Current Affairs – 31 July, 2021
‘ई-रुपी’
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी 2 अगस्त 2021 को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ‘ई-रुपी’ लॉन्च करेंगे जो सही अर्थों में व्यक्ति-विशिष्ट और उद्देश्य-विशिष्ट डिजिटल पेमेंट सॉल्यूशन है।
प्रधानमंत्री ने सदैव ही डिजिटल पहलों को व्यापक प्रोत्साहन दिया है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान यह सुनिश्चित करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए गए हैं कि जिस भी लाभ को निर्दिष्ट लाभार्थियों तक पहुंचाना है वह लक्षित और बगैर किसी लीकेज वाले तरीके से ही उन तक पहुंचे। इस तरह की अनूठी सुविधा के तहत सरकार और लाभार्थी के बीच महज कुछ ही ‘टच प्वाइंट’ होते हैं। इसके तहत इलेक्ट्रॉनिक वाउचर की अवधारणा सुशासन के इस विजन को आगे बढ़ाती है।
ई-रुपी डिजिटल भुगतान के लिए एक कैशलेस और संपर्क रहित माध्यम है। यह एक क्यूआर कोड या एसएमएस स्ट्रिंग-आधारित ई-वाउचर है, जिसे लाभार्थियों के मोबाइल पर पहुंचाया जाता है। इस निर्बाध एकमुश्त भुगतान व्यवस्था के उपयोगकर्ता अपने सेवा प्रदाता के केंद्र पर कार्ड, डिजिटल भुगतान एप या इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस के बगैर ही वाउचर की राशि को प्राप्त करने में सक्षम होंगे। इसे नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ने अपने यूपीआई प्लेटफॉर्म पर वित्तीय सेवा विभाग, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सहयोग से विकसित किया है।
ई-रुपी बिना किसी फिजिकल इंटरफेस के डिजिटल तरीके से लाभार्थियों और सेवा प्रदाताओं के साथ सेवाओं के प्रायोजकों को जोड़ता है। इसके तहत यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि लेन-देन पूरा होने के बाद ही सेवा प्रदाता को भुगतान किया जाए। प्री-पेड होने की वजह से सेवा प्रदाता को किसी मध्यस्थ के हस्तक्षेप के बिना ही सही समय पर भुगतान संभव हो जाता है।
आशा है कि यह डिजिटल पेमेंट सॉल्यूशन कल्याणकारी सेवाओं की भ्रष्टाचार-मुक्त आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल साबित होगा। इसका उपयोग मातृ और बाल कल्याण योजनाओं के तहत दवाएं और पोषण संबंधी सहायता, टीबी उन्मूलन कार्यक्रमों, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना जैसी स्कीमों के तहत दवाएं और निदान, उर्वरक सब्सिडी, इत्यादि देने की योजनाओं के तहत सेवाएं उपलब्ध कराने में किया जा सकता है। यहां तक कि निजी क्षेत्र भी अपने कर्मचारी कल्याण और कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व कार्यक्रमों के तहत इन डिजिटल वाउचर का उपयोग कर सकता है।
SOURCE-PIB
मुस्लिम महिला अधिकार दिवस
न तलाक के खिलाफ कानून के लागू होने के उपलक्ष्य में कल 1 अगस्त 2021 को पूरे देश में “मुस्लिम महिला अधिकार दिवस” मनाया जाएगा।
अल्पसंख्यक कार्य मंत्री श्री मुख्तार अब्बास नकवी ने आज नई दिल्ली में कहा कि केंद्र सरकार ने 1 अगस्त, 2019 को तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाया, जिसने तीन तलाक के सामाजिक दुराचार को एक दण्डनीय अपराध बना दिया गया है।
श्री नकवी ने कहा कि कानून लागू होने के बाद तीन तलाक के मामलों में विशेष रूप से कमी आई है। देश भर की मुस्लिम महिलाओं ने इस कानून का ज़ोरदार स्वागत किया है।
