Current Affairs – 6 July, 2021
दलाई लामा
धानमंत्रीश्री नरेन्द्र मोदी ने आज महामहिम दलाई लामा से बातचीत की और उन्हें 86वें जन्मदिन पर बधाई दी।
प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा, “महामहिम दलाई लामा के साथ फोन पर बातचीत की और उन्हें 86वें जन्मदिन की बधाई दी। हम उनकी दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना करते हैं।”
चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (६ जुलाई, 1935 – वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म ६ जुलाई १९३५ को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले ये ओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है।
नेतृत्व का दायित्व
वर्ष १९४९ में तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा से कहा गया कि वह पूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले लें। १९५४ में वह माओ जेडांग, डेंग जियोपिंग जैसे कई चीनी नेताओं से बातचीत करने के लिए बीजिंग भी गए। लेकिन आखिरकार वर्ष १९५९ में ल्हासा में चीनी सेनाओं द्वारा तिब्बती राष्ट्रीय आंदोलन को बेरहमी से कुचले जाने के बाद वह निर्वासन में जाने को मजबूर हो गए। इसके बाद से ही वह उत्तर भारत के शहर धर्मशाला में रह रहे हैं जो केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय है। तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा ने संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत मुद्दे को सुलझाने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस संबंध में १९५९, १९६१ और १९६५ में तीन प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं।
लोकतंत्रकरण की प्रक्रिया
१९६३ में परमपावन दलाई लामा ने तिब्बत के लिए एक लोकतांत्रिक संविधान का प्रारूप प्रस्तुत किया। इसके बाद परमपावन ने इसमें कई सुधार किए। हालांकि, मई १९९० में तक ही दलाई लामा द्वारा किए गए मूलभूत सुधारों को एक वास्तविक लोकतांत्रिक सरकार के रूप में वास्तविक स्वरूप प्रदान किया जा सका। इस वर्ष अब तक परमपावन द्वारा नियुक्त होने वाले तिब्बती मंत्रिमंडल; काशग और दसवीं संसद को भंग कर दिया गया और नए चुनाव करवाए गए। निर्वासित ग्यारहवीं तिब्बती संसद के सदस्यों का चुनाव भारत व दुनिया के ३३ देशों में रहने वाले तिब्बतियों के एक व्यक्ति एक मत के आधार पर हुआ। धर्मशाला में केंद्रीय निर्वासित तिब्बती संसद में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष सहित कुल ४६ सदस्य हैं।
१९९२ में परमपावन दलाई लामा ने यह घोषणा की कि जब तिब्बत स्वतंत्र हो जाएगा तो उसके बाद सबसे पहला लक्ष्य होगा कि एक अंतरिम सरकार की स्थापना करना जिसकी पहली प्राथमिकता यह होगी तिब्बत के लोकतांत्रिसंविधान के प्रारूप तैयार करने और उसे स्वीकार करने के लिए एक संविधान सभा का चुनाव करना। इसके बाद तिब्बती लोग अपनी सरकार का चुनाव करेंगे और परमपावन दलाई लामा अपनी सभी राजनीतिक शक्तियां नवनिर्वाचित अंतरिम राष्ट्रपति को सौंप देंगे। वर्ष २००१ में परमपावन दलाई लामा के परामर्श पर तिब्बती संसद ने निर्वासित तिब्बती संविधान में संशोधन किया और तिब्बत के कार्यकारी प्रमुख के प्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रावधान किया। निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख अपने कैबिनेट के सहयोगियों का नामांकन करता है और उनकी नियुक्ति के लिए संसद से स्वीकृति लेता है। पहले प्रत्यक्ष निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख ने सितम्बर २००१ में कार्यभार ग्रहण किया।
