Current Affairs – 24 June, 2021
संत कबीर दास
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने संत कबीर दास जी की उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संत कबीर दास जी ने न केवल सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी बल्कि दुनिया को मानवता और प्रेम का पाठ पढ़ाया। उन्होंने जो मार्ग दिखाया, वह पीढ़ियों को भाईचारे और सद्भाव के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
कबीर या कबीर साहेब जी 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे। वे हिन्दी साहित्य के भक्तिकालीन युग में परमेश्वर की भक्ति के लिए एक महान प्रवर्तक के रूप में उभरे। इनकी रचनाओं ने हिन्दी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। उनका लेखन सिक्खों ☬ के आदि ग्रंथ में भी देखने को मिलता है। वे हिन्दू धर्म व इस्लाम को न मानते हुए धर्म एक सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने सामाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना भी। उनके जीवनकाल के दौरान हिन्दू और मुसलमान दोनों ने उन्हें बहुत प्रताड़ित किया। कबीर पंथ नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं।
जीवन परिचय
कबीर साहेब का (लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी) जन्म स्थान काशी, उत्तर है। कबीर साहेब का प्राकट्य सन 1398 (संवत 1455), में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को ब्रह्ममूहर्त के समय कमल के पुष्प पर हुआ था।
कबीर जी जनसाधारण में सामान्यतः कलयुग में “कबीर दास” नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा उन्होंने बनारस (काशी, उत्तर प्रदेश) में जुलाहे की भूमिका की। परंतु विडंबना यह है कि सर्व सृष्टि के रचनहार, भगवान स्वयं धरती पर अवतरित हुए और स्वयं को दास शब्द से सम्बोधित किया। कबीर साहेब के वास्तविक रूप से सभी अनजान थे सिवाय उनके जिन्हें कबीर साहेब ने स्वयं दर्शन दिए और अपनी वास्तविक स्थिति से परिचित कराया जिनमें शिख धर्म के परवर्तक नानक देव जी (तलवंडी, पंजाब), आदरणीय धर्मदास जी (बांधवगढ़, मध्यप्रदेश), दादू साहेब जी (गुजरात) आदि आदि शामिल हैं।
कबीरदास के विचार (Thoughts of Kabir Das)
कबीर दास (Kabir Das) ने जो व्यंग्यात्मक प्रहार किए और अपने को सभी ऋषि-मुनियों से आचारवान एवं सच्चरित्र घोषित किया, उसके प्रभाव से समाज का निम्न वर्ग प्रभावित न हो सका एवं आधुनिक विदेशी सभ्यता में दीक्षित एवं भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति में कुछ लोगों को सच्ची मानवता का संदेश सुनने को मिला।
रविंद्र नाथ ठाकुर ने ब्रह्म समाज विचारों से मेल खाने के कारण कबीर की वाणी का अंग्रेजी अनुवाद प्रस्तुत किया और उससे आजीवन प्रभावित भी रहे। कबीर दास की रचना मुख्यतः साखियों एवं पदों में हुई है।
इसमें उनकी सहानुभूति तीव्र रूप से सामने आई है।
संत परंपरा में हिंदी के पहले संत साहित्य भाष्टा जयदेव हैं। ये गीत गोविंदकार जयदेव से भिन्न है। शेनभाई, रैदास, पीपा, नानकदेव, अमरदास, धर्मदास, दादूदयाल, गरीबदास, सुंदरदास, दरियादास, कबीर की साधना हैं।
कबीर दास का साहित्यिक परिचय (Literary introduction of Kabir Das)
कबीर दास संत, कवि और समाज सुधारक थे। इसलिए उन्हें संत कबीरदास (Sant Kabir Das) भी कहा जाता है। उनकी कविता का प्रत्येक शब्द पाखंडीयों के पाखंडवाद और धर्म के नाम पर ढोंग और स्वार्थपूर्ति की निजी दुकानदारों को ललकारता हुआ आया और असत्य अन्याय की पोल खोलकर रख दी।
