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आदिवासी और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में दाल उत्पादन को बढ़ावा देने का ‘पायलट’ पहल:

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आदिवासी और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में दाल उत्पादन को बढ़ावा देने का ‘पायलट’ पहल:

चर्चा में क्यों हैं?

  • भारत सरकार, झारखंड और छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों और आदिवासी क्षेत्रों में दलहन विशेष रूप से ‘अरहर’ और ‘उड़द’ की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। इस पहल का मकसद दलहन उत्पादन और किसानों की आय को बढ़ावा देना है।
  • यह पहल, गैर-पारंपरिक दाल उगाने वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है, एक पायलट परियोजना है जिसे सफल होने पर पूरे देश में विस्तारित किया जा सकता है, जिससे आयात पर भारत की निर्भरता कम हो सकती है।

 NCCF के द्वारा परियोजना का संचालन:

  • इस परियोजना को संचालित करने का काम ‘भारतीय राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ लिमिटेड (NCCF)’ को सौंपा गया है। इसने झारखंड में चार और छत्तीसगढ़ में पांच जिलों को इसके क्रियान्वयन के लिए चिन्हित किया है। इसके तहत लक्षित जिलों में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव, जशपुर, बस्तर और मोहला मानपुर तथा झारखंड के पलामू, कटिहार, दुमका और गढ़वा शामिल हैं।
  • इस योजना के तहत चालू खरीफ सीजन के लिए हाइब्रिड बीज वितरित किए गए हैं। किसानों को सहकारी समिति को अपनी उपज बेचने के लिए NCCF के ई-संयुक्ति पोर्टल पर पहले से पंजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। कम तकनीक-प्रेमी किसानों के लिए ऑफ़लाइन आवेदन उपलब्ध हैं।
  • NCCF न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उत्पादित दालों की खरीद करेगा, लेकिन अगर बाजार मूल्य एमएसपी से अधिक हो तो किसान निजी व्यापारियों को भी बेच सकते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि सुनिश्चित खरीद प्रक्रिया, किसानों को खेती का विस्तार करने और अपनी आय में सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करेगी, जबकि भारत के दाल आयात को कम करने में मदद करेगी।
  • NCCF, जो सरकारी बफर स्टॉक के लिए दालों की खरीद करता है, इस पहल के माध्यम से अपने लक्ष्य की आधी मात्रा प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।

भारी मांग के बावजूद घट रही है भारत में दाल की खेती:

  • उल्लेखनीय है कि दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक होने के बावजूद भारत इस मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। खासकर दाल की खेती के सिकुड़ते इलाके ने इस सवाल को और गंभीर बना दिया है।
  • दलहन या दालों की खेती के मामले में भारत पूरी दुनिया में पहले नंबर पर है। दुनिया में पैदा होने वाली दालों का करीब 28 फीसदी यहीं पैदा होता है। दुनिया भर में जितनी दाल खाई जाती है उसकी 27 फीसदी खपत भी यहीं हैं। इतना ही नहीं, दाल के आयात में भी भारत पहले नंबर पर है।

फिर भी आसान नहीं है दाल उगाना:

  • हालांकि कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि दलहन की खेती में विभिन्न समस्याओं और बढ़ती लागत के कारण किसान दूसरी फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसकी वजह से खपत के लिहाज से मांग पूरी करने के लिए आयात पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है। ऐसा नहीं है कि देश में उत्पादन नहीं बढ़ा है, लेकिन दिक्कत यह है कि उत्पादन के मुकाबले मांग ज्यादा तेजी से बढ़ रही है।
  • कृषि मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक, साल 2050 तक करीब 320 लाख टन दलहन की जरूरत होगी। ऐसे में अगर इसकी खेती का दायरा बढ़ा नहीं तो आयात पर निर्भरता कम होना मुश्किल है।

 

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