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Current Affair 23 August 2021

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Current Affairs – 23 August, 2021

श्री नारायण गुरु

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री नारायण गुरु को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी है।

प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में कहा;

“मैं श्री नारायण गुरु को उनकी जयंती पर नमन करता हूं। उनकी शिक्षा लाखों लोगों को शक्ति प्रदान करती हैं। ज्ञान प्राप्त करने, सामाजिक सुधार और समानता पर उनका जोर हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन के लिए युवा शक्ति के उपयोग को अत्यधिक महत्व दिया।”

नारायण गुरु भारत के महान संत एवं समाजसुधारक थे। कन्याकुमारी जिले में मारुतवन पहाड़ों की एक गुफा में उन्होंने तपस्या की थी। गौतम बुद्ध को गया में पीपल के पेड़ के नीचे बोधि की प्राप्ति हुई थी। नारायण गुरु को उस परम की प्राप्ति गुफा में हुई।

नारायण गुरु का जन्म दक्षिण केरल के एक साधारण परिवार में 26 अगस्त 1854 में हुआ था। भद्रा देवी के मंदिर के बगल में उनका घर था। एक धार्मिक माहौल उन्हें बचपन में ही मिल गया था। लेकिन एक संत ने उनके घर जन्म ले लिया है, इसका कोई अंदाज उनके माता-पिता को नहीं था। उन्हें नहीं पता था कि उनका बेटा एक दिन अलग तरह के मंदिरों को बनवाएगा। समाज को बदलने में भूमिका निभाएगा।

उस परम तत्व को पाने के बाद नारायण गुरु अरुविप्पुरम आ गये थे। उस समय वहां घना जंगल था। वह कुछ दिनों वहीं जंगल में एकांतवास में रहे। एक दिन एक गढ़रिये ने उन्हें देखा। उसीने बाद में लोगों को नारायण गुरु के बारे में बताया। परमेश्वरन पिल्लै उसका नाम था। वही उनका पहला शिष्य भी बना। धीरे-धीरे नारायण गुरु सिद्ध पुरुष के रूप में प्रसिद्ध होने लगे। लोग उनसे आशीर्वादके लिए आने लगे। तभी गुरुजी को एक मंदिर बनाने का विचार आया। नारायण गुरु एक ऐसा मंदिर बनाना चाहते थे, जिसमें किसी किस्म का कोई भेदभाव न हो। न धर्म का, न जाति का और न ही आदमी और औरत का।

दक्षिण केरल में नैयर नदी के किनारे एक जगह है अरुविप्पुरम। वह केरल का एक खास तीर्थ है। नारायण गुरु ने यहां एक मंदिर बनाया था। एक नजर में वह मंदिर और मंदिरों जैसा ही लगता है। लेकिन एक समय में उस मंदिर ने इतिहास रचा था। अरुविप्पुरम का मंदिर इस देश का शायद पहला मंदिर है, जहां बिना किसी जातिभेद के कोई भी पूजा कर सकता था। उस समय जाति के बंधनों में जकड़े समाज में हंगामा खड़ा हो गया था। वहां के ब्राह्माणों ने उसे महापाप करार दिया था। तब नारायण गुरु ने कहा था – ईश्वर न तो पुजारी है और न ही किसान। वह सबमें है।

दरअसल वह एक ऐसे धर्म की खोज में थे, जहां आम से आम आदमी भी जुड़ाव महसूस कर सके। वह नीची जातियों और जाति से बाहर लोगों को स्वाभिमान से जीते देखना चाहते थे। उस समय केरल में लोग ढेरों देवी-देवताओं की पूजा करते थे। नीच और जाति बाहर लोगों के अपने-अपने आदिम देवता थे। ऊंची जाति के लाेेग उन्हें नफरत से देखते थे। उन्होंने ऐसे देवी-देवताओं की पूजा के लिए लोगों को निरुत्साहित किया। उसकी जगह नारायण गुरु ने कहा कि सभी मनुष्यों के लिए एक ही जाति, एक धर्म और एक ईश्वर होना चाहिए।

