Current Affair 29 April 2021

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CURRENTS AFFAIRS – 29th APRIL

‘आयुष 64’

कोविड-19 महामारी के विश्वव्यापी कहर के बीच ‘आयुष 64’ दवा हल्के और मध्यम कोविड-19 संक्रमण के रोगियों के लिए आशा की एक किरण के रूप में उभरी है। देश के प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों के वैज्ञानिकों ने पाया है कि आयुष मंत्रालय की केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान परिषद (CCRAS) द्वारा विकसित एक पॉली हर्बल फॉर्मूला आयुष 64, लक्षणविहीन, हल्के और मध्यम कोविड-19 संक्रमण के लिए मानक उपचार की सहयोगी (adjunct to standard care) के तौर पर लाभकारी है। उल्लेखनीय है कि आयुष 64 मूल रूप से मलेरिया की दवा के रूप में वर्ष 1980 में विकसित की गई थी तथा कोविड 19 संक्रमण हेतु पुनरुद्देशित (repurpose) की गई है।

हाल ही में आयुष मंत्रालय तथा-सीएसआईआर द्वारा हल्के से मध्यम कोविड-19 संक्रमण के प्रबंधन में आयुष 64 की प्रभावकारिता और इसके सुरक्षित होने का मूल्यांकन करने के लिए एक व्यापक और गहन बहु-केंद्र नैदानिक (क्लीनिकल) ​​परीक्षण पूरा किया गया है।

आयुष 64, सप्तपर्ण (Alstonia scholaris), कुटकी (Picrorhiza kurroa), चिरायता (Swertia chirata) एवं कुबेराक्ष (Caesalpinia crista) औषधियों से बनी है। यह व्यापक वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर बनाई गयी है  और सुरक्षित तथा प्रभावी आयुर्वेदिक दवा है। इस दवाई को लेने की सलाह आयुर्वेद एवं योग आधारित नेशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल (National Clinical Management Protocol based on Ayurveda and Yoga)’ द्वारा भी दी गयी है जोकि आईसीएमआर की कोविड प्रबंधन पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स (National Task Force on COVID Management) के निरीक्षण के बाद जारी किया गया था।

पुणे के सेंटर फॉर रूमेटिक डिसीज के निदेशक और आयुष मंत्रालय के ‘आयुष मंत्रालय-सीएसआईआर सहयोग’ के मानद मुख्य नैदानिक ​​समन्वयक डॉ. अरविंद चोपड़ा ने बताया कि परीक्षण तीन केंद्रों पर आयोजित किया गया था। इसमें  KGMU, लखनऊ; DMIMS, वर्धा और BMC कोविड केंद्र, मुंबई शामिल रहे तथा प्रत्येक केंद्र में 70 प्रतिभागी शामिल रहे। डॉ. चोपड़ा ने कहा कि आयुष 64 ने मानक चिकित्सा (Standard of Care यानी एसओसी) के एक सहायक के रूप में महत्वपूर्ण सुधार प्रदर्शित किया। और इस तरह इसे एसओसी के साथ लेने पर अकेले एसओसी की तुलना में अस्पताल में भर्ती होने की अवधि भी कम देखी गई। उन्होंने यह भी साझा किया कि सामान्य स्वास्थ्य, थकान, चिंता, तनाव, भूख, सामान्य हर्ष  और नींद पर आयुष 64 के कई महत्वपूर्ण, लाभकारी प्रभाव भी देखे गए। निष्कर्ष रूप में डॉ. चोपड़ा ने कहा कि इस तरह के ‘नियंत्रित दवा परीक्षण अध्ययन’ ने स्पष्ट सबूत दिए हैं कि आयुष 64 को कोविड -19 के हल्के से मध्यम मामलों का उपचार करने के लिए मानक चिकित्सा के सहायक के रूप में प्रभावी और सुरक्षित दवा के रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि जो रोगी आयुष 64 ले रहे हैं, उनकी निगरानी की अभी भी आवश्यकता होगी ताकि अगर बीमारी और बिगड़ने की स्थिति हो तो उसमें अस्पताल में भर्ती होने के दौरान ऑक्सीजन और अन्य उपचार उपायों के साथ अधिक गहन चिकित्सा की आवश्यकता की पहचान की जा सके।

