23 March Current Affairs
विश्व क्षय रोग दिवस
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने विश्व क्षय रोग दिवस की पूर्व संध्या पर अपने विचार साझा किए हैं। ये दिवस हर वर्ष 24 मार्च को मनाया जाता है।
उन्होंने कहा:- मुझे यह जानकर खुशी हुई कि 24 मार्च 2021 को विश्व क्षय रोग दिवस मनाया जा रहा है ताकि जनता में क्षय रोग के प्रति जागरूकता फैलाई जा सके। 1882 में इसी दिन डॉ. रॉबर्ट कोच ने उस बैक्टिरिया की खोज की थी जिसके चलते टीबी की बीमारी होती है। इसी ने आगे चलकर इस जानलेवा बीमारी के ईलाज का मार्ग प्रशस्त किया।
क्षय रोग या टी.बी एक संक्रामक बीमारी है, जिससे प्रति वर्ष लगभग 1.5 मिलियन लोग मौत का शिकार होते हैं। पूरे भारत में यह बीमारी बहुत ही भयावह तरीके से फैली है। क्षय रोग के इस प्रकार से विस्तार पाने का सबसे बड़ा कारण है इस बीमारी के प्रति लोगों में जानकारी का अभाव।
विश्व क्षय रोग दिवस पूरे विश्व में 24 मार्च को घोषित किया गया है है और इसका ध्येय है लोगों को इस बीमारी के विषय में जागरूक करना और क्षय रोग की रोकथाम के लिए कदम उठाना।
विश्व टीबी दिवस को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) जैसे संस्थानों से समर्थन मिलता है। भारत में टीबी के फैलने का एक मुख्य कारण इस बीमारी के लिए लोगों सचेत ना होना और इसे शुरूवाती दौर में गंभीरता से ना लेना। टी.बी किसी को भी हो सकता है, इससे बचने के लिए कुछ सामान्य उपाय भी अपनाये जा सकते हैं।
क्षय रोग (TB) एक ऐसी बीमारी है जो मायकोबैक्टीरियम ट्युबर्कुलॉसिस नामक क्षय रोग के जीवाणु के कारण होती है। TB का प्रकोप उच्च आय वाले देशों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अधिक है।
TB दुनिया के हरेक हिस्से में मौजूद है। हालांकि, वर्ष 2014 में, TB के मामलों की सबसे अधिक संख्या दक्षिणपूर्व एशिया और अफ्रीका में थी। इस रोग का सबसे अधिक बोझ झेलने वाले छ: देश थे भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, और दक्षिण अफ्रीका।
SOURCE-PIB
डॉ. राम मनोहर लोहिया
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने डॉ. राम मनोहर लोहिया को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि दी है।
राम मनोहर लोहिया (अंग्रेज़ी : Ram Manohar Lohia, जन्म- 23 मार्च, 1910, क़स्बा अकबरपुर, फैजाबाद; मृत्यु- 12 अक्टूबर, 1967, नई दिल्ली) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे। राम मनोहर लोहिया को भारत एक अजेय योद्धा और महान् विचारक के रूप में देखता है। देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख़ बदल दिया जिनमें एक थे राममनोहर लोहिया। अपनी प्रखर देशभक्ति और बेलौस तेजस्वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही डॉ. लोहिया ने अपने विरोधियों के मध्य भी अपार सम्मान हासिल किया। डॉ. लोहिया सहज परन्तु निडर अवधूत राजनीतिज्ञ थे। उनमें सन्त की सन्तता, फक्कड़पन, मस्ती, निर्लिप्तता और अपूर्व त्याग की भावना थी। डॉ. लोहिया मानव की स्थापना के पक्षधर समाजवादी थे। वे समाजवादी भी इस अर्थ में थे कि, समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था और वे अपने कार्यक्षेत्र को जनमंगल की अनुभूतियों से महकाना चाहते थे। वे चाहते थे कि, व्यक्ति-व्यक्ति के बीच कोई भेद, कोई दुराव और कोई दीवार न रहे। सब जन समान हों। सब जन सबका मंगल चाहते हों। सबमें वे हों और उनमें सब हों। वे दार्शनिक व्यवहार के पक्ष में नहीं थे। उनकी दृष्टि में जन को यथार्थ और सत्य से परिचित कराया जाना चाहिए। प्रत्येक जन जाने की कौन उनका मित्र है? कौन शत्रु है? जनता को वे जनतंत्र का निर्णायक मानते थे।
