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Current Affair 25 June 2021

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CURRENT AFFAIRS – 25th JUNE 2021

आईआईटी दिल्ली द्वारा कोविड-19 के लिए विकसित रैपिड एंटीजन जांच किट

शिक्षा राज्य मंत्री श्री संजय धोत्रे ने आज कोविड-19 के लिए आईआईटी दिल्ली द्वारा विकसित रैपिड एंटीजन जांच किट लॉन्च की। इस रैपिड एंटीजन जांच किट को संस्थान के सेंटर फॉर बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. हरपाल सिंह के नेतृत्व में आईआईटी दिल्ली कशोधकर्ताओं द्वार विकसित किया गया है।

आईसीएमआर की प्रमाणित इस प्रौद्योगिकी की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख किया।

  1. इस किट का उपयोग सार्स-सीओवी-2 एंटीजन के इन विट्रो गुणात्मक अनुसंधान करने के लिए किया जाता है।
  2. सार्स-सीओवी-2 एंटीजन रैपिड परीक्षण मानव नाक की स्वैब, गले की स्वैब और गहरे लार के नमूनों में सार्स-सीओवी-2 एंटीजन के गुणात्मक निर्धारण के लिए एक कोलाइडल गोल्ड संवर्धित दोहरे एंटीबॉडी सैंडविच प्रतिरक्षा है। यह सामान्य जनसंख्या जांच और कोविड-19 के निदान के लिए उपयुक्त है।
  3. तेजी से प्रतिरक्षा क्रोमैटोग्राफिक विधि का उपयोग करते हुए, नासॉफिरिन्जियल स्वैब में सार्स-सीओवी-2 कोरोना वायरस एंटीजन के गुणात्मक खोज करने के लिए आविष्कार को इन विट्रो नैदानिक किट की ओर निर्देशित किया गया है।
  4. यह पहचान कोरोना वायरस एंटीजन के लिए विशिष्ट मोनोक्लोनल एंटीबॉडी पर आधारित है।
  5. इसके प्राप्त परिणाम गुणात्मक आधारित हैं औरखुली आंखों से देखने पर भी इसका अनुमान लगाया जा सकता है।
  6. एक सार्स-सीओवी-2 पॉजिटिवनमूना परीक्षण क्षेत्र में एक विशिष्ट रंगीन बैंड का निर्माण करता है, जो विशिष्ट एंटीबॉडी एंटीजन रंगीन संयुग्मी जटिल (एयू-सार्स-कोव-2-एबी)-(सार्स-कोव-2-एजी)-(सार्स-कोव-2-एबी) से निर्मित होता है। परीक्षण क्षेत्र में इस रंगीन बैंड की अनुपस्थिति एक नेगेटिव परिणाम का सुझाव देती है।
  7. एक रंगीन बैंड हमेशा नियंत्रण क्षेत्र में दिखाई देता है जो प्रक्रियात्मक नियंत्रण के रूप में कार्य करता है, चाहे नमूने में सार्स-कोव-2 हो या नहीं।
  8. संवेदनशीलता- 90 फीसदी, विशिष्टता- 100 फीसदी और सटीकता- 98.99 फीसदी के साथ शुरुआती सीटी मान (14 से 32 के बीच सीटी मान) के लिए यह परीक्षण उपयुक्त पाया गया है और आईसीएमआर ने इसे प्रमाणित किया है। ये इस तरह के किसी भी परीक्षण किट के लिए उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ मूल्यों में से एक है।
  9. इस प्रौद्योगिकी और इसका निर्माण100 फीसदी स्वदेशी है।

SOURCE-PIB

 

UN World Drug Report 2021

United Nations Office on Drugs and Crime (UNODC) ने हाल ही में World Drug Report 2021 जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में दुनिया भर में 275 मिलियन लोगों ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • इस रिपोर्ट के अनुसार, 36 मिलियन लोग मादक द्रव्यों के सेवन संबंधी विकारों से पीड़ित थे।
  • पिछले 24 वर्षों में, दुनिया के कुछ हिस्सों में भांग की शक्ति चार गुना बढ़ गई है।
  • नशीली दवाओं को हानिकारक मानने वाले किशोरों के प्रतिशत में 40% की कमी आई है।
  • इसके बावजूद, भांग (cannabis) का उपयोग कई तरह के स्वास्थ्य और अन्य नुकसानों से जुड़ा है।
  • यह ड्रग रिपोर्ट युवाओं को नशीली दवाओं के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए धारणा और वास्तविकता के बीच की खाई को पाटने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।

