Current Affairs – 3 October, 2021
महात्मा गांधी की जयंती
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी को उनकी जयंती पर श्रद्धापूर्वक नमन किया।
अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा है – राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी जन्म-जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि। पूज्य बापू का जीवन और आदर्श देश की हर पीढ़ी को कर्तव्य पथ पर चलने के लिए प्रेरित करता रहेगा मैं गांधी जयंती पर श्रद्धेय बापू को श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं। उनके उच्च सिद्धांत पूरे विश्व में प्रासंगिक हैं और लाखों लोगों को उनसे सम्बल मिलता है।
मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा कहा जाता है। वो एक चतुर राजनेता थे, जिन्होंने अंग्रेज़ों की हुकूमत से भारत को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ी और ग़रीब भारतीयों के हक़ के लिए आवाज़ उठाई थी।
अहिंसक विरोध का उनका सिखाया हुआ सबक़ आज भी पूरी दुनिया में सम्मान के साथ याद किया जाता है।
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म उत्तर-पश्चिमी भारत की पोरबंदर रियासत में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। उनका परिवार एक अमीर ख़ानदान था। मोहनदास करमचंद गांधी के पिता, करमचंद (तस्वीर में) पोरबंदर रियासत के राजा के दरबार में दीवान थे। उनकी मां एक धार्मिक महिला थीं, जो अक्सर पूजा-पाठ के लिए मंदिर जाती थीं और उपवास रखा करती थीं। मां ने मोहन को हिंदू परंपराओं और नैतिकताओं का पक्का पाठ पढ़ाया। उन्होंने गांधी को हमेशा शाकाहारी बने रहने की हिदायत दी। मां से बालक मोहन को धार्मिक सहिष्णुता, साधारण रहन-सहन और अहिंसा की सीख भी मिली। बच्चों को अच्छी परवरिश देने की नीयत से मोहनदास के पिता अपने परिवार को रहने के लिए पोरबंदर से राजकोट ले आए। यहां अच्छी तालीम का इंतज़ाम था और मोहनदास को अंग्रेज़ी की शिक्षा दी गई।
13 बरस की उम्र में मोहनदास गांधी की शादी कस्तूरबा से कर दी गई। वो राजकोट की ही रहने वाली थीं और शादी के वक़्त कस्तूरबा, मोहनदास से एक साल बड़ी यानी 14 बरस की थीं। उस दौर में मोहनदास गांधी एक बाग़ी नौजवान थे। परिवार की परंपरा के ख़िलाफ़ जाकर मोहनदास करमचंद गांधी ने चोरी करने, शराब पीने और मांसाहार करने जैसे कई काम शुरू कर दिए थे। फिर भी, उस उम्र में मोहनदास को अपने अंदर सुधार लाने की ख़्वाहिश थी। हर उस काम के बाद जो उनकी नज़र में पाप था, वे प्रायश्चित करते थे। इसका विस्तार से वर्णन उन्होंने अपनी किताब ‘सत्य के प्रयोग’ में किया है। जब मोहनदास करमचंद गांधी के पिता मृत्युशैया पर थे, मोहनदास उन्हें छोड़कर अपनी पत्नी के पास चले गए और उसी वक़्त उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के बाद गांधी को अपने व्यवहार पर बहुत पछतावा हुआ। उनके पहले बच्चे का निधन जन्म के कुछ ही समय बाद हो गया, तो गांधी ने इसे अपने पाप के लिए ईश्वर का दंड माना था।
अपने पिता की मौत के वक़्त उनके पास न होने पर गांधी ने कहा था कि, ‘मैं बहुत शर्मिंदा था और ख़ुद को अभागा मानता था। मैं अपने पिता के कमरे की तरफ़ भागा। जब मैंने उन्हें देखा तो ये सोचा कि अगर वासना मुझ पर हावी नहीं हुई होती, तो मेरे पिता ने मेरी बांहों में दम तोड़ा होता। मोहनदास गांधी, बम्बई के भावनगर कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे लेकिन वो वहां ख़ुश नहीं थे। तभी उन्हें लंदन के मशहूर इनर टेम्पल में क़ानून की पढ़ाई करने जाने का प्रस्ताव मिला।
परिवार के बुज़ुर्गों ने मोहनदास को समझाया कि विदेश पढ़ने जाने पर वो ज़ात से बाहर कर दिए जाएंगे। लेकिन, बड़ों के ऐतराज़ को दरकिनार कर के गांधी पढ़ने के लिए लंदन चले गए।
लंदन में मोहनदास गांधी पूरी तरह पश्चिमी रंग-ढंग में रंग गए। लेकिन लंदन में उस वक़्त चल रहे शाकाहारी आंदोलन में उन्हें अपने लिए भाईचारा दिखा और वो उससे जुड़ गए। साथ ही लंदन की थियोसॉफिकल सोसाइटी से भी उन्हें अपने बचपन में मिली हिंदू मान्यताओं की सीख की ओर लौटने की प्रेरणा मिली, जो मोहनदास की मां ने सिखाए थे। शाकाहारी भोजन, शराब से तौबा और यौन संबंध से दूरी बनाकर मोहनदास दोबारा अपनी जड़ों की तरफ़ लौटने लगे। थियोसॉफ़िकल सोसाइटी की प्रेरणा से उन्होंने विश्व बंधुत्व का अपना सिद्धांत बनाया जिस में सभी इंसानों और धर्मों को मानने वालों को बराबरी का दर्ज़ा देने का सपना था।
