Current Affairs – 18 August, 2021
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों से संबंधित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किए गए किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को स्वीकृति दी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उपयोग को चरणबद्ध तरीके समाप्त करने के लिए ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों से संबंधित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किए गए किगाली संशोधन के अनुसमर्थन को स्वीकृति दे दी है। इस संशोधन को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के लिए अक्टूबर, 2016 में रवांडा के किगाली में आयोजित मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों की 28वीं बैठक के दौरान अंगीकृत किया गया था।
लाभ :
- एचएफसी के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से बंद करने से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिलेगी और इससे लोगों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- गैर-एचएफसी और कम ग्लोबल वार्मिंग संभावित प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण के अंतर्गत तय समय-सीमा के अनुसार हाइड्रोफ्लोरोकार्बन का उत्पादन और खपत करने वाले उद्योग हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करेंगे।
कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य :
- हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम करने के लिए भारत में लागू समय-सारणी के अनुसार हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए राष्ट्रीय रणनीति को सभी उद्योग हितधारकों के साथ आवश्यक परामर्श के बाद 2023 तक तैयार किया जाएगा।
- किगाली संशोधन के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन और खपत के उचित नियंत्रण की अनुमति देने के लिए वर्तमान कानूनी ढांचे में संशोधन, ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियमों को 2024 के मध्य तक बनाया जाएगा।
रोजगार सृजन क्षमता सहित प्रमुख प्रभाव :
- हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीके से कम करने से ग्रीनहाउस गैसों के बराबर 105 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को रोकने की उम्मीद है, जिससे 2100 तक वैश्विक तापमान में वृद्धि को 5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने में मदद मिलेगी, जबकि इससे ओजोन परत की रक्षा को भी सुनिश्चित किया जाना जारी रहेगा।
- कम ग्लोबल वार्मिंग क्षमता और ऊर्जा कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाने के माध्यम से किगाली संशोधन के तहत एचएफसी चरण को लागू करने से न सिर्फ ऊर्जा दक्षता लाभ प्राप्त होगा बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कमी से यह जलवायु के लिए भी लाभकारी सिद्ध होगा।
- एचएफसी को चरणबद्ध तरीके से कम करने की योजना के कार्यान्वयन से पर्यावरणीय लाभ के अलावा, आर्थिक और सामाजिक सह-लाभों को अधिकतम रूप में हासिल करने के उद्देश्य से, भारत सरकार के वर्तमान में जारी सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के साथ इसका तालमेल बनाना होगा।
- उपकरणों के घरेलू निर्माण के साथ-साथ वैकल्पिक गैर-एचएफसी और कम ग्लोबल वार्मिंग संभावित रसायनों के लिए गुंजाइश होगी ताकि उद्योगों को एचएफसी को चरणबद्ध तरीके से तय समय-सीमा के अनुसार कम ग्लोबल वार्मिंग वाले संभावित विकल्पों को अपनाने में सक्षम बनाया जा सके। इसके अलावा, नई पीढ़ी के वैकल्पिक रेफ्रिजरेंट और संबंधित प्रौद्योगिकियों के लिए घरेलू नवाचार को बढ़ावा देने के अवसर भी मिलेंगे।
विवरण :
- किगाली संशोधन के तहत; मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकार हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्पादन और खपत को कम कर देंगे, जिसे आमतौर पर एचएफसी के रूप में जाना जाता है।
- हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) को क्लोरोफ्लोरोकार्बन के गैर-ओजोन क्षयकारी विकल्प के रूप में पेश किया गया था, जबकि एचएफसी स्ट्रेटोस्फेरिक की ओजोन परत को कम नहीं करते हैं, इनमें 12 से 14,000 तक उच्च ग्लोबल वार्मिंग की क्षमता होती है, जिसका जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के पक्षकारों ने एचएफसी के उपयोग में वृद्धि को स्वीकार करते हुए, विशेष रूप से रेफ्रिजरेशन और एयर कंडीशनिंग क्षेत्र में, एचएफसी को सूची में जोड़ने के लिए अक्टूबर 2016 में रवांडा के किगाली में आयोजित पक्षकारों की 28वीं बैठक (एमओपी) में इस समझौते पर सहमति जताई थी। बैठक में नियंत्रित पदार्थों और 2040 के अंत तक इन पदार्थों में 80-85 प्रतिशत तक की क्रमिक कमी के लिए एक समय-सीमा को भी मंजूरी दी गई।
- भारत 2032 से 4 चरणों में एचएफसी के अपने चरण को 2032 में 10%, 2037 में 20%, 2042 में 30% और 2047 में 80% की संचयी कमी के साथ पूरा करेगा।
- किगाली संशोधन से पहले मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के सभी संशोधनों और समायोजनों को सार्वभौमिक समर्थन प्राप्त है।
पृष्ठभूमि :
- ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओजोन परत के संरक्षण के लिए एक अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण संधि है, जिसमें मानव निर्मित रसायनों के उत्पादन और खपत को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाता है, इन्हें ओजोन क्षयकारी पदार्थ (ओडीएस) कहा जाता है। स्ट्रेटोस्फेरिक की ओजोन परत मानव और पर्यावरण को सूर्य से आने वाली पराबैंगनी विकिरणों के हानिकारक स्तरों से बचाती है।
- भारत 19 जून 1992 को ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का एक पक्षकार बन गया था और तभी से भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में संशोधनों की पुष्टि की है। कैबिनेट की वर्तमान मंजूरी, भारत में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को चरणबद्ध तरीक से कम करने के लिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में किगाली संशोधन की पुष्टि करेगा।
- भारत ने मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अनुसूची के अनुसार सभी ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लक्ष्यों को सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल, ओज़ोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थों के बारे में (ओज़ोन परत के संरक्षण के लिए वियना सम्मलेन में पारित प्रोटोकॉल) अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो ओज़ोन परत को संरक्षित करने के लिए, चरणबद्ध तरीके से उन पदार्थों का उत्सर्जन रोकने के लिए बनाई गई है, जिन्हें ओज़ोन परत को क्षीण करने के लिए उत्तरदायी माना जाता है। इस संधि को हस्ताक्षर के लिए 16 सितंबर 1987 को खोला गया था और यह 1 जनवरी 1989 में प्रभावी हुई, जिसके बाद इसकी पहली बैठक मई, 1989 में हेलसिंकी में हुई. तब से, इसमें सात संशोधन हुए हैं, 1990 में लंदन 1991 नैरोबी 1992 कोपेनहेगन 1993 बैंकाक 1995 वियना 1997 मॉन्ट्रियल और 1999 बीजिंग में ऐसा माना जाता है कि अगर अंतर्राष्ट्रीय समझौते का पूरी तरह से पालन हो तो,2050 तक ओज़ोन परत ठीक होने की उम्मीद है. व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त करने तथा लागू होने के कारण, इसे असाधारण अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के एक उदाहरण के रूप में कोफी अन्नान द्वारा यह कहते हुए उद्धृत किया कि “आज तक हुए अंतर्राष्ट्रीय समझौतों में से मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल शायद अकेला सबसे सफल समझौता है। इसे 196 राज्यों द्वारा मान्यता दी गई है।
किगाली समझौता
हाल ही में रंवाडा (Rawanda) के नगर किगाली में 197 देशों ने ग्रीनहाउस गैस समूह के प्रबल गैसों का रोकने के लिए समझौता किया है। ऐसा करने से शताब्दी के अंत तक विश्व के तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की कमी आ जाने की उम्मीद है। हाइड्रोफ्लोरोकार्बन क्या है?
- यह ग्रीनहाउस परिवार की ऐसी गैस है, जो घरों एवं कारों में ठंडक देने वाले उपकरणों में प्रयोग की जाती है। सामान्य तौर पर इसे R-22 के नाम से भी जाना जाता है।
- 1 किग्रा. कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में यह गैस 14,800 गुना अधिक गर्मी बढ़ाती है।
- विश्व में बढ़ती ग्रीन हाउस गैसों में इसका अनुपात सबसे ज्यादा है। इसका उत्सर्जन प्रतिवर्ष 10 प्रतिशत बढ़ रहा है।
- समझौते की विशेषता क्या है?
