21 March Current Affairs
कैच द रेन
विश्व जल दिवस के अवसर श्री नरेन्द्र मोदी कल 22 मार्च, 2021 जलशक्ति अभियान: कैच द रेन का शुभारम्भ करेंगेI प्रधानमंत्री की उपस्थिति में केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री और उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच केन- बेतवा सम्पर्क परियोजना के लिए ऐतिहासिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर भी किए जाएंगे। नदियों को आपस में जोड़ने की राष्ट्रव्यापी योजना की यह पहली परियोजना है।
जल शक्ति अभियान:कैच द रेन के बारे में
यह अभियान देश भर के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में एक साथ “कैच द रेनः “जहां भी, जब भी संभव हो वर्षा का जल संग्रह करें” शीर्षक के साथ चलाया जाएगा। इस अभियान को मानसूनी वर्षा की शुरुआत से पहले और मानसूनी वर्षा के मौसम की समाप्ति के बीच 30 मार्च, 2021 से 30 नवम्बर, 2021 की अवधि में कार्यान्वित किया जाएगा। जमीनी स्तर पर जल संरक्षण में जन भागीदारी के लिए इस अभियान को जन आन्दोलन के रूप में शुरू किया जाएगा। इसका उद्देश्य वर्षाजल के समुचित संग्रह को सुनिश्चित करने के लिए सभी सम्बंधित हितधारकों को सक्रिय करना है ताकि वे अपने-अपने क्षेत्रों के मौसम और भूगर्भीय संरचना के हिसाब से वर्षा जल संरक्षण के लिए आवश्यक निर्माण कार्य कर सकें।
इस कार्यक्रम के बाद जल और जल संरक्षण से जुड़े विभिन्न विषयों पर विचार करने के लिए जहां चुनाव हो रहे हैं, उन राज्यों के अलावा देश के सभी जिलों की ग्राम पंचायतों में ग्राम सभाओं का आयोजन किया जाएगा। जल संरक्षण के लिए ग्राम सभाएं ‘जल शपथ’ भी लेंगी।
केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए समझौता ज्ञापन के बारे में
यह समझौता अंतर्राज्यीय सहयोग के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस सपने को पूरा करने की शुरुआत करेगा जिसके तहत नदियों में आने वाले अतिरिक्त जल को सूखा पीड़ित एवं जल की कमी वाले क्षेत्रों में विभिन्न नदियों को आपस में जोड़कर पहुंचाया जा सकेगा। इस परियोजना में दाऊधन बाँध बनाकर केन और बेतवा नदी को नहर के जरिये जोड़ना, लोअर ओर्र परियोजना, कोठा बैराज और बीना संकुल बहुउद्देश्यीय परियोजना के माध्यम से केन नदी के पानी को बेतवा नदी में पहुंचाना है। इस परियोजना से प्रति वर्ष 10.62 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र में सिंचाई सुविधाएं, लगभग 62 लाख लोगों को पेयजल आपूर्ति और 103 मेगावाट जलविद्युत का उत्पादन होगा।
यह परियोजना बुन्देलखंड क्षेत्र में पानी की भयंकर कमी से प्रभावित क्षेत्रों के लिए अत्यधिक लाभकारी होगी जिसमें मध्य प्रदेश के पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दमोह, दतिया, विदिशा, शिवपुरी और रायसेन जिले तथा उत्तर प्रदेश के बांदा, महोबा, झांसी और ललितपुर जिले शामिल हैं। इससे भविष्य में नदियों को आपस में जोड़ने की और अधिक परियोजनाओं का मार्ग प्रशस्त होगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि पानी की कमी के कारण देश के विकास में बाधा न बन पाए।
SOURCE-PIB
यूएसआईएआई
