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Current Affair 27 July 2021

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Current Affairs – 27 July, 2021

सीआरपीएफ

धानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) कर्मियों को उनके स्थापना दिवस पर बधाई दी है।

अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा है, “सीआरपीएफ के स्थापना दिवस पर सभी जांबाज @crpfindia कर्मियों और उनके परिवार वालों को बधाई। सीआरपीएफ को अपनी वीरता और कर्तव्यपरायणता के लिये जाना जाता है। भारत के सुरक्षा तंत्र में उसकी प्रमुख भूमिका है। राष्ट्रीय अखंडता को अक्षुण्ण बनाने में उनका योगदान अत्यंत सराहनीय है।

केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल

केन्द्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सी॰आर॰पी॰एफ॰) भारत के केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों में सबसे बड़ा है। यह भारत सरकार के गृह मंत्रालय के तहत काम करता है। सीआरपीएफ की प्राथमिक भूमिका पुलिस कार्रवाई में राज्य / संघ शासित प्रदेशों की सहायता, कानून-व्यवस्था और आतंकवाद विरोध में निहित है। यह क्राउन प्रतिनिधि पुलिस के रूप में 27 जुलाई 1939 को अस्तित्व में आया। भारतीय स्वतंत्रता के बाद यह 28 दिसंबर 1949 को सीआरपीएफ अधिनियम के लागू होने पर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल बन गया।

230 बटालियनों और विभिन्न अन्य प्रतिष्ठानों के साथ, सी॰आर॰पी॰एफ॰ भारत का सबसे बड़ा अर्धसैनिक बल माना जाता है।

SOURCE-PIB

 

संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री सुश्री शोभा करंदलाजे ने संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन 2021 के “टिकाऊ विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए खाद्य प्रणालियों में बदलाव: बढ़ती चुनौती” पर पूर्व-शिखर मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन को वर्चुअल माध्यम से संबोधित किया। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन ने हमें अपनी खाद्य प्रणालियों को आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ प्रणालियों में बदलने और उसके लिए राष्ट्रीय नीति की रुप रेख तय करने में अग्रणी भूमिका निभाई है। सम्मेलन के दौरान उन्होंने भारत द्वारा कृषि-खाद्य प्रणालियों को टिकाऊ व्यवस्था में बदलने के लिए उठाए गए विभिन्न कदमों के बारे जानकारी दी। इसके तहत किसानों को आय सहायता प्रदान करना, ग्रामीण आय में सुधार करना, साथ ही देश में अल्प पोषण और कुपोषण जैसी चुनौतियों का समाधान करने जैसे उपाय शामिल है।

कृषि क्षेत्र के महत्व पर जोर देते हुए सुश्री करंदलाजे ने कहा कि भारत का दृढ़ विश्वास है कि विकासशील देशों में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन और हमारी पृथ्वी के लिए एक टिकाऊ भविष्य हासिल करने में कृषि की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। उन्होंने कहा कि भारत में कृषि क्षेत्र की एक बेहद सफल कहानी रही है। 1960 के दशक में हरित क्रांति ने भारत को हर साल खाद्यान्न की कमी का सामना करने वाले देश की जगह आज खाद्यान्न निर्यातक देश बना दिया।

कृषि क्षेत्र के लिए भारत द्वारा तय की गई प्राथमिकताओं पर बोलते हुए मंत्री ने कहा कि प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार हमेशा से किसानों की समस्याओं के प्रति बेहद संवेदनशील रही है और प्रत्येक समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने कई अहम कदम उठाए हैं। भारत अब उत्पादकता बढ़ाने, फसल कटाई के बाद के प्रबंधन को मजबूत करने और किसानों और खरीदारों को एक एकीकृत राष्ट्रीय बाजार देने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। जिससे दोनों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके।