लोहिया अनेक सिद्धान्तों, कार्यक्रमों और क्रांतियों के जनक हैं। वे सभी अन्यायों के विरुद्ध एक साथ जेहाद बोलने के पक्षपाती थे। उन्होंने एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया। वे सात क्रान्तियाँ थी।
- नर-नारी की समानता के लिए।
- चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आर्थिक और दिमागी असमानता के ख़िलाफ़।
- संस्कारगत, जन्मजात जातिप्रथा के ख़िलाफ़ और पिछड़ों को विशेष अवसर के लिए।
- परदेसी ग़ुलामी के ख़िलाफ़ और स्वतन्त्रता तथा विश्व लोक-राज के लिए।
- निजी पूँजी की विषमताओं के ख़िलाफ़ और आर्थिक समानता के लिए तथा योजना द्वारा पैदावार बढ़ाने के लिए।
- निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ और लोकतंत्री पद्धति के लिए।
- अस्त्र-शस्त्र के ख़िलाफ़ और सत्याग्रह के लिये।
इन सात क्रांतियों के सम्बन्ध में लोहिया ने कहा-मोटे तौर से ये हैं सात क्रांन्तियाँ। सातों क्रांतियाँ संसार में एक साथ चल रही हैं। अपने देश में भी उनको एक साथ चलाने की कोशिश करना चाहिए। जितने लोगों को भी क्रांति पकड़ में आयी हो उसके पीछे पड़ जाना चाहिए और बढ़ाना चाहिए। बढ़ाते-बढ़ाते शायद ऐसा संयोग हो जाये कि आज का इन्सान सब नाइन्साफियों के ख़िलाफ़ लड़ता-जूझता ऐसे समाज और ऐसी दुनिया को बना पाये कि जिसमें आन्तरिक शांति और बाहरी या भौतिक भरा-पूरा समाज बन पाये।
1942 में महात्मा गाँधी ने जब भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की तब कांग्रेस के सभी दिग्गज नेताओं ने उन्हें कहा कि इस समय दूसरे महायुद्ध के दौरान हमने अंग्रेज़ों की शक्ति बढ़ाने की कोशिश की तो इतिहास हमें फ़ाँसीवाद का पक्षधार मानेगा। लेकिन गांधी जी नहीं माने। डॉ. लोहिया को गांधी जी का यह फैसला पसंद आया और वे भारत छोड़ो आंदोलन में कूद पड़े। ‘अगस्त क्रान्ति’ का चक्रप्रवर्तन हो चला। डॉ. लोहिया अंग्रेज़ों को चकमा देकर गिरफ़्तारी से बच निकले। अपनी समाजवादी मित्र मण्डली के साथ वे भूमिगत हो गये। भूमिगत रहते हुए भी उन्होंने बुलेटिनों, पुस्तिकाओं, विविध प्रचार सामग्रियों के अलावा समान्तर रेडियो ‘कांग्रेस रेडियो’ का संचालन करते हुए देशवासियों को अंग्रेज़ों से लोहा लेने के लिए प्रेरित किया।
SOURCE-bharatdiscovery
गांधी शांति पुरस्कार
वर्ष 2020 के लिए गांधी शांति पुरस्कार बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को प्रदान किया जा रहा है। संस्कृति मंत्रालय ने सोमवार को गांधी शांति पुरस्कारों का ऐलान कर दिया। वर्ष 2020 के लिए गांधी शांति पुरस्कार बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान को प्रदान किया जाएगा, जबकि वर्ष 2019 का पुरस्कार ओमान के दिवंगत सुल्तान काबूस बिन अल सैद को दिया जाएगा।
गांधी शांति पुरस्कार भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वार्षिक पुरस्कार है जिसे 1995 से प्रदान किया जा रहा है। इस पुरस्कार की स्थापना महात्मा गांधी की 125वीं जयंती पर की गई। पुरस्कार सभी व्यक्तियों के लिए खुला है चाहे उनकी राष्ट्रीयता, नस्ल, भाषा, जाति, पंथ या लिंग कोई भी हो।
गांधी शांति पुरस्कार के लिए जूरी की अध्यक्षता माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा की जाती है, और इसमें दो पदेन सदस्य होते हैं, जिनमें भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल हैं। दो प्रतिष्ठित सदस्य भी जूरी का हिस्सा हैं, इनमें लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला, और सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन के संस्थापक श्री बिंदेश्वर पाठक शामिल हैं।