हाल ही में यूएस इंडिया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (यूएसआईएआई) के शुभारंभ के अवसर पर एक पैनल चर्चा में दुनिया भर के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के क्षेत्र में काम करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिकों ने कृषि, ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन, किफायती आवास और स्मार्ट सिटी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सफलता के बारे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से जुड़ी प्रौद्योगिकियों की संभावनाओं, चुनौतियों और इसके दायरे के बारे में चर्चा की।
ऑनलाइन पैनल चर्चा में विज्ञान और इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) के सचिव प्रोफेसर संदीप वर्मा ने कहा, “यूएसआईएआई एआई के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास के लिए द्विपक्षीय सहयोग, एआई नवाचार को सक्षम करने, एआई कार्यबल विकसित करने के लिए विचार साझा करने और साझेदारियों को बढ़ाने के लिए तंत्र की सिफारिश करने के संदर्भ में अवसरों, चुनौतियों और बाधाओं पर चर्चा करने के लिए एक मंच के रूप में काम करेगा। दोनों देशों के लिए अनुसंधान को समन्वित करने और विभिन्न संभावनाओं का पता लगाने का यह एक बेहतर मौका है।”
सेंट जूड चिल्ड्रन रिसर्च हॉस्पिटल, मेम्फिस के रासायनिक जीव विज्ञान और चिकित्सीय विज्ञान के अध्यक्ष श्री आसीम अंसारी ने कहा, “हितधारकों को एक साथ लाकर स्वास्थ्य सेवा, कृषि, जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में, स्मार्ट शहरों, आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में इस सहयोग के माध्यम से समस्याओं को हल करने से सामाजिक-आर्थिक स्तर में अत्यधिक सुधार संभव है।”
यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स एमहर्स्ट के कॉलेज ऑफ इंफॉर्मेशन एंड कंप्यूटर साइंसेज के विशिष्ट विश्वविद्यालय प्रोफेसर जिम कुरोसे ने उम्मीद जताई कि दोनों देशों के बीच दीर्घकालिक सहयोग से भविष्य की चुनौतियों से निपटने में आसानी होगी।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया बर्कले के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग एवं कम्प्यूटर विज्ञान के जितेन्द्र मलिक ने कहा, “डेटा और तकनीक की उपलब्धता के कारण एआई के क्षेत्र में क्रांति आई है। इस क्षेत्र में अंतर्विषयी मुद्दों पर चिंतन करने और कार्यक्रमों के लिए साझेदार होने की आवश्यकता है। भारत में सही कौशल वाले लोगों की काफी कमी है और यह अमेरिका में भी एक समस्या है। सहयोग के माध्यम से ऐसी चुनौतियों को दूर किया जा सकता है और विज्ञान के क्षेत्र में बेहतर कार्य किया जा सकता है।
भारत सरकार के नीति आयोग के अटल नवाचार मिशन (एआईएम) के निदेशक श्री आर. रामानन ने कहा कि जनसांख्यिकीय लाभांश भारत के लिए सबसे बड़े लाभों में से एक है। उन्होंने कहा, “लगभग 150 मिलियन छात्र 5-10 वर्षों में कार्यबल में प्रवेश करने जा रहे हैं। हमारा लक्ष्य इस कार्यबल के बीच नवाचार की संस्कृति को चलाना और बनाना है, और यह दोनों सहयोगी देशों की समस्याओं का समाधान खोजने के लिए नवाचार की संस्कृति को चलाने में मदद कर सकता है।”
इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के निदेशक श्री अनुराग अग्रवाल ने एआई के उपयोग द्वारा बायोमेडिसिन आपूर्ति और बुनियादी ढांचे में सुधार के लिए एआई की आवश्यकता के बारे में कहा, “एआई के उपयोग से बायोमेडिसिन में वृद्धि की एक बड़ी गुंजाइश है। पहला यह है कि जब हम डेटा जनरेट करने में बहुत कुशल होते हैं, तो हमें यह मालूम नहीं होता कि इसकी जरूरत कहां है और इसके साथ क्या करना है। बायोमेडिसिन में दूसरी प्रकार की समस्या यह है कि आप जानते हैं कि क्या करना है, लेकिन कुछ ही लोग इसे करने के लिए प्रशिक्षण लेते रहे हैं। तीसरी समस्या यह है कि हमारे पास लोग हैं, हमारे पास प्रक्रिया है लेकिन इसके पैमाने और पर्याप्तता नहीं है।”
अमेरिका के ऊर्जा विभाग के एशिया एवं अमेरिका के लिए उप सहायक सचिव सुश्री एलिजाबेथ अर्बनस ने कहा कि एआई संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय ऊर्जा साझेदारी को मजबूत कर सकता है। उन्होंने कहा, “हमारे पास कई क्षेत्र हैं जिन पर हम आईयूएसएसटीएफ कार्यक्रम के साथ काम करने की कल्पना करते हैं। हम भारत में अपने मौजूदा द्विपक्षीय ऊर्जा साझेदारी को बढ़ाने में मदद करने के लिए इस मंच और इसके जुड़ाव का लाभ उठाने की उम्मीद कर रहे हैं, जहां हम ग्रिड को आधुनिक बनाने और मजबूत बनाने, विश्वसनीय ऊर्जा आपूर्ति के लिए नवीकरण के ग्रिड संपर्कता को बढ़ाने, स्मार्ट और अभिनव कुशल इमारतों को बढ़ावा देने और सामग्री व औद्योगिक क्षेत्र को विघटित तथा विद्युतीकृत के लिए प्राथमिकताएं साझा करते हैं।”
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारों के बीच एक समझौते के तहत 2000 में इंडो-यू.एस. विज्ञान और प्रौद्योगिकी फोरम (आईयूएसएसटीएफ) स्थापित किया गया था। यह दो द्विपक्षीय समझौतों के माध्यम से संचालित होता है: इंडो-यू.एस. विज्ञान और प्रौद्योगिकी फोरम (2000) और यूनाइटेड स्टेट्स-इंडिया साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंडोमेंट फंड (2009)।
वैज्ञानिकों ने एआई के इर्द-गिर्द भविष्य की सुरक्षा और गोपनीयता से जुड़ी चिंताओं के साथ-साथ एआई उपकरण और प्रौद्योगिकियों से अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में बदलाव लाने, एल्गोरिदम के गहन शिक्षण से कैंसर के निदान के बारे में, नई सामग्रियों की खोज के लिए मशीन शिक्षण के इस्तेमाल, उन्नत निर्माण में 3 डी प्रिंटर के उपयोग से लेकर उपलब्धि एवं निर्णय लेने की क्षमताओं के साथ इंटेलिजेंट प्रणालियों के बारे में चर्चा की।
आर्टिफिशल इंटेलिजेंस क्या है
AI का full form है Artificial Intelligence या हिंदी में इसका अर्थ है कृत्रिम होशियारी या कृत्रिम दिमाग. ये एक ऐसा simulation है जिससे की मशीनों को इंसानी intelligence दिया जाता है या यूँ कहे तो उनके दिमाग को इतना उन्नत किया जाता है की वो इंसानों के तरह सोच सके और काम कर सके।
ये खासकर computer system में ही किया जाता है. इस प्रक्रिया में मुख्यत तीन processes शामिल है और वो हैं पहला learning (जिसमें मशीनों के दिमाग में information डाला जाता है और उन्हें कुछ rules भी सिखाये जाते हैं जिससे की वो उन rules का पालन करके किसी दिए हुए कार्य को पूरा करे), दूसरा है Reasoning (इसके अंतर्गत मशीनों को ये instruct किया जाता है की वो उन बनाये गए rules का पालन करके results के तरफ अग्रसर हो जिससे की उन्हें approximate या definite conclusion हासिल हो) और तीसरा है Self-Correction.
