Current Affair 10 June 2021

CURRENT AFFAIRS – 10th JUNE 2021

जी7 (G7)

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी 12 और 13 जून को वर्चुअल प्रारूप में होने वाले जी7 के शिखर सम्मेलन के आउटरीच सत्रों में भाग लेंगे। वर्तमान में ब्रिटेन के पास ही जी7 की अध्‍यक्षता है और उसने ऑस्ट्रेलिया, कोरिया गणराज्य एवं दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ भारत को भी जी7 के शिखर सम्मेलन के लिए अतिथि देशों के रूप में आमंत्रित किया है। यह बैठक हाइब्रिड मोड में होगी।

शिखर सम्मेलन की थीम ‘टिकाऊ सामाजिक-औद्योगिक बहाली’ है और ब्रिटेन ने अपनी अध्यक्षता के लिए प्राथमिकता वाले चार क्षेत्रों की रूपरेखा तैयार की है जो ये हैं: भविष्य की महामारियों के खिलाफ और अधिक सुदृढ़ता सुनिश्चित करते हुए कोरोना वायरस से वैश्विक स्‍तर पर उबरने के प्रयासों की अगुवाई करना; मुक्त एवं निष्पक्ष व्यापार का समर्थन करके भावी समृद्धि को बढ़ावा देना; जलवायु परिवर्तन से निपटना एवं हमारी धरती की जैव विविधता का संरक्षण करना; और साझा मूल्यों एवं खुले समाज की हिमायत करना। राजनेताओं से यह उम्मीद की जाती है कि वे स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर फोकस करते हुए महामारी से वैश्विक स्‍तर पर उबरने के लिए आगे की राह पर अपने-अपने विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।

यह दूसरी बार है जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी जी7 की बैठक में भाग लेंगे। भारत को वर्ष 2019 में जी7 की फ्रांसीसी अध्‍यक्षता द्वारा बियारिट्ज शिखर सम्मेलन में ‘सद्भावना साझेदार’ के रूप में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था और प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने ‘जलवायु, जैव विविधता एवं महासागर’ और ‘डिजिटल बदलाव’ पर आयोजित सत्रों में भाग लिया था।

सात का समूह या जी7 या

जी7 कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका का एक समूह है। समूह खुद को “कम्यूनिटी ऑफ़ वैल्यूज” यानी मूल्यों का आदर करने वाला समुदाय मानता है। स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की सुरक्षा, लोकतंत्र और क़ानून का शासन और समृद्धि और सतत विकास, इसके प्रमुख सिद्धांत हैं।

यह देश, दुनिया की सात सबसे बड़ी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ,वैश्विक शुद्ध सम्पत्ति ($280 ट्रिलियन) का 62% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी7 देश नाममात्र मूल्यों के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 46% से अधिक और क्रय-शक्ति समता के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 32% से अधिक का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी7 शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ भी प्रतिनिधित्व करता है।

यह क्या करता है?

शुरुआत में यह छह देशों का समूह था, जिसकी पहली बैठक 1975 में हुई थी। इस बैठक में वैश्विक आर्थिक संकट के संभावित समाधानों पर विचार किया गया था। अगले साल कनाडा इस समूह में शामिल हो गया और इस तरह यह जी7 बन गया।

जी7 देशों के मंत्री और नौकरशाह आपसी हितों के मामलों पर चर्चा करने के लिए हर साल मिलते हैं। प्रत्येक सदस्य देश बारी-बारी से इस समूह की अध्यक्षता करता है और दो दिवसीय वार्षिक शिखर सम्मेलन की मेजबानी करता है।

यह प्रक्रिया एक चक्र में चलती है। ऊर्जा नीति, जलवायु परिवर्तन, एचआईवी-एड्स और वैश्विक सुरक्षा जैसे कुछ विषय हैं, जिन पर पिछले शिखर सम्मेलनों में चर्चाएं हुई थीं।

शिखर सम्मेलन के अंत में एक सूचना जारी की जाती है, जिसमें सहमति वाले बिंदुओं का जिक्र होता है। सम्मलेन में भाग लेने वाले लोगों में जी7 देशों के राष्ट्र प्रमुख, यूरोपीयन कमीशन और यूरोपीयन काउंसिल के अध्यक्ष शामिल होते हैं।

शिखर सम्मेलन में अन्य देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों को भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इस साल भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है।

जी7 कितना प्रभावी?

