CURRENTS AFFAIRS – 22nd MAY 2021
मौदा की नदी कायाकल्प परियोजना
बिजली मंत्रालय के तहत केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम एनटीपीसी ने महाराष्ट्र के मौदा में भूजल कायाकल्प परियोजना के माध्यम से अपने प्रचालन क्षेत्र के 150 गांवों तथा इसके आसपास के क्षेत्रों को जल संकट से उबरने में सहायता की है। अपनी सीएसआर पहल के एक हिस्से के रूप में, एनटीपीसी मौदा जलयुक्त शिवर योजना, परियोजना की सहायता कर रही है जिसने सफलतापूर्वक मौदा नदी को एक जल अधिशेष तहसील में बदलना संभव बनाया है। यह परियोजना कुछ अन्य संगठनों तथा राज्य सरकार की मदद से आर्ट ऑॅफ लिविंग के महाराष्ट्र विंग द्वारा आरंभ की गई थी।
इससे पूर्व, मौदा नागपुर के सबसे अधिक जल की कमी वाले तहसीलों में एक था। 2017 में आरंभ इस परियोजना ने मौदा, हिंगना और कम्पटी तहसीलों में 200 किमी से अधिक क्षेत्र को कवर किया है। पिछले चार वर्षों में, इससे 150 से अधिक गांवों को लाभ पहुंचा है। एनटीपीसी मौदा ने संबंधित मशीनरी और उपकारणों के ईंधन प्रभारों के लिए 78 लाख रुपये का योगदान दिया है। 1000 एकड़ के क्षेत्र में पांच तालाबों की समान कायाकल्प परियोजना के लिए एनटीपीसी मौदा द्वारा 1 करोड़ रुपये की राशि भी उपलब्ध कराई जा रही है।
‘जल जहां गिरे, वहीं इसे जमा करो’तकनीक में नदी के पूरे विस्तार में तालाबों तथा नालों का निर्माण शामिल होता है जिससे कि वर्षा जल को एक लंबी अवधि तक रोक कर रखा जा सके। इससे पूर्व, वर्षा जल बह जाता था लेकिन अब इस जल को धीरे-धीरे जमीन में गहरे चले जाने का पर्याप्त समय मिल जाता है। इससे भूजल स्तरों में भारी बढोतरी हुई है।दो वर्ष पहले तक, इस क्षेत्र के किसान कटाई उपरांत सीजनों के दौरान धान, गेहूं तथा मिर्च जैसी फसलों के लिए पानी पाने के लिए संघर्ष करते थे। अब भंडारित वर्षा जल ने उनकी सहायता की है और उन्हें उनकी फसलों के लिए एक नया जीवन दिया है तथा आय के स्तरों में बढोतरी की है।
SOURCE-PIB
‘यास’ चक्रवात
इस सप्ताह बंगाल की खाड़ी में ‘यास’ चक्रवात (Cyclone Yaas) आएगा। यह चक्रवात ओडिशा और पश्चिम बंगाल के हिस्सों को प्रभावित करेगा। इस चक्रवात के मद्देनजर ओडिशा और पश्चिम बंगाल में चक्रवात से सुरक्षा के लिए तैयारियां पुख्ता की जा रही हैं। इसके अलावा भारतीय नौसेना को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है।
मुख्य बिंदु
इस चक्रवात के कारण ओडिशा के 14 जिलों को हाई अलर्ट पर रखा गया है। सरकार ने भारतीय नौसेना और तटरक्षक बल को मुस्तैद रहने के लिए कहा है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार ‘यास’ चक्रवात 26 मई को ओडिशा-पश्चिम बंगाल तट से टकरा सकता है। ओडिशा और बंगाल के अलावा इस चक्रवात के कारण अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में भारी वर्षा होने की सम्भावना है।
चक्रवात कैसे बनते हैं?
