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Current Affair 31 May 2021

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CURRENT AFFAIRS – 31st MAY 2021

नई कृषि प्रौद्योगिकियों एवं किस्मों एवंकृतज्ञ

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री श्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है कि प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व में भारत सरकार की सफलता के 7 वर्ष पूरे होने के साथ-साथ प्रधानमंत्री जी के दृढ़ संकल्प के परिणामस्वरूप भारत मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है। आमजन की भागीदारी देश के विकास में बढ़ रही है और हर व्यक्ति के मन में एक जज्बा उत्पन्न हुआ है कि उसे भी अपनी योग्यता, दक्षता, ऊर्जा से देश के लिए कोई ना कोई काम करना चाहिए। श्री तोमर ने कहा कि हमारे देश में खाद्यान्न की प्रचुरता है, यह भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुसंधान, किसानों के परिश्रम व सरकार की कृषि हितैषी नीतियों का सद्परिणाम है। हमें दलहन, तिलहन व बागवानी फसलों के क्षेत्र में और काम करने की जरूरत है। दलहन व तिलहन में आत्मनिर्भरता के लिए नई नीति आएंगी। प्रधानमंत्री जी ने इस बात पर बल दिया है। उनका कहना है कि आयात पर हमारी निर्भरता कम हो तथा हम कृषि उत्पादों का निर्यात ज्यादा से ज्यादा बढ़ाएं। बीजों की नई किस्मों का इसमें विशेष योगदान होगा।

केंद्रीय मंत्री श्री तोमर ने यह बात सोमवार को आईसीएआर की उपलब्धियों, प्रकाशनों, नई कृषि प्रौद्योगिकियों एवं कृषि फसलों की नई किस्मों की लॉन्चिंग तथा “कृतज्ञ” (KRITAGYA) है काथॉन के विजेताओं को पुरस्कार वितरण के कार्यक्रम में कही। “कृतज्ञ” में प्रतियोगियों ने कृषि व सम्बद्ध क्षेत्रों के लिए एक से बढ़कर एक उपयोगी संरचनाएं सृजित कर अपनी योग्यता व क्षमता को साबित किया है।

मुंहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD) से देश के पशुओं को मुक्‍त कराने के लिए आईसीएआरसीरो-मॉनीटरिंग के माध्‍यम से महत्‍वपूर्ण सेवा कर रहा है। इसमें और तेजी लाने की आवश्‍यकता है। केवीके ने 5 करोड़ से ज्यादा किसानों तक अपनी पहुंच बनाई है, इसे भी बढ़ाने की जरूरत है। कृषि शिक्षा महत्वपूर्ण पहलू है, जिसके माध्यम से हमें कृषि क्षेत्र का समग्र विकास करना है। केंद्रीय मंत्री ने आईसीएआर को अंतरराष्‍ट्रीय राजा भूमिबोल विश्‍व मृदा दिवस पुरस्‍कार-2020; विश्‍व बौद्धिक सम्‍पदा संगठन (डब्‍ल्‍यूआईपीओ), जेनेवा व संयुक्‍त राष्‍ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा सम्‍मान व डिजीटल इंडिया पुरस्‍कार-2020 प्राप्‍त होने पर बधाई दी।