उसी दौर में महात्मा jyotiba fule समाज में दूसरे स्तर पर छुआछूत मिटाने की कोशिश कर रहे थे। वह एक बार नारायण गुरु से मिले भी थे। गुरुजी ने उन्हें आम जन की सेवा के लिए सराहा।

नारायण गुरु मूर्तिपूजा के विरोधी थे। लेकिन वह ऐसे मंदिर बनाना चाहते थे, जहां कोई मूर्ति ही न हो। वह राजा राममोहन राय की तरह मूर्तिपूजा का विरोध नहीं कर रहे थे। वह तो अपने ईश्वर को आम आदमी से जोड़ना चाह रहे थे। आम आदमी को एक बिना भेदभाव का ईश्वर देना चाहते थे।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.1

TOPIC-HISTORY

 

थर्मोकोल के साथ निर्मित बहुमंजिला भवन भविष्य की भूकंप प्रतिरोधी इमारतें हो सकती हैं

रोधन के साथ भूकंप प्रतिरोधी भवनों के निर्माण के लिए थर्मोकोल भविष्य की सामग्री हो सकती है और निर्माण सामग्रियों को विकसित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा का बचत भी कर सकता है।

आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिस प्रबलित कंक्रीट सैंडविच पैनल के आंतरिक हिस्से में थर्मोकोल या विस्तारित पॉलीस्टाइरिन (ईपीएस) का उपयोग मिश्रित सामग्री के रूप में किया जाता है, वह चार मंजिला भवनों तक भूकंप बलों का प्रतिरोध कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने आईआईटी रूड़की स्थित भूकंप इंजीनियरिंग विभाग के नेशनल सिसमिक टेस्ट फैसिलिटी (एनएसटीएफ) में एक पूर्ण पैमाने की इमारत और कंक्रीट की दो परतों के बीच थर्मोकोल सैंडविच पैनल के साथ निर्मित कई दीवार घटकों का परीक्षण किया। इसका विकास भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के उच्च शिक्षा संस्थानों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अवसंरचना को बेहतर बनाने के लिए धनराशि (एफआईएसटी) कार्यक्रम के तहत किया गया। चूंकि भूकंप प्रबलता से पार्श्व दिशा में एक बल का कारण बनता है, इसे देखते हुए इस परीक्षण का संचालन करने वाले अनुसंधान वैज्ञानिक आदिल अहमद ने पार्श्व बलों के तहत निर्माणों के व्यवहार का मूल्यांकन किया। यह परीक्षण एक वास्तविक 4-मंजिला भवन के विस्तृत कंप्यूटर सिमुलेशन के साथ अनुपूरक था। इस अनुसंधान का पर्यवेक्षण करने वाले प्रो. योगेंद्र सिंह ने बताया कि विश्लेषण से पता चलता है कि इस तकनीक से निर्मित चार मंजिला भवन देश के सर्वाधिक भूकंपीय क्षेत्र (V) में भी बिना किसी अतिरिक्त संरचनात्मक सहायता के भूकंपीय बलों का प्रतिरोध करने में सक्षम है।

उन्होंने इस भूकंप प्रतिरोध क्षमता को इस तथ्य के लिए जिम्मेदार माना कि ईपीएस परत कंक्रीट की दो परतों के बीच सैंडविच पैनल होती है, जिसमें बंधित तार जाल के रूप में इसका सुदृढ़ीकरण होता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने पाया है कि जिस प्रबलित कंक्रीट सैंडविच पैनल के आंतरिक हिस्से में थर्मोकोल या विस्तारित पॉलीस्टाइरिन (ईपीएस) का उपयोग मिश्रित सामग्री के रूप में किया जाता है, वह चार मंजिला भवनों तक भूकंप बलों का प्रतिरोध कर सकता है।

इस तकनीक में, एक कारखाने में ईपीएस आंतरिक हिस्सा (कोर) और तार जाल सुदृढ़ीकरण पैनल का उत्पादन किया जाता है। भवन के ढांचे का निर्माण पहले कारखाने में बने आंतरिक हिस्से और सुदृढ़ीकरण पैनलों पर किया जाता है और फिर ढांचे के भीतरी हिस्से पर कंक्रीट का छिड़काव किया जाता है। इस तकनीक में किसी शटरिंग की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए इसका निर्माण काफी तेजी से किया जा सकता है।