समुद्र में गर्म और नम हवा ऊपर उठती है।जैसे-जैसे अधिक से अधिक हवा ऊपर उठती है, यह कम हवा छोड़ती है। इससे कम दबाव का क्षेत्र बन जाता है। इस क्षेत्र के चारों ओर दबाव अधिक होता है। आसपास के क्षेत्रों से हवा कम दबाव के क्षेत्र में धकेलती है। अब यह हवा गर्म होकर ऊपर उठती है। और यह चक्र चलता रहता है।
जैसे ही गर्म हवा ऊपर उठती है, यह ठंडी हो जाती है और बादलों में संघनित (condense) हो जाती है। हवा और बादलों की पूरी प्रणाली घूमती है और बढ़ती है।
जैसे ही सिस्टम तेजी से और तेजी से घूमता है, इसे केंद्र में एक आंख बनती है।
जब सिस्टम 63 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से घूमता है, तो इसे “उष्णकटिबंधीय तूफान” कहा जाता है। जब हवा की गति 119 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच जाती है तो इसे उष्णकटिबंधीय चक्रवात या तूफान कहा जाता है।
चक्रवात निर्माण के लिए शर्तें
समुद्र का सतही तापमान 27°C और उससे अधिक तक बढ़ जाता है
कोरिओलिस बल की उपस्थिति
ऊर्ध्वाधर हवा की गति में अंतर
समुद्र तल प्रणाली के ऊपर ऊपरी विचलन
कम दबाव का क्षेत्र
अनुकूल मैडेन जूलियन दोलन
महासागरीय ताप क्षमता
मैडेन जूलियन दोलन (Madden Julian Oscillation)
यह एक समुद्री वायुमंडलीय घटना है जो पृथ्वी में मौसम की गतिविधियों को प्रभावित करती है। यह भूमध्य रेखा के पास बादलों, हवाओं, वर्षा और दबाव की एक पल्स है जो हर 30 से 60 दिनों में घटित होती है। यह प्रशांत महासागर और हिंद महासागर पर प्रमुख है।
Mission Oxygen Self-Reliance
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य की ऑक्सीजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए “Mission Oxygen Self-Reliance” योजना लांच की है। इस योजना के तहत ऑक्सीजन उत्पादक उद्योगों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा।
मुख्य बिंदु
हाल ही में कोविड-19 रोगियों का इलाज करते हुए महाराष्ट्र में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन (Liquid Medical Oxygen) की मांग बढ़ी है। वर्तमान में महाराष्ट्र की ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता 1300 मीट्रिक टन प्रतिदिन है।
अब बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए, राज्य सरकार ने प्रति दिन 3000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए कुछ एक प्रोत्साहनों की घोषणा की है।
गौरतलब है कि विदर्भ, मराठवाड़ा, धुले, नंदुरबार, रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग क्षेत्रों में स्थापित इकाइयाँ अपने पात्र अचल पूंजी निवेश (fixed capital investments) के 150 प्रतिशत तक प्रोत्साहन के लिए पात्र होंगी और शेष महाराष्ट्र में स्थापित इकाइयाँ 100 प्रतिशत तक की पात्र होंगी।
इसके अलावा, सरकार सकल एसजीएसटी, स्टांप ड्यूटी, बिजली शुल्क और पांच साल के लिए बिजली लागत की यूनिट सब्सिडी और 50 करोड़ रुपये तक के निश्चित पूंजी निवेश वाले एमएसएमई इकाइयों के लिए ब्याज सब्सिडी पर रिफंड भी देगी। गौरतलब है कि 30 जून से पहले आवेदन करने वालों को ही इस पॉलिसी का लाभ मिलेगा।
SOURCE-GK TODAY
अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस
जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को बढ़ावा देने के लिए हर साल 22 मई को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (International Biodiversity Day) के रूप में मनाया जाता है ।
मुख्य बिंदु
उद्देश्य:
(i) जैव विविधता के मुद्दों के बारे में समझ और जागरूकता बढ़ाना।
(ii) एक ओर जैव विविधता के महत्व और दूसरी ओर इसके अभूतपूर्व नुकसान के बारे में लोगों को जागरूक करना।
जैव विविधता : यह विभिन्न प्रकार के वनस्पतियों और जीवों को संदर्भित करता है जो पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) को बनाते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण प्राकृतिक संतुलन और मानव अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि
संयुक्त राष्ट्रमहासभा (संयुक्त राष्ट्र महासभा) पर 20 संकल्प 55/201 अपनाने के साथ 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस (International Biodiversity Day) मनाने की घोषणा की थी।
यह दिन 22 मई, 1992 को नैरोबी फाइनल एक्ट (Nairobi Final Act) द्वारा Agreed Text of the Convention of Biological Diversity (CBD) को अपनाने का स्मरण करवाता है।
UNGA प्रस्ताव के अपनाने से पहले, 29 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस के रूप में नामित किया गया था।
SOURCE-GK TODAY
मानसिक स्वास्थ्य और महामारी
एक समाज के रूप में हमारे लिए दया और समझ विकसित करना सबसे अहम बात है। कोविड-19 एक वैश्विक समस्या है, क्योंकि सभी लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे समस्या हो रही है। आज “अपने भीतर प्रकाश की खोज : मानसिक स्वास्थ्य और महामारी” विषय पर हुए एक वेबिनार में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस तरह के विचार व्यक्त किए। पत्र सूचना कार्यालयऔर क्षेत्रीय संपर्क कार्यालय, महाराष्ट्र एवं गोवा क्षेत्र द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित वेबिनार के विशेषज्ञों के पैनल में एनआईएमएचएएनएस, बंगलुरू के मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर – डॉ. प्रतिमा मूर्ति, विभागाध्यक्ष और मनोविज्ञान की प्रोफेसर और डॉ. ज्योत्सना अग्रवाल, सहायक प्रोफेसर शामिल थीं।
कोविड-19 से पीड़ित एक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है
डॉ. मूर्ति ने कहा, “सबसे प्रमुख मुद्दा डर का है।” डॉक्टर ने विस्तार से बताया कि किसी के दिमाग पर कई प्रकार के डर हो सकते हैं, जैसे- आगे क्या होने जा रहा है, क्या अस्पताल में एक बिस्तर मिल पाएगा, फेफड़ों और अन्य अंगों का क्या होगा। डॉ. मूर्ति ने यह भी कहा, “यदि हम थोड़ा पीछे जाकर सोचते हैं तो हम जानते हैं कि हर 100 लोगों में से 85 को सामान्य बुखार और अन्य लक्षण देखने को मिले हैं, जिसमें सामान्य रूप से खुद को सीमित कर लिया जाना चाहिए और इससे ही ज्यादातर लोग ठीक हो जाते हैं।”
दूसरा, इस समय बड़ी संख्या में सूचनाएं मिल रही हैं, जिससे इस बात लेकर की भी भ्रम हो सकता है कि क्या करना है। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने सलाह दी कि इसलिए, सही प्रकार की जानकारी होना ही सबसे ज्यादा अहम है।