मादक पदार्थों एवँ अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि विश्व भर में पिछले वर्ष, 27 करोड़ 50 लाख लोगों ने मादक पदार्थों (ड्रग्स) का इस्तेमाल किया. वर्ष 2010 के मुक़ाबले यह 22 फ़ीसदी अधिक है. 

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव

कोविड-19 महामारी ने 10 करोड़ लोगों को अत्यधिक निर्धनता में धकेल दिया है, बेरोज़गारी व विषमता बढ़ी है और वर्ष 2020 में, दुनिया में 25 करोड़ से अधिक रोज़गार ख़त्म हो गए.

कोरोनावायरस संकट के दौरान लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर हुआ है, और इन सभी वजहों से ड्रग के इस्तेमाल में तेज़ी आई है.

महामारी के दौरान ड्रग इस्तेमाल के रूझानों में भी बदलाव देखा गया है और कैनेबिस व दर्दनिवारक दवाओं का ग़ैर-चिकित्सा इस्तेमाल बढ़ा है.

बढ़ते सामाजिक-आर्थिक दबावों की वजह से भी इन मादक पदार्थों की माँग में वृद्धि हुई है.

रिपोर्ट के मुताबिक, ड्रग तस्करों पर महामारी के शुरुआती दिनों में लागू की गई पाबन्दियों का असर हुआ, मगर इससे वे जल्द उबर गए और फिर से महामारी के पहले के दिनों के स्तर पर उनका कारोबार चल रहा है.

इसकी एक वजह टैक्नॉलॉजी, क्रिप्टो-करेन्सी भुगतान विकल्प के इस्तेमाल में आई तेज़ी है, और यह सब नियमित वित्तीय प्रणाली के दायरे से बाहर हो रहा है.

ऑनलाइन बिक्री की वजह से मादक पदार्थों तक पहुँच पहले से सरल हुई है और डार्क वेब पर ड्रग बाज़ार का वार्षिक मूल्य 31 करोड़ डॉलर से अधिक आंका गया है.

सम्पर्क-रहित ड्रग लेनदेन के मामलों में वृद्धि हो रही है और महामारी के दौरान इस रूझान ने और तेज़ी पकड़ी है.

रिपोर्ट बताती है कि टैक्नॉलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल से ड्रग की रोकथाम व उपचार सेवाओं में भी नवाचार उपायों का सहारा लेने में मदद मिली है.

टेलीमेडिसिन जैसी स्वास्थ्य सेवाओं के ज़रिये, स्वास्थ्यकर्मियों के लिये ज़्यादा संख्या में मरीज़ों तक पहुंचना व उनका उपचार कर पाना सम्भव हुआ है.

संयुक्‍त राष्‍ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय

यूएनओडीसी की स्‍थापना 1997 में संयुक्‍त राष्‍ट्र मादक पदार्थ नियंत्रण कार्यक्रम और अंतर्राष्‍ट्रीय अपराध रोकथाम केन्‍द्र को मिलाकर संयुक्‍त राष्‍ट्र सुधारों के तहत‍ की गई थी। इस कार्यालय का अधिकार क्षेत्र संयुक्‍त राष्‍ट्र समझौतों में निहित है, जैसे मादक पदार्थों के बारे में तीन समझौते, यूएन कन्‍वेंशन अगेंस्‍ट ट्रांस नेशनल ऑर्गेनाइज़्ड क्राइम और व्‍यक्तियों की तस्‍करी के बारे में, थल, जल और वायु के रास्‍ते प्रवासियों की तस्‍करी के बारे में तथा आग्‍नेयआस्‍त्रों को अवैध रूप से बनाने और तस्‍करी के बारे में उसके तीन प्रोटोकॉल, भ्रष्‍टाचार के विरुद्ध संयुक्‍त राष्‍ट्र समझौता, आतंकवाद के विरुद्ध सार्वभौम समझौते और अपराधों की रोकथाम तथा दंड न्‍याय संबंधी संयुक्‍त राष्‍ट्र मानकों एवं नियमों में निहित है। इन समझौतों की मदद से यूएनओडीसी, सदस्‍य देशों को अवैध मादक पदार्थों, अपराध एवं आतंकवाद के मुद्दों का समाधान देने में मदद करता है।

