Register For UPSC IAS New Batch

Current Affair 5 July 2021

For Latest Updates, Current Affairs & Knowledgeable Content.

Current Affairs – 5 July, 2021

आयुष के लिए ऐतिहासिक दिन

भारतीय परंपरागत चिकित्सा पद्धति के तहत शोध, चिकित्साय शिक्षा से संबंधित पांच पोर्टल जारी कर आयुष मंत्रालय ने सोमवार को एक ऐतिहासिक मुकाम हासिल किया।

इनमें सीटीआरआई में आयुर्वेद डेटासेट, अमर यानी आयुष मैन्यूस्क्रिप्ट्स एडवांस्ड रिपॉज़िटरी, साही यानी शोकेस ऑफ आयुर्वेद हिस्टोरिकल इम्प्रिंट्स, आरएमआईएस यानी रिसर्च मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम और ई्-मेधा पोर्टलों के जारी होने से अब आयुर्वेद की प्राचीन पांडुलिपियों, ग्रंथों तक पहुंच और उनका डिजीटल माध्यम में रखरखाव, आयुर्वेद में शोध आदि को महत्वपूर्ण बढ़ावा मिल सकेगा। आयुष मंत्री श्री किरेन रिजिजू ने पांच पोर्टल विकसित किए जाने को ऐतिहासिक बताया और भारतीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन का जिक्र करते हुए कहा कि देश के लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा की इस महत्वकपूर्ण योजना में आयुष भी बेहद अह़म भूमिका निभाएगा। मंत्री ने कहा कि पुरातत्व विभाग और सीसीआरएस के समन्वय से आयुष के तहत किए जा रहे काम भारतीय परंपरागत ज्ञान में नए आयाम जोड़ रहे हैं। प्रत्येक भारतीय को देश के परंपरागत ज्ञान, विरासत पर गर्व करना चाहिए। सभी पोर्टल के विकास को आयुष मंत्री ने ऐतिहासिक, क्रांतिकारी और अहम उपलब्धि बताया और कहा कि इससे पूरे विश्वि के साथ भारतीय परंपरागत ज्ञान को साझा करना और अधिक आसान होगा।

सीटीआरआई पोर्टल में आयुर्वेद के डेटासेट के जारी होने से अब आयुर्वेद के तहत किए जा रहे क्लीआनिकल परीक्षणों को आयुर्वेद की शब्दावली में ही शामिल किया जा सकेगा। इससे पूरे विश्वी में अब आयुर्वेद के तहत किये जा रहे क्लीदनिकल परीक्षणों को और अधिक आसानी से देखा जा सकेगा। आरएमआईएस पोर्टल को आयुर्वेद में शोध और अनुसंधान से संबंधित समस्याओं के एकल खिड़की व्यवस्था के तहत समाधान के रूप मे विकसित किया गया है। ई मेधा पोर्टल को एनआइसी के ई-ग्रंथालय प्ले टफार्म से जोडा गया है। इससे इस पोर्टल के जरिए भारतीय परंपरागत चिकित्सा शास्त्र की 12 हजार से अधिक किताबों तक शोधकर्ताओं सहित अन्य की पहुंच हो सकेगी। एएमएआर पोर्टल में भारत और विश्वर के अन्यत पुस्तातकालयों, लोगों के व्यक्तिगत संग्रहों में शामिल आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और सोआ-रिग्पा से संबंधित दुर्लभ दस्तातवेजों की जानकारी दी गई है। साही पोर्टल में डिजीटल माध्यम में आयुर्वेद से संबंधित दस्तातवेजों, शिलालेखों, पुरातात्विक महत्व की वस्तुओं आदि को प्रदर्शित किया गया है।