अगर हम AI की particular application की बात करें तो इसमें expert system, speech recognition और machine vision शामिल हैं। AI या Artificial Intelligence को कुछ इस प्रकार से बनाया गया है की वो इंसानों के तरह ही सोच सके, कैसे इंसानी दिमाग किसी भी problem को पहले सीखती है, फिर उसे process करती है, decide करती है की क्या करना उचित होगा और finally उसे कैसे solve करते उसके बारे में सोचती है।
उसी प्रकार की artificial intelligence में भी मशीनों को भी इंसानी दिमाग की सारी विसेश्तायें दी गयी हैं जिससे वो बेहतर काम कर सके।
Artificial Intelligence के बारे में सबसे पहले John McCarthy ने ही दुनिया को बताया। वो एक American Computer Scientist थे, जिन्होंने सबसे पहले इस technology के बारे में सन 1956 में the Dartmouth Conference में बताया।
SOURCE-PIB
महिला उत्कृष्टता अवार्ड 2021
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुम्बई में कार्यरत सहायक प्रोफेसर डॉ. शोभना कपूर ने आणविक स्तर पर संक्रामक रोगों में लिपिड्स की भूमिकाओं का अध्ययन किया है और इसके लिए उन्हें एसईआरबी महिला उत्कृष्टता अवार्ड 2021 से सम्मानित किया गया है। उनके शोध में प्रतिरोध मुक्त झिल्ली केन्द्रित दवाओं की खोज की जबरदस्त क्षमता है लिपिड हाइड्रोकार्बन युक्त ऐसे अणु होते है जो जीवित कोशिकाओं की संरचना और उनकी कार्यप्रणाली में अहम भूमिका निभाते है। लिपिड् के उदाहरणों में वसा, तेल, मोम, कुछ विटामिन (ए, डी, ई, और के), हार्मोन और ऐसी अधिकांश कोशिका झिल्लियां है जिनमें प्रोटीन नही पाया जाता है।
विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की ओर से स्थापित यह पुरस्कार विज्ञान और इंजीनियरिंग के अग्रणी क्षेत्र में युवा महिला वैज्ञानिकों की उत्कृष्ट शोध उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करता है और उनके कार्यों के लिए सम्मानित भी करता है।
भौतिक और जीव विज्ञान के संगम क्षेत्र में डॉ. शोभना कपूर का शोध कार्य लिपिड रसायनिक टूल्स के विकास को प्रोत्साहित करता है। जो झिल्लियों की संरचना और कार्यप्रणाली में मूलभूत समस्याओं में मददगार साबित हो सकता है।
टीबी के कारक जीवाणु माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकोसिस और विषाणु SARV-COV-2 जो कोविड-19 के कारक है, वे दूसरे जीवों में संक्रमण के दौरान अपनी झिल्लियों में लिपिड का इस्तेमाल कुछ प्रक्रियाओं को बदलने और दवाओं का असर कम करने में करते है। ये परिणाम संक्रमण निरोधक नई रणनीतियों को विकसित करने में मददगार हो सकते है। क्योंकि ये शोध झिल्लियों की संरचना और कार्यप्रणाली पर होने वाले प्रभाव पर आधारित है और इनकी अब तक व्यापक तौर जांच नही की गई है तथा यही डॉ. शोभना के शोध प्रमुख विषय है।
हाल ही में SARV-COV-2 महामारी ने इस विषाणु और भविष्य में विषाणुओं और जीवाणुओं से फैलने वाली महामारियों की आशंका के देखते हुए प्रभावी और संक्रमण निरोधक पद्धतियों को विकसित करने पर काफी जोर दिया है।