सुश्री करंदलाजे ने कहा कि भारत ने आने वाले वर्षों में किसानों की आय को दोगुना करने के लिए कृषि क्षेत्र में बेहद महत्वाकांक्षी सुधारों की शुरुआत की है। हाल के दिनों में कई कदम उठाए हैं, जिसके कारण भारत के कृषि क्षेत्र ने महामारी के संकट में भी बेहद अच्छा प्रदर्शन किया है और खाद्यान्न उत्पादन पहले के रिकॉर्ड स्तर को भी पार कर गया है। भारत सरकार ने 14 बिलियन अमरीकी डालर का एक समर्पित कृषि अवसंरचना कोष बनाया है। जिसका उद्देश्य उद्यमियों को ब्याज में छूट और क्रेडिट गारंटी प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में फार्म गेट और कृषि उत्पादों के लिए मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर ढांचा बनाना है। जो फसल के बाद के नुकसान को सीधे कम करने में मदद करेगा और इसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा।

उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य देशों को वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष’ के रूप में मनाने के भारत के प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, सरकार मुख्य रूप से, पोषण संबंधी चुनौतियों का समाधान करने और हमारी कृषि-खाद्य प्रणालियों में विविधता लाने के लिए फलों और सब्जियों जैसी अन्य ज्यादा मूल्य वाली कृषि उत्पादों के विविधीकरण को भी बढ़ावा दे रही है।

भारत द्वारा उठाए गए विभिन्न सुधारों पर बोलते हुए, मंत्री ने कहा कि सरकार ने छोटे और सीमांत किसानों को बड़े पैमाने पर लाभ प्रदान करने के लिए किसान उत्पादक संगठनों के गठन और उनके प्रचार के लिए एक योजना शुरू की है। इसके अलावा कृषि विपणन सुधार किए गए हैं, जिसके जरिए कृषि उपज के अंतरराज्यीय मार्केटिंग में आने वाली बाधाओं को दूर किया गया है। पीएम-किसान योजना के तहत 11 करोड़ किसानों के बैंक खातों में लगभग 18 अरब अमेरिकी डॉलर की राशि जमा की गई है। भारत सरकार राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना चला रही है, जो प्रत्येक ग्रामीण परिवार को स्वैच्छिक आधार पर वर्ष में 100 दिन काम करने का संवैधानिक अधिकार प्रदान करती है।

उन्होंने कहा कि भारत टिकाऊ उत्पादकता, खाद्य सुरक्षा और बेहतर मृदा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए जैविक खेती को तेजी से बढ़ावा दे रहा है। इसके अलावा भारत ने बहुमूल्य जल संसाधनों के संरक्षण के लिए, सूक्ष्म सिंचाई प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करके कृषि में पानी के इस्तेमाल की दक्षता बढ़ाने के लिए एक योजना शुरू की है। जिसके लिए 672 मिलियन अमेरिकी डॉलर का एक समर्पित सूक्ष्म सिंचाई कोष बनाया गया है। भारत ने विभिन्न फसलों की 262 एबॉयोटिक स्ट्रेस-टॉलरेंट किस्में विकसित की हैं।

कुपोषण और अल्प पोषण जैसे मुद्दों के समाधान के लिए, भारत दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य-आधारित सुरक्षा तंत्र कार्यक्रम चला रहा है। जिसमें लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) शामिल है। इसके जरिए वर्ष 2020 में लगभग 80 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा मिली है। इसी तरह भारत के स्कूल भोजन कार्यक्रम, दोपहर मध्यान्ह भोजन योजना करीब 12 करोड़ स्कूली बच्चों तक पहुंचाई गई है।

मंत्री ने सम्मेलन में भरोसा दिलाया कि भारत टिकाऊ विकास लक्ष्यों 2030 को हासिल करने के लिए अपनी कृषि-खाद्य प्रणालियों में सतत बदलाव लाने और उसे टिकाऊ प्रणाली बनाने के प्रयास लगातार करता रहेगा।

SOURCE-PIB

 