ऑनलाइन समारोह में नेशनल रिसर्च प्रोफेसर भूषण पटवर्धन ने कहा कि सभी पोर्टल का विकास केंद्र सरकार के सभी मंत्रालयों के समन्वपय का अनुपम उदाहरण है। उन्‍होंने कहा कि भारत की परंपरा बेहद मजबूत है और लगातार हो रहीं खोजों से इसके नए आयाम सामने आ रहे हैं। हाल ही में पुरातत्व  सर्वे में काश्मीर और तेलंगाना में मिले अवशेषों से जाहिर हुआ कि भारत में करीब चार हजार साल पहले भी शल्यर चिकित्साक हुआ करती थी। आयुष सचिव पद्मश्री वैद्य राजेश कोटेचा ने आयुष मंत्रालय की ओर से भारतीय परंपरागत ज्ञान से संबंधित चिकित्सा पद्धतियों, दस्तांवेजों को डिजिटाइज करने के प्रयासों की जानकारी दी और कहा कि लगातार यह कोशिश हो रही कि आयुष से संबंधित हर जानकारी को डिजीटल प्लेटफार्म पर लाया जा सके। नेशनल कमीशन फॉर इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन के चेयरमैन वैद्य जयंत देवपुजारी ने आयुर्वेद के तहत प्राचीन ग्रंथों की खोज पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में ही एक लाख से अधिक प्राचीन ग्रंथों के होने का अनुमान है। भारतीय पुरातत्व सर्वे (एपीग्राफी) के निदेशक डा मुनिरत्तमनम रेड्डी, आयुष मंत्रालय के विशेष सचिव प्रमोद कुमार पाठक आदि ने भी विचार व्यक्त किए। सीसीआरएएस के महानिदेशक डा एन. श्रीकांत ने सभी का स्वागत।

समोराह में आयुष मंत्री स्वीतं. प्रभार श्री किरन रिजिजू ने सीसीआरएएस के चार प्रकाशनों का भी विमोचन किया। इसमें एशिया में सोआ-रिग्पा को प्रोत्सारहित करने पर आयोजित सेमिनार की प्रोसिडिंग, आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण अनाजों की जानकारी का संग्रह, ड्रग एवं कॉस्मेटिक अधिनियम 1940 के शेड़यूल-1 में शामिल की गई किताब आयुर्वेद संग्रह (यह किताब अभी तक केवल बंगाली में ही उपलब्धे थी) और भोजन तथा जीवन शैली की जानकारी देने वाली किताब पथ्याबपथ्य शामिल हैं।

पांचों पोर्टलों की विशेषताएं

सीटीआरआई पोर्टल में इस आयुर्वेदिक डेटासेट के शामिल हो जाने से आयुर्वेद आधारित चिकित्सीय परीक्षणों को दुनिया भर में साख भरी पहचान मिलेगी। सीटीआरआई विश्व स्वास्थ्य संगठन के इंटरनेशनल क्लीनिकल ट्रायल्स रजिस्ट्री प्लेटफॉर्म के तहत तैयार किया गया क्लीनिकल ट्रायलों का प्राथमिक रजिस्टर है। इसलिए सीटीआरआई में शामिल हुए इस आयुर्वेदिक डेटासेट से आयुर्वेद के क्षेत्र में होने वाले क्लीनिकल ट्रायलों के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सीय शब्दावली का प्रयोग वैश्विक स्तर पर मान्य होगा।

आईसीएमआर की मदद से सीसीआरएस द्वारा विकसित आरएमआईएस यानी रिसर्च मैनेजमेंट इन्फार्मेशन सिस्टम पोर्टल आयुर्वेद आधारित पढ़ाई करने वालों तथा शोधार्थियों के लिए बहुत ही मददगार होगा। विषय विशेषज्ञों की मदद से छात्र/शोधार्थी को अपने अध्ययन और शोध में महत्वपूर्ण मदद निशुल्क मिल सकेगी।

ई-मेधा पोर्टल में नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर की मदद से ई-ग्रंथालय प्लेटफार्म में संग्रहीत 12000 से भी अधिक भारतीय चिकित्सीय विरासत संबंधी पांडुलिपियों और पुस्तकों का कैटलॉग ऑनलाइन उपलब्ध हो सकेगा।

