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Current Affair 17 June 2021

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17 June Current Affairs

 उत्तरी और पूर्वी सीमा क्षेत्रों में बीआरओ द्वारा निर्मित 12 सड़कों को राष्ट्र को समर्पित

रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 17 जून, 2021 को उत्तरी और पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्रों में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा निर्मित 12 सड़कों को राष्ट्र को समर्पित किया।

असम के लखीमपुर जिले में आयोजित एक कार्यक्रम में रक्षा मंत्री ने 20 किलोमीटर लंबी डबल लेन किमिन-पोटिन सड़क के साथ साथ अरुणाचल प्रदेश में नौ अन्य सड़कों तथा केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में एक-एक सड़क का ऑनलाइन उद्घाटन किया। सड़कों का निर्माण बीआरओ की ‘अरुणांक’, ‘वर्तक’, ‘ब्रह्मांक’, ‘उदयक’, ‘हिमांक’ और ‘संपर्क’ परियोजनाओं के तहत किया गया है।

श्री राजनाथ सिंह ने देश के दूरस्थ सीमावर्ती क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे के विकास में योगदान के लिए, विशेष रूप से कोविड-19 प्रतिबंधों के बीच, बीआरओ की सराहना की। उन्होंने कहा कि आज जिन सड़कों का उद्घाटन किया गया है, वे सामरिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व रखती हैं क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के साथ-साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। उन्होंने कहा कि ये सड़कें हमारे सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरा करने और दवाओं और राशन जैसी जरूरतों को दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने में मददगार साबित होंगी।

रक्षा मंत्री ने कहा कि ये सड़क परियोजनाएं सरकार की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का हिस्सा हैं जिसमें सीमावर्ती क्षेत्रों के समग्र विकास पर विशेष जोर दिया जा रहा है। उन्होंने पूर्वोत्तर के विकास के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के संकल्प को दोहराते हुए इस क्षेत्र को न केवल देश के समग्र विकास का बल्कि पूर्वी एशियाई देशों के साथ राष्ट्र के संबंधों का प्रवेश द्वार भी बताया।

श्री राजनाथ सिंह ने पिछले वर्ष गलवान घाटी की घटना के दौरान अनुकरणीय साहस दिखाने वाले और राष्ट्र की सेवा में सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों को श्रद्धांजलि दी। उन्होंने कहा कि भारत एक शांतिप्रिय राष्ट्र है लेकिन आक्रामकता के प्रति उसकी प्रतिक्रिया दृढ़तापूर्ण रही है।

रक्षा मंत्री ने सरकार द्वारा किए गए कुछ बड़े सुधारों का ज़िक्र भी किया, जिनमें चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति, रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के उपाय और आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) का निगमीकरण करने जैसे कदम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि तेजी से बदलते समय में यह सुधार सैन्य तैयारियों में गेम चेंजर साबित हो रहे हैं।

श्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पित ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत भारत को रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार के निरंतर प्रयासों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि हम भारत को रक्षा विनिर्माण केंद्र बनाने की दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता से आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी, निर्यात बढ़ेगा और हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

सीमा सड़क संगठन

सीमा सड़क संगठन भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क मार्ग के निर्माण एवं व्यवस्थापन का कार्य करता है। सीमावर्ती क्षेत्रों में पहाड़ी इलाके होने से भूमिस्खलन तथा चट्टानों के गिरते-टूटते रहने से सड़कें टूटती रहती हैं। इनको सुचारु बनाये रखने के लिये संगठन को पूरे वर्ष कार्यरत रहना पड़ता है। इसकी स्थापना 1960 में हुई थी।

यह सीमावर्ती क्षेत्रों और मित्र पड़ोसी देशों में सड़क नेटवर्क का विकास और रखरखाव करता है। यह 19 राज्यों, तीन केंद्र शासित प्रदेशों और पड़ोसी देशों जैसे अफगानिस्तान, भूटान, ताजिकिस्तान, म्यांमार और श्रीलंका में बुनियादी ढांचे का संचालन करता है।