आयुष नेशनल रिसर्च प्रोफेसर तथा कोविड-19 पर अंतर-विषयक आयुष अनुसंधान और विकास कार्य बल (Inter-disciplinary Ayush Research and Development Task Force on COVID-19) के अध्यक्ष डॉ. भूषण पटवर्धन ने कहा कि आयुष 64 पर हुए इस अध्ययन के परिणाम अत्यधिक उत्साहजनक हैं और आपदा की इस कठिन घड़ी में ज़रूरतमंद मरीज़ों आयुष 64 का फायदा मिलना ही चाहिए।  उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि आयुष-सीएसआईआर संयुक्त निगरानी समिति (Ayush-CSIR Joint Monitoring Committee) ने इस बहु-केंद्रीय परीक्षण की निगरानी की थी। स्वास्थ्य शोध विभाग के पूर्व सचिव तथा आईसीएमआर  के पूर्व महानिदेशक डॉ. वी एम कटोच इस समिति के अध्यक्ष  हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आयुष 64 पर हुए इन नैदानिक अध्ययनों (clinical studies) की समय-समय पर एक स्वतंत्र संस्था ‘डेटा और सुरक्षा प्रबंधन बोर्ड’ (Data and Safety Management Board यानी डीएसएमबी) द्वारा समीक्षा की जाती थी।

डॉ. पटवर्धन के दावे की पुष्टि करते हुए आयुष-सीएसआईआर संयुक्त निगरानी समिति के अध्यक्ष डॉ वीएम कटोच ने बताया कि समिति ने आयुष 64 के अध्ययन के परिणामों की गहन समीक्षा की है। उन्होंने कोविड-19 के लक्षणविहीन संक्रमण, हल्के  तथा मध्यम संक्रमण के प्रबंधन के लिए इसके उपयोग की संस्तुति की। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इस निगरानी समिति ने आयुष मंत्रालय से सिफारिश की है कि वह राज्यों के लाइसेंसिंग अधिकारियों / नियामकों (Regulators) को आयुष 64 के इस नये उपयोग (Repurposing) के अनुरूप इसे हल्के और मध्यम स्तर के कोविड-19 संक्रमण के प्रबंधन में उपयोगी के तौर पर सूचित करे।

केंद्रीय आयुर्वेदीय अनुसन्धान संस्थान (CCRAS) के महानिदेशक डॉ. एन. श्रीकांत ने विस्तार से बताया कि CSIR-IIIM, DBT-THSTI, ICMR-NIN, AIIMS जोधपुर और मेडिकल कॉलेजों सहित पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़; किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ; गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, नागपुर; दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, नागपुर  जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में आयुष 64 पर अध्ययन जारी हैं।  अब तक मिले परिणामों ने हल्के और मध्यम कोविड-19 संक्रमणों से निबटने में इसकी भूमिका स्पष्ट तौर पर जाहिर की है। उन्होंने यह भी बताया कि सात नैदानिक (क्लीनिकल) अध्ययनों के परिणाम से पता चला है कि आयुष 64 के उपयोग से संक्रमण के जल्दी ठीक होने (Early clinical recovery) और बीमारी के गंभीर होने से बचने के संकेत मिले हैं।

SOURCE-PIB

 

इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर

सेंट्रल फार्म मशीनरी ट्रेनिंग एंड टेस्टिंग इंस्टीट्यूट, बुदनी (मध्यप्रदेश) ने संस्थान में पहली बार इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर का परीक्षण किया है। संस्थान ने शुरू में गोपनीय परीक्षण के तहत एक इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर के लिए आवेदन प्राप्त किया। तदनुसार, संस्थान ने ट्रैक्टर का परीक्षण किया और फरवरी, 2021 में ड्राफ्ट टेस्ट रिपोर्ट जारी की। ड्राफ्ट टेस्ट रिपोर्ट जारी होने के बाद, निर्माता ने परीक्षण की प्रकृति को “गोपनीय से वाणिज्यिक” में बदलने का अनुरोध किया और सक्षम प्राधिकारण ने विनिर्माता के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। तदनुसार, टेस्ट रिपोर्ट को वाणिज्यिक परीक्षण रिपोर्ट के रूप में जारी किया गया था। इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर अन्य प्रकार के ट्रैक्टरों की तुलना में पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल होगा।