भूकंप का प्रतिरोध करने के अलावा, एक इमारत की कंक्रीट दीवारों में विस्तारित पॉलीस्टाइरिन कोर (आंतरिक हिस्से) के उपयोग का परिणाम ताप आरामदायक के रूप में दिख सकता है। यह कोर भवन के आंतरिक और बाहरी वातावरण के बीच ताप स्थानांतरण को लेकर जरूरी ताप रोधन प्रदान करता है। यह भवन के भीतरी हिस्सों को गर्म वातावरण में ठंडा और ठंड की स्थिति में गर्म रखने में सहायता कर सकता है। भारत अपने अलग-अलग हिस्सों में और साल के विभिन्न मौसमों के दौरान तापमान में भारी फेरबदल का सामना करता है। इसे देखते हुए संरचनात्मक सुरक्षा के साथ-साथ ताप आरामदायक एक महत्वपूर्ण विचार है।

इस तकनीक में भवनों के कार्बन फुटप्रिंट में समग्र कमी के साथ निर्माण सामग्री और ऊर्जा की बचत करने की क्षमता भी है। यह दीवारों और फर्श/छत से कंक्रीट आयतन के एक बड़े हिस्से को बदल देता है। बेहद हल्के ईपीएस के साथ कंक्रीट का यह प्रतिस्थापन न केवल द्रव्यमान को कम करता है, इस तरह एक भवन पर लगने वाले भूकंप बल को कम करता है, बल्कि सीमेंट कंक्रीट के उत्पादन के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा पर भी बोझ कम करता है।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.3

TOPIC-SCIENCE

 

अमृत महोत्सव ऐप इनोवेशन चैलेंज 2021

केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी (एमईआईटीवाई) राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर ने आज भारतीय उद्यमियों और स्टार्ट-अप के लिए अमृत महोत्सव ऐप इनोवेशन चैलेंज 2021 का शुभारंभ किया। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 2022 तक एक नया आत्मनिर्भर भारत बनाने और भारत की स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को आज़ादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाने के विचार के अनुरूप है। राजेंद्र कुमार, अतिरिक्त सचिव, एमईआईटीवाई और मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। आज लॉन्च किया गया इनोवेशन चैलेंज 2020 में आयोजित आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज की अगली कड़ी के रूप में है, जिसने 24 विजयी ऐप और 20 उम्मीदों पर खरे उतरने वाले ऐप को पहचानने में मदद की।

इस अवसर पर बोलते हुए, श्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि आज और भविष्य के लिए नये हल तैयार करने, व्यापार करने और सेवाओं को प्रदान करने के पारंपरिक तरीके को पूरी तरह से बदलने में स्टार्टअप की भूमिका को देखते हुए, ‘अमृत महोत्सव ऐप इनोवेशन चैलेंज 2021’ नाम का ऐप इनोवेशन चैलेंज एक अच्छी तरह से विचार की गयी योजना है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि स्टार्टअप, उभरते उद्यमी और युवा इसके प्रति आकर्षित होंगे और बड़ी संख्या में इस चैलेंज में भाग लेंगे, और हमारे पास कई चुनौतियों के समाधान मौजूद होंगे।

अनुमान है कि भारत में 50 करोड़ से अधिक लोग स्मार्टफोन का उपयोग कर रहे हैं और उनमें से तीन चौथाई ऑनलाइन हैं। भारतीय भी दुनिया में सबसे ज्यादा ऐप्स डाउनलोड करने वालों में शामिल हैं। इस विशाल बाजार में भारतीय इनोवेशन और तकनीकी दिग्गजों के लिए ढेर सारे अवसर हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न क्षेत्रों में कई नए ऐप ने प्रवेश किया है और जिन्होंने बाजारोंमें अपनी पकड़ बना ली है, भले ही वो वह सोशल मीडिया में हो , मैसेजिंग, मार्केटिंग, परिवहन या फिर खानपान के क्षेत्र में हों। अमृत महोत्सव ऐप इनोवेशन चैलेंज में संस्कृति और विरासत की एक श्रेणी भी है जो उन ऐप्स को पहचानने में मदद करेगी जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं को प्रदर्शित कर सकते हैं। पहचानी गयीं श्रेणियां इनोवेशन करने वालों और तकनीकी उद्यमियों को ऐसे हल तैयार करने का अवसर प्रदान करेंगी जो कि नये भारत के निर्माण में योगदान देने के लिये हैकथॉन, इनोवेशन चैलेंज और स्टार्टअप की भूमिका को लेकर माननीय प्रधान मंत्री द्वारा देखे गये दृष्टिकोण के अनुसार होंगे।