देश भर के विभिन्न संगठन 1 अगस्त को “मुस्लिम महिला अधिकार दिवस” के रूप में मनाएंगे।
सरकार ने देश की मुस्लिम महिलाओं के “आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और आत्मविश्वास” को सुदृढ़ किया है और तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाकर उनके संवैधानिक, मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की है।
केंद्र सरकार 1 अगस्त को पूरे देश में “मुस्लिम महिला अधिकार दिवस” मनाएगी।
तीन तलाक कानून के दो साल पूरे होने पर केंद्र सरकार 1 अगस्त को ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ मनाएगी। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी (Mukhtar Abbas Naqvi) ने बताया है कि 1 अगस्त को पूरे देश में ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ (Muslim Women Rights Day) मनाया जाएगा। नकवी ने ‘मुस्लिम महिला अधिकार दिवस’ की घोषणा के साथ-साथ, तीन तलाक के खिलाफ कानून लाने का श्रेय BJP को दिया।
1 अगस्त, 2019 को सरकार ने कानून लाकर तत्काल तलाक देने की प्रथा को कानूनी अपराध बना दिया था।
उन्होंने ये भी कहा कि कानून लागू होने के बाद तीन तलाक के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। नकवी ने कहा, “केंद्र ने देश की मुस्लिम महिलाओं के “आत्मनिर्भरता, स्वाभिमान और आत्मविश्वास” को मजबूत किया है और तीन तलाक के खिलाफ कानून लाकर उनके संवैधानिक, मौलिक और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा की है।
क्या है ये कानून?
यह कानून, जो तत्काल तीन तालक को गैरकानूनी घोषित करता है, उल्लंघन के लिए तीन साल की जेल निर्धारित करता है और उसे जुर्माना देने के लिए भी उत्तरदायी बनाता है। कानून ने तीन तलाक की प्रथा को एक अपराध बना दिया है, जिसमें पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।
विपक्षी दलों ने कानून को लेकर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि उसने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया है। लेकिन केंद्र ने जोर देकर कहा कि ये मुस्लिम महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय हासिल करने में मदद करता है।
SOURCE-PIB
नई पॉलीहाउस प्रौद्योगिकी
वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-सीएमईआरआई), दुर्गापुर के निदेशक डॉ. (प्रो.) हरीश हिरानी ने पंजाब के लुधियाना में “नेचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस फैसिलिटी” का उद्घाटन किया और “रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस” की आधारशिला रखी।
प्रोफेसर हिरानी ने प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि किसानों को अत्यधिक या अपर्याप्त ठंड, गर्मी, बारिश, हवा, और अपर्याप्त वाष्पोत्सर्जन से जुड़े अन्य कारकों जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, और साथ ही भारत में कीटों के कारण भी वर्तमान में लगभग 15 प्रतिशत फसल का नुकसान होता है तथा यह नुकसान बढ़ सकता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन कीटों के खिलाफ पौधों की रक्षा प्रणाली को कम करता है। पारंपरिक पॉलीहाउस से कुछ हद तक इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है। पारंपरिक पॉलीहाउस में