कबीर का अनुभूत सत्य अंधविश्वासों पर बारूदी मुकाबला था। उनके द्वारा बोला गया था कभी ऐसा जो आज तक के परिवेश पर सवालिया निशाना बनकर चोट भी करता था और खोट भी निकालता थाकबीर की वाणी का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है।
इसके तीन भाग हैं—
- रमैनी
- सबद
- साखी
कबीरदास की भाषा और शैली (Language style of Kabir Das)
कबीर दास की भाषा शैली में उन्होंने अपनी बोलचाल की भाषा का ही प्रयोग किया है भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था। वो अपनी जिस बात को जिस रूप में प्रकट करना चाहते थे उसे उसी रूप में प्रकट करने की क्षमता उनके पास थी।
भाषा भी मानो कबीर सामने कुछ लाचार सी थी उसमें ऐसी हिम्मत नहीं थी कि उनकी इस फरमाइश को ना कह सके। वाणी के ऐसे बादशाह को साहित्य—रसिक कव्यांद का आस्वादन कराने वाला समझे तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। कबीर ने जिन तत्वों को अपनी रचना से ध्वनित करना चाहा है, उसके लिए कबीर की भाषा से ज्यादा साफ और जोरदार भाषा की संभावना भी नहीं है और इससे ज्यादा जरूरत भी नहीं है।
कबीर दर्शन (Kabir Darshan)
यह उनके जीवन के बारे में अपने दर्शन का एक प्रतिबिंब हैं। उनके लेखन मुख्य रूप से पुनर्जन्म और कर्म की अवधारणा पर आधारित थे। कबीर के जीवन के बारे में यह स्पष्ट था कि वह एक बहुत ही साधारण तरीके से जीवन जीने में विश्वास करते थे।
उनका परमेश्वर की एकता की अवधारणा में एक मजबूत विश्वास था उनका एक विशेष संदेश था कि चाहे आप हिंदू भगवान या मुसलमान भगवान के नाम का जाप करें, किंतु सत्य यह है कि ऊपर केवल एक ही परमेश्वर है जो इस खूबसूरत दुनिया के निर्माता है।
जो लोग इन बातों से ही कबीर दास की महिमा पर विचार करते हैं वे केवल सतह पर ही चक्कर काटते हैं कबीर दास एक बहुत ही महान और जबरदस्त क्रांतिकारी पुरुष थे।
SOURCE-PIB
समुद्री राज्य विकास परिषद
केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री मनसुख मंडाविया ने आज समुद्री राज्य विकास परिषद (एमएसडीसी) की 18वीं बैठक की अध्यक्षता पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय द्वारा आयोजित एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से की।
एमएसडीसी का उद्देश्य राज्यों और केंद्र दोनों के लिए फायदेमंद समुद्री क्षेत्र के विकास के लिए एक राष्ट्रीय योजना विकसित करना और क्षेत्र के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाना है। उन्होंने आगे कहा कि देश का विकास राज्यों के विकास पर निर्भर करता है और एमएसडीसी सहकारी संघवाद का सबसे अच्छा उदाहरण है। मंत्री ने कहा, “अलग-अलग होकर हम विकास नहीं कर सकते। विकास के लिए एकजुट होना बेहद जरूरी है।
बैठक के दौरान जिन प्रमुख बिंदुओं पर चर्चा की गई, वे हैं – भारतीय बंदरगाह विधेयक 2021, राष्ट्रीय समुद्री विरासत संग्रहालय (एनएमएचसी), बंदरगाहों के साथ रेल और सड़क संपर्क, समुद्री संचालन और समुद्री विमान संचालन के लिए फ्लोटिंग जेटी, सागरमाला परियोजनाएं और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) परियोजनाएं।
भारतीय बंदरगाह विधेयक 2021 : भारत के बंदरगाह विकास में तेजी लाने की दिशा में एक कदम
वित्त वर्ष 2020 में भारतीय बंदरगाहों पर यातायात का संचालन लगभग 1.2 बिलियन मीट्रिक टन है, जिसके 2030 तक बढ़कर 2.5 बिलियन मीट्रिक टन होने की उम्मीद है। दूसरी ओर, भारत में केवल कुछ बंदरगाहों के पास ही जो सुविधा है जिससे जहाजों के पलटने जैसे स्थितियों से निपटा जा सकता है। इसके अलावा, भारत के तट पर लगभग 100 ऐसी बंदरगाहें हैं जो चालू हालत में नहीं है। जहाजों के लगातार बढ़ते आकार के लिए डीप ड्राफ्ट पोर्ट होने अनिवार्य हैं और वास्तव में मेगा पोर्ट्स को विकसित करने की आवश्यकता है। इसी तरह, बंद पड़ी बंदरगाहों को भी प्राथमिकता पर विकसित करने की आवश्यकता है।
