Current Affairs – 4 September, 2021
शिक्षक दिवस
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। जीवन में माता-पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता, क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता-पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।
कब-क्यों मनाया जाता – प्रतिवर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म-दिवस के अवसर पर शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भारतभर में शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है। ‘गुरु’ का हर किसी के जीवन में बहुत महत्व होता है। समाज में भी उनका अपना एक विशिष्ट स्थान होता है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षा में बहुत विश्वास रखते थे। वे एक महान दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्हें अध्यापन से गहरा प्रेम था। एक आदर्श शिक्षक के सभी गुण उनमें विद्यमान थे। इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।
तैयारियां – इस दिन स्कूलों में पढ़ाई बंद रहती है। स्कूलों में उत्सव, धन्यवाद और स्मरण की गतिविधियां होती हैं। बच्चे व शिक्षक दोनों ही सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। स्कूल-कॉलेज सहित अलग-अलग संस्थाओं में शिक्षक दिवस पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। छात्र विभिन्न तरह से अपने गुरुओं का सम्मान करते हैं, तो वहीं शिक्षक गुरु-शिष्य परंपरा को कायम रखने का संकल्प लेते हैं।
स्कूल और कॉलेज में पूरे दिन उत्सव-सा माहौल रहता है। दिनभर रंगारंग कार्यक्रम और सम्मान का दौर चलता है। इस दिन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को उनकी जयंती पर याद कर मनाया जाता है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1 PRE
कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने कोयला संसाधनों के बेहतर मूल्यांकन के लिए नया सॉफ्टवेयर शुरू किया
कोयला मंत्रालय के तहत कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने “स्पेक्ट्रल एन्हांसमेंट” (एसपीई) नाम का एक नया सॉफ्टवेयर शुरू किया है। यह कोयला अन्वेषण प्रक्रिया के दौरान भूकंपीय सर्वेक्षण का उपयोग करके पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह (क्रस्ट) के नीचे पतले कोयले के निशानों की पहचान करने और कोयला संसाधनों के मूल्यांकन में सुधार करने में सहायता करेगा।
एसपीई सॉफ्टवेयर को शुरू करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि कोयले की खोज के लिए मौजूदा भूकंपीय सर्वेक्षण तकनीकों में पृथ्वी के नीचे पतले कोयले के निशानों की पहचान करने की अपनी सीमाएं हैं, लेकिन अब यह संभव होगा, क्योंकि यह नया सॉफ्टवेयर भूकंपीय संकेतों के समाधान को बढ़ाने में सहायता करता है, जिससे सबसे पतले कोयले के निशानों का चित्रण होता है।
सीआईएल के अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) शाखा सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआई) ने गुजरात एनर्जी रिसर्च एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (जीईआरएमआई) के सहयोग से अपनी तरह का यह पहला सॉफ्टवेयर विकसित किया है। कंपनी अपनी कॉपीराइट सुरक्षा के लिए भी आवेदन करेगी।
