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मंगल ग्रह की धूल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए स्वास्थ्य जोखिम क्यों उत्पन्न कर सकती है?

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मंगल ग्रह की धूल अंतरिक्ष यात्रियों के लिए स्वास्थ्य जोखिम क्यों उत्पन्न कर सकती है?

चर्चा में क्यों है?

  • एक नए अध्ययन के अनुसार, मंगल ग्रह की धूल से अंतरिक्ष यात्रियों में श्वसन संबंधी समस्याएं और बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है। इसमें पाया गया कि धूल के बारीक कण फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं। यह अध्ययन, ‘भविष्य के मानव अंतरिक्ष अन्वेषण पर मंगल ग्रह की धूल के संभावित स्वास्थ्य प्रभाव, उपचार और प्रतिवाद’, हाल ही में जियोहेल्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
  • उल्लेखनीय है कि यह निष्कर्ष महत्वपूर्ण है क्योंकि नासा और चीन की मानवयुक्त अंतरिक्ष एजेंसी अगले दशक में अपने अंतरिक्ष यात्रियों को मंगल ग्रह पर भेजने की योजना बना रही है। उनके मिशन में अंतरिक्ष यात्रियों को महीनों तक मंगल ग्रह पर रहना शामिल है।
  • ध्यातव्य है कि हर मंगल वर्ष (जो 686.98 पृथ्वी दिनों तक रहता है), ग्रह पर क्षेत्रीय धूल के तूफान आते हैं। हर तीन मंगल वर्ष में ये तूफान, ग्रह को घेरने वाले धूल के तूफानों में बदल जाते हैं।

मंगल ग्रह की धूल कण का अंतरिक्ष यात्रियों पर क्या दुष्प्रभाव पड़ सकता हैं? 

  • शोधकर्ताओं ने पाया कि मंगल ग्रह की धूल के कण का आकार काफी छोटा है (यह मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 4% है), जो इसे मनुष्यों के लिए अधिक खतरनाक बनाता है। मंगल ग्रह पर धूल के कणों का औसत आकार हमारे फेफड़ों में मौजूद बलगम के न्यूनतम आकार से बहुत छोटा है, इसलिए वे बीमारी का कारण बनने की अधिक संभावना रखते हैं।
  • इसके अलावा, ऐसे कई जहरीले तत्व हो सकते हैं, जिनके संपर्क में अंतरिक्ष यात्री आ सकते हैं। उदाहरण के लिए, सिलिका धूल और लोहे की धूल की बहुतायत है। सिलिका सिलिकोसिस का कारण बनता है, जो एक प्रकार का फेफड़ों का रोग है।
  • मंगल ग्रह की धूल में परक्लोरेट्स और जिप्सम जैसे जहरीले पदार्थ और क्रोमियम और आर्सेनिक जैसी हानिकारक धातुएँ भी शामिल हैं। मंगल ग्रह पर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण और विकिरण के कारण इन विषाक्त पदार्थों का प्रभाव अधिक महत्वपूर्ण हो सकता है। विशेष रूप से, विकिरण के संपर्क में आने से फेफड़ों की बीमारी हो सकती है, जो अंतरिक्ष यात्रियों के फेफड़ों पर धूल के प्रभाव को और बढ़ा सकती है।

मंगल ग्रह की धूल से कैसे निपटा जा सकता है?

  • शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में धूल के प्रदूषण को सीमित करने के विभिन्न तरीकों का वर्णन किया है। उदाहरण के लिए, उन्होंने क्रोमियम के संपर्क से होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए विटामिन सी के उपयोग का सुझाव दिया है। शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि आयोडीन परक्लोरेट से होने वाली थायराइड बीमारियों से निपटने में मदद कर सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि धूल के संपर्क को सीमित करने के लिए एयर फिल्टर, सेल्फ-क्लीनिंग स्पेस सूट और इलेक्ट्रोस्टैटिक रिपल्शन डिवाइस (जो धूल के कणों को हटाते हैं) का उपयोग आवश्यक है। जोखिम को कम करने के लिए ऐसे उपाय आवश्यक हैं क्योंकि “मंगल ग्रह पर जाने वाले मिशन के पास उपचार के लिए पृथ्वी पर तेजी से लौटने की सुविधा नहीं है।”

मंगलयान या मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM):

  • मंगल ग्रह पर भारत का पहला अंतरग्रहीय मिशन, मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) 05 नवंबर, 2013 को पीएसएलवी-सी25 पर लॉन्च किया गया था।
  • इसरो मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान भेजने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई है।
  • MOM मंगल ग्रह की सतह की विशेषताओं, आकृति विज्ञान, खनिज विज्ञान और मंगल ग्रह के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए पांच वैज्ञानिक पेलोड ले गया था। हालांकि डिज़ाइन किए गए मिशन का जीवन 6 महीने था, MOM ने 24 सितंबर, 2021 को अपनी कक्षा में 7 साल पूरे कर किये थे।

साभार: द इंडियन एक्सप्रेस

 

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