“कृतज्ञ” हैकाथॉन संबंधी जानकारी-भारत की कृषि शिक्षा और आधुनिक बनेव प्रतिभाओं को पूरा अवसर मिले, इसलिए राष्ट्रीय कृषि उच्चतर शिक्षा परियोजना (NAHEP) केतहत”कृतज्ञ”कृषि है काथॉन का आयोजन किया गया। महिलाओं के अनुकूल उपकरणों पर विशेष जोर देने के साथ-साथ खेती में मशीनीकरण को बढ़ाने के लिए संभावित प्रौद्योगिकी समाधानों को बढावा देना इस आयोजन का उद्देश्य था। विश्वविद्यालयों, तकनीकीव अन्य संस्थानों के छात्रों, संकायों और नवप्रवर्तकों/उद्यमियों/स्टार्टअप्स ने टीमों के रूप में इसमें भाग लिया। इनमें से हरेक में चार प्रतिभागी थे। कुल 784 टीमों ने भाग लिया, जिनमें मुख्यतः आईआईटी, कृषि व अन्य वि.वि. एवं अनुसन्धान संस्थान शामिल थे। प्रस्तावों का मूल्यांकन विशेषज्ञों ने किया। 5 लाख रू. का प्रथम पुरस्कार गोवा वि.वि. टीम को मिला, जिसने नारियल/तेल ताड़ की कटाई के लिए ड्रोन बनाया। 3 लाख रू. का द्वितीय पुरस्कार ICAR-CIAI, भोपाल को प्राप्त हुआ, जिसने पौधों की बीमारियों का वास्तविक समय में पता लगाने, कीटनाशकों का साइट-विशिष्ट अनुप्रयोग करने के लिए कंपन संकेत के प्रयोग का सुझाव दिया। 1 लाख रू. का तृतीय पुरस्कार दो टीमों को संयुक्त रूप से दिया गया इनमें बैंगलुरू की टीम ने बैटरीचलित पोर्टेबलकोकून हार्वेस्टर, जो एक हाथ से संचालित तंत्र है, बनाया। वहीं, तमिलनाडु जयललिता फिशरीज यूनिवर्सिटी की टीम को यह पुरस्कार सेमी-ऑटोमैटिक कटर, जो सूखी मछली को काटते समय मछुआरे की मुश्किलों को कम करता है, बनाने के लिए मिला।

कृषि फसलों की नई किस्में व अन्य उपलब्धियां –

फसल विज्ञान प्रभागने वर्ष 2020-21 के दौरान एआईसीआरपी/एआईएनपी के माध्यम से 562 नई उच्च उपज देने वाली कृषि फसलों की किस्में (अनाज 223, तिलहन 89, दलहन 101, चारा फसलें 37, रेशेदार फसलें 90, गन्ना 14 और संभावित फसलें 8) जारी की हैं। विशेष गुणों वाली ये 12 किस्में है- जौ-1 (उच्च माल्ट गुणवत्ता), मक्का-3 (उच्च लाइसिन, ट्रिप्टोफोन एवं विटामिन ए, दानों में उच्च मिठास, उच्च फुलाव), सोयाबीन-2 (उच्च ओलीक अम्ल), चना-2 (सूखा सहनशील, उच्च प्रोटीन), दाल-3 (लवणता सहनशील), अरहर-1 (बारानी परिस्थितियों के लिए)।

बागवानी प्रभाग द्वारा देश की विभिन्न कृषि जलवायुवीय दशाओं में अधिक उत्पादकता के माध्यम से किसानों की आय में अभिवृद्धि के लिए बागवानी फसलों की 89 प्रजातियों की पहचान की गई है। ये मुख्य प्रजातियां तथा तकनीक है – संकर बैंगन ‘काशी मनोहर’, जिसमें प्रति पौधा 90-100 फल, प्रति फल भार 90 से 95 ग्राम, उत्पादकता 625-650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अंचल VII (मध्य प्रदेश एवं महाराष्ट्र) में उगाने के लिए संस्तुत है। विट्ठल कोको संकर-6, जिसमें उत्पादकता : 2.5 से 3 किग्रा शुष्क बीज/वृक्ष; बीज में वसा : 50 to 55% काला फली सड़्न रोग एवं चाय मशक मत्कुण के प्रति सहनशील केरल में उगाने के लिए संस्तुत है। शिटाके खुम्ब की शीघ्र उत्पादन तकनीक का विकास किया गया है, जिसके लिए आईसीएआर ने पेटेंट लिया है। इस तकनीकी से 45-50 दिनों की अवधि में 110-130% की जैव क्षमता के साथ पैदावार ली जा सकती है। साधारणतः शिटाके खुम्ब की पैदावार की अवधि 90-120 दिन होती है।

SOURCE-PIB

 