SOURCE-https://news.un.org/

 

चीन तिब्बत में पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चलाएगा

चीन तिब्बत के सुदूर हिमालयी क्षेत्र में पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चलाएगा। यह इलेक्ट्रिक ट्रेन प्रांतीय राजधानी ल्हासा को न्यिंगची से जोड़ेगी।

मुख्य बिंदु

  • सिचुआन-तिब्बत रेलवे के 5 किलोमीटर लंबे ल्हासा-न्यिंगची खंड का उद्घाटन 1 जुलाई को सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के शताब्दी समारोह से पहले किया जाएगा।
  • न्यिंगची अरुणाचल प्रदेश के करीब एक रणनीतिक रूप से स्थित तिब्बती सीमावर्ती शहर है।
  • विद्युत पारेषण प्रक्रिया (electricity transmission process) पूरी कर ली गई है।

सिचुआन-तिब्बत रेलवे (Sichuan-Tibet Railway)

सिचुआन-तिब्बत रेलवे निर्माणाधीन रेलवे है। यह चेंगदू (सिचुआन की राजधानी) और ल्हासा (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र की राजधानी) को जोड़ेगा। यह एक 1,629 किमी लंबी लाइन है जो चेंगदू से ल्हासा तक यात्रा के समय को 48 से 13 घंटे तक कम करने जा रही है। किंघई-तिब्बत रेलवे के बाद यह तिब्बत में दूसरा रेलवे होगा। यह किंघई-तिब्बत पठार के दक्षिण-पूर्व से होकर गुजरेगा, जो दुनिया के सबसे भूगर्भीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है।

रेलवे के तीन खंड

चेंगदू-यान नामक रेलवे का पहला खंड 28 दिसंबर, 2018 को शुरू किया गया था। न्यिंगची-ल्हासा नामक रेलवे का दूसरा खंड, 25 जून, 2021 को खुलेगा। जबकि अंतिम खंड यान-न्यिंगची के 2030 में पूरा होने की उम्मीद है।

यह परियोजना क्यों शुरू की गई थी?

चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है। इस दावे को भारत ने खारिज कर दिया है। इस प्रकार, चीन ने इस क्षेत्र के पास अपना पैर जमाने के लिए यह परियोजना शुरू की है।

तिब्बत

तिब्बत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का राष्ट्रीय स्वायत्त क्षेत्र है, और इसकी भूमि मुख्य रूप से पठारी है। इसे पारंपरिक रूप से बोड या भोट भी कहा जाता है। तिब्बत मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेंणियों के मध्य कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित है। इसकी ऊँचाई 16,000 फुट तक है। यहाँ का क्षेत्रफल 47,000 वर्ग मील है। तिब्बत का पठार पूर्व में शीकांग से, पशिचम में कश्मीर से दक्षिण में हिमालय पर्वत से तथा उत्तर में कुनलुन पर्वत से घिरा हुआ है। यह पठार पूर्वी एशिया की बृहत्तर नदियों हवांगहो, मेकांग आदि का उद्गम स्थल है, जो पूर्वी क्षेत्र से निकलती हैं। पूर्वी क्षेत्र में कुछ वर्षा होती है एवं 1200 फुट की ऊँचाई तक वन पाए जाते है। यहाँ कुछ घाटियाँ 5,000 फुट ऊँची हैं, जहाँ किसान कृषि करते हैं। जलवायु की शुष्कता उत्तर की ओर बढ़ती जाती है एवं जंगलों के स्थान पर घास के मैदान अधिक पाए जाते है। जनसंख्या का घनत्व धीरे-धीरे कम होता जाता है। कृषि के स्थान पर पशुपालन बढ़ता जाता है। साइदान घाटी एवें कीकोनीर जनपद पशुपालन के लिये विशेष प्रसिद्ध है।