विश्व धरोहर स्थल

इस कारण, गुजरात में स्थित हड़प्पा कालीन स्थल धोलावीरा से संबंधित भारतीय नामांकन को यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया है। भारत ने जनवरी, 2020 में “धोलावीरा; एक हड़प्पा कालीन नगर से विश्व धरोहर स्थल तक” शीर्षक से अपना नामांकन जमा किया था। यह स्थल 2014 से यूनेस्को की संभावित सूची में शामिल था। हड़प्पाकालीन नगर धोलावीरा दक्षिण एशिया में संरक्षित प्रमुख नगर जीवन स्थलों में एक है और जिसका इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा-पूर्व से लेकर दूसरी शताब्दी ईसा-पूर्व के मध्य तक का है।

धोलावीरा के हड़प्पा नगर के बारे में

धोलावीरा: हड़प्पा संस्कृति का ये नगर, दरअसल दक्षिण एशिया में तीसरी से मध्य-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व काल की चंद सबसे अच्छे से संरक्षित प्राचीन शहरी बस्तियों में से है। अब तक खोजे गए 1,000 से अधिक हड़प्पा स्थलों में छठा सबसे बड़ा और 1,500 से अधिक वर्षों तक मौजूद रहा धोलावीरा न सिर्फ मानव जाति की इस प्रारंभिक सभ्यता के उत्थान और पतन की पूरी यात्रा का गवाह है बल्कि शहरी नियोजन, निर्माण तकनीक, जल प्रबंधन, सामाजिक शासन और विकास, कला, निर्माण, व्यापार और आस्था प्रणाली के संदर्भ में भी अपनी बहुमुखी उपलब्धियों को प्रदर्शित करता है। अपनी अत्यंत समृद्ध कलाकृतियों के साथ, धोलावीरा की बड़ी अच्छी तरह से संरक्षित ये शहरी बस्ती, अपनी बेहद खास विशेषताओं वाले इस क्षेत्रीय केंद्र की एक जीवंत तस्वीर दर्शाती है जो समग्र रूप से हड़प्पा सभ्यता के मौजूदा ज्ञान में भी महत्वपूर्ण योगदान देती है।

इस पुरातात्विक स्थल के दो भाग हैं: एक दीवार युक्त नगर और दूसरा, नगर के पश्चिम में एक अंत्येष्टि स्थल। चारदीवारी वाले इस नगर में एक प्राचीर युक्त किला है जिसके साथ प्राचीर वाला अहाता और पूजा-अर्चना का मैदान, और एक सुरक्षित मध्य नगर तथा एक निम्न नगर है। इस किले के पूर्व और दक्षिण में जलाशयों की एक श्रृंखला पाई जाती है। अंत्येष्टि स्थल या श्मशान में अधिकांश अंत्येष्टियां स्मारक रूपी हैं।

धोलावीरा नगर स्वंर्णिम दिनों में उसका जो विशिष्टत स्वषरूप था वह दरअसल नियोजित नगर का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। धोलावीरा नगर में अत्यंात नियोजित ढंग से अलग-अलग नगरीय आवासीय क्षेत्र विकसित किए गए थे जो संभवतः विभिन्न व्यावसायिक गतिविधियों या पेशा और एक वर्गीकृत समाज पर आधारित थे। जल संचयन प्रणालियों, जल निकासी प्रणालियों के साथ-साथ वास्तुशिल्प एवं तकनीकी रूप से विकसित सुविधाओं में नजर आने वाली उत्कृरष्ट तकनीकी प्रगति स्थानीय सामग्री के डिजाइन, कार्यान्व यन और प्रभावकारी उपयोग में स्पष्टि रूप से परिलक्षित होती है। आमतौर पर नदियों और जल के बारहमासी स्रोतों के पास स्थित रहने वाले हड़प्पा के अन्य पूर्ववर्ती शहरों के विपरीत खादिर द्वीप में धोलावीरा ऐसे स्थान पर अवस्थित था जो खनिज और कच्चे माल (तांबा, सीप, गोमेद-कार्नीलियन, स्टीटाइट, सीसा, धारियों वाले चूना पत्थर, इत्यादि) के विभिन्न स्रोतों का इस्तेषमाल करने और इसके साथ ही मगन (आधुनिक ओमान प्रायद्वीप) एवं मेसोपोटामिया क्षेत्रों में आंतरिक और बाह्य व्यापार को सुविधाजनक बनाने की दृष्टि से अत्यंतत रणनीतिक था।