- भारत, चीन एवं अमेरिका जैसे देशों ने 2045 तक एचएफसी के प्रयोग में 85 प्रतिशत कमी करने का संकल्प किया है।
- इस समझौते में 1987 के मान्ट्रियल समझौते में एक प्रकार से सुधार किया गया है। पहले जहां महत्वपूर्ण देश ओजोन लेयर का नाश करने वाली गैसों के नियंत्रण तक ही सीमित थे, वे अब ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी गैसों के नियंत्रण की बात कर रहे हैं।
- यह समझौता एक तरह से पेरिस समझौते की ही पुष्टि है, जिसमें सन् 2100 तक विश्व के तापमान में 20 सैल्सियस की कमी करने का प्रस्ताव पारित किया गया था।
- इस समझौते में शामिल सभी देशों ने एचएफसी पर नियंत्रण के लिए अलग-अलग समय सीमा रखी है। भारत ने अपनी समय सीमा 2028 रखी है।
- इस समझौते में अभी एचएससी के 19 में से केवल एक प्रकार एचएफसी-23 को ही चरणबद्ध तरीके से हटाने की बात कही गई है।
- इस समझौते में दी गई समय सीमा का पालन न करने वाले देशों को दंड दिए जाने का भी प्रावधान रखा गया है।
- समझौते के बिन्दुओं की पूर्ति के लिए विकसित देश पर्याप्त धनराशि मुहैया कराएंगे। साथ ही एचएफसी के विकल्प के लिए शोध एवं अनुसंधान को वरीयता पर रखा गया है।
भारत की भूमिका
- समझौते में भारत ने 2024-2026 की बेसलाइन पर 2031 तक एचएफसी को फ्रीज करने का लक्ष्य रखा है। इसका अर्थ है कि वह 2024-2026 में जितनी एचएफसी का उत्सर्जन कर रहा होगा, उसे 2031 के बाद बिल्कुल बढ़ने नहीं देगा।
- भारत जैसे कई विकासशील देश एचएफसी के उत्सर्जन को खत्म करने के लिए समय सीमा बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि एचएफसी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त रेफ्रीजरेंट्स का पेटेंट मूल्य बहुत अधिक है।
- रेफ्रीजरेंट का निर्माण करने वाली कंपनियों को प्रति किलो एचएफसी 23 को नष्ट करने में 19 रुपये की लागत आएगी। लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि क्या ये कंपनियां इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डालेंगी। हालांकि भारत ने विकसित देशों से मांग की है कि वे हमारी रेफ्रीजरेंट कंपनियों को वैकल्पिक रेफ्रीजरेंट की कीमत का बोझ उठाने में सहयोग दें।
- विश्लेषकों का अनुमान है कि किगाली समझौते से भारत के आर्थिक विकास के भविष्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-ENVIRONMENT
राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन–पाम ऑयल
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में ताड़ के तेल (पाम ऑयल) के लिये एक नये मिशन की शुरुआत को मंजूरी दी गई है, जिसका नाम राष्ट्रीय खाद्य तेल–पाम ऑयल मिशन (एनएमईओ-ओपी) है। यह केंद्र द्वारा प्रायोजित एक नई योजना है और इसका फोकस पूर्वोत्तर के क्षेत्रों तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह पर है। खाद्य तेलों की निर्भरता बड़े पैमाने पर आयात पर टिकी है, इसलिये यह जरूरी है कि देश में ही खाद्य तेलों के उत्पादन में तेजी लाई जाये। इसके लिये पाम ऑयल का रकबा और पैदावार बढ़ाना बहुत अहम है।
इस योजना के लिये 11,040 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय निर्धारित किया गया है, जिसमें से केंद्र सरकार 8,844 करोड़ रुपये का वहन करेगी। इसमें 2,196 करोड़ रुपये राज्यों को वहन करना है। इसमें आय से अधिक खर्च होने की स्थिति में उस घाटे की भरपाई करने की भी व्यवस्था शामिल की गई है।
इस योजना के तहत, प्रस्ताव किया गया है कि वर्ष 2025-26 तक पाम ऑयल का रकबा 6.5 लाख हेक्टेयर बढ़ा दिया जाये और इस तरह आखिरकार 10 लाख हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य पूरा कर लिया जाये। आशा की जाती है कच्चे पाम ऑयल (सीपीओ) की पैदावार 2025-26 तक 11.20 लाख टन और 2029-30 तक 28 लाख टन तक पहुंच जायेगी।