अमर यानी आयुष मैन्यूस्क्रिप्ट्स एडवांस्ड रिपॉज़िटरी पोर्टल एक डिजिटल डैशबोर्ड है जिसमें आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्ध और सोवा-रिग्पा से जुड़ी पाण्डुलिपियों के देश-दुनिया में मौजूद खजाने के बारे में जानकारी मौजूद रहेगी।

साही यानी शोकेस ऑफ आयुर्वेद हिस्टोरिकल इम्प्रिंट्स पोर्टल में पुरा-वानस्पतिक (आर्कियो-बोटैनिकल) जानकारियों, शिलालेखों पर मौजूद उत्कीर्णनों और उच्च स्तरीय पुरातात्विक अध्ययनों की मदद से आयुर्वेद की ऐतिहासिकता के प्रमाण दुनिया के सामने आते रहेंगे।

आयुषशब्द का अर्थ

अंग्रेजी में :- Traditional & Non-Conventional Systems of Health Care and Healing Which Include Ayurveda, Yoga, Naturopathy, Unani, Siddha, Sowa-Rigpa and Homoeopathy etc.

हिंदी में :-  पारंपरिक और गैर-एलोपैथिक स्वास्थ्य परिचर्चा और उपचार पद्धतियां जिनमें आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध, सोवा-रिग्पा और होम्योपैथी इत्यादि शामिल है।

पृष्ठभूमि

9 नवंबर 2014th आयुष मंत्रालय का गठन चिकित्सा की पारंपरिक भारतीय प्रणालियों के गहन ज्ञान को पुनर्जीवित करने और स्वास्थ्य के आयुष प्रणालियों के इष्टतम विकास और प्रसार को सुनिश्चित करने की दृष्टि से किया गयाl इससे पहले, भारतीय चिकित्सा पद्धति और होम्योपैथी विभाग (ISM&H) का गठन 1995 में किया गया, जो सभी पद्यतियों के विकास के लिए काम करती है। आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी के क्षेत्रों में शिक्षा और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने के साथ इसका नाम बदलकर नवंबर 2003 में आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) विभाग के रूप में किया गया था।

मुख्य उद्देश्य :

  1. देश में इंडियन सिस्टम ऑफ मेडिसिन और होम्योपैथी कॉलेजों के शैक्षिक मानक को उन्नत करने के लिए।
  2. मौजूदा शोध संस्थानों को मजबूत बनाने और पहचान की गई बीमारियों पर समयबद्ध अनुसंधान कार्यक्रमों को सुनिश्चित करने के लिए जिनके लिए इन प्रणालियों का एक प्रभावी उपचार है।
  3. इन प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले औषधीय पौधों की खेती, बढ़ावा देने और पुनर्जीवित करने के लिए योजनाएं तैयार करना।
  4. इंडियन सिस्टम्स ऑफ मेडिसिन और होम्योपैथी दवाओं के फार्माकोपियोअल मानकों को विकसित करने के लिए।

SOURCE-PIB

  

कोविन वैश्विक सम्मेलन

धानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज कोविन वैश्विक सम्मेलन को संबोधित किया और दुनिया द्वारा कोविड-19 का मुकाबला करने के लिए भारत द्वारा डिजिटल जनकल्याण के रूप में कोविन प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने की पेशकश की।

प्रधानमंत्री ने सभी देशों में कोविड महामारी के कारण जान गंवाने वाले सभी लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले 100 वर्षों में इस तरह की महामारी का कोई उदाहरण नहीं मिलता है और कोई भी राष्ट्र, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली हो, अकेले इस तरह की चुनौती का समाधान नहीं कर सकता है।

प्रधानमंत्री ने कहा, “कोविड-19 महामारी से यह सबसे बड़ा सबक मिलता है कि मानवता और मानव कल्याण के लिए हमें मिलकर काम करना होगा और साथ-साथ आगे बढ़ना होगा। हमें एक-दूसरे से सीखना होगा और अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में एक-दूसरे का मार्गदर्शन भी करना होगा।

