अन्य प्रक्रिया पूरी होने के बाद यह वर्ष मनाने का निर्णय लिया गया है। श्री तोमर ने बताया कि इसके माध्यम से खाद्य सुरक्षा व पोषण के लिए पोषक अनाज के योगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाना उद्देश्य है। खान-पान व स्वास्थ्य की बदलती स्थितियों के बीच पोषक अनाज का और अधिक महत्व है, जो वर्षों पहले व्यापक उपयोग होता रहा।
केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने बताया कि मिलेट्स के विकास के लिए भारत सरकार ने अनेक कदम उठाए है। 2018 में इसका राष्ट्रीय वर्ष मनाया गया, साथ ही एक विशिष्ट पहचान प्रदान करने के लिए कदन्नों को पोषक अनाज के रूप में अधिसूचित किया गया। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत उप-मिशन प्रारंभ किया गया, वहीं कदन्न मूल्य श्रृंखला में राज्य सरकारों व हितधारकों के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए गए है। देश में 18 बीज उत्पादन केंद्र व 22 बीज हब स्थापित किए गए हैं। सरकार द्वारा क्लस्टर व अग्ररेखित प्रदर्शनों के माध्यम से प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण, मूल्य संवर्धित उत्पादों को विकसित करने के लिए मिलेट्स के तीन उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने, पोषण मिशन अभियान में मिलेट्स को शामिल करने जैसे कदम भी इसमें शामिल है। मिलेट्स के अनेक कृषक उत्पादन संगठन (एफपीओ) भी स्थापित किए गए हैं, साथ ही भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (IIMR) ने खेत से थाली तक मिलेट्स पर संपूर्ण मूल्य श्रृंखला विकसित की है।
भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का सकारात्मक प्रभाव हुआ है, जिससे वर्ष 2017-18 में मिलेट्स का जो उत्पादन 164 लाख टन था, वह वर्ष 2020-21 में बढ़कर 176 लाख टन हो गया है और वर्ष 2017-18 में उत्पादकता 1163 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 1239 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गई है। मिलेट्स का निर्यात वर्ष 2017 में 21.98 मिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2020 में बढ़कर 24.73 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। 96 अधिक उपज देने वाली, रोग प्रतिरोधी, जिसमें 10 पोषक-अनाज फसलें व 3 जैव शक्तियुक्त किस्में शामिल हैं, का विमोचन किया गया है। नई अधिक उपज देने वाली किस्मों और संकर क़िस्मों के गुणवत्ता वाले बीज की उपलब्धता में वृद्धि हुई है और वर्ष 2020-21 में 5780 क्विंटल बीज उत्पादित हुए हैं।
भारत का मिलेट्स उत्पादन एशिया का 80 प्रतिशत- पोषक अनाज (मिलेट्स) जलवायु प्रतिरोधक क्षमता वाली फसलें हैं, जो 131 देशों में उगाई जाती हैं। यह भोजन के लिए उगाई जाने वाली अनाज की प्रथम फसल है, जिसके सिंधु सभ्यता में पाए गए सबसे पहले प्रमाण 3000 ईसा पूर्व के हैं। एशिया और अफ्रीका में लगभग 59 करोड़ लोगों के लिए यह पारंपरिक भोजन है। इसमें बाजरा, ज्वार, रागी/मंडुवा, कांगनी, कोदो, कुटकी, चीना, सावां, ब्राउनटाप मिलेट, टेफ्फ मिलेट, फोनीओ मिलेट शामिल है। भारत में लगभग 140 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग पौने दो सौ लाख टन मिलेट्स का उत्पादन होता है, वहीं वैश्विक परिदृश्य 717 लाख हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में लगभग 863 लाख टन मिलेट्स उत्पादन का है। भारत का मिलेट्स उत्पादन एशिया का 80 प्रतिशत एवं वैश्विक उत्पादन का 20 प्रतिशत है। देश में मुख्य रूप से आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में मिलेट्स की खेती होती है।
2023 मोटे अनाजों के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप
मोटे अनाज (कदन्न)
- मोटे अनाजों के प्रयोग मानव सभ्यता के प्रारंभिक काल से ही किया जाता रहा है। रूस, नाइजीरिया जैसे देशों में पारंपरिक व्यंजनों के रूप में मोटे अनाजों का व्यापक उपयोग किया जाता है।