शांति प्रयास
१९८७ में परमपावन ने तिब्बत की खराब होती स्थिति का शांतिपूर्ण हल तलाशने की दिशा में पहला कदम उठाते हुए पांच सूत्रीय शांति योजना प्रस्तुत की। उन्होंने यह विचार रखा कि तिब्बत को एक अभयारण्य-एशिया के हृदय स्थल में स्थित एक शांति क्षेत्र में बदला जा सकता है जहां सभी सचेतन प्राणी शांति से रह सकें और जहां पर्यावरण की रक्षा की जाए। लेकिन चीन परमपावन दलाई लामा द्वारा रखे गए विभिन्न शांति प्रस्तावों पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देने में नाकाम रहा।
पांच सूत्रीय शांति योजना — २१ सितंबर, १९८७ को अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए परमपावन दलाई लामा ने पांच बिन्दुओं वाली निम्न शांति योजना रखीः
१. समूचे तिब्बत को शांति क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए।
२. चीन उस जनसंख्या स्थानान्तरण नीति का परित्याग करे जिसके द्वारा तिब्बती लोगों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है।
३. तिब्बती लोगों के बुनियादी मानवाधिकार और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाए।
४. तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण व पुनरूद्धार किया जाए और तिब्बत को नाभिकीय हथियारों के निर्माण व नाभिकीय कचरे के निस्तारण स्थल के रूप में उपयोग करने की चीन की नीति पर रोक लगे।
५. तिब्बत की भविष्य की स्थिति और तिब्बत व चीनी लोगों के सम्बंधो के बारे में गंभीर बातचीत शुरू की जाए।
दलाई लामा के संदेश
दलाई लामा के संदेश निम्नलिखित हैं :—
- आज के समय की चुनौती का सामना करने के लिए मनुष्य को सार्वभौमिक उत्तरदायित्व की व्यापक भावना का विकास करना चाहिए। हम सबको यह सीखने की जरूरत है कि हम न केवल अपने लिए कार्य करें बल्कि पूरे मानवता के लाभ के लिए कार्य करें। मानव अस्तित्व की वास्तविक कुंजी सार्वभौमिक उत्तरदायित्व ही है। यह विश्व शांति, प्राकृतिक संसाधनों के समवितरण और भविष्य की पीढ़ी के हितों के लिए पर्यावरण की उचित देखभाल का सबसे अच्छा आधार है।
- बौद्ध धर्म का प्रचार – मेरा धर्म साधारण है, मेरा धर्म दयालुता है।
- अपने पर्यावरण की रक्षा हमें उसी तरह से करना चाहिए जैसा कि हम अपने घोड़ों की करते हैं। हम मनुष्य प्रकृति से ही जन्मे हैं इसलिए हमारा प्रकृति के खिलाफ जाने का कोई कारण नहीं बनता, इस कारण ही मैं कहता हूं कि पर्यावरण धर्म नीतिशास्त्रा या नैतिकता का मामला नहीं है। यह सब ऐसी विलासिताएं हैं जिनके बिना भी हम गुजर-बसर कर सकते हैं लेकिन यदि हम प्रकृति के विरफ जाते हैं तो हम जिंदा नहीं रह सकते।
- एक शरणार्थी के रूप में हम तिब्बती लोग भारत के लोगों के प्रति हमेशा कृतज्ञता महसूस करते हैं, न केवल इसलिए कि भारत ने तिब्बतियों की इस पीढ़ी को सहायता और शरण दिया है, बल्कि इसलिए भी कई पीढ़ियों से तिब्बती लोगों ने इस देश से पथप्रकाश और बुधमित्ता प्राप्त की है। इसलिए हम हमेशा भारत के प्रति आभारी रहते हैं। यदि सांस्कृतिक नजरिए से देखा जाए तो हम भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं।
