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Current Affair 2 August 2021

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Current Affairs – 2 August, 2021

डिजिटल पेमेंट सॉल्यूशन ‘ई-रुपी’ लॉन्च किया

मुद्रा और भुगतान का भविष्य डिजिटल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को ई-रुपी को लॉन्च किया।

डिज़िटल भुगतान प्रणाली की दिशा में इसे एक अहम क़दम माना जा रहा है।

ये प्रणाली पैसा भेजने वाले और पैसा वसूल करने वाले के बीच ‘एन्ड टू एन्ड एन्क्रिप्टेड’ है यानी दो पार्टियों के बीच किसी तीसरे का इसमें दख़ल नहीं है।

इसे नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (एनपीसीआई) ने विकसित किया।

ये भारत में खुदरा भुगतान और निपटान प्रणाली के संचालन के लिए एक अम्ब्रेला संगठन है। ये भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और भारतीय बैंक संघ (आईबीए) की एक पहल है।

ई-रुपी क्या है?

एनपीसीआई के अनुसार ई-रुपी डिजिटल पेमेंट के लिए एक कैशलेस और कॉन्टैक्टलेस प्लेटफ़ॉर्म है।

ये QR कोड या SMS के आधार पर ई-वाउचर के रूप में काम करता है।

एनपीसीआई के मुताबिक़ लोग इस एकमुश्त भुगतान के यूज़र्स कार्ड, डिजिटल भुगतान ऐप या इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस के बिना ई-रुपी वाउचर को भुनाने में सक्षम होंगे।

इस ई-रुपी को आसान और सुरक्षित माना जा रहा है, क्योंकि यह बेनेफिशियरीज़ के विवरण को पूरी तरह गोपनीय रखता है।

इस वाउचर के माध्यम से पूरी लेन-देन प्रक्रिया अपेक्षाकृत तेज़ और साथ ही विश्वसनीय मानी जाती है, क्योंकि वाउचर में आवश्यक राशि पहले से ही होती है।

फ़ायदे

सरकार अपनी कई योजनाओं के तहत ग़रीबों और किसानों को सहायता के रूप में कैश उनके बैंक खातों में ट्रांसफ़र करती रही है जैसा कि कोरोना काल में दिखा।

इस सिस्टम में सरकारी कर्मचारियों का काफ़ी दखल होता है. कई बार लोगों को इसमें काफ़ी परेशानी भी होती है। आरोप ये भी लगते हैं कि सरकारी कर्मचारी रिश्वत भी लेते हैं।

ई-रुपी के इस्तेमाल से इसका ख़तरा ख़त्म हो जाता है, जैसा कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा कि यह भुगतान प्रणाली “सुनिश्चित करती है कि लाभ बिना किसी परेशानी के बेनेफिशियरीज़ (लाभार्थी) तक पहुंचे।”

ई-रुपी का इस्तेमाल सरकार की विशेष मुद्रा मदद के दौरान किया जा सकता है। इसे निजी कंपनियाँ भी अपने कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं।

मिसाल के तौर अगर आपकी कंपनी ने आपके वेतन के अलावा सितंबर के महीने में 500 रुपये प्रति कर्मचारी एक्स्ट्रा पेमेंट के तौर पर देने का फ़ैसला किया, तो ई-रुपी वाउचर के ज़रिए किया जा सकता है, जिसके अंतर्गत कंपनी आपके मोबाइल फ़ोन पर मैसेज या QR कोड की शक्ल में भेज सकती है।

इसमें वाउचर का इस्तेमाल हुआ या नहीं, ये भी ट्रैक किया जा सकता है।

पीएम मोदी डिजिटल वॉलेट और डिजिटल पेमेंट सिस्टम के एक बड़े और उत्साही समर्थक रहे हैं। उन्होंने रविवार को एक ट्वीट में कहा कि डिजिटल टेक्नॉलॉजी जीवन को बड़े पैमाने पर बदल रही है और ‘ईज़ ऑफ लाइफ’ को बढ़ा रही है।

कैशलेस समाज

पीएम ने 2016 में नोटबंदी लागू करके अवैध कैश को ख़त्म करने और भारत को एक कैशलेस समाज बनाने का दावा किया था। लेकिन बाद में उन्होंने कम कैश वाले समाज और सिस्टम की बात कही थी। इसके अलावा उन्होंने हमेशा डिजिटल वॉलेट को बढ़ावा दिया है।