यह ‘मेड इन इंडिया’ सॉफ्टवेयर कोयले की खोज के समय और लागत को बचाने में भी सहायता करेगा और इस प्रकार कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भर भारत के मिशन को बढ़ावा देगा।
सीआईएल के सीएमडी श्री प्रमोद अग्रवाल ने सीआईएल के आरएंडडी बोर्ड की उपस्थिति में इस सॉफ्टवेयर लॉन्च किया। इस बोर्ड में प्रतिष्ठित संगठनों व संस्थानों के वरिष्ठ निदेशक और विशेषज्ञ सदस्य शामिल हैं।
भारत के कुल कोयला उत्पादन में सीआईएल की हिस्सेदारी 80 फीसदी है।
कोल इण्डिया लिमिटेड
कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) एक भारत का सार्वजनिक प्रतिष्ठान है। यह भारत और विश्व में भी सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है। यह भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जो कोयला मंत्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ है। यह कोयला खनन एवं उत्पादन में लगी कंपनी है। यह अनुसूची ‘ए’ ‘नवरत्न’ सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम है। इसका मुख्यालय कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है।
31 मार्च 2010 तक इसके संचालन में भारत के आठ राज्यों के 21 प्रमुख कोयला खनन क्षेत्रों के 471 खान थे, जिनमें 273 भूमिगत खान, 163 खुली खान और 35 मिश्रित खान (भूमिगत और खुली खानों का मिश्रण) शामिल थे। हम 17 कोयला परिष्करण सुविधाओं का भी संचालन कर रहे थे, जिनका समग्र फीडस्टॉक क्षमता सालाना 39.40 मिलियन टन की है। हमारा इरादा है इसके अतिरिक्त सालाना 111.10 मिलियन टन की समग्र फीडस्टॉक क्षमता के 20 और कोयला परिष्करण सुविधाओं का विकास करना। इस के अलावा हमने 85 अस्पतालों और 424 औषधालयों के सेवाएं भी प्रदान किये।
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ कोल मैनजमेंट (आई.आई.सी.एम.) सी.आई.एल. के तहत संचालित है और अधिकारियों के लिए विभिन्न बहु–अनुशासनात्मक प्रबंधन विकास कार्यक्रम प्रदान करता है।
कोल इंडिया के प्रमुख उपभोक्ता बिजली और इस्पात क्षेत्र हैं। अन्य क्षेत्रों में सीमेंट, उर्वरक, ईंट भट्टे और विभिन्न लघु उद्योग शामिल हैं। हम तरह तरह के अनुप्रयोगों के लिए विभिन्न ग्रेड के कोकिंग और गैर कोकिंग कोयले का उत्पादन करते है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
नौसैन्य अभ्यास ‘सिम्बेक्स’
सिंगापुर और भारत की नौसेनाओं के बीच द्विपक्षीय नौसैन्य अभ्यास (सिम्बेक्स) का 28वां संस्करण 02 से 04 सितंबर 2021 तक आयोजित किया गया था।
भारतीय नौसेना का प्रतिनिधित्व गाइडेड मिसाइल विध्वंसक आईएनएस रणविजय ने जहाज से उड़ने वाले एक हेलीकॉप्टर, पनडुब्बी रोधी युद्धपोत आईएनएस किल्टन और गाइडेड मिसाइल युद्धपोत आईएनएस कोरा तथा एक पी8आई लंबी दूरी के समुद्री निगरानी विमान के साथ किया था। वहीं, रिपब्लिक ऑफ सिंगापुर नेवी- आरएसएन की तरफ से इस नौसैन्य अभ्यास में एक विशिष्ट श्रेणी का युद्धपोत, आरएसएस स्टीडफ़ास्ट, एक एस-70बी नौसैन्य हेलीकॉप्टर, एक विक्ट्री क्लास मिसाइल पोत, आरएसएस विगौर, एक आर्चर श्रेणी की पनडुब्बी और एक फॉक्कर- 50 समुद्री निगरानी विमान ने हिस्सा लिया। सिंगापुर गणराज्य की वायु सेना (आरएसएएफ) के चार एफ-16 लड़ाकू विमानों ने भी वायु रक्षा अभ्यास के दौरान इसमें भाग लिया।