मौजूदा बंदरगाहों को बढ़ाने या नई बंदरगाहों को एक कुशल और टिकाऊ तरीके से विकसित करने के लिए एक राष्ट्रीय स्तर के एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो बदले में माल ढुलाई लागत को काफी हद तक कम कर देगा और व्यापार में वृद्धि लाएगा। राष्ट्रीय स्तर की एकीकृत बंदरगाह योजना को ‘विश्व बैंक की पोर्ट रिफॉर्म बुक और यूएनसीटीएडी की ‘विकासशील देशों में योजनाकारों के लिए पुस्तिका’ आदि विभिन्न रिपोर्टों में भी उजागर किया गया है।
एमएसडीसी प्रमुख बंदरगाहों सहित सभी बंदरगाहों की योजना पर सलाह देगा। इसके अलावा, सभी बंदरगाहों द्वारा इस तरह के सम्मेलनों में निर्धारित सभी आवश्यकताओं को लागू करने के लिए सुरक्षा और प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित बिंदुओं को भी आईपी विधेयक 2021 में शामिल किया गया है।
एनएमएचसी – भारत का पहला समुद्री विरासत परिसर
राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर (एनएमएचसी) को गुजरात के लोथल में लगभग 350 एकड़ के क्षेत्र को भारत की समुद्री विरासत को समर्पित एक विश्व स्तरीय संग्रहालय के रूप में विकसित किया जाना है। इस समुद्री विरासत परिसर को एक समुद्री संग्रहालय, लाइटहाउस संग्रहालय, समुद्री थीम पार्क और मनोरंजन पार्क आदि के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा।
एनएमएचसी के प्रमुख आकर्षणों में से एक यह है कि प्रत्येक तटीय राज्य और केंद्र शासित प्रदेश का अपनी विशिष्ट समुद्री विरासत को प्रदर्शित करने के लिए एक पवेलियन होगा। बैठक के दौरान तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से अनुरोध किया गया कि वे अपने-अपने पवेलियन का विकास करें।
पोर्ट कनेक्टिविटी को बढ़ाना
बंदरगाहों को अन्य जगहों से जोड़ना भी महत्वपूर्ण है और मंत्रालय अपनी प्रमुख पहल सागरमाला कार्यक्रम के माध्यम से पोर्ट कनेक्टिविटी पर जोर दे रहा है। मंत्रालय ने 45,051 करोड़ रुपये की लागत वाली 98 पोर्ट-रोड कनेक्टिविटी परियोजनाएं शुरू की हैं। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, प्रमुख बंदरगाहों, समुद्री बोर्डों और राज्य सड़क विकास कंपनियों जैसी विभिन्न कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ इन परियोजनाओं को चलाया जा रहा है जिनमें से 13 परियोजनाएं पूरी हो चुकी हैं और 85 परियोजनाएं विकास और कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं।
समुद्री संचालन और समुद्री विमान सेवाओं के लिए फ्लोटिंग जेटी
अन्य देशों में फ्लोटिंग जेटी का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। परंपरागत जेटी की तुलना में फ्लोटिंग जेट्टी के कई फायदे हैं जैसे लागत-प्रभावशीलता, त्वरित निर्माण, न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव, विस्तार और स्थानांतरित करने में आसान और तेज लहरों वाले स्थानों के लिए उपयुक्त आदि।
बंदरगाहों, जलमार्गों और तटों के लिए राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी केंद्र (एनटीसीपीडब्ल्यूसी), आईआईटी मद्रास को भारतीय तटरेखा में 150 से अधिक फ्लोटिंग जेटी विकसित करने के लिए विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का आदेश दिया गया था और काम प्रगति पर है। फ्लोटिंग जेट्टी का मुख्य रूप से फिशिंग हार्बर्स/फिश लैंडिंग सेंटर्स और सीप्लेन संचालन के लिए उपयोग करने का प्रस्ताव है।