- सांस्कृतिक दृष्टि से भी इनका विशेष महत्त्व है, भारत के कुछ राज्यों में विशेष अनुष्ठानों व पर्वों पर इनका भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इनके अंतर्गत मक्का, रागी, ज्वार, बाजरा, जौर, कोदो, सामा आदि को शामिल हैं । ये अनाज पोषक तत्त्वों से युक्त होते है, अतः ये बच्चों, ज़्यादा शारीरिक मेहनत करने वाले कामगारों तथा वृद्ध व्यक्तियों के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- इनकी वुवाई लिये कम जल, श्रम व लागत की आवश्यकता होती है। मोटे अनाज की कृषि, सूखा प्रवण क्षेत्रों के लिये उपयुक्त होने के साथ-साथ फसल की कम अवधि, उच्च कीट प्रतिरोधक क्षमता तथा उर्वरकों के न्यूनतम उपयोग के कारण महत्त्वपूर्ण है। उच्च कीटरोधक क्षमता के कारण इसमें कीटनाशकों का प्रयोग कम करना पड़ता है, जिससे कार्बन फुटप्रिंट में कमी आती है।
- इनकी कृषि को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने अप्रैल 2018 में इसे पोषक अनाज के रूप में अधिसूचित किया तथा वर्ष 2018 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया गया था।
भारत द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव के लाभ
- भारत द्वारा प्रायोजित यह प्रस्ताव बांग्लादेश, केन्या, नेपाल, नाइजीरिया, रूस,सेनेगल के साथ-साथ 70 से अधिक राष्ट्रों द्वारा सह-प्रायोजित था। इसका प्राथमिक उद्देश्य मोटे अनाज से होने वाले स्वास्थ्य लाभ और बदलती जलवायु परिस्थितियों में कृषि के लिये उनकी उपयुक्तता के बारे में जागरूकता का प्रसार करना है।
- इस प्रस्ताव को भोजन की टोकरी में प्रमुख घटक के रूप में मोटे अनाजों को शामिल करने के रूप में देखा जा रहा है।
- ऐतिहासिक रूप से मोटे अनाज की कृषि व्यापक स्तर पर होती रही है। किंतु, वर्तमान में कई देशों में इनका उत्पादन घटा है।मोटे अनाजों की उत्पादन क्षमता, इनसे जुड़े अनुसंधान व् खाद्य क्षेत्र के लिंकेज को बेहतर बनाने के लियेउपभोक्ताओं, उत्पादकों तथा निर्णय निर्माताओं को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
- मोटे अनाजों के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के घोषित होने से इसके उत्पादन से जुड़ी जागरूकता फैलाने में मदद मिलेगी। यह विशेषकर सूखा प्रभावी जलवायु परिवर्तन से ग्रस्त क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा, पोषण, आजीविका सुनिश्चित करने,कृषक आय में वृद्धि, गरीबी उन्मूलन तथा सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद
करेगा।
मोटेअनाजसे होने वाले लाभ
- जून 2018 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार,जलवायु परिवर्तन के कारण अनाज की विभिन्न फसलों पर नकरात्मक प्रभाव पड़ रहा है, परंतु मोटे अनाज की फसलें जलवायु अनुकूल फसलें हैं।
- इसके अतिरिक्त मोटे अनाजों की जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी दोहरी भूमिका है, क्योंकि वे अनुकूलन और शमन दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- पिछले कुछ वर्षों से इन अनाजों के उत्पादन पर विशेष ध्यान नहीं दिये जाने के कारण इनके उत्पादन में कमी आई है। कृषि नीतियों में गेहूँ व धान जैसे अनाजों के उत्पादन को व्यवस्थित रूप से प्रोत्साहित किया गया है, जबकि मोटे अनाजों की अनदेखी की गई है। उपलब्ध आँकड़ों से ज्ञात होता है कि कुछ वर्षों से इनके कृषि क्षेत्र में भारी गिरावट हुई है,यह क्षेत्रफल वर्ष 1965-66 में लगभग 37 मिलियन हेक्टेयर था, जो 2016-17 में घटकर 14.72 रह गया।
- मोटे अनाजों के उपयोग व माँग में कमी का एक कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली में गेहूँ तथा चावल की सुगम उपलब्धता भी है। सुगमता से उपलब्ध होने तथा इनकी फसलों पर अधिक ध्यान दिये जाने के कारण गेहूँ तथा चावलजैसे अनाजों की माँग व उपयोग में वृद्धि हुई है, जबकि अधिक पोषणयुक्त होने के वावजूद मोटे अनाजों की माँग में कमी आई है।
- अत्यधिक पौष्टिक होने के कारण मोटे अनाजों को प्रोत्साहित कर इनका उपयोग देश के पोषण संकट का समाधान करने के लिये किया जा सकता है, जो अन्य लाभों के अतिरिक्त ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ में भारत की स्थिति को सुधारने में मदद करेगा।