वर्ष 1994 में शुरू किया गया, सिम्बेक्स किसी भी विदेशी नौसेना के साथ भारतीय नौसेना का सबसे लंबा चलने वाला निर्बाध द्विपक्षीय नौसैन्य अभ्यास है। मौजूदा कोविड महामारी की चुनौतियों के बावजूद इस महत्वपूर्ण अभ्यास श्रृंखला की निरंतरता को बनाए रखना दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा संबंधों की मजबूती को और शक्ति प्रदान करता है। अभ्यास के विभिन्न चरणों के दौरान महामारी की बाधाओं के बावजूद, दोनों नौसेनाएं कई चुनौतीपूर्ण गतिविधियों का निर्बाध और सुरक्षित संचालन कर सकीं, जिनमें हथियारों से फायरिंग और उन्नत नौसैनिक युद्ध कौशल शामिल हैं, इनके अलावा पनडुब्बी रोधी, एंटी-एयर और सतह पर मोर्चा संभालने के युद्ध अभ्यास भी किये गए हैं। इस अभ्यास की विशिष्टता और जटिलता दोनों नौसेनाओं के बीच हुई अंतःक्रियाशीलता का पर्याप्त प्रमाण है।
सिम्बेक्स का इस वर्ष का संस्करण एक विशेष अवसर भी है, क्योंकि यह नौसैन्य अभ्यास भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर आयोजित किये जा रहे समारोहों के दौरान ही किया गया है। सिम्बेक्स- 2021 की सफलता आने वाले वर्षों में द्विपक्षीय साझेदारी को ज़्यादा मजबूत करने के लिए दोनों पक्षों के आपसी संकल्प का एक और उदाहरण है।
मौजूदा महामारी से संबंधित चुनौतियों के कारण, इस वर्ष के सिम्बेक्स को सिंगापुर की नौसेना द्वारा दक्षिण चीन सागर के दक्षिणी किनारे पर ‘एट-सी ओनली’ अभ्यास के रूप में बिना किसी मानवीय संपर्क के आयोजित करने की योजना बनाई गई थी।
भारत-सिंगापुर रक्षा संबंध समग्र द्विपक्षीय संबंधों का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू हैं और ये पारंपरिक सेना से सेना के आदान-प्रदान से लेकर एचएडीआर और साइबर सुरक्षा तक सहयोग के एक बहुत व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करते हैं। दोनों नौसेनाओं का एक-दूसरे के समुद्री सूचना संलयन केंद्रों में प्रतिनिधित्व है और हाल ही में आपसी पनडुब्बी बचाव सहायता एवं सहयोग के एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं।
सिंगापुर
सिंगापुर विश्व के प्रमुख बंदरगाहों और व्यापारिक केंद्रों में से एक है। यह दक्षिण एशिया में मलेशिया तथा इंडोनेशिया के बीच में स्थित है।
सिंगापुर यानी सिंहों का पुर। यानी इसे सिंहों का शहर कहा जाता है। यहाँ पर कई धर्मों में विश्वास रखने वाले, विभिन्न देशों की संस्कृति, इतिहास तथा भाषा के लोग एकजुट होकर रहते हैं। मुख्य रूप से यहाँ चीनी तथा अँग्रेजी दोनों भाषाएँ प्रचलित हैं। आकार में मुंबई से थोड़े छोटे इस देश में बसने वाली करीब 35 लाख की आबादी में चीनी, मलय व 8 प्रतिशत भारतीय लोग रहते हैं।
दक्षिण-पूर्व एशिया में, निकोबार द्वीप समूह से लगभग 1500 कि॰मी॰ दूर एक छोटा, सुंदर व विकसित देश सिंगापुर पिछले बीस वर्षों से पर्यटन व व्यापार के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभरा है। आधुनिक सिंगापुर की स्थापना सन् 1819 में सर स्टेमफ़ोर्ड रेफ़ल्स ने की, जिन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी के रूप में, दिल्ली स्थित तत्कालीन वॉयसराय द्वारा, कंपनी का व्यापार बढ़ाने हेतु सिंगापुर भेजा गया था। आज भी सिंगापुर डॉलर व सेंट के सिक्कों पर आधुनिक नाम सिंगापुर व पुराना नाम सिंगापुरा अंकित रहता है। सन् 1965 में मलेशिया से अलग होकर नए सिंगापुर राष्ट्र का उदय हुआ। किंवदंती है कि चौदहवीं शताब्दी में सुमात्रा द्वीप का एक हिन्दू राजकुमार जब शिकार हेतु सिंगापुर द्वीप पर गया तो वहाँ जंगल में सिंहों को देखकर उसने उक्त द्वीप का नामकरण सिंगापुरा अर्थात सिंहों का द्वीप कर दिया।