- हम चीनी लोगों या चीनी नेताओं के विरुद्ध नहीं हैं आखिर वे भी एक मनुष्य के रूप में हमारे भाई-बहन हैं। यदि उन्हें खुद निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती तो वे खुद को इस प्रकार की विनाशक गतिविधि में नहीं लगाते या ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे उनकी बदनामी होती हो। मैं उनके लिए करूणा की भावना रखता हूँ।
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मिश्री किस्म की चेरी
बागवानी फसलों के निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में कदम बढ़ाते हुए कश्मीर घाटी से मिश्री किस्म की स्वादिष्ठ चेरी का पहला वाणिज्यिक लदान (शिपमेंट) श्रीनगर से दुबई के लिए निर्यात किया गया है। एपीडा ने एमएस देसाई एग्री-फूड प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दुबई के लिए हुए चेरी के इस लदान में मदद की है। यह कंपनी एमएस इनोटेरा, दुबई की उद्यम कंपनी है।
इस लदान से पहले नमूने की एक खेप जून 2021 के मध्य में श्रीनगर से दुबई के लिए हवाई जहाज से भेजी गई थी, जिसे मुंबई से ट्रांसशिप किया गया था। दुबई में उपभोक्ताओं से मिली उत्साहजनक प्रतिक्रिया के बाद मिश्री किस्म की चेरी का पहला वाणिज्यिक लदान दुबई के लिए निर्यात किया गया है।
मिश्री किस्म की यह चेरी न केवल स्वादिष्ट होती है बल्कि इसमें स्वास्थ्य लाभ के साथ-साथ विटामिन, खनिज और वनस्पति यौगिक भी भरपूर मात्रा में होते हैं।
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में देश की वाणिज्यिक किस्मों की चेरी के कुल उत्पादन का 95% से अधिक उत्पादन होता है। यहां चेरी की चार किस्मों – डबल, मखमली, मिश्री और इटली का मुख्य रूप से उत्पादन होता है।
लदान से पहले चेरी को एपीडा से पंजीकृत निर्यातक द्वारा चेरी की तुड़ाई, सफाई और पैकिंग की गई थी, जबकि तकनीकी जानकारी कश्मीर के शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय द्वारा उपलब्ध कराई गई है।
एपीडा-राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र, पुणे स्थित एक राष्ट्रीय रेफरल प्रयोगशाला है जिसने लदान में खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए सहायता प्रदान की है, इससे विशेष रूप से मध्य-पूर्व देशों में चेरी के ब्रांड सृजन में मदद मिलेगी।
चेरी के वाणिज्यिक लदान की शुरुआत से आने वाले सीजन में कश्मीर से विशेष रूप से मध्य-पूर्व के देशों में आलूबुखारा, नाशपाती, खुबानी और सेब जैसे कई समशीतोष्ण फलों के निर्यात के लिए बड़े अवसर उपलब्ध होंगे।
एपीडा सेब, बादाम, अखरोट, केसर, चावल, ताजे फलों और सब्जियों तथा प्रमाणित जैविक उत्पादों जैसे कृषि उत्पादों की कश्मीर से निर्यात करने की क्षमता को बढ़ावा देने के लिए किसानों, कृषि उत्पादक संगठनों (एफपीओ), सरकारी अधिकारियों और अन्य हितधारकों के साथ बातचीत कर रहा है।
इस क्षेत्र से समशीतोष्ण फलों का निर्यात सुनिश्चित करने के लिए कश्मीर के स्थानीय उत्पादकों, आपूर्तिकर्ताओं, एफपीओ और निर्यातकों को शामिल करते हुए वर्चुअल जागरूकता निर्माण कार्यक्रम के अनेक दौर आयोजित किए जा रहे हैं।