क़ानून की पढा़ई पूरी करने के बाद मोहनदास गांधी भारत लौट आए और वक़ालत करने लगे। वो अपना पहला मुक़दमा हार गए। इसी दौरान उन्हें एक अंग्रेज़ अधिकारी के घर से बाहर निकाल दिया गया। इस घटना से बेहद अपमानित मोहनदास गांधी को दक्षिण अफ्रीका में काम करने का प्रस्ताव मिला, जो उन्होंने फ़ौरन स्वीकार कर लिया। दक्षिण अफ्रीका में जब वो ट्रेन के फर्स्ट क्लास डिब्बे में सफ़र कर रहे थे, तो मोहनदास गांधी को एक अंग्रेज़ ने सामान समेत डिब्बे से बाहर फिंकवा दिया।
दक्षिण अफ्रीका में अप्रवासी भारतीयों से हो रहे सौतेले बर्ताव और भेदभाव के ख़िलाफ़ उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। वहां के नटाल सूबे में गांधी ने भारतीयों को बाक़ी समाज से अलग रखने के ख़िलाफ़ लड़ना शुरू किया। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के अधिकारियों के लिए इस संघर्ष के दौरान ही गांधी ने स्व-शुद्धिकरण और सत्याग्रह जैसे सिद्धांतों के प्रयोग शुरू किए, जो उनके अहिंसा के व्यापक विचार का हिस्सा थे। इसी दौरान गांधी ने ब्रह्मचर्य का प्रण लिया और सफ़ेद धोती पहननी शुरू कर दी, जिसे हिंदू परंपरा में गमी का वस्त्र माना जाता है। 1913 में मोहनदास गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों पर लगाए गए 3 पाउंड के टैक्स के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया।
इस आंदोलन के दौरान पहली बार मोहनदास गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में काम कर रहे भारतीय मज़दूरों, खनन कर्मियों और खेतिहर मज़दूरों को एकजुट किया और उनके अगुआ बने। पिछले कई वर्षों के अपने संघर्ष की मदद से मोहनदास गांधी ने 2221 लोगों के साथ नटाल से ट्रांसवाल तक विरोध की पदयात्रा निकालने का फ़ैसला किया। इसे उन्होंने आख़िरी सविनय अवज्ञा का नाम दिया। इस यात्रा के दौरान ही गांधी को गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें नौ महीने क़ैद की सज़ा सुनाई गई। लेकिन, उनकी शुरू की गई हड़ताल और फैल गई। जिस के बाद दक्षिण अफ्रीका की अंग्रेज़ हुकूमत को भारतीयों पर लगाया गया टैक्स वापस लेना पड़ा और गांधी को जेल से रिहा करने पर मजबूर होना पड़ा।
दक्षिण अफ्रीका में ब्रितानी हुकूमत के विरुद्ध गांधी की इस जीत को इंग्लैंड के अख़बारों ने जमकर प्रचारित किया। इस क़ामयाबी के बाद गांधी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जाने-पहचाने जाने लगे। दक्षिण अफ्रीका में अपने आंदोलन की क़ामयाबी के बाद मोहनदास गांधी एक विजेता के तौर पर स्वदेश लौटे। भारत आने के बाद मोहनदास गांधी और कस्तूरबा ने तय किया कि वो रेलवे के तीसरे दर्ज़े के डिब्बे में पूरे भारत का भ्रमण करेंगे। इस भारत यात्रा के दौरान गांधी ने अपने देश की ग़रीबी और आबादी को देखा तो उन्हें ज़बरदस्त सदमा लगा। इसी दौरान गांधी ने अंग्रेज़ हुकूमत के लाए हुए काले क़ानून रौलट एक्ट के विरोध का एलान किया। इस क़ानून के तहत सरकार को ये ताक़त मिल गई थी कि वो किसी भी नागरिक को केवल चरमपंथ के शक में गिरफ़्तार कर जेल में डाल सकती थी। मोहनदास गांधी के कहने पर पूरे देश में हज़ारों लोग इस एक्ट के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतरे। तमाम शहरों में विरोध-प्रदर्शन हुए। लेकिन, इस दौरान कई जगह हिंसा भड़क उठी। अमृतसर में जनरल डायर ने 20 हज़ार लोगों की भीड़ पर गोली चलवा दी, जिस में चार सौ से ज़्यादा लोग मारे गए और 1300 से अधिक लोग ज़ख़्मी हो गए। इस हत्याकांड के बाद गांधी को ये यक़ीन हो गया कि उन्हें भारत की आज़ादी का आंदोलन शुरू करना चाहिए। अपनी बढ़ती लोकप्रियता की वजह से गांधी अब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रमुख चेहरा बन गए थे। वो ब्रिटेन से भारत की आज़ादी के आंदोलन के भी अगुवा बन गए। संघर्ष के लिए महात्मा गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जनमानस के बीच लोकप्रिय पार्टी बनाया। उससे पहले कांग्रेस अमीर भारतीयों का एक समूह भर हुआ करती थी।
