Current Affairs – 8 July, 2021
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और
जापान फेयर ट्रेड कमीशन (जेएफटीसी) के बीच
सहयोग ज्ञापन (एमओसी) को मंजूरी दी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रतिस्पर्धा कानून और नीति के मामले में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने एवं इसे मजबूती प्रदान करने के लिए भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) और जापान फेयर ट्रेडकमीशन (जेएफटीसी) के बीच सहयोग ज्ञापन (एमओसी) को मंजूरी दे दी है।
प्रभाव:
उपर्युक्त् स्वीकृत एमओसी आवश्यदक सूचनाओं के आदान-प्रदान के जरिए सीसीआई को जापान की अपनी समकक्ष प्रतिस्पर्धा एजेंसी के अनुभवों एवं सबक से सीखने और अनुकरण करने में सक्षम करेगा जिससे उसकी दक्षता बढ़ेगी। यही नहीं, इससे सीसीआई को प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 पर बेहतर ढंग से अमल करने में मदद मिलेगी। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता बड़े पैमाने पर लाभान्वित होंगे और इसके साथ ही समानता एवं समावेश को बढ़ावा मिलेगा।
विवरण:
इसके तहत सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ-साथ तकनीकी सहयोग, अनुभवों को साझा करने और प्रवर्तन संबंधी सहयोग के क्षेत्रों में विभिन्न क्षमता निर्माण पहलों के जरिए प्रतिस्पर्धा कानून और नीति के मामले में आपसी सहयोग को बढ़ावा देने एवं इसे मजबूती प्रदान करने की परिकल्पना की जाएगी।
पृष्ठभूमि:
प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 18 के तहत सीसीआई को अधिनियम के तहत अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने या अपने कार्यों को सफलतापूर्वक पूरा करने के उद्देश्य से किसी भी देश की किसी भी एजेंसी के साथ कोई भी समझौता या व्यवस्था करने की अनुमति दी गई है।
भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग
भारत सरकार का एक सांविधिक निकाय है जो प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 (Competition Act, 2002) के प्रवर्तन के लिये उत्तरदायी है। मार्च 2009 में इसे विधिवत रूप से गठित किया गया था।
- राघवन समिति की अनुशंसा पर एकाधिकार तथा अवरोधक व्यापार व्यवहार. अधिनियम, 1969 (Monopolies and Restrictive Trade Practices Act – MRTP Act) को निरस्त कर इसके स्थान पर प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 लाया गया।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का उद्देश्य निम्नलिखित के माध्यम से देश में एक सुदृढ़ प्रतिस्पर्द्धी वातावरण तैयार करना है :
- उपभोक्ता, उद्योग, सरकार और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्राधिकारों सहित सभी हितधारकों के साथ सक्रिय संलग्नता के माध्यम से।
- उच्च क्षमता स्तर के साथ एक ज्ञान प्रधान संगठन के रूप में।
- प्रवर्तन में पेशेवर कुशलता, पारदर्शिता, संकल्प और ज्ञान के माध्यम से।
प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम वर्ष 2002 में पारित किया गया था और प्रतिस्पर्द्धा (संशोधन) अधिनियम, 2007 द्वारा इसे संशोधित किया गया। यह आधुनिक प्रतिस्पर्द्धा विधानों के दर्शन का अनुसरण करता है।
- यह अधिनियम प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी करारों और उद्यमों द्वारा अपनी प्रधान स्थिति के दुरुपयोग का प्रतिषेध करता है तथा समुच्चयों [अर्जन, नियंत्रण की प्राप्ति और ‘विलय एवं अधिग्रहण’ (M&A)] का विनियमन करता है, क्योंकि इनसे भारत में प्रतिस्पर्द्धा पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है या इसकी संभावना बनती है।
- संशोधन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग और प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (Competition Appellate Tribunal- COMPAT) की स्थापना की गई।