जूरी की बैठक 19 मार्च, 2021 को हुई और उचित विचार-विमर्श के बाद, सर्वसम्मति से बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान को वर्ष 2020 के गांधी शांति पुरस्कार के लिए चुनने का फैसला किया गया। उन्हें यह पुरस्कार उनके अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाएगा।
इसके पहले यह प्रतिष्ठित पुरस्कार पाने वालों में तंजानिया के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जूलियस न्येरे, जर्मनीके संघीय गणराज्य के डॉ. गेरहार्ड फिशर, रामकृष्ण मिशन, बाबा आम्टे (श्री मुरलीधर देवदास आम्टे), दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ. नेल्सन मंडेला, बंग्लादेश ग्रामीण बैंक, दक्षिण अफ्रीका के आर्कबिशप डेसमंड टूटू, श्री चंडी प्रसाद भट्ट और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के नाम शामिल हैं। हाल के विजेताओं में साल 2015 में विवेकानंद केंद्र, साल 2016 में संयुक्त रूप से अक्षय पात्र फाउंडेशन, भारत और सुलभ इंटरनेशनल, 2017 में एकल अभियान ट्रस्ट और साल 2018 में जापान के श्री योही ससाकावा जैसे प्रख्यात लोगों के नाम शामिल हैं।
पुरस्कार के तहत 1 करोड़ की राशि, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक अति सुंदर पारंपरिक हस्तकला/हथकरघा से बनी वस्तु दी जाती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि बंगबंधु मानव अधिकारों और स्वतंत्रता के अग्रणी प्रणेता थे। वह भारतीयों के लिए भी एक नायक हैं। उन्होंने कहा कि बंगबंधु की विरासत और प्रेरणा ने दोनों देशों की विरासत को अधिक व्यापक और कहीं अधिक मजबूत बनाया है। बंगबंधु द्वारा दिखाए गए मार्ग ने पिछले एक दशक में दोनों देशों की साझेदारी, प्रगति और समृद्धि की मजबूत नींव रखी है।
जिस तरह बांग्लादेश मुजीब वर्ष मना रहा है, उसी तरह भारत भी बांग्लादेश सरकार और उसके लोगों के साथ मिलकर उनकी विरासत को याद करते हुए सम्मानित महसूस कर रहा है।
गांधी शांति पुरस्कार बांग्लादेश के मुक्ति अभियान में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान के अपार और अतुलनीय योगदान को मान्यता देता है। उन्होंने संघर्ष के बाद जन्मे एक राष्ट्र में स्थिरता लाने में अहम भूमिका निभाई। यही नहीं भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ और भाईचारे के संबंधों की नींव भी तैयार हुई। साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में शांति और अहिंसा को बढ़ावा मिला।
SOURCE-PIB
वर्ल्ड समिट ऑन इनफॉरमेशन सोसायटी फोरम 2021
वर्ल्ड सम्मिट ऑन द इनफॉरमेशन सोसायटी (डब्ल्यू एस आई एस) 2021 आईसीटी के लिए विश्व समुदाय का सबसे बड़ा वार्षिक कार्यक्रम है जिसका आयोजन सामूहिक रूप से अंतरराष्ट्रीय टेलीकम्युनिकेशन यूनियन आईटीयू, यूनेस्को, यूएनडीपी और यूएनसीटीएडी द्वारा किया गया। डब्ल्यू एस आई एस 2021 के उच्च स्तरीय नीति सत्र को संबोधित करते हुएश्री धोत्रे ने इंडस्ट्री के आधुनिकीकरण और रूपांतरण के लिए और टिकाऊ विकास लक्ष्य (एसडीजी) को हासिल करने के लिए समग्र आर्थिक विकास के प्रोत्साहन में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी आईसीटी की भूमिका का उल्लेख किया।
इससत्र में आईटीयू के महासचिव तथा रूस, अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, जिंबाब्वे और ईरान के मंत्रियों के साथ साथ दुनिया के कई नेता और उच्चगणमान्य लोग उपस्थित रहे।