मौसम की विसंगतियों और कीटों के प्रभाव को कम करने के लिए एक स्थिर छत होती है। हालांकि, छत को ढंकने के अब भी नुकसान हैं जो कभी-कभी अत्यधिक गर्मी और अपर्याप्त प्रकाश (सुबह-सुबह) का कारण बनते हैं। इसके अलावा, वे कार्बन डाईऑक्साइड, वाष्पोत्सर्जन और जल तनाव के अपर्याप्त स्तर के लिहाज से भी संदेवनशील होते हैं। खुले क्षेत्र की स्थितियों और पारंपरिक पॉलीहाउस स्थितियों का संयोजन भविष्य में जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिहाज से एक ज्यादा बेहतर तरीका है।
यह भी बताया कि केंद्रीय यांत्रिक अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (सीएमईआरआई) एक्सटेंशन सेंटर लुधियाना में एक “रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस टेक्नोलॉजी” स्थापित कर रहा है। हर मौसम में काम करने लिहाज से उपयुक्त इस प्रतिष्ठान में ऑटोमैटिक रिट्रैक्टेबल रूफ (स्वचालित रूप से खुलने-बंद होने वाली छत) होगा जो पीएलसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते हुए कंडीशनल डेटाबेस से मौसम की स्थिति और फसल की जरूरतों के आधार पर संचालित होगा। इस प्रौद्योगिकी से किसानों को मौसमी और गैर-मौसम वाली दोनों ही तरह की फसलों की खेती करने में मदद मिलेगी। यह पारंपरिक खुले मैदानी सुरंगों और प्राकृतिक रूप से हवादार पॉली हाउस की तुलना में इष्टतम इनडोर सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों का निर्माण करके उच्च उपज, मजबूत और उच्च शेल्फ-लाइफ उपज प्राप्त कर सकता है, और साथ ही यह जैविक खेती के लिए व्यवहार्य प्रौद्योगिकी भी है।
इस प्रौद्योगिकी के विकास में लगे अनुसंधान दल का नेतृत्व करने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री जगदीश माणिकराव ने बताया कि रिट्रैक्टेबल रूफ का उपयोग सूर्य के प्रकाश की मात्रा, गुणवत्ता एवं अवधि, जल तनाव, आर्द्रता, कार्बन डाई-ऑक्साइड और फसल एवं मिट्टी के तापमान के स्तर को बदलने के लिए किया जाएगा। वहीं फार्म मशीनरी एंड प्रिसिजन एग्रीकल्चर के प्रमुख और वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप राजन ने बताया कि यह प्रतिष्ठान वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (सीएसआईआर-आईएचबीटी), पालमपुर के सहयोग से विकसित किया जा रहा है और फसल के आधार पर पॉलीहाउस को स्वचालित करने में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को एकीकृत करने की प्रक्रिया में है। यह मौसम की जरूरतों और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) पर आधारित होगा तथा सक्षम किसान अनुकूल यूजर इंटरफेस प्रदान करेगा।
निदेशक ने यह भी बताया कि चूंकि नई पॉलीहाउस प्रणाली के लाभों पर वैज्ञानिक प्रयोगात्मक आंकड़े की कमी है, इसलिए फसल उत्पादन और उपज की गुणवत्ता की तुलना करने के लिए प्राकृतिक रूप से हवादार पॉलीहाउस और रिट्रैक्टेबल रूफ पॉली हाउस दोनों में बागवानी फसलों की खेती की जाएगी। उन्होंने कहा कि नैचुरली वेंटिलेटेड पॉलीहाउस और रिट्रैक्टेबल रूफ पॉलीहाउस को साथ-साथ स्थापित करके, हम जरूरी वैज्ञानिक आंकड़ा प्राप्त कर सकते हैं और परिणामों का विश्लेषण करके उत्पादकता बढ़ा सकते हैं। इस प्रतिष्ठान का उपयोग किसानों के लिए एक प्रदर्शनी खेत के रूप में किया जाएगा।
पोली हाउस की अवधारणा