वैश्विक समुदाय के साथ अनुभव, विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा करने के बारे में भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक प्रथाओं से सीखने के लिए भारत की उत्सुकता को जाहिर किया। महामारी के खिलाफ इस लड़ाई में प्रौद्योगिकी के महत्व पर जोर देते हुए श्री मोदी ने कहा कि सॉफ्टवेयर एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें संसाधनों की कोई कमी नहीं है। इसलिए भारत ने प्रौद्योगिकी रूप से समर्थ होते ही अपने कोविड ट्रैकिंग और ट्रेसिंग ऐप को खुला साधन बना दिया है। उन्होंने कहा कि लगभग 200 मिलियन उपयोगकर्ताओं के साथ ‘आरोग्य सेतु’ ऐप डेवलपर्स के लिए आसानी से उपलब्ध पैकेज हो गया है। प्रधानमंत्री ने वैश्विक दर्शकों से कहा कि भारत में उपयोग होने के बाद आप इस बारे में सुनिश्चित हो सकते हैं कि गति और पैमाने के लिए इसका वास्तविक दुनिया में परीक्षण किया गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि टीकाकरण को महत्व देते हुए भारत ने अपनी टीकाकरण की रणनीति की योजना बनाते हुए पूरी तरह डिजिटल दृष्टिकोण को अपनाया है। इससे लोगों को यह साबित करने में मदद मिली है कि उन्हें महामारी के बाद भी वैश्विक दुनिया में तेजी से सामान्य स्थिति कायम करते हुए टीका लगाया गया है। सुरक्षित और भरोसेमंद सबूत लोगों को यह स्थापित करने में मदद करते हैं कि उन्हें कब, कहां और किसके द्वारा टीका लगाया गया है। डिजिटल दृष्टिकोण टीकाकरण के उपयोग का पता लगाने और टीके की बर्बादी को कम से कम करने में भी मदद करता है।

प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि आज का यह सम्मेलन वैश्विक दर्शकों के सामने इस मंच को प्रस्तुत करने की दिशा में पहला कदम है। भारत में कोविड टीकों की 350 मिलियन खुराक दी जा चुकी हैं। इनमें पिछले कुछ दिन पहले एक दिन में दी गई 9 मिलियन खुराक  भी शामिल हैं। इसके अलावा टीका लगवाने वाले लोगों को कुछ भी साबित करने के लिए कागज का टुकड़ा ले जाने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि यह सब डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध है। प्रधानमंत्री ने इच्छुक देशों की स्थानीय जरूरतों के अनुसार सॉफ्टवेयर की अनुकूलन क्षमता पर भी प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस उम्मीद के साथ समापन किया कि ‘एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य’ के दृष्टिकोण से निर्देशित होकर ही मानवता निश्चित रूप से इस महामारी पर विजय प्राप्त करेगी।

SOURCE-PIB

 

सिंधु जल संधि

जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार, भारत 1960 की सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के तहत पाकिस्तान की ओर बहने वाले अतिरिक्त पानी को रोकने के अपने अधिकारों पर काम कर रहा है ताकि वह अपनी जमीन की सिंचाई कर सके।

सिंधु जल समझौता

सिन्धु जल संधि, नदियों के जल के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है। इस सन्धि में विश्व बैंक (तत्कालीन ‘पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक’) ने मध्यस्थता की। इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे।

इस समझौते के अनुसार, तीन “पूर्वी” नदियों — ब्यास, रावी और सतलुज — का नियंत्रण भारत को, तथा तीन “पश्चिमी” नदियों — सिंधु, चिनाब और झेलम — का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया। हालाँकि अधिक विवादास्पद वे प्रावधान थे जनके अनुसार जल का वितरण किस प्रकार किया जाएगा, यह निश्चित होना था। क्योंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियों का प्रवाह पहले भारत से होकर आता है, संधि के अनुसार भारत को उनका उपयोग सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन हेतु करने की अनुमति है। इस दौरान इन नदियों पर भारत द्वारा परियोजनाओं के निर्माण के लिए सटीक नियम निश्चित किए गए। यह संधि पाकिस्तान के डर का परिणाम थी कि नदियों का आधार (बेसिन) भारत में होने के कारण कहीं युद्ध आदि की स्थिति में उसे सूखे और अकाल आदि का सामना न करना पड़े।

