Current Affairs – 16 August, 2021
विश्व के दूसरे सबसे बड़े नवीनीकृत जीन बैंक
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (National Bureau of Plant Genetic Resources- NBPGR), पूसा, नई दिल्ली में विश्व के दूसरे सबसे बड़े नवीनीकृत-अत्याधुनिक राष्ट्रीय जीन बैंक का लोकार्पण केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किया। इस अवसर पर श्री तोमर ने कहा कि कृषि क्षेत्र के समक्ष विद्यमान चुनौतियों को स्वीकार करते हुए उन पर विजयी प्राप्त करने में भारत के किसान पूरी तरह सक्षम है, हमारे किसान बिना किसी बड़ी शैक्षणिक डिग्री के भी कुशल मानव संसाधन है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को किसानों की भलाई की लगातार चिंता रहती है और उनकी आय बढ़ाने के लिए अनेक योजनाओं के माध्यम से सरकार द्वारा ठोस कदम उठाए गए हैं।
श्री तोमर ने प्रो. बी.पी. पाल, प्रो. एम.एस. स्वामीनाथन और प्रो. हरभजन सिंह जैसे दूरदर्शी विशेषज्ञों की सेवाओं को सराहते हुए कहा कि इन्होंने देश में स्वदेशी फसलों की विविधता संरक्षण के लिए मजबूत नींव रखी थी। हमारा गौरवशाली अतीत रहा है, उसे पढ़कर देश की प्रगति के लिए सभी को भविष्य के प्रति जिम्मेदारी के भाव के साथ आगे बढ़ते रहना चाहिए। यह नवीनीकृत-अत्याधुनिक राष्ट्रीय जीन बैंक इसी दिशा में एक सशक्त हस्ताक्षर है। यहां काम करने वाले स्टाफ को निश्चित ही संतोष व प्रसन्नता का अनुभव होता होगा कि वे विरासत को सहेजते हुए किस तरह से कृषि क्षेत्र व देश की सेवा कर रहे हैं। आज बायोफोर्टिफाइड फसलों की किस्मों की आवश्यकता महसूस की जा रही है, कहीं ना कहीं असंतुलन है, जिसे दूर करने की कोशिशें सरकार किसानों को साथ लेकर कर रही है।
श्री तोमर ने कहा कि पुरातन काल में साधन-सुविधाओं का अभाव था, इतनी टेक्नालाजी भी नहीं थी, लेकिन प्रकृति का ताना-बाना मजबूत था, पूरा समन्वय रहता था, जिससे तब देश में न तो कुपोषण था, ना ही भूख के कारण मौतें होती थी। लेकिन जब यह ताना-बाना टूटा तो हमें मुश्किलें पेश आने लगी और विशेष प्रयत्न करने की जरूरत पड़ी। सरकार के किसानों व कृषि वैज्ञानिकों के साथ सफल प्रयत्नों के फलस्वरूप आज खाद्यान्न की उत्पादन व उत्पादकता निरंतर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि बीस-तीस साल पहले इतने प्रयत्न नहीं किए गए, खेती-किसानी के विकास पर जितना ध्यान दिया जाना चाहिए था, उसमें चूक हुई अन्यथा कृषि व सम्बद्ध क्षेत्र को लेकर आज दुनिया, भारत पर अवलंबित होती।
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो
भारत सरकार ने पादप आनुवंशिक संसाधनों के संकट से उबरने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अंतर्गत राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (National Beauro of Plant Genetic Resorces) की स्थापना अगस्त १९७६ में नई दिल्ली में की थी। पादप आनुवंशिक संसाधनों के विकास, खोज, सर्वेक्षण व संग्रहण ब्यूरो का प्रमुख उद्देश्य है। यह देश के वैज्ञानिकों से तालमेल रख कर देश के विभिन्न क्षेत्रों से पादप आनुवंशिक संसाधनों को एकत्र करता है।
संस्कृति यूनिवर्सिटी का राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो से अनुबंध हुआ है। अब कृषि एवं बायोटेक्नोलाजी के छात्र-छात्राओं के सपनों को पंख लग जाएँगे। इसके 10 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में स्थित हैं। निम्नलिखित हैं : 1. शिमला, 2. जोधपुर, 3. त्रिसूर, 4. अकोला, 5. शिलांग, 6. भोवाली, 7. कटक, 8. हैदराबाद, 9. रांची, 10. श्रीनगर।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