लेकिन डेलॉइट की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़, 2020 में भारत के कुल ट्रांजैक्शन का 89 फ़ीसदी कैश में हुआ, जबकि चीन में 44 फ़ीसदी ट्रांजैक्शन कैश में हुआ। प्रधानमंत्री का डिजिटल पुश अब तक बहुत कामयाब नहीं रहा है, लेकिन वित्तीय विशेषज्ञ कहते हैं ई-रुपी इस दिशा में एक सकारात्मक क़दम है।

सरकार का अंदाज़ा ये है कि जैसे-जैसे सस्ते दाम वाले स्मार्टफोन का इस्तेमाल बढ़ेगा, देश में डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल भी बढ़ेगा।

फ़िलहाल देश के प्रसिद्ध डिजिटल वॉलेट में पेटीएम, फोनपे, अमेज़न पे, एयरटेल मनी और गूगल पे जैसे डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल आम होता जा रहा है।

डिजिटल करेंसी एक वैश्विक रुझान

ई-रुपी को रुपये के डिजिटल रूप को लॉन्च करने की दिशा में एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है, जिसे वर्तमान में लक्ष्मी कहा जाता है। चीन ने भी इसमें पहल की है और अपनी करेंसी युआन को डिजिटल शक्ल में कई शहरों में कई शहरों लॉन्च किया है।

इसने ई-आरएमबी नामक अपनी डिजिटल युआन मुद्रा को 2022 बीजिंग विंटर ओलंपिक के समय देश भर में लॉन्च करने का लक्ष्य रखा है। 2022 में चीन आने वाले लोगों को ई-आरएमबी आभासी मुद्रा में ख़रीदना और बेचना पड़ सकता है।

निजी क्षेत्र में बिटकॉइन इस समय सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी है। आरबीआई की लक्ष्मी और बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी में सबसे बड़ा फ़र्क़ ये है कि लक्ष्मी सरकारी नियंत्रण में होगी जबकि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो करेंसियाँ सरकारी नियंत्रण से बाहर रहती हैं।

SOURCE-BBC NEWS

 

नैनो-एनकैप्सुलेशन

नैनो-औषधि निर्माण के लिए एक तापमान और प्रवाह नियंत्रण अल्ट्रासोनिक स्प्रे (टीएफओसीयूएस) प्रणाली दवाओं के वानस्पतिक (हर्बल) अवयवों की जैव उपलब्धता को बढ़ाकर ऐसी हर्बल दवाओं की गुणवत्ता और प्रभाव में सुधार ला सकती है। यह उपकरण महंगे फाइटोमोलिक्यूल्स वाली दवाओं की लागत में कमी लाकर उनकी चिकित्सीय उपयोगिता एवं प्रभावकारिता में सुधार कर सकता है।

पारंपरिक रूप से औषधियों में वानस्पतिक (हर्बल) चिकित्सीय संघटकों की मात्रा में विभिन्नता और उपयोग किए जाने के बाद उनका असमान अवशोषण सामने आता है। इनके आमाशय में रहने की कम अवधि और पाचन प्रणाली से उत्सर्जित होने (बाहर निकलने) का अलग-अलग समय इन दवाओं की जैव उपलब्धता को सीमित कर सकता है। वे तापमान और वायुमंडलीय आर्द्रता (नमी) की दृष्टि से भी अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। उनकी नमी ग्रहण करने की (हाइग्रोस्कोपिक) प्रकृति इस औषधि के अवयव कणों की परस्पर सम्मिश्रण प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है जिससे पानी में इनकी घुलनशीलता बहुत कम होने लगती है जिससे शरीर की द्रव परिसंचरण प्रणाली में इनका विसरण अच्छी तरह से नहीं हो पाता।