वैश्विक मानकों का पालन करने वाले गुणवत्तायुक्त कृषि उत्पादों का निर्यात सुनिश्चित करने के लिए एपीडा ने नेशनल जैविक उत्पादन कार्यक्रम और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के अधिकारियों के लिए आईएसओ-17065 जरूरतों के बारे में जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू किया है। ऐसे कार्यक्रमों का उद्देश्य जैविक उत्पादों के साथ-साथ जैविक उत्पादों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए केंद्र शासित प्रदेश के अधिकारियों को तृतीय-पक्ष प्रमाणन प्रणाली से परिचित कराना भी था।
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पर्यावरण और जनजातीय कार्य मंत्रालयों द्वारा वन अधिकार अधिनियम के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन के लिए
संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर किए गए
केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर तथा जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा की उपस्थिति में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के सचिव श्री आर पी गुप्ता एवं जनजातीय कार्य मंत्रालय (एमओटीए) के सचिव श्री अनिल कुमार झा ने आज नई दिल्ली में एक “संयुक्त पत्र” पर हस्ताक्षर किए।
राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के सभी मुख्य सचिवों को संबोधित संयुक्त पत्र, वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन और वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (एफडीएसटी) और अन्य पारंपरिक वनों के निवासियों (ओटीएफडी) की आजीविका में सुधार की क्षमता का दोहन करने से संबंधित है।
इस अवसर पर जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आदिवासी और अन्य वनवासी जैव विविधता के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और वन क्षेत्र को बढ़ाने के माध्यम से जलवायु परिवर्तन की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
अपने मुख्य भाषण में श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आज का संयुक्त पत्र वनवासियों के अधिकारों और कर्तव्यों पर आधारित है और वन प्रबंधन की प्रक्रिया में ऐसे समुदायों की भागीदारी में सुधार करना है।
‘वन अधिकार अधिनियम’ (Forest Rights Act- FRA) का प्रभावी कार्यान्वयन और अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। FRA देश में वनों पर आश्रित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों (कम-से-कम 200 मिलियन आबादी) के अधिकारों के संरक्षण तथा उनकी अन्य समस्याओं के समाधान में पूरी तरह सक्षम है। हालाँकि कि इस अधिनियम के लागू होने के लगभग डेढ़ दशक बाद भी इसके कार्यान्वयन में व्याप्त शिथिलता के कारण इस अधिनियम का पूरा लाभ नहीं मिल पाया है।
वन अधिकार अधिनियम (2006) भारत में एक ऐतिहासिक वन कानून था, जिसके तहत वन संसाधनों पर व्यक्तिगत एवं सामुदायिक अधिकारों को मान्यता दी गई। हालांकि नवंबर 2018 तक देश भर में प्राप्त कुल दावों में से केवल 44.83% मामलों में हीं स्वामित्व प्रदान किया गया है। सायक सिन्हा ने महाराष्ट्र में किए क्षेत्र अध्ययन के आधार पर इस अधिनियम के क्रियान्वयन से संबंधित विभिन्न मुद्दों का वर्णन किया है, जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े आदिवासियों तथा वनवासियों द्वारा अधिकार प्राप्त करने को मुश्किल बनाते हैं।