भारत के चरम बिंदुओं की सूची

भारत के चरम बिंदुओं में वे निर्देशांक शामिल हैं जो भारत में किसी भी अन्य स्थान की तुलना में अधिक उत्तरी, दक्षिणी, पूर्व या पश्चिमि में स्थित हैं; और देश में सबसे अधिक या सबसे कम ऊंचाई के है। भारत द्वारा दावा किया जाने वाला सबसे उत्तरी बिंदु, भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित क्षेत्र है। कन्याकुमारी (केप कोमोरिन), मुख्य भूमि भारत के सबसे दक्षिणी में स्थित के अपवाद के साथ, अन्य सभी चरम स्थान निर्जन हैं। लेकिन कुछ लोग इंदिरा बिंदु को अन्तिम छोर मानते हैं, हालांकि यह विचार न तो सही है और न ही गलत है।

अक्षांश और देशांतर दशमलव डिग्री संकेतन में व्यक्त किए जाते हैं, जिसमें एक सकारात्मक अक्षांश मान उत्तरी गोलार्ध को संदर्भित करता है, और एक नकारात्मक मान दक्षिणी गोलार्ध को संदर्भित करता है। इसी तरह, एक सकारात्मक देशांतर मान पूर्वी गोलार्ध को संदर्भित करता है, और एक नकारात्मक मूल्य पश्चिमी गोलार्ध को संदर्भित करता है। इस लेख में उपयोग किए गए निर्देशांक गूगल धरती से लिए गए हैं, जो डब्ल्यूजीएस 84 भू-संदर्भ प्रणाली का उपयोग करता है। इसके अतिरिक्त, एक नकारात्मक ऊंचाई मानक, समुद्र तल से नीचे भूमि को संदर्भित करता है।

भारत अपने सबसे उत्तरी बिंदु के रूप में जिस क्षेत्र का दावा करता है, जोकि शिनजियांग के हिस्से के रूप में चीन द्वारा प्रशासित किया जाता है, पहले इस पर हुंजा द्वारा दावा किया गया था और इसलिए भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य के हिस्से के रूप में इस पर दावा किया गया था। भारत द्वारा प्रशासित सबसे उत्तरी बिंदु जम्मू और कश्मीर में स्थित है। पुरे कश्मीर पर भारत के दावे, पाकिस्तान और चीन के साथ विवादित है, इन पूरे क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर राज्य के गिलगित-बल्तिस्तान क्षेत्र, अक्साई चिन, चीनी क्षेत्र और भारतीय प्रशासित राज्य जम्मू-कश्मीर शामिल है। इस सूची में भारत द्वारा दावा किया गया सबसे उत्तरी बिंदु; भारत द्वारा प्रशासित लेकिन विवादित उत्तरी बिंदु; और भारत में निर्विवाद सबसे उत्तरी बिंदु दिये गये है। यह मामला उच्चतम ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर भी लागू होता है।

भारत का सबसे पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश है। राज्य का कुछ हिस्सा चीन द्वारा “दक्षिण तिब्बत” के रूप में दावा किया जाता है, हालांकि यह भारत द्वारा प्रशासित है, भारतीय प्रशासित क्षेत्र का सबसे पूर्वी भाग इस विवादित क्षेत्र में स्थित है। नतीजतन, इस सूची में भारत में विवादित और निर्विवाद रूप से पूर्वी-सर्वाधिक दोनों बिंदुओं का उल्लेख किया गया है।

SOURCE-PIB

 

केबल टेलीविजन नेटवर्क के नियमों में संशोधन

केंद्र सरकार ने आज केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 में संशोधन करते हुए एक अधिसूचना जारी की, जिससे केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम, 1995 के प्रावधानों के अनुसार टेलीविजन चैनलों द्वारा प्रसारित सामग्री से संबंधित नागरिकों की आपत्तियों/शिकायतों के निवारण के लिए एक वैधानिक व्यतवस्थाआ करने का मार्ग प्रशस्त  हो गया है।