भारतीय बुनियादी ढांचे को सागरमाला कार्यक्रम और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के जरिए मजबूती
पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय में विभिन्न बुनियादी ढांचा परियोजनाएं हैं जो सागरमाला कार्यक्रम और नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) के तहत की जाती हैं।
एमएसडीसी की पृष्ठभूमि : एमएसडीसी समुद्री क्षेत्र के विकास के लिए एक शीर्ष सलाहकार निकाय है और इसका उद्देश्य प्रमुख और गैर-प्रमुख बंदरगाहों के एकीकृत विकास को सुनिश्चित करना है। एमएसडीसी का गठन मई, 1997 में राज्य सरकारों के परामर्श से संबंधित समुद्री राज्यों द्वारा या तो सीधे या कैप्टिव यूजर और निजी भागीदारी के माध्यम से मौजूदा और नए छोटे बंदरगाहों के भविष्य के विकास का आकलन करने के लिए किया गया था। इसके अलावा, एमएसडीसी समुद्री राज्यों में छोटी बंदरगाहों, कैप्टिव बंदरगाहों और निजी बंदरगाहों के विकास की निगरानी भी करता है ताकि प्रमुख बंदरगाहों के साथ उनके एकीकृत विकास को सुनिश्चित किया जा सके और सड़कों/रेल/आईडब्ल्यूटी जैसी अन्य बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकताओं का आकलन किया जा सके और संबंधित मंत्रियों को उपयुक्त सिफारिशें दी जा सकें।
सागरमाला परियोजना
बंदरगाहों के बुनियादी ढाँचें को विकसित करने के लिये वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा सागरमाला परियोजना की शुरुआत की गई।
परियोजना के बारे में
- सागरमाला परियोजना केंद्र सरकार द्वारा प्रारंभ की गई योजना है जो बंदरगाहों के आधुनिकीकरण से संबंधित है।
- हालाँकि इस परियोजना की परिकल्पना सर्वप्रथम तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 15 अगस्त, 2003 को प्रस्तुत की गई थी।
- इस योजना द्वारा 7500 किमी. लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष विकास को बढ़ावा देना है।
- इस योजना में 12 स्मार्ट शहर तथा विशेष आर्थिक ज़ोन को शामिल किया गया है।
- योजना के अंतर्गत आठ तटीय राज्यों को चिन्हित किया गया है जिनमें गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
- केंद्रीय शिपिंग मंत्रालय को इस योजना की नोडल एजेंसी के रूप में नियुक्त किया गया है।
परियोजना के उद्देश्य
- बंदरगाहों के आस-पास प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष विकास को प्रोत्साहन देना।
- तटीय आर्थिक क्षेत्र में बसे लोगों के सतत् विकास को प्रोत्साहित करना।
- देश के बड़े तटवर्ती शहरों को बेहतर सड़क मार्ग,वायु मार्ग,तथा समुद्री मार्ग से जोड़ना।
- बंदरगाहों से माल की आवाजाही के लिये किफायती, त्वरित और कुशल बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराना।
- नए बंदरगाहों का विकास तथा पुराने बंदरगाहों का आधुनिकीकरण करना।
परियोजना के मुख्य स्तंभ
सागर माला परियोजना के तहत विकास प्रक्रिया को तीन मुख्य स्तंभों पर केंद्रित कर संपन्न किया जाएगा। ये तीन प्रमुख स्तंभ इस प्रकार हैं –
- भीतरी क्षेत्रों से बंदरगाहों तक तथा बंदरगाहों से भीतरी क्षेत्रों तक माल निकासी व्यवस्था को सुगम बनाना।
- बंदरगाह अवसंरचना में वृद्धि करना जिनमे बंदरगाहों का आधुनिकीकरण तथा नये बंदरगाहों का निर्माण शामिल है।
- उपयुक्त नीति और संस्थागत हस्तक्षेपों के माध्यम से पोर्ट लीड विकास (Port-led Development) का समर्थन करना तथा उसे अधिक सक्षम बनाना साथ ही एकीकृत विकास को सुनिश्चित करने के लिये अंतर-एजेंसी और मंत्रालयों/विभागों/राज्यों के माध्यम से संस्थागत ढाँचा उपलब्ध कराना।
