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Current Affair 13 September 2021

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Current Affairs – 13 September, 2021

क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग

भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) ने आज जलवायु कार्यवाही एवं वित्तीय संग्रहण संवाद यानी “क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग (सीएएफएमडी)” का शुभारम्भ किया। सीएएफएमडी अप्रैल, 2021 में जलवायु पर लीडर्स समिट में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति श्री जोसेफ बाइडेन द्वारा लॉन्च भारत-अमेरिका जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030 भागीदारी के दो ट्रैक में से एक है।

शुभारम्भ से पहले एक द्विपक्षीय बैठक हुई, जहां दोनों पक्षों ने इंटरनेशनल सोलर अलायंस (आईएसए), एग्रीकल्चर इनोवेटिव मिशन फॉर क्लाइमेट (एआईएम4सी) सहित सीओपी26, जलवायु महत्वाकांक्षा, जलवायु वित्त, वैश्विक जलवायु पहलों से संबंधित जलवायु मुद्दों पर व्यापक विमर्श कि

संवाद से न सिर्फ भारत-अमेरिका की जलवायु और पर्यावरण पर द्विपक्षीय भागीदारी को मजबूती मिलेगी, बल्कि इससे यह प्रदर्शित करने में भी सहायता मिलेगी कि कैसे दुनिया राष्ट्रीय परिस्थितियों और सतत् विकास की प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए समावेशी और लचीले आर्थिक विकास के साथ जलवायु पर तत्परता से एकजुट हो सकती है। “क्लाइमेट एक्शन एंड फाइनेंस मोबिलाइजेशन डायलॉग (सीएएफएमडी)” के शुभारंभ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री केरी ने 2030 तक 450 गीगावॉट नवीनीकृत ऊर्जा हासिल करने का बड़ा लक्ष्य तय करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सराहना की और भारत को 100 गीगावॉट हासिल करने के लिए भारत को बधाई दी।

अमेरिका के जलवायु दूत ने यह दिखाने के लिए भारत के नेतृत्व की भूमिका की सराहना की कि कैसे आर्थिक विकास और स्वच्छ ऊर्जा पर एक साथ काम किया जा सकता है और उन्होंने कहा कि ग्लोबल क्लाइमेट एक्शन वक्त की जरूरत है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत और अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा को तेजी से लागू करने की दिशा में काम कर रहे हैं।

क्या है जलवायु परिवर्तन?

  • जलवायु परिवर्तन को समझने से पूर्व यह समझ लेना आवश्यक है कि जलवायु क्या होता है? सामान्यतः जलवायु का आशय किसी दिये गए क्षेत्र में लंबे समय तक औसत मौसम से होता है।
  • अतः जब किसी क्षेत्र विशेष के औसत मौसम में परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) कहते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन को किसी एक स्थान विशेष में भी महसूस किया जा सकता है एवं संपूर्ण विश्व में भी। यदि वर्तमान संदर्भ में बात करें तो यह इसका प्रभाव लगभग संपूर्ण विश्व में देखने को मिल रहा है।
  • पृथ्वी के समग्र इतिहास में यहाँ की जलवायु कई बार परिवर्तित हुई है एवं जलवायु परिवर्तन की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।
  • पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। पृथ्वी का तापमान बीते 100 वर्षों में 1 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। पृथ्वी के तापमान में यह परिवर्तन संख्या की दृष्टि से काफी कम हो सकता है, परंतु इस प्रकार के किसी भी परिवर्तन का मानव जाति पर बड़ा असर हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कुछ प्रभावों को वर्तमान में भी महसूस किया जा सकता है। पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होने से हिमनद पिघल रहे हैं और महासागरों का जल स्तर बढ़ता जा रहा, परिणामस्वरूप प्राकृतिक आपदाओं और कुछ द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ गया है।

जलवायु परिवर्तन के कारण

ग्रीनहाउस गैसें :

  • पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की एक परत बनी हुई है, इस परत में मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसें शामिल हैं।
  • ग्रीनहाउस गैसों की यह परत पृथ्वी की सतह पर तापमान संतुलन को बनाए रखने में आवश्यक है और विश्लेषकों के अनुसार, यदि यह परत नहीं होगी तो पृथ्वी का तापमान काफी कम हो जाएगा।
  • आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।
  • मुख्य ग्रीनहाउस गैसें
    • कार्बन डाइऑक्साइड – इसे सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस माना जाता है और यह प्राकृतिक व मानवीय दोनों ही कारणों से उत्सर्जित होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार, कार्बन डाइऑक्साइड का सबसे अधिक उत्सर्जन ऊर्जा हेतु जीवाश्म ईंधन को जलाने से होता है। आँकड़े बताते हैं कि औद्योगिक क्रांति के पश्चात् वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है।
    • मीथेन – जैव पदार्थों का अपघटन मीथेन का एक बड़ा स्रोत है। उल्लेखनीय है कि मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड से अधिक प्रभावी ग्रीनहाउस गैस है, परंतु वातावरण में इसकी मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की अपेक्षा कम है।
    • क्लोरोफ्लोरोकार्बन – इसका प्रयोग मुख्यतः रेफ्रिजरेंट और एयर कंडीशनर आदि में किया जाता है एवं ओज़ोन परत पर इसका काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

भूमि के उपयोग में परिवर्तन

  • वाणिज्यिक या निजी प्रयोग हेतु वनों की कटाई भी जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारक है। पेड़ न सिर्फ हमें फल और छाया देते हैं, बल्कि ये वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी महत्त्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस को अवशोषित भी करते हैं। वर्तमान समय में जिस तरह से वृक्षों की कटाई की जा रही हैं वह काफी चिंतनीय है, क्योंकि पेड़ वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने वाले प्राकृतिक यंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनकी समाप्ति के साथ हम वह प्राकृतिक यंत्र भी खो देंगे।
  • कुछ देशों जैसे – ब्राज़ील और इंडोनेशिया में निर्वनीकरण ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का सबसे प्रमुख कारण है।

शहरीकरण

  • शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण लोगों के जीवन जीने के तौर-तरीकों में काफी परिवर्तन आया है। विश्व भर की सड़कों पर वाहनों की संख्या काफी अधिक हो गई है। जीवन शैली में परिवर्तन ने खतरनाक गैसों के उत्सर्जन में काफी अधिक योगदान दिया है।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव

उच्च तापमान

पावर प्लांट, ऑटोमोबाइल, वनों की कटाई और अन्य स्रोतों से होने वाला ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन पृथ्वी को अपेक्षाकृत काफी तेज़ी से गर्म कर रहा है। पिछले 150 वर्षों में वैश्विक औसत तापमान लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2016 को सबसे गर्म वर्ष के रूप में रिकॉर्ड किया गया है। गर्मी से संबंधित मौतों और बीमारियों, बढ़ते समुद्र स्तर, तूफान की तीव्रता में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कई अन्य खतरनाक परिणामों में वृद्धि के लिये बढ़े हुए तापमान को भी एक कारण माना जा सकता है। एक शोध में पाया गया है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के विषय को गंभीरता से नहीं लिया गया और इसे कम करने के प्रयास नहीं किये गए तो सदी के अंत तक पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 3 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है।

वर्षा के पैटर्न में बदलाव

पिछले कुछ दशकों में बाढ़, सूखा और बारिश आदि की अनियमितता काफी बढ़ गई है। यह सभी जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही हो रहा है। कुछ स्थानों पर बहुत अधिक वर्षा हो रही है, जबकि कुछ स्थानों पर पानी की कमी से सूखे की संभावना बन गई है।

समुद्र जल के स्तर में वृद्धि

वैश्विक स्तर पर ग्लोबल वार्मिंग के दौरान ग्लेशियर पिघल जाते हैं और समुद्र का जल स्तर ऊपर उठता है जिसके प्रभाव से समुद्र के आस-पास के द्वीपों के डूबने का खतरा भी बढ़ जाता है। मालदीव जैसे छोटे द्वीपीय देशों में रहने वाले लोग पहले से ही वैकल्पिक स्थलों की तलाश में हैं।