- वर्ष 2017 में सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा अपीलीय न्यायाधिकरण (COMPAT) को राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (National Company Law Appellate Tribunal- NCLAT) से प्रतिस्थापित कर दिया।
CCI की संरचना
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के अनुसार, आयोग में एक अध्यक्ष और छह सदस्य होते हैं जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग वर्तमान में एक अध्यक्ष और दो सदस्यों के साथ कार्यरत है।
- आयोग एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय (Quasi-Judicial Body) है जो सांविधिक प्राधिकरणों को परामर्श देता है तथा अन्य मामलों को भी संबोधित करता है। इसका अध्यक्ष और अन्य सदस्य पूर्णकालिक सदस्य होते हैं।
- सदस्यों की पात्रता : अध्यक्ष और प्रत्येक अन्य सदस्य योग्यता, सत्यनिष्ठा और प्रतिष्ठा वाला ऐसा व्यक्ति होगा जो उच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो या उच्च न्यायाधीश के पद पर नियुक्त होने की योग्यता रखता हो, या जिसके पास अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, अर्थशास्त्र, कारोबार, वाणिज्य, विधि, वित्त, लेखाकार्य, प्रबंधन, उद्योग, लोक कार्य या प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों में कम-से-कम पंद्रह वर्ष का ऐसा विशेष ज्ञान और वृत्तिक अनुभव हो जो केंद्र सरकार की राय में आयोग के लिये उपयोगी हो।
CCI की भूमिका और कार्य
- प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले अभ्यासों को समाप्त करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और उसे जारी रखना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाज़ारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।
- किसी विधान के तहत स्थापित किसी सांविधिक प्राधिकरण से प्राप्त संदर्भ के लिये प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों पर परामर्श देना एवं प्रतिस्पर्द्धा की भावना को संपोषित करना, सार्वजनिक जागरूकता पैदा करना एवं प्रतिस्पर्द्धा के विषयों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
- भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग अपने उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करता है :
- उपभोक्ता कल्याण : उपभोक्ताओं के लाभ और कल्याण के लिये बाज़ारों को कार्यसक्षम बनाना।
- अर्थव्यवस्था के तीव्र तथा समावेशी विकास एवं वृद्धि के लिये देश की आर्थिक गतिविधियों में निष्पक्ष और स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करना।
- आर्थिक संसाधनों के कुशलतम उपयोग को कार्यान्वित करने के उद्देश्य से प्रतिस्पर्द्धा नीतियों को लागू करना।
- क्षेत्रीय नियामकों के साथ प्रभावी संबंधों व अंतःक्रियाओं का विकास व संपोषण ताकि प्रतिस्पर्द्धा कानून के साथ क्षेत्रीय विनियामक कानूनों का बेहतर संरेखण/तालमेल सुनिश्चित हो सके।
- प्रतिस्पर्धा के पक्ष-समर्थन को प्रभावी रूप से आगे बढ़ाना और सभी हितधारकों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लाभों पर सूचना का प्रसार करना ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा की संस्कृति का विकास तथा संपोषण किया जा सके।
- प्रतिस्पर्द्धा आयोग भारत का प्रतिस्पर्द्धा विनियामक (Competition Regulator) है और यह उन छोटे संगठनों के लिये एक स्पर्द्धारोधी प्रहरी/एंटी-ट्रस्ट वाचडॉग (Antitrust Watchdog) के रूप में कार्य करता है जो बड़े कॉर्पोरेशन के समक्ष अपने अस्तित्त्व को बनाए रखने में असमर्थ होते हैं।