वर्तमान में नियमों के तहत कार्यक्रम/विज्ञापन संहिताओं के उल्लंघन से संबंधित नागरिकों की शिकायतों को दूर करने के लिए एक अंतर-मंत्रालय समिति के माध्यम से एक संस्थागत व्यावस्थान है। इसी तरह विभिन्न प्रसारकों ने भी शिकायतों के समाधान के लिए अपने यहां आंतरिक स्व-नियामक व्यवस्था कर रखी है। हालांकि, शिकायत निवारण व्यतवस्थाय को सुदृढ़ करने के लिए एक वैधानिक व्य वस्थास बनाने की आवश्यकता महसूस की गई।  कुछ प्रसारकों ने अपने संबंधित संघों/निकायों को कानूनी मान्यता देने का भी अनुरोध किया था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ‘कॉमन कॉज बनाम भारत संघ और अन्य’ के मामले में 2000 की डब्ल्यूपी (सी) संख्या 387 में अपने आदेश में केंद्र सरकार द्वारा स्थापित शिकायत निवारण की मौजूदा व्यववस्थान पर संतोष व्यक्त करते हुए शिकायत निवारण व्यसवस्थास को औपचारिक रूप प्रदान करने के लिए उचित नियम बनाने की सलाह दी थी।

उपर्युक्ति पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए केबल टेलीविजन नेटवर्क के नियमों में संशोधन किया गया है, ताकि इस वैधानिक व्यथवस्था का मार्ग प्रशस्तट हो सके जो पारदर्शी होगी और जिससे नागरिक लाभान्वित होंगे। इसके साथ ही प्रसारकों के स्व-नियामक निकायों को केंद्र सरकार में पंजीकृत किया जाएगा।

वर्तमान में 900 से भी अधिक टेलीविजन चैनल हैं जिन्हें सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा अनुमति दी गई है, जिनमें से सभी के लिए केबल टेलीविजन नेटवर्क के नियमों के तहत निर्दिष्टल की गई कार्यक्रम और विज्ञापन संहिता का पालन करना आवश्यक है। उपर्युक्त् अधिसूचना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने प्रसारकों और उनके स्व-नियामक निकायों पर जवाबदेही एवं जिम्मेदारी डालते हुए शिकायतों के निवारण के लिए एक मजबूत संस्थागत व्य्वस्थाय करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।

केबल टेलीविज़न नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995 के अनुसार

  • टीवी पर कोई भी ऐसा कार्यक्रम नहीं दिखाया जाना चाहिये जो बच्चों की छवि को खराब करता हो।
  • ऐसे कार्यक्रमों में किसी तरह की अभ्रद भाषा और हिसंक दृश्यों का प्रयोग भी नहीं होना चाहिये।
  • निजी उपग्रह चैनलों को जारी परामर्श में कहा गया है कि वे नृत्यक वाले रियलिटी शो या ऐसे ही अन्य् कार्यक्रमों में बच्चों को ऐसे गलत तरीकों से पेश नहीं करें जिससे उनकी छवि खराब होती हो। मंत्रालय ने चैनलों को इस बारे में अधिकतम संयम, संवेदनशीलता और सतर्कता बरतने की सलाह दी है।

SOURCE-PIB

 

खादी ग्रामोद्योग आयोग

कोविड-19 महामारी से पूरी तरह से प्रभावित साल 2020-21 में  खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने अपना अब तक का सबसे अधिक कारोबार दर्ज किया है। वर्ष 2020-21 में आयोग ने 95,741.74 करोड़ रुपये का सकल वार्षिक कारोबार दर्ज किया। पिछले वर्ष यानी 2019-20 में हुए 88,887 करोड़ रुपए के कारोबार में इस साल करीब 7.71 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई है।