भारत में डिजिटल खाई को पाटने के लिए सामने आरही चुनौतियों से सम्बंधित एक प्रश्न के उत्तर में भारतीय मंत्री ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही नीतियों और कार्यक्रमों का उल्लेख किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भी शुरू की गई पहल का उद्देश्य न सिर्फ महामारी से प्रभावी ढंग से निपटने का प्रबंधन करना था बल्कि देश में डिजिटलखाई को पाटना भी था। उन्होंने नागरिकों के स्वास्थ्य की स्थिति पर उन्हें सतर्क करने के लिए आरोग्य सेतु मंच का उल्लेख किया। साथी ही चिन्हित क्षेत्र में लक्षित संदेश प्रसारित करने के लिए कोविड सावधान प्रणाली का जिक्र किया और घर से या किसी अन्य स्थान से काम करने के लिए सुविधा ढांचे पर बात की और पीएम-वाणी योजना के अंतर्गत लोगों के लिए वाईफाई के प्रभावी इस्तेमाल का जिक्र किया जिससे देश भर में नागरिकों को प्रभावी ढंग से सेवाएं उपलब्ध कराने में मदद मिली।
सुदूर क्षेत्रों में टेलीकॉम बुनियादी ढांचा विकसित करने पर लोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए श्री धोत्रे ने कहा कि महत्वाकांक्षी कार्यक्रम भारत नेट के माध्यम से 4,00,000 किलोमीटर से अधिक दूरी में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने और उपग्रह संचार सेवा का इस्तेमाल करने के साथ लगभग 6,00,000 गांवों को जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे धन से सबमरीन केबल नेटवर्क के जरिए अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह तथा लक्षदीप के सुदूरवर्ती और छोटे द्वीपों और अन्यक्षेत्रों को जोड़ा जा रहा है। श्री धोत्रे ने कहा कि अकादमिक जगत, स्टार्टअप और एसएमई की सहभागिता से भारत में आईटीयू एरिया ऑफिस और इनोवेशन सेंटर शुरू किए जाने से प्रौद्योगिकी के विकास और विकासशील देशों के ग्रामीण तथा सुदूरवर्ती क्षेत्रों के लिए सबसे उपयोगी व्यवस्थाएं और मानकीकरण तथा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने में मदद मिलेगी।
यह व्यवस्था अनेक विकासशील देशों में डिजिटल खाई को पाटने और एसडीजी के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आधार बनेगी।
SOURCE-PIB
ज्वालामुखी बांड
डेनिश रेड क्रॉस ने घोषणा की कि उसने कई वित्तीय फर्मों के साथ मिलकर ज्वालामुखी से संबंधित आपदाओं के लिए अपनी तरह का पहला आपदा बांड (catastrophe bond) लांच किया है।
ज्वालामुखी बांड (Volcano Bonds)
यह बॉन्ड जो आपदा राहत एजेंसी को चिली, इक्वाडोर, कैमरून, कोलंबिया, मैक्सिको, ग्वाटेमाला और इंडोनेशिया जैसे 10 ज्वालामुखियों के विस्फोट के कारण पीड़ित लोगों को जल्दी से वित्तीय सहायता प्राप्त करने में सक्षम करेगा। इस परियोजना के भागीदारों का लक्ष्य इस बॉन्ड के लॉन्च के साथ $3 मिलियन जुटाने का है। यह पैसा डेनमार्क के रेड क्रॉस की शाखा में स्थानांतरित किया जाएगा। बॉन्ड में शुरुआती निवेशक प्लेनम इनवेस्टमेंट और श्रोडर इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट हैं।
आपदा बांड (Catastrophe Bond)
आपदा बांड भूकंप और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं।
आलोचना
वर्ष 2017 में बेचे गए इन महामारी बांडों की आलोचना की जाने लगी, जब वे 2019 में इबोला के प्रकोप के दौरान और 2020 में कोरोना वायरस महामारी के प्रारंभिक चरणों में भुगतान करने में विफल रहे। ये बांड कोविड-19 संकट के बीच भी घाटे में चले गए।
SOURCE-G.K.TODAY
विश्व मौसम विज्ञान दिवस
हर साल 23 मार्च को विश्व मौसम विज्ञान दिवस (World Meteorological Day) मनाया जाता है। यह 1950 में स्थापित किया गया था। इस दिन को विश्व मौसम संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी मनाया जा रहा है।