- CCI के पास भारत में व्यापार करने वाले संगठनों को नोटिस देने का अधिकार है यदि उसे लगता है कि वे भारत के घरेलू बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम यह गारंटी देता है कि कोई भी उद्यम आपूर्ति के नियंत्रण, खरीद मूल्य के साथ छेड़छाड़ या अन्य प्रतिस्पर्द्धी फर्मों की बाज़ार तक पहुँच को बाधित करने वाले अभ्यासों को अपनाने के रूप में बाज़ार में अपनी ‘प्रभावी स्थिति‘ (Dominant Position) का दुरुपयोग नहीं करेगा।
- अधिग्रहण या विलय के माध्यम से भारत में प्रवेश की इच्छुक किसी विदेशी कंपनी को देश के प्रतिस्पर्द्धा कानूनों का पालन करना होगा।
- एक निश्चित मौद्रिक मूल्य के ऊपर की आस्तियाँ और कारोबार किसी समूह को भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग के दायरे में ले आएंगी।
SOURCE-PIB
केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ
इंडिया (आईसीओएआई) और एसोसिएशन ऑफ चार्टर्ड सर्टिफाइड अकाउंटेंट्स (एसीसीए), यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच
समझौता ज्ञापन को मंजूरी दी
धानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीओएआई) और एसोसिएशन ऑफ चार्टर्ड सर्टिफाइड अकाउंटेंट्स (एसीसीए), यूनाइटेड किंगडम (यूके) के बीच समझौता ज्ञापन को मंजूरी दी है। यह समझौता ज्ञापन दोनों संस्थानों के सदस्यों को परस्पर एडवांस एंट्री उपलब्ध कराएगा। इसके लिए अन्य व्यावसायिक निकायों से योग्यता हासिल करने की प्रक्रिया में अधिकांश विषयों में उत्तीर्ण होने की बाध्यता से छूट दिलाएगा। इसके अलावा, दोनों संस्थानों के सदस्यों को संयुक्त शोध और पेशेगत विकास गतिविधियों को जारी रखने में सहायता उपलब्ध कराएगा
प्रभाव:
यह समझौता ज्ञापन ज्ञान के आदान-प्रदान और अनुसंधान तथा प्रकाशनों के आदान-प्रदान की दिशा में ध्यान केंद्रित करने को बढ़ावा देगा, जिससे दोनों अधिकार क्षेत्रों में सुशासन प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी। दोनों पक्ष कॉस्ट अकाउंटेंसी पेशे से संबंधित संयुक्त अनुसंधान शुरू करेंगे, जिसमें तकनीकी क्षेत्रों में सहयोगात्मक अनुसंधान भी शामिल हो सकते हैं। यह समझौता ज्ञापन दोनों अधिकार क्षेत्रों में पेशेवरों की आवाजाही में मदद करेगा और भारत और विदेशों में कॉस्ट अकाउंटेंट्स की रोजगार क्षमता को भी बढ़ाएगा।
विवरण:
यह समझौता ज्ञापन एक संस्थान के सदस्यों को पेशेगत स्तर के विषयों में न्यूनतम अंक हासिल करके दूसरे संस्थान की पूर्ण सदस्यता की स्थिति प्राप्त करने और दोनों अधिकार क्षेत्रों में पेशेवरों की आवाजाही को सुविधाजनक बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
पृष्ठभूमि:
इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की स्थापना पहली बार 1944 में कंपनी अधिनियम के तहत एक पंजीकृत कंपनी के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य कॉस्ट अकाउंटेंसी के पेशे को बढ़ावा देना, विनियमित करना और विकसित करना था। 28 मई, 1959 को संस्थान की स्थापना संसद के एक विशेष अधिनियम अर्थात् कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट्स अधिनियम, 1959 द्वारा कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंसी के पेशे के विनियमन के लिए एक सांविधिक पेशेवर निकाय के रूप में की गई थी। यह संस्थान भारत में एकमात्र मान्यता प्राप्त सांविधिक पेशेवर संगठन और लाइसेंसिंग निकाय है, जो विशेष रूप से कॉस्ट और वर्क्स अकाउंटेंसी में विशेषज्ञता रखता है। एसोसिएशन ऑफ चार्टर्ड सर्टिफाइड अकाउंटेंट्स (एसीसीए) की स्थापना 1904 में हुई थी जिसे इंग्लैंड और वेल्स के कानूनों के तहत 1947 में रॉयल चार्टर द्वारा समाविष्ट किया गया था। यह पेशेवर लेखाकारों के लिए एक वैश्विक निकाय है, जिसके पूरे विश्व में 2,27,000 से अधिक पूरी तरह से योग्यता प्राप्त सदस्य और 5,44,000 भावी सदस्य हैं।
SOURCE-PIB
जीआई प्रमाणित मदुरई माली