सिंगापुर विश्व की 9वीं तथा एशिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अर्थशास्त्रियों ने सिंगापुर को ‘आधुनिक चमत्कार’ की संज्ञा दी है। यहाँ के सारे प्राकृतिक संसाधन यहाँ के निवासी ही हैं। यहाँ पानी मलेशिया से, दूध, फल व सब्जियाँ न्यूजीलैंड व ऑस्ट्रेलिया से, दाल, चावल व अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएँ थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि से आयात की जाती हैं।
१९७० के दशक से यहाँ के व्यवसाय ने ज़ोर पकड़ना शुरु किया जिसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। आज मुख्य व्यवसायों में इलेक्ट्रॉनिक, रसायन और सेवाक्षेत्र की कंपनी जैसे होटल, कॉलसेंटर, बैकिंग, आउटसोर्सिंग इत्यादि प्रमुख हैं। यह विदेशी निवेश के लिये काफ़ी आकर्षक रहा है और हाल ही में यहाँ की कंपनियों ने विदेशों में अच्छा निवेश किया है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.2
प्लास्टिक समझौता
भारत 3 सितंबर, 2021 को प्लास्टिक समझौता (Plastics Pact) लांच करने वाला पहला एशियाई देश बन गया है।
मुख्य बिंदु
- इस नए प्लेटफॉर्म को World-Wide Fund for Nature-India (WWF India) ने भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry – CII) के सहयोग से विकसित किया है।
- यह प्लास्टिक के लिए एक सर्कुलर सिस्टम को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
- भारत में ब्रिटिश उच्चायुक्त अलेक्जेंडर एलिस द्वारा नया प्लेटफार्म लॉन्च किया गया।
- यह एक सर्कुलर प्लास्टिक सिस्टम के निर्माण के लिए प्रतिज्ञा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख उद्यमों को एक साथ लाएगा।
समझौते का उद्देश्य
- इस समझौते के तहत प्रतिबद्धताओं का उद्देश्य अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक वातावरण से प्लास्टिक की पैकेजिंग को बाहर रखना है।
- इसमें प्रमुख FMCG ब्रांडों, निर्माताओं, खुदरा विक्रेताओं और पुनर्चक्रणकर्ताओं (recyclers) सहित 17 व्यवसायों का उल्लेख किया गया है जिन्होंने संस्थापक सदस्यों के रूप में समझौते के साथ प्रतिबद्ध किया है। 9 व्यवसाय सहायक संगठनों के रूप में शामिल हुए हैं।
- यह समझौता प्लास्टिक पैकेजिंग को कम करने, नवाचार करने के समयबद्ध लक्ष्यों को प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य अनावश्यक या समस्याग्रस्त प्लास्टिक पैकेजिंग और वस्तुओं की एक सूची को परिभाषित करना और 2030 तक रीडिज़ाइन और इनोवेशन की मदद से इन समस्याओं को दूर करने के उपाय करना है।
- इस समझौते के तहत, 100% प्लास्टिक पैकेजिंग को पुन: प्रयोज्य (reusable) या पुनर्चक्रण योग्य (recyclable) बनाया जाएगा, 50% प्लास्टिक पैकेजिंग को प्रभावी ढंग से रीसायकल किया जाएगा।
भारत में प्लास्टिक कचरा
भारत सालाना लगभग 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करता है। इसमें से 40% को एकत्रित नहीं किया जाता। भारत में, सभी प्लास्टिक उत्पादन का आधा हिस्सा पैकेजिंग में उपयोग किया जाता है और इसमें से अधिकांश सिंगल यूज़ प्लास्टिक है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.3
AT1 बांड
भारत के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने 3 सितंबर, 2021 को घोषणा की कि उसने अतिरिक्त टियर 1 (AT1) बांड के माध्यम से 4,000 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