धोलावीरा दरअसल हड़प्पा सभ्यता (शुरुआती, परिपक्व और इसके बाद के हड़प्पा दौर वाले) से संबंधित एक आद्य-ऐतिहासिक कांस्य युग वाली शहरी बस्ती का एक उत्कृदष्ट़ उदाहरण है और वहां तीसरी और दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के दौरान एक बहु-सांस्कृतिक एवं वर्गीकृत समाज होने के अनेक प्रमाण या साक्ष्य  मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक हड़प्पा चरण के दौरान 3000 ईसा पूर्व के शुरुआती साक्ष्य मिले हैं। यह नगर लगभग 1,500 वर्षों तक खूब फला-फूला जिससे वहां काफी लंबे समय तक लोगों के निरंतर निवास करने के संकेत मिलते हैं। यहां पर उत्खनन के जो अवशेष हैं वे स्पष्ट रूप से बस्ती की उत्पत्ति, उसके विकास, चरम पर पहुंचने और फि‍र बाद में उसके पतन का संकेत देते हैं जो इस नगर के स्विरूप एवं स्थापत्य तत्वों या घटकों में निरंतर होने वाले परिवर्तनों के साथ-साथ विभिन्न अन्य विशेषताओं में स्पष्ट तौर पर परिलक्षित होते हैं।

धोलावीरा अपोनी पूर्व नियोजित नगर योजना, बहु-स्तरीय किलेबंदी, परिष्कृत जलाशयों और जल निकासी प्रणाली, और निर्माण सामग्री के रूप में पत्थर के व्यापक उपयोग के साथ हड़प्पा शहरी नियोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। ये विशेषताएं हड़प्पा सभ्यता के पूरे क्षेत्र में धोलावीरा की अनूठी स्थिति को दर्शाती हैं।

पानी की उपलब्ध हर बूंद को इकट्ठा करने के लिए डिज़ाइन की गई विस्तृत जल प्रबंधन प्रणाली लोगों की तेज़ भू-जलवायु परिवर्तनों के मुकाबले जीवित रहने की सरलता को दर्शाती है। मौसमी जलधाराओं, अल्प वर्षा और उपलब्ध भूमि से अलग किए गए पानी को बड़े पत्थरों के जलाशयों में संग्रहीत किया गया था जो पूर्वी और दक्षिणी किलेबंदी के साथ मौजूद हैं। पानी तक पहुंचने के लिए, कुछ पत्थर के कुएं, जो सबसे पुराने उदाहरणों में से एक हैं, नगर के विभिन्न हिस्सों में स्पष्ट रूप से मौजूद हैं, और इनमें से सबसे प्रभावशाली एक कुआं नगर में स्थित है। धोलावीरा के इस तरह के विस्तृत जल संरक्षण तरीके अद्वितीय हैं और प्राचीन दुनिया की सबसे कुशल प्रणालियों में से एक मानी जाती हैं।

भारत के विश्व धरोहर स्थल

यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत घोषित किए गए भारत में स्थित सांस्कृदतिक और प्राकृतिक स्थकलों की विश्व विरासत स्थल सूची[1]