जुलाई, 2021 में भारत का थोक मूल्य सूचकांक
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आर्थिक सलाहकार के कार्यालय ने जुलाई, 2021 (अंतिम) और मई, 2021 (अंतिम) के लिए भारत में थोक मूल्य सूचकांक संख्याएं जारी कर दी हैं। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के अंतिम आंकड़े देश भर में चयनित विनिर्माण इकाइयों से प्राप्त आंकड़ों के साथ संकलित किए जाते हैं और हर महीने की 14 तारीख (या अगले कार्य दिवस) को जारी किए जाते हैं। 10 सप्ताह के बाद, सूचकांक को अंतिम रूप दिया गया और अंतिम आंकड़े जारी किए गए हैं।
जुलाई, 2020 की (-0.25%) की तुलना में जुलाई, 2021 में मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 11.16 प्रतिशत (अंतिम) रही। जुलाई2021 में मुद्रास्फीति की उच्च दर का कारण मुख्य रूप से कच्चे पेट्रोलियम, खनिज तेल, मूल धातु, जैसे निर्मित उत्पाद; खाद्य उत्पाद; कपड़ा और विनिर्मित उत्पादों की कीमतों में पिछले वर्ष के इसी महीने की तुलना में वृद्धि रही। पिछले तीन महीनों में डब्ल्यूपीआई सूचकांक और मुद्रास्फीति के घटकों में वार्षिक परिवर्तन नीचे दिया गया है।
प्राथमिक वस्तुएं (भारांक 22.62 प्रतिशत)
इस प्रमुख समूह के सूचकांक में जुलाई, 2021 के दौरान 153.4 (अंतिम) बढोतरी (1.05%) रही जो जुलाई जून 2021 में 151.8 (अंतिम) था। कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस (7.91%), गैर-खाद्य वस्तुओं (2.35%) और खाद्य पदार्थों (0.69%) की कीमतों में जून, 2021 की तुलना में जुलाई, 2021 में वृद्धि हुई। जून, 2021 की तुलना में जुलाई, 2021 में खनिजों की कीमतों (-8.11%) में गिरावट आई।
ईंधन और बिजली (भारित 13.15%)
इस प्रमुख समूह का सूचकांक जुलाई, 2021 में 0.53% बढ़कर 114.3 (अंतिम) हो गया, जो जून, 2021 के महीने में 113.7 (अंतिम) था। जून, 2021 की तुलना में जुलाई में खनिज तेलों (5.41%) की कीमतों में वृद्धि हुई। बिजली की कीमतों (-11.61%) में जून, 2021 की तुलना में जुलाई, 2021 में गिरावट आई। कोयले की कीमतें अपरिवर्तित बनी हुई हैं।
विनिर्मित उत्पाद (भारांक 64.23%)
जुलाई 2021 में इस प्रमुख समूह का सूचकांक 0.38% बढ़कर 132.0 (अंतिम) हो गया जो जून में 131.5 था। विनिर्मित उत्पादों के 22 एनआईसी दो-अंकीय समूहों में से, 13 समूहों की कीमतों में जून, 2021 की तुलना में जुलाई 2021 के दौरान बढ़ोत्तरी देखी गई जबकि इसी अवधि के दौरान 8 समूहों में गिरावट दर्ज की गई और एक समूह की कीमत अपरिवर्तित रही। कीमतों में वृद्धि का योगदान मुख्य रूप सेतंबाकू उत्पादों का निर्माण; मशीनरी और उपकरण को छोड़कर गढ़े हुए धातु उत्पाद; उपकरण और औजार; रिकॉर्ड किए गए मीडिया और कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक और ऑप्टिकल उत्पादों की छपाई उत्पादों ने दिया है। जून, 2021 की तुलना में जुलाई, 2021 में जिन समूहों ने कीमतों में कमी देखी है उनमें फार्मास्यूटिकल्स, औषधीय रसायन और वनस्पति उत्पादों का निर्माण; फर्नीचर; अन्य निर्माण; रबर और प्लास्टिक उत्पाद और बिजली के उपकरण आदि शामिल थे।
डब्ल्यूपीआई खाद्य सूचकांक (भारित 24.38%)
खाद्य सूचकांक, जिसमें प्राथमिक वस्तु समूह की ‘खाद्य वस्तुएं’ और निर्मित उत्पाद समूह के ‘खाद्य उत्पाद’ शामिल हैं, इनका यह सचूकांक जो जून 2021 के 158.6 की तुलना में जुलाई 2021 में 159.3 पर रहा। डब्ल्यूपीआई खाद्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति की दर जून, 2021 के 6.66 प्रतिशत से घटकर जुलाई 2021 में 4.46 % हो गई।
थोक मूल्य सूचकांक
थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) एक मूल्य सूचकांक है जो कुछ चुनी हुई वस्तुओं के सामूहिक औसत मूल्य का प्रतिनिधित्व करता है। भारत और फिलीपिन्स आदि देश थोक मूल्य सूचकांक में परिवर्तन को महंगाई में परिवर्तन के सूचक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। किन्तु भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका अब उत्पादक मूल्य सूचकांक (producer price index) का प्रयोग करने लगे हैं।
भारत में थोक मूल्य सूचकांक
भारत में थोक मूल्य सूचकांक को आधार मान कर महँगाई दर की गणना होती है। हालाँकि थोक मूल्य और ख़ुदरा मूल्य में काफी अंतर होने के कारण इस विधि को कुछ लोग सही नहीं मानते हैं।
थोक मूल्य सूचकांक के लिये एक आधार वर्ष होता है। भारत में अभी 2011-12 के आधार वर्ष के मुताबिक थोक मूल्य सूचकांक की गणना हो रही है। इसके अलावा वस्तुओं का एक समूह होता है जिनके औसत मूल्य का उतार-चढ़ाव थोक मूल्य सूचकांक के उतार-चढ़ाव को निर्धारित करता है। अगर भारत की बात करें तो यहाँ थोक मूल्य सूचकांक में (697) पदार्थों को शामिल किया गया है जिनमें खाद्यान्न, धातु, ईंधन, रसायन आदि हर तरह के पदार्थ हैं और इनके चयन में कोशिश की जाती है कि ये अर्थव्यवस्था के हर पहलू का प्रतिनिधित्व करें। आधार वर्ष के लिए सभी (697) सामानों का सूचकांक १०० (100) मान लिया जाता है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने एक कार्य समूह की तकनीकी मसौदा रिपोर्ट को जारी किया है जिसमें थोक मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष को 2011- 12 से बदलकर 2017- 18 करने का सुझाव दिया गया है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग के आर्थिक सलाहकार के कार्यालय ने अप्रैल, 2020 के लिए थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) जारी किया है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-ECONOMY
प्रोजेक्ट बोल्ड
खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के प्रोजेक्ट बोल्ड (सूखे भू-क्षेत्र पर बांस आधारित हरित क्षेत्र) को लेह में भारतीय सेना का सहयोग प्राप्त हुआ है। 15 अगस्त को सेना ने लेह स्थित अपने परिसर में बांस के 20 पौधे लगाकर इसकी शुरुआत की। बांस की विशेष प्रजातियों के इन 20 पौधों को लेह में रोपित करने के लिए केवीआईसी द्वारा 12 अगस्त को जम्मू में सेना को सौंपा गया था। भूमि के क्षरण को रोकने और यहां हरित क्षेत्र विकसित करने के उद्देश्य से उच्च हिमालयी इलाकों में बांस के पेड़ लगाने का यह पहला प्रयास है। इसी प्रयास को जारी रखते हुए 18 अगस्त को लेह के चुचोट गांव में बांस के 1000 पौधों का रोपण किया जाएगा। बांस के ये पौधे 3 साल में कटाई के लिए तैयार हो जाएंगे। इस महत्वपूर्ण पहल के माध्यम से स्थानीय जनजातीय आबादी के लिए दीर्घकालिक आय के अवसर पैदा होंगे; साथ ही यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा परिकल्पित पर्यावरण और भूमि संरक्षण में भी योगदान देगा।
‘बोल्ड’ परियोजना
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत एक शीर्ष संगठन खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) ने मरुस्थलीकरण को कम करने और राजस्थान में जनजातियों की आय और बांस आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए 4 जुलाई, 2021 को अनोखी परियोजना ‘बोल्ड’ (सूखे भू-क्षेत्र पर बांस मरु-उद्यान) (Bamboo Oasis on Lands in Drought- BOLD) शुरू की है।
उद्देश्य : शुष्क व अर्द्ध-शुष्क भूमि क्षेत्रों में ‘बांस-आधारित हरित पट्टी’ (bamboo-based green patches) बनाना।