मुख्य बिंदु
- AT1 बांड 72% की कूपन दर से जुटाए गए।
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा नए नियमों को अधिसूचित किए जाने के बाद यह घरेलू बाजार में इस तरह का पहला निर्गम है।
- SBI के पास स्थानीय क्रेडिट एजेंसियों से AAA क्रेडिट रेटिंग है जबकि AT1 की पेशकश को AA+ रेट किया गया है। ऐसे उपकरणों के लिए यह भारत में सर्वोच्च रेटिंग है।
- SBI 2016 में अपतटीय AT1 बांड के माध्यम से पूंजी जुटाने वाला पहला ऋणदाता बना था।
सेबी नियम
सेबी ने मार्च 2021 में स्थायी बांड के लिए 100 साल के मूल्यांकन नियम में संशोधन किया। नए नियमों के अनुसार, बेसल III AT-1 बांड की अवशिष्ट परिपक्वता अवधि 31 मार्च, 2022 तक 10 वर्ष होगी। नए नियम के अनुसार, अप्रैल 2023 से AT-1 बांड की शेष परिपक्वता इन बांडों के जारी होने की तारीख से 100 वर्ष हो जाएगी।
क्या है AT1 बॉन् – इसे टियर 1 बॉन्ड कहा जाता है। ये बिना एक्सपायरी वाले स्थायी बॉन्ड होते हैं। इन्हें Perpetual Bond भी कहते हैं। ये बैंकों की पूंजी की जरूरत पूरा करने में मददगार होते हैं। AT1 बॉन्ड के लिए RBI रेगुलेटर होता है। इसमें नियमित अंतराल पर तय ब्याज दर का भुगतान किया जाता है। इसमें गैर-स्थायी बॉन्ड से ज्यादा ब्याज दर होती है जहां निवेशकों को मूलधन वापस देना जरूरी नहीं होता है। हालांकि पैसे की जरूरत होने पर धारक इसे बेच सकते हैं। इसमें बॉन्ड जारी करने वाले बैंक को निवेशक वापस नहीं कर सकते हैं लेकिन बैंकों के पास AT1 बॉन्ड को वापस बुलाने का विकल्प होता है। बैंकों ने फिलहाल लगभग 94,000 करोड़ रुपये के AT 1 बांड जारी किए हैं। इसमें से 55,000 करोड़ रुपये PSU बैंकों के हैं और शेष 39,000 करोड़ रुपये निजी बैंकों के हैं।
SOURCE-THE HINDU
PAPER-G.S.3
World Social Protection Report 2020-22
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा 1 सितंबर, 2021 को विश्व सामाजिक सुरक्षा रिपोर्ट 2020-22 जारी की गई।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
- इस रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की आधी से अधिक आबादी को किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल रही है। COVID-19 के वैश्विक प्रकोप के बीच सामाजिक सुरक्षा के विस्तार के बाद भी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं होने की यह प्रवृत्ति है।
- 2020 में वैश्विक आबादी के केवल 47% के पास एक सामाजिक सुरक्षा लाभ तक प्रभावी पहुंच थी, जबकि 53% (4.1 बिलियन लोगों) के पास कोई सुरक्षा नहीं थी।
- यूरोप और मध्य एशिया के लोग सबसे अच्छी तरह से कवर की गई आबादी में से हैं। यूरोप और मध्य एशिया की 84% आबादी को कम से कम एक लाभ प्राप्त है।
- अमेरिका में सामाजिक सुरक्षा की दर 3% है।
- एशिया, प्रशांत और अरब देशों में आधे से भी कम लोग सुरक्षा के दायरे में आते हैं।
- अफ्रीका में, केवल 4% लोगों को कम से कम एक सामाजिक सुरक्षा मिल रही है।
- दुनिया भर में अधिकांश बच्चों के पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं थी।
- दुनिया में चार में से सिर्फ एक बच्चे को सामाजिक सुरक्षा लाभ मिलता है।
- नवजात शिशुओं वाली 45% महिलाओं को नकद मातृत्व लाभ मिलता है।
- गंभीर रूप से विकलांग तीन में से एक व्यक्ति को विकलांगता लाभ मिलता है।