जी7 की आलोचना यह कह कर की जाती है कि यह कभी भी प्रभावी संगठन नहीं रहा है, हालांकि समूह कई सफलताओं का दावा करता है, जिनमें एड्स, टीबी और मलेरिया से लड़ने के लिए वैश्विक फंड की शुरुआत करना भी है। समूह का दावा है कि इसने साल 2002 के बाद से अब तक 2.7 करोड़ लोगों की जान बचाई है।

समूह यह भी दावा करता है कि 2016 के पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने के पीछे इसकी भूमिका है, हालांकि अमरीका ने इस समझौते से अलग हो जाने की बात कही है।

चीन इस समूह का हिस्सा क्यों नहीं है?

चीन दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवथा है, फिर भी वो इस समूह का हिस्सा नहीं है. इसकी वजह यह है कि यहां दुनिया की सबसे बड़ी आबादी रहती हैं और प्रति व्यक्ति आय संपत्ति जी7 समूह देशों के मुक़ाबले बहुत कम है।

ऐसे में चीन को उन्नत या विकसित अर्थव्यवस्था नहीं माना जाता है, जिसकी वजह से यह समूह में शामिल नहीं है। हालांकि चीन जी20 देशों के समूह का हिस्सा है, इस समूह में शामिल होकर वह अपने यहां शंघाई जैसे आधुनिकतम शहरों की संख्या बढ़ाने पर काम कर रहा है।

रूस भी कभी शामिल था?

साल 1998 में इस समूह में रूस भी शामिल हो गया था और यह जी7 से जी8 बन गया था। लेकिन साल 2014 में यूक्रेन से क्रीमिया हड़प लेने के बाद रूस को समूह से निलंबित कर दिया गया था। राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का मानना है कि रूस को समूह में फिर से शामिल किया जाना चाहिए “क्योंकि वार्ता की मेज पर हमारे साथ रूस होना चाहिए।”

जी7 के सामने चुनौतियां

समूह की आलोचना इस बात के लिए भी की जाती है कि इसमें मौजूदा वैश्विक राजनीति और आर्थिक मुद्दों पर बात नहीं होती है।

अफ्रीका, लैटिन अमरीका और दक्षिणी गोलार्ध का कोई भी देश इस समूह का हिस्सा नहीं है। भारत और ब्राज़ील जैसी तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं से इस समूह को चुनौती मिल रही है जो जी20 समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन जी7 का हिस्सा नहीं हैं।

कुछ वैश्विक अर्थशास्त्रियों का कहना है कि जी20 के कुछ देश 2050 तक जी7 के कुछ सदस्य देशों को पीछे छोड़ देंगे।

SOURCE-PIB& BBC NEWS

 

कृषि निर्यात में शानदार वृद्धि

भारत सरकार के वाणिज्य विभाग के सचिव डॉ. अनूप वधावन ने आज कहा कि 2020-21 के दौरान कृषि निर्यात ने शानदार प्रदर्शन किया है। मीडिया के साथ बातचीत करते हुए, उन्होंने जानकारी दी कि पिछले तीन वर्षों (2017-18 में 38.43 बिलियन डॉलर, 2018-19 में 38.74 बिलियन डॉलर तथा 2019-20 में 35.16 बिलियन डॉलर) तक स्थिर बने रहने के बाद 2020-21 के दौरान कृषि एवं संबद्ध उत्पादों (समुद्री तथा बागान उत्पादों सहित) का निर्यात तेजी से बढ़कर 41.25 बिलियन डॉलर तक पहुंचा जो 17.34 प्रतिशत की बढोतरी को इंगित करता है। रुपये के लिहाज से यह वृद्धि 22.62 प्रतिशत है जो 2019-20 के 2.49 लाख करोड़ रुपये की तुलना में बढ़कर 2020-21 के दौरान 3.05 लाख करोड़ रुपये तक जा पहुंचा। 2019-20 के इौरान भारत का कृषि और संबद्ध आयात 20.64 बिलियन डॉलर था और 2020-21 के तदनुरुपी आंकड़ें 20.67 बिलियन डॉलर के हैं। कोविड-19 के बावजूद, कृषि में व्यापार संतुलन में 42.16 प्रतिशत का सुधार आया है जो 14.51 बिलियन डॉलर से बढ़कर  20.58 बिलियन डॉलर हो गया।