वन्यजीव प्रजाति का नुकसान

तापमान में वृद्धि और वनस्पति पैटर्न में बदलाव ने कुछ पक्षी प्रजातियों को विलुप्त होने के लिये मजबूर कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, पृथ्वी की एक-चौथाई प्रजातियाँ वर्ष 2050 तक विलुप्त हो सकती हैं। वर्ष 2008 में ध्रुवीय भालू को उन जानवरों की सूची में जोड़ा गया था जो समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण विलुप्त हो सकते थे।

रोगों का प्रसार और आर्थिक नुकसान

जानकारों ने अनुमान लगाया है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियाँ और अधिक बढ़ेंगी तथा इन्हें नियंत्रित करना मुश्किल होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आँकड़ों के अनुसार, पिछले दशक से अब तक हीट वेव्स (Heat waves) के कारण लगभग 150,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

जंगलों में आग

जलवायु परिवर्तन के कारण लंबे समय तक चलने वाली हीट वेव्स ने जंगलों में लगने वाली आग के लिये उपयुक्त गर्म और शुष्क परिस्थितियाँ पैदा की हैं। ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (National Institute for Space Research-INPE) के आँकड़ों के मुताबिक, जनवरी 2019 से अब तक ब्राज़ील के अमेज़न वन (Amazon Forests) कुल 74,155 बार वनाग्नि का सामना कर चुके हैं। साथ ही यह भी सामने आया है कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना बीते वर्ष (2018) से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।

जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा :

  • जलवायु परिवर्तन के कारण फसल की पैदावार कम होने से खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है, साथ ही भूमि निम्नीकरण जैसी समस्याएँ भी सामने आ सकती हैं।
  • एशिया और अफ्रीका पहले से ही आयातित खाद्य पदार्थों पर निर्भर हैं। ये क्षेत्र तेज़ी से बढ़ते तापमान के कारण सूखे की चपेट में आ सकते हैं।
  • IPCC की रिपोर्ट के अनुसार, कम ऊँचाई वाले क्षेत्रों में गेहूँ और मकई जैसी फसलों की पैदावार में पहले से ही गिरावट देखी जा रही है।
  • वातावरण में कार्बन की मात्रा बढ़ने से फसलों की पोषण गुणवत्ता में कमी आ रही है। उदाहरण के लिये उच्च कार्बन वातावरण के कारण गेहूँ की पौष्टिकता में प्रोटीन का 6% से 13%, जस्ते का 4% से 7% और लोहे का 5% से 8% तक की कमी आ रही है।
  • यूरोप में गर्मी की लहर की वजह से फसल की पैदावार गिर रही है।
  • ब्लूमबर्ग एग्रीकल्चर स्पॉट इंडेक्स (Bloomberg Agriculture Spot Index) 9 फसलों का एक मूल्य मापक है जो मई में एक दशक के सबसे निचले स्तर पर आ गया था। इस सूचकांक की अस्थिरता खाद्यान सुरक्षा की अस्थिरता को प्रदर्शित करती है।

जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु वैश्विक प्रयास

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC)

  • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक आकलन करने हेतु संयुक्त राष्ट्र का एक निकाय है। जिसमें 195 सदस्य देश हैं।
  • इसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा 1988 में स्थापित किया गया था।
  • इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन, इसके प्रभाव और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने हेतु नीति निर्माताओं को रणनीति बनाने के लिये नियमित वैज्ञानिक आकलन प्रदान करना है।
  • IPCC आकलन सभी स्तरों पर सरकारों को वैज्ञानिक सूचनाएँ प्रदान करता है जिसका इस्तेमाल जलवायु के प्रति उदार नीति विकसित करने के लिये किया जा सकता है।
  • IPCC आकलन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वार्ताओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC)

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है।
  • यह समझौता जून, 1992 के पृथ्वी सम्मेलन के दौरान किया गया था। विभिन्न देशों द्वारा इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 21 मार्च, 1994 को इसे लागू किया गया।
  • वर्ष 1995 से लगातार UNFCCC की वार्षिक बैठकों का आयोजन किया जाता है। इसके तहत ही वर्ष 1997 में बहुचर्चित क्योटो समझौता (Kyoto Protocol) हुआ और विकसित देशों (एनेक्स-1 में शामिल देश) द्वारा ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने के लिये लक्ष्य तय किया गया। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत 40 औद्योगिक देशों को अलग सूची एनेक्स-1 में रखा गया है।
  • UNFCCC की वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (COP) के नाम से जाना जाता है।