विदेश में रहने वाले भारतीयों को घर और मंदिरों में देवताओं को ताजे फूलों की आपूर्ति मिलती रहे इसे सुनिश्चित करने के लिए, जीआई (भौगोलिक संकेचक) प्रमाणित मदुरै मल्ली और अन्य पारंपरिक फूलों जैसे बटन गुलाब, लिली, चमंथी और मैरीगोल्ड की खेप तमिलनाडु से आज संयुक्त राज्य अमेरिका और दुबई को निर्यात की गई।
फूलों के खेप के लिए एपीडा पंजीकृत मैसर्स वैनगार्ड एक्सपोर्ट्स, कोयंबटूर द्वारा निलाकोट्टई, डिंडीगुल और सत्यमंगलम, तमिलनाडु से मंगवाए गए थे।
पैकेजिंग प्रौद्योगिकी को अपनाने और फूलों के निर्यातकों को बढ़ाने के लिए कोयंबटूर के तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के पुष्प कृषि विभाग के प्रोफेसरों द्वारा सहयोग किया गया है। निर्यातकों द्वारा गुणवत्तापूर्ण फूलों की खेती के लिए किसानों के साथ सीधा संपर्क किया गया और इस पहल से लगभग 130 महिला श्रमिकों और लगभग 30 कुशल श्रमिकों को रोजगार मिला।
इस पहल से दुबई और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय समुदाय नियमित अंतराल पर भारत से फूलों का निर्यात जारी रहने के बाद धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहारों को मनाते हुए घर और मंदिरों दोनों में हिंदू देवताओं को ताजे फूल चढ़ा सकेंगे
वर्ष 2020-2021 के दौरान, 66.28 करोड़ रुपये मूल्य के ताजे फूल तोड़े गए। चमेली के फूल और गुलदस्ते (चमेली और अन्य पारंपरिक फूलों से युक्त) यूएसए, यूएई, सिंगापुर आदि देशों को निर्यात किए गए थे। जिनमें से 11.84 करोड़ रुपये के फूल तमिलनाडु से निर्यात किए गए थे। जिसका तमिलनाडु के चेन्नई, कोयंबटूर और मदुरै के प्रमुख हवाई अड्डों के जरिए निर्यात किया गया था।
जैस्मीन (जैस्मीनम ऑफ़िसिनेल) दुनिया भर में पाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय फूलों में से एक है। चमेली की खुशबू मदुरै के मीनाक्षी मंदिर के वैभव का पर्याय है। मदुरै अपने पड़ोस में उगाई जाने वाली मल्लिगाई के लिए एक प्रमुख बाजार के रूप में उभरा है, और भारत की ‘चमेली राजधानी’ में विकसित हुआ है।
जैस्मीन (जैस्मीनम ऑफ़िसिनेल) दुनिया भर में पाए जाने वाले सबसे लोकप्रिय फूलों में से एक है। चमेली की खुशबू मदुरै के मीनाक्षी मंदिर के वैभव का पर्याय है। मदुरै अपने पड़ोस में उगाई जाने वाली मल्लिगाई के लिए एक प्रमुख बाजार के रूप में उभरा है, और भारत की ‘चमेली राजधानी’ में रुप में विकसित हुआ है।
SOURCE-PIB
ब्लैकफ्रॉग प्रौद्योगिकी
डीबीटी-बीआईआरएसी से सहायता प्राप्त (समर्थित) स्टार्टअप ब्लैकफ्रॉग प्रौद्योगिकी (टेक्नोलॉजीज) ने इम्वोलियो नाम से एक ऐसे उपकरण को विकसित किया है जो बैटरी से चलने वाला और कहीं भी ले जाए जा सकने वाला चिकित्सा स्तरीय प्रशीतक (मेडिकल-ग्रेड रेफ्रिजरेशन डिवाइस) है। यह उपकरण 12 घंटे तक पूर्व निर्धारित (प्रीसेट) तापमान को हर स्थिति में बनाए रखते हुए टीकाकरण की दक्षता में सुधार करता है। इस प्रकार यह उपकरण अंतिम लक्ष्य तक टीकों के सुरक्षित और कुशल परिवहन को सम्भव बनाता है।
इम्वोलियो की क्षमता 2-लीटर है जिससे इसमें एक दिन के टीकाकरण अभियान के लिए निर्धारित मानकों के अनुरूप 30-50 तक टीके की शीशियों रख कर ले जाया जा सकता है। इस उपकरण (डिवाइस) में निरंतर तापमान निगरानी, स्थान की ट्रैकिंग, इसके चालू हालत में होने के संकेत, लाइव-ट्रैकिंग के माध्यम से मुख्यालय के साथ संचार सम्पर्क और बेहतर कवरेज के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े दर्ज करने की व्यवस्था का प्रबंध शामिल हैं।