कृषि उत्पादों (समुद्री तथा बागान उत्पादों को छोड़कर) के लिए वृद्धि 28.36 प्रतिशत है जो 2019-20 के 23.23 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2020-21 के दौरान 29.81 प्रतिशत तक जा पहंचा। भारत कोविड-19 अवधि के दौरान स्टेपल के लिए बढ़ी हुई मांग का लाभ उठाने में सक्षम रहा है।

अनाजों के निर्यात में भारी वृद्धि देखी गई है जिसमें गैर-बासमती चावल का निर्यात 136.04 प्रतिशत बढ़कर 4794.54 मिलियन डॉलर का रहा, गेहूं का निर्यात 774.17 प्रतिशत बढ़कर 549.16 मिलियन डॉलर का रहा, तथा अन्य अनाजों (मिलेट, मक्का तथा अन्य मोटे अनाज) का निर्यात 238.28 प्रतिशत बढ़कर 694.14 मिलियन डॉलर का रहा।

अन्य कृषि संबंधी उत्पादों, जिनके निर्यात में 2019-20 के दौरान उल्लेखनीय बढोतरी दर्ज कराई गई, में आयल मील (1575.34 मिलियन डॉलर-90.28 प्रतिशत की बढोतरी), चीनी (2789.97 मिलियन डॉलर-41.88 प्रतिशत की बढोतरी), कच्चा कपास (1897.20 मिलियन डॉलर-79.43 प्रतिशत की बढोतरी), ताजी सब्जियां (721.47 मिलियन डॉलर-10.71 प्रतिशत की बढोतरी) और वेजीटेबल आयल (602.77 मिलियन डॉलर-254.39 प्रतिशत की बढोतरी) शामिल हैं।

भारत के कृषि उत्पादों के सबसे बड़े बाजारों में अमेरिका, चीन, बांग्लादेश, यूएई, वियतनाम, सऊदी अरब, इंडोनेशिया, नेपाल, ईरान और मलेशिया शामिल हैं। इनमें से अधिकांश गंतव्यों ने वृद्धि प्रदर्शित की है जिसमें सर्वाधिक वृद्धि इंडोनेशिया (102.42 प्रतिशत), बाग्लादेश (95.93 प्रतिशत) और नेपाल (50.49 प्रतिशत) में दर्ज की गई।

अदरक, काली मिर्च, दाल चीनी, इलायची, हल्दी, केसर आदि जैसे मसालों जो उपचारात्मक गुणों के लिए जाने जाते हैं, के निर्यात में भी भारी बढोतरी दर्ज की गई है। 2020-21 के दौरान, काली मिर्च के निर्यात में 28.72 प्रतिशत की बढोतरी हुई जो बढ़कर 1269.38 मिलियन तक जा पहुंचा, दाल चीनी के निर्यात में 64.47 प्रतिशत की बढोतरी हुई जो बढ़कर 11.25 मिलियन तक जा पहुंचा, जायफल, जावित्री और इलायची के निर्यात में 132.03 प्रतिशत की बढोतरी हुई (जो 81.60 मिलियन डॉलर से बढ़कर 189.34 मिलियन तक जा पहुंचा), अदरक, केसर, हल्दी, अजवायन, तेज पत्ता आदि के निर्यात में 35.44 प्रतिशत की बढोतरी हुई जो बढ़कर 570.63 मिलियन तक जा पहुंचा। मसालों के निर्यात ने 2020-21 के दौरान लगभग 4 बिलियन डॉलर का अब तक का सर्वोच्च स्तर छू लिया।

2020-21 के दौरान जैविक निर्यात 1040 मिलियन डॉलर का रहा जो 2019-20 में 689 मिलियन डॉलर का था, यह 50.94 प्रतिशत की बढोतरी दर्शाता है। जैविक निर्यातों में ऑयल केक/मील, तिलहन, अनाज एवं बाजरा, मसाले एवं कोंडीमंट (छौंक), चाय, औषधीय पादप उत्पाद, सूखे मेवे, चीनी, दलहन, काफी आदि शामिल हैं।