पेरिस समझौता

  • यदि कम शब्दों में कहा जाए तो पेरिस समझौता जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • वर्ष 2015 में 30 नवंबर से लेकर 11 दिसंबर तक 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संभावित नए वैश्विक समझौते पर चर्चा की।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ संपन्न 32 पृष्ठों एवं 29 लेखों वाले पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में मान्यता प्राप्त है।

जलवायु परिवर्तन और भारत के प्रयास

जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC)

  • जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना का शुभारंभ वर्ष 2008 में किया गया था।
  • इसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।
  • इस कार्ययोजना में मुख्यतः 8 मिशन शामिल हैं :
    • राष्ट्रीय सौर मिशन
    • विकसित ऊर्जा दक्षता के लिये राष्ट्रीय मिशन
    • सुस्थिर निवास पर राष्ट्रीय मिशन
    • राष्ट्रीय जल मिशन
    • सुस्थिर हिमालयी पारिस्थितिक तंत्र हेतु राष्ट्रीय मिशन
    • हरित भारत हेतु राष्ट्रीय मिशन
    • सुस्थिर कृषि हेतु राष्ट्रीय मिशन
    • जलवायु परिवर्तन हेतु रणनीतिक ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन

इसके अलावा भारत के राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा एसएपीसीसी (State Action Plans on Climate Change-SAPCC) पर राज्य कार्ययोजना तैयार की गई है जो NAPCC के उद्देश्यों के ही अनुरूप है।

अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (International Solar Alliance-ISA)

  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन सौर ऊर्जा से संपन्न देशों का एक संधि आधारित अंतर-सरकारी संगठन (Treaty-Based International Intergovernmental Organization) है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की शुरुआत भारत और फ्राँस ने 30 नवंबर, 2015 को पेरिस जलवायु सम्‍मेलन के दौरान की थी।
  • इसका मुख्यालय गुरुग्राम (हरियाणा) में है।
  • ISA के प्रमुख उद्देश्यों में वैश्विक स्तर पर 1000 गीगावाट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करना और 2030 तक सौर ऊर्जा में निवेश के लिये लगभग $1000 बिलियन की राशि को जुटाना शामिल है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की पहली बैठक का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.3

 

नेशनल मीट ऑन स्वामित्व स्कीम

केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायतीराज मंत्री श्री गिरिराज सिंह 14 सितंबर, 2021 को नेशनल मीट ऑन स्वामित्व स्कीम: अ स्टेपिंग स्टेप टूवार्ड्स अपलिफ्टमेंट ऑफ रुरल इकोनॉमी (स्वामित्व योजना पर राष्ट्रीय बैठक: ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान की दिशा में एक अहम पड़ाव) का शुभारंभ करेंगे।

नेशनल मीट ऑन स्वामित्व स्कीम पर राष्ट्रीय बैठक महत्व रखती है क्योंकि यह योजना के पायलट-चरण के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर 24 अप्रैल, 2021 को योजना के पूरे देश में शुरुआत के बाद आयोजित की जा रही है। राष्ट्रीय बैठक विभिन्न हितधारकों को पायलट चरण में योजना के कार्यान्वयन प्रक्रिया से प्राप्त ज्ञान और अनुभव को साझा करने तथा चर्चा करने के लिए एक आदर्श मंच प्रदान करेगी। सम्मेलन स्वामित्व योजना की प्रक्रियाओं, सामने आई सर्वोत्तम प्रथाओं, समय पर कार्यान्वयन के लिए तकनीकी हस्तक्षेप, और संपत्ति कार्ड की विश्वसनीयता, छठी अनुसूची के क्षेत्रों सहित अन्य विचारों के संबंध में राज्यों के लिए क्रॉस-लर्निंग प्लेटफॉर्म प्रदान करेगा।