गांधी ने धार्मिक सहिष्णुता और सभी धर्मों को आज़ादी के आधार पर भारत के लिए आज़ादी मांगी। गांधी के अहिंसक आंदोलन की अपील पर होने वाले विरोध-प्रदर्शनों को भारतीय समाज के सभी वर्गों और धर्मों का समर्थन मिलने लगा। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ लोगों से के असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। गांधी की अपील पर भारत की जनता ने ब्रिटिश सामानों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया।
इसके जवाब में ब्रितानी हुकूमत ने गांधी को देशद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया। उन्हें दो साल तक जेल में रखा गया। जब एक अख़बार ने गांधी पर पाखंड का आरोप लगाया तो उन्होंने कहा कि, ‘मैं भारत का देसी लिबास पहनता हूं, क्योंकि ये भारतीय होने का सबसे आसान और क़ुदरती तरीक़ा है।’ अब अंग्रेज़ हुकूमत के लिए गांधी के आंदोलन और उनकी मांगों की अनदेखी करना मुमकिन नहीं रह गया था। इसलिए, ब्रिटिश सरकार ने भारत के राजनीतिक भविष्य पर बातचीत के लिए लंदन में एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया। लेकिन, इस चर्चा से अंग्रेज़ों ने सभी भारतीयों को दूर ही रखा। इससे गांधी बहुत नाराज़ हो गए। उन्होंने अंग्रेज़ों के नमक क़ानून के ख़िलाफ़ अभियान शुरू कर दिया। उस वक़्त के ब्रिटिश क़ानून के मुताबिक़ भारतीय नागरिक, न तो नमक जमा कर सकते थे और न ही उसे बेच सकते थे। इसके चलते भारतीयों को अंग्रेज़ों से भारी क़ीमत पर नमक ख़रीदना पड़ता था. गांधी ने हज़ारों लोगों की भीड़ के साथ डांडी यात्रा निकाली और ब्रिटिश हुकूमत के प्रतीकात्मक विरोध के तौर पर नमक बनाकर क़ानून तोड़ा. इसके चलते अंग्रेज़ों ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। गांधी का आंदोलन बहुत फैल गया. हज़ारों लोगों ने अंग्रेज़ हुकूमत को टैक्स और राजस्व अदा करने से मना कर दिया। आख़िरकार अंग्रेज़ सरकार को झुकना पड़ा. तब गांधी गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लंदन रवाना हो गए।
नमक सत्याग्रह के बाद एक मुट्ठी नमक बनाते हुए गांधी ने कहा था, ‘इस एक मुट्ठी नमक से मैं ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें हिला रहा हूं।’ गांधी, लंदन में हो रहे गोलमेज़ सम्मेलन में शामिल होने वाले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इकलौते प्रतिनिधि थे। भारतीय परिधान में लंदन के इस सम्मेलन में पहुंचकर उन्होंने भारत की एक ताक़तवर छवि पेश की थी। लेकिन गोलमेज सम्मेलन गांधी के लिए विफल हो गया। ब्रिटिश साम्राज्य, भारत को आज़ाद करने को तैयार नहीं था। साथ ही मुसलमान, सिख और दूसरे भारतीय प्रतिनिधि गांधी के साथ नहीं थे। क्योंकि उन्हें नहीं लगता था कि गांधी सभी भारतीयों का प्रतिनिधित्व करते थे।
हालांकि, गांधी को ब्रिटिश बादशाह जॉर्ज पंचम से मिलने का मौक़ा मिला। साथ ही गांधी ने लंकाशायर स्थित मिल के मज़दूरों से भी मुलाक़ात की। इन सार्वजनिक मुलाक़ातों से गांधी को ख़ूब शोहरत मिली। साथ ही भारत की राष्ट्रवादी मांग के लिए ब्रिटिश जनता की हमदर्दी भी उन्होंने हासिल की। गांधी के इस ब्रिटेन दौरे के बारे में ताक़तवर ब्रिटिश राजनेता विंस्टन चर्चिल ने कहा था, ‘ये बहुत डरावना और घृणास्पद है कि श्री गांधी जो एक देशद्रोही और औसत दर्ज़े के वक़ील हैं, अब अपनी नुमाइश फ़क़ीर के तौर पर कर रहे हैं।’ गोलमेज सम्मेलन में अपनी नाकामी के बाद गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष का पद छोड़ने का फ़ैसला किया। पार्टी के भीतर वो हाशिए पर चले गए थे। जब चर्चिल ने नाज़ियों के ख़िलाफ़ जंग में भारत को ब्रिटेन का समर्थन करने को कहा, तो गांधी इस बात पर अड़ गए कि भारत को तब तक ब्रिटेन का नाज़ियों के ख़िलाफ़ जंग में समर्थन नहीं करना चाहिए, जब तक भारतीय अपने ही घर में ग़ुलाम हैं।