ऐसी कमियों को दूर करने के लिए हर्बल दवाओं को नैनो-वाहकों (कैरियर्स) के रूप में उपयुक्त समझे जाने वाले बायोपॉलिमर कैप्सूल्स के भीतर डाला जा सकता है। नैनोकैरियर आमाशय और पाचन तन्त्र के भीतर अपेक्षाकृत बहुत अधिक समय तक बने रह सकते हैं और इस दौरान वे पेट में अधिक मात्रा में दवाई छोड़ सकते है। इसके अलावा नैनोकैरियर्स में उपयोग के लिए कैप्सूल में रखी जाने वाली औषधि की आवश्यक मात्रा एक गोली (टैबलेट) की तुलना में बहुत कम होती है। इस कारण से इसे महंगे फाइटोमोलेक्यूल्स का उपयोग करते समय यह तकनीक बहुत काम की हो जाती है। फाइटोमोलिक्यूल्स के श्रेष्ठतम उपयोग से उत्पाद की लागत में कमी आने के साथ ही  उसकी चिकित्सीय प्रभावकारिता में सुधार आता है।

इसे ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद-केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएस आईआर-सीएसआईओ), चेन्नई केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ एस प्रभाकरन ने भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकी कार्यक्रम की सहायता से तापमान और प्रवाह नियंत्रण अल्ट्रासोनिक स्प्रे (टीएफओसीयूएस) प्रणाली का एक नया प्रोटोटाइप विकसित किया है और पानी में कम घुलनशील वानस्पतिक सत्त्वों (अवयवों) की कोलाइडल स्थिरता को बढ़ाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ पहल के साथ इसे जोड़ दिया है।

आदर्श (मॉडल) औषधि के रूप में टाइप-II मधुमेह के उपचार के लिए उपयोग किए जाने वाले वाणिज्यिक आयुर्सुलिन कैप्सूल का उपयोग करके इस प्रोटोटाइप को मान्य किया गया है। जैव-उपलब्धता टीएफओसीयूएस प्रणाली को बढ़ाने के लिए बहुलक (पॉलिमर) [जेडईआईएन/पीवीए] का उपयोग करके सभी पांच वानस्पतिक अवयवों को नैनों कैप्सूलों के भीतर डालना पड़ेगा। प्रत्यक्ष रूप में वानस्पतिक अवयवों (सत्त्वों) की तुलना में कैप्सूल में डाले गए नमूने आकारिकी, नैनो मापन सीमा ( नैनोस्केल रेंज) और पानी में अच्छे कोलाइडल निलंबन होने पर  गोलाकार थे। एक कोलाइडल स्थिर नैनोकैरियर सिस्टम विकसित करने के लिए एक व्यवहार्यता अध्ययन किया गया था जिसमें कर्कुमा लोंगा, एंड्रोग्राफिस, पैनिकुलता, टिनोस्पोरा, कॉर्डिफोलिया, एजेले मार्मेलोस, एम्ब्लिका ऑफिसिनैलिस जैसे वानस्पतिक (हर्बल) सत्त्वों के मिश्रण को समान अनुपात में विभिन्न प्रकार के वॉल पॉलिमर का उपयोग करके नैनो केसुल के रूप में विकसित किया गया था।

टीएफओसीयूएस प्रणाली के प्रोटोटाइप ने कमरे के तापमान पर तेजी से प्रतिक्रिया पानी प्रक्रिया में नैनो कैप्सुलिकृत जैव स्थिर बहुलक (नैनोएनकैप्सुलेशन बायोकंपैटिबल पॉलीमर) का उपयोग करके पानी में बहुत कम घुलनशील बहु-वानस्पतिक (हर्बल) सत्त्वों की घुलनशीलता को इस प्रकार बढ़ाया जो तापमान के प्रति संवेदनशील चिकित्सीय सक्रिय अवयवों के साथ संयोजित किया जा सकता है।