आगरा का किला, उत्तर प्रदेश

जयपुर सिटी, राजस्थान

अजन्ता की गुफाएँ, महाराष्ट्र

साँची के बौद्ध स्तूप, मध्य प्रदेश

चंपानेर-पावागढ़ पुरातत्व उद्यान, गुजरात

छत्रपति शिवाजी टर्मिनस, मुम्बई, महाराष्ट्र

पुराने गोवा के चर्च

एलिफेंटा की गुफाएं, महाराष्ट्र

एलोरा की गुफाएँ, महाराष्ट्र

फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश

चोल मंदिर, तमिल नाडु

हम्पी के स्मारक, कर्नाटक

पत्तदकल के स्मारक, कर्नाटक

हुमायुँ का मक़बरा, दिल्ली

काजीरंगा राष्ट्रीय अभ्यारण्य, असम

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, भरतपुर राजस्थान

खजुराहो के स्मारक और मंदिर, मध्य प्रदेश

महाबोधि मंदिर, बोधगया, बिहार

मानस राष्ट्रीय अभयारण्य, असम

भारतीय पर्वतीय रेल

नंदादेवी राष्ट्रीय अभयारण्यऔर फूलों की घाटी, उत्तराखंड

क़ुतुब मीनार, दिल्ली

भीमबेटका के प्रस्तरखंड, मध्य प्रदेश

कोणार्क का सूर्य मंदिर, उड़ीसा

सुंदरवन राष्ट्रीय अभयारण्य, पश्चिम बंगाल

ताजमहल, 1984 आगरा , उत्तर प्रदेश

धुआँधार, 2021 जबलपुर, मध्यप्रदेश

सतपुड़ा टाइगर रिजर्ब, 2021, होशंगाबाद, मध्यप्रदेश

SOURCE-PIB

 

नौचालन के लिए सामुद्रिक सहायता विधेयक 2021

संसद ने आज नौचालन के लिए सामुद्रिक सहायता विधेयक 2021 को पारित किया। इस विधेयक का उद्देश्य 90 साल से अधिक पुराने प्रकाश स्तम्भ अधिनियम 1927 को प्रतिस्थापित करना, सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं, तकनीकी विकास और नौचालन के लिए सामुद्रिक सहायता के क्षेत्र में भारत के अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का समायोजन करना, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के दृष्टिकोण को साकार करना, विधायी ढांचे को उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाना और व्यापार करने की आसान प्रक्रिया को बढ़ावा देनाहै। केन्द्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस विधेयक को राज्यसभा में 19.07.2021 को पेश किया और आज इसे पारित कर दिया गया। अब यह विधेयक राष्ट्रपति के पास उनकी मंजूरी के लिए जाएगा।

केन्द्रीय पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री श्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि यह पहल औपनिवेशिक कानूनों को निरस्त करके उन्हें समुद्री उद्योग की आधुनिक एवं समकालिक जरूरतों को पूरा करने वाले कानूनों से प्रतिस्थापित करने की पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के सक्रिय दृष्टिकोण का हिस्सा है। श्री सर्बानंद सोनोवाल ने यह भी कहा कि इस विधेयक का उद्देश्य समुद्री नौचालनसे संबंधित उन अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाना है, जो पुराने प्रकाश स्तम्भ अधिनियम 1927 के वैधानिक प्रावधानों के तहत शामिल नहीं थे।

पृष्ठभूमि:

सुरक्षित नौचालन के लिए भारत में प्रकाश स्तम्भ एवं दीपक का प्रशासन एवं प्रबंधन प्रकाश स्तम्भ अधिनियम 1927 द्वारा प्रशासित है। प्रकाश स्तम्भ अधिनियम 1927 के अधिनियमन के समय, तत्कालीन ब्रिटिश भारत में केवल 32 प्रकाश स्तम्भ थे, जो कि छह क्षेत्रों – अदन, कराची, बम्बई, मद्रास, कलकत्ता और रंगून – में फैले हुए थे। आजादी के बाद, 17 प्रकाश स्तम्भ भारत के प्रशासनिक नियंत्रण में आए। इनकी संख्या अब नौवहन उद्योग की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए कई गुना बढ़ गई हैं। वर्तमान में, उक्त अधिनियम के तहत 195 प्रकाश स्तम्भ और नौचालन के लिए कई उन्नत रेडियो और डिजिटल सहायता संचालित हैं।