23 मार्च को इसलिए चुना गया है क्योंकि 1950 में उस दिन विश्व मौसम संगठन (World Meteorological Organization) की स्थापना हुई थी।
थीम: The Ocean, Our Climate and Weather
मुख्य बिंदु
WMO की स्थापना को चिह्नित करने के लिए यह दिन मनाया जाता है, जिसमें 193 सदस्य देश और क्षेत्र हैं। यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से उत्पन्न हुआ है, जिसका विचार वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कांग्रेस 1873 में निहित है। WMO को 1950 में WMO सम्मेलन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित किया गया था, जिसके बाद यह संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई। WMO का मुख्यालय स्विट्जरलैंड के जिनेवा में स्थित है।
विश्व मौसम विज्ञान दिवस का महत्व
यह दिन दुनिया भर में बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह समाज की सुरक्षा और भलाई के लिए राष्ट्रीय मौसम विज्ञान और जल विज्ञान सेवाओं के आवश्यक योगदान को प्रदर्शित करता है। इस दिवस का उद्देश्य पृथ्वी पर विभिन्न चिंताओं के बारे में दुनिया भर में जागरूकता फैलाना है।
शहीद दिवस
हर साल, 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस तीन महान युवा नेताओं भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु के साहस और वीरता को याद करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन इन तीन महान नेताओं को फांसी दी गयी थी।
मुख्य बिंदु
देश में इस दिन को शहीद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। कई स्कूल और कॉलेज इस दिन को श्रद्धांजलि देते हैं और आभार व्यक्त करते हैं।
भगत सिंह
भगत सिंह का जन्म 1907 में हुआ था। उन्होंने “इंकलाब जिंदाबाद” को लोकप्रिय बनाया।
अन्य शहीद दिवस
30 जनवरी को, भारत में मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या को चिह्नित करने के लिए शहीद दिवस मनाया जाता है। 19 मई को बंगाली भाषा आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति देने वाले 15 बंगालियों की याद में भाषा शहीद दिवस मनाया जाता है।
21 अक्टूबर को पुलिस शहीद दिवस के रूप में चिह्नित किया जाता है। इसे पुलिस शहीद दिवस भी कहा जाता है। 21 अक्टूबर को, भारत-तिब्बत सीमा पर CRPF पर चीनी सेना द्वारा घात लगाकर हमला किया गया था।
17 नवंबर को, ओडिशा सरकार द्वारा लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि मनाने के लिए शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
19 नवंबर को, महाराष्ट्र ने रानी लक्ष्मी भाई की जयंती मनाने के लिए शहीद दिवस मनाया जाता है।
SOURCDE G.K.TODAY
Freedom Pineapple Movement
ताइवान के विदेश मंत्री जोसेफ वू ने हाल ही में चीन द्वारा ताइवान से अनानास के आयात पर प्रतिबंध की निंदा करने के लिए ट्विटर पर “Freedom Pineapple” अभियान शुरू किया। इस प्रतिबंध के बाद ताइवान के अनानास भी इस क्षेत्र में एक राजनीतिक प्रतीक बन गए हैं।
“Freedom Pineapple” ताइवान से अनानास के आयात पर चीनी प्रतिबंध के खिलाफ एक राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया है। चीनी सरकार ने वर्ष 2021 में अनानास के लिए सीजन शुरू होने से ठीक पहले ताइवान से अनानास के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था। चीन सरकार ने आयात पर रोक लगाते हुए कहा है कि अनानास आयात कीटों से दूषित पाए गये थे। हालांकि, ताइवान के विशेषज्ञों, उत्पादकों और सरकार द्वारा इसका खंडन किया गया था। इस आंदोलन का नाम एक “Play on Freedom Fries” से प्रेरित है।
ताइवान ने प्रतिबंध का जवाब कैसे दिया?