पहली बार कई क्लस्टरों से भी निर्यात हुए हैं। उदाहरण के लिए, वाराणसी से ताजी सब्जियों तथा चंदौली से काले चावल का पहली बार निर्यात हुआ है जिससे उस क्षेत्र के किसानों को सीधा लाभ हासिल हुआ है। अन्य क्लस्टरों अर्थात नागपुर से संतरे, थेनी और अनंतपुर से केले, लखनऊ से आम आदि से भी निर्यात हुए हैं। महामारी के बावजूद, मल्टीमोडल मोड द्वारा ताजी बागवानी ऊपज का निर्यात हुआ और खेपों को इन क्षेत्रों से हवाई जहाज और समुद्र के रास्ते दुबई, लंदन तथा अन्य गंतव्यों पर भेजा गया। मार्केट लिंकेज के लिए विभाग, फसल उपरांत वैल्यू चेन विकास तथा एफपीओ जैसे संस्थागत संरचनाओं की आरंभिक सहायता से पूर्वोत्तर के किसान भारतीय सीमाओं से आगे भी अपने मूल्य वर्द्धित उत्पादों को भेज सकने में सक्षम हुए।

अनाज निर्यात का प्रदर्शन भी 2020-21 के दौरान बहुत अच्छा रहा है। हम पहली बार कई देशों को निर्यात करने में सक्षम रहे हैं। उदाहरण के लिए, चावल का तिमोर-लेस्टे, प्यूर्तो रिको, ब्राजील आदि जैसे देशों में निर्यात किया गया है। इसी प्रकार, गेहूं का निर्यात भी यमन, इंडोनेशिया, भूटान आदि देशों में किया गया है और अन्य अनाजों का निर्यात सूडान, पोलैंड बोलिविया आदि को किया गया है।

कोविड-19 महामारी के दौरान किए गए उपाय

अपीडा, म्पीडा तथा कमोडिटी बोर्डों ने निर्बाधित निर्यात सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न मान्यताओं/प्रत्यायनों अर्थात पैकहाउस रिकौगनिशन, पीनट यूनिट रजिस्ट्रेशन, रजिस्ट्रेशन-कम-मेंबरशिप सर्टिफिकेट्स, इंटीग्रेटेड मीट प्लांट रिकौगनिशन, चीन एवं अमेरिका को चावल के निर्यात के लिए प्लांट का रजिस्ट्रेशन, राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के तहत सर्टिफिकेशनों एवं प्रत्यायनों की वैधता को व्यापक विस्तार उपलब्ध कराया है।

निर्यात के लिए आवश्यक विभिन्न प्रमाणपत्रों को ऑॅनलाइन जारी करने के लिए भी व्यवस्थाएं की गई हैं।

चूंकि, कोविड-19 महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेलों का आयोजन नहीं किया जा रहा है, अपीडा ने भारतीय निर्यातकों एवं आयातकों के बीच संपर्क स्थापित करने के लिए वर्चुअल ट्रेड फेयर (वीटीएफ) के आयोजन के लिए एक इन-हाउस प्लेटफार्म डेवेलप किया है। दो वीटीएफ-भारतीय चावल एवं कृषि कमोडिटी शो‘ तथा भारतीय फल, सब्जियों तथा फ्लोरीकल्चर शो का पहले ही आयोजन किया जा चुका है। अपीडा 2021-22 के दौरान, इंडियन प्रोसेस्ड फूड शो, इंडियन मीट एंड पोल्ट्री शो, इंडियन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट शो का भी आयोजन करेगा।

कृषि निर्यात नीति और निर्यात संवर्धन उपायों का कार्यान्वयन

सरकार द्वारा अब तक की पहली कृषि निर्यात नीति (एईपी) दिसंबर 2018 में लागू की गई। एईपी के कार्यान्वयन की प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में, 18 राज्यों अर्थात महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, केरल, नगालैंड, तमिलनाडु, असम, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मणिपुर, सिक्किम, मिजोरम एवं उत्तराखंड तथा दो केंद्र शासित प्रदेशों अर्थात लद्वाख और अंडमान निकोबार द्वीपसमूह ने राज्य विशिष्ट कार्य योजना को अंतिम रूप दे दिया है। 25 राज्यों एवं 4 यूटी में राज्य स्तरीय निगरानी समितियां गठित कर दी गई हैं।