जैसे-जैसे तकनीक विकसित हुई, रडार और अन्य सेंसर की मदद से एक प्रणाली स्थापित की गई, तट से जहाजों को उनकी स्थिति के बारे में सलाह दी गई और इस तरह पोत परिवहन सेवाएं [वेसल ट्रैफिक सर्विसेज (वीटीएस)] अस्तित्व में आई और उसे व्यापक स्वीकार्यता मिली। समुद्री नौवहन प्रणालियों के इन आधुनिक, तकनीकी रूप से बेहतर सहायता ने उन सेवाओं के स्वरूप को एक ‘निष्क्रिय’ सेवा से ‘निष्क्रिय और साथ ही संवादात्मक’ सेवा में बदल दिया है।

वैश्विक स्तर पर इन प्रकाश स्तम्भों को दर्शनीय स्थल, विशिष्ट वास्तुकला एवं धरोहर मूल्य की दृष्टि से एक प्रमुख पर्यटक केन्द्र के रूप में भी पहचान मिली है।

नौचालन से संबंधित गतिविधियों को एक उपयुक्त वैधानिक ढांचा प्रदान करने के लिए एक ऐसे नए अधिनियम के अधिनियमन की आवश्यकता है जो कि नौचालन के लिए सामुद्रिक सहायता की आधुनिक भूमिका को दर्शाए और अंतर्राष्ट्रीय करारों के तहत भारत के दायित्वों के अनुरूप हो।

लाभ:

यह नया अधिनियम भारतीय तटीयसीमा के अंतर्गत समुद्री नौचालन के लिए सहायता और पोत परिवहन सेवाओं के लिए व्यवस्थित और प्रभावी कामकाज की सुविधा प्रदान करेगा। इसके लाभों में शामिल हैं-

  1. इसमें नौचालन के लिए सहायता एवं पोत परिवहन सेवाओं से संबद्ध मामलों के लिए बेहतर कानूनी ढांचा और समुद्री नौचालन के क्षेत्र में भावी विकास शामिल है।
  2. नौवहन की सुरक्षा एवं दक्षता बढ़ाने और पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए पोत परिवहन सेवाओं का प्रबंधन।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ‘नौचालन के लिए सहायता’ और पोत परिवहन सेवाओं के ऑपरेटरों के लिए प्रशिक्षण और प्रमाणन के माध्यम से कौशल विकास।
  1. वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रशिक्षण और प्रमाणन की जरूरतों को पूरा करने के लिए संबद्ध संस्थानों की लेखा परीक्षा और प्रत्यायन।
  2. सुरक्षित और प्रभावी नौचालन के उद्देश्य से डूबे हुए/फंसे हुए जहाजों की पहचान करने के लिए सामान्य जल में “मलबे” चिन्हित करना।
  3. शिक्षा, संस्कृति और पर्यटन के उद्देश्य से प्रकाश स्तम्भों का विकास, जोकि तटीय क्षेत्रों की पर्यटन क्षमता का दोहन करते हुए उनकी अर्थव्यवस्था में योगदान देगा।

SOURCE-PIB

 

IGBC Green Cities Platinum Rating

26 जुलाई, 2021 को कांडला एसईजेड (KASEZ) IGBC Green Cities Platinum Rating for Existing Cities प्राप्त करने वाला पहला SEZ (Special Economic Zone) बन गया गया।

मुख्य बिंदु

  • KASEZ टीम को पट्टिका (plaque) भेंट की गई है।
  • KASEZ टीम द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की गई क्योंकि इसे भुज क्षेत्र में पूरा किया गया था जहाँ वनीकरण और जल संरक्षण को महत्वपूर्ण कार्य कहा जाता है।
  • यह KASEZ टीम के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी और IGBC ग्रीन सिटीज़ प्लेटिनम रेटिंग उन गतिविधियों का हिस्सा है जिनकी परिकल्पना‘India@75 – आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के तहत की गई है ।
  • भारत सरकार पर्यावरण की दृष्टि से सतत विकास सुनिश्चित करने की दिशा में लगातार काम कर रही है जिसे देश के कई मंत्रालयों को शामिल करने वाले विभिन्न प्रयासों और उपायों के माध्यम से पूरा किया जा सकता है।

IGBC प्लेटिनम रेटिंग क्यों प्रदान की जाती है?