ब्लैकफ्रॉग का आईएसओ-13485 प्रमाणित चिकित्सा उपकरणों निर्माता है। साथ ही इम्वोलियो को डब्ल्यूएचओ–पीक्यूएस ई003 मानकों के अनुसार अभिकल्पित (डिजाइन) किया गया है। इम्वोलियो की पेटेंट तकनीक यह सुनिश्चित करती है कि प्रशीतित कक्ष (कोल्ड चैंबर) में रखी समस्त सामग्री को कड़ाई से तापमान नियंत्रित हवा में अच्छी तरह से सम्भाल कर रखा गया है। अंतर्निहित प्रशीतन तंत्र एक स्मार्ट पीआईडी (आनुपातिक समेकित व्युत्पन्न-प्रोपोर्शनल इंटीग्रल डेरीवेट) नियंत्रक के साथ ठोस-अवस्था में शीतलन है, जो हानिकारक प्रशीतकों के रिसाव अथवा या टीकों के आप में मिल जाने (क्रॉस-कन्टेमिनेशन) के खतरे के बिना सटीक तापमान बनाए रखना सुनिश्चित करता है। इसमें मोटर्स/कंप्रेसर या किसी भी चलने वाले हिस्से का न होना इसके कम रखरखाव के संचालन को सक्षम बनाती है। इम्वोलियो (Emvólio) का अनूठा डिजाइन एक समान शीतलता (कूलिंग) और न्यूनतम फ्रीज-थॉ चक्र बनाए रखने का वादा करता है।
खुले क्षेत्र में 12 घंटे तक 2 डिग्री सेल्सियस और 8 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान को सख्ती से निरंतर बनाए रखने की इस उपकरण की क्षमता के कारण इसका उपयोग टीकों और रक्त, सीरम और वायरल कल्चर जैसे अन्य सभी जैविक पदार्थों के वितरण और परिवहन के लिए एक माध्यम के रूप में किया जा रहा है। यह अनूठा प्रयास अंतिम लक्ष्य तक वैक्सीन को पहुंचाने की वर्तमान चुनौती को भी हल करता है क्योंकि वर्तमान में बर्फ से भरे डिब्बों (आइसबॉक्स), जिनमें तापमान के नियंत्रण और उसे एक समान बनाए रखने की कोई व्यवस्था ही नहीं है, का उपयोग किया जा रहा है। आइसबॉक्स में तापमान नियंत्रण और नियमन की व्यवस्था नहीं होने से टीकों के अचानक जम जाने या विगलित हो जाने की आशंका रहती है जिससे, जिससे तापमान के प्रति संवेदनशील टीके निष्प्रयोज्य/अप्रभावी हो जाते हैं।
इस स्टार्टअप को एसईईडी कोष के तहत बीआईआरएसी से अनुदान प्राप्त हुआ है। साथ ही अवधारणा के प्रमाण के विकास के लिए बीआईजी, एक स्थान से दूसरे स्थान तक टीकों की उपलब्धता की व्यवस्था (एंड-टू-एंड वैक्सीन ट्रेसेबिलिटी सिस्टम) विकसित करने के लिए बीआईपीपी और बायोनेस्ट इन्क्यूबेटरों के माध्यम से भी इस स्टार्ट अप का समर्थन किया गया है।
ब्लैकफ्रॉग की उत्पादन क्षमता 1500 उप(करण यूनिट)/माह की है, और एम्वोलियो को अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से आवश्यक मंजूरी के साथ पूर्वोत्तर भारत में तैनात किया जा रहा है। अब तक, ब्लैकफ्रॉग ने भारत के 5 राज्यों में टीकों की अंतिम लक्षित स्थान तक सुरक्षित आपूर्ति के लिए 200 से अधिक वैक्सीन वाहक बेचे हैं।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) के बारे में
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, पशु विज्ञान, पर्यावरण और उद्योग में इसके विस्तार और अनुप्रयोग के माध्यम से भारत में जैव प्रौद्योगिकी इको सिस्टीम के विकास को बढ़ावा देने के साथ ही आगे बढ़ाता है।
जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी) के बारे में
जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), भारत सरकार द्वारा स्थापित, जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), एक गैर-लाभकारी धारा 8, अनुसूची बी, सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम है जो देश की उत्पाद विकास आवश्यकताओं के संदर्भ में रणनीतिक अनुसंधान और विकास गतिविधियों को निष्पादित करने के लिए विकसित जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को प्रोत्साहित करने और उनमे वांछित सुधार लाने के लिए एक इंटरफेस एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
SOURCE-PIB
भालिया गेहूं
भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणित भालिया किस्म के गेहूं की पहली खेप गुजरात से केन्या और श्रीलंका को निर्यात की गई, इससे गेहूं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
भालिया गेहूं (Bhalia Variety of Wheat)
- जीआई प्रमाणित गेहूं में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और इसका स्वाद मीठा होता है।