बाह्य तिब्बत की ऊबड़-खाबड़ भूमि की मुख्य नदी यरलुंग त्संगपो (ब्रह्मपुत्र) है, जो मानसरोवर झील से निकल कर पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती है और फिर दक्षिण की ओर मुड़कर भारत एवं बांग्लादेश में होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी घाटी के उत्तर में खारे पानी की छोटी – छोटी अनेक झीलें हैं, जिनमें नम त्सो (उर्फ़ तेन्ग्री नोर) मुख्य है। इस अल्प वर्षा एवं स्वल्प कृषि योग्य है। त्संगपो की घाटी में वहाँ के प्रमुख नगर ल्हासाग्यान्त्से एवं शिगात्से आदि स्थित है। बाह्य तिब्बत का अधिकांश भाग शुष्क जलवायु के कारण केवल पशुचारण के योग्य है और यही यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय हो गया है। कठोर शीत सहन करनेवाले पशुओं में याक(Yak: a wooly animal) मुख्य है जो दूध देने के साथ बोझा ढोने का भी कार्य करता है। इसके अतिरिक्त भेड़बकरियाँ भी पाली जाती है। इस विशाल भूखंड में नमक के अतिरिक्त स्वर्ण एवं रेडियमधर्मी खनिजों के संचित भंडार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। ऊबड़ खाबड़ पठार में रेलमार्ग बनाना अत्यंत दुष्कर और व्ययसाध्य है अत: पर्वतीय रास्ते एवं कुछ राजमार्ग (सड़कें) ही आवागमन के मुख्य साधन है, हालांकि चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग तैयार हो चुका है। सड़के त्संगपो नदी की घाटी में स्थित नगरों को आपस में मिलाती है। पीकिंग-ल्हासा राजमार्ग एवं ल्हासा काठमांडू राजमार्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने की अवस्था में है। इनके पूर्ण हो जोने पर इसका सीधा संबंध पड़ोसी देशों से हो जायेगा। चीन और भारत ही तिब्बत के साथ व्यापार में रत देश पहले थे। यहाँ के निवासी नमक, चमड़े तथा ऊन आदि के बदले में चीन से चाय एवं भारत से वस्त्र तथा खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। तिब्बत एवं शिंजियांग को मिलानेवाले तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग का निर्माण जो लद्दाख़ के अक्साई चिन इलाक़े से होकर जाती है पूर्ण हो चुका है।[1] ल्हासा – पीकिंग वायुसेवा भी प्रारंभ हो गई है।

तिब्बत को चीन ने साल 1951 में अपने नियंत्रण में ले लिया था, जब कि साल 1938 में खींची गई मैकमोहन लाइन के मुताबिक़ अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है.

तिब्बत का इतिहास

मुख्यतः बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों के इस सुदूर इलाके को ‘संसार की छत’ के नाम से भी जाना जाता है. चीन में तिब्बत का दर्जा एक स्वायत्तशासी क्षेत्र के तौर पर है.

चीन का कहना है कि इस इलाके पर सदियों से उसकी संप्रभुता रही है जबकि बहुत से तिब्बती लोग अपनी वफादारी अपने निर्वासित आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के प्रति रखते हैं.

दलाई लामा को उनके अनुयायी एक जीवित ईश्वर के तौर पर देखते हैं तो चीन उन्हें एक अलगाववादी ख़तरा मानता है.

तिब्बत का इतिहास बेहद उथल-पुथल भरा रहा है. कभी वो एक खुदमुख़्तार इलाके के तौर पर रहा तो कभी मंगोलिया और चीन के ताक़तवर राजवंशों ने उस पर हुकूमत की.

लेकिन साल 1950 में चीन ने इस इलाके पर अपना झंडा लहराने के लिए हज़ारों की संख्या में सैनिक भेज दिए. तिब्बत के कुछ इलाकों को स्वायत्तशासी क्षेत्र में बदल दिया गया और बाक़ी इलाकों को इससे लगने वाले चीनी प्रांतों में मिला दिया गया.