भारत की पहली स्वदेशी डिवाइस – “ऐम्बिटैगविकसित की

पंजाब में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रोपड़ (आईआईटी रोपड़) ने अपनी तरह की पहली अत्याधुनिक आईओटी डिवाइस-ऐम्बिटैग का विकास किया है, जो खराब होने वाले उत्पादों, वैक्सीन और यहां तक कि शरीर के अंगों व रक्त की ढुलाई के दौरान उनके आसपास का रियल टाइम तापमान दर्ज करती है। दर्ज किए गए इस तापमान से यह जानने में सहायता मिलती है कि दुनिया में कहीं भी भेजा गया कोई सामान तापमान में अंतर के कारण अभी तक उपयोग के योग्य है या खराब हो गया है। कोविड-19 वैक्सीन, अंगों और रक्त के परिवहन सहित वैक्सीन के लिए यह जानकारी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

एडब्ल्यूएडीएच परियोजना समन्वयक डॉ. सुमन कुमार ने कहा, “यूएसबी के आकार की डिवाइस, एम्बिटैग एक बार रिचार्ज होकर पूरे 90 दिन के लिए किसी भी टाइम जोन में –40 से +80 डिग्री तक के वातावरण में निरंतर तापमान दर्ज करती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध इस तरह की डिवाइस सिर्फ 30-60 दिनों तक की अवधि के लिए तापमान दर्ज करती हैं।” उन्होंने कहा कि जब तापमान पूर्व निर्धारित सीमा से ऊपर जाता है तो यह एक अलर्ट जारी करती है। दर्ज किए गए डाटा को किसी कंप्यूटर को यूएसबी से जोड़कर हासिल किया जा सकता है। डिवाइस को प्रौद्योगिकी नवाचार हब – एडब्ल्यूएडीएच (कृषि एवं जल तकनीकी विकास हब) और उसके स्टार्टअप स्क्रैचनेस्ट के तहत विकसित किया गया है। एडब्ल्यूएडीएच भारत सरकार की एक परियोजना है। प्रो. कुमार ने कहा कि यह डिवाइस आईएसओ 13485 : 2016, ईएन 12830 : 2018, सीई और आरओएचएस से प्रमाणित है।

सब्जियों, मीट और डेयरी उत्पादों सहित खराब होने वाले उत्पादों के अलावा यह परिवहन के दौरान जानवरों के सीमेन के तापमान की भी निगरानी कर सकता है। स्क्रैचनेस्ट के संस्थापकों और निदेशकों में से एक अमित भट्टी ने कहा, “अभी तक, ऐसी डिवाइसों को भारत में सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग, आयरलैंड और चीन जैसे दूसरे देशों से बड़ी मात्रा में आयात किया जा रहा है।”

यह डिवाइस कोविड वैक्सीन के उत्पादन केंद्र से देश के किसी भी कोने में स्थित टीकाकरण केंद्र तक ढुलाई में लगी सभी कंपनियों को 400 रुपये की उत्पादन लागत पर उपलब्ध होगी। यह डिवाइस इस अभूतपूर्व महामारी में देश के लिए हमारी तरफ से छोटा सा योगदान है और इससे आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा मिलता है।

SOURCE-PIB

 

विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2021

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने आज विश्व तंबाकू निषेध दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस वर्ष “तम्बाकू निषेध दिवस” का थीम ”कमिट टू क्विट” रखा गया है।

“भारत में 13 लाख से अधिक मौतें हर साल तंबाकू के उपयोग की वजह से होती हैं, प्रतिदिन के लिए यह 3500 मौतें हैं, जिससे बहुत अधिक सामाजिक-आर्थिक बोझ पड़ता है। इसके कारण होने वाली मौतों और बीमारियों के अलावा, तंबाकू देश के आर्थिक विकास को भी प्रभावित करता है।” उन्होंने आगे यह भी बताया कि धूम्रपान करने वालों को कोविड-19 के चलते गंभीर बीमारी से होने वाली मौतों को लेकर 40-50 फीसदी अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अध्ययन “भारत में तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों और मौतों की आर्थिक लागत” के अनुसार यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में तंबाकू के उपयोग से होने वाली बीमारियों और मौतों का आर्थिक बोझ 1.77 लाख करोड़ रुपये था, जो जीडीपी का लगभग 1 फीसदी है।