अब गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ एक नये अहिंसक आंदोलन ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ की शुरुआत की। आंदोलन की शुरुआत में ही गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा को जेल में बंद कर दिया गया। इसके बाद गांधी को जेल से रिहा करने की मांग को लेकर पूरे देश में हिंसक आंदोलन शुरू हो गए। लेकिन, ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल झुकने के लिए तैयार नहीं थे। जेल में ही गांधी की पत्नी कस्तूरबा की मौत हो गई। इसके कई महीनों बाद 1944 में गांधी को जेल से रिहा कर दिया गया। अंग्रेज़ो भारत छोड़ो आंदोलन से पहले गांधी ने कहा था, ‘या तो हमें भारत को आज़ाद कराना चाहिए या इस कोशिश में अपना बलिदान कर देना चाहिए।
लेकिन हम किसी भी क़ीमत पर आजीवन गुलामी का जीवन जीने के लिए राज़ी नहीं हैं।’ भारतीयों के बीच बढ़ती आज़ादी की मांग दिनों-दिन तेज़ होती जा रही थी। आख़िरकार, मजबूर होकर ब्रिटिश सरकार ने भारत की आज़ादी के लिए चर्चा करनी शुरू की। लेकिन, इसका नतीजा वो नहीं निकला, जिसके लिए गांधी इतने दिनों से संघर्ष कर रहे थे। माउंटबेटन प्लान के तहत भारत का विभाजन कर के भारत और पाकिस्तान नाम के दो स्वतंत्र देश बनाए गए। ये बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था। राजधानी दिल्ली में जिस वक़्त देश आज़ादी का जश्न मना रहा था। लेकिन, एकजुट देश का गांधी का सपना बिखर गया था। बंटवारे की वजह से बड़े पैमाने पर हत्याएं और ख़ून-ख़राबा हुआ। क़रीब एक करोड़ लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ा. दुखी होकर गांधी दिल्ली शहर छोड़ कर कलकत्ता रवाना हो गए, ताकि हिंसा को रोक कर वहां शांति स्थापित कर सकेंदेश के बंटवारे की वजह से ज़बरदस्त हिंसा हुई। कलकत्ता से गांधी दिल्ली लौटे ताकि वहां रह रहे उन मुसलमानों की हिफ़ाज़त कर सकें, जिन्होंने पाकिस्तान जाने के बजाय भारत में ही रहने का फ़ैसला किया था। गांधी ने इन मुसलमानों के हक़ के लिए अनशन करना शुरू किया। इसी दौरान, एक दिन जब वो दिल्ली के बिड़ला हाउस में एक प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तो उन पर एक हिंदू कट्टरपंथी ने हमला कर दिया। गांधी को सीने में तीन गोलियां मारी गईं। हिंदू कट्टरपंथियों के गढ़ में गांधी की मौत का जश्न मनाया गया। लेकिन, ज़्यादातर भारतीयों के लिए महात्मा गांधी की मौत एक राष्ट्रीय आपदा थी। दिल्ली में जब महात्मा गांधी की अंतिम यात्रा निकली, तो उस में दस लाख से ज़्यादा लोग शामिल हुए थे।
यमुना किनारे उनका अंतिम संस्कार किया गया। पूरी दुनिया में लोगों ने अहिंसा और शांति के पुजारी इस शख़्स के गुज़र जाने का मातम मनाया। गांधी अपने जीते जी एकीकृत भारत का सपना पूरा होते नहीं देख सके। मौत के बारे में ख़ुद महात्मा गांधी ने कहा था, ‘मौत के बीच ज़िंदगी अपना संघर्ष जारी रखती है। असत्य के बीच सत्य भी अटल खड़ा रहता है। चारों ओर अंधेरे के बीच रौशनी चमकती रहती है।’
SOURCE-BBC NEWS
PAPER-G.S1
लाल बहादुर शास्त्री की जयंती
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की जयंती पर उनका नमन किया है। एक टवीट में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा; “पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन। मूल्यों और सिद्धांतों पर आधारित उनका जीवन देशवासियों के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत बना रहेगा।”
श्री लाल बहादुर शास्त्री
9 जून, 1964 – 11 जनवरी, 1966 | कॉन्ग्रेस
श्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाउन, मुगलसराय में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। जब लाल बहादुर शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी माँ अपने तीनों बच्चों के साथ अपने पिता के घर जाकर बस गईं।
उस छोटे-से शहर में लाल बहादुर की स्कूली शिक्षा कुछ खास नहीं रही लेकिन गरीबी की मार पड़ने के बावजूद उनका बचपन पर्याप्त रूप से खुशहाल बीता।
उन्हें वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च विद्यालय की शिक्षा प्राप्त कर सकें। घर पर सब उन्हें नन्हे के नाम से पुकारते थे। वे कई मील की दूरी नंगे पांव से ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहाँ तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था।
बड़े होने के साथ-ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में अधिक रुचि रखने लगे। वे भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन कर रहे भारतीय राजाओं की महात्मा गांधी द्वारा की गई निंदा से अत्यंत प्रभावित हुए। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।
गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ हैं।
लाल बहादुर शास्त्री ब्रिटिश शासन की अवज्ञा में स्थापित किये गए कई राष्ट्रीय संस्थानों में से एक वाराणसी के काशी विद्या पीठ में शामिल हुए। यहाँ वे महान विद्वानों एवं देश के राष्ट्रवादियों के प्रभाव में आए। विद्या पीठ द्वारा उन्हें प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नाम ‘शास्त्री’ था लेकिन लोगों के दिमाग में यह उनके नाम के एक भाग के रूप में बस गया।
1927 में उनकी शादी हो गई। उनकी पत्नी ललिता देवी मिर्जापुर से थीं जो उनके अपने शहर के पास ही था। उनकी शादी सभी तरह से पारंपरिक थी। दहेज के नाम पर एक चरखा एवं हाथ से बुने हुए कुछ मीटर कपड़े थे। वे दहेज के रूप में इससे ज्यादा कुछ और नहीं चाहते थे।
1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ते हुए दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी। लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।
आजादी के बाद जब कांग्रेस सत्ता में आई, उससे पहले ही राष्ट्रीय संग्राम के नेता विनीत एवं नम्र लाल बहादुर शास्त्री के महत्व को समझ चुके थे। 1946 में जब कांग्रेस सरकार का गठन हुआ तो इस ‘छोटे से डायनमो’ को देश के शासन में रचनात्मक भूमिका निभाने के लिए कहा गया। उन्हें अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश का संसदीय सचिव नियुक्त किया गया और जल्द ही वे गृह मंत्री के पद पर भी आसीन हुए। कड़ी मेहनत करने की उनकी क्षमता एवं उनकी दक्षता उत्तर प्रदेश में एक लोकोक्ति बन गई। वे 1951 में नई दिल्ली आ गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री; परिवहन एवं संचार मंत्री; वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री; गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे। उनकी प्रतिष्ठा लगातार बढ़ रही थी। एक रेल दुर्घटना, जिसमें कई लोग मारे गए थे, के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। देश एवं संसद ने उनके इस अभूतपूर्व पहल को काफी सराहा। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस घटना पर संसद में बोलते हुए लाल बहादुर शास्त्री की ईमानदारी एवं उच्च आदर्शों की काफी तारीफ की। उन्होंने कहा कि उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री का इस्तीफा इसलिए नहीं स्वीकार किया है कि जो कुछ हुआ वे इसके लिए जिम्मेदार हैं बल्कि इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि इससे संवैधानिक मर्यादा में एक मिसाल कायम होगी। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा; “शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”
अपने मंत्रालय के कामकाज के दौरान भी वे कांग्रेस पार्टी से संबंधित मामलों को देखते रहे एवं उसमें अपना भरपूर योगदान दिया। 1952, 1957 एवं 1962 के आम चुनावों में पार्टी की निर्णायक एवं जबर्दस्त सफलता में उनकी सांगठनिक प्रतिभा एवं चीजों को नजदीक से परखने की उनकी अद्भुत क्षमता का बड़ा योगदान था।
तीस से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री अपनी उदात्त निष्ठा एवं क्षमता के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए। विनम्र, दृढ, सहिष्णु एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। वे दूरदर्शी थे जो देश को प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के राजनीतिक शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे। अपने गुरु महात्मा गाँधी के ही लहजे में एक बार उन्होंने कहा था – “मेहनत प्रार्थना करने के समान है।” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1
‘वेटलैंड्स ऑफ इंडिया’ पोर्टल लॉन्च
गांधी जयंती के अवसर पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आजादी का अमृत महोत्सव के प्रतिष्ठित सप्ताह (4-10 अक्टूबर, 2021) की घोषणा करते हुए केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री श्री भूपेंद्र यादव ने एक वेब पोर्टल ‘वेटलैंड्स ऑफ इंडिया पोर्टल’ (http://indianwetlands.in/) लॉन्च किया है जिसमें देश के वेटलैंड्स के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। इस पोर्टल पर वेटलैंड्स से संबंधित सभी जानकारी उपलब्ध है।