अमीर गरीब विभाजन
इस रिपोर्ट ने सामाजिक सुरक्षा पर COVID-19 महामारी के प्रभाव की जांच की। यह पाया गया कि सभी के लिए न्यूनतम सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और वित्तपोषण अंतर को कम करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त खर्च में महामारी की शुरुआत के बाद से 30% की वृद्धि हुई है। औसतन, देश सामाजिक सुरक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 13% खर्च करते हैं। हालांकि, उच्च आय वाले देश सामाजिक सुरक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 16.4% खर्च करते हैं। दूसरी ओर, कम आय वाले देश सिर्फ 1.1% खर्च करते हैं।
सामाजिक सुरक्षा
सामाजिक सुरक्षा में बेरोजगारी, वृद्धावस्था, काम करने में असमर्थता और बच्चों वाले परिवारों के लिए स्वास्थ्य देखभाल और आय सुरक्षा तक पहुंच शामिल है।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
- यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियाँ को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्य कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
पृष्ठभूमि
- वर्ष 1919 में वर्साय की संधि द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई।
- वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
- मुख्यालय : जेनेवा, स्विट्ज़रलैंड
- स्थापना का उद्देश्य : वैश्विक एवं स्थायी शांति हेतु सामाजिक न्याय आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त मानवाधिकारों एवं श्रमिक अधिकारों को बढ़ावा देता है।
- वर्ष 1969 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन को निम्नलिखित कार्यों के लिये नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया –
- विभिन्न सामाजिक वर्गों के मध्य शांति स्थापित करने हेतु
- श्रमिकों के लिये सभ्य कार्य एवं न्याय का पक्षधर
- अन्य विकासशील राष्ट्रों को तकनीकी सहायता प्रदान करना
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने निम्नलिखित क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई –
- महामंदी के दौरान श्रमिक अधिकारों को सुनिश्चित करना
- वि-औपनिवेशिकरण की प्रक्रिया
- पोलैंड में सॉलिडैरिटी (व्यापार संगठन) की स्थापना
- दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद पर विजय
- वर्तमान में यह एक न्यायसंगत वैश्वीकरण हेतु नैतिक एवं लाभदायक ढाँचे के निर्माण में आवश्यक सहायता प्रदान कर रहा है।
नोट : ILO का आधार त्रिपक्षीय सिद्धांत है, अर्थात संगठन के भीतर आयोजित वार्ताएँ सरकारों एवं व्यापारिक संगठनों के प्रतिनिधियों तथा सदस्य राष्ट्रों के नियोक्ताओं के मध्य होती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की संरचना
ILO तीन मुख्य निकायों सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिकों के प्रतिनिधियों के माध्यम से अपना कार्य संपन्न करता है :
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन : यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों एवं ILO की व्यापक नीतियों को निर्धारित करता है। यह प्रतिवर्ष जेनेवा में आयोजित किया जाता है। इसे प्रायः अंतर्राष्ट्रीय श्रम संसद के रूप में संदर्भित किया जाता है।
- सामाजिक एवं श्रम संबंधी प्रश्नों पर चर्चा के लिये भी यह एक प्रमुख मंच है।