संस्थान ने सीएमवीआर जांच प्रयोगशाला के लिए 30 मार्च, 2021 को एनएबीएल मान्यता प्रमाणपत्र हासिल किया।

मान्यता दिया जाना तीसरे पक्ष की तरफ से किया जाना सत्यापन है जो एक अनुरूपता मूल्यांकन निकाय से संबंधित है, जो विशिष्ट अनुरूपता मूल्यांकन कार्यों को करने के लिए अपनी क्षमता का औपचारिक प्रदर्शन बताता है। अनुरूपता मूल्यांकन निकाय (सीएबी) एक निकाय है जिसमें चिकित्सा प्रयोगशाला, अंशांकन प्रयोगशाला, प्रवीणता परीक्षण प्रदाता, प्रमाणित संदर्भ सामग्री निर्माता सहित परीक्षण शामिल हैं।

भारत सरकार की व्यापार और उद्योग नीतियों के उदारीकरण ने घरेलू व्यापार में गुणवत्ता चेतना पैदा की है और निर्यात पर ज्यादा जोर दिया है। परिणाम के रूप में परीक्षण केंद्रों और प्रयोगशालाओं को सक्षमता से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य स्तर पर संचालित करना पड़ता है।

प्रयोगशाला मान्यता एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक आधिकारिक निकाय विशिष्ट परीक्षण/माप के लिए तकनीकी योग्यता की औपचारिक मान्यता देता है, जो तीसरे पक्ष के मूल्यांकन और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर होता है।

इसी तरह, प्रवीणता परीक्षण प्रदाता मान्यता से उन संगठनों के लिए योग्यता की औपचारिक मान्यता मिलती है जो प्रवीणता परीक्षण प्रदान करते हैं। वहीं संदर्भ सामग्री निर्माता मान्यता से तीसरे पक्ष के मूल्यांकन और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर संदर्भ सामग्री के उत्पादन को पूरा करने के लिए क्षमता की औपचारिक मान्यता मिलती है।

SOURCE-PIB

 

GNCTD अधिनियम

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार(GNCTD) संशोधन अधिनियम, 2021, लोकसभा द्वारा 22 मार्च 2021 और राज्य सभा द्वारा 24 मार्च 2021 को पारित किए जाने तथा भारत के राष्ट्रपति द्वारा 28 मार्च 2021 को अनुमोदित किए जाने के बाद प्रभावी हो गया है। संशोधन अधिनियम से अधिनियम की धारा 21, 24, 33 और 44 में संशोधन किया गया है।

संशोधन अधिनियम का उद्देश्य इसे राजधानी की जरूरतों के लिए अधिक प्रासंगिक बनाना; निर्वाचित सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के उत्त्तरदायित्व को परिभाषित करना; और, विधायिका तथा कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध बनाना है।

संशोधन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करेगा और दिल्ली के आम लोगों के लिए बनाई गईं योजनाओं तथा कार्यक्रमों के बेहतर कार्यान्वयन में अग्रणी होगा।

संशोधन मौजूदा कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप हैं, और माननीय उच्चतम न्यायालय के दिनांक 04.07.2018 और 14.02.2019 के निर्णय के अनुरूप है।

GNCTD अधिनियम, 1991 में संशोधन, निर्वाचित सरकार को भारत के संविधान की राज्य और समवर्ती सूचियों में हस्तांतरित विषयों, स्वास्थ्य और शिक्षा आदि सहित, के लिए आवश्यक कार्रवाई करने के संवैधानिक तथा कानूनी उत्तरदायित्वों में किसी भी तरह परिवर्तन नहीं करता।

SOURCE-PIB

 

एमएसीएस 1407

भारतीय वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की एक अधिक उपज देने वाली और कीट प्रतिरोधी किस्म विकसित की है। एमएसीएस 1407 नाम की यह नई विकसित किस्म असम, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में खेती के लिए उपयुक्त है और इसके बीज वर्ष 2022 के खरीफ के मौसम के दौरान किसानों को बुवाई के लिए उपलब्ध कराये जायेंगे।