यह पोर्टल सूचना प्रोसेसिंग करने और हितधारकों को ये जानकारी एक कुशल और सुलभ तरीके से उपलब्ध बनाने के लिए एक गतिशील प्रणाली है। यह पोर्टल छात्रों के लिए क्षमता निर्माण सामग्री, डेटा भंडार, वीडियो और जानकारी भी उपलब्ध कराता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि इस पोर्टल पर पहुंच के लिए प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश के लिए एक डैशबोर्ड भी विकसित किया गया है और ताकि वे अपने प्रशासन में स्थित वेटलैंड्स की जानकारी अपलोड करा सकें। यह पोर्टल विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा और आने वाले महीनों में इस पर अतिरिक्त विशेषताएं भी जोड़ी जाएंगी।
इस पोर्टल को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की तकनीकी सहयोग परियोजना ‘जैव विविधता और जलवायु संरक्षण के लिए वेटलैंड्स प्रबंधन’ (वेटलैंड्स परियोजना) के तहत ड्यूश गेसेलशाफ्ट फर इंटरनेशनल जुसामेनरबीट (जीआईजेड) जीएमबीएच के साथ भागीदारी में विकसित किया गया है। यह परियोजना अंतर्राष्ट्रीय जलवायु पहल (आईकेआई) के तहत पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण और परमाणु सुरक्षा (बीएमयू) के लिए जर्मन संघीय मंत्रालय द्वारा शुरू की गई है।
रामसर स्थल | Ramsar Site
- चिलिका झील (ओडिशा) (1981)
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान (राजस्थान) (1981)
- लोकतक झील (मणिपुर) (1990)
- वुलर झील (जम्मू-कश्मीर) (1990)
- हरिके झील (पंजाब) (1990)
- सांभर झील (राजस्थान) (1990)
- कंजली झील (पंजाब) (2002)
- रोपड़ (पंजाब) (2002)
- कोलेरु झील (आंध्र प्रदेश) (2002)
- दीपोर बील (असम) (2002)
- पोंग बांध झील (हिमाचल प्रदेश) (2002)
- त्सो-मोरीरी (केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख) (2002)
- अष्टमुडी वेटलैंड (केरल) (2002)
- सस्थमकोट्टा झील (केरल) (2002)
- वेम्बनाड-कोल वेटलैंड (केरल) (2002)
- भोज वेटलैंड, भोपाल, (मध्य प्रदेश) (2002)
- भितरकनिका मैंग्रोव (ओडिशा) (2002)
- प्वाइंट कैलिमेरे वन्यजीव और पक्षी अभयारण्य (तमिलनाडु) (2002)
- पूर्व कलकत्ता वेटलैंड्स (पश्चिम बंगाल) (2002)
- चंदेरटल वेटलैंड (हिमाचल प्रदेश) (2005)
- रेणुका वेटलैंड (हिमाचल प्रदेश) (2005)
- होकेरा वेटलैंड (जम्मू और कश्मीर) (2005)
- सूरिंसार-मानसर झीलें (जम्मू-कश्मीर) (2005)
- रुद्रसागर झील (त्रिपुरा) (2005)
- ऊपरी गंगा नदी, (ब्रजघाट से नरौरा खिंचाव) (उत्तर प्रदेश) (2005)
- नालसरोवर पक्षी अभयारण्य (गुजरात) (2012)
- सुंदर वन डेल्टा (पश्चिम बंगाल) (2019)
- नंदूर मधमेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र) (2019)
- नवाबगंज पक्षी अभयारण्य, उन्नाव (उत्तर प्रदेश) (2019)
- केशोपुर-मिआनी कम्युनिटी रिजर्व (पंजाब) (2019)
- व्यास संरक्षण रिजर्व (पंजाब) (2019)
- नांगल वन्यजीव अभयारण्य, रूपनगर (पंजाब) (2019)
- साण्डी पक्षी अभयारण्य, हरदोई (उत्तर प्रदेश) (2019)
- समसपुर पक्षी अभयारण्य, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) (2019)
- समन पक्षी अभयारण्य, मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) (2019)
- पार्वती अरगा पक्षी अभयारण्य, गोंडा (उत्तर प्रदेश) (2019)
- सरसई नावर झील, इटावा (उत्तर प्रदेश) (2019)
- आसन रिजर्व (उत्तराखंड) (2020)
- काबर तल (बिहार) (2020)
- लोनार झील (महारष्ट्र) (2020)
- सुर सरोवर या कीथम झील (आगरा, उत्तर प्रदेश) (2020)
- त्सो कर लेक (केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख) (2020)
भारत के चार अन्य आर्द्रभूमि को रामसर साइटों की सूची में जोड़ा गया है, जो इसे ‘अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड (Wetland of International Importance)’ का दर्जा दे रहा है। इसके साथ, भारत में रामसर साइटों की कुल संख्या 46 तक पहुंच गई है, जिसमें 1,083,322 हेक्टेयर पृष्ठीय क्षेत्रफल शामिल है। रामसर कन्वेंशन के तहत साइट को अंतर्राष्ट्रीय महत्व के आर्द्रभूमि के रूप में पहचाना गया है। इनमें से दो साइट हरियाणा में हैं, जबकि अन्य दो गुजरात में हैं।
रामसर कन्वेंशन क्या है?
