अमेरिका द्वारा भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ लगाने की कार्यवाही और इसका भारत के लिए निहितार्थ:
परिचय:
- 2 अप्रैल, 2025 को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने “लिबरेशन डे” नामक पहल के तहत नए टैरिफ की एक श्रृंखला की घोषणा की, जिसका उद्देश्य लंबे समय से व्यापार असंतुलन को दूर करना है।
- इस नीति में सभी आयातों पर बेसलाइन 10% टैरिफ शामिल है, जो 5 अप्रैल से प्रभावी है, साथ ही विशिष्ट देशों पर उनके मौजूदा व्यापार प्रथाओं के आधार पर उच्च, पारस्परिक टैरिफ भी शामिल हैं।
- भारत भी प्रभावित देशों में से एक है, जिसे अमेरिका को अपने निर्यात पर 26% टैरिफ का सामना करना पड़ रहा है, जो 9 अप्रैल से प्रभावी होने वाला है।
- उल्लेखनीय है कि ये टैरिफ दरें तब तक प्रभावी रहेंगे जब तक राष्ट्रपति ट्रंप यह निर्धारित नहीं कर लेते कि “व्यापार घाटे और अन्तर्निहित गैर-पारस्परिक व्यवहार से उत्पन्न खतरा समाप्त, हल या कम हो गया है”।
अमेरिका ने भारत पर 26 प्रतिशत टैरिफ क्यों लगाया है?
- भारत पर 26% टैरिफ के पीछे का तर्क अमेरिकी प्रशासन के इस आकलन से उपजा है कि भारत अमेरिकी उत्पादों पर औसतन 52% टैरिफ लगाता है।
- राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि भारत हमसे 52% शुल्क (मुद्रा हेरफेर सहित टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं) ले रहा है और हम वर्षों और दशकों से लगभग कुछ भी नहीं ले रहे हैं।
- व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा कि भारत ने “अद्वितीय रूप से बोझिल” गैर-टैरिफ बाधाएं लगाए हैं, जिन्हें हटाने से अमेरिकी निर्यात में सालाना कम से कम 5.3 अरब डॉलर की वृद्धि होगी।
अमेरिका द्वारा यह टैरिफ घोषणा क्यों की गयी है?
- इस घोषणा को अमेरिकी इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक बताते हुए राष्ट्रपति ट्रंप ने इस कदम को अमेरिका की “आर्थिक स्वतंत्रता की घोषणा” बताया।
- उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसके जरिये अमेरिका के लिए “स्वर्ण युग” का वादा किया है, उन्होंने दावा किया है कि उनके पारस्परिक टैरिफ से नौकरियां और कारखाने वापस अमेरिका आएंगे और साथ ही करों को कम करने और राष्ट्रीय ऋण का भुगतान करने के लिए “खरबों डॉलर” पैदा होंगे। उनके अनुसार इस टैरिफ योजना से अमेरिका में 6 ट्रिलियन डॉलर का निवेश आएगा।
- साथ ही उन्होंने विश्व नेताओं को चेतावनी भी जारी की, जिसमें कहा गया कि अगर वे उनके “पारस्परिक टैरिफ” से छूट चाहते हैं, तो उन्हें अपनी व्यापार नीतियों को बदलना होगा।
अन्य देशों की व्यापार बाधाओं के खिलाफ कदम:
- विदेशी व्यापार बाधाओं पर अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए, राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि दशकों से, अमेरिका ने अन्य देशों के लिए व्यापार बाधाओं को कम किया है, जबकि उन देशों ने अमेरिकी उत्पादों पर भारी बाधाएं लगाई हैं।
- चीन का स्पष्ट संदर्भ देते हुए, राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि देशों ने “अपनी मुद्राओं में हेरफेर किया है, अपने निर्यात को सब्सिडी दी है, हमारी बौद्धिक संपदा चुराई है, और गंदे प्रदूषण वाले ठिकाने बनाते हुए अनुचित नियम और तकनीकी मानक अपनाए हैं”।
भारत में व्यापार बाधाओं पर USTR रिपोर्ट:
- व्यापार बाधाओं पर USTR रिपोर्ट ने भारत द्वारा वनस्पति तेल, सेब, मक्का, मोटरसाइकिल, ऑटोमोबाइल, फूल, प्राकृतिक रबर, कॉफी, किशमिश, अखरोट और मादक पेय पदार्थों सहित कई प्रकार के सामानों पर लगाए गए उच्च टैरिफ की आलोचना की थी।
- इसके अनुसार भारत के WTO-बद्ध और लागू टैरिफ दरों के बीच का अंतर भारत सरकार को टैरिफ को अप्रत्याशित रूप से समायोजित करने की अनुमति देता है, जिससे अमेरिकी हितधारकों के लिए अनिश्चितता पैदा होती है।
- इस रिपोर्ट ने दूध, सूअर का मांस और मछली उत्पादों के आयात पर भारत के नियमों को चिह्नित किया, जिसमें कहा गया कि उन्हें “वैज्ञानिक या जोखिम-आधारित औचित्य प्रदान किए बिना” आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) मुक्त प्रमाणपत्र की आवश्यकता होती है।
- इस रिपोर्ट ने भारत के कृषि सहायता कार्यक्रमों पर लंबे समय से चली आ रही अमेरिकी चिंता को दोहराया, जो अमेरिका के अनुसार, बाजारों को विकृत करते हैं। हालांकि, भारतीय अधिकारियों ने तर्क दिया है कि किसानों के लिए अमेरिकी सब्सिडी भारत द्वारा प्रदान की जाने वाली सब्सिडी से बहुत अधिक है।
पारस्परिक टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निहितार्थ:
- उल्लेखनीय है कि अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 26% के पारस्परिक टैरिफ का भारत की अर्थव्यवस्था पर अनेक संभावित गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं:
भारतीय निर्यात पर प्रभाव:
- अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और कई भारतीय उद्योग अमेरिकी मांग पर निर्भर हैं।
- आईटी और सॉफ्टवेयर सेवाएं: भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका से भारी राजस्व अर्जित करती हैं। टैरिफ से उनकी लागत बढ़ेगी और प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है।
- ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स: टाटा मोटर्स और महिंद्रा जैसी कंपनियों का निर्यात प्रभावित होगा, जिससे भारतीय वाहनों की लागत अमेरिका में बढ़ जाएगी।
निर्यात-आधारित उद्योगों की विकास दर में गिरावट:
- भारत की GDP वृद्धि दर पर असर पड़ सकता है, क्योंकि निर्यात भारतीय अर्थव्यवस्था का 20% से अधिक हिस्सा है।
- जिन कंपनियों का अमेरिका पर अधिक निर्भरता है, उन्हें नए ऑर्डर मिलने में कठिनाई हो सकती है, जिससे नौकरियों पर भी असर पड़ेगा।
विदेशी निवेश (FDI) में गिरावट की संभावना:
- भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में अस्थिरता के कारण अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश करने से बच सकती हैं।
- ‘मेक इन इंडिया’ जैसी योजनाओं पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि कंपनियां भारतीय उत्पादन में निवेश करने से हिचकिचा सकती हैं।
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