प्रतिबंध का सामना करने के बाद, ताइवानी सरकार ने अपने नागरिकों और अन्य राजनयिक सहयोगियों से “Freedom Pineapple” की खपत बढ़ाने के लिए कहा था। सरकार ने किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का भी वादा किया है जो प्रतिबंध के कारण नुकसान से गुजरेंगे। ताइवान की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन (Tsai Ing-wen) ने भी एक सोशल मीडिया अभियान शुरू किया है जिसका नाम है “Eat Taiwan’s pineapples until you burst”। यह अभियान अपने नागरिकों को स्थानीय अनानास की खपत बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया था। ताइवान के रेस्तरां ने भी अपने व्यंजनों में अनानास को शामिल किया।
SOURCE-INDIAN EXPRESS
पेप्सू मुजारा आंदोलन
1949 में, किशनगढ़ गाँव में “पेप्सू मुजारा आंदोलन” के दौरान 19 मार्च को चार किसानों की हत्या कर दी गई थी। मौजूदा किसान आन्दोलन के दौरान 19 मार्च को पेप्सू मुजारा आंदोलन और उन किसानों को कई स्थलों पर याद किया गया।
मुजारा आंदोलन (Muzara Movement)
यह आंदोलन वर्षों तक कार्य करने के बाद भूमि के स्वामित्व के अधिकार लेने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह आन्दोलन 1930 के दशक में ब्रिटिश शासन के अधीन शुरू हुआ था जब जागीरदार पंजाब के गाँवों में किसानों की फसल में हिस्सा मांग रहे थे। यह हिस्सा पटियाला के महाराजा और फिर अंग्रेजों को दिया जाता था। इस प्रकार किसान जागीरदारों, महाराजा और अंग्रेजों के गुलामों की तरह काम कर रहे थे। इसलिए, किसानों ने यह आंदोलन शुरू किया जिसमें उन्होंने अपने आकाओं को खाद्यान्न देने से इनकार कर दिया। भारत की स्वतंत्रता के बाद पटियाला रियासत के कुछ 784 गांवों को पेप्सू प्रांत (PEPSU Province) के रूप में नामित किया गया था। इसके बाद, अक्टूबर 1948 में, पटियाला के महाराजा ने गांवों की एक तिहाई जमीन जागीरदारों को देने के आदेश पारित किए थे। हालांकि, किसानों ने इसे स्वीकार नहीं किया। बाद में 19 मार्च को, इन किसानों और किशनगढ़ के महाराजा के सुरक्षा बलों के बीच संघर्ष हुआ, जिसमे चार किसानों, एक सुरक्षा कर्मी और एक पटवारी की मौत हुई थी।
पृष्ठभूमि
मुजरा शब्द “भूमिहीन किसानों” के लिए प्रयोग किया जाता है जो किसी की भूमि पर काम करते थे। 19वीं सदी के उत्तरार्ध में मुजरा आंदोलन की शुरुआत हुई, जब ‘पटियाला की रियासत’ पटियाला के महाराजा के अत्याचार से पीड़ित थी। स्थानीय जमींदार जिन्हें बिस्वेदार कहा जाता है, का भूमि पर अधिकारों था, लेकिन इस पर काम करने वालो ने महसूस किया कि उन जमींदारों को भूमि पर कोई वैध अधिकार नहीं था। 1948 तक, 30 से 40 लोगों के छोटे सशस्त्र समूह जमींदारों से मुजारों की रक्षा करते थे। 1951 में कांग्रेस मंत्रालय स्थापित होने के बाद, समस्या से निपटने के उपायों की सिफारिश करने के लिए एक कृषि सुधार जांच समिति का गठन किया गया था। बाद में 1952 में PEPSU Tenancy (Temporary Provision) Act तैयार किया गया था। यह अधिनियम किसानों को मालिक बनने के लिए प्रदान करता है।
पेप्सू प्रांत (PEPSU Province)
इसका अर्थ “पटियाला और पूर्वी पंजाब राज्य संघ” (Patiala and East Punjab States Union) है। यह भारत का एक राज्य था, जिसमें 1948 और 1956 के बीच वर्ष में आठ रियासतों को एकजुट किया गया था। पेप्सू की राजधानी पटियाला थी। शिमला, कसौली, कंडाघाट और चैल भी पेप्सू का हिस्सा थे।
SOURCE-G.K.TODAY