देश के किसानों और अन्य नागरिक समाज समूहों द्वारा RCEP से बाहर रहने के भारत के फैसले का अनुसरण करने के बाद फिलीपींस सीनेट ने RCEP के अनुसमर्थन (ratification) को स्थगित कर दिया है।
मुख्य बिंदु
- फिलीपींस ने भी डुटर्टे सरकार द्वारा हस्ताक्षरित मेगा व्यापार समझौते के खिलाफ अपने रुख में बदलाव किया है।
- फिलीपींस में किसानों, नागरिक समाज संगठनों, मछुआरों और निजी क्षेत्र के समूह द्वारा कड़े विरोध की पृष्ठभूमि में अनुसमर्थन स्थगित करने का निर्णय लिया गया था।
भारतीय विदेश मंत्री की मनीला यात्रा
13 फरवरी, 2022 से भारतीय विदेश मंत्री की मनीला की तीन दिवसीय यात्रा से पहले फिलीपींस ने यह निर्णय लिया है। भारत और फिलीपींस द्वारा जनवरी 2022 में 374.96 मिलियन अमरीकी डालर के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद यह यात्रा निर्धारित की गई थी। इस सौदे के तहत भारत फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात करेगा।
FFF द्वारा स्थिति पत्र
देश के Federation of Free Farmers (FFF) ने एक स्थिति पत्र जारी किया और किसानों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श की कमी के कारण देश की सीनेट से मुक्त व्यापार समझौते की सहमति को स्थगित करने का आग्रह किया। इसने प्रस्तावित RCEP नियमों पर भी चेतावनी दी जो “व्यापार उपायों की प्रभावशीलता और आवेदन में बाधा उत्पन्न करेंगे”।
‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’
RCEP कब पेश किया गया था?
RCEP को पहली बार नवंबर 2011 में इंडोनेशिया के बाली में 19वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान पेश किया गया था। इसके लिए बातचीत 2013 की शुरुआत में शुरू हुई थी।
क्या भारत RCEP का सदस्य है?
मूल रूप से, भारत 2011 में RCEP मसौदा समिति का सदस्य था। हालाँकि, 2019 में, भारत ने कुछ चिंताओं का हवाला देते हुए समझौते से बाहर होने का निर्णय लिया। इन चिंताओं में घरेलू उद्योगों को आयात से उत्पन्न जोखिम भी शामिल था।
Regional Comprehensive Economic Partnership-RCEP :
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), आसियान के दस सदस्य देशों तथा पाँच अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) द्वारा अपनाया गया एक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है।
- इस समझौते पर 15 नवंबर, 2020 को हस्ताक्षर किये गए।
- RCEP देश विश्व की एक-तिहाई आबादी और वैश्विक जीडीपी के 30% हिस्से (लगभग 26 ट्रिलियन से अधिक) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- RCEP की अवधारणा नवंबर 2011 में आयोजित 11 वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत की गई और नवंबर 2012 में कंबोडिया में आयोजित 12वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान इस समझौते की प्रारंभिक वार्ताओं की शुरुआत की गई।
- भारत के साथ अन्य 15 सदस्यों द्वारा इस समझौते पर वर्ष 2019 में हस्ताक्षर किये जाने का अनुमान था परंतु भारत द्वारा नवंबर 2019 में इस समझौते से स्वयं को अलग करने के निर्णय के बाद अब बाकी के 15 देशों द्वारा RCEP पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
समझौते से अलग होने का कारण :
- व्यापार घाटा : पिछले कुछ वर्षों के दौरान आसियान और एशिया के कुछ अन्य देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते के परिणामस्वरूप विभिन्न देशों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार घाटे में ही रहा है।
- केंद्रीय वित्त मंत्री के अनुसार, मुक्त और वैश्वीकृत अर्थव्यवस्था के नाम पर भारत में विदेशों से सब्सिडी युक्त उत्पादों के आयात और अनुचित उत्पादन लाभ की गतिविधियों की अनुमति दे दी गई है।
- केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 में RCEP के 11 देशों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार घाटे में रहा।
- स्थानीय उत्पादकों के हितों की रक्षा : इस समझौते में शामिल होने के पश्चात् भारत में स्थानीय और छोटे उत्पादकों को कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता है।
- RCEP समझौते के तहत सदस्य देशों के बीच वस्तुओं के आयात पर लगने वाले टैरिफ को 92% तक कम करने की बात कही गई है।
- उदाहरण के लिये आयात शुल्क में कटौती होने से भारत के कृषि, डेयरी उत्पाद और अन्य ‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम’ (MSMEs) जैसे अन्य संवेदनशील क्षेत्रों को क्षति हो सकती है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2019 में भारत में डेयरी उत्पादों के आयात पर औसत लागू टैरिफ 8%, जबकि औसत बाध्य टैरिफ 63.8% रहा। भारत में दुग्ध उत्पादन उद्योग छोटे स्तर पर परिवारों द्वारा पाले गए पशुओं के योगदान से संचालित होता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में औद्योगिक स्तर पर आधुनिक विधियों से दुग्ध उत्पादन किया जाता है।
- वर्ष 2017 में एक डेयरी फार्म में पशुओं के औसत झुंड का आकार अमेरिका में 191, ओशिनिया में 355, यूनाइटेड किंगडम में 148 और डेनमार्क में 160 था, जबकि भारत यह में सिर्फ 2 ही था।
RCEP से अलग होने का प्रभाव :
- RCEP से अलग होने के निर्णय के साथ भारत ने क्षेत्र के बड़े बाज़ारों तक अपनी पहुँच बढ़ाने का एक मौका खो दिया है।
- भारत के इस निर्णय के बाद RCEP सदस्यों के साथ भारत के द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के प्रभावित होने की आशंका भी बढ़ गई है क्योंकि इस समूह में शामिल अधिकांश देश RCEP के अंदर अपने व्यापार को मज़बूत करने को अधिक प्राथमिकता देंगे।
- ऑस्ट्रेलिया और जापान द्वारा भारत को RCEP में शामिल करने के कई असफल प्रयासों से इस बात की भी चिंता बनी हुई है कि भारत का निर्णय हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत-जापान-ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी को प्रभावित कर सकता है।
- हमारे पड़ोसी देशों द्वारा भारत पर महत्त्वपूर्ण निर्णयों और योजनाओं के कार्यान्वयन में देरी का आरोप लगाया जाता रहा है। हाल के वर्षों में भारत द्वारा ‘एक्ट ईस्ट नीति’ पर विशेष बल देने के बावजूद RCEP से बाहर रहने का निर्णय तर्कसंगत नहीं लगता।
SOURCE-DANIK JAGRAN
PAPER-G.S.2