2020-21 में खादी आयोग का रिकॉर्ड प्रदर्शन बहुत महत्व रखता है क्योंकि पिछले साल 25 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा के चलते उत्पादन गतिविधियाँ तीन महीने से अधिक समय तक निलंबित रहीं थी। इस अवधि के दौरान सभी खादी उत्पादन इकाइयाँ और बिक्री आउटलेट बंद रहे जिससे उत्पादन और बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई। हालांकि, खादी आयोग तेजी से माननीय प्रधानमंत्री के ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ के आह्वान पर तेजी से काम किया। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री, श्री नितिन गडकरी के अनोखे मार्केटिंग आइडिया ने केवीआईसी की उत्पाद श्रृंखला को और विविधता प्रदान की,  स्थानीय उत्पादन को बढ़ाया और खादी के क्रमिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया।

वर्ष 2015-16 की तुलना में, 2020-21 में खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्रों में कुल उत्पादन में 101 प्रतिशत की भारी वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि इस अवधि के दौरान कुल बिक्री में 128.66 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

खादी ई-पोर्टल, खादी मास्क, खादी फुटवियर, खादी प्राकृतिक पेंट और खादी हैंड सैनिटाइज़र आदि का शुभारंभ, नई प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) इकाइयों की रिकॉर्ड संख्या की स्थापना, नए स्फूर्ति क्लस्टर, स्वदेशी’ के लिए सरकार की पहल और खादी आयोग का अर्धसैनिक बलों के सामाग्री की आपूर्ति करने के ऐतिहासिक समझौते से महामारी के इस दौर में केवीआईसी के कारोबार में वृद्धि हुई। ग्रामोद्योग ने 2019-20 में 65,393.40 करोड़ रुपए के खादी उत्पादन की तुलना में 2020-21 में 70,329.67 करोड़ रुपए का उत्पादन किया। इसी तरह से वित्त वर्ष 2020-21 में ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री 92,214.03 करोड़ रुपए की हुई। जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा 84,675.29 करोड़ का था।

खादी क्षेत्र में उत्पादन और बिक्री में थोड़ी गिरावट आई क्योंकि देश भर में कताई और बुनाई गतिविधियां महामारी के चलते बंद रहीं। खादी क्षेत्र में 2020-21 में कुल उत्पादन 1904.49 करोड़ रुपये का हुआ जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा 2292.44 करोड़ रुपए का था। 2020-21 में कुल खादी बिक्री 3527.71 करोड़ रुपए की हुई और पिछले वर्ष में यह बिक्री 4211.26 करोड़ रुपए की थी।

खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) (Khadi and Village Industries Commission), संसद के ‘खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम 1956’ के तहत भारत सरकार द्वारा निर्मित एक वैधानिक निकाय है। यह भारत में खादी और ग्रामोद्योग से संबंधित सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय (भारत सरकार) के अन्दर आने वाली एक शीर्ष संस्था है, जिसका मुख्य उद्देश्य है – “ग्रामीण इलाकों में खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना और विकास करने के लिए योजना बनाना, प्रचार करना, सुविधाएं और सहायता प्रदान करना है, जिसमें वह आवश्यकतानुसार ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्यरत अन्य एजेंसियों की सहायता भी ले सकती है।” अप्रैल 1957 में, पूर्व के अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामीण उद्योग बोर्ड का पूरा कार्यभार इसने संभाल लिया।

इसका मुख्यालय मुंबई में है, जबकि अन्य संभागीय कार्यालय दिल्ली, भोपाल, बंगलोर, कोलकाता, मुंबई और गुवाहाटी में स्थित हैं। संभागीय कार्यालयों के अलावा, अपने विभिन्न कार्यक्रमों का कार्यान्वयन करने के लिए 29 राज्यों में भी इसके कार्यालय हैं।

आयोग के उद्देश्य

आयोग के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं जो इसके कार्यों को निर्देशित करते हैं। ये इस प्रकार हैं –