- यह ज्यादातर गुजरात के भाल क्षेत्र में उगाया जाता है।यह अहमदाबाद, खेड़ा, आणंद, भावनगर, भावनगर और भरूच जिलों में भी उगाया जाता है।
- यह गेहूं की किस्म बिना सिंचाई के बारानी स्थिति में उगाई जाती है और गुजरात में दो लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में इसकी खेती की जाती है।
- गेहूं की भालिया किस्म को जुलाई, 2011 में जीआई प्रमाणीकरण प्राप्त हुआ था।
- जीआई प्रमाणन के पंजीकृत मालिक गुजरात में आणंद कृषि विश्वविद्यालय हैं।
गेहूं निर्यात
2020-21 में, भारत से गेहूं के निर्यात में 808% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई वित्तीय वर्ष 2020-2021 में गेहूं का निर्यात 444 करोड़ रुपये से बढ़कर 4034 करोड़ रुपये हो गया। अमेरिकी डॉलर के लिहाज से 2020-21 में गेहूं का निर्यात 778% बढ़कर 549 मिलियन डॉलर हो गया। भारत ने 2020-21 के दौरान यमन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, भूटान, ईरान, कंबोडिया और म्यांमार जैसे सात नए देशों को गेहूं का निर्यात किया।
भौगोलिक संकेत (Geographical Indication – GI) टैग
GI अपनी विशेष गुणवत्ता या प्रतिष्ठित विशेषताओं के कारण सदियों से अद्वितीय भौगोलिक उत्पत्ति और विकास वाले उत्पादों पर एक प्रतीक चिन्ह है। जीआई टैग प्रामाणिकता (authenticity) को चिह्नित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि पंजीकृत अधिकृत उपयोगकर्ता या भौगोलिक क्षेत्र के अंदर रहने वालों को लोकप्रिय उत्पाद नामों का उपयोग करने की अनुमति है। Geographical Indications of Goods (Registration & Protection) Act, 1999 जीआई टैग को नियंत्रित करता है। यह जियो ग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री, चेन्नई द्वारा जारी किया जाता है।
जीआई टैग के लाभ
जीआई टैग भारतीय भौगोलिक संकेतों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है और पंजीकृत जीआई के अनधिकृत उपयोग को रोकता है। यह उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है और अन्य देशों में उत्पादों की मान्यता प्राप्त करने में मदद करता है।
SOURCE-GK TODAY
दुनिया के सबसे ऊँचे सैंडकैसल
दुनिया का सबसे ऊंचा रेत महल (sandcastle) डेनमार्क में बनाया गया था। इसने 21.16 मीटर का नया गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है। डेनमार्क का नया सैंडकैसल 2019 में जर्मनी द्वारा बनाये गये 17.66 मीटर के पहले के रिकॉर्ड से 3.5 मीटर लंबा है।
मुख्य बिंदु
इसे गिरने से बचाने के लिए सैंडकैसल को त्रिकोण के आकार में बनाया गया है। रेत के महल के चारों ओर एक लकड़ी की संरचना बनाई गई है ताकि कलाकार रेत में अविश्वसनीय आकृतियों को उकेर सके। यह ब्लोखस (Blokhus) के छोटे से समुद्र तटीय गाँव में एक अत्यधिक सजाया हुआ स्मारक है। यह 4860 टन रेत से बना है।
ब्लोखस गांव (Blokhus Village)
यह गांव डेनमार्क के नॉर्थ जटलैंड (North Jutland) के जैमरबगट म्युनिसिपैलिटी (Jammerbugt Municipality) में स्थित है। यह गाँव एक लोकप्रिय समुद्र तटीय शहर है जहाँ हर साल लगभग 1 मिलियन पर्यटक आते हैं। इसे मूल रूप से हुन हवार (Hune Hvarre) नाम दिया गया था। 1600 के दशक में इस गांव में बमुश्किल कोई पेड़ था। इसलिए, लकड़ी नॉर्वे से आयात की जाती थी। लकड़ी को स्टोर करने के लिए, स्थानीय लोगों ने इसके बाहर कुछ घरों का निर्माण किया। इन घरों को ‘ब्लॉक हाउस’ कहा जाता है जिसके बाद गांव को डेनिश नाम ब्लोखस दिया गया है।
डेनमार्क (Denmark)
डेनमार्क उत्तरी यूरोप का एक नॉर्डिक (Nordic) देश है। यह सबसे दक्षिणी स्कैंडिनेवियाई देश है जिसमें एक प्रायद्वीप, जटलैंड और 443 नामित द्वीपों का एक द्वीपसमूह शामिल है। इसकी सीमा जर्मनी से लगती है। यह नाटो, नॉर्डिक काउंसिल, OECD, OSCE और संयुक्त राष्ट्र का संस्थापक सदस्य है ।
क्या डेनमार्क एक विकसित देश है?
