Current Affairs – 4 October, 2021
जापान के नए प्रधानमंत्री महामहिम किशिदा फुमियो
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने महामहिम किशिदा फुमियो को जापान के नए प्रधानमंत्री के रूप में उनकी नियुक्ति पर बधाई दी है।
अपने एक ट्वीट में, प्रधानमंत्री ने कहा:
“जापान के नए प्रधानमंत्री महामहिम किशिदा फुमियो को बधाई और शुभकामनाएं। मैं भारत और जापान विशेष रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी को और अधिक मजबूत करने तथा हमारे क्षेत्र में और उससे परे शांति व समृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए उनके साथ मिलकर काम करने के लिए उत्सुक हूं।”
जापान
जापान, एशिया महाद्वीप के पूर्व में स्थित देश है। जापान चार बड़े और अनेक छोटे द्वीपों का एक समूह है। ये द्वीप एशिया के पूर्व समुद्रतट, यानि उत्तर पश्चिम प्रशांत महासागर में स्थित हैं। यह पश्चिम में जापान सागर(Sea of Japan) से घिरा है, और उत्तर में ओखोटस्क सागर(Sea of Okhotsk) से लेकर पूर्वी चीन सागर(East China Sea) तक और दक्षिण में ताइवान तक फैला हुआ है।इसके निकटतम पड़ोसी चीन, कोरिया तथा रूस हैं। जापान में वहाँ के मूल निवासियों की जनसंख्या ९८.५% है। बाकी ०.५% कोरियाई, ०.४ % चाइनीज़ तथा ०.६% अन्य लोग है। जापानी अपने देश को निप्पॉन कहते हैं, जिसका मतलब सूर्योदय है। रिंग ऑफ फायर का हिस्सा, जापान ६८५२ द्वीपों के एक द्वीपसमूह में फैला है, जो ३७७,९७५ वर्ग किलोमीटर (१४५,९३७ वर्ग मील) को कवर करता है; पांच मुख्य द्वीप होक्काइडो, होंशू, शिकोकू, क्यूशू और ओकिनावा हैं। जापान की राजधानी टोक्यो है और उसके अन्य बड़े महानगर योकोहामा, ओसाका, नागोया, साप्पोरो, फुकुओका, कोबे और क्योटो (जापान की पूर्ववर्ती राजधानी) हैं।
जापान दुनिया का ग्यारहवां सबसे अधिक आबादी वाला देश है, साथ ही सबसे घनी आबादी वाले और शहरीकृत देशों में से एक है। देश का लगभग तीन-चौथाई भूभाग पहाड़ी है, इसकी १२५.३६ मिलियन की आबादी संकीर्ण तटीय मैदानों पर केंद्रित है। जापान को ४७ प्रशासनिक प्रान्तों और आठ पारंपरिक क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। ग्रेटर टोक्यो क्षेत्र ३७.४ मिलियन से अधिक निवासियों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला महानगरीय क्षेत्र है। बौद्ध धर्म देश का प्रमुख धर्म है और जापान की जनसंख्या में ९६% बौद्ध अनुयायी है।[7][8] यहाँ की राजभाषा जापानी है।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.2
श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री ने स्मरण करते हुये कहा कि श्री श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां 2003 में स्विट्जरलैंड से भारत लाई गई थीं और 2015 में इंग्लैंड से उनकी मरणोपरान्त बहाली का प्रमाणपत्र प्राप्त किया गया था।
प्रधानमंत्री ने अपने कई ट्वीट में कहा हैः
“महान क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि। देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। कृतज्ञ राष्ट्र आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को कभी भुला नहीं पाएगा।
श्यामजी कृष्ण वर्मा को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि।
श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियां 2003 में स्विटजरलैंड से वापस लाने का और 2015 में इंग्लैंड की यात्रा के दौरान उनका मरणोपरान्त बहाली प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अवसर मुझे मिला, जिसे मैं अपने लिये आशीर्वाद मानता हूं। यह जरूरी है कि भारत के युवाओं को उनके साहस और महानता के विषय में जानकारी हो।