डॉ. हर्षवर्धन ने कानूनी और प्रशासनिक साधनों के माध्यम से तंबाकू उपभोग करने वाली आबादी में लगातार कमी आने के देश के लंबे इतिहास को रेखांकित किया। उन्होंने आगे कहा, “भारत में तंबाकू नियंत्रण कानून ‘सिगरेट अधिनियम, 1975’ से पुराना है, जो विज्ञापन में और डिब्बों व सिगरेट के पैकेटों पर वैधानिक स्वास्थ्य चेतावनियों को प्रदर्शित करना अनिवार्य करता है।”

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने अपने करियर के हर कदम पर तंबाकू के खिलाफ अपनी लंबी लड़ाई को याद किया। उन्होंने बताया, “दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के रूप में, मुझे ‘दिल्ली धूम्रपान निषेध और धूम्रपान न करने वालों के स्वास्थ्य संरक्षण अधिनियम’ की कल्पना करने का अवसर मिला और इसे 1997 में दिल्ली विधानसभा में पारित किया गया। यही अधिनियम 2002 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाने वाले केंद्रीय अधिनियम का मॉडल बन गया। इसके बाद 2003 में व्यापक तंबाकू नियंत्रण कानून [सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद (विज्ञापन का निषेध और व्यापार, वाणिज्य, उत्पादन, आपूर्ति और वितरण का विनियमन) अधिनियम – सीओटीपीए, 2003] बनाया गया, जिसका उद्देश्य धूम्रपान मुक्त सार्वजनिक स्थान उपलब्ध कराना और तंबाकू के विज्ञापन व प्रचार पर प्रतिबंध लगाना है।” डॉ. हर्षवर्धन के योगदान को मान्यता देते हुए इस ऐतिहासिक प्रयास के लिए उन्हें दुनिया भर में प्रशंसा भी मिली। उन्होंने एक तंबाकू मुक्त समाज के लिए काम करने को लेकर ब्राजील के रियो-डी-जेनेरियो में आयोजित एक समारोह में मई-1998 में डब्ल्यूएचओ महानिदेशक का प्रशस्ति पदक व प्रमाण पत्र प्राप्त किया।

उन्होंने इस पर संतोष व्यक्त किया कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के लगातार प्रयासों से, तंबाकू के उपयोग की व्यापकता 2009-10 में 34.6 फीसदी से घटकर 2016-17 में 28.6 फीसदी हो गई है।

तंबाकू के उपयोग को रोकने में सरकार की दृढ़ राजनीतिक प्रतिबद्धता पर उन्होंने कहा, “जब मैंने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के रूप में काम संभाला, उस समय मैंने ई-सिगरेट के खतरे से निपटने का फैसला किया और ‘इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट निषेध विधेयक, 2019’ की कल्पना की, जो ई-सिगरेट के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन को प्रतिबंधित करता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के अनुकरणीय नेतृत्व ने विभिन्न हितधारकों को आश्वस्त किया और 2019 में संसद में इस विधेयक को सुचारू रूप से पारित करने की अनुमति दी। सरकार के निरंतर प्रयासों ने देश को ई-सिगरेट के खतरे से बचाने में योगदान दिया है, जो किशोर आबादी को बुरी तरह प्रभावित कर सकता था।”

डॉ. हर्षवर्धन ने तम्बाकू क्विटलाइन सेवाओं के लिए कॉल के प्रसार के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा, “हमारे पास टोल फ्री क्विट लाइन सेवाएं – 1800-112-356 है, जिसे 2016 में शुरू किया गया था और इसे सितंबर, 2018 में विस्तारित किया गया है। क्विट लाइन सेवाएं अब 4 केंद्रों से 16 भाषाओं और अन्य स्थानीय बोलियों में उपलब्ध हैं। विस्तार से पहले क्विट लाइन पर कॉल की संख्या 20,500 प्रति माह थी जो विस्तार के बाद बढ़कर 2.50 लाख कॉल प्रति माह हो गई है।” उन्होंने लोगों से तंबाकू और तंबाकू उत्पादों का उपयोग छोड़ने की अपनी अपील दोहराई।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने तंबाकू नियंत्रण के संबंध में राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति – 2017 के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों पर बात की। उन्होंने कहा, “हमने 2025 तक तंबाकू के उपयोग को 30 फीसदी तक कम करने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। हमारे तंबाकू नियंत्रण लक्ष्य, गैर-संक्रमणकारी बीमारियों के नियंत्रण के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए तैयार किए गए हैं और ये एसडीजी के तहत निर्धारित लक्ष्यों के अनुरूप हैं। हम जल्द ही विद्यालय जाने वाले 13-15 साल के छात्रों के बीच किए गए वैश्विक युवा तंबाकू सर्वेक्षण के चौथे दौर के निष्कर्ष जारी करेंगे।”