- शाषी निकाय : यह ILO की कार्यकारी परिषद है। प्रतिवर्ष जेनेवा में इसकी तीन बैठकें आयोजित की जाती हैं।
- यह ILO के नीतिगत निर्णयों का निर्धारण एवं कार्यक्रम तथा बजट तय करता है, जिन्हें बाद में ‘स्वीकृति हेतु सम्मेलन’ (Conference for Adoption) में प्रस्तुत किया जाता है।
- संचालन निकाय एवं श्रम संगठन के कार्यालय के कार्यों में त्रिपक्षीय समितियों द्वारा सहायता की जाती है जो कि प्रमुख उद्योगों को कवर करती हैं।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण, प्रबंधन विकास, व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य, औद्योगिक संबंध, श्रमिकों की शिक्षा तथा महिलाओं और युवा श्रमिकों की विशेष समस्याओं जैसे मामलों पर विशेषज्ञों की समितियों द्वारा भी इसे समर्थन प्राप्त होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम कार्यालय : यह अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का स्थायी सचिवालय है।
- यह ILO की संपूर्ण गतिविधियों के लिये केंद्र बिंदु है, जिसे संचालन निकाय की संवीक्षा एवं महानिदेशक के नेतृत्व में तैयार किया जाता है।
- विशेष रुचि के मामलों की जाँच हेतु समय-समय पर ILO सदस्य राष्ट्रों की क्षेत्रीय बैठकें संबंधित क्षेत्रों के लिये आयोजित की जाती हैं।
ILO के कार्य
- सामाजिक तथा श्रम मुद्दों को हल करने हेतु निर्देशित समन्वित नीतियों एवं कार्यक्रमों का निर्माण करना।
- अभिसमयों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को अपनाना तथा उनके कार्यान्वयन को नियंत्रित करना।
- सामाजिक एवं श्रम समस्याओं को सुलझाने में सदस्य राष्ट्रों की सहायता करना।
- मानवाधिकारों (काम करने का अधिकार, संघ की स्वतंत्रता, सामूहिक वार्ता, बलात् श्रम से सुरक्षा, भेदभाव से सुरक्षा, आदि) का संरक्षण करना।
- सामाजिक एवं श्रम मुद्दों पर कार्यों का अनुसंधान तथा प्रकाशन करना।
ILO के लक्ष्य
- कार्य के मानकों एवं मौलिक सिद्धांतों तथा अधिकारों को बढ़ावा देना और उन्हें वास्तविक धरातल पर लाना।
- सभ्य कार्य सुनिश्चित करने हेतु महिलाओं एवं पुरुषों के लिये अधिक से अधिक रोज़गार के अवसर सृजित करना।
- सभी के लिये सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना तथा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता को बढ़ाना।
- त्रिपक्षीय एवं सामाजिक संवाद को मज़बूत करना।
कार्य के मौलिक सिद्धांतों एवं अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की घोषणा
- इसे वर्ष 1998 में अपनाया गया था, घोषणा में सदस्य राष्ट्रों को चार श्रेणियों में विभक्त आठ मौलिक सिद्धांतों तथा अधिकारों को मान्यता देने एवं उन्हें बढ़ावा देने के लिये प्रतिबद्ध किया गया जहाँ उन्होंने प्रासंगिक कन्वेंशनों की पुष्टि की है अथवा नहीं। ये चार श्रेणियाँ हैं :
- संघ की स्वतंत्रता एवं सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार (कन्वेंशन 87 और 98)
- बलात् श्रम या अनिवार्य श्रम का उन्मूलन (कन्वेंशन संख्या 29 एवं संख्या 105)
- बाल श्रम का उन्मूलन (कन्वेंशन संख्या 138 एवं संख्या 182)
- रोज़गार एवं व्यवसाय संबंधी भेदभाव का उन्मूलन (कन्वेंशन संख्या 100 एवं संख्या 111)
ILO के मुख्य कन्वेंशन
- आठ मौलिक कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार फ्रेमवर्क का एक अभिन्न हिस्सा हैं, और उनका अनुसमर्थन सदस्य राष्ट्रों के मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता का एक महत्त्वपूर्ण संकेत है।