  • सामाजिक उद्देश्य – ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराना।
  • आर्थिक उद्देश्य – बेचने योग्य सामग्री प्रदान करना।
  • व्यापक उद्देश्य – लोगों को आत्मनिर्भर बनाना और एक सुदृढ़ ग्रामीण सामाजिक भावना का निर्माण करना।

आयोग विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन और नियंत्रण द्वारा इन उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है।

आयोग की योजनायें और कार्यक्रम

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी)

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) दो योजनाओं के विलय का परिणाम
है – प्रधानमंत्री रोजगार योजना (पीएमआरवाई) और ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (आरईजीपी)।

इस योजना के तहत, लाभार्थी को परियोजना की लागत के 10 प्रतिशत का निवेश स्वयं के योगदान के रूप में करना होता है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों से लाभार्थी के लिए यह योगदान परियोजना की कुल लागत का 5 प्रतिशत होता है। शेष 90 या 95% प्रतिशत (जो भी उपयुक्त हो), इस योजना के तहत निर्दिष्ट बैंकों द्वारा प्रदान किया जाता है। इस योजना के तहत लाभार्थी को ऋण की एक निश्चित रकम वापस दी जाती है (सामान्य के लिए 25%, ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर वर्गों के लिए 35%), जो कि ऋण प्राप्त करने की तिथि के दो वर्षों के बाद उसके खाते में आती है।

ब्याज अनुवृत्ति पात्रता प्रमाणपत्र योजना (आईएसईसी)

ब्याज अनुवृत्ति पात्रता प्रमाणपत्र (ISEC) योजना, खादी कार्यक्रम के लिए धन का प्रमुख स्रोत है। इसे मई 1977 में, धन की वास्तविक आवश्यकता और बजटीय स्रोतों से उपलब्ध धन के अंतर को भरने हेतु बैंकिंग संस्थानों से धन को एकत्र करने के लिए शुरू किया गया था।

इस योजना के तहत, बैंक द्वारा सदस्यों को उनकी कार्यात्मक/निश्चित राशि की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए ऋण प्रदान किया जाता है। ये ऋण 4% प्रतिवर्ष की रियायती ब्याज दर पर उपलब्ध कराये जाते हैं। वास्तविक ब्याज दर और रियायती दर के बीच के अंतर को आयोग द्वारा अपने बजट के ‘अनुदान’ मद के तहत वहन किया जाता है। हालांकि, केवल खादी या पॉलीवस्त्र (एक प्रकार की खादी) का निर्माण करने वाले सदस्य ही इस योजना के लिए योग्य होते हैं।

छूट योजना

सरकार द्वारा खादी और खादी उत्पादों की बिक्री पर छूट उपलब्ध कराई जाती है ताकि अन्य कपड़ों की तुलना में इनके मूल्यों को सस्ता रखा जा सके। ग्राहकों को पूरे वर्ष सामान्य छूट (10 प्रतिशत) और साल में 108 दिन अतिरिक्त विशेष छूट (10 प्रतिशत) दी जाती है।

छूट केवल आयोग/राज्य बोर्ड द्वारा संचालित संस्थाओं/केन्द्रों द्वारा की गई बिक्री और साथ ही खादी और पॉलीवस्त्र के निर्माण में संलग्न पंजीकृत संस्थाओं द्वारा संचालित बिक्री केन्द्रों पर ही दी जाती है।

हाल ही में, वित्त मंत्रालय ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय से खादी और ग्रामोद्योग के लिए अपनी छूट योजनाओं को पुनः बनाने के लिए कहा है। उनका दृष्टिकोण यह है कि “मंत्रालय द्वारा इस योजना को साल-दर-साल बढ़वाने की चेष्टा करने की बजाय योजना आयोग के समक्ष जाना चाहिए। इसके अलावा, इसने एमएसएमई मंत्रालय से योजना का इस प्रकार पुनः निर्माण करने के लिए कहा है जिससे यह विक्रेता की बजाय कारीगरों को फायदा पहुंचाए”। इस संबंध में, आयोग का एक प्रस्ताव जिसमें बिक्री पर छूट के संभावित विकल्प के रूप में बाज़ार विकास सहयोग शुरू करने की बात कही गयी है, भारत सरकार द्वारा विचाराधीन है।