उन्होंने अब तक तंबाकू के उपयोग को कम करने से जो लाभ प्राप्त हुआ है, उसके लिए अन्य सभी सहयोगी संगठनों, मंत्रालय के अधिकारियों, जमीनी कार्यकर्ताओं और विशेष रूप से डब्ल्यूएचओ को धन्यवाद दिया। डॉ. हर्षवर्धन ने उनकी सेवाओं को मान्यता देने और स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2021 में तंबाकू नियंत्रण पर काम किया, उसके लिए 2021 में महानिदेशक के विशेष मान्यता पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक को धन्यवाद दिया। प्रत्येक वर्ष, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के लिए छह डब्ल्यूएचओ क्षेत्रों (एएफआरओ, एएमआरओ, ईयूआरओ, डब्ल्यूपीआरओ, ईएमआरओ और एसईएआर) में से प्रत्येक में व्यक्तियों या संगठनों को मान्यता देता है।

SOURCE-PIB

 

आर्टिफिशियल सिनैप्टिक नेटवर्क विकसित

वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण बनाया है जो मानव मस्तिष्क की ज्ञान से संबंधित क्रियाओं की नकल कर सकता है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरह काम करने में पारंपरिक तकनीकों की तुलना में अधिक कुशल है, इस प्रकार कम्प्यूटेशनल गति और ऊर्जा की खपत दक्षता को बढ़ाता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा है, जो ईमेल फिल्टर और संचार में स्मार्ट जवाबों से प्रारंभ होकर कोविड-19 महामारी से लड़ने में सहायता करता है। लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस  सेल्फ-ड्राइविंग ऑटोनॉमस व्हीकल्स, स्वास्थ्य सेवा के लिए संवर्धित रियलिटी, ड्रग डिस्कवरी, बिग डेटा हैंडलिंग, रियल-टाइम पैटर्न/इमेज पहचान, रियल-वर्ल्ड की समस्याओं को हल करने जैसा बहुत कुछ कर सकता है। इनका अहसास एक न्यूरोमॉर्फिक उपकरण की सहायता से किया जा सकता है जो मस्तिष्क से प्रेरित कुशल कंप्यूटिंग क्षमता प्राप्ति के लिए मानव मस्तिष्क ढांचे की नकल कर सकता है। मानव मस्तिष्क में लगभग सौ अरब न्यूरॉन्स होते हैं जिनमें अक्षतंतु और डेंड्राइट होते हैं। ये न्यूरॉन्स बड़े पैमाने पर एक दूसरे के साथ अक्षतंतु और डेंड्राइट के माध्यम से जुड़ते हैं, जो सिनैप्स नामक विशाल जंक्शन बनाते हैं। माना जाता है कि यह जटिल जैव-तंत्रिका नेटवर्क ज्ञान संबंधी बेहतर क्षमताएं देता है।