1960 में हुए सिंधु जल समझौते के बाद से भारत और पाकिस्तान में कश्मीर मुद्दे को लेकर तनाव बना हुआ है। हर प्रकार के असहमति और विवादों का निपटारा संधि के ढांचे के भीतर प्रदत्त कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से किया गया है। इस संधि के प्रावधानों के अनुसार सिंधु नदी के कुल पानी का केवल 20% का उपयोग भारत द्वारा किया जा सकता है। जिस समय यह संधि हुई थी उस समय पाकिस्तान के साथ भारत का कोई भी युद्ध नही हुआ था उस समय परिस्थिति बिल्कुल सामान्य थी पर 1965 से पाकिस्तान लगातार भारत के साथ हिंसा के विकल्प तलाशने लगा जिस में 1965 में दोनों देशों में युद्ध भी हुआ और पाकिस्तान को इस लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा फिर 1971 में पाकिस्तान ने भारत के साथ युद्ध लड़ा जिस में उस को अपना एक हिस्सा खोना पड़ा जो बंगला देश के नाम से जाना जाता है तब से अब तक पाकिस्तान आतंकवाद और सेना दोनों का इस्तेमाल कर रहा है भारत के विरुद्ध, जिस की वजह से किसी भी समय यह सिंधु जल समझौता खत्म हो सकता है और जिस प्रकार यह नदियाँ भारत का हिस्सा हैं तो स्वभाविक रूप से भारत इस समझौते को तोड़ कर पूरे पानी का इस्तेमाल सिंचाई विद्युत बनाने में जल संचय करने में कर सकता है पंकज मंडोठिया ने समझौते और दोनों देशों के बीच के तनाव को ध्यान में रख कर इस समझौते के टूटने की बात कही है क्योंकि वर्तमान परिस्थिति इतनी तनावपूर्ण है कि यह समझौता रद्द हो सकता है क्योंकि जो परिस्थिति 1960 में थी वो अब नही रही है।

सिन्धु नदी प्रणाली में तीन पश्चिमी नदियाँ — सिंधु, झेलम और चिनाब और तीन पूर्वी नदियाँ – सतलुज, ब्यास और रावी शामिल हैं। इस संधि के अनुसार रावी, ब्यास और सतलुज (पूर्वी नदियाँ) – पाकिस्तान में प्रवेश करने से पूर्व इन नदियों के पानी को अनन्य उपयोग के लिए भारत को आबंटित की गईं। हालांकि, 10 साल की एक संक्रमण अवधि की अनुमति दी गई थी, जिसमें पानी की आपूर्ति के लिए भारत को बाध्य किया गया था, ताकि तब तक पाकिस्तान आपनी आबंटित नदियों – झेलम, चिनाब और सिंधु – के पानी के उपयोग के लिए नहर प्रणाली विकसित कर सके। इसी तरह, पाकिस्तान पश्चिमी नदियों – झेलम, चिनाब और सिंधु – के अनन्य उपयोग के लिए अधिकृत है। पूर्वी नदियों के पानी के नुकसान के लिए पाकिस्तान को मुआवजा भी दिया गया। 10 साल की रोक अवधि की समाप्ति के बाद, 31 मार्च 1970 से भारत को अपनी आबंटित तीन नदियों के पानी के पूर्ण उपयोग का पूरा अधिकार मिल गया।

सिन्धु नदी

सिन्धु नदी (अंग्रेज़ी : Indus River) एशिया की सबसे लंबी नदियों में से एक है। यह पाकिस्तान, भारत (जम्मू और कश्मीर) और चीन (पश्चिमी तिब्बत) के माध्यम से बहती है। सिन्धु नदी का उद्गम स्थल, तिब्बत के मानसरोवर के निकट सिन-का-बाब नामक जलधारा माना जाता है। इस नदी की लंबाई प्रायः 3610 (२८८०) किलोमीटर है। यहां से यह नदी तिब्बत और कश्मीर के बीच बहती है। नंगा पर्वत के उत्तरी भाग से घूम कर यह दक्षिण पश्चिम में पाकिस्तान के बीच से गुजरती है और फिर जाकर अरब सागर में मिलती है। इस नदी का ज्यादातर अंश पाकिस्तान में प्रवाहित होता है। यह पाकिस्तान की सबसे लंबी नदी और राष्ट्रीय नदी है।