विभिन्न नकद पुरस्कारों और लीडर बोर्ड में जगह मिलने जैसे प्रोत्साहन के साथ ये इनोवेशन चैलेज एक ऐसा इकोसिस्टम बनाने का प्रयास करता है जहां भारतीय उद्यमियों और स्टार्ट-अप को ऐसे तकनीकी समाधानों का विचार करने, शुरुआत करने, निर्माण करने, विकसित करने और स्थिरता देने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जो न केवल भारत के नागरिकों बल्कि दुनिया की भी सेवा कर सकते हैं ।

मेक इन इंडिया फॉर इंडिया एंड द वर्ल्ड- मंत्र

अमृत महोत्सव ऐप इनोवेशन चैलेंज 2021 को 16 श्रेणियों में शुरू किया गया है, जिसमें संस्कृति और विरासत, स्वास्थ्य, शिक्षा, सोशल मीडिया, उभरती हुई तकनीक, कौशल, समाचार, खेल, मनोरंजन, कार्यालय, स्वास्थ्य और पोषण, कृषि, कारोबार और रीटेल, फिनटेक, नेविगेशन एवं अन्य शामिल हैं।

ऐप को परखने के लिये कुछ प्रमुख मापदंडों में इस्तेमाल में आसानी, ऐप की सक्षमता,सुरक्षा के उपाय, विस्तार किये जाने की संभावनाएं एवं पारस्परिक समन्वय शामिल है। साथ ही ऐप को लेकर अगले 5 साल का दृष्टिकोण भी प्रमुख मापदंड है क्योंकि प्रतिभागी उभरती तकनीकों और नये रुझानों को अपने ऐप में शामिल कर अपने आइडिये को आगे बढ़ा सकते हैं। कार्यक्रम के दौरान अमृत महोत्सव ऐप इनोवेशन चैलेंज 2021 पर एक वीडियो और मंत्रालय की 7 साल की उपलब्धियों पर एक ई-बुक भी लॉन्च की गयी।

इस आयोजन के हिस्से के रूप में आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज 2020 के विजेताओं और राज्य मंत्री श्री राजीव चंद्रशेखर के बीच एक पारस्परिक संवाद का सत्र भी आयोजित किया गया था। आत्मनिर्भर ऐप इनोवेशन चैलेंज 2020 के विजेताओं जिनमें कुतुकी किड लर्निंग एप को बनाने वाले भरत बेविनाहल्ली रघुनाथ और स्नेहा कल्याणसुंदरम, हिटविकेट सुपरस्टार्स की डेवलपर कीर्ति सिंह; स्टेपसेटगो के डेवलपर शिवजीत घाटगे; चिंगारी के डेवलपर सुमित घोष और आदित्य कोठारी; कू ऐप के डेवलपर अप्रमेय राधाकृष्ण, और मैपमाईइंडिया ऐप के डेवलपर रोहन वर्मा ने माननीय मंत्री के साथ अपने अनुभव साझा किये।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.3

 

आईएनएस चिल्का

रक्षा संबंधी संसदी की स्थायी समिति (एससीओडी) ने 23 अगस्त 2021 को भारतीय नौसेना के प्रतिष्ठित नौसैनिक प्रशिक्षण प्रतिष्ठान आईएनएस चिल्का का दौरा किया।