तीसरा, एक व्यक्ति जिसे अस्पताल में भर्ती किया जाता है या आईसीयू में जाना पड़ जाता है तो उसे मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो सकती है। उसे अवसाद, चिंता से गुजरना पड़ सकता है, क्योंकि उसके मन में लंबे समय तक दर्दनाक यादें बनी रहती हैं। इसी प्रकार, अस्पताल या आईसीयू में भर्ती व्यक्ति के परिजन इस बात को लेकर चिंतित हो सकते हैं कि उन्हें कितना असहाय महसूस करना पड़ा था और किस तरह से वे कुछ भी करने में नाकाम हो गए थे। और वास्तव में, जब आप कोविड से किसी व्यक्ति को खो देते हैं तो जब आप दुख और वियोग का अनुभव करते हैं तो यह संभावित रूप से किसी व्यक्ति के लिए सबसे मुश्किल मनोवैज्ञानिक क्षण होता है। इसके अलावा, कोविड संक्रमण के बाद भी कई मानसिक स्वास्थ्य परिणाम भी हो सकते हैं, जिसमें तनाव और अवसाद के अलावा एक ऐसी स्थिति हो सकती है जिसे ‘लॉन्ग कोविड’ कहा जाता है। इसमें लोग अपने मस्तिष्क में धुंधलापन सा महसूस करते हैं, स्पष्ट रूप से सोचने में असफल रहते हैं और मस्तिष्क संबंधी विकार होते हैं। इसके साथ ही, डॉ. मूर्ति ने कहा कि इनमें से कुछ बातों की जानकारी होना अहम है और ऐसी स्थिति में प्रतिक्रिया के चलते चिंता में नहीं पड़ना चाहिए।
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि कुछ समय के लिए लोगों में नियंत्रण खत्म होने का अहसास पैदा हो जाता है। लोगों की नौकरियां जा रही हैं, आर्थिक, मानसिक और अन्य समस्याएं पैदा हो रही हैं। घर पर भी, कई प्रकार की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। कुल मिलाकर, यह सवाल भी मन में आ रहा है कि ‘क्या यही जीवन है?’ कई लोगों के मन में अस्तित्वगत व्यवस्था को लेकर ढेरों सवाल हैं। वे अपनी मान्यता और अपने जीवन को जीने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। ये सभी बातें लोगों में जड़ता का अहसास पैदा कर सकती हैं या वे उससे अलग हो सकते हैं जो वे अनुभव करते हैं। इससे पार पाने के लिए लोग कई अस्वास्थ्यकर तरीके अपना सकते हैं, जिससे हालात और भी बिगड़ सकते हैं। डॉक्टर ने कहा कि इसलिए, कोविड का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव व्यापक हो सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से उबरने के अस्वास्थ्यकर तरीकों के बारे में बोलते हुए, डॉ. मूर्ति ने कहा कि चाहे यह अल्कोहल हो, तम्बाकू या अन्य मादक पदार्थ हों, हानिकारक पदार्थों का उपयोग बढ़ गया है। एक चिंता यह भी है, जो हमेशा ही एक महामारी के दौरान होती है।
कोविड-19 के दौरान हम जिस मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से गुजर रहे हैं, उस दौरान लोगों को तनाव मुक्त करने और आराम देने के लिए समाज, समुदाय, मित्र और परिवार क्या कर सकते हैं?
डॉ. मूर्ति ने कहा, “कोविड से पीड़ित लोगों को घर पर ही खाना उपलब्ध कराना कुछ ऐसे कामों में शामिल हैं, जिनसे उन्हें सहायता मिल सकती है और इससे उनका घर से नहीं निकलना भी सुनिश्चित होगा। हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि हम उनके साथ जुड़े रहे हैं, उनके साथ कॉल या सोशल मीडिया के माध्यम से संपर्क में रहें। ऐसे लोग हैं जो परिवारों को अंतिम संस्कार में सहयोग कर रहे हैं, ऐसा विशेषकर वहां किया जा रहा है जहां परिवार जाने में सक्षम नहीं होते हैं या उनके पास साधन नहीं होता है।” लोग अपने आसपास मौजूद तनाव और दुख से निपटने में सहायता के लिए तमाम तरीके अपना रहे हैं। इस तरह की सामूहिक प्रतिक्रिया काफी अहम है। डॉ. मूर्ति सुझाव देती हैं, सहानुभूतिपूर्ण और समझदार होना काफी अहम है।