- कुल 135 सदस्य राष्ट्रों ने सभी आठ मौलिक सम्मेलनों की पुष्टि की है। दुर्भाग्य से, उच्चतम जनसंख्या वाले विश्व के 48 सदस्य राष्ट्रों द्वारा (183 सदस्य राज्यों में से) सभी आठ कन्वेंशन की पुष्टि करना अभी शेष है।
- ILO के मुख्य आठ कन्वेंशन हैं :
- बलात् श्रम पर कन्वेंशन (संख्या 29)
- बलात् श्रम का उन्मूलन पर कन्वेंशन (संख्या 105)
- समान पारिश्रमिक पर कन्वेंशन (संख्या 100)
- भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) पर कन्वेंशन (संख्या 111)
- न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन (संख्या 138)
- बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरूप पर कन्वेंशन (संख्या 182)
- संघ की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर कन्वेंशन (संख्या 87)
- संगठित एवं सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार पर कन्वेंशन (संख्या 98)
- सभी क्षेत्रों में श्रमिकों के कल्याण और आजीविका के लिये वैश्विक आर्थिक एवं अन्य चुनौतियों का सामना करने हेतु आठ कन्वेंशनों को एक साथ लाना वर्तमान समय में अधिक प्रासंगिक हो गया है।
- वास्तव में ये मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता, सभी को सुरक्षा प्रदान करने एवं एक वैश्विक तंत्र में सामाजिक न्याय की आवश्यकता को साधने हेतु व्यापक संरचना का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- ये पूर्ण रूप से संयुक्त राष्ट्र प्रणाली, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और स्थानीय समुदायों के मुख्य स्रोत हैं।
भारत और ILO
- भारत ILO का संस्थापक सदस्य है और यह वर्ष 1922 से ILO के संचालन निकाय का स्थायी सदस्य है।
- भारत में ILO का पहला कार्यालय वर्ष 1928 में स्थापित किया गया था। ILO और इसके भागीदारों के मध्य परस्पर विश्वास एवं सम्मान इसके अंतर्निहित सिद्धांतों के रूप में स्थापित है। यह निरंतर संस्थागत क्षमताओं के निर्माण तथा भागीदारों की क्षमताओं को मज़बूत करने का आधार है।
- भारत ने आठ प्रमुख/मौलिक ILO कन्वेंशनों में से 6 की पुष्टि की है। ये कन्वेंशन निम्नलिखित हैं :
- बलात् श्रम पर कन्वेंशन (संख्या 29)
- बलात् श्रम के उन्मूलन पर कन्वेंशन (संख्या 105)
- समान पारिश्रमिक पर कन्वेंशन (संख्या 100)
- भेदभाव (रोजगार और व्यवसाय) पर कन्वेंशन (संख्या 111)
- न्यूनतम आयु पर कन्वेंशन (संख्या 138)
- बाल श्रम के सबसे विकृत स्वरुप पर कन्वेंशन (संख्या 182)
- भारत ने दो प्रमुख/मौलिक कन्वेंशनों, अर्थात् संघ बनाने की स्वतंत्रता एवं संगठित होने के अधिकार की सुरक्षा पर कन्वेंशन, 1948 (संख्या 87) और संगठित होने तथा सामूहिक सौदेबाजी पर कन्वेंशन, 1949 (संख्या 98) की पुष्टि नहीं की है।
- ILO की कन्वेंशन संख्या 87 एवं 98 की पुष्टि नहीं होने का मुख्य कारण सरकारी कर्मचारियों पर लगाए गए कुछ प्रतिबंध हैं।
- इन कन्वेंशनों की पुष्टि करने हेतु भारत को सरकारी कर्मचारियों को कुछ ऐसे अधिकार देने होंगे जो वैधानिक नियमों के तहत निषिद्ध हैं, अर्थात् हड़ताल करने का अधिकार, सरकारी नीतियों की स्पष्ट रूप से आलोचना करना, वित्तीय योगदान को स्वतंत्र रूप से स्वीकार करना, विदेशी संगठनों में स्वतंत्र रूप से शामिल होना, आदि।
SOURCE-DANIK JAGARAN
PAPER-G.S.1