पृष्ठभूमि :

प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस, 24 अप्रैल 2020 को गांव के हर घर मालिक को “अधिकारों का दस्तावेज” प्रदान करके ग्रामीण भारत की आर्थिक प्रगति को सक्षम करने के संकल्प के साथ स्वामित्व (सर्वे ऑफ विलेजेज एंड मैपिंग विथ इम्प्रोवाइज्ड टेक्नोलॉजी इन विलेज एरियाज) योजना शुरू की गयी थी। नवीनतम सर्वेक्षण ड्रोन-प्रौद्योगिकी के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रिहाइशी (आबादी वाली) भूमि का सीमांकन करने के उद्देश्य के साथ तैयार की गयी स्वामित्व योजना पंचायतीराज मंत्रालय, राज्यों के राजस्व विभागों, राज्यों के पंचायतीराज विभागों और भारतीय सर्वेक्षण विभाग का एक सहयोगात्मक प्रयास है। इस योजना में विविध पहलुओं को शामिल किया गया है। इनमें संपत्तियों के मौद्रिकरण को सुगम बनाना और बैंक ऋण पाने में मदद करना; संपत्ति संबंधी विवादों को कम करना; व्यापक ग्राम स्तर की योजना आदि शामिल है और यह सही मायने में ग्राम स्वराज प्राप्त करने तथा ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मददगार होगा।

पहले चरण – पायलट योजना (अप्रैल 2020 – मार्च 2021) के दायरे में हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, आंध्र प्रदेश आते हैं और साथ ही इसमें हरियाणा, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान में सतत संचालन संदर्भ प्रणाली (सीओआरएस) की स्थापना शामिल है।

दूसरे चरण (अप्रैल 2021 – मार्च 2025) में 2022 तक देश भर में बाकी गांवों का पूरा सर्वेक्षण और सीओरआरएस नेटवर्क कवरेज शामिल हैं।

प्रधानमंत्री ने 11 अक्टूबर, 2020 को हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के 763 गांवों के लगभग 1.25 लाख निवासियों को संपत्ति कार्ड के प्रत्यक्ष वितरण का शुभारंभ किया। इसके अलावा, 24 अप्रैल, 2021 को राष्ट्रीय पंचायतीराज दिवस के अवसर प्रधानमंत्री ने स्वामित्व योजना की राष्ट्रीय शुरुआत की और 5,000 गांवों में चार लाख से अधिक लाभार्थियों को संपत्ति कार्ड/स्वामित्व कार्ड प्राप्त हुए।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.2

 

भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता

मुख्य विशेषताएं :

  • वार्ता से अफ्रीकी देशों और भारत के बीच मौजूदा साझेदारियों को कायम रखने में मदद मिलेगी।
  • आपसी जुड़ाव के लिए नए क्षेत्रों का पता लगाना।
  • मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान नॉलेज पार्टनर बनेगा।
  • रक्षा मंत्री रक्षा प्रदर्शनी 2022 के साथ-साथ आयोजित अगली भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता में अफ्रीकी देशों के रक्षा मंत्रियों की मेजबानी करेंगे।

भारत और अफ्रीका के बीच घनिष्ठ और ऐतिहासिक संबंध हैं। भारत-अफ्रीका रक्षा संबंधों की नींव ‘सागर’ – क्षेत्र में सभी के लिए ‘सुरक्षा और विकास’ तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ – द वर्ल्ड इज वन फैमिली जैसे दो मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित है।

रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय द्वारा 06 फरवरी, 2020 को रक्षा प्रदर्शनी के साथ-साथ उत्‍तर प्रदेश के लखनऊ में पहली बार भारत-अफ्रीका रक्षा मंत्री कॉन्क्लेव (आईएडीएमसी) आयोजित किया गया था। भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन IV के क्रम में मंत्रिस्तरीय पैन अफ्रीका कार्यक्रमों की श्रृंखला में यह पहला था। कॉन्क्लेव के परिणाम दस्तावेज़ के रूप में आईएडीएमसी 2020 के समापन के बाद एक संयुक्त घोषणा, ‘लखनऊ घोषणा’ को लागू  की गई थी।