डॉ. शोभना कपूर के समूह ने माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकोसिस से संरचनात्मक रूप से प्राप्त विविध रोगजनक लिपिड का इस्तेमाल करते हुए मेजबान लिपिड झिल्ली की संरचना में बदलाव और झिल्ली से जुडी सिग्नालिंग प्रणाली में होने वाले उतार-चढ़ाव के सह संबंधो की जांच की है। उनके शोध कार्य में मेजबान कोशिकाओं के झिल्ली सम्मिलन और कोशिका स्तर पर प्रतिरक्षा प्रक्रियाओं में बदलाव की पुष्टि की है और इससे पहले इस प्रकार की लिपिड कार्यप्रणाली के बारे में कोई व्यापक जानकारी नही थी। उनके शोध के नतीजे माइकोबैक्टीरिया और अन्य संक्रामक कारकों के खिलाफ लिपिड केन्द्रित उपचारात्मक पद्धतियों को विकसित करने की नई राह दिखाते है। डॉ. शोभना अपने शोध कार्य को विषाणुओं और जीवाणुओं की झिल्लियों पर दवाओं के प्रभाव और झिल्ली केन्द्रित नई दवाओं को विकसित करने की दिशा में मान्यता देती है।
SOURCE-PIB
अनंगपाल
केंद्र सरकार दिल्ली की विरासत और इतिहास को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए दिल्ली के तोमर वंश के राजाओं से जुड़े स्थलों का संरक्षण करने जा रही है और सरकार की योजना यहां एक संग्रहालय बनाने की है। जहां दिल्ली पर 8 से 12वीं सदी राज करने वाले तोमर राजाओं से जुड़ी धरोहरों को सुरक्षित रखा जाएगा।
अनंगपाल द्वितीय जिन्हें इतिहास और लोककथाओं में अनंगपाल तोमर के नाम से जाना जाता है वे तोमर वंश से संबंध रहते हैं। इस राजवंश ने 8वीं से 12वीं सदी तक आध निक दिल्ली और हरियाणा के इलाकों में शासन किया था। इसकी पुष्टि करने के लिए पुरातात्विक महत्व के सिक्के मिले हैं।
भारतीय पुरातत्व विभाग के पूर्व संयुक्त महानिदेशक बीआर मणि ने सेमिनार में कहा गया कि अनंगपाल द्वितीय ने इंद्रप्रस्थ को बसाने में और इसे इसका वर्तमान ना म देने में अहम रोल निभाया है। जब उन्होंने 11वीं सदी में यहां की सत्ता संभाली तो ये क्षेत्र टूटे-फूटे और ध्वस्त हालत में थे लेकिन उन्होंने किला लाल कोट और अनंगताल की बावली का निर्माण कराया।
अनंगपाल तोमर II के बाद उनके पोते पृथ्वीराज चौहान ने शासन किया था, जिन्हें तराइन (वर्तमान हरियाणा) के युद्ध में घुरिद बलों द्वारा पराजित किया गया था जिसके बाद 1192 में दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई थी।
महाराजा अनंगपाल II स्मारक समिति
भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह की अध्यक्षता वाली समिति का उद्देश्य अनंगपाल II को दिल्ली के संस्थापक के रूप में स्थापित करना है।इसके प्रस्तावों में दिल्ली हवाई अड्डे पर अनंगपाल II की मूर्ति का निर्माण और दिल्ली में उनकी विरासत को समर्पित एक संग्रहालय का निर्माण शामिल है।लाल कोट को एएसआई-संरक्षित स्मारक बनाने का भी प्रस्ताव है।
SOURCE-INDIAN EXPRESS
जापी, ज़ोराइ और गमोसा
जैसे-जैसे मतदान की तारीख नज़दीक आती है, सजावटी जैपिस (फील्ड हैट), हाथ से बुने हुए गमोसा और बेल-मेटल ज़ोराइस असम में लगातार दिखाई दे रहे हैं।
जापी: जापी एक शंक्वाकार टोपी है जो बाँस से बनी होती है और सूखे तोकु (ऊपरी असम के वर्षावनों में पाया जाने वाला ताड़ का पेड़) से ढकी होती है। आज, असम के जापियों का बड़ा हिस्सा नलबाड़ी जिले के गांवों के एक समूह के कारीगरों द्वारा बनाया गया है।
गामोसा: गमोसा, जो वस्तुतः किसी के शरीर को पोंछने के लिए एक कपड़े में अनुवाद करता है, असम में सर्वव्यापी है, जिसमें व्यापक उपयोग हैं। यह घर पर एक तौलिया (उक गमोसा) के रूप में या सार्वजनिक समारोहों (फूलम/पुष्प गमोसा) में गणमान्य व्यक्तियों या हस्तियों को सम्मानित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
ज़ोराइ: घंटी-धातु से बना, ज़ोराइ- अनिवार्य रूप से तल पर एक स्टैंड के साथ या बिना कवर के एक ट्रे है – हर असमिया घर में पाया जा सकता है।