- उच्च रक्तचाप, मधुमेह, पाचन विकार तथा जीवनशैली से संबंधित कई अन्य रोगों के निदान के रूप में मोटे अनाजों का उपयोग किया जाता है।
- अप्रैल 2016 में, संयुक्तराष्ट्र महासभा ने भूख उन्मूलन तथा कुपोषण के सभी रूपों की पहचान करने तथा इसे वैश्विक रूप से समाप्त करने के उद्देश्य से 2016-2025 तक पोषण पर कार्रवाई दशक के निर्णय की घोषणा की थी।
मोटे अनाजों को प्रोत्साहित करने के लिये उठाए गए कदम
- इन्हें प्रोत्साहित करने के लिये सरकार ने 2014 से 2020 के मध्य रागी, बाजरा और ज्वार जैसे अनाजों पर क्रमशः 113%, 72%, 71% न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की थी।
- ओडिशा में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत मोटे अनाजों को भी शामिल किया गया है।
- गहन सुरक्षा संवर्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा के लियेएक पहल के रूप में सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय कृषि विकास योजना’की शुरुआत 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान की गई।इस योजना का उद्देश्य देश में मोटे अनाजों के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये उत्पादन तथा कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों को एकीकृत तरीके से प्रदर्शित करना है।इससे उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ प्रसंस्करण व मूल्य संवर्धन तकनीकों के माध्यम से मोटे अनाज आधारित खाद्य उत्पादों की उपभोक्ता माँग में वृद्धि होने की उम्मीद है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-ECONOMY
ग्रीन हाइड्रोजन
भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेशनल हाइड्रोजन मिशन का ऐलान किया है. उनकी घोषणा के बाद कई कंपनियों ने ग्रीन हाइड्रोजन बनाने और इस्तेमाल करने की तैयारी शुरू कर दी है. इन कंपनियों में रिलायंस, टाटा और अडाणी के नाम शामिल हैं. यहां तक कि सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल और एनटीपीसी ने ग्रीन हाइड्रोजन इस्तेमाल करने का वादा कर दिया है. हालांकि आम पब्लिक अभी तक ग्रीन हाइड्रोजन को ठीक-ठीक नहीं समझ पाई है. उसे नहीं समझ आ रहा कि ग्रीन हाइड्रोजन किस हरी ऊर्जा का नाम है और यह ऊर्जा गैस के रूप में कैसे काम करेगी. या इसे भी तेल की तरह गाड़ियों में भरा जाएगा.
आम जन के नजरिये से हम यहां ग्रीन हाइड्रोजन को समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह बला है क्या और इससे देश में कारें और ट्रेनें कब तक दौड़ सकेंगी. प्रधानमंत्री ने इस बार के स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में ग्रीन हाइड्रोजन का जिक्र किया और भारत को इसे दुनिया का हब बनाने का लक्ष्य रखा. प्रधानमंत्री के मुताबिक आने वाले समय में भारत को ग्रीन हाइड्रोजन निर्यात के क्षेत्र में अव्वल राष्ट्र बना देना है जिसके लिए सरकार तैयारी कर रही है. माना जा रहा है कि आने वाले समय में ग्रीन हाइड्रोजन पेट्रोल-डीजल के मुकाबले सबसे स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत बनेगा जिसमें प्रदूषण न के बराबर होगा और इसका निर्माण भी बेहद आसान होगा.
2030 तक चलेंगी कारें और बड़ी गाड़ियां
अब ग्रीन हाइड्रोजन को महंगे पेट्रोल और डीजल के सबसे अच्छे विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. जानकारों के मुताबिक ग्रीन हाइड्रोजन पेट्रोल और डीजल की तुलना में काफी सस्ता होगा. साल 2030 तक कारों के अलावा बड़ी-बड़ी गाड़ियों को भी इससे चलाया जा सकेगा. इसमें ट्रेन भी शामिल हो सकती है जिसे हाइड्रोजन गैस से चलाया जाएगा. ऊर्जा विशेषज्ञों के मुताबिक हाइड्रोजन पर अभी एकसाथ कई रिसर्च चल रही है. साल 2024 तक भारत सरकार ने हाइड्रोजन रिसर्च पर लगभग 800 करोड़ रुपये खर्च करने का प्लान बनाया है. इसकी शुरुआत भी हो चुकी है और दिल्ली में 50 बसें सीएनजी के साथ हाइड्रोजन मिक्स करके चल रही हैं.