CII की इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (Indian Green Building Council) नीतिगत पहलों, ग्रीन मास्टर प्लानिंग और हरित बुनियादी ढांचे के कार्यान्वयन के लिए आईजीबीसी प्लेटिनम रेटिंग प्रदान करती है। यह मान्यता देश के अन्य सभी SEZs को कांडला SEZ द्वारा किए गए प्रयासों और हरित पहल का अनुकरण करने के लिए प्रेरित करेगी।

SOURCE-GK TODAY

 

दृष्टि

दृष्टि (vision) पर अब तक के पहले प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मंजूरी दे दी है। संयुक्त राष्ट्र ने अपने 193 सदस्य देशों से आह्वान किया कि वे अपने प्रत्येक नागरिक की आंखों की देखभाल सुनिश्चित करें। यह संकल्प का उद्देश्य वर्ष 2030 तक लगभग 1.1 बिलियन लोगों की मदद करना है, जो दृष्टि हानि से पीड़ित हैं।

मुख्य बिंदु

  • “Vision for Everyone” नामक प्रस्ताव को एंटीगुआ, बांग्लादेश और आयरलैंड द्वारा प्रायोजित किया गया है और 100 से अधिक देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया गया है।
  • इस प्रस्ताव के तहत संयुक्त राष्ट्र ने सदस्य देशों से आंखों की देखभाल के लिए एक सरकारी दृष्टिकोण स्थापित करने को कहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र ने दाताओं और वित्तीय संस्थानों से विकासशील देशों के लिए वित्तपोषण प्रदान करने का भी आह्वान किया है ताकि वे सामाजिक और आर्थिक विकास पर दृष्टि के नुकसान के प्रभाव को संबोधित कर सकें।
  • इस प्रस्ताव में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर आंखों की देखभाल की जरूरतें काफी हद तक बढ़ने जा रही हैं क्योंकि वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी का आधा हिस्सा दृष्टि दोष से पीड़ित हो सकता है।
  • वैश्विक स्तर पर दृष्टि की हानि से पीड़ित 1 अरब लोगों में से 90% से अधिक लोग निम्न या मध्यम आय वर्ग के देशों में रहते हैं।
  • सभी नेत्रहीन लोगों में 55% लड़कियां और महिलाएं हैं।
  • आंखों की देखभाल से संबंधित सेवाओं तक बेहतर पहुंच से प्रति व्यक्ति घरेलू खर्च में लगभग 88% की वृद्धि हो सकती है।
  • भूख और गरीबी को समाप्त करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और असमानता को कम करने के वर्ष 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आंखों की देखभाल से संबंधित सेवा तक बेहतर पहुंच आवश्यक है।

SOURCE-GK TODAY

 

बाईपायराजोल आर्गेनिक क्रिस्टल

भारतीय विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्थान (IISER), कोलकाता में IIT खड़गपुर के सहयोग से काम कर रहे शोधकर्ताओं ने स्व-मरम्मत करने वाले पीजोइलेक्ट्रिक आणविक क्रिस्टल (self-repairing piezoelectric molecular crystals) विकसित किए हैं। इन क्रिस्टलों को बाईपायराजोल आर्गेनिक क्रिस्टल कहा जाता है।

बाईपायराजोल आर्गेनिक क्रिस्टल का उपयोग

जब यह एक यांत्रिक प्रभाव से गुजरता है तो पीजोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल बिजली उत्पन्न करते हैं। दैनिक उपयोग के उपकरण अक्सर यांत्रिक क्षति के कारण खराब हो जाते हैं, जिससे उपयोगकर्ताओं को या तो बदलने या मरम्मत करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस प्रकार, उपकरण का जीवन कम हो जाता है और रखरखाव की लागत बढ़ जाती है। इसलिए, इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, वैज्ञानिकों ने पीजोइलेक्ट्रिक अणु विकसित किए हैं। यह सामग्री विभिन्न हाई-एंड माइक्रो-चिप्स, एक्चुएटर्स, उच्च परिशुद्धता यांत्रिक सेंसर, माइक्रो-रोबोटिक्स आदि में इस्तेमाल की जा सकती है।