सिंधु की पांच उपनदियां हैं। इनके नाम हैं : वितस्ता, चन्द्रभागा, ईरावती, विपासा एंव शतद्रु. इनमें शतद्रु सबसे बड़ी उपनदी है। सतलुज/शतद्रु नदी पर बना भाखड़ा-नंगल बांध के द्वारा सिंचाई एंव विद्दुत परियोजना को बहुत सहायता मिली है। इसकी वजह से पंजाब (भारत) एंव हिमाचल प्रदेश में खेती ने वहां का चेहरा ही बदल दिया है। वितस्ता (झेलम) नदी के किनारे जम्मू व कश्मीर की राजधानी श्रीनगर स्थित।

SOURCE-DANIK JAGRAN

 

एल्सा

उष्णकटिबंधीय तूफान एल्सा (Elsa) 3 जुलाई, 2021 को मजबूत हुआ और इसका केंद्र दक्षिण-मध्य क्यूबा के पास पहुंचा।

मुख्य बिंदु

  • कैरेबियाई द्वीप सरकार ने सिएनफ्यूगोस (Cienfuegos) और मातनज़ास (Matanzas) प्रांतों में तूफान की चेतावनी जारी की।
  • S. National Hurricane Center (NHC) के पूर्वानुमान के अनुसार, क्यूबा के ऊपर जाने से पहले ट्रॉपिकल स्टॉर्म एल्सा और मजबूत होगा।
  • NHC के आंकड़ों के अनुसार, अधिकतम निरंतर हवाएं 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार के साथ चल रही थीं।

एल्सा तूफान

एल्सा एक सक्रिय उष्णकटिबंधीय चक्रवात है जो कैरेबियन और दक्षिण-पूर्वी अमेरिका के कुछ हिस्सों को प्रभावित करेगा। 29 जून को एल्सा की पहली बार National Hurricane Center (NHC) द्वारा उष्णकटिबंधीय लहर के रूप में निगरानी की गई थी। इसे तब संभावित उष्णकटिबंधीय चक्रवात के रूप में नामित किया गया था। यह 2005 में तूफान एमिली के बाद पूर्वी कैरेबियन सागर में जुलाई का सबसे मजबूत तूफान है। यह सबसे तेज गति से चलने वाला अटलांटिक उष्णकटिबंधीय चक्रवात भी है।

National Hurricane Center (NHC)

NHC अमेरिका की राष्ट्रीय मौसम सेवा का एक प्रभाग है जो प्राइम मेरिडियन और 140वीं मेरिडियन के बीच उत्तर पूर्व प्रशांत महासागर में 30वीं समानांतर उत्तर और उत्तरी अटलांटिक महासागर में 31वीं समानांतर उत्तर के बीच उष्णकटिबंधीय मौसम प्रणालियों को ट्रैक और भविष्यवाणी करने के लिए जिम्मेदार है।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात :

  • उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान होते हैं जिनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं।

उष्ण कटिबंधीय चक्रवात निर्माण की अनुकूल स्थितियाँ :

  • बृहत् समुद्री सतह;
  • समुद्री सतह का तापमान 27° सेल्सियस से अधिक हो;
  • कोरिआलिस बल का उपस्थित होना;
  • लंबवत पवनों की गति में अंतर कम होना;
  • कमज़ोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण होना;
  • समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।

चक्रवातों का निर्माण व समाप्ति :