महत्वपूर्ण तथ्य : यह अनूठी परियोजना राजस्थान के उदयपुर जिले के निचला मांडवा (Nichla Mandwa) के आदिवासी गांव में शुरू की जाने वाली देश में अपनी तरह की पहली परियोजना है।
- इसके लिए विशेष रूप से असम से लाए गए बांस की विशेष प्रजातियों- ‘बंबुसा टुल्डा’ (BambusaTulda) और ‘बंबुसा पॉलीमोर्फा’ (Bambusa Polymorpha) के 5,000 पौधों को ग्राम पंचायत की 25 बीघा (लगभग 16 एकड़) खाली शुष्क भूमि पर रोपा गया।
- इस तरह खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने एक ही स्थान पर एक ही दिन में सर्वाधिक संख्या में बांस के पौधे लगाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
- बोल्ड परियोजना देश में ‘भूमि अपरदन को कम करने’ व ‘मरुस्थलीकरण को रोकने’ के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के अनुरूप है।
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग अगस्त 2021 तक गुजरात के अहमदाबाद जिले के ‘धोलेरा गांव’ और लेह-लद्दाख में भी इसी तरह की परियोजना शुरू करने वाला है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-ENVIROMENT
बायोफर्मासिटिकल
भारतीय शोधकर्ताओं ने अब तक उपेक्षित एक उष्णकटिबंधीय बीमारी काला अजार (विसरल लीशमैनियासिस) के खिलाफ एक शरीर में बिना सुई के प्रविष्ट हो सकने वाली कम लागत की प्रभावी और रोगी के अनुरूप संभावित चिकित्सीय रणनीति विकसित की है। विटामिन बी12 के साथ लेपित नैनो कैरियर-आधारित मौखिक दवाओं पर आधारित शोधकर्ताओं की इस रणनीति ने मौखिक जैव-उपलब्धता और उपचार की प्रभावकारिता को 90% से अधिक बढ़ा दिया है।
काला अजार अर्थात् विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) एक जटिल संक्रामक रोग है जो मादा फ्लेबोटोमाइन सैंडफ्लाइज़ (मक्खियों) के काटने से फैलता है। यह एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय बीमारी है जो प्रति वर्ष लाखों लोगों को प्रभावित करती है, जिससे यह मलेरिया के बाद दूसरा सबसे आम परजीवी प्राणघातक रोग बन जाता है। वीएल की पारंपरिक उपचार चिकित्सा में मुख्य रूप से रक्त वाहिनियों में दर्दनाक सुइयां (इंजेक्शन) लगाना शामिल है जिसके कारण उपचार जटिल हो जाता है और इसके लिए लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना, महंगा उपचार और संक्रमण के उच्च जोखिम भी बढ़ जाते हैं। मुंह से खाई जने वाली औषधि से बहुत लाभ होता है और तब ऐसी कठिनाइयों के निराकरण में सहायता भी मिलती है किन्तु सीधे खाई जाने वाली औषधियों के साथ कई अन्य चुनौतियां भी हैं क्योंकि ऐसी मुख मार्ग से दी जाने वाली 90 प्रतिशत से औषधियों की 90% की जैव-उपलब्धता इस समय 2% से भी कम है और इनके उपयोग से यकृत (लीवर) और वृक्कों (गुर्दे- रीनल) पर अन्य विषाक्त प्रभाव होने की भी आशंकाएं बनी रहती हैं।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार के एक स्वायत्त संस्थान, नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) से डॉ. श्याम लाल के नेतृत्व में एक दल ने प्राकृतिक आंतरिक विटामिन बी12 माध्यम का उपयोग करते हुए एक त्वरित चुस्त और बुद्धिमान नैनोकैरियर विकसित किया है। यह मानव शरीर में स्थिरता चुनौतियों और औषधियों/ मादक पदार्थों से संबंधित विषाक्तता को कम कर सकता है। उन्होंने एक जैव सक्षम (बायोकंपैटिबल) लिपिड नैनोकैरियर के भीतर इस रोग की विषाक्त लेकिन अत्यधिक प्रभावी दवा को शत्रुतापूर्ण जठरीय (गैस्ट्रिक) वातावरण में नष्ट होने से बचाया है। इस प्रकार किसी भी विजातीय संश्लेषित औषधि अणु (फॉरेन सिंथेटिक मॉलिक्यूल) द्वारा सहन किए गए जठरान्त्रीय (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) एंजाइमेटिक बाधाओं पर काबू पा लिया है। जैसा कि संबंधित पशु अध्ययनों में दिखाया गया है, इसने इसके परवर्ती दुष्प्रभावों को कम किया जबकि दूसरी ओर प्राकृतिक आंतरिक विटामिन बी12 माध्यम ने मुंह से उदरस्थ की जा सकने वाली औषधि की जैव-उपलब्धता और काला अजार रोधी (एंटीलीशमैनियल) चिकित्सीय प्रभावकारिता को 90% से अधिक बढ़ा दिया। इस शोध को डीएसटी-एसईआरबी अर्ली करियर रिसर्च अवार्ड के तहत सहायता दी गई थी और इसका प्रकाशन सामग्री विज्ञान और इंजीनियरिंग सी में किया गया था।
नैनो विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (आईएनएसटी) की टीम ने विटामिन बी12 (वीबी12) लेपित ठोस लिपिड नैनोकणों की प्रभावकारिता और गुणों का गम्भीरता से मूल्यांकन किया और साइटोटोक्सिसिटी से बचने और स्थिरता को बढ़ाने में उनके बाद के संभावित प्रभाव का भी मूल्यांकन किया। उन्होंने मुंह से औषधि के साथ लिए जाने वाले नैनोकणों के भौतिक-रासायनिक गुणों को बढ़ाने के लिए एक सहज प्रतिरक्षा रक्षा तंत्र की अवधारणा बनाई जो प्राकृतिक रूप से मौजूद म्यूकस बाधाओं से प्रभावित और नष्ट हुए बिना आसानी से जठरान्त्रीय (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) मार्ग के माध्यम से शरीर के भीतर पहुँच सकते हैं।
ठोस लिपिड नैनोकणों की सतह पर विटामिन बी12 के लेपन ने आसानी से विलय न होने वाली (अघुलनशील) दवाओं की स्थिरता और लक्षित वितरण को बढ़ाया और लक्ष्य हट जाने की ऑफ-टारगेट क्रियाओं जोखिम को कम करने के साथ ही चिकित्सीय दक्षता को भी बढ़ाया। शोध से पता चला कि विटामिन बी12 एक ऐसा आवश्यक जीवनरक्षक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो सबसे उपेक्षित इस उष्णकटिबंधीय रोग से जुड़े विषाक्त दुष्प्रभावों को कम करके शरीर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, साथ ही इसके उपचार और रोकथाम के लिए एक अनूठे और लाभकारी पूरक के रूप में भी काम करता है। यह न केवल संक्रमण के जोखिम को कम करता है बल्कि व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता में भी वृद्धि करता है। इसके अलावा यह मानव शरीर में विद्यमान पहले से ही प्राकृतिक आंतरिक विटामिन बी12 माध्यम मार्ग का उपयोग करके जैव उपलब्धता और लक्षित वितरण में भी सुधार करता है और इस प्रकार यह संक्रमण फैलने से रोकने के लिए प्रतिरोध भी विकसित कर रहा है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-SCIENCE
फोर्टीफाईड चावल
75वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न योजनाओं के तहत गरीबों को फोर्टिफाइड चावल (fortified rice) उपलब्ध कराने की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- यह निर्णय भारत में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए लिया गया है।
- भारत के हर गरीब व्यक्ति को पोषण उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है।
- यह निर्णय इस दृष्टि से लिया गया है कि गरीब महिलाओं और गरीब बच्चों में कुपोषण और आवश्यक पोषक तत्वों की कमी उनके विकास में एक बड़ी बाधा है।
- बाल कुपोषण बच्चों की वृद्धि और विकास के लिए एक बड़ा खतरा है।
- सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भारतीय आबादी में महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनी हुई है। यह घोषणा महत्वपूर्ण है क्योंकि, सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act – NFSA), 2013 के तहत कवर की गई योजनाओं के तहत 300 लाख टन से अधिक चावल वितरित करती है।
फूड फोर्टिफिकेशन क्या है? (What is food fortification?)