हाइड्रोजन
- स्वच्छ वैकल्पिक ईंधनविकल्प के लिये हाइड्रोजन पृथ्वी पर सबसे प्रचुर तत्त्वों में से एक है।
- हाइड्रोजन का प्रकारउसके बनने की प्रक्रिया पर निर्भर करता है:
- ग्रीन हाइड्रोजन अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके जल के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारानिर्मित होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
- इसके तहत विद्युत द्वारा जल (H2O) को हाइड्रोजन (H) और ऑक्सीजन (O2) में विभाजित किया जाता है।
- उपोत्पाद:जल, जलवाष्प।
- ब्राउन हाइड्रोजनका उत्पादन कोयले का उपयोग करके किया जाता है जहाँ उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
- ग्रे हाइड्रोजन(Grey Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है जहाँ संबंधित उत्सर्जन को वायुमंडल में निष्कासित किया जाता है।
- ब्लू हाइड्रोजन(Blue Hydrogen) प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होती है, जहाँ कार्बन कैप्चर और
स्टोरेज का उपयोग करके उत्सर्जन को कैप्चर किया जाता है।
उपयोग:
- हाइड्रोजन एक ऊर्जा वाहक है, न कि स्रोत और यह ऊर्जा की अधिक मात्रा को वितरित या संग्रहीत कर सकताहै।
- इसका उपयोगफ्यूल सेल में विद्युत या ऊर्जा और ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये किया जा सकता है।
- वर्तमान में पेट्रोलियम शोधन और उर्वरक उत्पादन में हाइड्रोजन का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है, जबकि परिवहन एवं अन्य उपयोगिताएँ इसके लिये उभरते बाज़ार हैं।
- हाइड्रोजन और ईंधन सेल वितरित या संयुक्त ताप तथा शक्ति सहित विविध अनुप्रयोगों में उपयोग के लिये ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं; अतिरिक्त उर्जा; अक्षय ऊर्जा के भंडारण और इसे सक्षम करने के लिये सिस्टम; पोर्टेबल बिजली आदि।
- इनकी उच्च दक्षता और शून्य या लगभग शून्य-उत्सर्जन संचालनके कारण हाइड्रोजन एवं फ्यूल सेलों जैसे कई अनुप्रयोगों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की क्षमता है।
दो तरीके से बन रही हाइड्रोजन गैस
भारत में फिलहाल हाइड्रोजन फ्यूल तैयार करने के लिए दो टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल हो रहा है. पहली तकनीक में पानी के इलेक्ट्रोलिसिस से हाइड्रोजन गैस पैदा की जाती है. इसमें पानी से हाइड्रोजन को अलग किया जाता है. दूसरी टेक्नोलॉजी में प्राकृतिक गैस से हाइड्रोजन और कार्बन को तोड़कर अलग किया जाता है. इसमें हाइड्रोजन को ले लेते हैं और बचे कार्बन का इस्तेमाल ऑटो, इलेक्ट्रॉनिक और एसोस्पेस सेक्टर में किया जाता है. देश में पहली बार फरवरी 2021 के बजट में हाइड्रोजन मिशन का ऐलान किया गया था. इंडियन ऑयल और कई बड़ी कंपनियां इस मिशन में बड़ा निवेश करने का ऐलान कर चुकी हैं
ये कंपनियां बनाएंगी हाइड्रोजन
भारत की जितनी बड़ी सरकारी कंपनियां जैसे भारत पेट्रोलियम, इंडियन ऑयल, ओएनजीसी और एनटीपीसी इस दिशा में आगे बढ़ गई हैं. प्राइवेट कंपनियों में टाटा, रिलायंस, अडाणी जैसी कंपनियां भी निवेश शुरू कर चुकी हैं. आईआईटी और देश की बड़ी-बड़ी रिसर्च कंपनियां हाइड्रोजन एनर्जी के शोध में लग चुकी हैं. साल 2047 यानी कि भारत की आजादी की शताब्दी पर देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखा गया है. देश में बड़े पैमाने पर ग्रीन हाइड्रोजन के निर्माण के साथ इसके निर्यात की भी योजना है.