क्लस्टर विकास

कृषि निर्यात नीति के एक हिस्से के रूप में, निर्यात संवर्धन के लिए 46 अनूठे उत्पाद-जिला क्लस्टरों की पहचान की गई है। 29 क्लस्टर स्तर समितियों का विभिन्न क्लस्टरों में गठन किया गया है।

निर्यात के लिए क्लस्टर एक्टीवेशन: वाणिज्य विभाग ने क्लस्टरों के एक्टीवेशन के लिए एफपीओ तथा निर्यातकों को लिंक करने के लिए अपीडा के जरिये कदम उठाया। कथित लिकिंग के बाद, ट्रांसपोर्टशन/लॉजिस्टिक मुद्वों का समाधान किया गया तथा लैंड लॉक्ड क्लस्टरों से निर्यात किया गया।

मिडल ईस्ट पर फोकस

मिडल ईस्ट के देशों में कृषि को बढ़ावा देने के लिए, इन देशों में भारतीय मिशनों के परामर्श से देश विशिष्ट कृषि निर्यात कार्यनीति तैयार की गई है। संभावित आयातक के साथ परस्पर संपर्क करने के लिए भारतीय निर्यातकों को एक मंच उपलब्ध कराने के लिए संबंधित देशों के भारतीय मिशनों के सहयोग से संभावित देशों में वर्चुअल क्रेता विक्रेता बैठकों का आयोजन किया गया

बाजार पहुंच

विभाग कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग के सहयोग से विदेशी बाजारों में भारतीय उत्पादों के लिए बाजार पहुंच अर्जित करने के लिए लगातार प्रयास करता रहा है।

भारत ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया में अनार के लिए, अर्जेंटीना में आम और बासमती चावल के लिए, ईरान में गाजर के बीज के लिए, उजबेकिस्तान में गेहूं के आटे, बासमती चावल, अनार एरिल, आम, केला तथा सोयाबीन आयलकेक के लिए, भूटान में टमाटर, भिंडी और प्याज के लिए तथा सर्बिया में नारंगी के लिए बाजार पहुंच हासिल की।

नए उत्पादों पर फोकस

कृषि उत्पादो के भारत के निर्यात बास्केट को विस्तारित करने तथा भारत के विशिष्ट उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

जैविक रूप से प्रमाणित मोरिएंगा पत्ति पावडर (2 एमटी) और तमिलनाडु के कंभकोनम के मोरिएंगा वैक्यूम फ्रीज ड्रायड स्थानिक विलेज राइस के सात अनूठे मूल्य वर्द्धित उत्पादों को ऑॅस्ट्रेलिया, वियतनाम तथा घाना के विविध गंतव्यों में।

बिहार की शाही लीची का 24 मई, 2021 को हवाई जहाज से ब्रिटेन निर्यात किया गया।

ताजे कटहल (1.2 एमटी) का त्रिपुरा से लंदन निर्यात किया गया।

SOURCE-PIB

 

हाईब्रिड मल्टीप्लाई फेस मास्क

कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया में इनसानों पर कहर बरसा दिया है। मौजूदा परिस्थिति में रक्षा की पहली पंक्ति में सेनीटाईजर, फेस मास्क और कोविड-19 से बचने वाले सामाजिक आचरण शामिल हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मास्क लगाने की सिफारिश की है। उसने यह भी कहा है कि मास्क लगाने से कोविड-19 का फैलाव सीमित हो जाता है। इस सिलसिले में एन-95 फेस मास्क को खासतौर से ज्यादा कारगर माना गया है। यह मास्क पीड़ित व्यक्ति से स्वस्थ लोगों तक वायरस पहुंचने की प्रक्रिया को ज्यादा प्रभावकारी तरीके से कम कर देता है। लेकिन, एन-95 मास्क कई लोगों के लिये असुविधाजनक होता है और ज्यादातर ये मास्क धोये नहीं जा सकते।