डॉ. मूर्ति ने कहा, सबसे अहम समूहों में से एक फ्रंटलाइन कर्मचारी हैं जो महामारी से प्रभावित हुए हैं। डॉक्टर और नर्सों का मनोबल कमजोर हो सकता है, क्योंकि उन्हें दिन-रात मौत का सामना करना पड़ रहा है। शवदाह गृह में काम करने वाले सरकारी कर्मचारी, एम्बुलैंस चालक, लोगों को भी भारी तनाव से गुजरना पड़ रहा है। हालात अच्छे नहीं होने पर उन्हें विरोध और हिंसा का भी सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा, “वे सभी भारी तनाव से गुजर रहे हैं। इसलिए, हमें उनकी भूमिका को स्वीकार करने की जरूरत है, जो अपनी सर्वश्रेष्ठ क्षमता से निभा रहे हैं और उस भूमिका में सहयोग कर रहे हैं। कार्यस्थलों पर बड़ी संख्या में सहयोगी समूह का समर्थन भी आवश्यक है।”
ऐसे दौर में मददगार होने के एक अन्य पहलू पर प्रकाश डालते हुए डॉ. अग्रवाल ने कहा, ऐसे मुश्किल दौर में समाज के प्रति लोग कैसे योगदान करना चाहते हैं, इसे ध्यान में रखते हुए उनके व्यक्तित्व के संदर्भ में विचार विचार किया जाना चाहिए। कुछ लोग पहुंच कायम करने में और दुनिया में कुछ करने के लिए ज्यादा सहज महसूस करते हैं, कुछ लोग सीधे तौर पर कुछ करना चाहते हैं। मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने कहा, “हम सिर्फ मुस्कराने या किसी ऐसे व्यक्ति को कॉल जैसे छोटे काम भी कर सकते हैं, जो अस्वस्थ हो। इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि वह क्या कर रहा है या कर रही है। हम सभी दूसरे लोगों के लिए अपनी विशेष खूबियों को इस्तेमाल कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई बच्चों को ऑनलाइन कला और शिल्प पढ़ा रहा है, तो वह इसका इस्तेमाल उन बच्चों के परिवार की खुशी के लिए भी किया जा सकते हैं। हमें रचनात्मक, दयालु बनना चाहिए और उनके काम की सराहना करनी चाहिए। दर्द और दुख के बीच उन लोगों के जीवन में सकारात्मक विचार या खुशी लाना काफी मददगार होगा।”
जरूरतमंद लोगों और सहायता करने के इच्छुक लोगों के साथ जोड़ें
डॉ. मूर्ति ने कहा, लोगों को इसको लेकर जागरूक करना जरूरी है कि वे अकेले नहीं हैं। कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी निजता को पसंद करते हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि वे अकेले हों। हालांकि, इस दौर में अकेलापन बेहद खतरनाक हो सकता है। लोगों को यह समझाना काफी अहम है कि वे एक ऐसा सहयोग नेटवर्क है, जिससे संपर्क किया जा सकता है। दूसरी तरफ, ऐसे लोग जो प्रभावशाली और महत्वपूर्ण हैं, उनको यह पता होना चाहिए वे उनकी कैसे मदद कर सकते हैं और कैसे उन तक पहुंचा जा सकता है। उन्होंने कहा, “जुड़ाव और यह जानना कि चीजें कहां पर उपलब्ध हैं, काफी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, हम सभी को तार्किक रूप से यह जानना जरूरी है कि हम अकेलेपन, अवसाद और उससे भी ज्यादा अहम दुख से कैसे निपट सकते हैं।”