श्यामजी कृष्ण वर्मा (जन्म : 4 अक्टूबर 1857 – मृत्यु : 31 मार्च 1930) क्रान्तिकारी गतिविधियों के माध्यम से भारत की आजादी के संकल्प को गतिशील करने वाले अध्यवसायी एवं कई क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत थे। वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-ऐट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं। पुणे में दिये गये उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बना दिया था। श्यामजी कृष्ण वर्मा भी अन्य सभी क्रान्तिकारियों कि तरह आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती और आर्य समाज से अत्यधिक प्रभावित थे। काले पानी कि सजा पाने वाले क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर भी वर्माजी से प्रेरित होकर क्रांतिकारी कार्यो में सम्मिलित हुए। लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंग्लैण्ड जाकर पढ़ने वाले छात्रों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का एक प्रमुख केन्द्र था।
वे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रेरित थे। 1918 के बर्लिन और इंग्लैण्ड में हुए विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था।
1897 में वे पुनः इंग्लैण्ड गये। 1905 में लॉर्ड कर्जन की ज्यादतियों के विरुद्ध संघर्षरत रहे। इसी वर्ष इंग्लैण्ड से मासिक समाचार-पत्र “द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट” निकाला, जिसे आगे चलकर जिनेवा से भी प्रकाशित किया गया। इंग्लैण्ड में रहकर उन्होंने इंडिया हाउस की स्थापना की। भारत लौटने के बाद 1905 में उन्होंने क्रान्तिकारी छात्रों को लेकर इण्डियन होम रूल सोसायटी की स्थापना की।
उस समय यह संस्था क्रान्तिकारी छात्रों के जमावड़े के लिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई। क्रान्तिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा उनके प्रिय शिष्यों में थे। उनकी शहादत पर उन्होंने छात्रवृत्ति भी शुरू की थी। विनायक दामोदर सावरकर ने वर्माजी का मार्गदर्शन पाकर लन्दन में रहकर लेखन कार्य किया था।31 मार्च 1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में वे अपना नश्वर शरीर त्यागकर चले गये। उनका शव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका और वहीं उनकी अन्त्येष्टि कर दी गयी। बाद में गुजरात सरकार ने काफी प्रयत्न करके जिनेवा से उनकी अस्थियाँ भारत मँगवायीं।
अस्थियों का भारत में संरक्षण
वर्माजी का दाह संस्कार करके उनकी अस्थियों को जिनेवा की सेण्ट जॉर्ज सीमेट्री में सुरक्षित रख दिया गया। बाद में उनकी पत्नी भानुमती कृष्ण वर्मा का जब निधन हो गया तो उनकी अस्थियाँ भी उसी सीमेट्री में रख दी गयीं।22 अगस्त 2003 को भारत की स्वतन्त्रता के 55 वर्ष बाद गुजरात के तत्कालीन मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने स्विस सरकार से अनुरोध करके जिनेवा से श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी भानुमती की अस्थियों को भारत मँगाया। बम्बई से लेकर माण्डवी तक पूरे राजकीय सम्मान के साथ भव्य जुलूस की शक्ल में उनके अस्थि-कलशों को गुजरात लाया गया। वर्मा के जन्म स्थान में दर्शनीय क्रान्ति-तीर्थ बनाकर उसके परिसर स्थित श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में उनकी अस्थियों को संरक्षण प्रदान किया।