इस योजना से पाम ऑयल के किसानों को बहुत लाभ होगा, पूंजी निवेश में बढ़ोतरी होगी, रोजगार पैदा होंगे, आयात पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय भी बढ़ेगी।
वर्ष 1991-92 से भारत सरकार ने तिलहन और पाम ऑयल की पैदावार बढ़ाने के अनेक प्रयास किये थे। वर्ष 2014-15 में 275 लाख टन तिहलन का उत्पादन हुआ था, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 365.65 लाख टन हो गया है। पाम ऑयल की पैदावार की क्षमता को मद्देनजर रखते हुये वर्ष 2020 में भारतीय तेल ताड़ अनुसंधान संस्थान (आईआईओपीआर) ने पाम ऑयल की खेती के लिये एक विश्लेषण किया था। उसने लगभग 28 लाख हेक्टेयर में पाम ऑयल की खेती के बारे में अपने विचार व्यक्त किये थे। लिहाजा, ताड़ के पौधे लगाने की अपार क्षमता मौजूद है, जिसके आधार पर कच्चे ताड़ के तेल की पैदावार भी बढ़ाई जा सकती है। मौजूदा समय में ताड़ की खेती के तहत केवल 3.70 लाख हेक्टेयर का रकबा ही आता है। अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ताड़ के तेल का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 10 से 46 गुना अधिक होता है। इसके अलावा एक हेक्टेयर की फसल से लगभग चार टन तेल निकलता है। इस तरह, इसकी खेती में बहुत संभावनाएं हैं।
उपरोक्त को ध्यान में रखें और यह तथ्य भी देखें कि आज भी लगभग 98 प्रतिशत कच्चा ताड़ का तेल आयात किया जाता है। इसे मद्देनजर रखते हुए योजना शुरू करने का प्रस्ताव किया गया है, ताकि देश में ताड़ की खेती का रकबा और पैदावार बढ़ाई जाये। प्रस्तावित योजना में मौजूदा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन-तेल ताड़ कार्यक्रम को शामिल कर दिया जायेगा।
इस योजना में दो प्रमुख क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया गया है। पाम ऑयल के किसान ताजे फलों के गुच्छे (एफएफबी) तैयार करते हैं, जिनके बीज से तेल-उद्योग तेल निकालता है। इस समय इन एफएफबी की कीमतें सीपीओ के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में उतार-चढ़ाव के आधार पर तय होती हैं। पहली बार केंद्र सरकार इन एफएफबी की कीमत के लिए किसानों को आश्वासन दे रही है। यह व्यवहार्यता मूल्य (वीपी) कहलाएगा, यानी किसानों को कोई घाटा नहीं होने दिया जाएगा। इसके जरिये सीपीओ की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव से किसानों के हितों की रक्षा की जाएगी। यह व्यवहार्यता मूल्य पिछले पांच वर्षों के दौरान वार्षिक औसत सीपीओ कीमत के आधार पर होगा तथा थोक मूल्य सूचकांक में दिये गये पाम ऑयल के आंकड़े में 14.3 प्रतिशत का इजाफा कर दिया जायेगा। यानी व्यवहार्यता मूल्य इन दोनों को मिलाकर तय होगा। इसे तय करने की शुरुआत एक नवंबर से होगी और अगले वर्ष 31 अक्टूबर तक की अवधि तक जारी रहेगी, जिसे ‘पाम ऑयल वर्ष’ कहा जाता है। इस आश्वसन से भारत के ताड़ की खेती करने वाले किसानों में विश्वास पैदा होगा और वे खेती का रकबा बढ़ायेंगे। इस तरह ताड़ के तेल का उत्पादन भी बढ़ेगा। फार्मूला मूल्य (एफपी) भी निर्धारित किया जायेगा, जिसके तहत क्रेता-विक्रेता अग्रिम रूप से कीमतों पर राजी होंगे। यह महीने के आधार पर सीपीओ का 14.3 प्रतिशत होगा। अगर जरूरत पड़ी तो व्यवहार्यता मूल्य व फार्मूला मूल्य के आधार पर आय-व्यय के अंतराल की भरपाई की जायेगी, ताकि किसानों को घाटा न हो। इस धनराशि को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के रूप में सीधे किसानों के खातों में भेज दिया जायेगा।