ध्वनिक गुहिकायन (एकॉस्टिक कैविटेशन) पर आधारित यह अद्वितीय नैनो-औषधि कण संश्लेषण प्रणाली वर्तमान माइक्रोएन्कैप्सुलेशन तकनीकों जैसे कि मैकेनिकल स्टिरर असिस्टेड एंटीसॉल्वेंट एडिशन विधि, स्प्रे ड्राई मेथड्स की तुलना में  कम बिजली की खपत के साथ हाई-प्रेशर होमोजेनाइजेशन मेथड प्रोडक्शन, रैपिड रिएक्शन टाइम के साथ तेजी से नमूना तैयार करने के लिए अग्रणी है उनकी तुलना में निरंतर बड़े पैमाने पर अच्छे परिणाम प्रदान कर सकती है। यह परिवर्तनीय संचलन (ऑपरेटिंग) तापमान (10 डिग्री सेल्सियस से 80 डिग्री सेल्सियस) पर बहु-वानस्पतिक (हर्बल) अवयवों का नैनोसाइज-एनकैप्सुलेशन करने में सक्षम है। नियंत्रण प्रवाह दर, तापमान और अल्ट्रासोनिक ऊर्जा द्वारा कणों के आकार और आकार को नियंत्रित करने में आसानी के साथ ही उपयोग आसान है और इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकता है और अभी यह प्रौद्योगिकी टीआरएल-4 के चौथे चरण में तैयार किया जा रहा है।

डॉ. प्रभाकरण के अनुसार वाणिज्यिक उपयोग के लिए इस प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए “औषधि (फार्मास्युटिकल) और खाद्य उद्योग और वैज्ञानिक उपकरण निर्माण उद्योगों ने अपनी रुचि दिखाई है। उन्होंने कहा कि हम केंद्रीय वैज्ञानिक उपकरण संगठन (सीएसआईओ) चेन्नई केंद्र से उद्भवन केंद्र (इन्क्यूबेशन सेंटर) और प्रणाली संचालन (सिस्टम ऑपरेशन) और नई औषधि निर्माण के अनुकूलन के लिए जनशक्ति प्रशिक्षण भी प्रदान करेंगे।’’ उन्होंने प्रौद्योगिकी के और उन्नयन के लिए बीएएल रिसर्च फाउंडेशन (बीआरएफ) बैंगलोर के साथ करार किया है।

SOURCE-PIB

 

अंतर्देशीय पोत विधेयक, 2021

संसद ने आज अंतर्देशीय पोत विधेयक, 2021 को पारित किया।इस विधेयक का उद्देश्य 100 साल से अधिक पुराने अंतर्देशीय पोत अधिनियम, 1917 (1917 का 1) को प्रतिस्थापित करना,  अंतर्देशीय जल परिवहन के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत करना, प्रधानमंत्रीश्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को साकार करना, विधायी ढांचे को उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाना और व्यापार करने की आसान प्रक्रिया को बढ़ावा देनाहै।केन्द्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस विधेयक कोआज राज्यसभा में पेश किया। अब इस विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।

केन्द्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि यह पहल औपनिवेशिक कानूनों को निरस्त करके उन्हें समुद्री क्षेत्र की आधुनिक एवं समकालीन जरूरतों को पूरा करने वाले और उनके विकास से जुड़े कानूनों से प्रतिस्थापित करने की दिशा में पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा अपनाए गए सक्रिय दृष्टिकोण का एक हिस्सा है। श्री सर्बानंद सोनोवाल ने यह भी कहा कि नियमों और विनियमों का एक समान कार्यान्वयन अंतर्देशीय जहाजों द्वारा अंतर्देशीय जलमार्गों का उपयोग करते हुए निर्बाध, सुरक्षित और किफायती व्यापार एवं परिवहन को सुनिश्चित करेगा।

पृष्ठभूमि:

श्री सोनोवाल ने बताया कि अंतर्देशीय जल परिवहन की क्षमता का दोहन करने और इसे कार्गो एवं यात्रियों की आवाजाही के लिए भीड़भाड़ वाली सड़क और रेल नेटवर्क के समांतर परिवहन के एक पूरक और पर्यावरण के अनुकूल साधन के रूप में बढ़ावा देने के लिएसरकार ने कई पहल किए हैं और 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग के तौर पर घोषित किया है।

1917 के अंतर्देशीय पोत अधिनियम कीपरिकल्पना सीमित कार्यान्वयन और उद्देश्यों वाले एक शुद्ध समेकित कानून के रूप में की गई थी। इस अधिनियम में कई संशोधन किए गए और पिछलेमहत्वपूर्ण संशोधन1977 और 2007 में किए गए थे। इस अधिनियम में राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र के भीतर यांत्रिक रूप से चालित जहाजों के प्रतिबंधात्मक आवाजाही, अनुमोदन की आवश्यकता, सीमित कार्यान्वयन और प्रमाण-पत्र की वैधता, असमान मानकों एवं विनियमों से जुड़े प्रावधान शामिल थे,जिनके राज्य दर राज्य अलग-अलग होने के कारण विभिन्न राज्यों के बीच निर्बाध नौचालन और इस क्षेत्र के विकास में बाधाएं और अड़चनें आईं।