उनके जन्म स्थान पर गुजरात सरकार द्वारा विकसित श्रीश्यामजी कृष्ण वर्मा मेमोरियल को गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 13 दिसम्बर 2010 को राष्ट्र को समर्पित किया गया। कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है। क्रान्ति-तीर्थ के श्यामजीकृष्ण वर्मा स्मृतिकक्ष में पति-पत्नी के अस्थि-कलशों को देखने दूर-दूर से पर्यटक गुजरात आते हैं
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.1
कश्मीरी अखरोट
कश्मीरी अखरोट की पहली खेप को हाल ही में बडगाम से झंडी दिखाकर रवाना किया गया था। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ (ओडीओपी) पहल के तहत भारत में अखरोट उत्पादन में कश्मीर का 90 प्रतिशत हिस्सा है। 2,000 किलोग्राम अखरोट के साथ एक ट्रक कर्नाटक के बेंगलुरु के लिए रवाना किया गया।
अपनी बेहतर गुणवत्ता और स्वाद के साथ, कश्मीरी अखरोट पोषक तत्वों का एक बड़ा स्रोत हैं और इसलिए दुनिया भर में इसकी व्यापक मांग है। इस उत्पाद के लिए स्थानीय और वैश्विक बाजारों में अपनी जगह बनाने की अपार संभावनाएं हैं।
डीपीआईआईटी की अपर सचिव, सुश्री सुमिता डावरा द्वारा 26 सितंबर, 2021 को झंडी दिखाकर इस व्यापार की सफल शुरूआत की गई थी। इसे जम्मू-कश्मीर व्यापार संवर्धन संगठन (जेकेटीपीओ) के सहयोग से आयोजित किया गया था। जम्मू-कश्मीर के सरकारी उद्योग एवं वाणिज्य के प्रधान सचिव श्री रंजन प्रकाश ठाकुर, कश्मीर की उद्योग निदेशक सुश्री ताजायुन मुख्तार, कश्मीर की बागवानी उप-निदेशक सुश्री खालिदा, जेकेटीपीओ की प्रबंध निदेशक सुश्री अंकिता कार और इन्वेस्ट इंडिया टीम इस अवसर पर उपस्थित थे।
बात को ध्यान में रखते हुए कि कश्मीर अखरोट की उपलब्धता के बावजूद भारत में अखरोट का बड़े स्तर पर आयात किया जा रहा था, ‘ओडीओपी’ टीम ने कश्मीर में गहन बाजार विश्लेषण और हितधारक परामर्श शुरू किया। इसके अलावा, भारत में अखरोट के आयातकों से संपर्क किया गया और दोनों सिरों पर समर्पित सहयोग के माध्यम से, ओडीओपी टीम खरीद को सुविधाजनक बनाने में सक्षम हुई। इस तरह के प्रयास आत्मनिर्भर भारत अभियान को भी बढ़ावा देते हैं। उदाहरण के लिए, इस मामले में बैंगलुरू स्थित आयातक, जो पहले अमरीका से अखरोट खरीद रहे थे, अब आयात लागत के एक हिस्से के बल पर गुणवत्ता वाले अखरोट वितरित करने में सक्षम है।
झंडी दिखाकर रवाना करने के लिए आयोजित कार्यक्रम के साथ-साथ, बडगाम में एक गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से सुझाव मांगे गए। पीएचडीसीसीआई के क्षेत्रीय निदेशक इकबाल फ़याज़ जान, बलदेव सिंह, हिमायूँ वानी, बिलाल अहमद कावूसा, केसीसीआई के अध्यक्ष शेख आशिक, फारूक अमीन और एफसीआईके के अध्यक्ष शाहिद कामिली ने कश्मीर में व्यापार और निर्यात के वातावरण की प्रणाली के संबंध में अपने विचार और अनुभव साझा किए।
बागवानों और व्यापार प्रतिनिधियों ने सुझाव दिया कि आगे बढ़ने के तरीके में क्रेता-विक्रेता की मुलाकातों के माध्यम से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय विपणन, अधिकाधिक कृषिगत तथा हस्तशिल्प/हथकरघा उत्पादों के ई-कॉमर्स ऑनबोर्डिंग के साथ-साथ प्रत्येक जिले के उत्पादों के लिए उत्पाद/योजना जागरूकता पैदा करना शामिल है, जिसका वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की ओडीओपी पहल के तहत समर्थन किया जाएगा।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
‘पेंडोरा पेपर्स’
इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंटरनेशनल जर्नलिस्ट्स (आईसीआईजे) ने 3 अक्टूबर, 2021 को अपने पास 200 से अधिक देशों और इलाकों के धनी अभिजात वर्ग के लोगों के विदेशों में छुपे रहस्यों को उजागर करने वाले 2.94 टेराबाइट डेटा के आंकड़ों के होने का दावा किया है। यह खोजबीन कम या बिना कर वाले क्षेत्राधिकार में नकली (शेल) कंपनियों, ट्रस्टों, फाउंडेशनों और अन्य संस्थाओं को सूचीबद्ध कराने की चाहत रखने वाले धनी व्यक्तियों और निगमों को पेशेवर सेवाएं प्रदान करने वाले 14 अपतटीय सेवा प्रदाताओं के गोपनीय रिकॉर्ड के लीक होने पर आधारित है।
सरकार ने इन घटनाक्रमों पर संज्ञान लिया है। संबंधित जांच एजेंसियां इन मामलों की जांच करेंगी और ऐसे मामलों में कानून के अनुसार उचित कार्रवाई की जाएगी। इन मामलों में कारगर जांच सुनिश्चित करने की दृष्टि से, सरकार प्रासंगिक करदाताओं/संस्थाओं के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए विदेशी क्षेत्राधिकारों से पूरी तत्परता के साथ संपर्क भी करेगी। भारत सरकार एक ऐसे अंतर-सरकारी समूह का हिस्सा भी है, जो इस तरह के रहस्योदघाटन से जुड़े कर- संबंधी जोखिमों से कारगर तरीके से निपटने के लिए सहयोग और अनुभव साझा करना सुनिश्चित करता है।
इस बात पर गौर किया जा सकता है कि आईसीआईजे, एचएसबीसी, पनामा पेपर्स और पैराडाइज पेपर्स के रूप में पहले इसी तरह के रहस्योदघाटन के बाद, सरकार ने उपयुक्त कर और जुर्माना लगाकर काले धन अघोषित विदेशी परिसंपत्तियों एवं आय पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से पहले से ही काला धन (अज्ञात विदेशी आय तथा परिसंपत्ति) एवं कर अधिनियम, 2015 को लागू कर रखा है। पनामा और पैराडाइज पेपर्स में की गई खोजबीन में लगभग 20,352 करोड़ रुपये की अघोषित जमाराशि(15.09.2021 तक की स्थिति के अनुसार) का पता चला है।
मीडिया में अब तक केवल कुछ भारतीयों (कानूनी संस्थाओं के साथ-साथ व्यक्तियों) के नाम सामने आए हैं। यहां तक कि आईसीआईजे की वेबसाइट (www.icij.org) ने भी अभी तक सभी संस्थाओं के नाम और अन्य विवरण जारी नहीं किए हैं। आईसीआईजे की वेबसाइट का कहना है कि ये जानकारियां चरणबद्ध तरीके से जारी की जायेंगी और पेंडोरा पेपर्स की खोजबीन से जुड़े वर्गीकृत आंकड़े आने वाले दिनों में सिर्फ इसके ऑफशोर लीक्स डेटाबेस पर जारी किए जाएंगे।
इसके अलावा, सरकार ने आज निर्देश दिया है कि ‘पेंडोरा पेपर्स’ के नाम से मीडिया में आने वाले पेंडोरा पेपर्स रहस्योद्घाटन से जुड़े मामलों की जांच की निगरानी सीबीडीटी के अध्यक्ष के नेतृत्व में विविध एजेंसियों वाले एक समूह के जरिए की जाएगी। इस समूह में सीबीडीटी, ईडी,भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) और फाइनेंसियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू) के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
क्या है पैंडोरा पेपर्स
दुनिया भर की 14 कंपनियों से मिलीं लगभग एक करोड़ 20 लाख फाइलों की समीक्षा से विश्व के सैकड़ों नेताओं, अरबपतियों, मशहूर हस्तियों, धार्मिक नेताओं और नशीले पदार्थों के कारोबार में शामिल लोगों के उन निवेशों का खुलासा हुआ है, जिन्हें पिछले 25 साल से हवेलियों, समुद्र तट पर बनीं विशेष संपत्तियों, नौकाओं और अन्य संपत्तियों के माध्यम से छुपाकर रखा गया था।
‘इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स’ ने यह रिपोर्ट जारी की, जो 117 देशों के 150 मीडिया संस्थानों के 600 पत्रकारों की मदद से तैयार की गई. इस रिपोर्ट को ‘पेंडोरा पेपर्स’ (भानुमति से पिटारे से निकले दस्तावेज) करार दिया जा रहा है, क्योंकि इसने प्रभावशाली एवं भ्रष्ट लोगों के छुपाकर रखे गए धन की जानकारी दी और बताया है कि इन लोगों ने किस प्रकार हजारों अरब डॉलर की अवैध संपत्ति को छुपाने के लिए विदेश में खातों का इस्तेमाल किया।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.2