वेटलैंड्स पर रामसर कन्वेंशन 2 फरवरी, 1971 को कैस्पियन सागर के दक्षिणी शोर पर, ईरानी शहर रामसर में अपनाए गए एक अंतर सरकारी संधि है। यह 1 फरवरी, 1982 को भारत के लिए लागू हुआ। वे आर्द्रभूमि जो अंतरराष्ट्रीय महत्व के हैं, रामसर साइटों के रूप में घोषित की जाती हैं। पिछले साल, रामसर ने अंतरराष्ट्रीय महत्व की साइटों के रूप में भारत से 10 अन्य आर्द्रभूमि स्थलों की घोषणा की।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
विश्व का सबसे बड़ा खादी राष्ट्रीय ध्वज
गर्व और देशभक्ति,भारतीयता की सामूहिक भावना तथा खादी की विरासत शिल्प कला ने खादी सूती कपड़े से बने विश्व के सबसे बड़े राष्ट्रीय ध्वज को आज लेह में सलामी देने के लिए पूरे देश को एक सूत्र में बाध दिया। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने महात्मा गांधी को सर्वोच्च सम्मान देने के लिए स्मारक खादी राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया है, जिन्होंने दुनिया को पर्यावरण के सबसे अनुकूल कपड़ा खादी हमें उपहार में दिया था। ध्वज का अनावरण लद्दाख के उपराज्यपाल श्री आर के माथुर ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि स्मारकीय राष्ट्रीय ध्वज प्रत्येक भारतीय को देशभक्ति की भावना से बांधेगा। अनावरण के मौके पर केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना, लद्दाख के सांसद श्री जे टी नामग्याल और थल सेनाध्यक्ष जनरल एम एम नरवणे उपस्थित थे।
स्मारकीय राष्ट्रीय ध्वज 225 फीट लंबा, 150 फीट चौड़ा है और इसका भार (लगभग) 1400 किलोग्राम है। इस स्मारकीय राष्ट्रीय ध्वज को बनाने के लिए खादी कारीगरों और संबद्ध श्रमिकों ने लगभग 3500 घंटे का अतिरिक्त कार्य किया है। झंडा बनाने में हाथ से काते एवं हाथ से ही बुने हुए खादी कॉटन ध्वज पट्ट का उपयोग किया गया है जिसकी लंबाई काफी ज्यादा।
4600 मीटर है, जो हैरान कर देने वाली है। यह33,750वर्ग फुट के कुल क्षेत्रफल को कवर करता है। ध्वज में अशोक चक्र का व्यास 30 फीट है और इस झंडे को तैयार करने में 70 खादी कारीगरों को 49 दिन लगे थे।
केवीआईसी ने स्वतंत्रता के 75 वर्ष होने पर “आजादी का अमृत महोत्सव” मनाने के लिए ध्वज की अवधारणा और तैयारी की है। चूंकि,इस परिमाप के राष्ट्रीय ध्वज को संभालने और प्रदर्शित करने के लिए अत्यंत सावधानी तथा सटीकता की आवश्यकता होती है, इसलिए केवीआईसी ने यह ध्वज भारतीय सेना को सौंप दिया है। सेना ने मुख्य लेह शहर में एक पहाड़ी की चोटी पर झंडा प्रदर्शित किया है और इसके लिए एक विशेष फ्रेम तैयार किया गया है ताकि वह जमीन को न छुए।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1PRE
‘SACRED’ पोर्टल
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने 1 अक्टूबर, 2021 को अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के अवसर पर “SACRED पोर्टल” को चालू किया। भारत में वरिष्ठ नागरिकों को रोजगार के अवसर तलाशने के लिए एक मंच प्रदान करने के लिए यह पोर्टल विकसित किया गया है।
मुख्य बिंदु
- यह पोर्टल सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा विकसित किया गया है।
- SACRED का अर्थ है “Senior Able Citizens for Re-Employment in Dignity”।
- इस पोर्टल को यह सुनिश्चित करने के तरीके खोजने के उद्देश्य से विकसित किया गया है कि वरिष्ठ नागरिक एक सुखी, स्वस्थ, सम्मानजनक, सशक्त और आत्मनिर्भर जीवन जी सकें।
इस पोर्टल पर कौन पंजीकरण कर सकता है?