SOURCE-INDIAN EXPRESS
विश्व गौरैया दिवस
विश्व गौरैया दिवस (World Sparrow Day) प्रत्येक वर्ष ’20 मार्च’ को मनाया जाता है। यह दिवस पूरी दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। घरों को अपनी चीं-चीं से चहकाने वाली गौरैया अब दिखाई नहीं देती। इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे। अब स्थिति बदल गई है। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट के बादलों ने इसकी संख्या काफ़ी कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह बिल्कुल दिखाई नहीं देती।
‘विश्व गौरैया दिवस‘ पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। यह दिवस प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को पूरी दुनिया में गौरैया पक्षी के संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है।
उद्देश्य
एक-दो दशक पहले हमारे घर-आंगन में फुदकने वाली गौरैया आज विलुप्ति के कगार पर है। इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए ही पिछले तीन सालों से प्रत्येक 20 मार्च को ‘विश्व गौरैया दिवस’ के रूप में मनाते आ रहे हैं, ताकि लोग इस नन्हीं-सी चिड़िया के संरक्षण के प्रति जागरूक हो सकें। भारत में गौरैया की संख्या लगातार घटती ही जा रही है। कुछ वर्षों पहले आसानी से दिख जाने वाला यह पक्षी अब तेज़ी से विलुप्त हो रहा है। दिल्ली में तो गौरैया इस कदर दुर्लभ हो गई है कि ढूंढे से भी ये पक्षी नहीं मिलता, इसलिए वर्ष 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य-पक्षी घोषित कर दिया।
गौरेया आज संकटग्रस्त पक्षी है, जो पूरे विश्व में तेज़ी से दुर्लभ हो रही है। दस-बीस साल पहले तक गौरेया के झुंड सार्वजनिक स्थलों पर भी देखे जा सकते थे, लेकिन खुद को परिस्थितियों के अनुकूल बना लेने वाली यह चिड़िया अब भारत ही नहीं, यूरोप के कई बड़े हिस्सों में भी काफ़ी कम रह गई है। ब्रिटेन, इटली, फ़्राँस, जर्मनी और चेक गणराज्य जैसे देशों में इनकी संख्या जहाँ तेज़ी से गिर रही है, तो नीदरलैंड में तो इन्हें ‘दुर्लभ प्रजाति’ के वर्ग में रखा गया है।
गौरेया का संक्षिप्त परिचय
गौरेया ‘पासेराडेई’ परिवार की सदस्य है, लेकिन कुछ लोग इसे ‘वीवर फिंच’ परिवार की सदस्य मानते हैं। इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है तथा इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में इसके कम से कम तीन बच्चे होते हैं। गौरेया अधिकतर झुंड में ही रहती है। भोजन तलाशने के लिए गौरेया का एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है। यह पक्षी कूड़े में भी अपना भोजन ढूंढ़ लेते हैं।
गौरैया की घटती संख्या के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
भोजन और जल की कमी
घोसलों के लिए उचित स्थानों की कमी
तेज़ी से कटते पेड़-पौधे
गौरैया के बच्चों का भोजन शुरूआती दस-पन्द्रह दिनों में सिर्फ कीड़े-मकोड़े ही होते है, लेकिन आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थों का उपयोग करते हैं, जिससे ना तो पौधों को कीड़े लगते हैं और ना ही इस पक्षी का समुचित भोजन पनप पाता है। इसलिए गौरैया समेत दुनिया भर के हज़ारों पक्षी आज या तो विलुप्त हो चुके हैं या फिर किसी कोने में अपनी अन्तिम सांसे गिन रहे हैं।
आवासीय ह्रास, अनाज में कीटनाशकों के इस्तेमाल, आहार की कमी और मोबाइल फोन तथा मोबाइल टॉवरों से निकलने वाली सूक्ष्म तरंगें गौरैया के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं।