आयोग को बजटीय समर्थन

केंद्र सरकार आयोग को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय के माध्यम से दो मदों के तहत धन प्रदान करती है: योजनाकृत और गैर-योजनाकृत. आयोग द्वारा ‘योजनाकृत’ मद के तहत प्रदान किये गए धन का आवंटन कार्यान्वयन एजेंसियों को किया जाता है। ‘गैर-योजनाकृत’ मद के तहत प्रदान किया गया धन मुख्य रूप से आयोग के प्रशासनिक व्यय के लिए होता है। धन मुख्य रूप से अनुदान और ऋण के माध्यम से प्रदान किया जाता है।

SOURCE-PIB

 

मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस

संयुक्त राष्ट्र हर साल 17 जून को मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस (World Day to Combat Desertification and Drought) मनाता है।

थीम : Restoration. Land. Recovery

मुख्य बिंदु

मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण के प्रति सार्वजनिक दृष्टिकोण को बदलने पर ध्यान केंद्रित करता है।

महत्व

जैसे-जैसे वैश्विक जनसंख्या बढ़ रही है और दुनिया समृद्ध होती जा रही है, भोजन, वस्त्र और पशुओं के चारे के लिए भूमि की अधिक आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व की जनसंख्या 2050 तक 10 बिलियन तक पहुंच जाएगी। इतनी बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए 2010 के स्तर की तुलना में 2050 तक अतिरिक्त 593 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि की आवश्यकता है। यह भारत के क्षेत्रफल का दोगुना है।

दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि की उर्वरता और उत्पादकता घट रही है। इस प्रकार, मरुस्थलीकरण और सूखे का मुकाबला करने के लिए विश्व दिवस लोगों को भूमि क्षरण के प्रभावों को कम करने के बारे में शिक्षित करने पर केंद्रित है।

पृष्ठभूमि

संयुक्त राष्ट्र ने 1995 में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के मसौदा तैयार किए जाने के बाद इस दिन की घोषणा की थी।

सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals)

एसडीजी के लिए 2030 एजेंडा में पृथ्वी को क्षरण से बचाना शामिल है। एसडीजी 15 का उद्देश्य भूमि क्षरण को रोकना।

SOURCE-GK TODAY

 

कोरोनावायरस का AY.1 वेरिएंट क्या

हाल ही में, WHO ने कोरोनावायरस के B.1.617.2 स्ट्रेन को ‘डेल्टा’ वेरिएंट के रूप में टैग किया, जो अब और बदल गया है। डेल्टा संस्करण के उत्परिवर्तित (mutated) रूप को “Delta Plus” या “AY.1” संस्करण कहा जा रहा है।

मुख्य बिंदु

  • डेल्टा संस्करण की पहचान भारत में कोरोनावायरस संक्रमण की दूसरी लहर के कारकों में से एक के रूप में की गई थी।
  • प्रारंभिक आंकड़ों से पता चला है कि, डेल्टा प्लस संस्करण में मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल उपचार के खिलाफ प्रतिरोध है, जिसे हाल ही में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) द्वारा COVID-19 उपचार के लिए अधिकृत किया गया था।

डेल्टा प्लस वेरिएंट (Delta Plus Variant)

कोरोनावायरस के वेरिएंट B.1.617.2.1 को AY.1 के रूप में जाना जाता है। भारत में अब तक 6 जीनोम में डेल्टा प्लस वेरिएंट की पहचान की गई है। स्वास्थ्य एजेंसी ने नए K417N म्यूटेशन के साथ डेल्टा वेरिएंट के 63 जीनोम की मौजूदगी की भी पुष्टि की है। हालांकि, चिंता का कोई तात्कालिक कारण नहीं है क्योंकि भारत में डेल्टा प्लस वेरिएंट का प्रचलन अभी भी कम है।