सीसीआई ने क्लैरिएंट पिगमेंट्स बिजनेस और ह्यूबैक बिजनेस के
प्रस्तावित विलय को मंजूरी दी
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने क्लैरिएंट पिगमेंट्स बिजनेस और ह्यूबैक बिजनेस के प्रस्तावित विलय को मंजूरी दी, जिसके परिणामस्वरूप अस्तित्व में आने वाले संयुक्त व्यवसाय को संभालने वाली इकाई की कमान एसके कैपिटल पार्टनर्स, एलपी के हाथों में होगी, जबकि ह्यूबैक होल्डिंग जीएमबीएच और क्लैरिएंट एजी के पास अल्पमत हिस्सेदारी होगी।
प्रस्तावित विलय में भारत सहित विभिन्न देशों में कलरेंट्स इंटरनेशनल, कलरेंट्स सॉल्यूशंस और उनकी सहायक कंपनियों द्वारा संचालित कार्बनिक पिगमेंट, पिगमेंट प्रिपरेशन और रंगों के उत्पादन और/या व्यवसायीकरण के व्यवसाय (क्लेरिएंट पिगमेंट्स बिजनेस) और भारत सहित विभिन्न देशों में ह्यूबैक एवं इसकी सहायक कंपनियों द्वारा संचालित जंग संरक्षण पिगमेंट के साथ-साथ कार्बनिक और अकार्बनिक रंग पिगमेंट, हाईब्रिड पिगमेंट और पिगमेंट प्रिपरेशन के उत्पादन, निर्माण और व्यापार के व्यवसाय (ह्यूबैक बिजनेस) का विलय शामिल है। इस विलय को कुछ इस तरह से मंजूरी दी गई है कि विलय के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आने वाले संयुक्त व्यवसाय को संभालने वाली इकाई की कमान अप्रत्यक्ष रूप से एसकेसीपी के हाथों में होगी, जबकि ह्यूबैक और क्लैरिएंट के पास अल्पमत हिस्सेदारी होगी।
क्लैरिएंट विभिन्न अनुप्रयोगों (एप्लिकेशंस) और उद्योगों में उपयोग किए जाने वाले विशेष रसायनों के उत्पादन एवं वितरण में संलग्न है। क्लेरिएंट विश्व स्तर पर इन छह मुख्य व्यवसायों में संलग्न या कार्यरत है : (i) एडिटिव्स; (ii) उत्प्रेरक; (iii) कार्यात्मक खनिज; (iv) औद्योगिक एवं उपभोक्ता विशिष्टताएं; (v) तेल एवं खनन सेवाएं; और (vi) पिगमेंट।
भारत में क्लेरिएंट ने चार सहायक कंपनियों और एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रखी है, जिनमें क्लेरिएंट इंडिया लिमिटेड, क्लेरिएंट केमिकल्स इंडिया लिमिटेड, सूद-केमी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, क्लेरिएंट सर्विसेज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और क्लेरिएंट आईजीएल स्पेशलिटी केमिकल्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं।
ह्यूबैक जंग संरक्षण पिगमेंट के साथ-साथ कार्बनिक एवं अकार्बनिक रंग पिगमेंट, और पिगमेंट प्रिपरेशन की निर्माता कंपनी है। ह्यूबैक अपने उत्पादों को पेंट, प्लास्टिक, स्याही और भवन निर्माण उद्योगों के साथ-साथ अन्य अनुप्रयोगों (एप्लिकेशंस) में उपयोग के लिए आपूर्ति करती है।
भारत में ह्यूबैक ने दो सहायक कंपनियों और एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रखी है, जिनमें ह्यूबैक कलर प्राइवेट लिमिटेड, ह्यूबैक पिगमेंट प्राइवेट लिमिटेड और ह्यूबैक टोयो जेवी शामिल हैं।
लक्स बिडको दरअसल एसकेसीआई वी (एसकेसीपी की एक सहयोगी) के पूर्ण स्वामित्व वाली अप्रत्यक्ष सहायक कंपनी है जिसका गठन प्रस्तावित विलय के लिए किया गया है। एसकेसीपी एक निजी निवेश फर्म है जो विशेष सामग्री, रसायनों और फार्मास्यूटिकल्स क्षेत्रों पर केंद्रित है।
भारत में एसकेसीपी अपनी सहायक कंपनियों के माध्यम से अकार्बनिक पिगमेंट, पिगमेंट प्रिपरेशन और रंगों के उत्पादन और/या बिक्री के व्यवसाय में संलग्न है।
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 (Competition Act, 2002) के प्रवर्तन के लिये उत्तरदायी है। मार्च 2009 में इसे विधिवत रूप से गठित किया गया था।