सॉफ्टवेयर-आधारित कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क (एएनएन) को खेलों (अल्फागो और अल्फाज़ेरो) में मनुष्यों को हराते हुए या कोविड-19 स्थिति को संभालने में मदद करते हुए देखा जा सकता है। लेकिन पावर-हंग्री  (मेगावाट में) वॉन न्यूमैन कंप्यूटर आर्किटेक्चर उपलब्ध सीरियल प्रोसेसिंग के कारण एएनएन के प्रदर्शन को धीमा कर देता है, जबकि मस्तिष्क समानांतर प्रसंस्करण के माध्यम से केवल 20 वाट्स की खपत करता है। यह अनुमान लगाया गया है कि मस्तिष्क शरीर की ऊर्जा का  कुल का 20% खपत करता है। कैलोरी के  रूपांतरण से यह 20 वाट है जबकि परंपरागत कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म बुनियादी मानव ज्ञान  की नकल करने के लिए मेगावाट, यानी 10 लाख वाट ऊर्जा की खपत करते हैं।

इस बाधा को दूर करने के लिए एक हार्डवेयर आधारित समाधान में एक कृत्रिम सिनैप्टिक उपकरण शामिल होता है, जो ट्रांजिस्टर के विपरीत, मानव मस्तिष्क सिनैप्स के कार्यों का अनुकरण कर सकता है। वैज्ञानिक लंबे समय से एक सिनैप्टिक डिवाइस विकसित करने का प्रयास कर रहे थे जो बाहरी सपोर्टिंग (सीएमओएस) सर्किट की सहायता के बिना जटिल मनोवैज्ञानिक व्यवहारों की नकल कर सकता है।

इस चुनौती के समाधान के लिए भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत काम करने वाली स्वायत्त संस्था जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने एक सरल स्व-निर्माण विधि के माध्यम से (उपकरण संरचना गर्म करते समय स्वयं द्वारा बनाई जाती है) जैविक तंत्रिका नेटवर्क जैसा एक कृत्रिम सिनैप्टिक नेटवर्क (एएसएन) बनाने का एक नया दृष्टिकोण तैयार किया। यह उपलब्धि ‘मेटिरियल्स होराइजन्स’ पत्रिका में हाल में प्रकाशित हुई है।

फैब्रिकेशन विधि से न्यूरोमॉर्फिक एप्लीकेशनों के लिए एक सिनैप्टिक उपकरण विकसित करने के उद्देश्य सेजेएनसीएएसआर की टीम ने जैविक प्रणाली की तरह न्यूरोनल निकायों और एक्सोनल  नेटवर्क कनेक्टिविटी की नकल करने वाली मेटिरियल सिस्टम की खोज की। ऐसी  संरचना साकार करने के लिए उन्होंने पाया कि एक स्व-निर्माण प्रक्रिया आसान, मापनीय और लागत प्रभावी थी।

अपने शोध में जेएनसीएएसआर टीम ने सिल्वर (एजी) धातु को शाखायुक्त द्वीपों और नैनोकणों को नैनोगैप पृथक्कीकरण के साथ जैव न्यूरॉन्स और न्यूरोट्रांसमीटर के समान बनाने के लिए तैयार किया जहां डीवेटिंग डिस्कनेक्ट/पृथक द्वीपों या गोलाकार कणों में  फिल्म के टूटने की प्रक्रिया निरंतर होती है। ऐसे आर्किटेक्चर के साथ उच्च किस्म की अनेक ज्ञानात्मक  गतिविधियों का अनुकरण किया जाता है। फैब्रिकेटेड कृत्रिम सिनैप्टिक नेटवर्क (एएसएन) में सिल्वर (एजी) एग्लोमेरेट्स नेटवर्क शामिल हैं, जो अलग-अलग नैनोकणों से भरे नैनोगैप्स द्वारा पृथक किया गया है। उन्होंने पाया कि उच्च तापमान पर एजी फिल्म को गीला करने से  जैव-तंत्रिका नेटवर्क से मिलते-जुलते नैनोगैप्स द्वारा अलग किए गए द्वीप संरचनाओं का निर्माण हुआ।