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बाइरैक) और आईकेपी नॉलेज पार्क इस सिलसिले में फास्ट-ट्रैक कोविड-19 निधि के तहत परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. की सहायता कर रहे हैं, ताकि कई तहों वाले मिली-जुली सामग्री से बने हाईब्रिड मल्टीप्लाई फेस मास्क का विकास हो सके। इसे एसएचजी-95 (बिलियन सोशल मास्क) कहते हैं। ‘मेड इन इंडिया’ वाले ये मास्क प्रदूषित कणों को लगभग 90 प्रतिशत और बैक्टीरिया को लगभग 99 प्रतिशत तक रोक सकते हैं। इन मास्कों को इस तरह बनाया गया है कि सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं होती और कानों पर बांधने का आरामदेह लूप लगा है। मास्क हाथों से बुने सूती कपड़े के हैं। फिल्टर करने वाली सतह लगाने से इनका फायदा बढ़ गया है। हाथ से धोने और दोबारा इस्तेमाल करने योग्य मास्कों की कीमत कंपनी ने 50-75 प्रति मास्क रखी है, जो आम लोगों के लिये काफी सस्ती है।

उल्लेखनीय है कि 1,45,000 नग बिक चुके हैं। इस पहल को कनाडा के ग्रैंड चैलेंजेस से भी सहायता मिल रही है। कोविड-19 के समय की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुये इसका निर्माण किया जा रहा है। इसके तहत कई स्व-सहायता समूहों की भी आजीविका में सुधार आया है। परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. के संस्थापकों ने आज की समस्याओं का मुकाबला करने का समाधान निकालने की कोशिश की है। इसके लिये उन लोगों ने शोध किया और सस्ती दर पर एक उत्पाद का विकास किया।

डीबीटी के बारे में

बायोटेक्नोलॉजी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन है और भारत में जैव-प्रौद्योगिकी के विकास में तेजी लाने का काम करता है। इसमें कृषि, स्वास्थ्य, पशु विज्ञान, पर्यावरण और उद्योग में जैवप्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और उसका विकास शामिल है।

बाइरैक के बारे में

जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की धारा 8, अनुसूची ‘ब’ के तहत लाभ न कमाने वाला संगठन है, जिसकी स्थापना बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने की है। यह भारत सरकार की एक इंटरफेस एजेंसी है, जिसके जरिये उभरते हुये जैव-प्रौद्योगिकी उद्यमों को शक्ति सम्पन्न किया जाता है, ताकि वे रणनीतिक अनुसंधान और नवाचार का काम कर सकें तथा देश के लिये जरूरी उत्पादों का विकास कर सकें।

परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. के बारे में

परिशोधन टेक्नोलॉजीस प्रा.लि. इस समय स्वास्थ्य और आरोग्य से जुड़े उत्पादों के विकास में लगी हुई है। इसकी टीम को दुनिया का अनुभव है और उसका प्रशिक्षण प्रमुख संस्थानों में हुआ है। इसके आधार पर वे भारतीय संदर्भों में समस्याओं का निदान कर रहे हैं। इसे हैदराबाद में जून 2016 को प्राइवेट-लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत किया गया था।

SOURCE-PIB

 

खाद्य जनित रोगों

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने खाद्य जनित रोगों (foodborne diseases) के बोझ का आकलन करने और डेटा अंतराल का पता लगाने के लिए एक पुस्तिका जारी की जो स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में मदद करेगी।

खाद्य जनित रोगों के रोगाणु कितने प्रकार से उत्पन्न होते हैं?

कारण

  • जीवाणु
  • कवक-विषाक्तता (माइकोटॉक्सिन) एवं पाचन संबंधी विषजन्य रोग (माइकोटाक्सिकोजेज)
  • विषाणु
  • परजीवी
  • जीवविष
  • अन्य रोगजनक एजेंट
  • “टोमाइन विषाक्तता”
  • उष्मायन अवधि

आहार जनित रोगों से क्या समझते हैं?

विषाक्त भोजन (खाद्य जनित रोग) तब होता है जब हम ऐसा खाना खाते हैं जिसे कि दूषित कर दिया गया है – आमतौर पर बैक्टीरिया या वायरस के द्वारा। यह अप्रिय हो सकता है, लेकिन इसके लिए चिकित्सा उपचार की जरूरत शायद ही कभी पड़े

खाद्य विषाकतन होने पर व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं?

खाद्य विषाक्तता के 5-अपरिहार्य लक्षण!

निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) यदि आप अपने आप को फूड पॉइज़निंग से जूझते हुए पाते हैं, तो आपको सबसे पहले खुद को हाइड्रेट करना चाहिए। …

जी मिचलाना मतली और उल्टी, फूड पॉइजनिंग के सबसे आम लक्षण हैं।

दस्त एक और स्पष्ट खाद्य-विषाक्तता लक्षण डायरिया है।

बुखार

खाद्य जनित रोगों का बोझ (Foodborne Diseases Burden)

WHO के 2015 के अनुमान के अनुसार, हर साल लगभग 600 मिलियन लोग खाद्य जनित रोगों (foodborne diseases) से प्रभावित होते हैं। यह दुनिया भर में 10 में से 1 व्यक्ति में संक्रमण के लिए जिम्मेदार है।

पांच साल से कम उम्र के करीब 1,20,000 बच्चे असुरक्षित भोजन करने से मर जाते हैं। यह प्रति वर्ष कुल खाद्य जनित मौतों का 30% है।हैं।

बच्चों को खाने से होने वाली डायरिया की बीमारी होने का खतरा अधिक होता है। इसके कारण 220 मिलियन लोगों बीमार पड़ते और उनमें से 96,000 लोगों की मौत हो जाती है।

डायरिया कच्चे या अधपके मांस और ताजा उपज, अंडे और डेयरी उत्पाद खाने से होता है जो नोरोवायरस, कैम्पिलोबैक्टर, रोगजनक ई कोलाई और गैर-टाइफाइड साल्मोनेला से दूषित होते हैं।

किन क्षेत्रों में सबसे अधिक बोझ है?

WHO की रिपोर्ट के अनुसार, अफ्रीकी और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्रों में खाद्य जनित बीमारियों का सबसे अधिक बोझ है।

पृष्ठभूमि

विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly) ने एक नया संकल्प अपनाया था और राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य जनित और जूनोटिक रोगों के वैश्विक बोझ की निगरानी के लिए WHO को आदेश दिया था। इसने WHO को 2025 तक वैश्विक खाद्य जनित बीमारी के बोझ, मृत्यु दर आदि के अनुमान के साथ खाद्य जनित बीमारियों के वैश्विक बोझ पर रिपोर्ट करने के लिए कहा है।

SOURCE-GK TODAY

 

भारत 2025 तक 20 गीगावाट पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करेगा

हाल ही में Global Wind Energy Council (GWEC) ने India Wind Energy Market Outlook जारी किया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास केंद्र और राज्य के बाजारों में 10.3 गीगावॉट की पवन उर्जा परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। इस  रिपोर्ट पर प्रकाश डाला गया है कि भारत 2021-25 तक 20 GW पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित करेगा।

वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (Global Wind Energy Council – GWEC)

GWEC की स्थापना 2005 में हुई थी। यह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संपूर्ण पवन ऊर्जा क्षेत्र के लिए विश्वसनीय और प्रतिनिधि मंच प्रदान करता है। इसका मिशन यह सुनिश्चित करना है कि पवन ऊर्जा दुनिया में अग्रणी ऊर्जा स्रोतों के रूप में स्थापित हो, जिससे कई पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ मिलते हैं। GWEC के अनुसार, भले ही अस्थायी आपूर्ति श्रृंखला कठिनाइयाँ हैं, परन्तु अंतर्राष्ट्रीय पवन बाज़ार दृढ़ता से बढ़ रहे हैं। यूरोपीय संघ पवन ऊर्जा के क्षेत्र में अग्रणी बाजार है जिसकी स्थापित क्षमता लगभग 48 गीगावाट है।

भारत की पवन ऊर्जा क्षमता (India’s Wind Power Capacity)

भारत में पवन ऊर्जा उत्पादन क्षमता हाल के दिनों में बढ़ी है। फरवरी, 2021 तक भारत की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता 38 GW थी। भारत की दुनिया भर में चौथी सबसे बड़ी स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता है। पवन ऊर्जा क्षमता दक्षिणी, पश्चिमी और उत्तरी क्षेत्रों में फैली हुई है। भारत में पवन ऊर्जा की लागत तेजी से घट रही है। 2017 में भारत में पवन ऊर्जा का स्तरित टैरिफ 2.43 रुपये प्रति kWh था, हालांकि मार्च 2021 में यह बढ़कर 2.77 प्रति kWh हो गया।