परियोजना के चार रणनीतिक पहलू :
- घरेलू कार्गों की लागत घटाने के लिये मल्टी-मॉडल ट्रांसपोर्ट को विकसित करना।
- निर्यात-आयात कार्गो लॉजिस्टिक्सट में लगने वाले समय एवं लागत को कम करना।
- बल्कय उद्योगों को कम लागत के साथ स्थापित करना तथा कर लागत में कमी करना।
- बंदरगाहों के पास पृथक विनिर्माण क्लस्टरों की स्थापना कर निर्यात के मामले में बेहतर प्रतिस्पगर्द्धी क्षमता प्राप्त करना।
परियोजना का महत्त्व :
- वर्तमान समय में वैश्विक समुद्री व्यापार की महत्ता बढ़ रही है, अकेले हिंद महासागर द्वारा दुनिया के तेल व्यापार का 2/3 हिस्सा संचालित किया जाता है।
- कंटेनर द्वारा तकरीबन 50% व्यापार हिंद महासागर द्वारा होता है तथा आने वाले दिनों में इसके बढ़ने की संभावना है।
- राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की योजना जो सागरमाला परियोजना की रूपरेखा का ब्योरा प्रस्तुत करती है, के अनुसार, इस योजना के परिचालन से लाजिस्टिक्स लागत में लगभग 3500 करोड़ रुपए की सालाना बचत के साथ-साथ भारत का व्यापार निर्यात 110 अरब डॉलर के स्तर तक पहुँचने की संभावना है।
- इस परियोजना के क्रियान्वयन से 1 करोड़ नए रोज़गारों के सजृन होने की संभावना है जिनमें 40 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होंगे।
नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन
यह नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) क्या है? एक अनुमान के मुताबिक भारत को तेज आर्थिक वृद्धि दर के लिए साल 2030 तक इंफ्रास्ट्रक्चर (ढांचागत सुविधाओं) पर 4.5 लाख करोड़ डॉलर खर्च करने होंगे। नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के जरिए इस काम को अंजाम दिया जाएगा।
एनआईपी के क्या फायदे होंगे? एनआईपी से अर्थव्यवस्था को कई तरह से फायदा होगा। कारोबार का विस्तार बढ़ेगा। रोजगार के मौके बनेंगे। लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा। इससे इकनॉमिक ग्रोथ का असर कई स्तर पर दिखेगा। ढांचागत सुविधाओं पर खर्च बढ़ाने से आर्थिक गतिविधियां बढ़ेंगी। सरकार को रेवेन्यू बढ़ाने में मदद मिलेगी। परियोजनाओं को समय पर पूरा करने में मदद मिलेगी।
एनआईपी से भारत को 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने मे कैसे मदद मिलेगी? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को कहा कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर 102 लाख करोड़ रुपये खर्च करने से भारत को 2025 तक 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी। दरअसल, इतनी बड़ी रकम खर्च करने से आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलेगा। इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी, रोजगार के मौके पैदा होंगे और सरकार का राजस्व बढ़ेगा।
SOURCE-PIB
‘Tax Inspectors Without Borders’ पहल
भारत और भूटान ने संयुक्त रूप से 23 जून, 2021 को “Tax Inspectors Without Borders (TIWB)” पहल लॉन्च की है।
Tax Inspectors Without Borders (TIWB)
- TIWB संयुक्त राष्ट्रविकास कार्यक्रम (UNDP) और आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) की एक संयुक्त पहल है।
- TIWB विकासशील देशों को ऑडिट क्षमता का निर्माण करके राष्ट्रीय कर प्रशासन को मजबूत करने में मदद करने के लिए सहायता प्रदान करने का प्रयास करती है।
- यह कर मामलों पर सहयोग को मजबूत करने और घरेलू कर जुटाने के प्रयासों में योगदान करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रयासों का पूरक है।
TIWB का उद्देश्य