60 वर्ष और उससे अधिक आयु के नागरिक इस पोर्टल पर पंजीकरण कर सकते हैं और नौकरी और काम के अवसर पा सकते हैं।
पोर्टल के विकास के लिए अनुदान
प्लेटफॉर्म के विकास के लिए 10 करोड़ रुपये प्रदान किए गए। इसके अलावा, रखरखाव अनुदान के लिए 5 साल की अवधि में प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपये प्रदान किए जाएंगे।
आवश्यकता
भारत में बुजुर्गों की आबादी लगातार बढ़ रही है। Longitudinal Ageing Study of India (LASI) के अनुसार, 2050 तक, भारत में 319 मिलियन से अधिक बुजुर्ग होंगे। इसके अलावा, संयुक्त परिवार प्रणाली धीरे-धीरे कम हो रही है जिसके कारण बुजुर्गों को शारीरिक, सामाजिक और वित्तीय सहायता की कमी का सामना करना पड़ रहा है। इस प्रकार, उनकी आर्थिक और स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए एक मंच प्रदान करने और उनकी आवश्यकताओं को अधिक समग्र रूप से समर्थन देने वाला एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है।
अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस (International Day of Older Persons)
यह दिन 1 अक्टूबर, 2021 को “Digital Equity for All Ages” थीम के तहत मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने भी 2021-2030 को “Decade of Healthy Aging” घोषित किया है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.2
कामधेनु दीपावली 2021 अभियान
केंद्रीय मत्स्य एवं पशुपालन मंत्री श्री पुरुषोत्तम रुपाला की उपस्थिति में आज कामधेनु दीपावली 2021 पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया जिसमें भारत के सभी राज्यों के गौ उद्यमियों ने भाग लिया। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के प्रथम अध्यक्ष, पूर्व केंद्रीय मंत्री गौ व्रती डॉ. वल्लभभाई कथीरिया के मार्गदर्शन में 100 करोड़ गोमय दीये प्रज्ज्वलित करने के लिए और गोमय लक्ष्मी गणेश की मूर्ति से घर-घर में दीपावली पूजन सुनिश्चित करने के लिए ‘कामधेनु दीपावली 2021 अभियान’ शुरू किया गया है। भारत के सभी राज्यों में इसके लिए बैठक और प्रशिक्षण का कार्यक्रम आरम्भ कर दिया गया है।
कामधेनु दीपावली, देशी गाय को दूध, दही, घी के साथ-साथ गौमूत्र तथा गोबर के माध्यम से भी आर्थिक रूप से उपयोगी बनाने का अभियान है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पंचगव्य से 300 से ज्यादा गौ उत्पादों का निर्माण शुरू हो चुका हैं। इसके तहत दिवाली उत्स्व के लिए गोबर आधारित दीयों, मोमबत्तियों, धूप, अगरबत्ती, शुभ-लाभ, स्वस्तिक, साम्बरानी कप, हार्डबोर्ड, वॉल-पीस, पेपर-वेट, हवन सामग्री, भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों का निर्माण शुरू हो चुका है।
गौपालक और गौ-उद्यमियों द्वारा बनाये गए गोमय दीये, चाइनीच और केमिकल्स युक्त हानिकारक दीयों से बचाएंगे। इको फ्रेंडली दीयों का प्रयोग बढ़ेगा। पिछले वर्ष करोड़ों गोमय दीये भारत से सभी राज्यों में बनाये गए थे। इस बार कामधेनु दीपावली को और बड़े पैमाने पर मनाने का निश्चय किया गया। हजारों गाय आधारित उद्यमियों को व्यवसाय के अवसर पैदा करने के अलावा गाय के गोबर से बने उत्पादों के उपयोग से स्वच्छ वातावरण भी मिलेगा। यह गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा। यह अभियान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ की परिकल्पना और स्टार्ट अप अभियान और आत्मनिर्भर भारत अभियान, महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देगा। चीन निर्मित दीयों का पर्यावरण अनुकूल विकल्प प्रदान करके यह अभियान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ की परिकल्पना और अभियान को बढ़ावा देगा और पर्यावरणीय क्षति को कम करते हुए स्वदेशी आंदोलन को भी प्रोत्साहन देगा।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.3
‘State Nutrition Profile’
नीति आयोग ने 1 अक्टूबर, 2021 को अपनी “राज्य पोषण प्रोफ़ाइल” (State Nutrition Profile) रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में, 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने पोषण प्रोफाइल प्राप्त किए।
मुख्य बिंदु
State Nutrition Profile (SNP) रिपोर्ट में महत्वपूर्ण डेटा का एक व्यापक संकलन शामिल है जो नीतिगत निर्णयों को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है और उस क्षेत्र में अनुसंधान की सुविधा प्रदान कर सकता है। यह मधुमेह और उच्च रक्तचाप के अलावा वेस्टिंग (ऊंचाई के लिए कम वजन), स्टंटिंग, कम वजन, अधिक वजन और एनीमिया के आंकड़ों का विश्लेषण करता है।
रिपोर्ट
- SNP को नीति आयोग ने यूनिसेफ, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI), भारतीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (IIPS) और आर्थिक विकास संस्थान (IEG) के सहयोग से तैयार किया है।
- यह राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के दौर 3, 4 और 5 के आधार पर पोषण परिणामों, तत्काल और अंतर्निहित निर्धारकों और हस्तक्षेपों के बारे में व्यापक जानकारी देता है।
- इस रिपोर्ट में देश के सबसे अच्छे और सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले जिलों, सबसे अधिक बोझ वाले जिलों के साथ-साथ शीर्ष कवरेज वाले जिलों पर प्रकाश डाला गया है।
- इसने बच्चों, महिलाओं और पुरुषों के लिए महत्वपूर्ण बातों को शामिल किया है और साथ ही उन क्षेत्रों की पहचान की है जहां राज्य और सुधार कर सकता है।
IFPRI
IFPRI की स्थापना 1976 में हुई थी और इसका अर्थ “अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान” (International Food Policy Research Institute) है। यह एक गैर-लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र है जिसका मुख्यालय वाशिंगटन में है। यह वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट जारी करता है।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.2