- राघवन समिति की अनुशंसा पर एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापार व्यवहार. अधिनियम, 1969 (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act- MRTP Act) को निरस्त कर इसके स्थान पर प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 लाया गया।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का उद्देश्य निम्नलिखित के माध्यम से देश में एक सुदृढ़ प्रतिस्पर्द्धी वातावरण तैयार करना है:
- उपभोक्ता, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय संलग्नता के माध्यम से।
- उच्च क्षमता स्तर के साथ एक ज्ञान प्रधान संगठन के रूप में।
- प्रवर्तन में पेशेवर कुशलता, पारदर्शिता, संकल्प और ज्ञान के माध्यम से।
प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम वर्ष 2002 में पारित किया गया था और प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इसे संशोधित किया गया। यह आधुनिक प्रतिस्पर्द्धा विधानों के दर्शन का अनुसरण करता है।
- यह अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करारों और उद्यमों द्वारा अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध करता है तथा समुच्चयों [अर्जन, नियंत्रण की प्राप्ति और ‘विलय एवं अधिग्रहण’ (M&A)] का विनियमन करता है, क्योंकि इनसे भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या इसकी संभावना बनती है।
- संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (Competition Appellate Tribunal- COMPAT) की स्थापना की गई।
- वर्ष 2017 में सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया।
CCI की संरचना
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग वर्तमान में एक अध्यक्ष और दो सदस्यों के साथ कार्यरत है।
- आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय (Quasi-Judicial Body) है जो सांविधिक प्राधिकरणों को परामर्श देता है तथा अन्य मामलों को भी संबोधित करता है। इसका अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होते हैं।
- सदस्यों की पात्रता : अध्यक्ष और प्रत्येक अन्य सदस्य योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाला ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या उच्च न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने की योग्यता रखता हो, या जिसके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारोबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखाकार्य, प्रबंधन, उद्योग, लोक कार्य या प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों में कम-से-कम पंद्रह वर्ष का ऐसा विशेष ज्ञान और वृत्तिक अनुभव हो जो केंद्र सरकार की राय में आयोग के लिये उपयोगी हो।
CCI की भूमिका और कार्य
- प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अभ्यासों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उसे जारी रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
- किसी विधान के तहत स्थापित किसी सांविधिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ के लिये प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों पर परामर्श देना एवं प्रतिस्पर्द्धा की भावना को संपोषित करना, सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना एवं प्रतिस्पर्द्धा के विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करता है :
- उपभोक्ता कल्याण : उपभोक्ताओं के लाभ और कल्याण के लिये बाज़ारों को कार्यसक्षम बनाना।