प्रोग्राम किए गए विद्युत संकेतों का एक रियल वर्ल्ड स्टिमुलस के रूप में उपयोग करते हुए इस वर्गीकृत संरचना ने सीखने की विभिन्न गतिविधियों जैसे कि अल्पकालिक स्मृति (एसटीएम), दीर्घकालिक स्मृति (एलटीएम), क्षमता, अवसाद, सहयोगी शिक्षा, रुचि-आधारित शिक्षा, पर्यवेक्षण का अनुकरण किया। अत्यधिक सीखने के कारण सिनैप्टिक थकान और इसकी आत्म-सुधार की भी नकल की गई। उल्लेखनीय रूप से इन सभी व्यवहारों का अनुसरण एकल मेटिरियल सिस्टम में बाहरी सीएमओएस सर्किट की सहायता के बिना किया गया था। पावलोव के कुत्ते के व्यवहार का अनुकरण करने के लिए एक प्रोटोटाइप किट विकसित की गई है जो न्यूरोमॉर्फिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रति इस उपकरण की क्षमता को दिखाती है। जेएनसीएएसआर टीम ने जैविक तंत्रिका पदार्थ जैसी एक नैनोमटेरियल का आयोजन करके उन्नत न्यूरोमॉर्फिक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को पूरा करने में आगे  कदम बढ़ाया है।

SOURCE-PIB

 

एस्परगिलोसिस फंगल संक्रमण

कोविड-19 महामारी के खिलाफ देश की लड़ाई और म्यूकोर्मिकोसिस (mucormycosis) के बढ़ते मामलों के बीच गाजियाबाद, मुंबई और गुजरात के डॉक्टरों ने ‘एस्परगिलोसिस’ (Aspergillosis) नामक नई बीमारी के मामले दर्ज किए हैं।

एस्परगिलोसिस क्या है?

एस्परगिलोसिस (Aspergillosis) एक फंगल संक्रमण, फंगल विकास या एस्परगिलस फंगस के कारण होने वाली एलर्जिक रिएक्शन है। यह फंगस घर के अंदर और बाहर भी पाया जाता है। यह सड़ती हुई वनस्पति या मृत पत्तियों पर रहता है। यह फंगल इंफेक्शन ब्लैक फंगस (black fungus) जितना घातक तो नहीं है लेकिन यह जानलेवा हो सकता है।

लोग इस संक्रमण से कैसे संक्रमित होते हैं?

लोग सांस लेकर पर्यावरण से सूक्ष्म “एस्परगिलस स्पोर्स” (aspergillus spores) के संपर्क में आ सकते हैं। हालांकि लोग रोजाना फंगस के संपर्क में आते हैं लेकिन कभी बीमारी का शिकार नहीं होते। क्योंकि, एस्परगिलोसिस फेफड़ों की बीमारी या कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली से पीड़ित लोगों को संक्रमित करता है। यह अंगों में संक्रमण और अन्य एलर्जिक रिएक्शन  का कारण बनता है।

एस्परगिलोसिस के प्रकार (Types of Aspergillosis)

एस्परगिलोसिस 5 प्रकार के होते हैं, अर्थात् allergic bronchopulmonary aspergillosis, aspergilloma (fungus ball), allergic Aspergillus sinusitis, chronic pulmonary aspergillosis और invasive aspergillosis। लेकिन, COVID-19 रोगियों में दुर्लभ साइनस पल्मोनरी एस्परगिलोसिस (sinus pulmonary aspergillosis) भी पाया जा रहा है।

Pulmonary Aspergillosis के लक्षण क्या हैं?

वजन कम होना, खांसी, खांसी में खून आना, सांस लेने में तकलीफ और थकान इसके कुछ लक्षण हैं।

नैनो यूरिया

भारतीय किसान उर्वरक कोआपरेटिव (Indian Farmers Fertiliser Cooperative – IFFCO) जून 2021 में नाइट्रोजन उर्वरक आधारित नैनो यूरिया बाजार में लॉन्च करेगा।

मुख्य बिंदु

एक 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया सामान्य यूरिया के 45 किलोग्राम के बराबर है। 500 मिली यूरिया की कीमत करीब 240 रुपये है। इसके अलावा, इससे किसानों की लागत में 15% की कमी आएगी और खेती से उपज में लगभग 20% की वृद्धि होगी।

नैनो यूरिया (Nano Urea) क्या है?