TIWB कार्यक्रम का उद्देश्य विकासशील देशों के बीच तकनीकी जानकारी और कौशल को उनके कर लेखा परीक्षकों (tax auditors) को हस्तांतरित करके और सामान्य लेखा परीक्षा प्रथाओं और ज्ञान उत्पादों के प्रसार को उनके साथ साझा करके कर प्रशासन को मजबूत करना है।
भारत-भूटान
- भूटान ने इस कार्यक्रम की शुरुआत की और भारत को भागीदार क्षेत्राधिकार के रूप में चुना। भारत ने इस कार्यक्रम के लिए कर विशेषज्ञ प्रदान किया।
- यह कार्यक्रम करीब 24 महीने तक चलेगा।
- इस कार्यक्रम के तहत, भारत ने UNDP और TIWB सचिवालय के सहयोग से भूटान को उसके कर प्रशासन को मजबूत करने के लिए सहायता प्रदान करने का लक्ष्य रखा है।
- यह कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय कराधान और हस्तांतरण मूल्य निर्धारण के क्षेत्र पर केंद्रित है।
- भारत ने हमेशा विकासशील देशों में कर मामलों में क्षमता निर्माण का समर्थन किया है। भारत एक वैश्विक नेता होने के नाते कर मामलों में दक्षिण-दक्षिण सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कार्यक्रम का महत्व
यह कार्यक्रम भारत और भूटान के बीच निरंतर सहयोग और दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए भारत के सक्रिय समर्थन की दिशा में एक और कदम है।
भूटान
भूटानका राजतंत्र (भोटान्त) हिमालय पर बसा दक्षिण एशिया का एक छोटा और महत्वपूर्ण देश है। यह चीन (तिब्बत) और भारत के बीच स्थित भूमि आबद्ध (Land Lock) देश है। इस देश का स्थानीय नाम ड्रुग युल है, जिसका अर्थ होता है अझ़दहा का देश। यह देश मुख्यतः पहाड़ी है और केवल दक्षिणी भाग में थोड़ी सी समतल भूमि है। यह सांस्कृतिक और धार्मिक तौर से तिब्बत से जुड़ा है, लेकिन भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों के मद्देनजर वर्तमान में यह देश भारत के करीब है।
भूटान का धरातल विश्व के सबसे ऊबड़ खाबड़ धरातलों में से एक है, जो 100 किमी की दूरी के बीच में 150 से 7000 मी. की ऊँचाई पायी जाती है।
इतिहास
सत्रहवीं सदी के अंत में भूटान ने बौद्ध धर्म को अंगीकार किया। 1865 में ब्रिटेन और भूटान के बीच सिनचुलु संधि पर हस्ताक्षर हुआ, जिसके तहत भूटान को सीमावर्ती कुछ भूभाग के बदले कुछ वार्षिक अनुदान के करार किए गए। ब्रिटिश प्रभाव के तहत 1907 में वहाँ राजशाही की स्थापना हुई। तीन साल बाद एक और समझौता हुआ, जिसके तहत ब्रिटिश इस बात पर राजी हुए कि वे भूटान के आंतरिक मामलों में हस्त्क्षेप नहीं करेंगे लेकिन भूटान की विदेश नीति इंग्लैंड द्वारा तय की जाएगी। बाद में 1947 के पश्चात यही भूमिका भारत को मिली। दो साल बा1949 में भारत भूटान समझौते के तहत भारत ने भूटान की वो सारी जमीन उसे लौटा दी जो अंग्रेजों के अधीन थी। इस समझौते के तहत भारत का भूटान की विदेश नीति एवं रक्षा नीति में काफी महत्वपूर्ण भूमिका दी गई।
राजनीति
भूटान का राजप्रमुख राजा अर्थात द्रुक ग्यालपो होता है, जो वर्तमान में जिग्मे खेसर नामग्याल वांग्चुक हैं। हालांकि यह पद वंशानुगत है लेकिन भूटान के संसद शोगडू के दो तिहाई बहुमत द्वारा हटाया जा सकता है। शोगडू में 154 सीटे होते हैं, जिसमे स्थानीय रूप से चुने गए प्रतिनिधि (105), धार्मिक प्रतिनिधि (12) और राजा द्वारा नामांकित प्रतिनिधि (37) और इन सभी का कार्यकाल तीन वर्षों का होता है। राजा की कार्यकारी शक्तियाँ शोगडू के माध्यम से चुने गए मंत्रिपरिषद में निहित होती हैं। मंत्रिपरिषद के सदस्यों का चुनाव राजा करता है और इनका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है। सरकार की नीतियों का निर्धारण इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि इससे पारंपरिक संस्कृति और मूल्यों का संरक्षण हो सके।