घोषणा को आगे बढ़ाने और हितधारकों के परामर्श से, भारत हर दो साल में एक बार आयोजित होने वाले क्रमिक रक्षा प्रदर्शनी के दौरान भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता को संस्थागत बनाने का प्रस्ताव करता है। भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता के संस्थापन से अफ्रीकी देशों और भारत के बीच मौजूदा साझेदारी के निर्माण में मदद मिलेगी और क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद का मुकाबला करने जैसे क्षेत्रों सहित आपसी जुड़ाव के लिए नए क्षेत्रों का पता लगाने में मदद मिलेगी। यह निर्णय लिया गया है कि मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान भारत अफ्रीका रक्षा वार्ता का नॉलेज पार्टनर होगा और भारत तथा अफ्रीका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करने में मदद करेगा। यह भी निर्णय लिया गया है कि रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह अगले भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता में अफ्रीकी राष्ट्रों के रक्षा मंत्रियों की मेजबानी करेंगे। ‘भारत-अफ्रीका : रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने और तालमेल के लिए रणनीति अपनाना’ इस बार भारत-अफ्रीका रक्षा वार्ता का व्‍यापक विषय होगा।

अफ़्रीका

अफ़्रीका एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह 37°14′ उत्तरी अक्षांश से 34°50′ दक्षिणी अक्षांश एवं 17°33′ पश्चिमी देशांतर (देशान्तर) से 51°23′ पूर्वी देशांतर (देशान्तर) के मध्य स्थित है।[1] अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिंद महासागर (हिन्द महासागर) हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरूमध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरूमध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं। मुख्य मध्याह्न रेखा (0°) अफ्रीका महाद्वीप के घाना देश की राजधानी अक्रा शहर से होकर गुजरती है। यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्‍ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्‍थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्‍त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्‍यता की जन्‍मभूमि माना जाता है। यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं (मिस्र एवं कार्थेज) का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.2

 

इंग्लैंड बना नए घरों में ईवी (EV) चार्जर की स्थापना को अनिवार्य बनाने वाला पहला वाला पहला देश

ब्रिटिश सरकार ने 2021 में कानून पेश करने की घोषणा की है, जिसके तहत इंग्लैंड में सभी नवनिर्मित घरों और कार्यालयों में इलेक्ट्रिक वाहन चार्जर की सुविधा होनी चाहिए।

मुख्य बिंदु

  • इस कानून के तहत, सभी नए घरों और कार्यालयों में स्मार्ट चार्जिंग उपकरणों की सुविधा की स्थापना आवश्यक होगी।
  • इसके अनुसार, नए कार्यालय ब्लॉकों को प्रत्येक पांच पार्किंग स्थानों के लिए चार्जिंग प्वाइंट स्थापित करने की आवश्यकता होगी।
  • यह कानून इंग्लैंड को दुनिया का ऐसा पहला देश बना देगा, जिसमे सभी नए घरों में ईवी चार्जर होना आवश्यक है।

कानून का महत्व

यह कानून आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करेगा और उन लोगों की मदद करेगा जो रेंज की चिंता परेशान हैं क्योंकि इंग्लैंड में कई घरों में ऑफ-स्ट्रीट पार्किंग या गैरेज नहीं हैं।

पृष्ठभूमि

सरकार ने 2019 में मूल रूप से यह अनिवार्य करने की घोषणा की कि सभी नए घरों में पार्किंग स्थान के साथ एक चार्ज प्वाइंट होगा।

यूके में 2030 में नए जीवाश्म-ईंधन वाहनों पर प्रतिबंध

यूनाइटेड किंगडम के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हाल ही में 2030 से जीवाश्म इंधन से चलने वाले वाहनों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी। गैसोलीन वाहनों पर प्रतिबंध शुरू में 2040 के लिए प्रस्तावित किया गया था। लेकिन 2050 तक शुद्ध शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन प्राप्त करने की यूके की 10-सूत्रीय योजना के तहत इसे 10 साल आगे लाया गया है।

SOURCE-GK TODAY

PAPER-G.S.1 PRE

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