सकारात्मक बातों पर डॉ. अग्रवाल ने कहा, “इस दौर में दिख रही मानव की अच्छाई शानदार है।” उन्होंने कहा, यह कहने का समय आ गया है कि हम अकेले नहीं हैं और हम इस मुश्किल दौर में एकजुट हैं और हमें लोगों को यह अहसास कराना जरूरी है कि संपर्क करना और मदद लेने के साथ ही मदद करना अच्छी बात है।
कोविड के कारण परिवारों में पैदा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि घरों से काम कर रहे कई लोगों के पास काम, परिवार आदि के लिए समर्पित समय की कोई सीमा नहीं है। दूसरी तरफ, बच्चों, बड़ों या जीवनसाथी के प्रति ध्यान करने में नाकाम लोगों से ज्यादा समय की मांग की जाएगी। नतीजतन, लोग अपने पास मौजूद मांग और दूसरे लोगों की जरूरत पूरी करने को लेकर भी अभिभूत महसूस करेंगे। किसी को न सिर्फ शारीरिक रूप से, बल्कि भावनात्मक रूप से महत्व देना भी अहम है। इस दौर में सद्भाव कायम रखना बड़ी चुनौती है। सभी लोगों के भावनात्मक स्वास्थ्य और भावनाओं को नियंत्रण में रखना काफी अहम है।
डॉ. अग्रवाल ने कहा, “जब लोग घर से बाहर निकलने में सक्षम नहीं हैं, तो उनके पास ऑनलाइन माध्यम से जुड़े रहने का अवसर है। यह एक ऐसा संसाधन है, जिसे आराम और संपर्क दोनों की भावना के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सकारात्मक पहलू को देखें तो अब परिवारों के पास जुड़े रहने का समय है, जो लंबे समय से संभव नहीं था।”
डॉ. मूर्ति ने कहा कि यह ऐसा समय है जहां परिजन काम को एक दूसरे के साथ साझा कर रहे हैं। इसलिए, यह एक ऐसा समय है जब छेटे बच्चे कुछ हद तक जिम्मेदारी समझ रहे हैं। यह ऐसा समय है जब रिश्ते तनावपूर्ण हुए हैं और टकराव बढ़ सकते हैं।
हमें समझना चाहिए कि दुख एक सामान्य प्रक्रिया है और हर व्यक्ति अलग तरीकों से इन्हें व्यक्त करता है। चाहे जड़ता, इनकार, भ्रम, गुस्सा, गलती हो, यह ज्यादा हो सकता है और इससे निपटना अहम है; सुधारात्मक गतिविधियां भी महत्वपूर्ण हैं। ड, मूर्ति ने कहा, हम ऐसे दौर में हैं जब बड़ी संख्या में लोग दुखी हैं, ऐसे में उनकी काउंसलिंग काफी अहम है।
कोविड के दौर में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से निपटने के तरीके, जो विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए हैं :
इस दौर में एक उपयुक्त दिनचर्या अहम है। यह ऐसा काम है, जिस पर हमारा नियंत्रण है। अच्छी खुराक, अच्छी नींद, अच्छी दिनचर्या, पर्याप्त व्यायाम, विचारों को शांत करना, चिह्नित समस्याओं से उबरने की रणनीतियों, समाधान को समझना और संपर्क करना संभव होने जा रहा है।
हमें अच्छी नींद लेने की जरूरत है; नींद से जुड़ी आदतें काफी अहम है, इन गतिविधयों को दूसरी गतिविधियों के चलते प्रभावित नहीं होना चाहिए।
खुद पर नियंत्रण रखें, अच्छी खुराक लें, पर्याप्त पानी लें और सबसे ज्यादा अहम यह सुनिश्चित करना है कि ऑक्सीजन के स्तर पर नजर रखी जाए जिससे किसी भी तरह की समस्या होने पर उस व्यक्ति को जरूरी मदद मिलनी चाहिए।
दुख की स्थिति में काउंसलिंग काफी अहम है। हम एक ऐसे दौर में हैं, जब बड़ी संख्या में लोग शोकसंतप्त हैं और भारी नुकसान से गुजर रहे हैं। यह संबंधों का और वित्तीय नुकसान भी हो सकता है। दुख एक बड़ी भावनात्मक प्रतिक्रिया है। इसके माध्यम से लोगों की सहायता करना काफी अहम है।