भूगोल
भूटान चारों तरफ से स्थल से घिरा हुआ पर्वतीय क्षेत्र है। उत्तर में पर्वतों की चोटियाँ कहीं-कहीं 7000 मीटर से भी ऊँची हैं, सबसे ऊँची चोटी कुला कांगरी जो 7553 मीटर है। गांगखर पुएनसुम की ऊँचाई 6896 मीटर है, जिस पर अभी तक मानवों के कदम नहीं पहुँचे हैं। देश का दक्षिणी हिस्सा अपेक्षाकृत कम ऊँचा है और यहाँ कई उपजाऊ और सघन घाटियाँ हैं, जो ब्रह्मपुत्र की घाटी से मिलती है। देश का लगभग 70% हिस्सा वनों से आच्छादित है। देश की ज्यादातर आबादी देश के मध्यवर्ती हिस्सों में रहती है। देश का सबसे बड़ा शहर, राजधानी थिम्फू है, जिसकी आबादी 50,000 है, जो देश के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। यहाँ की जलवायु मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय है।
अर्थव्यवस्था
विश्व के सबसे छोटी अर्थव्यवस्थाओं में से एक भूटान का आर्थिक ढाँचा मुख्य रूप से कृषि और वन क्षेत्रों और अपने यहाँ निर्मित पनबिजली के भारत को विक्रय पर निर्भर है। ऐसा माना जाता है कि इन तीन चीजों से भूटान की सरकारी आय का 75% आता है। कृषि जो यहाँ के लोगों का आधार है, इस पर 90% से ज्यादा लोग निर्भर हैं। भूटान का मुख्य आर्थिक सहयोगी भारत हैं क्योंकि तिब्बत से लगने वाली भूटान की सीमा बंद है। भूटान की मुद्रा ङुल्ट्रम है, जिसका भारतीय रुपया से आसानी से विनिमय किया जा सकता है। औद्योगिक उत्पादन लगभग नगण्य है और जो कुछ भी है, वे कुटीर उद्योग की श्रेणी में आते हैं। ज्यादातर विकास परियोजनाएँ जैसे सड़कों का विकास इत्यादि भारतीय सहयोग से ही होता है। भूटान की पनबिजली और पर्यटन के क्षेत्र में असीमित संभावनाएँ हैं।
लोग एवं धर्म
भूटान की लगभग आधी आबादी भूटान के मूलनिवासी हैं, जिन्हें गांलोप कहा जाता है और इनका निकट का संबंध तिब्बत की कुछ प्रजातियों से है। इसके अलावा अन्य प्रजातियों में नेपाली है और इनका सम्बन्ध नेपाल राज्य से है। उसके बाद शरछोगपा और ल्होछमपा हैं। यहाँ की आधिकारिक भाषा जोङखा है, इसके साथ ही यहाँ कई अन्य भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर हैं।
भूटान में आधिकारिक धर्म बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा है, जिसका अनुपालन देश की लगभग 75% जनता करती है। भूटान की अतिरिक्त 25 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू धर्म की अनुयायी है। भूटान के हिंदू धर्मी नेपाली मूल के लोग है, जिन्हे ल्होछमपा भी कहा जाता है। भूटान, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से भारत के सर्वाधिक करीब है।
संस्कृति
भूटान दुनिया के उन कुछ देशों में है, जो खुद को शेष संसार से अलग-थलग रखता चला आ रहा है और आज भी काफी हद तक यहाँ विदेशियों का प्रवेश नियंत्रित है। देश की ज्यादातर आबादी छोटे गाँव में रहते हैं और कृषि पर निर्भर हैं। शहरीकरण धीरे-धीरे अपने पाँव जमा रहा है। बौद्ध विचार यहाँ की ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं। तीरंदाजी यहाँ का राष्ट्रीय खेल है।
SOURCE-GK TODAY
पासपोर्ट सेवा दिवस
हर साल, पासपोर्ट सेवा दिवस (Passport Seva Divas) 24 जून को मनाया जाता है। यह दिन 24 जून, 1967 को पासपोर्ट अधिनियम के अधिनियमन (enactment) के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
मुख्य बिंदु
पासपोर्ट सेवा दिवस पर, भारत सरकार ने स्पष्ट किया कि चिप युक्त ई-पासपोर्ट के उत्पादन की प्रक्रिया चल रही है। इससे भारतीय यात्रा की सुरक्षा को काफी हद तक मजबूत करने में मदद मिलेगी।