वन या जंगल जटिल सामाजिक-पारिस्थितिक संरचनाएं हैं जो उनके भीतर रहने वाले लोगों के लिए आर्थिक अवसर पैदा करते हैं। वन के बाहर रहने वाले लोग इनकी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। वनों के शासन संबंधी व्यवस्था, वनों के महत्व तथा उनके भीतर एवं बाहर रहने वालों के साथ उनके संबंधों के बारे में विभिन्न कथनों के बीच स्थित रही है। वनों की इस जटिलता के कारण ही आज तक राज्य को वनों की एक मजबूत परिभाषा तैयार करने में अक्षम रही है। इस प्रकार वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) 2006 का पारित होना भारत में वन कानून के संबंध में एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसने प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण और उपयोग पर ‘आदिवासियों और अन्य वनवासी समुदायों’ के पारंपरिक अधिकारों को मान्यता दी थी। यह वन संसाधनों पर व्यक्तिगत और सामुदायिक अधिकारों को मान्यता देता है। दशकों तक उन्हें जंगलों से बाहर रखने और उनकी पहुंच को सीमित करने की कोशिश के बाद यह कानून वनों को लोगों को वापस सौंपना चाहता है, और वनों के संरक्षण में उनकी भूमिका को मान्यता प्रदान करता है। हालाँकि इसका क्रियान्वयन बहुत सुचारू नहीं रहा है। इस कानून ने संरक्षण और क्रियान्वहयन के आधार पर विवाद भी देखे हैं।
- FRA के कार्यान्वयन में व्याप्त कमियों के प्रमुख कारण:
- राजनीतिक प्रतिबद्धता का अभाव।
- जनजातीय मामलों के विभाग (Department of Tribal Affairs) के पास पर्याप्त मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी, जो कि FRA के कार्यान्वयन के लिये नोडल एजेंसी है।
- वन विभाग में नौकरशाही के बीच आतंरिक गतिरोध भी एक बड़ी समस्या है, जो विभिन्न स्तरों पर निर्णयों को प्रभावित करती है।
- ज़िला और उप-प्रभाग स्तर की समितियों का खराब कामकाज या उनकी निष्क्रियता भी एक बड़ी चुनौती रही है, गौरतलब है कि ये समितियाँ ही ग्राम सभाओं द्वारा प्रस्तुत आवेदनों की समीक्षा करती हैं।
- इस अधिनियम को पारित हुए लगभग डेढ़ दशक बीत चुका है परंतु अभी तक ‘केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय’ द्वारा FRA के तहत मात्र 4 करोड़ हेक्टेयर (लगभग 13%) भूमि को ही चिह्नित किया गया है।
- FRA संबधित समुदायों के लिये उनके वन अधिकारों को प्रदान करने में देरी और उसके कारण बढ़ती भू-असुरक्षा की वजह से इन समुदायों की सुभेद्यता में वृद्धि होगी जो इस महामारी के दौरान तथा इसके बाद भी वनों पर आश्रित समुदायों की आजीविका एवं खाद्य असुरक्षा को गंभीर रूप से प्रभावित करेगा।
SOURCE-PIB
अपशिष्ट से सम्पदा
हम शायद एक ऐसे भविष्य की ओर देख रहे हैं जिसमें औद्योगिक अपशिष्ट (कचरा) आगे चल कर बैटरी में ऊर्जा भंडारण का आधार बनेगा। वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि ऊर्जा उद्योग में प्रयोग के बाद अपशिष्ट बन चुके पदार्थ उत्प्रेरक या रीसाइक्लिंग ऑपरेशन के लिए कच्चे माल के रूप में जो ताजा उत्प्रेरक और मूल्यवान धातु प्रदान करते हैं वह एक कुशल द्वि-कार्यात्मक ऑक्सीजन इलेक्ट्रोकैटलिस्ट के रूप में काम करते हैं और धातु-वायु बैटरी के संचालन को सुविधाजनक बनाने वाली मुख्य प्रतिक्रियाओं को उत्प्रेरित कर सकते हैं।
यह बैटरी में ऊर्जा भंडारण के लिए औद्योगिक कचरे का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए नई रणनीति विकसित करने में मदद कर सकता है, जिससे ‘आज का कचरा कल की ऊर्जा’ प्राप्त करने के सपने को साकार करने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