कैसे काम करेगी हाइड्रोजन गैस
इसके लिए गाड़ियों में फ्यूल सेल लगेंगे. फ्यूल सेल को बैटरी मान सकते हैं जिसमें कैथोड और एनोड नाम के इलेक्ट्रोड लगे होते हैं. इन इलेक्ट्रोड के माध्यम से रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और उसी से ऊर्जा पैदा की जाती है. दरअसल फ्यूल सेल ही हाइड्रोजन गैस की खपत करेंगे और ऊर्जा देंगे. अंत में अवशेष के रूप में पानी बचेगा. इसमें धुआं निकलने की गुंजाइश बिल्कुल नहीं है. हाइड्रोजन गैस को पैदा करने के लिए प्राकृतिक गैस, आण्विक ऊर्जा, बायोमास, सोलर और वायु ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाएगा. इस ऊर्जा को कार और बड़ी गाड़ियों में लगा सकते हैं. घरों में भी बिजली के रूप में इसका इस्तेमाल हो सकेगा.
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.3
TOPIC-ENVIRONMENT
वित्तीय समावेशन सूचकांक
भारतीय रिजर्व बैंक ने 17 अगस्त, 2021 को वित्तीय समावेशन सूचकांक (Financial Inclusion Index) पेश किया।
मुख्य बिंदु
- वित्तीय समावेशन सूचकांक का उपयोग भारत में वित्तीय समावेशन की सीमा का आकलन करने के लिए किया जाएगा।
- यह सूचकांक अप्रैल, 2021 की पहली द्विमासिक मौद्रिक नीति में की गई घोषणाओं का हिस्सा था।
वित्तीय समावेशन सूचकांक (Financial Inclusion Index)
- वित्तीय समावेशन सूचकांक की अवधारणा एक व्यापक सूचकांक के रूप में की गई है जिसमें सरकार और क्षेत्रीय नियामकों के परामर्श से बैंकिंग, बीमा, निवेश, डाक और पेंशन क्षेत्र का विवरण शामिल है।
- यह 0 और 100 की सीमा में एक ही मूल्य में वित्तीय समावेशन के विभिन्न पहलुओं पर जानकारी प्राप्त करता है।
- 0 पूर्ण वित्तीय बहिष्करण (financial exclusion) को इंगित करता है जबकि 100 पूर्ण वित्तीय समावेशन (complete financial inclusion) को इंगित करता है।
- इसमें पहुंच, उपयोग और गुणवत्ता जैसे तीन व्यापक पैरामीटर शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक पैरामीटर में विभिन्न आयाम शामिल हैं, जिनकी गणना विभिन्न संकेतकों के आधार पर की जाती है।
- यह सभी 97 संकेतकों सहित सेवाओं की गुणवत्ता के साथ-साथ सेवाओं की पहुंच, उपलब्धता और उपयोग में आसानी के लिए उत्तरदायी है।
सूचकांक का आधार वर्ष
वित्तीय समावेशन सूचकांक बिना किसी आधार वर्ष के बनाया गया है। यह वित्तीय समावेशन की दिशा में सभी हितधारकों के संचयी प्रयासों को दर्शाता है। यह हर साल जुलाई में प्रकाशित होगा।
SOURCE-RBI
PAPER-G.S. 3
तालिबान कौन हैं
15 अगस्त, 2021 को, तालिबान नामक कट्टरपंथी इस्लामी बल ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद अफ़ग़ानिस्तान के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण हासिल करने के बाद काबुल में प्रवेश किया।
मुख्य बिंदु
- तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था जब अमेरिकी सैनिकों ने तख्तापलट किया था।
- इस समूह ने ओसामा बिन लादेन को पनाह दी थी क्योंकि उसने 2001 के 9/11 हमले की योजना बनाई थी।
- अफगानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण अब अमेरिका के साथ-साथ उसके सहयोगियों की संपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था के लिए एक नया खतरा बन गया है।
तालिबान (Taliban)
तालिबान नामक इस्लामिक बल की स्थापना दक्षिणी अफगानिस्तान में हुई थी। मुल्ला मोहम्मद उमर (Mullah Mohammad Omar) इस इस्लामिक आतंकवादी समूह का संस्थापक था। वह पश्तून जनजाति का सदस्य था जो मुजाहिदीन कमांडर बन गया। उसने 1989 में सोवियत संघ को देश से बाहर निकालने में मदद की। बाद में `1994 में, मुल्ला उमर ने कंधार में 50 अनुयायियों का समूह बनाया। उसने कंधार पर कब्जा कर लिया और 1996 में काबुल पर कब्जा कर लिया और सख्त इस्लामी नियम लागू कर दिए। इन नियमों ने टेलीविजन और संगीत पर प्रतिबंध लगा दिया, लड़कियों को स्कूल जाने से रोक दिया और महिलाओं को बुर्का पहनने के लिए मजबूर किया।
अमेरिकी सैनिकों ने उन पर हमला क्यों किया?