वर्ष 2019 में, भारत ने व्यापक रूप से तिलहन के साथ-साथ पशु आहार के लिए प्रोटीन के सस्ते स्रोत और कई पैकेज्ड भोजन के तौर पर सोयाबीन की खेती करते हुए इसका लगभग 90 मिलियन टन उत्पादन किया और वह दुनिया के प्रमुख सोयाबीन उत्पादकों में शुमार होने का प्रयास कर रहा है। सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी ये किस्में भारत के इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकती हैं।

इस चुनौती को स्वीकार करते हुए, भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक  स्वायत्त संस्थान एमएसीएस – अग्रहार रिसर्च इंस्टीट्यूट (एआरआई), पुणे के वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली के सहयोग से सोयाबीन की अधिक उपज देने वाली किस्मों और सोयाबीन की खेती के उन्नत तरीकों को विकसित किया है। उन्होंने पारंपरिक क्रॉस ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग करके एमएसीएस 1407 को विकसित किया, जोकि प्रति हेक्टेयर में 39 क्विंटल का पैदावार देते हुए इसे एक अधिक उपज देने वाली किस्म बनाता है और यह गर्डल बीटल, लीफ माइनर, लीफ रोलर, स्टेम फ्लाई, एफिड्स, व्हाइट फ्लाई और डिफोलिएटर जैसे प्रमुख कीट-पतंगों का प्रतिरोधी भी है। इसका मोटा तना, जमीन से ऊपर (7 सेमी) फली सम्मिलन और फली बिखरने का प्रतिरोधी होना इसे यांत्रिक कटाई के लिए भी उपयुक्त बनाता है। यह पूर्वोत्तर भारत की वर्षा आधारित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है।

इस अनुसंधान का नेतृत्व करने वाले एआरआई के वैज्ञानिक श्री संतोष जयभाई ने कहा कि  ‘एमएसीएस 1407’ ने सबसे अच्छी जांच किस्म की तुलना में उपज में 17 प्रतिशत की वृद्धि की और योग्य किस्मों के मुकाबले 14 से 19 प्रतिशत अधिक उपज लाभ दिखाया। सोयाबीन की यह किस्म बिना किसी उपज हानि के 20 जून से 5 जुलाई के दौरान बुआई के लिए अत्यधिक अनुकूल है। यह इसे अन्य किस्मों की तुलना में मानसून की अनिश्चितताओं का अधिक प्रतिरोधी बनाता है।”

एमएसीएस 1407 को 50 प्रतिशत फूलों के कुसुमित होने के लिए औसतन 43 दिनों की जरूरत होती है और इसे परिपक्व होने में बुआई की तारीख से 104 दिन लगते हैं। इसमें सफेद रंग के फूल, पीले रंग के बीज और काले हिलम होते हैं। इसके बीजों में 19.81 प्रतिशत तेल की मात्रा, 41 प्रतिशत प्रोटीन  की मात्रा होती है और यह अच्छी अंकुरण क्षमता दर्शाती है। अधिक उपज, कीट प्रतिरोधी, कम पानी और उर्वरक की जरूरत वाली और यांत्रिक कटाई के लिए उपयुक्त सोयाबीन की इस किस्म को हाल ही में भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली फसल मानकों से जुड़ी केन्द्रीय उप – समिति, कृषि फ़सलों की किस्मों की अधिसूचना और विज्ञप्ति द्वारा जारी किया गया है और इसे बीज उत्पादन और खेती के लिए कानूनी रूप से उपलब्ध कराया जा रहा है।

SOURCE-PIB

 

भारत का पहला 3D प्रिंटेड घर

केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने IIT मद्रास में पहले 3D प्रिंटेड घर का उद्घाटन किया।

मुख्य बिंदु

इस घर का निर्माण स्वदेशी 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके किया गया है।

इसे सिर्फ पांच दिनों में बनाया गया था।

इसे TVASTA Manufacturing solutions द्वारा पूर्व IIT-M के छात्रों के कांसेप्ट पर बनाया गया है।

3D प्रिंटिंग क्या है?