केन्द्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि एक ऐसी नई कानूनी व्यवस्था की जरूरत थी, जोकि भविष्य के तकनीकी विकास के अनुकूल और अनुरूप हो, व्यापार और परिवहन की वर्तमान एवं भविष्य की संभावनाओं और अंतर्देशीय जहाजों द्वारा सुरक्षित नौचालन को सुविधाजनक बनाने में सक्षम हो।

लाभ:

नया अधिनियम अंतर्देशीय जहाजों के सामंजस्यपूर्ण एवं प्रभावी विनियमन और विभिन्न राज्यों के बीच उनके निर्बाध और सुरक्षित परिचालन की सुविधा प्रदान करेगा। इसके लाभों में शामिल हैं:

  1. अंतर्देशीय जलमार्गों का उपयोग करते हुए निर्बाध, सुरक्षित और किफायती व्यापार एवं परिवहन सुनिश्चित करने के लिए नियमों और विनियमों काएक समान कार्यान्वयन।
  2. यांत्रिक रूप से चालित जहाजों के वर्गीकरण और वर्गीकरण के मानकों का निर्धारण, जहाजों के पंजीकरण से जुड़े मानक और प्रक्रियाएं; केन्द्र सरकार द्वारा विशेष श्रेणी के जहाजों की पहचान एवं उनके वर्गीकरण से जुड़े मानकआदि और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित मानकों के अनुपालन से जुड़े प्रावधानों का कार्यान्वयन।
  3. संबंधित राज्य सरकारों द्वारा स्थापित प्राधिकरणों की स्थिति को संरक्षित करना और इस प्रकार प्रस्तावित कानून के प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना।
  4. डिजिटल इंडिया अभियान की भावना को आत्मसात करते हुए एक केंद्रीय डेटाबेस/ पंजीकरण के लिए ई-पोर्टल/क्रू डेटाबेस का प्रावधान।
  5. नौचालन की सुरक्षा, जीवन एवं कार्गो की सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम, व्यापार की स्वस्थ प्रथाओं की व्यवस्था करने, कल्याण कोष का गठन, प्रशासनिक तंत्र की पारदर्शिता एवंजवाबदेही, सक्षमएवं कुशल श्रमशक्ति के प्रशिक्षण और विकास को सुनिश्चित करने के लिए उच्च मानकों का निर्धारण करना।
  6. इसमें पोत निर्माण और उसके उपयोग से जुड़ेभावी विकास एवं तकनीकी प्रगति को शामिल किया गया है। ‘विशेष श्रेणी के जहाजों’ के रूप में पहचाने जाने वाले वर्तमान और भविष्य के तकनीकी रूप से उन्नत जहाजों को विनियमित करना।
  7. कबाड़ एवं रद्दी से संबंधितप्रावधान। राज्य सरकार द्वारा मलबे केअभिग्राही (रिसीवर) की नियुक्ति।
  8. दायित्व के सिद्धांतों और दायित्व की सीमा से संबंधित प्रावधान। सुरक्षित व्यापार एवं व्यापारिक प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिएबीमा की अवधारणा को विकसित और विस्तारित करना।
  9. हताहतों और जांच से संबंधित उन्नत प्रावधान।
  10. सेवा प्रदाताओं और सेवाओं के उपयोगकर्ताओं के लिए आसान अनुपालन की व्यवस्था।
  11. यह राज्य सरकारों को विनियमन से अछूते गैर-यांत्रिक रूप से चालित जहाजों से संबंधित क्षेत्र को विनियमित करने का एक मंच प्रदान करता है।

SOURCE-PIB

 

पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन योजना

बच्चों के लिए पीएम केयर्स योजना की शुरुआत 29 मई 2021 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की गई थी। यह योजना विशेष तौर पर उन बच्चों को सहायता उपलब्ध कराती है, जिन्होंने 11 मार्च 2020 के बाद से शुरू होने वाली अवधि के दौरान अपने माता-पिता या कानूनी अभिभावक अथवा दत्तक माता-पिता या फिर जीवित माता-पिता दोनों को कोविड-19 महामारी से खो दिया है। इस योजना का उद्देश्य बच्चों की व्यापक देखभाल करना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से उनकी सेहत का ख्याल रखना, उन्हें शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाना और उनकी 23 वर्ष की आयु पूरी होने तक वित्तीय सहायता के साथ उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए तैयार करना है।

केंद्रीय स्तर पर योजना के क्रियान्वयन के लिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय होगा। राज्य में किशोर न्याय से संबंधित राज्य और केंद्र शासित प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित किये गए विभाग राज्य स्तर पर इसके लिए नोडल एजेंसी का कार्य करेंगे। योजना के क्रियान्वयन के लिए जिला स्तर पर जिला मजिस्ट्रेट नोडल अधिकारी होंगे।

SOURCE-PIB

 

भुवनेश्वर बना कोविड-19 के खिलाफ 100% टीकाकरण हासिल करने वाला देश का पहला शहर

ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर भारत का ऐसा पहला शहर बन गया है, जिसने अपने लोगों को कोविड-19 के खिलाफ शत-प्रतिशत टीकाकरण हासिल किया है। इसके अतिरिक्त, लगभग एक लाख प्रवासी कामगारों को भी राजधानी शहर में कोविड वैक्सीन की पहली खुराक दी गई है।

मुख्य बिंदु

भुवनेश्वर नगर निगम ने 31 जुलाई, 2021 तक विशिष्ट समय सीमा के भीतर टीकाकरण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए विभिन्न श्रेणियों के लोगों के लिए मानक निर्धारित किए थे। टीका लगाने वालों में 18 वर्ष और उससे अधिक आयु के लगभग 9 लाख लोग शामिल हैं। ओडिशा सरकार ने प्रति दिन कुल 3.5 लाख लोगों का टीकाकरण करने के लिए जिलेवार लक्ष्य निर्धारित किए थे।

टीकाकरण के लिए पंजीकरण कैसे करवाएं?

कोविड-19 टीकाकरण के लिए पंजीकरण Co-WIN पोर्टल (https://www.cowin.gov.in) और आरोग्य सेतु एप्प पर किया जा सकता है। पंजीकरण करने के बाद व्यक्ति को वैक्सीन का स्थान और समय चुनना पड़ता है।

भारत में इस्तेमाल किये जाने वाले टीके

COVAXIN

  • COVAXIN भारत बायोटेक द्वारा निर्मित एक सरकारी समर्थित टीका है। इसकी प्रभावकारिता दर 81% है। COVAXIN वैक्सीन के चरण तीन परीक्षणों में 27,000 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया है। COVAXIN दो खुराक में दिया जाता है। खुराक के बीच का समय अंतराल चार सप्ताह है। COVAXIN को मृत COVID-19 वायरस से तैयार किया गया था।

COVISHIELD

  • COVISHIELD वैक्सीन एस्ट्राज़ेनेका द्वारा निर्मित है। स्थानीय रूप से, COVISHIELD सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा निर्मित किया जा रहा है। यह चिम्पांजी के एडेनोवायरस नामक एक सामान्य कोल्ड वायरस के कमजोर संस्करण से तैयार किया गया था। COVID-19 वायरस की तरह दिखने के लिए वायरस को संशोधित किया गया है। यह दो खुराक में लगाया जाता है।

स्पुतनिक वी (Sputnik V)

  • इसे मॉस्को में गैम्लेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी (Gamleya Research Institute of Epidemiology and Microbiology) द्वारा विकसित किया गया था।
  • यह दो खुराक वाला टीका है।हालांकि, हाल ही में रूस में स्पुतनिक वी के एकल खुराक टीके का उत्पादन किया गया है। इसे स्पुतनिक लाइट सिंगल डोज कहा जाता है । भारत केवल डबल खुराक स्पुतनिक वी का इस्तेमाल कर रहा है।
  • जबकि COVISHIELD एक कमजोर सामान्य एडेनोवायरस से बनाया गया है जो चिंपैंजी को प्रभावित करता है, स्पुतनिक वी को विभिन्न मानव एडेनोवायरस का उपयोग करके बनाया गया है।

SOURCE-GK TODAY

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