अमेरिकी सैनिकों ने 2001 में अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान के नियंत्रण को समाप्त कर दिया जब तालिबान ने बिन लादेन को सौंपने की अमेरिकी मांग से इनकार कर दिया।
तालिबान क्यों लड़ रहा है?
तालिबान काबुल में अमेरिका समर्थित सरकार के खिलाफ लड़ रहा है। वे अफगानिस्तान में इस्लाम के अपने सख्त संस्करण को फिर से लागू करना चाहते हैं।
अफगानिस्तान में तालिबान का नेता कौन है?
कंधार का एक पश्तून मावलवी हैबतुल्लाह अखुंदजादा (Mawlawi Haibatullah Akhundzada) वर्तमान में अफगानिस्तान में तालिबान का नेता है।
तालिबान की फंडिंग
तालिबान अफगानिस्तान के अवैध ड्रग्स व्यापार से पैसा कमाता है। वे अफगानिस्तान के उन क्षेत्रों में अफीम उत्पादकों और हेरोइन उत्पादकों पर कर लगाते हैं जो इसे नियंत्रित करते हैं। वे व्यवसायों पर कर भी लगाते हैं और अवैध खदानों का संचालन करते हैं। इसके अलावा, यह पाकिस्तान और खाड़ी में समर्थकों से धन प्राप्त करता है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.2
TOPIC -IR
“e-Emergency X-Misc Visa”
द्रीय गृह मंत्रालय ने 17 अगस्त, 2021 को अफगानों के लिए वीजा की एक नई श्रेणी की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु
- गृह ने अफगानिस्तान में मौजूदा स्थिति के बाद यह निर्णय लिया है।
- भारत में प्रवेश के लिए उनके आवेदनों को फ़ास्ट ट्रैक करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वीजा की एक नई श्रेणी की घोषणा की गई है। इस इलेक्ट्रॉनिक वीज़ा को “e-Emergency X-Misc Visa” कहा जाता है।
- सरकार ने यह भी घोषणा की है कि वह अफगानिस्तान के गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक लोगों को भारत आने की अनुमति देगी
अफगानिस्तान में तालिबान का शासन
तालिबान के आतंकवादियों ने 15 अगस्त, 2021 को काबुल पर पूर्ण नियंत्रण करके अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। काबुल के पतन के बाद, उग्रवादी इस्लामी समूह ने 20 साल के युद्ध की समाप्ति की घोषणा की और अफगानिस्तान पर अपनी जीत की घोषणा की।
अफगानिस्तान में भारत की दिलचस्पी
तालिबान के आतंकवादियों द्वारा काबुल पर नियंत्रण करने के बाद, इस क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हित खतरे में आ गये हैं। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान की देखभाल अमेरिका द्वारा ‘Enduring Freedom’ के बाद शुरू की। 2014 में इस ऑपरेशन के समाप्त होने के बाद, भारत ने दीर्घकालिक रणनीतिक हित और तत्काल मानवीय प्रयास सहित अफगानिस्तान सरकार के साथ अपने मैत्रीपूर्ण संबंध का विस्तार करना शुरू कर दिया। भारत ने अफगानिस्तान में सड़कों, बांधों, बिजली पारेषण लाइनों और सबस्टेशनों, स्कूलों और अस्पतालों जैसी परियोजनाओं का निर्माण किया है। भारत की विकास सहायता लगभग 3 अरब डॉलर होने का अनुमान है।
यह भारत की विदेश नीति को कैसे प्रभावित करता है?