3D प्रिंटिंग डिजिटल निर्देशों के माध्यम से तीन आयामी वस्तुओं को बनाने की एक प्रक्रिया है। इसे  Additive manufacturing भी कहा जाता है।3D प्रिंटिंग का वैश्विक बाजार 2024 तक 8 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है।

भारत में 3D प्रिंटिंग

2020 में, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एडिटिव विनिर्माण के लिए राष्ट्रीय रणनीति जारी की थी।Additive Manufacturing में भारत का वैश्विक बाजार में केवल 1.4% हिस्सा है। आसियान समूह के भीतर एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग मार्केट में सिंगापुर, थाईलैंड और मलेशिया का हिस्सा लगभग 80% है।

Additive Manufacturing  के लिए राष्ट्रीय रणनीति

इसका प्रमुख लक्ष्य भारत को एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग के लिए ग्लोबल हब के रूप में स्थापित करना है। यह भारत में 3D प्रिंटिंग में निम्नलिखित चुनौतियों का समाधान करेगा:

  • निर्माण की गति
  • डेटा प्रारूप
  • Additive Manufacturing मानकों का अभाव

SOURCE-GK TODAY

 

मछली के लिए पहला स्वदेशी टीका

चेन्नई में स्थित सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्रैकिश एक्वाकल्चर (Central Institute of Brackish Aquaculture) ने वायरल नर्वस नेक्रोसिस (Viral Nervous Necrosis) के लिए एक स्वदेशी टीका विकसित किया है। इस वैक्सीन का नाम नोडावैक-आर (Nodavac-R) है।

वायरल नर्वस नेक्रोसिस (Viral Nervous Necrosis)

यह बीमारी बीटानोडैवायरस (Betanodavirus) के कारण होती है।यह ज्यादातर टेलीस्ट मछली (teleost fish) को प्रभावित करता है। 40 से अधिक प्रजातियां इस वायरस से प्रभावित हैं और उनमें से ज्यादातर समुद्री प्रजातियां हैं।

यह वायरस निष्क्रिय प्रसार और संपर्क के माध्यम से प्रसारित होता है।

यह बीमारी ज्यादातर किशोर या लार्वा में होती है।हालाँकि, यह वयस्कों को भी प्रभावित करती है।

भारत में वायरल नर्वस नेक्रोसिस (Viral Nervous Necrosis in India)

भारत में यह बीमारी बड़े पैमाने पर मीठे पानी, समुद्री और खारे पानी की मछलियों को प्रभावित करने वाली एक गंभीर चिंता रही है।

रेड स्पॉटेड ग्रूपर नर्वस नेक्रोसिस वायरस (Red Spotted Grouper Nervous Necrosis Virus) भारत में पाया जाने वाला एकमात्र जीनोटाइप है। इसमें संक्रमित वयस्क मुख्य वाहक होते हैं।

समाधान

देश में इस बीमारी को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका वयस्क मछलियों का टीकाकरण करना है। नोडावैक-आर (Nodavac-R) उन सभी प्रजातियों के लिए सुरक्षित है जो वायरल नर्वस नेक्रोसिस के लिए अतिसंवेदनशील हैं।

शांडलर गुड गवर्नमेंट इंडेक्स

शांडलर गुड गवर्नेंस इंडेक्स (Chandler Good Governance Index) हाल ही में शांडलर इंस्टीट्यूट ऑफ गवर्नेंस (Chandler Institute of Governance) द्वारा जारी किया जाता है, इसका मुख्यालय सिंगापुर में है। यह सूचकांक सात स्तंभों के आधार पर तैयार किया जाता है, जैसे नेतृत्व और दूरदर्शिता, मजबूत संस्थान, मजबूत कानून और नीतियां, आकर्षक बाजार, वित्तीय उद्यमशीलता, लोगों के उत्थान में मदद, वैश्विक प्रभाव और प्रतिष्ठा।शांडलर गुड गवर्नेंस इंडेक्स में  भारत 104 देशों की सूची में 49वां स्थान हासिल किया है।