लेकिन साल 1959 में चीन के ख़िलाफ़ हुए एक नाकाम विद्रोह के बाद 14वें दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी जहां उन्होंने निर्वासित सरकार का गठन किया. साठ और सत्तर के दशक में चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान तिब्बत के ज़्यादातर बौद्ध विहारों को नष्ट कर दिया गया. माना जाता है कि दमन और सैनिक शासन के दौरान हज़ारों तिब्बतियों की जाने गई थीं

चीन तिब्बत विवाद कब शुरू हुआ?

चीन और तिब्बत के बीच विवाद, तिब्बत की क़ानूनी स्थिति को लेकर है. चीन कहता है कि तिब्बत तेरहवीं शताब्दी के मध्य से चीन का हिस्सा रहा है लेकिन तिब्बतियों का कहना है कि तिब्बत कई शताब्दियों तक एक स्वतन्त्र राज्य था और चीन का उसपर निरंतर अधिकार नहीं रहा. मंगोल राजा कुबलई ख़ान ने युआन राजवंश की स्थापना की थी और तिब्बत ही नहीं बल्कि चीन, वियतनाम और कोरिया तक अपने राज्य का विस्तार किया था.

फिर सत्रहवीं शताब्दी में चीन के चिंग राजवंश के तिब्बत के साथ संबंध बने. 260 साल के रिश्तों के बाद चिंग सेना ने तिब्बत पर अधिकार कर लिया. लेकिन तीन साल के भीतर ही उसे तिब्बतियों ने खदेड़ दिया और 1912 में तेरहवें दलाई लामा ने तिब्बत की स्वतन्त्रता की घोषणा की. फिर 1951 में चीनी सेना ने एक बार फिर तिब्बत पर नियन्त्रण कर लिया और तिब्बत के एक शिष्टमंडल से एक संधि पर हस्ताक्षर करा लिए जिसके अधीन तिब्बत की प्रभुसत्ता चीन को सौंप दी गई. दलाई लामा भारत भाग आए और तभी से वे तिब्बत की स्वायत्तता के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

क्या तिब्बत चीन का हिस्सा है?

चीन-तिब्बत संबंधों से जुड़े कई सवाल हैं जो लोगों के मन में अक्सर आते हैं. जैसे कि क्या तिब्बत चीन का हिस्सा है? चीन के नियंत्रण में आने से पहले तिब्बत कैसा था? और इसके बाद क्या बदल गया? तिब्बत की निर्वासित सरकार का कहना है, “इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि इतिहास के अलग-अलग कालखंडों में तिब्बत विभिन्न विदेशी शक्तियों के प्रभाव में रहा था. मंगोलों, नेपाल के गोरखाओं, चीन के मंचू राजवंश और भारत पर राज करने वाले ब्रितानी शासक, सभी की तिब्बत के इतिहास में कुछ भूमिकाएं रही हैं. लेकिन इतिहास के दूसरे कालखंडों में वो तिब्बत था जिसने अपने पड़ोसियों पर ताक़त और प्रभाव का इस्तेमाल किया और इन पड़ोसियों में चीन भी शामिल था.”

“दुनिया में आज कोई ऐसा देश खोजना मुश्किल है, जिस पर इतिहास के किसी दौर में किसी विदेशी ताक़त का प्रभाव या अधिपत्य न रहा हो. तिब्बत के मामले में विदेशी प्रभाव या दखलंदाज़ी तुलनात्मक रूप से बहुत ही सीमित समय के लिए रही थी.”

लेकिन चीन का कहना है, “सात सौ साल से भी ज़्यादा समय से तिब्बत पर चीन की संप्रभुता रही है और तिब्बत कभी भी एक स्वतंत्र देश नहीं रहा है. दुनिया के किसी भी देश ने कभी भी तिब्बत को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता नहीं दी है.”

जब भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना

साल 2003 के जून महीने में भारत ने ये आधिकारिक रूप से मान लिया था कि तिब्बत चीन का हिस्सा है.

चीन के राष्ट्रपति जियांग जेमिन के साथ तत्कालानी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मुलाकात के बाद भारत ने पहली बार तिब्बत को चीन का अंग मान लिया था. हालांकि तब ये कहा गया था कि ये मान्यता परोक्ष ही है. लेकिन दोनों देशों के बीच रिश्तों में इसे एक महत्वपूर्ण क़दम के तौर पर देखा गया था.