किसानों को व्यवहार्यता अंतराल की भरपाई के रूप में आश्वासन दिया गया है। उद्योग सीपीओ कीमत का 14.3 प्रतिशत का भुगतान करेंगे, जो 15.3 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। योजना में यह प्रावधान भी किया गया है कि एक निश्चित अवधि के बाद नियम-कानून स्वतः समाप्त हो जायेंगे। इसकी तारीख एक नवंबर, 2037 तय की गई है। पूर्वोत्तर और अंडमान में इस सम्बन्ध में तेजी लाने के लिये केंद्र सरकार सीपीओ की दो प्रतिशत लागत अतिरिक्त रूप से वहन करेगी, ताकि यहां के किसानों को देश के अन्य स्थानों के किसानों के बराबर भुगतान सुनिश्चित हो सके। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित तौर-तरीकों को अपनाने वाले राज्यों को योजना में उल्लिखित व्यवहार्यता अंतराल भुगतान का लाभ मिलेगा। इसके लिये उन्हें केंद्र सरकार के साथ समझौता-ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने होंगे।
योजना का दूसरा प्रमुख पहलू यह है कि विभिन्न तरह की भूमिकाओं और गतिविधियों में तेजी लाई जाये। ताड़ की खेती के लिये सहायता में भारी बढ़ोतरी की गई है। पहले प्रति हेक्टेयर 12 हजार रुपये दिये जाते थे, जिसे बढ़ाकर 29 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर कर दिया गया है। इसके अलावा रख-रखाव और फसलों के दौरान भी सहायता में बढ़ोतरी की गई है। पुराने बागों को दोबारा चालू करने के लिये 250 रुपये प्रति पौधा के हिसाब से विशेष सहायता दी जा रही है, यानी एक पौधा रोपने पर 250 रुपये मिलेंगे।
देश में पौधारोपण साजो-सामान की कमी को दूर करने के लिये, बीजों की पैदावार करने वाले बागों को सहायता दी जायेगी। इसके तहत भारत के अन्य स्थानों में 15 हेक्टेयर के लिये 80 लाख रुपये तक की सहायता राशि दी जायेगी, जबकि पूर्वोत्तर तथा अंडमान क्षेत्रों में यह सहायता राशि 15 हेक्टेयर पर एक करोड़ रुपये निर्धारित की गई है। इसके अलावा शेष भारत में बीजों के बाग के लिये 40 लाख रुपये और पूर्वोत्तर तथा अंडमान क्षेत्रों के लिये 50 लाख रुपये तय किये गये हैं। पूर्वोत्तर और अंडमान को विशेष सहायता का भी प्रावधान है, जिसके तहत पहाड़ों पर सीढ़ीदार अर्धचंद्राकार में खेती, बायो-फेंसिंग और जमीन को खेती योग्य बनाने के साथ एकीकृत किसानी के लिये बंदोबस्त किये गये हैं। पूर्वोत्तर राज्यों और अंडमान के लिये उद्योगों को पूंजी सहायता के संदर्भ में पांच मीट्रिक टन प्रति घंटे के हिसाब से पांच करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। इसमें यह भी देखा जायेगा कि अमुक समय में कितना काम हुआ और उसके हिसाब से क्षमता बढ़ाने का प्रावधान भी शामिल किया गया है। इस कदम से इन क्षेत्रों के प्रति उद्योग आकर्षित होंगे।
पाम तेल
- पाम तेल वर्तमान में विश्व का सबसे अधिक खपत वाला वनस्पति तेल है।
- इसका उपयोग डिटर्जेंट, प्लास्टिक, सौंदर्य प्रसाधन और जैव ईंधन के उत्पादन में बड़े पैमाने पर किया जाता है।
- कमोडिटी के शीर्ष उपभोक्ता भारत, चीन और यूरोपीय संघ (EU) हैं।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
TOPIC-ECONOMY
डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज 5.0
डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज 1.0 (डीआईएससी) के शुभारंभ के तीन साल बाद, इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (आई-डेक्स), डिफेंस इनोवेशन ऑर्गनाइजेशन (डीआईओ), दिनांक 19 अगस्त, 2021 को नई दिल्ली में डीआईएससी 5.0 की शुरुआत करेगा। आई-डेक्स रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में विभिन्न हितधारकों के लिए एक मंच प्रदान करता है एवं अनिवार्य रूप से विशिष्ट क्षेत्र में प्रौद्योगिकी विकास और संभावित सहयोग की निगरानी के लिए एक अम्ब्रेला संगठन के रूप में कार्य करता है। डीआईएससी और खुली चुनौतियों जैसी पहलों के साथ, आईडीईएक्स रक्षा नवाचार में नई क्षमताओं को विकसित करने के लिए देश की मजबूत विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान प्रतिभा का उपयोग करने में सक्षम है। डीआईएससी 5.0 में चुनौतियां इससे पहले वाले चार डीआईएससी संस्करणों की तुलना में अधिक होंगी।