चिप्स में आवेदकों के व्यक्तिगत विवरण को स्टोर किया जायेगा। उन्हें डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित किया जाएगा। उनमे 64 केबी का मेमोरी स्पेस होगा। इस चिप में करीब 30 अंतरराष्ट्रीय यात्राओं को स्टोर किया जाएगा।
पासपोर्ट अधिनियम (Passport Act)
पासपोर्ट अधिनियम भारतीय पासपोर्ट प्राप्त करने की प्रक्रियाओं का वर्णन करता है। इस अधिनियम ने ब्रिटिश भारतीय पासपोर्ट और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 का स्थान लिया था।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार, यह अधिनियम दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है। इस अधिनियम के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति ने विदेशी नागरिकता हासिल कर ली है, तो उसे अपना पासपोर्ट सरेंडर करना होगा।
पासपोर्ट
पासपोर्ट अधिनियम के तहत जारी किए जाने वाले पासपोर्ट इस प्रकार हैं :
- आधिकारिक पासपोर्ट
- सामान्य पासपोर्ट
- राजनयिक पारपत्र
इस अधिनियम के तहत, यात्रा दस्तावेज भी प्रदान किए जाते हैं। वो हैं :
- पहचान का प्रमाण पत्र
- किसी व्यक्ति को भारत में प्रवेश करने के लिए अधिकृत करने के लिए आपातकालीन प्रमाणपत्र।
SOURCE-GK TODAY
इन्जेन्यूटी
हाल ही में नासा के प्रायोगिक मंगल हेलीकॉप्टर इन्जेन्यूटी (Ingenuity) ने मंगल ग्रह पर अपनी 8वीं उड़ान भरी।
मुख्य बिंदु
- सबसे हाल की उड़ान इन्जेन्यूटी (Ingenuity) द्वारा 21 जून, 2021 को भरी गई थी।
- इस उड़ान के दौरान, इन्जेन्यूटी (Ingenuity) 5 सेकंड के लिए हवा में उड़ता रहा।
- इसने 525 फीट की उड़ान भरी औरपरसेवरांस रोवर से लगभग 440 फीट दूर लैंडिंग की।
- इन्जेन्यूटी (Ingenuity) को मूल रूप से केवल 5 बार उड़ान भरने के लिए डिज़ाइन किया गया था। लेकिन इसकी लगातार सफलताओं ने एजेंसी को अपने मिशन का विस्तार करने और अधिक महत्वाकांक्षी उड़ानों के साथ प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया।
इन्जेन्यूटी हेलीकाप्टर (Ingenuity Helicopter)
- इन्जेन्यूटी दूसरे ग्रह में संचालित उड़ान का एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन है।
- नासा इन्जेन्यूटी हेलीकॉप्टर की मदद से परीक्षण उड़ानों का प्रदर्शन करेगा।
- इन्जेन्यूटी हेलीकाप्टर की मुख्य चुनौती यह है कि इसे -130 डिग्री फ़ारेनहाइट के कम तापमान में जीवित रहना होगा। इस तरह के कम तापमान इस क्राफ्ट पर बैटरियों को फ्रीज और क्रैक कर सकते हैं।
- इस हेलीकॉप्टर का वजन 8 किलोग्राम है।
- यह एक सौर ऊर्जा संचालित हेलीकाप्टर है।
- हेलीकॉप्टर की पूर्ण गति 2,400 आरपीएम है।
- मार्स 2020 मिशन के एक भाग के रूप में परसेवरांस रोवर द्वारा इन्जेंयुटी हेलीकॉप्टर को मंगल ग्रह की सतह पर रखा गया था।
परसेवरांस रोवर (Perseverance Rover)
- परसेवरांस रोवर एक खगोल विज्ञान मिशन है। इस मिशन का उद्देश्य मंगल में प्राचीन माइक्रोबियल जीवन के संकेतों को खोजना है।
- मंगल ग्रह की चट्टान और रेजोलिथ (टूटी हुई चट्टान और धूल) को इकट्ठा करने के लिए पेरसेवेरांस पहला मिशन है।
- इससे पहले ‘क्यूरोसिटी’ रोवर मंगल ग्रह पर भेजा गया था।
- इस रोवर में सात पेलोड इंस्ट्रूमेंट्स, दो माइक्रो फोन और 19 कैमरे हैं।
- यह मंगल ग्रह मिट्टी को ड्रिल करेगा और मंगल की चट्टानों के मुख्य नमूने एकत्र करेगा।
मार्स 2020 मिशन (Mars 2020 Mission)
मार्स 2020 मिशन जुलाई 2020 में लांच किया गया था। यह नासा के मंगल अन्वेषण कार्यक्रम का एक हिस्सा है। मार्स 2020 मिशन को एटलस वी लॉन्च वाहन (Atlas V Launch Vehicle) से लॉन्च किया गया था।