बच्चों को एक दूसरे से जुड़ा रहना चाहिए, शौक विकसित करने चाहिए, दूसरों की मदद करनी चाहिए। साथ ही नए काम करने और रचनात्मक बने रहना चाहिए, जितना वे कर सकते हैं।
अर्थपूर्ण संबंध विकसित करें, जो आपके उद्देश्यों में मदगार हों।
अपने आसपास लोगों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना तनाव से निपटने का एक अच्छा तरीका है।
एक डायरी या बॉक्स बनाएं जिसमें आप अपनी चिंताओं को जमा करें और उन्हें अपने दिमाग में रखने के बजाय उनकी चिट बनालें। इससे आपको ज्यादा ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलेगी।
किसी परेशान व्यक्ति के लिए सहायता मांगना अच्छा हो सकता है।
नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों से नहीं बदलें, बल्कि इससे यथार्थवादी विचारों को आत्मसात करने की कोशिश करें। नकारात्मक विचारों को खत्म करने के लिए किसी के प्रति दयालु होना महत्वपूर्ण है।
याद रखें कि हम सभी इस समय एक साथ हैं।
समाज और व्यवस्था को अपने फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए अपना समर्थन देने की जरूरत है।
हमें उपयुक्त तरीके से तकनीक के इस्तेमाल की जरूरत है। मोबाइल फोन, डिजिटल जुड़ाव, महिला तकनीक विशेषज्ञों से हमें खासी मदद मिली है; इसके साथ ही हमें डिजिटल दूरी की भी जरूरत है।
अपने पसंद के काम करके ध्यान भटकाना काफी अहम है। योग, संगीत, दूसरों के साथ जुड़ना और सांस लेने से जुड़े व्यायामों से सहज होने में मदद मिल सकती है।
वास्तविक समाचार स्रोतों से जुड़ना और नकारात्मक व अवास्तविक जैसे अन्य स्रोतों, जो आपकी चिंता बढ़ाते हैं, से दूर होना जरूरी है।
पत्रकारों द्वारा सकारात्मक मनोविज्ञान पर ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
किसी के आध्यात्मिक पहलू से जुड़ने से भी कई लोगों को ऐसे मुश्किल दौर से उबरने में मदद मिल सकती है। पवित्र ग्रंथों से मृत्यु और नुकसान से उबरने में मदद मिल सकती है।
यदि दो सप्ताह या ज्यादा समय से अवसाद से गुजर रहे हों, यदि एक व्यक्ति खाना नहीं खा रहा है, वजन कम हो रहा हो, हर समय चिल्ला रहा हो, दोषी महसूस कर रहा हो तो ऐसे समय में व्यक्ति को संभावित रूप से विशेषज्ञ की मदद की जरूरत होती है।
यदि तनाव के चलते दौरा पड़ने के कारण व्यक्ति कोई काम नहीं कर पा रहा हो तो मदद लेना अहम हो जाता है।
पहले से मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को कहां ले जाना है, यह जानना महत्वपूर्ण है। उनके लिए, नियमित रूप से मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर के पास ले जाना, अनुवर्ती जांच और समर्थन नेटवर्क इस दौर में काफी मददगार होगा, क्योंकि इस दौर में ऐसे मरीज काफी दबाव में हो सकते हैं।
एक बच्चा जिसके माता-पिता की बीमारी के चलते मौत हो गई है तो उसकी देखभाल और खाने में कमी हो सकती है। यदि बच्चे की दैनिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं तो बच्चे के लिए पेशेवर का मार्गदर्शन लेना चाहिए। यह असामान्य दौर है, यदि बच्चा गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है, उसकी दैनिक गतिविधियों पर असर पड़ रहा हो तो पेशेवर का सहयोग लेना बच्चे की उम्र पर निर्भर करता है।
SOURCE-PIB