डीआईएससी राउंड 5 के तहत सेवाओं और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (डीपीएसयू) से प्राप्त समस्या विवरण रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह द्वारा लॉन्च किए जाएंगे। सचिव (रक्षा उत्पादन) श्री राज कुमार के अनुसार, आई-डेक्स को सैन्य युद्ध में नवीनतम तकनीक को शामिल करने के लिए डिजाइन किया गया था, जो सेवाओं की जरूरतों के साथ करीबी से जुड़ा हुआ है और आयात पर निर्भरता को कम करता है।
निकट भविष्य में सैन्य लाभ सुनिश्चित करने के लिए सेवाओं और डीपीएसयू द्वारा समस्या विवरण तैयार किए गए हैं। विजेताओं को आई-डेक्स से 1.5 करोड़ रुपये तक का अनुदान मिलता है, साथ ही पार्टनर इन्क्यूबेटरों से समर्थन और नोडल अधिकारियों से मार्गदर्शन मिलता है जो अंतिम उपयोगकर्ता हैं।
डीआईएससी 5.0 का आरंभ होना भारत की रक्षा प्रौद्योगिकियों, उपकरण डिजाइन और विनिर्माण क्षमताओं को विकसित करने के लिए स्टार्टअप पारितंत्र का लाभ उठाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। ये चुनौतियाँ स्टार्टअप्स को नवीन अवधारणाओं के प्रति अधिक अभ्यस्त होने और भारत के नवोदित उद्यमियों में रचनात्मक सोच के दृष्टिकोण को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करेंगी। अतिरिक्त सचिव, डीडीपी और सीईओ, डीआईओ श्री संजय जाजू ने कहा कि आई-डेक्स प्रक्रिया ने भारतीय स्टार्टअप के लिए उनके काम को दिखाने के अलावा एक नया पारिस्थितिकी तंत्र खोल दिया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि लंबे समय में इससे इन संस्थाओं को विश्वसनीयता बनाने में मदद मिलेगी और यहां तक कि विदेशी अनुबंधों को भी कम करने में मदद मिलेगी।
आई-डेक्स रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी-2020) के तहत एक अधिग्रहण मंच के रूप में कार्य करता है। रक्षा मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए आई-डेक्स पहल के माध्यम से घरेलू खरीद के लिए कुल 1,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं। हाल ही में रक्षा मंत्री ने रक्षा और एयरोस्पेस क्षेत्रों में 300 से अधिक स्टार्टअप और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए अगले पांच वर्षों के लिए 498.8 करोड़ रुपये के बजट को मंजूरी दी थी। इन घोषणाओं ने युवा उद्यमियों द्वारा विकसित किए जा रहे असंख्य नवाचारों और उत्पादों के लिए घरेलू खरीद का आश्वासन प्रदान किया है, जबकि भारत के रक्षा क्षेत्र को 2025 तक 5-ट्रिलियन अर्थव्यवस्था लक्ष्य की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनाया है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने के लिए
याचिका दायर की गयी
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्र से उस याचिका पर जवाब देने को कहा है जिसमें संविधान के तहत “Prime Minister’s Citizen Assistance and Relief in Emergency Situations (PM CARES) Fund” को एक ‘राज्य’ घोषित करने का प्रयास किया गया है।
मुख्य बिंदु
- यह याचिका एक वकील सम्यक गंगवाल ने दायर की थी।
- यह सुनवाई 13 सितंबर, 2021 को मुख्य न्यायाधीश डी.एन. पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ द्वारा की गई थी।
- इस याचिका में अनुच्छेद 12 के तहत पीएम केयर्स फंड को ‘राज्य’ घोषित करने की मांग की गई है ताकि इसके कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
कोर्ट का निष्कर्ष
दिल्ली हाई कोर्ट के मुताबिक, पीएम केयर्स फंड संविधान के तहत ‘राज्य’ नहीं है। इसलिए, डोमेन नाम ‘gov’, प्रधानमंत्री की तस्वीर, राज्य के प्रतीक आदि का उपयोग बंद कर देना चाहिए।
याचिका
- इस याचिका के अनुसार, COVID-19 महामारी के बाद भारत के नागरिकों को सहायता प्रदान करने के लिए 27 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री द्वारा पीएम केयर्स फंड बनाया गया था।