दुनिया भर में मामले

रिपोर्ट्स के मुताबिक, इंग्लैंड में डेल्टा प्लस वेरिएंट के 36 मामले सामने आए हैं। अधिकांश मामले नेपाल, मलेशिया, तुर्की और सिंगापुर की यात्रा से जुड़े थे।

SOURCE-GK TODAY

 

 नेट्रियमन्यूक्लियर प्लांट क्या

ऊर्जा के क्षेत्र में ये एक अहम मोड़ है” – माइक्रोसॉफ़्ट के संस्थापक बिल गेट्स जब इस हफ़्ते ऊर्जा से जुड़े अपने नए पायलट प्रॉजेक्ट ‘नेट्रियम’ के बारे में बात कर रहे थे, तो उन्होंने प्रॉजेक्ट का परिचय इन्हीं शब्दों के साथ दिया।

गेट्स ने एक नए क़िस्म के अपने इस न्यूक्लियर पावर प्लांट को ‘नेट्रियम’ नाम दिया है। इसका पेटेंट कराया जा चुका है।

बिल गेट्स इस प्रॉजेक्ट पर वॉरेन बफ़ेट के साथ काम कर रहे हैं जो इसमें करोड़ों का निवेश कर रहे हैं।

परमाणु ऊर्जा और नवीकरणीय उर्जा भले विरोधाभासी बातें लगें, लेकिन कुछ क्षेत्रों में इन छोटे और अडवांस रिऐक्टर्स को ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटाने और हवा-सौर ऊर्जा की कमी के दौरान बिजली की आपूर्ति करने में अहम तकनीक मानते हैं। ये परंपरागत ईंधनों से इतर अलग-अलग ईंधनों पर चलते हैं।

ये प्लांट अमेरिका के व्योमिंग राज्य में बनाया जाएगा जो अमेरिका का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है। ये गेट्स के जलवायु परिवर्तन के ख़िलाफ़ लड़ाई और बार-बार इस्तेमाल की जा सकने वाली (नवीकरणीय) ऊर्जा को बढ़ावा देने के लक्ष्य का एक हिस्सा है।

15 साल पहले बिल गेट्स की बनाई कंपनी ‘टेरापावर’ इसी आधार पर इस प्रॉजेक्ट पर काम कर रही है। इसमें वॉरेन बफ़ेट की ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी ‘पैसिफ़िकॉर्प’ भी शामिल है।

टेरापावर ने अपनी वेबसाइट पर ज़ोर देकर कहा है, “नेट्रियम रिऐक्टर और इसका एकीकृत पावर सिस्टम बताता है कि परमाणु ऊर्जा में अनेक संभावनाएं हैं और इसमें प्रतिस्पर्धा की जा सकती है।”

इसका पायलट प्रॉजेक्ट फिलहाल बंद हो चुके एक कोयला संयंत्र की जगह बनाया जाएगा। लेकिन ये प्रोजेक्ट आख़िर किस जगह पर पर बनाया जाएगा इसका ऐलान इस साल के आख़री तक किया जाएगा।

नेट्रियम काम कैसे करता है?

टेरापावर की वेबसाइट पर दी जानकारी के मुताबिक़ ये ऊर्जा उत्पादन और भंडारण की नई तकनीक है, जिसमें तेज़ सोडियम रिऐक्टर और तरल नमक से भंडारण की तकनीक को साथ में इस्तेमाल किया जाता है और ये 345 मेगावाट बिजली के उत्पादन की क्षमता रखता है।

कंपनी के मुताबिक़ ये भंडारण तकनीक ज़रूरत पड़ने पर साढ़े पांच घंटे तक 500 मेगावाट बिजली की आपूर्ति कर सकती है। इससे क़रीब चार लाख घरों में बिजली की ज़रूरत को पूरा किया जा सकता है।

स्पेन की न्यूक्लियर इंडस्ट्री फ़ोरम के मुताबिक़, “नेट्रियम एक नई तकनीक है, जिसका मक़सद मौजूदा रिऐक्टर्स की तकनीक को और आसान बनाना है।” इस फ़र्म ने टेरापावर के साथ मिलकर इस तकनीक को विकसित किया है।

