प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस (World Hindi Day) के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व भर में लोगों में हिंदी भाषा के बारे में जागरूकता फैलाना है तथा हिंदी को एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में प्रस्तुत करना है।
10 जनवरी ही क्यों?
पहला विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी, 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में 30 देशों से प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। इस सम्मेलन की स्मृति में भारत सरकार ने 2006 से 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के रूप में मनाने के निर्णय लिया था।
यह हिंदी दिवस के अलग कैसे है?
हिंदी दिवस प्रतिवर्ष 14 सितम्बर को मनाया जाता है क्योंकि इस दिन हिंदी को आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गयी थी। 14 सितम्बर, 1949 को संविधान सभा ने हिंदी भाषा को भारत की अधिकारिक भाषा का दर्जा दिया था।
विश्व हिंदी दिवस का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी भाषा को प्रोत्साहन दिया है जबकि हिंदी दिवस को केवल राष्ट्रीय स्तर पर ही मनाया जाता है।
हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए संवैधानिक प्रावधान
राजभाषा अधिनियम-1963:
- राजभाषा अधिनियम, 1963 ( वर्ष 1967 में संशोधन) निम्नलिखित उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषाओं को निर्धारित करता है :
- संघ के आधिकारिक उद्देश्य के लिये भाषा;
- संसदीय कार्यवाही के लिये भाषा;
- केंद्रीय और राज्य अधिनियमों के लिये भाषा;
- उच्च न्यायालयों में निश्चित उद्देश्य के लिये भाषा।
राजभाषा पर समिति :
- समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह संघ के आधिकारिक उद्देश्यों के लिये हिंदी के उपयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करें तथा आवश्यक सिफारिशों के साथ इसे राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट सौंपे।
- राष्ट्रपति द्वारा रिपोर्ट को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा तथा इसे सभी राज्य सरकारों को भेजा जाएगा।
- राजभाषा समिति में तीस सदस्य शामिल होते हैं। जिनमें से 20 सदस्य लोक सभा से तथा दस सदस्य राज्य सभा से होते हैं।
- सदस्यों का चुनाव ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल हस्तांतरणीय मत प्रणाली’ के माध्यम से किया जाता है।
संवैधानिक प्रावधान :
- भारतीय संविधान के भाग-17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा से संबंधित उपबंध शामिल किये गए हैं। राजभाषा के उपबंध चार शीर्षकों; संघ की भाषा, क्षेत्रीय भाषाएँ, न्यायपालिका एवं विधि के पाठ एवं अन्य विशेष निर्देशों की भाषा के रूप में शामिल किये गए हैं।
संघ की भाषा :
- संविधान लागू होने के पंद्रह वर्षों (वर्ष 1950 से 1965 के बीच की अवधि) के बाद भी हिंदी के अलावा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग आधिकारिक रूप से जारी रहेगा। इसमें निम्नलिखित कार्य शामिल हैं :
- संघ के सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये भाषा।
- संसदीय कार्यवाही संचालन की भाषा।
क्षेत्रीय भाषा :
- संविधान में राज्यों के लिये किसी विशेष भाषा का उल्लेख नहीं किया गया। किसी राज्य की विधायिका उस राज्य में एक या अधिक भाषा अथवा हिंदी का चुनाव ‘आधिकारिक भाषा’ के रूप में कर सकती है।
- राज्यों द्वारा आधिकारिक भाषा का चुनाव संविधान की आठवीं अनुसूची में उल्लिखित भाषाओं तक सीमित नहीं है।
- केंद्र तथा राज्यों अथवा दो या अधिक राज्यों के बीच संवाद के रूप में अंग्रेजी अथवा हिंदी (हिंदी के प्रयोग के लिये सहमति आवश्यक) का प्रयोग किया जा सकेगा।
न्यायपालिका की भाषा एवं विधि पाठ :
- जब तक संसद अन्यथा उपबंध नहीं करती है :
- न्यायपालिका (सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय) की कार्यवाही अंग्रेजी में होगी।
- केंद्र स्तर पर विधेयकों, अधिनियम, अध्यादेश, नियमों, उप-नियमों की का आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में होगा।
- हालाँकि राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से हिंदी अथवा किसी अन्य राजभाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा का दर्जा दे सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी के प्रयोग के लिये ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
विशेष निर्देश :
- संविधान में भाषायी अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा तथा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिये कुछ विशिष्ट निर्देश यथा- भाषायी अल्पसंख्यकों की शिकायतों का निवारण, मातृभाषा में शिक्षा आदि दिये गए हैं।
आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ :
- संविधान की आठवीं सूची में 22 भाषाएँ (मूल रूप से 14) शामिल हैं। ये हैं- असमिया, बंगाली (बांग्ला), बोडो, डोगरी (डोंगरी), गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मैतेई (मणिपुरी), मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू।
SOURCE-DANIK JAGRAN
PAPER-G.S.2