पोली हाउस खेती में ऑफ सीजन के फूल, सब्जियां उगाई जाती हैं। यह प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों में भी सब्जी नर्सरी के उत्पादन में उपयोगी है। फसलों का चुनाव पाली हाउस संरचना, बाजार की मांग के साथ ही उम्मीद की बाजार कीमत के आकार पर निर्भर करता है।
यह वर्ष के किसी भी भाग के दौरान पर्यावरण की दृष्टि से नियंत्रित पोली हाउस में किसी भी सब्जी की फसल को उठाने के लिए सुविधाजनक है, वहीं फसलों का चयन साधारण कम लागत वाली पॉली हाउस के मामले में अधिक महत्वपूर्ण है। ककड़ी, लौकी, शिमला मिर्च और टमाटर कम लागत वाली पॉली हाउस में सर्दियों के दौरान काफी लाभकारी पैदावार दे सकती है। उचित वेंटीलेशन गोभी के साथ, उष्णकटिबंधीय फूलगोभी और धनिया की जल्दी किस्मों सफलतापूर्वक भी गर्मी / बरसात के मौसम के दौरान पैदा किया जा सकता है।
जरबेरा, कारनेशन, गुलाब, अन्थूरियम आदि फूलों को फसलों की तरह भी पाली हाउस में ले जाया जाता है।
संरक्षित खेती शुरू करने के प्रमुख बिन्दु
- शुरू में आप संरक्षित खेती की एक छोटी अवधि के कोर्स को पूरा करना होगा। इसके अलावा संरक्षित खेती के किसी भी सफल किसान के पास जाकर खेती को समझना होगा।
- पौधों को प्रदूषण से बचाने के लिए साइट औद्योगिक क्षेत्र से दूर होना चाहिए।
- किसी भी इमारत या पेड़ों की वजह से छाया भी हानिकारक है। ग्राउंड ढाल ऐसा होना चाहिए कि सतह का पानी ग्रीनहाउस से दूर रहें। यदि ग्रीनहाउस उच्च जमीनी स्तर पर है, रुके पानी के माध्यम से मिट्टी तर सकता है इसके लिए चारों ओर इसलिए उचित जल निकासी प्रावधान आवश्यक है।
- सभी मौसम में सड़क के संबंध में स्थान ग्रीन हाउस के निर्माण की सुविधा और उत्पादन के त्वरित निपटान की अनुमति देता है। शहरों के लिए निकटता, बाजार ब्याज निगरानी आवश्यक है हालांकि, एक पाली हाउस के लिए मुख्य रूप से अंकुर उत्पादन से मतलब है जो दूर शहरों से स्थित हो सकता है।
- एक भरोसेमंद पानी की आपूर्ति सभी श्रेणियों के पॉली हाउस लिए बनाए रखा जाना है पर्यावरण नियंत्रण उपकरणों या बिना उसके साथ ही।
- इसके अलावा, बिजली की आपूर्ति भी आवश्यक है।
- पाली हाउस के एक पूर्व पश्चिम अभिविन्यास, सर्दियों में अच्छा प्रकाश और उत्तरी हवाओं से सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- पर्याप्त श्रम सुविधा की उपलब्धता आवश्यक है।
अगर आप इस क्षेत्र में नए हैं, तो फसलों की पाली हाउस खेती के क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले प्रशिक्षण प्राप्त करें। आप के पास पाली घरों से जानकारी के लिए जाएँ। अपने क्षेत्र में प्रशिक्षण संबंधी जानकारी के लिए आप तहसील की कृषि अधिकारी या नजदीकी कृषि विज्ञान केन्द्र या कृषि विश्वविद्यालय के लिए संपर्क कर सकते हैं।
नई तकनीक की आवश्यकता
पर्वतीय अंचलों में अधिक ऊंचाई पर (1500 मीटर से ऊपर) बसने वाले किसानों की सब्जी खेती वर्षभर नहीं हो पाती है। क्योंकि पर्वतीय अंचल के इस ऊंचाई पर नवम्बर माह से फरवरी माह तक बर्फवारी, पाला, कुहरा, ओस, ओला, शीतलहर आदि का प्रकोप बहुत अधिक होता है। यहां रात का तापक्रम शून्य से नीचे एवं 24 घण्टे में औसत तापक्रम 2-4 डिग्री तक ही रहता है। इन्हीं कारणों से यहां के किसान सफलतापूर्वक सब्जियों की खेती करने में असफल रहते हैं और जाड़े में सम्पूर्ण खेत को खाली