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा करना अब भारत के रणनीतिक हितों के लिए खतरा है, जिसमें स्टोर पैलेस और सलमा बांध जैसी परियोजनाएं शामिल हैं।
भारत में तालिबान के नियंत्रण का प्रभाव
तालिबान जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा से केवल 400 किमी दूर है। इसने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के पास, अफगानिस्तान में बदख्शां प्रांत पर कब्जा कर लिया है। तालिबान अब अफगानिस्तान में इन आतंकवादी समूहों के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं और ठिकानों का विस्तार करेगा, जिससे आतंकवाद में वृद्धि होगी।
वीजा
वीजा इंगित करता है कि अमुक व्यक्ति वीजा जारी करने वाले देश में प्रवेश के लिए अधिकृत है, यदि वास्तविक प्रवेश के समय आव्रजन अधिकारी इसकी अनुमति दे दे। वीजा एक अलग दस्तावेज के रूप में भी हो सकता है, लेकिन अधिकतर यह आवेदक के पासपोर्ट पर ही एक मोहर के रूप में पृष्ठांकित किया जाता है।कुछ देशों मे,कुछ विशेष स्थितियों में वीजा की आवश्यकता नहीं होती जैसे कि पारस्परिक संधि व्यवस्था। वीजा जारी करने वाला देश आमतौर पर इसके साथ कई शर्तें जोड़ देते हैं, जैसे वीजा की वैधता, वह अवधि जिसके दौरान एक व्यक्ति उस देश में रह सकता है, दिये गए वीजा पर व्यक्ति कितनी बार यात्रा कर सकता है आदि। सिर्फ वीजा जारी होना भर ही अपने आप में वीजा जारी करने वाले देश में प्रवेश की कोई गारंटी नहीं है और जारी वीजा को किसी भी समय रद्द किया जा सकता है। आम तौर पर वीजा एक व्यक्ति को एक देश में प्रवेश करने और वहाँ रहने के अलावा और कोई अधिकार नहीं देता है। प्रवेश और रहने के अलावा और कुछ भी करने के लिए विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जैसे निवासानुमति या कार्यानुमति।वीजा वह दस्तावेज होता है जो किसी व्यक्ति को अन्य देश में प्रवेश करने की अनुमति देता है। दरअसल दूसरे देशों में जाने के लिए इस तरह के प्रतिबंध की शुरुआत मुख्य तौर पर प्रथम विश्वयुद्ध के बाद सामने आई। किसी देश के वीजा संबंधी नियम अन्य देशों से संबंधों पर निर्भर करते हैं। इनमें सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और अप्रवासी लोगों की आर्थिक स्थिति जैसे तथ्य अहम भूमिका निभाते हैं।
हर देश अपने उद्देश्यो के अनुसार अलग-अलग प्रकार का वीजा जारी करता है। उदाहरण के लिए भारत में ११ तरह के वीजा जारी किए जाते हैं, जैसे टूरिस्ट, बिजनेस, जर्नलिस्ट, ट्रांसिट, एंट्री,बिजनेस, आन अराइवल,पार्टनर आदी। एंट्री वीजा भारतीय मूल के व्यक्ति को भारत आने के समय दिया जाता है। भारत फिनलैंड, जापान, लग्जमबर्ग, न्यूजीलैंड और सिंगापुर के नागरिकों को ‘पर्यटक वीजा’ जारी करता है।
वीज़ा मुख्य रूप से दो तरह के होते हैं, उत्प्रवासी वीज़ा और गैर प्रवासी वीज़ा। अगर कोई व्यक्ति किसी सीमित समय के लिए किसी देश जाना चाहता हो तो वह गैर प्रवासी वीजा लेकर जाएगा। लेकिन अगर उद्देश्य दूसरे देश जाकर वहाँ बसना हो तो इसके लिए प्रवासी वीजा लेना होता है। इन दोनों वर्ग में कई तरह के वीजा होते हैं, जो आमतौर पर दूसरे देश में ठहरने के समय और उद्देश्य पर निर्भर करते हैं।