Miraculous Mosquito Hack

हाल ही में, इंडोनेशिया के योग्याकार्ता (Yogyakarta) शहर में, डेंगू फैलाने वाले मच्छरों में बदलाव करने वाले एक परीक्षण के माध्यम से डेंगू बुखार के मामलों में 77% की कमी आई है।

ट्रायल के बारे में

वैज्ञानिकों ने “चमत्कारी बैक्टीरिया” (miraculous bacteria) से संक्रमित मच्छरों का इस्तेमाल किया और इन्हें शहरों में छोड़ दिया।ये बैक्टीरिया मच्छरों की डेंगू फैलाने की क्षमता को कम कर देते हैं।

इस परीक्षण में मच्छरों को वल्बाचिया बैक्टीरिया (Wolbachia Bacteria) से संक्रमित किया गया था।

वल्बाचिया (Wolbachia) मच्छर को नुकसान नहीं पहुंचाता है, लेकिन यह उसके शरीर के उन्हीं हिस्सों में जाता है जहां डेंगू के वायरस को प्रवेश करने की आवश्यकता होती है।

इस बैक्टीरिया के कारण मच्छरों प्रभावी ढंग से डेंगू वायरस को फैला नहीं पाते वे डेंगू वायरस अपनी प्रतियाँ (replicate) नहीं बना पाता, इसलिए मच्छर के दोबारा काटने पर संक्रमण होने की संभावना कम होती है।

वर्ल्ड मॉस्किटो प्रोग्राम (World Mosquito Programme) की टीम के मुताबिक, यह तरीका दुनिया भर में फैले वायरस का समाधान हो सकता है।

यह तकनीक सफल साबित हुई है और पूरे शहर में मच्छरों को छोड़ दिया गया है।यह परियोजना डेंगू को खत्म करने के उद्देश्य से और भी क्षेत्रों में शुरू की जाएगी।

डेंगू (Dengue)

डेंगू को “हड्डी तोड़ बुखार” (break-bone fever) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसके कारण मांसपेशियों और हड्डियों में तेज दर्द होता है। यह एक मच्छर जनित उष्णकटिबंधीय रोग (mosquito-borne tropical disease) है जो डेंगू वायरस (DENV) के कारण होता है। इसके लक्षण आमतौर पर संक्रमण के 3 से14 दिन बाद शुरू होते हैं। सामान्य लक्षणों में तेज बुखार, उल्टी, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और जोड़ों में दर्द के अलावा त्वचा पर लाल चकत्ते शामिल हैं। 1970 में, केवल 9 देशों ने डेंगू के प्रकोप का सामना किया था। अब, इस मच्छर के कारण एक वर्ष में 400 मिलियन संक्रमण होते हैं।

SOURCE-GK TODAY

 

बाल श्रम

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और UNICEF ने संयुक्त रूप से बाल श्रम पर रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में दो दशकों में बाल श्रम में वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

इस रिपोर्ट पर प्रकाश डाला गया है कि कोरोनावायरस संकट लाखों बच्चों को बाल श्रम की ओर धकेल सकता है।

2020 तक, बाल श्रमिकों की संख्या 160 मिलियन है।चार साल में इसमें 4 मिलियन की वृद्धि हुई है।

कोविड -19 महामारी की चपेट में आने से यह संख्या बढ़ने लगी है।

कोविड -19 महामारी के बीच, विश्व स्तर पर 10 में से 1 बच्चा बाल श्रम में कार्यरत्त है।

उप-सहारा अफ्रीका सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र है।

लड़कों के प्रभावित होने की संभावना अधिक होती है। 2020 की शुरुआत में बाल श्रम में संलग्न 160 मिलियन बच्चों में से 97 मिलियन लड़के हैं।

खतरनाक काम करने वाले 5 से 17 साल के बच्चों की संख्या में वृद्धि हुई है।लगभग 79 मिलियन बच्चे खतरनाक कार्यों में कार्यरत्त हैं। यह बच्चे के विकास, शिक्षा या स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

चिंताएं

ILO और UNICEF ने चेतावनी दी है कि यदि गरीबी में जाने वाले परिवारों की संख्या में कमी नहीं की गई, तो अगले दो वर्षों में लगभग 50 मिलियन और बच्चे बाल श्रम के लिए मजबूर हो सकते हैं।

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