रक्षा पर संसद की स्थायी समिति (एससीओडी) रक्षा नीतियों के विधायी निरीक्षण और रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के निर्णय लेने के लिए संसद के चयनित सदस्यों की एक विभाग संबंधित स्थायी समिति (डीआरएससी) है।

आईएनएस चिल्का भारतीय नौसेना का एकमात्र प्रारंभिक प्रशिक्षण संस्थान है, जो सालाना 6600 से अधिक नवोदित सैनिकों को प्रशिक्षित करता है ताकि उन्हें सक्षम नाविक बनाया जा सके।

रक्षा पर संसद की स्थायी समिति के माननीय अध्यक्ष श्री जुआल ओराम और माननीय संसद सदस्यों वाली इस समिति को नवीनतम तकनीकी प्रगति के आलोक में रक्षा कर्मियों के प्रशिक्षण में सुधार पर समिति को अवगत कराने के लिए एक प्रस्तुति दी गई।

केवी के बारे में आईएनएस चिल्का, भुवनेश्वर

आईएनएस चिल्का, भारतीय नौसेना के नाविकों के लिए प्रमुख बुनियादी प्रशिक्षण प्रतिष्ठानों में से एक, 21 फरवरी 1980 को कमीशन किया गया। उड़ीसा राज्य का इतिहास गौरवशाली समुद्री परंपराओं में घिस गया। उड़ीसा के पूर्वी तट पर नीले समुद्र द्वारा धोया गया, इसे प्रकृति के मुकाबलों और अपने महान लोगों की शानदार उपलब्धि के साथ उदारतापूर्वक संपन्न होने का गौरव प्राप्त है। आईएनएस चिल्का 105 किलोमीटर है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 5 पर भुवनेश्वर के दक्षिण और हावड़ा-चेन्नई रेलवे लाइन। नौसेना का आधार ऐतिहासिक चिल्का झील की विशाल विशाल हरियाली पर स्थित है और 1530 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। चिल्का हमारे देश का सबसे बड़ा खारा पानी है। यह बंगाल की खाड़ी से दो खुलने से जुड़ा है। पहला एक सैंडबैंक है जो प्राकृतिक झील का मुंह बनाता है और चौड़ाई में 60 मीटर है; अन्य चौड़ाई में लगभग 10 मीटर और लंबाई में 12 किलोमीटर की एक कृत्रिम नहर है। चिल्का में 100 से अधिक छोटे और सुंदर द्वीपों के साथ लगभग 650 से 1150 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। झील उथली है। आधार के पूर्ववर्ती के भीतर के.वी. आईएनएस चिल्का एक पहाड़ी श्रृंखला के पैर में स्थित है जो ऊंची उड़ान भरती है और सुरम्य दृश्य प्रदान करती है। नौसैनिक बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के अलावा यह पड़ोसी स्टेशनों / गांवों के बच्चों के लिए भी खुला है और इसलिए उड़ीसा के इस हिस्से में शिक्षा का एक महत्वपूर्ण स्थान है। के.वी. आईएनएस चिल्का को सितंबर 1981 में कैप्टन के साथ खोला गया था। आर.जे. श्रमा, वीएमसी बोर्ड के पहले अध्यक्ष के रूप में एवीएसएम. वीआरसी। सीएपीटी के बाद। गुप्तेश्वर राय, एनएम ने इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। के.वी. में मामलों के मामलों में 19 अध्यक्ष रहे हैं। आईएनएस चिल्का और इन सभी प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों के तहत के.वी. आईएनएस चिल्का ने एक लंबा सफर तय किया है।

SOURCE-PIB

PAPER-G.S.3

 

भारत के पहले स्मॉग टॉवर

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कनॉट प्लेस में बाबा खड़क सिंह मार्ग पर भारत के पहले स्मॉग टॉवर का उद्घाटन करेंगे।

स्मॉग टावर

  • यह 20 मीटर से अधिक लंबी संरचना है और इसे लगभग 1 किमी के दायरे में वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए स्थापित किया गया है।
  • मॉनसून सीजन के बाद यह टावर पूरी क्षमता से काम करेगा।
  • इस स्मॉग-टावर को 20 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है।
  • इस टावर के प्रदर्शन का आकलन दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के वैज्ञानिक करेंगे और वे मासिक रिपोर्ट पेश करेंगे।

आनंद विहार में स्मॉग टॉवर (Smog tower at Anand Vihar)

केंद्र सरकार आनंद विहार में 25 मीटर लंबा स्मॉग टॉवर बनाएगी। इसके 31 अगस्त तक चालू होने की संभावना है।

यह टावर किसने डिजाइन किया है?