ट्रांजिट वीज़ा : यह वीज़ा ज्यादा से ज्यादा पांच दिनों के लिए मान्य होता है। इसे उस हालत में जारी किया जाता है जब किसी व्यक्ति को किसी तीसरे देश से होकर गुजरना होता है।
टूरिस्ट वीज़ा : यह वीज़ा सिर्फ घूमने-फिरने के लिए जारी किया जाता है। इस वीजा को लेकर अगर किसी देश में जाते हैं तो आप किसी तरह की बिजनेस ऐक्टिविटीज़ से नहीं जुड़ सकते। कुछ देश टूरिस्ट वीज़ा जारी नहीं करते। सऊदी अरब ने टूरिस्ट वीज़ा 2004 से देने शुरू किए। हालांकि इसके पहले वह हज यात्रियों के लिए तीर्थस्थल वीज़ा जारी करता था।
बिजनेस वीज़ा : किसी दूसरे देश में व्यापारिक गतिविधियों मे हिस्सा लेने के लिए यह वीज़ा दिया जाता है। इसमें किसी पक्की नौकरी को भी शामिल किया जा सकता है और उसके लिए कार्य वीज़ा लिया जा सकता है।
किसी और देश में नौकरी के लिए यह वीज़ा दिया जाता है। इसे हासिल करना थोड़ा मुश्किल होता है। बिजनेस वीज़ा की तुलना में यह कुछ ज्यादा दिनों के लिए वैलिड होता है।
ऑन-अराइवल वीज़ा : यह किसी देश में एंट्री के वक्त तुरंत जारी किया जाता है। हालांकि इसके लिए पहले से वीज़ा होना भी जरूरी है क्योंकि आपकी कंट्री का इमिग्रेशन डिपार्टमेंट फ्लाइट में बोर्ड करने से पहले ही उसे चेक करता है।
पार्टनर वीज़ा : दूसरे देश में रहने वाला कोई शख्स अगर अपने जीवनसाथी को अपने पास बुलाना चाहता है तो उसके पार्टनर को ‘पार्टनर वीज़ा’ दिया जाता है।
स्टूडेंट वीज़ा : यह वीजा किसी देश में हायर स्टडीज के लिए दिया जाता है। यानी अगर आपको किसी डिग्री या कोर्स के लिए विदेश जाना है तो स्टूडेंट वीज़ा के लिए अप्लाई करना होगा।
वर्किंग हॉलिडे वीज़ा : यह उन लोगों के लिए होता है जिन्हें कंपनी या ऑर्गनाइजेशन की तरफ से वर्किंग हॉलिडे प्रोग्राम के लिए किसी दूसरे देश भेजा जाता है। इसमें घूमने के साथ टेंपररी वर्क करने की इजाजत होती है।
डिप्लोमैटिक वीज़ा : यह वीज़ा सिर्फ राजनयिकों के लिए होता है। यानी जिन लोगों के पास डिप्लोमैटिक पासपोर्ट होता है, उन्हें ही यह वीज़ा जारी किया जाता है।
कोर्टेज़ी वीज़ा : विदेशी सरकार या इंटरनैशनल ऑर्गनाइजेशनों के ऐसे अधिकारियों को यह वीज़ा दिया जाता है, जो डिप्लोमैट कैटिगरी में नहीं आते।
जर्नलिस्ट वीज़ा : न्यूज ऑर्गनाइजेशनों से जुड़े लोग इसी वीज़ा के जरिए एक देश से दूसरे देश में ट्रैवल करते हैं।
मैरिज वीज़ा : यह वीज़ा एक निश्चित समय के लिए जारी किया जाता है। मान लीजिए, कोई भारतीय युवक किसी अमेरिकी लड़की से शादी करना चाहता है तो वह शादी करने के लिए उसे भारत में बुला सकता है और ऐसे में उस लड़की को अमेरिका में इंडियन एंबेसी जाकर मैरिज वीज़ा के लिए अप्लाई करना होगा।
इमिग्रेंट वीज़ा : यह उस कंडिशन में दिया जाता है जब कोई शख्स किसी दूसरे देश में बसना चाहता है। यह सिर्फ सिंगल जर्नी के लिए होता है यानी जब आप इस बात के लिए श्योर हों कि दूसरा देश इमिग्रेशन देने के लिए तैयार है, तभी वीज़ा मिलता है।
पेंशन वीज़ा (या रिटायरमेंट वीज़ा) : इस तरह का वीज़ा ऑस्ट्रेलिया और कुछ गिने-चुने देश ही जारी करते हैं। यह उन लोगों को ही दिया जाता है जिनका मकसद दूसरे देश में जाकर किसी तरह पैसा कमाने का नहीं होता। कुछ मामलों में व्यक्ति की उम्र का ध्यान भी रखा जाता है।
SOURCE-INDIAN EXPRESS
PAPER-G.S.2
TOPIC-IR