उच्च ऊर्जा घनत्व और स्वच्छ उत्पादन के कारण हाइड्रोजन ऊर्जा उद्योग और परिवहन क्षेत्रों के लिए एक आशाजनक बिजली उत्पादन का मार्ग प्रदान करती है। हाइड्रोजन का उत्पादन करने के तरीकों में से एक एल्यूमिना या जिओलाइट पर एम्बेडेड निकल उत्प्रेरक का उपयोग करके मीथेन का उत्प्रेरक अपघटन है। कई चक्रों के बाद, कार्बन चोकिंग के कारण उत्प्रेरक खर्च हो जाते हैं और अपनी क्रियात्मकता खो देते हैं। खर्च किए गए उत्प्रेरक आमतौर पर ऊर्जा-गहन प्रक्रियाओं के अधीन होते हैं जैसे रीसाइक्लिंग के लिए उच्च तापमान दहन, प्रक्रिया के दौरान वातावरण में बड़ी मात्रा में सीओएक्स जारी करना या धातु घटकों के सुधार के लिए रासायनिक उपचार। ये प्रविधि (प्रोटोकॉल) न तो आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं और न ही पर्यावरण के अनुकूल हैं, इस प्रकार उपयोग किए गए उत्प्रेरक का कुशलता से उपयोग करने के लिए वैकल्पिक रास्ते की मांग को अनिवार्य करते हैं।
सर्वोत्तम संभव उपायों में से एक ऊर्जा उत्पादन/भंडारण अनुप्रयोगों के लिए पुनर्प्राप्त खर्च किए गए उत्प्रेरक का उपयोग करना है। दिए गए खर्च किए गए उत्प्रेरक की संरचना, नी नैनोकणों और पोरस एल्यूमिना के साथ कार्बन नैनोट्यूब, विद्युत रासायनिक ऊर्जा अनुप्रयोगों में विद्युत उत्प्रेरक के रूप में प्रत्यक्ष उपयोग के लिए आदर्श हो सकते हैं और इस प्रकार, कचरे को सम्पदा (धन) में परिवर्तित करने के लिए एक व्यवहार्य रणनीति सामने आती है।
भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान नैनो और सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) में कार्यरत डॉ सी सथिस कुमार, डॉ नीना एस जॉन और डॉ एच.एस.एस. रामकृष्ण मत्ते भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान नैनो और सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस) ने हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) आर एंड डी ग्रीन सेंटर, बेंगलुरु के सहयोग से प्रदर्शित किया है कि ऊपर प्रयुक्त किया जा चुका उत्प्रेरक एक प्रभावी एवं कुशल द्वि-कार्यात्मक ऑक्सीजन इलेक्ट्रोकैटलिस्ट के रूप में काम करता है। यह इलेक्ट्रोकेमिकल ऑक्सीजन इवोल्यूशन (ओईआर) और ऑक्सीजन रिडक्शन रिएक्शन (ओआरआर) दोनों को उत्प्रेरित कर सकता है, जो ऐसी मुख्य क्रियाएं हैं जो धातु-वायु बैटरी के संचालन की सुविधा प्रदान करती हैं। यह शोध हाल ही में ‘सस्टेनेबल एनर्जी फ्यूल्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
प्रयुक्त किया जा चुका उत्प्रेरक ओईआर और ओआरआर की ओर 20 घंटे और 8 घंटे के लिए स्थिर वर्तमान घनत्व दिखाता है। साथ ही समग्र ऑक्सीजन इलेक्ट्रोकैटलिस्ट (ΔE) के लिए संभावित अंतर खर्च किए गए उत्प्रेरक की एक बेहतर द्वि-कार्यात्मक गतिविधि को प्रकट करता है। इसके अलावा, जेडएन-एयर बैटरियों में नियोजित खर्च किए गए उत्प्रेरक ने उच्च प्रतिवर्तीता के साथ 45 घंटे तक का सराहनीय चार्ज-डिस्चार्ज प्रदर्शन प्रदर्शित किया।
सेंटर फॉर हाई टेक्नोलॉजी (सीएचटी) – ऑयल एंड इंडस्ट्री डेवलपमेंट बोर्ड (ओआईडीबी), हाइड्रोजन कॉर्पस फंड द्वारा समर्थित कार्य ऊर्जा भंडारण अनुप्रयोगों के लिए औद्योगिक कचरे का प्रभावी ढंग से उपयोग करने में मदद करते हैं और इस प्रकार से एक स्थायी तरीके से हरित ऊर्जा का उत्पादन करते हैं।