मुख्य बिंदु

इस सूचकांक में फ़िनलैंड सबसे ऊपर है, इसके बाद स्विट्जरलैंड, सिंगापुर, नीदरलैंड, डेनमार्क और नॉर्वे का स्थान है।

इस सूचकांक में पाकिस्तान 90वें स्थान पर है, श्रीलंका 74वें और नेपाल 92वें स्थान पर है।

ब्रिक्स देशों में चीन 140वें, ब्राजील 67वें, रूस 48वें, दक्षिण अफ्रीका 70वें स्थान पर हैं।

शांडलर गुड गवर्नेंस इंडेक्स (Chandler Good Governance Index)

इसका उद्देश्य अनुसंधान, प्रशिक्षण और सलाह के माध्यम से सार्वजनिक संस्थागत क्षमता को मजबूत करना है। इसके अलावा यह सरकारों और सार्वजनिक अधिकारियों को राष्ट्र के निर्माण में समर्थन प्रदान करता करता है।

भारत में सुशासन (Good Governance in India)

भारत में 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाया जाता है।

कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों की पहल का आकलन करते हुए सुशासन सूचकांक जारी करता है।

भारत की राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना का उद्देश्य सभी सरकारी सेवाओं को आम आदमी के लिए सुलभ बनाना है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।

SOURCE-GK TODAY

 

भारत है विश्व का तीसरा सबसे अधिक सैन्य खर्च वाला देश

स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute – SIPRI) ने हाल ही में अपनी “Trends in world Military Expenditure” रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में शीर्ष सैन्य खर्च करने वाले देश अमेरिका, चीन और भारत हैं। इन तीन देशों ने अकेले 62% वैश्विक सैन्य खर्च में योगदान दिया।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

2020 में, अमेरिका ने अपनी सेना पर 778 बिलियन अमरीकी डालर खर्च किए। जबकि चीन और भारत ने क्रमशः 252 बिलियन अमरीकी डालर और 72 .9 बिलियन अमरीकी डालर खर्च किए।

भारत का सैन्य व्यय 1% बढ़ा है और चीन का 1.9% बढ़ा है। अमेरिका का सैन्य व्यय 4.4% बढ़ा है।

वैश्विक रूप से, 2019 की तुलना में सैन्य व्यय बढ़कर 1981 बिलियन अमरीकी डालर हो गया है। यह 6% की वृद्धि है।दूसरी ओर, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 4.4% की कमी आई है।

जीडीपी के संदर्भ में सैन्य खर्च

अमेरिका ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का 7% सेना पर खर्च किया।

भारत और चीन ने अपने जीडीपी में क्रमशः 9% और 1.7% खर्च किया।

क्षेत्रवार सैन्य खर्च

2019 की तुलना में ओशिनिया और एशिया में सैन्य खर्च 2.5% बढ़ा है। 2011 की तुलना में यह 47% अधिक था।

अन्य शीर्ष सैन्य खर्च करने वाले

अन्य देश जिन्होंने अपनी सेना के निर्माण पर बड़ी राशि खर्च की वे इस प्रकार थे :

रूस : 7 बिलियन अमरीकी डॉलर

यूके : 2 बिलियन अमरीकी डालर

सऊदी अरब : 5 बिलियन अमरीकी डालर

जर्मनी और फ्रांस ने लगभग 53 बिलियन अमरीकी डालर खर्च किए।

भारत का सैन्य आयात

इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत का सैन्य आयात 2011-15 की तुलना में 2016-20 में एक तिहाई कम हो गया। फिर भी भारत सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक बना रहा। भारत के हथियारों के आयात में गिरावट में रूस प्रभावित हुआ है। रूस ने अंततः भारत के स्थान पर अल्जीरिया, चिन और मिस्र को हथियार निर्यात बढ़ा दिया था।

शीर्ष हथियार आयात

मिस्र और कतर के हथियारों के आयात में क्रमशः 136% और 361% की वृद्धि हुई।

मध्य पूर्व हथियारों के आयात में 25% की वृद्धि हुई है।

शीर्ष निर्यातक

शीर्ष हथियार निर्यातक अमेरिका, फ्रांस और जर्मनी थे।

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