फ़ोरम के मुताबिक़ इस न्यूक्लियर रिऐक्टर में प्राकृतिक यूरेनियम और कमज़ोर यूरेनियम को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। वहीं सभी गैर-परमाणु उपकरणों को अलग-अलग इमारतों में रखा जाएगा, जिससे इसे इंस्टॉल करना आसान होगा और लागत भी कम आएगी।

कंपनी के प्रेसिडेंट क्रिस लेवेस्क्यू ने बताया कि इस प्रॉजेक्ट का पायलट प्लांट यानी पहला प्लांट बनाने में क़रीब सात साल का वक़्त लगेगा।

नेट्रियम के बारे में बात करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा, “हमें 2030 तक इस तरह की क्लीन एनर्जी अपने सिस्टम में चाहिए ही चाहिए।”

ये प्रॉजेक्ट अमेरिकी सरकार के ऊर्जा विभाग के अडवांस रिऐक्टर प्रदर्शन कार्यक्रम का हिस्सा भी है। बिज़नेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ नेट्रियम प्रॉजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए टेरापावर को अमेरिकी ऊर्जा विभाग से आठ करोड़ डॉलर का आर्थिक पैकेज भी मिला है। विभाग ने अगले कुछ बरसों तक इस प्रॉजेक्ट को और अनुदान देने का वादा भी किया है।

इस प्रॉजेक्ट के कार्यक्रम में व्योमिंग के गवर्नर मार्क गॉर्डन ने ज़ोर देते हुए कहा कि राज्य के ‘निगेटिव कार्बन फ़ुटप्रिंट’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए ये ‘सबसे तेज़ और साफ़-सुथरा रास्ता’ है।

प्लांट को लेकर चिंताएं

हालांकि, कुछ अन्य क्षेत्रों में इस तरह के प्रॉजेक्ट्स को लेकर संदेह भी हैं।

अमेरिका में विज्ञान की वकालत करनेवाले एक गैर-लाभकारी समूह ‘यूनियन ऑफ़ कन्सर्न्ड साइंटिस्ट्स’ (UCS) ने चेतावनी दी है कि नेट्रियम जैसे अडवांस रिऐक्टर्स परंपरागत ख़तरों के मुक़ाबले कहीं बड़ा ख़तरा पेश कर सकते हैं।

UCS के डायरेक्टर एडिविन लाइमन ने रॉयटर्स से बातचीत में कहा, “ये तकनीक निश्चित तौर पर मौजूदा रिऐक्टर्स से अलग है, लेकिन ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि ये बेहतर हैं।”

UCS से प्रकाशित रिपोर्ट “अडवांस हमेशा बेहतर नहीं होता’ के लेखक लाइमन का मानना है, ‘सुरक्षा, हादसों की आशंका और परमाणु प्रसार जैसे कई मामलों में ये बदतर हैं।”

लाइमन की इस रिपोर्ट में समूह ने चेतावनी दी है कि परंपरागत ईंधन के मुक़ाबले तमाम अडवांस रिऐक्टर्स के लिए ईंधन के ज़्यादा संपन्न होने की ज़रूरत होगी। इसका मतलब है कि इस ईंधन की आपूर्ति हथियार बनाने में जुटे आतंकवादियों के लिए आसान निशाना हो सकती है।

समूह की गुज़ारिश है, “अगर परमाणु ऊर्जा जलवायु परिवर्तन को रोकने में अहम भूमिका निभानेवाली है, तो नए बनाए जा रहे रिऐक्टर्स का सुरक्षित और सस्ता सिद्ध होना बेहद ज़रूरी है।

“टेरापावर के अध्यक्ष लेवेस्क्यू ने बचाव में कहा है कि ये प्लांट परमाणु कचरे को कम करने में अहम भूमिका निभाएं।

SOURCE-BBCNEWS

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