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‘फोर कट्स’ रणनीति
1 फरवरी, 2021 को सैन्य तख्तापलट (military coup) में म्यांमार की निर्वाचित सरकार से सत्ता पर कब्जा करने के बाद म्यांमार की सेना, जिसे तातमाडॉ (Tatmadaw) के नाम से भी जाना जाता है, अपने शासन के प्रतिरोध पर नियंत्रण करने के लिए अपनी “फोर कट्स की रणनीति” पर लौट आई है।
पृष्ठभूमि
- एक स्वतंत्र शोधकर्ता के अनुसार, ‘फोर कट्स’ रणनीति पहली बार 1960 के दशक में विकसित की गई थी।
- म्यांमार की सेना ने यह रणनीति तब विकसित की थी जब वह बर्मा की कम्युनिस्ट पार्टी और म्यांमार के सबसे पुराने जातीय सशस्त्र समूह, करेन नेशनल यूनियन (Karen National Union) से लड़ने के लिए संघर्ष कर रही थी।
- उस समय के दौरान इसका उपयोग विशेष रूप से अय्यरवाडी डेल्टा क्षेत्र (Ayeyarwady Delta Region) और बागो योमा (Bago Yoma) पर्वत श्रृंखला में किया गया था।
- कैरन ह्यूमन राइट्स ग्रुप (Karen Human Rights Group) के नवा हटू (Naw Htoo) के अनुसार, KNU नियंत्रण वाले क्षेत्रों में सेना द्वारा ‘फोर कट’ रणनीति का इस्तेमाल किया गया था। इसने हर उस व्यक्ति और गांव को निशाना बनाया, जिसका KNU से संबंध था।
- 2011 में तातमाडॉ और काचिन इंडिपेंडेंस ऑर्गनाइजेशन (Kachin Independence Organization) के बीच संघर्ष विराम के बाद म्यांमार की सेना ने काचिन राज्य में फोर कट्स का इस्तेमाल किया है।
फोर कट रणनीति क्या है? (Four Cuts Strategy)
1948-1960 के मलय आपातकाल के दौरान म्यांमार सेना को ब्रिटिश रणनीतियों का अध्ययन करने का मौका मिलने के बाद 1968 में “फोर कट्स” सिद्धांत को अपनाया गया था। उस समय के दौरान, औपनिवेशिक सत्ता ने धीरे-धीरे एक कम्युनिस्ट विद्रोह को दबा दिया। “फोर कट्स” एक सिद्धांत था जिसे विद्रोहियों को उनके प्रमुख इनपुट जैसे फंडिंग, भोजन, खुफिया जानकारी और रंगरूटों से अलग करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। विद्रोहियों से निपटने के लिए इसे शुरू करने से पहले इस रणनीति पर सबसे पहले करेन विद्रोह के खिलाफ कार्यवाही की गयी थी। विद्रोहियों द्वारा नियंत्रित, आंशिक रूप से विद्रोही-नियंत्रित और सरकार द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों को प्रतिबिंबित करने के लिए सेना ने म्यांमार को काले, भूरे और सफेद क्षेत्रों में विभाजित किया। ‘ब्लैक जोन’ सेना के लिए फ्री-फायर एरिया थे।
म्यान्मार
म्यान्मा अथवा ब्रह्मदेश दक्षिण एशिया का एक देश है। इसका आधुनिक बर्मी नाम ‘मयन्मा’ है। बर्मी भाषा में र का उच्चारण य किया जाता है अतः सही उच्चारण म्यन्मा है। इसका पुराना अंग्रेज़ी नाम बर्मा था जो यहाँ के सर्वाधिक मात्रा में आबाद जाति (नस्ल) बर्मी के नाम पर रखा गया था। इसके उत्तर में चीन, पश्चिम में भारत, बांग्लादेश एवम् हिन्द महासागर तथा दक्षिण एवंम पूर्व की दिशा में थाईलैंड एवं लाओस देश स्थित हैं। यह भारत एवम चीन के बीच एक रोधक राज्य का भी काम करता है। इसकी राजधानी नाएप्यीडॉ और सबसे बड़ा शहर देश की पूर्व राजधानी यांगून है, जिसका पूर्व नाम रंगून था।
भूगोल