फसलों के पोषक तत्वों की दक्षता में सुधार के लिए नैनो-प्रौद्योगिकी (nano-technology) से उत्पादित यूरिया को नैनो यूरिया कहा जाता है। नैनो यूरिया का उत्पादन दो तरह से होता है :

सबसे पहले क्विनहाइड्रोन (quinhydrone) मिश्रित अल्कोहल तैयार किया जाता है।

फिर, इस मिश्रण को नैनो यूरिया बनाने के लिए कैल्शियम साइनामाइड ग्रेन्यूल्स (calcium cyanamide granules) पर फैलाया जाता है।

भारत में इसकी अनुमति कब दी गई थी?

नवंबर, 2020 में भारत में नैनो यूरिया के व्यावसायिक उपयोग की अनुमति दी गई थी।

नैनो यूरिया का महत्व

भारत प्रति वर्ष 350 लाख मीट्रिक टन यूरिया का उपयोग करता है। नैनो-यूरिया के उपयोग से यह खपत आधी हो जाएगी और सरकार द्वारा दी जाने वाली लगभग 600 करोड़ रुपये की सब्सिडी की बचत होगी। साथ ही, यह यूरिया के आयात पर भारत की निर्भरता को कम करेगा।

भारतीय किसान उर्वरक कोआपरेटिव लिमिटेड (Indian Farmers Fertiliser Cooperative Limited – IFFCO)

इफको उर्वरकों के निर्माण और विपणन में शामिल बहु-राज्य सहकारी समिति है। इसकी स्थापना 1967 में हुई थी और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसमें 57 सदस्य सहकारी समितियां शामिल हैं। इस प्रकार, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद पर कारोबार के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा कोआपरेटिव है। यूरिया में इसकी 19% बाजार हिस्सेदारी है और जटिल उर्वरकों में 29% बाजार हिस्सेदारी है, जो इसे भारत का सबसे बड़ा उर्वरक निर्माता बनाती है।

SOURCE-GK TODAY

 

‘सजगपोत

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA), अजीत डोभाल (Ajit Doval) ने भारतीय तटरक्षक अपतटीय गश्ती पोत सजग (Sajag) को कमीशन किया है। यह समुद्री हितों की रक्षा के लिए राष्ट्र को समर्पित किया गया था।

मुख्य बिंदु

ऑफशोर पेट्रोल वेसल सजग का निर्माण गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (Goa Shipyard Limited) द्वारा किया गया है, जिसे अत्याधुनिक मशीनरी, नवीनतम तकनीक सेंसर और उपकरणों के साथ समुद्री सशस्त्र बलों के लिए स्वदेशी रूप से विकसित जहाजों के लिए NSA द्वारा सराहा गया था।

पैट्रोल  नाव

यह एक छोटा नौसैनिक पोत है जिसे तटीय रक्षा, आव्रजन कानून-प्रवर्तन, सीमा सुरक्षा, खोज और बचाव कार्य के लिए डिज़ाइन किया गया है। उन्हें नौसेना, तट रक्षक, पुलिस बल या सीमा शुल्क द्वारा संचालित किया जा सकता है और समुद्री या मुहाना या नदी के वातावरण के लिए कमीशन किया जा सकता है। वे आमतौर पर सीमा सुरक्षा भूमिकाओं में उपयोग किए जाते हैं जैसे कि एंटी-पायरेसी, एंटी-स्मगलिंग, मत्स्य पालन गश्त और आव्रजन कानून प्रवर्तन इत्यादि।

गश्ती नाव का वर्गीकरण

पैट्रोल बोट (Patrol Boat) को तटवर्ती गश्ती जहाजों (IPV) और अपतटीय गश्ती जहाजों (OPV) के रूप में वर्गीकृत किया गया है। वे छोटे आकार के युद्धपोत हैं और इनमें फ़ास्ट अटैक क्राफ्ट, मिसाइल बोट्स और टारपीडो बोट्स शामिल हैं। अपतटीय गश्ती पोत (Offshore patrol vessels) नौसेना में सबसे छोटा जहाज है। हालांकि, वे बड़े और समुद्र में चलने योग्य हैं जो तट से दूर की गश्त के लिए पर्याप्त हैं।

SOURCE-GK TODAY

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