हाँ, डेनमार्क एक विकसित देश है। डेनमार्क के लोगों का जीवन स्तर उच्च है। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, नागरिक स्वतंत्रता की सुरक्षा, लोकतांत्रिक शासन और एलजीबीटी समानता जैसे राष्ट्रीय प्रदर्शन के कई मैट्रिक्स में देश का उच्च स्थान है।
SOURCE-GK TODAY
टाइगर कॉरिडोर
राजस्थान सरकार ने रणथंभौर टाइगर रिजर्व, रामगढ़ विषधारी टाइगर रिजर्व और मुकुंदरा टाइगर रिजर्व को जोड़ने वाला एक टाइगर कॉरिडोर विकसित करने की योजना बनाई है।
रामगढ़ विषधारी अभयारण्य (Ramgarh Vishdhari Sanctuary)
- केंद्र सरकार ने हाल ही में रामगढ़ विषधारी अभयारण्य के निर्माण के लिए अपनी मंजूरी दे दी है।
- यह अभयारण्य पूर्वोत्तर में रणथंभौर टाइगर रिजर्व और दक्षिणी तरफ मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को जोड़ेगा।
- इस अभयारण्य के लिए प्रस्तावित स्थल राजस्थान के बूंदी जिले में है।यह सवाई माधोपुर जिले के रणथंभौर टाइगर रिजर्व और कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को जोड़ेगा।
प्रस्तावित टाइगर कॉरिडोर
आठ गांवों को स्थानांतरित कर टाइगर कॉरिडोर विकसित किया जाएगा। यह बाघों की अधिक जनसंख्या के मुद्दे से निपटने के लिए एक कार्यात्मक गलियारा होगा। रणथंभौर टाइगर रिजर्व में वर्तमान में 65 से अधिक बाघों की आबादी है। वहीं मुकुंदरा रिजर्व में सिर्फ एक टाइगर बचा है। इस प्रकार, इस टाइगर कॉरिडोर को जनसंख्या वितरण को संतुलित करने के लिए प्रस्तावित किया गया था।
रणथंभौर टाइगर रिजर्व (Ranthambore Tiger Reserve)
यह अभ्यारण्य अरावली और विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के जंक्शन पर स्थित है। इसमें रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाई मानसिंह अभयारण्य और केलादेवी अभयारण्य शामिल हैं। इस रिजर्व की वनस्पति में पठारों पर घास के मैदान जबकि मौसमी धाराओं के साथ घने जंगल शामिल हैं। आमतौर पर यहां उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं। आम पेड़ की प्रजाति ‘ढाक’ (Butea monsoperma) है, जो लंबे समय तक सूखे का सामना करने में सक्षम है। यह खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर बाघों के साथ वन्य जीवन में समृद्ध है। यह तेंदुओं का घर भी है।
मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व (Mukundra Hills Tiger Reserve)
यह रिजर्व 2013 में स्थापित किया गया था। यह दो समानांतर पहाड़ों, मुकुंदरा और गगरोला के बीच स्थित है। यह लगभग 80 किमी की लंबाई तक है।
SOURCE-GK TODAY