- अर्थव्यवस्था के तीव्र तथा समावेशी विकास एवं वृद्धि के लिये देश की आर्थिक गतिविधियों में निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना।
- आर्थिक संसाधनों के कुशलतम उपयोग को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा नीतियों को लागू करना।
- क्षेत्रीय नियामकों के साथ प्रभावी संबंधों व अंतःक्रियाओं का विकास व संपोषण ताकि प्रतिस्पर्द्धा कानून के साथ क्षेत्रीय विनियामक कानूनों का बेहतर संरेखण/तालमेल सुनिश्चित हो सके।
- प्रतिस्पर्धा के पक्ष-समर्थन को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाना और सभी हितधारकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लाभों पर सूचना का प्रसार करना ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा की संस्कृति का विकास तथा संपोषण किया जा सके।
- प्रतिस्पर्द्धा आयोग भारत का प्रतिस्पर्द्धा विनियामक (Competition Regulator) है और यह उन छोटे संगठनों के लिये एक स्पर्द्धारोधी प्रहरी/एंटी-ट्रस्ट वाचडॉग (Antitrust Watchdog) के रूप में कार्य करता है जो बड़े कॉर्पोरेशन के समक्ष अपने अस्तित्त्व को बनाए रखने में असमर्थ होते हैं।
- CCI के पास भारत में व्यापार करने वाले संगठनों को नोटिस देने का अधिकार है यदि उसे लगता है कि वे भारत के घरेलू बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम यह गारंटी देता है कि कोई भी उद्यम आपूर्ति के नियंत्रण, खरीद मूल्य के साथ छेड़छाड़ या अन्य प्रतिस्पर्द्धी फर्मों की बाज़ार तक पहुँच को बाधित करने वाले अभ्यासों को अपनाने के रूप में बाज़ार में अपनी ‘प्रभावी स्थिति‘ (Dominant Position) का दुरुपयोग नहीं करेगा।
- अधिग्रहण या विलय के माध्यम से भारत में प्रवेश की इच्छुक किसी विदेशी कंपनी को देश के प्रतिस्पर्द्धा कानूनों का पालन करना होगा।
- एक निश्चित मौद्रिक मूल्य के ऊपर की आस्तियाँ और कारोबार किसी समूह को भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के दायरे में ले आ।
SOURCE-PIB
PAPER-G.S.3
मोलनुपिरवीर
1 अक्टूबर, 2021 को, फार्मास्युटिकल कंपनी “मर्क एंड रिजबैक बायोथेरेप्यूटिक्स” (Merck and Ridgeback Biotherapeutics) ने अपनी एंटी-वायरल दवा मोलनुपिरवीर (Molnupiravir) के चरण-3 परीक्षणों के शुरुआती परिणामों की घोषणा की। इनपरिणामों के अनुसार, मोलनुपिरवीर ने हल्के या मध्यम लक्षणों वाले COVID-19 रोगियों में अस्पताल में भर्ती होने की संभावना को आधा कर दिया है।
क्या मोलनुपिरवीर COVID-19 उपचार के खिलाफ प्रभावी है?
मोलनुपिरवीर के चरण 3 परीक्षणों का पूरा परिणाम अभी भी अज्ञात है। हालांकि, दवा ने अस्पताल में भर्ती-बचाने की दरों को आश्वस्त किया है। कंपनी जल्द ही समीक्षा के लिए यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को डेटा सबमिट करेगी। इसके बाद, इस दवा को आपातकालीन उपयोग प्राधिकरण के लिए अनुमोदित किया जा सकता है।
परीक्षण
इस दवा का परीक्षण अब तक केवल हल्के से मध्यम COVID-19 वाले रोगियों में किया गया है। सकारात्मक परीक्षण के पांच दिनों के भीतर मरीजों का इलाज शुरू कर दिया गया था।
मोलनुपिराविर का कार्य तंत्र
कंपनी द्वारा मोलनुपिरवीर दवा को ‘EIDD 2801’ नाम दिया गया है। एंटीवायरल दवाएं उस प्रक्रिया को बाधित करके काम करती हैं जिसके द्वारा वायरस प्रतियाँ बनाता (replicate) है। मोलनुपिरवीर दवा के मामले में, जब कोशिकाओं (cultured cells) पर परीक्षण किया जाता है, तो यह महत्वपूर्ण एंजाइमों को बदलकर काम करती है जो वायरस के लिए शरीर की मेजबान कोशिकाओं की प्रतिकृति शुरू करने के लिए आवश्यक होते हैं।
SOURCE-GK TODAY
PAPER-G.S.1PRE