वाजपेयी-जियांग जेमिन की वार्ता के बाद चीन ने भी भारत के साथ सिक्किम के रास्ते व्यापार करने की शर्त मान ली थी. तब इस कदम को यूं देखा गया कि चीन ने भी सिक्किम को भारत के हिस्से के रूप में स्वीकार कर लिया है.

भारतीय अधिकारियों ने उस वक्त ये कहा था कि भारत ने पूरे तिब्बत को मान्यता नहीं दी है जो कि चीन का एक बड़ा हिस्सा है. बल्कि भारत ने उस हिस्से को ही मान्यता दी है जिसे स्वायत्त तिब्बत क्षेत्र माना जाता है.

SOURCE-BBCNEWS

 

कवल प्लस कार्यक्रम

केरल में महिला एवं बाल विकास विभाग ने केरल के दो जिलों में इस पायलट परियोजना की सफलता के बाद कवल प्लस कार्यक्रम (Kaval Plus Programme) को पांच जिलों में विस्तारित करने का निर्णय लिया है।

कवल प्लस कार्यक्रम क्या है?

  • यह देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता वाले बच्चों और यौन शोषण के शिकार लोगों को समग्र समर्थन देने के लिए एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है।
  • इस परियोजना के तहत तिरुवनंतपुरम जिले में लगभग 300 बच्चों और पलक्कड़ जिले में 150 बच्चों को कवर किया गया है।
  • इसे एर्नाकुलम, इडुक्की, मलप्पुरम, कोझीकोड और कन्नूर जिलों में लागू नहीं किया जाएगा।
  • यह घरों और बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों दोनों को कवर करता है।
  • अब, बाल कल्याण समितियों (CWC) और अन्य एजेंसियों के दायरे से बाहर समुदाय के कमजोर बच्चों को भी शामिल किया जाएगा।

पृष्ठभूमि

यह कार्यक्रम दिसंबर, 2020 में केरल के दो जिलों, तिरुवनंतपुरम और पलक्कड़ में शुरू किया गया था। यह योजना इसलिए शुरू की गई थी, क्योंकि केरल में बच्चों के 15 घरों में लगभग 500 कैदी (inmates) रहते हैं और उच्च जोखिम वाले 96% बच्चों को सहायता की आवश्यकता होती है

प्रारंभिक पहचान प्रणाली

इस कार्यक्रम के तहत आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं जैसी सामुदायिक स्तर की कार्यकर्ताओं का उपयोग करके एक प्रारंभिक पहचान प्रणाली भी शुरू की जाएगी।

इस परियोजना को कौन लागू करता है?

यह परियोजना बच्चों के साथ काम करने का अनुभव रखने वाले गैर सरकारी संगठनों की मदद और समर्थन से कार्यान्वित की जा रही है।जिला बाल संरक्षण अधिकारी, सीडब्ल्यूसी प्रतिनिधि और संरक्षण अधिकारी की एक समिति द्वारा प्रत्येक जिले में दो गैर सरकारी संगठनों का चयन किया जाता है। ये एनजीओ बाल संरक्षण एजेंसियों के सहयोग से काम करेंगे।

SOURCE-GK TODAY

 

जम्मू-कश्मीर में किया जायेगा परिसीमन

25 जून, 2021 को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के नेताओं के साथ एक बैठक आयोजित की। इस बैठक में जम्मू-कश्मीर के 8 दलों के 14 नेताओं ने हिस्सा लिया। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के विभाजन और अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद यह इस प्रकार की पहली बैठक थी।

मुख्य बिंदु

इस बैठक में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की बात कही गयी। परिसीमन का अर्थ है जनसँख्या के आधार के विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं में बदलाव। परिसीमन के बाद ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव करवाए जायेंगे। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में अंतिम बार परिसीमन 1994-95 में हुआ था। वर्तमान में कश्मीर में 46 सीटें और जम्मू में 37 सीटें हैं। इस बैठक के दौरान जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की।

पृष्ठभूमि

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के मुताबिक जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था। भारत सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को यह विशेष दर्जा समाप्त किया और जम्मू-कश्मीर का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में किया। यह दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश 30 अक्टूबर, 2019 को अस्तित्व में आये। जम्मू और कश्मीर में एक विधायिका है जबकि लद्दाख कोई विधायिका नहीं है।