खाद्य सुदृढ़ीकरण (food fortification) सबसे सरल और टिकाऊ सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति है जो सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की चुनौती का समाधान करती है। यह एक लागत प्रभावी, वैज्ञानिक रूप से सिद्ध और विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त दृष्टिकोण है। यह मौजूदा खाद्य वितरण प्रणालियों के माध्यम से व्यापक और कमजोर आबादी तक आसानी से पहुंचने में भी मदद करता है। इसमें विभिन्न किस्म के पोषक तत्त्व जैसे आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन्स इत्यादि शामिल किये जाते हैं।
चावल को फोर्टीफाई क्यों किया जाएगा?
क्योंकि, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, एकीकृत बाल विकास सेवाओं, मध्याह्न भोजन योजनाओं आदि जैसे सरकारी खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों में चावल की मात्रा सबसे अधिक है। इसके अलावा, चावल में 10 लाख से अधिक लोगों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों तक पहुंचने की क्षमता है। फोर्टीफाई किये गये चावल में विभिन्न किस्म के पोषक तत्त्व जैसे आयरन, फोलिक एसिड और विटामिन्स इत्यादि शामिल किये जायेंगे।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.3
TOPIC-SCIENCE
अब लड़कियां भी सैनिक स्कूलों से कर सकेंगी पढ़ाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 75वें स्वतंत्रता दिवस समारोह पर अपने संबोधन के दौरान घोषणा की कि पूरे भारत में सैनिक स्कूल अब महिला छात्रों के लिए भी खुले रहेंगे।
मुख्य बिंदु
- लाखों छात्राओं ने सैनिक स्कूलों में पढ़ाई करने की इच्छा व्यक्त की थी, छात्राओं की इस मांग के बाद अब यह निर्णय लिया गया है।
- करीब ढाई साल पहले मिजोरम के सैनिक स्कूलों में पहली बार लड़कियों को अनुमति दी गई थी।
सैनिक स्कूल (Sainik Schools)
सैनिक स्कूल उन स्कूलों की प्रणाली है जिन्हें सैनिक स्कूल सोसाइटी द्वारा स्थापित और प्रबंधित किया जाता है। यह रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता है। सैनिक स्कूलों की स्थापना का नेतृत्व 1961 में वीके कृष्ण मेनन ने किया था, जो भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री थे।
सैनिक स्कूल क्यों स्थापित किए गए?
भारतीय सेना के अधिकारी संवर्ग के बीच क्षेत्रीय और वर्ग असंतुलन को सुधारने के लिए सैनिक स्कूल स्थापित किए गए थे। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) और भारतीय नौसेना अकादमी (INA) में प्रवेश के लिए छात्रों को मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करने के लिए यह स्कूल खोले गए थे।
अब तक, 33 सैनिक स्कूल थे। अब, रक्षा मंत्रालय सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मोड में 100 और बोर्डिंग सैनिक स्कूल स्थापित करने जा रहा है।
सैनिक स्कूल कौन चलाता है?
रक्षा मंत्रालय संबंधित राज्य सरकारों के सहयोग से सैनिक स्कूल चलाता है। रक्षा मंत्रालय प्रिंसिपल के पद के लिए फंडिंग और सेवारत अधिकारी प्रदान करता है, जबकि राज्य सरकारें भूमि, बुनियादी ढांचा और शिक्षण और प्रशासनिक कर्मचारी प्रदान करती हैं।
सैनिक स्कूलों का पाठ्यक्रम
NDA और INA में प्रवेश के लिए बच्चों को तैयार करने के अतिरिक्त उद्देश्य के साथ सीबीएसई पाठ्यक्रम का उपयोग करके सैनिक स्कूल “सीबीएसई प्लस” पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।
SOURCE-DANIK JAGARAN
PAPER-G.S.2
TOPIC-SOCIAL JUSTICE