  • चक्रवातों को ऊर्जा संघनन प्रक्रिया द्वारा ऊँचे कपासी स्तरी मेघों से प्राप्त होती है। समुद्रों से लगातार आर्द्रता की आपूर्ति से ये तूफान अधिक प्रबल होते हैं।
  • चक्रवातों के स्थल पर पहुँचने पर आर्द्रता की आपूर्ति रुक जाती है जिससे ये क्षीण होकर समाप्त हो जाते हैं।
  • वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार करके जमीन पर पहुँचते हैं चक्रवात का लैंडफॉल कहलाता है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का मार्ग :

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की दिशा प्रारंभ में पूर्व से पश्चिम की ओर होती है क्योंकि पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है। लेकिन लगभग 20° अक्षांश पर ये चक्रवात कोरिओलिस बल के प्रभाव के कारण दाईं ओर विक्षेपित हो जाते हैं तथा लगभग 25° अक्षांश पर इनकी दिशा उत्तर-पूर्वी ही जाती है। 30° अक्षांश के आसपास पछुआ हवाओं के प्रभाव के कारण इनकी दिशा पूर्व की ओर हो जाती है।

उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्रीय नाम:

क्षेत्र  चक्रवात नाम 
हिंद महासागर चक्रवात
पश्चिमी अटलांटिक तथा पूर्वी प्रशांत महासागर हरीकेन
पश्चिमी प्रशांत महासगर और दक्षिणी चीन सागर टाइफून
ऑस्ट्रेलिया विली-विली

बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Extra-Tropical Cyclones) :

  • वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ, जो उष्ण कटिबंध से दूर, मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं, उन्हें बहिरूष्ण या शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं।

उष्णकटिबंधीय तथा बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में अंतर :

  • उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपनी ऊर्जा संघनन की गुप्त उष्मा से प्राप्त करते हैं जबकि बहिरूष्ण चक्रवात अपनी ऊर्जा दो भिन्न वायुराशियों के क्षैतिज तापीय अंतर से प्राप्त करते हैं।
  • उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में वायु की अधिकतम गति पृथ्वी की सतह के निकट जबकि बहिरूष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में क्षोभसीमा के पास सबसे अधिक होती है।
  • ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उष्णकटिबंधीय चक्रवात के ‘ऊष्ण कोर’ क्षोभमंडल में जबकि अतिरिक्त उष्णकटिबंधीय चक्रवात में ‘ऊष्ण कोर’ समताप मंडल में तथा ‘शीत कोर’ क्षोभमंडल में पाई जाती है।
  • ‘ऊष्ण कोर’ में वायु अपने आसपास की वायु से अधिक गर्म होती है, अत: निम्न दाब केंद्र बनने के कारण वायु तेज़ी से इस केंद्र की ओर प्रवाहित होती है।

SOURCE-THE HINDU

 

विश्व बाजार पूंजीकरण में भारत के हिस्सेदारी में बढ़ोत्तरी हुई

ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, जून 2021 में विश्व बाजार पूंजीकरण (world market capitalization) में भारत की हिस्सेदारी 2.60% थी।

मुख्य बिंदु

  • भारत ने विश्व बाजार पूंजीकरण में अपना हिस्सा 45% के दीर्घकालिक औसत की तुलना में बढ़ाया।
  • मई 2020 में, भारत की हिस्सेदारी 05% तक गिर गई थी जब कोरोनवायरस की पहली लहर ने वैश्विक इक्विटी बाजारों को प्रभावित किया था।हालांकि, तब से, इक्विटी शेयर बढ़ रहा है।
  • भारत का बाजार पूंजीकरण एक साल में बढ़कर 66% हो गया और जून 2021 में 02 ट्रिलियन डॉलर हो गया। इसने वैश्विक बाजार-पूंजीकरण में 44% की वृद्धि को पीछे छोड़ दिया है।
  • भारत पिछले पांच साल से बाजार पूंजीकरण में वैश्विक विकास दर (25%) से बेहतर (7%) प्रदर्शन कर रहा है।
  • पिछले एक साल में भारतीय शेयरों ने 49% का रिटर्न दिया है।

बाजार पूंजीकरण

बाजार पूंजीकरण, जिसे आमतौर पर मार्केट कैप कहा जाता है, सार्वजनिक रूप से कारोबार करने वाली कंपनी के बकाया शेयरों का बाजार मूल्य है।