म्यान्मा दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा देश है, जिसका कुल क्षेत्रफ़ल ६,७८,५०० वर्ग किलोमीटर है। म्यान्मा विश्व का चॉलीसवां सबसे बड़ा देश है। इसकी उत्तर पूर्व सीमाएं भारत के मिज़ोरम, नागालॅण्ड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और बांग्लादेश के चिटगाँव प्रांत को मिलती है। उत्तर मे देश की सबसे लंबी सीमा तिब्ब्त और चीन के उनान प्रांत के साथ है। म्यान्मा के दक्षिण-पूर्व मे लाओस ओर थाईलैंड देश है। म्यान्मा की तट रेखा (१,९३० किलोमिटर) देश के कुल सीमा का एक तिहाई है। बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर देश के दक्षिण पश्चि्म और दक्षिण में क्रमशः पड़ते है। उत्तर में हेंगडुआन शान पर्वत चीन के साथ सीमा बनाते है।
म्यान्मा में तीन पर्वत श्रृंखलाएं है जो कि हिमालय से शुरु होकर उत्तर से दक्षिण दिशा मे फ़ैली हुई है। इनका नाम है रखिने योमा, बागो योमा और शान पठार। यह श्रृंखला म्यान्मा को तीन नदी तंत्र मे बांटती है। इनका नाम है ऎयारवाडी, सालवीन और सीतांग। ऎयारवाडी म्यान्मा कि सबसे लंबी नदी है। इसकी लंबाई २,१७० किलोमीटर है। मरतबन की खाड़ी मे गिरने से पहले यह नदी म्यान्मा के सबसे उपजाऊ भूमि से हो कर गुजरती है। म्यान्मा की अधिकतर जनसंख्या इसी नदी की घाटी मे निवास करती है जो कि रखिने योमा और शान पठार के बीच स्थित है।
देश का अधिकतम भाग कर्क रेखा और भूमध्य रेखा के बीच मे स्थित है। म्यान्मा एशिया महाद्वीप के मानसून क्षेत्र मे स्थित है, सालाना यहॉ के तटीय क्षेत्रों में ५००० मिलीमीटर, डेल्टा भाग में लगभग २५०० मिलीमीटर और मध्य म्यान्मा के शुष्क क्षेत्रों में १००० मिलीमीट वर्षा होती है।
SOURCE-GK TODAY
ताल ज्वालामुखी
फिलीपींस के वैज्ञानिकों के अनुसार, फिलीपींस का दूसरा सबसे सक्रिय ज्वालामुखी, ताल ज्वालामुखी, फिलीपींस में “असामान्य रूप से उच्च” ज्वालामुखी गैस उत्सर्जन के कारण कभी भी फट सकता है।
मुख्य बिंदु
- ज्वालामुखी के फटने की आशंका के कारण बटांगस प्रांत में ताल ज्वालामुखी के आसपास के उच्च जोखिम वाले गांवों से लगभग 3,000 निवासियों ने अपने घरों को छोड़ दिया है।
- ताल ज्वालामुखी के हाल के विस्फोट के बाद से, इस ज्वालामुखी में गैस और भाप के कई विस्फोट हुए हैं।
- विस्फोट के बाद देश में ज्वालामुखी सल्फर डाइऑक्साइड गैस उत्सर्जन का उच्चतम स्तर भी दर्ज किया गया था। सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जन लगभग 22,628 टन प्रतिदिन है।
पृष्ठभूमि
ताल में अंतिम विस्फोट 12 जनवरी, 2020 को देखा गया था। इसने आस-पास के क्षेत्रों से 3,76,000 से अधिक लोगों को विस्थापित किया था। ताल ज्वालामुखी 1572 से अब तक 33 बार फट चुका है।
ताल ज्वालामुखी (Taal Volcano)
ताल ज्वालामुखी फिलीपींस में बटांगस प्रांत में स्थित है। इसे फिलीपींस में सबसे सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है, जिसमें कुल 34 रिकॉर्ड किए गए ऐतिहासिक विस्फोट हैं। यह ज्वालामुखी रिंग ऑफ फायर का हिस्सा है। इस ज्वालामुखी को 1800 के दशक में बॉम्बो या बॉम्बन के नाम से जाना जाता था।
रिंग ऑफ़ फायर (Ring of Fire)
यह प्रशांत महासागर के रिम के आसपास का क्षेत्र है जहां कई ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप आते हैं। यह घोड़े की नाल के आकार की बेल्ट है जो लगभग 40,000 किमी लंबी और 500 किमी चौड़ी है। रिंग ऑफ फायर में दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अमेरिका और कामचटका के प्रशांत तट शामिल हैं।
SOURCE-GK TODAY