परिसीमन

परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत में विधायी निकाय वाले क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया। परिसीमन का काम एक उच्चाधिकार निकाय को सौंपा जाता है। ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है। भारत मेंऐसे परिसीमन आयोगों का गठन 4 बार किया गया है-1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1952के अधीन, 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम, 1962 के अधीन, 1973 में परिसीमन अधिनियम, 1972 और 2002 में परिसीमन अधिनियम, 2002के अधीन। परिसीमन आयोग भारत में एक उच्चाधिकारनिकाय है जिसके आदेशों को कानून के तहत जारी किया गया है और इन्हें किसी भी न्यायालयमें चुनौती नहीं दी जा सकती। इस संबंध में,ये आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तारीख से लागू होंगे। इसके आदेशों की प्रतियां संबंधित लोक सभा और राज्य विधानसभा के सदन के समक्ष रखी जाती हैंलेकिन उनमें उनके द्वारा कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं।

परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) :

  • परिसीमन आयोग को सीमा आयोग (Boundary Commission) के नाम से भी जाना जाता है।
  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
  • परिसीमन अधिनियम के लागू होने के बाद राष्ट्रपति द्वारा परिसीमन आयोग की नियुक्ति की जाती है और यह संस्था/निकाय निर्वाचन आयोग के साथ मिलकर काम करती है।

परिसीमन आयोग की संरचना :

  • परिसीमन आयोग की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश द्वारा की जाती है।
  • इसके अतिरिक्त इस आयोग में निम्नलिखित सदस्य शामिल होते हैं –
    • मुख्य निर्वाचन आयुक्त या मुख्य निर्वाचन आयुक्त द्वारा नामित कोई निर्वाचन आयुक्त।
    • संबंधित राज्यों के निर्वाचन आयुक्त।
  • सहयोगी सदस्य (Associate Members) : आयोग परिसीमन प्रक्रिया के क्रियान्वयन के लिये प्रत्येक राज्य से 10 सदस्यों की नियुक्ति कर सकता है, जिनमें से 5 लोकसभा के सदस्य तथा 5 संबंधित राज्य की विधानसभा के सदस्य होंगे।
    • सहयोगी सदस्यों को लोकसभा स्पीकर तथा संबंधित राज्यों के विधानसभा स्पीकर द्वारा नामित किया जाएगा।

इसके अतिरिक्त परिसीमन आयोग आवश्यकता पड़ने पर निम्नलिखित अधिकारियों को बुला सकता है:

  • महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त, भारत (Registrar General and Census Commissioner of India)।
  • भारत के महासर्वेक्षक (The Surveyor General of India)।
  • केंद्र अथवा राज्य सरकार से कोई अन्य अधिकारी।
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली का कोई विशेषज्ञ।
  • या कोई अन्य व्यक्ति, जिसकी विशेषज्ञता या जानकारी से परिसीमन की प्रक्रिया में सहायता प्राप्त हो सके।

परिसीमन आयोग के कार्य:

  • संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन : परिसीमन आयोग लोकसभा सदस्यों के चुनाव के लिये चुनावी क्षेत्रों की सीमा को निर्धारित करने का कार्य करता है। परिसीमन की प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि (राज्य में) लोकसभा सीटों की संख्या और राज्य की जनसंख्या का अनुपात पूरे देश में सभी राज्यों के लिये समान रहे।
  • विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन : विधानसभा चुनावों के लिये निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा का निर्धारण परिसीमन आयोग द्वारा किया जाता है। विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाता है कि राज्य के सभी चुनावी क्षेत्रों में विधानसभा सीटों की संख्या और क्षेत्र की जनसंख्या का अनुपात समान रहे। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि एक विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र सामान्यतया एक से अधिक ज़िलों में विस्तारित न हो।
  • अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण : परिसीमन आयोग द्वारा परिसीमन आयोग अधिनियम, 2002 की धारा 9(1) के तहत निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों की संख्या के आधार पर आरक्षित सीटों का निर्धारण किया जाता है।

SOURCE-DANIK JAGARAN

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