छोड़ देते हैं। जब मार्च से मौसम थोड़ा गर्म होना शुरु होता है तो समस्त किसान सब्जियों की खेती को करना प्रारम्भ कर देते हैं और मई तक इस कार्य को पूरा करके अच्छे उत्पादन की कामना करते हैं। जब सब्जियां वृद्धि एवं विकास करके अपनी अर्ध उम्र में पहुंचती हैं और फल देना प्रारम्भ करती हैं तब तक जून माह का अन्त आ जाता है और जून माह से सितम्बर माह के मध्य बार-बार भारी वर्षा होने के कारण खेती में भूमि कटाव, जल भराव के साथ-साथ लगातार बादल घिरे होने के कारण सूर्य का प्रकाश न मिलने से सब्जियों में प्रकाश संश्लेषण क्रिया बन्द हो जाती है। जिसके कारण से सब्जियों में उकठा, झुलसा, जड़ सड़न, तना सड़न, फल सड़न के साथ-साथ कीटों व खरपतवार का प्रकोप इतना बढ़ जाता है कि लगभग 70-80 प्रतिशत सब्जियों की खेती नष्ट हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में किसान अपने खाने भर को सब्जियां नहीं प्राप्त कर पाता है तो वह ऐसी जटिल परिस्थिति में व्यवसाय क्या करेगा। इस प्रकार पर्वतीय अंचल के जलवायु में उतार चढ़ाव व अनियमितता के कारण अधिकांश मूल्यवान सब्जियों की खेती वर्ष भर करना असम्भव है। अब प्रश्न यह उठता है कि पर्वतीय अंचलों के अधिकांश क्षेत्रों में किसानों की जोत बहुत छोटी व बिखरी हुई है, सब्जी उत्पादन हित में अनुकूल वातावरण प्राप्त नहीं होता है, जंगली जानवरों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, लगभग 90 प्रतिशत खेती वर्षा आधारित है। इसके अलावा मैदानी क्षेत्रों से दूर होने के कारण सब्जियों का आवागमन न हो पाने से यहां के बाजारों में भी सब्जियॉ आवश्यकतानुसार नहीं मिल पाती हैं। जो गांव थोड़ा बाजार एवं शहरों से नजदीक हैं वह तो बाहर से आयी हुई सब्जियां खरीद लेते हैं और अपनी पोषण सुरक्षा की भरपाई कर लेते हैं। परन्तु पर्वतीय अंचलों के दूर दराज के गावों में बसे लोग इतने लाचार व गरीब हैं कि वह प्रत्येक दिन बाजार या शहर नहीं आ सकते तो ऐसी परिस्थितियों में वह प्रतिदिन सब्जियों कासेवन भी नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण उनके परिवार की पोषण सुरक्षा ठीक ढंग से नहीं हो पाती है। यही कारण है कि पर्वतीय अंचलों में रहने वाले लोगों में कुपोषण का प्रतिशत मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक पाया जाता है। चूंकि डॉक्टरों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 300 ग्राम सब्जी प्रतिदिन खानी चाहिए क्योंकि सब्जियों में पोषण सुरक्षा की दृष्टि से पर्वतीय अंचलों में पालीहाउस की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि-
- पाली हाउस एक संरक्षित खेती है।
- इसके अन्दर लगी सब्जियों को जैविक एवं प्राकृतिक झंझावतों से होने वाले नुकसान को बचाया जा सकता है।
- पालीहाउस प्रति इकाई क्षेत्र उत्पादन, उत्पादकता एवं गुणवत्ता को बढ़ा देता है।
- वर्ष भर उत्पादन को बढ़ावा देता है।
- अगेती एवं बेमौसमी सब्जी उत्पादन किया जा सकता है।
- पालीहाउस खेती एक रोजगार परख खेती है।
- इसके माध्यम से सब्जी उत्पादन का क्षेत्रफल बढ़ता है और अन्य कृषि संसाधनों का विकास होता है।
SOURCE-PIB
नारियल विकास बोर्ड (संशोधन) विधेयक
राज्यसभा ने 30 जुलाई, 2021 को नारियल विकास बोर्ड (संशोधन) विधेयक 2021 (Coconut Development Board (Amendment) Bill) पारित किया। इस विधेयक का उद्देश्य नारियल विकास बोर्ड के अध्यक्ष को गैर-कार्यकारी निदेशक बनाना है।