कुरिन सिस्टम्स (Kurin Systems) दिल्ली में 12 मीटर लंबा स्मॉग टॉवर विकसित कर रहा है। इस टावर को कुरिन सिटी क्लीनर कहा जाता है। कनॉट प्लेस के टॉवर के साथ-साथ आनंद विहार में अमेरिका के मिनेसोटा विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों द्वारा विकसित 1,200 एयर फिल्टर शामिल होंगे। इस विश्वविद्यालय ने चीन के जियान में 100 मीटर ऊंचे स्मॉग टॉवर को डिजाइन करने में भी मदद की थी।

पृष्ठभूमि

इस परियोजना को अक्टूबर 2020 में दिल्ली कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जनवरी 2020 में केंद्र सरकार को आनंद विहार में प्रदूषण कम करने के लिए एक स्मॉग टॉवर बनाने का निर्देश देने के बाद इसे मंजूरी दी गई थी।

स्मॉग टॉवर क्या है?

स्मॉग टावर ऐसी संरचनाएं हैं जिन्हें वायु प्रदूषण कणों को कम करने के लिए बड़े पैमाने पर एयर प्यूरीफायर के रूप में डिजाइन किया जाता है। ऐसी संरचना के लिए प्रोटोटाइप 2017 में बीजिंग (चीन) में डच कलाकार डैन रूजगार्ड द्वारा बनाया गया था। प्रदूषण से निपटने के लिए 2018 में शीआन, शानक्सी में 100 मीटर का टॉवर बनाया गया था।

SOURCE-GK TODAY

PAPER-G.S.3

 

खरीफ फसलों के क्षेत्र में कमी आई

22 अगस्त, 2021 को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, धान जैसे खरीफ फसलों के तहत मौजूदा मानसून के मौसम में 1,043.87 लाख हेक्टेयर में 1.55% की  गिरावट देखी गई।

मुख्य बिंदु

  • मंत्रालय ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि, “मानसून के मौसम की शुरुआत में कम, बिखरी हुई या अनिश्चित वर्षा” के कारण खरीफ फसलों में कमी आई है।
  • वर्ष 2020 में खरीफ फसलों का कुल क्षेत्रफल समान अवधि के लिए 1,060.37 लाख हेक्टेयर था।
  • हालांकि पांच साल के औसत 1,010.48 लाख हेक्टेयर की तुलना में क्षेत्र में 40 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है।
  • कपास की खेती का रकबा 2020 की तुलना में 65 लाख हेक्टेयर कम हुआ है। हालांकि, सामान्य औसत की तुलना में यह कमी केवल 1.01 लाख हेक्टेयर है।
  • कम या अनिश्चित बारिश के कारण महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश और पंजाब राज्यों से कपास का कम रकबा हुआ है।

खरीफ फसल

खरीफ फसलों को मानसून फसल या शरद ऋतु फसल भी कहा जाता है। इन फसलों की कटाई आमतौर पर सितंबर के तीसरे सप्ताह से अक्टूबर तक की जाती है। भारत में प्रमुख खरीफ फसलों में मक्का, चावल और कपास शामिल हैं।

भारत में खरीफ फसल

चावल भारत में सबसे महत्वपूर्ण खरीफ फसल है, जो गर्म और आर्द्र जलवायु वाले वर्षा सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती है। इसे बढ़ते मौसम के लिए 16-20 डिग्री सेल्सियस और पकने के लिए 18-32 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता होती है। वृद्धि अवधि के दौरान 150-200 सेंटीमीटर वर्षा और बाढ़ वाले क्षेत्र की आवश्यकता होती है।

SOURCE-DANIK JAGRAN

PAPER-G.S.3

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