- PM CARES फंड के ट्रस्टी उच्च सरकारी अधिकारी हैं, इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि आरोप के किसी भी अवसर को दूर करने के लिए उचित व्यवस्था की जाये।
- उन्होंने सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत PM CARES को ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ घोषित करने के लिए एक याचिका भी दायर की।
पीएम केयर्स फंड (PM CARES Fund)
पीएम केयर्स फंड 27 मार्च, 2020 को COVID-19 महामारी की पृष्ठभूमि में बनाया गया था। महामारी के खिलाफ राहत प्रयासों का मुकाबला करने, रोकने और बढ़ावा देने के लिए फंड बनाया गया था। इस फंड के निर्माण के लिए दस्तावेज सार्वजनिक नहीं किए गए हैं। इस कोष के अध्यक्ष भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। इसके ट्रस्टियों में रक्षा मंत्री (राजनाथ सिंह) गृह मामलों के मंत्री (अमित शाह) और वित्त मंत्री (निर्मला सीतारमण) शामिल हैं।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.2
MeitY-NASSCOM स्टार्ट-अप महिला उद्यमी
पुरस्कार 2020-21
भारत सरकार ने 17 अगस्त, 2021 को MeitY-NASSCOM स्टार्ट-अप महिला उद्यमी पुरस्कार 2020-2021 (MeitY-NASSCOM Start-up Women Entrepreneur Awards 2020-2021) की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- MeitY-NASSCOM महिला स्टार्टअप उद्यमी पुरस्कार पहला कदम है जो महिलाओं में उद्यमशीलता की भावना को पहचानता है और उसे विकसित करता है।
- यह पुरस्कार महिलाओं की अगली पीढ़ी को मार्गदर्शक रोल मॉडल के रूप में सेवा करने के लिए भारतीय डिजिटल युग का नेतृत्व करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- यह उन होनहार उद्यमियों को भी प्रोत्साहित करता है जो देश की अर्थव्यवस्था के साथ-साथ सामाजिक समुदाय में योगदान करते हैं।
- यह नेतृत्व भी प्रदान करता है और उभरते और युवा भविष्य के उद्यमियों के लिए मार्गदर्शक उदाहरण के रूप में कार्य करता है।
- टेक स्टार्ट-अप महिला उद्यमियों की भागीदारी के लिए पुरस्कार खुले हुए थे जिसमें लगभग 159 आवेदन प्राप्त हुए थे।
- MeitY, UN Women, उद्योग और शिक्षाविदों ने मिलकर 12 महिला उद्यमियों को विजेता के रूप में चुना।
- जबकि 2 महिला उद्यमियों को जूरी च्वाइस घोषित किया गया।
सरकार का फोकस
सरकार ने ‘अंत्योदय’ के आसपास बुनियादी मूल्यों को स्थापित करके समावेशी विकास (inclusive development) के लिए एक नया मानदंड स्थापित किया है। यह सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास के दर्शन पर काम करता है। महिलाओं का सशक्तिकरण और उनमें उद्यमिता को बढ़ावा देना भी सरकार के प्रमुख फोकस क्षेत्रों में से एक है। सरकार कई परिवर्तनकारी कदम उठा रही है जैसे :
- मुद्रा योजना गरीबों को ब्याज मुक्त ऋण।
- उज्ज्वला योजना जिसके तहत महिलाओं को मुफ्त गैस कनेक्शन दिए जाते हैं।
- बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ योजना।
- महिलाओं के सम्मान के लिए तीन तलाक को खत्म करना।
- सॉफ्टवेयर उत्पादों पर राष्ट्रीय नीति, 2019 जिसके तहत सरकार महिलाओं के नेतृत्व वाली उद्यमिता को कल के नेताओं के रूप में बढ़ावा देने और पहचानने पर विशेष जोर दे रही है।
स्टार्टअप और उद्यमी
स्टार्टअप्स और उद्यमियों को प्रोत्साहित करना भी स्टार्टअप इंडिया (StartUp India) और इन्वेस्ट इंडिया (Invest India) कार्यक्रमों की मदद से सरकार के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है।
लैंगिक समानता
लैंगिक समानता लाने में यह पुरस्कार महत्वपूर्ण है। ओलंपिक में पदक जीतने से लेकर तकनीक आधारित इनोवेटिव सॉल्यूशंस बनाने तक महिलाएं मिसाल के तौर पर आगे बढ़ रही हैं। भारतीय आईटी क्षेत्र ने भी लैंगिक समानता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। नैसकॉम के अनुसार, कुल आईटी कर्मचारियों में से 35% महिलाएं हैं।
SOURCE-DANIK JAGARAN
PAPER-G.S.1