इस संशोधन के बाद बोर्ड के सदस्य 4 से बढ़कर 6 हो गए हैं।
- गुजरात और आंध्र प्रदेश राज्य अपने प्रतिनिधियों को बोर्ड में नामित कर सकेंगे।
- यह विधेयक सरकारी अधिकारियों के बजाय गैर-कार्यकारी अध्यक्षों के रूप में पेशेवरों की नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा।
इस संशोधन के लाभ
कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि इन संशोधनों से नारियल उत्पादकों को फायदा होगा और क्षेत्र में नारियल की खेती में सुधार होगा। विपक्षी दलों के हंगामे के बीच यह बिल पास हो गया है।
नारियल विकास बोर्ड (Coconut Development Board)
नारियल विकास बोर्ड (CBD) भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के तहत एक कानूनी निकाय है, जो नारियल और नारियल से संबंधित उत्पादों के व्यापक विकास के लिए जिम्मेदार है।इस बोर्ड की स्थापना 12 जनवरी 1981 को हुई थी और यह भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में संचालित होता है। इसका मुख्यालय कोच्चि, केरल में स्थित है, और क्षेत्रीय कार्यालय बेंगलुरु, चेन्नई और गुवाहाटी में स्थित हैं। इस बोर्ड के 6 राज्यों में केंद्र हैं जो कोलकाता, भुवनेश्वर, ठाणे, पटना, हैदराबाद और पोर्ट ब्लेयर में स्थित हैं।
SOURCE-GK TODAY
‘कृषिकर्ण’ परियोजना
केरल में शुरू की गई “कृषिकर्ण” परियोजना के तहत मिनी पॉलीहाउस बनाया जाएगा जो कि एक प्रकार का ग्रीनहाउस है। यह नेशनल सोसाइटी फॉर एग्रीकल्चरल हॉर्टिकल्चर (National Society for Agricultural Horticulture – SAHS), Sustainability Foundation और Qore3 Innovations की एक संयुक्त पहल है।
मुख्य बिंदु
- SAHS एक सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त सहकारी संगठन है, जो कृषि और बागवानी प्रथाओं को बढ़ावा देने में शामिल है। सस्टेनेबिलिटी फाउंडेशन, तिरुवनंतपुरम में बेस्ड एक गैर-सरकारी संगठन, सतत विकास (sustainable development) को बढ़ावा देता है।
- Qore3 Innovations एक स्टार्ट-अप कंपनी है जो खेतों के लिए “एंड-टू-एंड सपोर्ट” प्रदान करने का दावा करती है।
- कृषिकर्ण के तहत ढाई फीसदी जमीन पर छोटा पॉलीहाउस बनाया जाएगा।
- प्रत्येक प्लास्टिक घर की कुल अनुमानित लागत 2,35,000 रुपये है।
- अनीश एन. राज ने केरल का सर्वश्रेष्ठ हाई-टेक किसान पुरस्कार जीता और वह Qore3 के कृषि विज्ञानी भी हैं जो कृषिकर्ण के नवाचारों को लागू कर रहे हैं।
- केरल की कृषि पर अभूतपूर्व जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसलिए, उच्च तकनीक वाली कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना आवश्यक है ताकि किसान पूरे वर्ष खेती कर सकें।
- Qore3 ने केरल में 30 से अधिक परियोजनाओं को सफल हाई-टेक फार्म स्थापित किया है।
योजना
इन मिनी पॉलीहाउस में लंबी फलियां, टमाटर, सलाद खीरा, शिमला मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियां लगाने की योजना है। कृषिकर्ण में ग्रीनहाउस, मछली और सब्जियां और मशरूम की खेती भी शामिल है। जिन किसानों ने इस परियोजना के लिए साइन अप किया है, उनकी जमीन पर काम शुरू हो चुका है और कुछ ही हफ्तों में बीज बोए जा सकते हैं।
SOURCE-DANIK JAGARN