निष्कर्ष

इस शोध को सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित किया गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने स्वर्णजयंती फेलोशिप और विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (SERB) अनुदान के माध्यम से इस परियोजना का समर्थन किया गया है। इस परियोजना की रिपोर्ट “साइंस” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

SOURCE-DANIK JAGARAN

 

फैक्टरिंग संशोधन विधेयक

26 जुलाई, 2021 को लोकसभा ने फैक्टरिंग विनियमन अधिनियम 2011 में संशोधन करने के लिए यह बिल पारित किया। यह फैक्टरिंग व्यापार में भाग लेने वाली इकाइयों के दायरे को और भी व्यापक बनाएगा। भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) क्षेत्र की मदद के लिए यह बदलाव किए जा रहे हैं।

मुख्य बिंदु

  • सितंबर 2020 में इसे लोकसभा में पेश किया गया था। यह बिल देश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्रों को विलंबित भुगतानों की समस्या को सुलझाने में मदद करेगा।
  • यह बिल TReDS प्लेटफॉर्म पर भी कर्षण (traction) को बढ़ाएगा, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वर्ष 2014 में उद्यमियों के लिए पेश किया गया था ताकि वे कार्यशील पूंजी को अनलॉक कर सकें जो उनके अवैतनिक चालान (unpaid invoices) से जुड़ी हुई है।
  • सरकार ने भुगतान निगरानी पोर्टल एमएसएमई समाधान (MSME Samadhaan) में देरी के अनुसार, MSME द्वारा 83,000 से अधिक विलंबित भुगतान आवेदन दायर किए गए हैं, जिसमें 22,311 करोड़ रुपये की राशि शामिल है। इनमें से 1,433 करोड़ रुपये के 7920 आवेदनों का निस्तारण (dispose) किया गया।
  • बड़ी कंपनियों की तुलना में, एमएसएमई बहुत अधिक लागत पर उधार लेते रहते हैं और इसलिए, यह फैक्टरिंग बिल उन्हें अपनी प्राप्तियों का मुद्रीकरण करने में मदद करेगा जो बदले में उन्हें अपनी कार्यशील पूंजी के प्रबंधन और उनकी कार्यशील पूंजी लागत को कम करने में मदद करेगा।
  • भारत में, फैक्टरिंग क्रेडिट कुल एमएसएमई क्रेडिट का केवल 6% योगदान देता है जबकि चीन में यह 11.2% है।

बिल के अन्य पहलू

फैक्टरिंग संस्थाओं की संख्या सात से बढ़ाकर कुछ हजार की जाएगी। ऋण के इस प्रवाह में भी तेजी से वृद्धि होगी जबकि एमएसएमई के लिए ऋण की लागत को कम किया जाएगा। 2019 में, यू.के. सिन्हा की अध्यक्षता में, RBI ने MSMEs के विलंबित भुगतान के मुद्दे को हल करने में मदद करने के लिए MSMEs पर एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। इस विधेयक में किए गए संशोधन यूके सिन्हा समिति की सिफारिशों पर आधारित थे।

TReDS

TReDS विभिन्न फाइनेंसरों के माध्यम से MSMEs के व्यापार प्राप्तियों के वित्तपोषण और छूट की सुविधा के लिए RBI द्वारा शुरू किया गया एक इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म है। अब तक TReDS ने लगभग 43,000 करोड़ मूल्य के चालानों को संसाधित किया है, जिससे 25,000 से अधिक MSME को धन और तरलता तक बेहतर पहुंच में मदद मिली है।

SOURCE-THE HINDU

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