बाजार पूंजीकरण बकाया शेयरों की संख्या का एक शेयर की कीमत से गुणनफल के बराबर होता है। चूंकि बकाया स्टॉक सार्वजनिक बाजारों में खरीदा और बेचा जाता है, इसलिए पूंजीकरण का उपयोग किसी कंपनी के निवल मूल्य पर सार्वजनिक राय के संकेतक के रूप में किया जा सकता है और स्टॉक मूल्यांकन के कुछ रूपों में एक निर्धारित कारक है।

मार्केट कैप केवल एक कंपनी के इक्विटी मूल्य को दर्शाता है। एक फर्म की पूंजी संरचना चयन इस बात पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है कि उस कंपनी का कुल मूल्य इक्विटी और ऋण के बीच कैसे आवंटित होगा। एक अधिक व्यापक उपाय उद्यम मूल्य (enterprise value (EV)) है, जो बकाया ऋण, पसंदीदा स्टॉक और अन्य कारकों को प्रभाव देता है। बीमा फर्मों के लिए, एम्बेडेड मूल्य (embedded value (EV)) नामक मूल्य का उपयोग किया गया है।

SOURCE-GK TODAY

 

चीनी अंतरिक्ष यात्रियों ने नए स्पेस स्टेशन पर पहला स्पेसवॉक पूरा किया

चीनी अंतरिक्ष यात्रियों ने 4 जुलाई, 2021 को चीन का पहला अग्रानुक्रम स्पेसवॉक सफलतापूर्वक किया है। उन्होंने पृथ्वी के चारों ओर कक्षा में नए तियांगोंग स्टेशन (Tiangong Station) के बाहर सात घंटे तक काम किया।

मुख्य बिंदु

  • तियांगोंग का निर्माण चीन के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक बड़ा कदम है।
  • जून 2021 में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस स्टेशन के लिए लांच किया गया था।
  • इस मिशन में अंतरिक्ष यात्री तीन महीने तक अन्तरिक्ष में रहेंगे, जिसे चीन का अब तक का सबसे लंबा क्रू मिशन कहा जा रहा है।
  • तियांगोंग में पहले स्पेसवॉक में दो अंतरिक्ष यात्री सात घंटे के काम के लिए स्टेशन से बाहर निकले।
  • वे सकुशल लौट आए।अंतरिक्ष यात्री लियू बोमिंग (Liu Boming) और टैंग होंगबो (Tang Hongbo) की तियान्हे कोर मॉड्यूल में सुरक्षित वापसी चीन द्वारा निर्मित अंतरिक्ष स्टेशन में पहले स्पेसवॉक की पूर्ण सफलता पर प्रकाश डालती है।

स्पेसवॉक का उद्देश्य क्या था?

अंतरिक्ष यात्रियों ने तियान्हे कोर मॉड्यूल के बाहर एक पैनारोमिक कैमरे को ऊपर उठाने और स्टेशन के रोबोटिक आर्म का परीक्षण करने के उद्देश्य से स्पेसवॉक की।

तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन (Tiangong Space Station)

यह अंतरिक्ष स्टेशन सतह से 340 से 450 किमी के बीच की दूरी पर पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित है। एक बार पूरा हो जाने पर, यह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के द्रव्यमान का लगभग पांचवां हिस्सा होगा और रूसी मीर अंतरिक्ष स्टेशन के आकार के बराबर होगा। इसका द्रव्यमान 80t और 100t के बीच होने की उम्मीद है। स्पेस स्टेशन के संचालन को चीन में बीजिंग एयरोस्पेस फ्लाइट कंट्रोल सेंटर से नियंत्रित किया जाएगा। तियान्हे इसका मुख्य मॉड्यूल में है जिसे 29 अप्रैल, 2021 को लॉन्च किया गया था।

SOURCE-GK TODAY

Any Doubts ? Connect With Us.

Join Our Channels

For Latest Updates & Daily Current Affairs

Related Links

Connect With US Socially

Request Callback

Fill out the form, and we will be in touch shortly.

Call Now Button