आज लोगों में गौरैया को लेकर जागरूकता पैदा किए जाने की ज़रूरत है, क्योंकि कई बार लोग अपने घरों में इस पक्षी के घोंसले को बसने से पहले ही उजाड़ देते हैं।
कई बार बच्चे इन्हें पकड़कर पहचान के लिए इनके पैर में धागा बांधकर इन्हें छोड़ देते हैं। इससे कई बार किसी पेड़ की टहनी या शाखाओं में अटक कर इस पक्षी की जान चली जाती है। इतना ही नहीं कई बार बच्चे गौरैया को पकड़कर इसके पंखों को रंग देते हैं, जिससे उसे उड़ने में दिक्कत होती है और उसके स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ता है।
SOURCE- bharatdiscovery
NDHM Sandbox Environment
केंद्र सरकार ने अब तक मिशन पर 118.2 मिलियन रुपये खर्च करने के बाद परियोजना के विस्तार के लिए राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) के चरण 1 के परिणाम का मूल्यांकन करने की योजना बनाई है। इस मिशन के तहत, “NDHM Sandbox Environment” नवाचार को बढ़ावा देने और विश्वास का निर्माण करने के लिए स्थापित किया गया है।
मुख्य बिंदु
राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (NDHM) भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त, 2020 को लांच किया गया था। इसके बाद, इस मिशन को चंडीगढ़, दमन और दीव, लद्दाख, दादरा और नगर हवेली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुदुचेरी और लक्षद्वीप केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू किया गया था। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय छह केंद्र शासित प्रदेशों में मिशन के कार्यान्वयन का कार्य देख रहा है। केंद्र सरकार ने 15 मार्च, 2021 तक कार्यक्रम के तहत कुछ 9,97,095 स्वास्थ्य पहचान पत्र जारी किए हैं।
स्वास्थ्य पहचान पत्र
इस मिशन के तहत जारी की गई स्वास्थ्य पहचान पत्र लोगों को सूचित सहमति के बाद सत्यापित डॉक्टरों या स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ अपने स्वास्थ्य को ट्रैक करने और डेटा साझा करने की अनुमति देता है। यह स्वैच्छिक रूप से ऑप्ट-आउट विकल्प के लिए भी प्रदान करता है जहां उपयोगकर्ता कभी भी अपना डेटा हटा सकते हैं।
NDHM Sandbox Environment
सरकार ने नवाचार, भागीदारी और निर्मित विश्वास को बढ़ावा देने के लिए “NDHM Sandbox Environment” भी विकसित किया है। सैंडबॉक्स एनवायरनमेंट को क्लोज्ड इकोसिस्टम के रूप में विकसित किया गया है। यह प्रणाली NDHM मानकों के अनुसार निहित वातावरण में प्रौद्योगिकियों या उत्पादों के परीक्षण की अनुमति देती है।
राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन (National Digital Health Mission – NDHM)
NDHM भारत सरकार के तहत एक एजेंसी है जिसका उद्देश्य नागरिकों को चिकित्सा पहचान दस्तावेज प्रदान करना है। यह पहचान दस्तावेज लोगों को आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Yojana) का उपयोग करने में मदद करेगा। यह कार्यक्रम लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए आधार पहचान कार्यक्रम और आयुष्मान भारत योजना स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम जैसे कार्यक्रमों के साथ संरेखित करता है। इस स्वास्थ्य आईडी को यूजर द्वारा मोबाइल एप्प में एक खाते के रूप में रखा जाता है। इस मिशन की घोषणा प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस 2020 के दौरान की थी।
SOURCE-G.K.TODAY