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Current Affairs 18 June 2021

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18 June Current Affairs

झंडा सत्याग्रह

आजादी के दीवानों ने जबलपुर में जो झंडा सत्याग्रह आंदोलन किया उससे ब्रिटिश सरकार की चूलें हिल गईं। जबलपुर के झंडा सत्याग्रह ने स्वतंत्रता आंदोलन के लिए एक संजीवनी का कार्य किया। दो साल बाद शताब्दी वर्ष मनाया जाएगा जिसमें देशभर में घर-घर में झण्डा फहराया जाएगा। यह बात आज जबलपुर में केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने झंडा सत्याग्रह कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कही। उन्होंने कहा कि बहुत संघर्ष एवं तपस्या के बाद मिली आजादी की रक्षा और देश के विकास के लिए हम कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। आजादी के अमृत महोत्सव के सिलसिले में शुक्रवार को जबलपुर में 1923 में हुए झंडा सत्याग्रह की यादें फिर से तरोताजा हो गईं।

झंडा सत्याग्रह ध्वज सत्याग्रह भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय का एक शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा आन्दोलन था जिसमें लोग राष्ट्रीय झण्डा फहराने के अपने अधिकार के तहत जगह-जगह झण्डे फहरा रहे थे। यह आन्दोलन १९२३ में जबलपुर में मुख्यतः हुआ किन्तु भारत के अन्य स्थानों पर भी अलग-अलग समय पर आन्दोलन हुए।

भारत में, ध्वज सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान शांतिपूर्ण नागरिक अवज्ञा का एक अभियान है जो राष्ट्रवादी झंडे को उछालने और भारत में ब्रिटिश शासन की वैधता को चुनौती देने के अधिकार और स्वतंत्रता का उपयोग करने पर केंद्रित है। राष्ट्रवादी झंडे के उछाल और नागरिक स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून। 1923 में नागपुर शहर में विशेष रूप से ध्वज सत्याग्रहों का आयोजन किया गया था, लेकिन भारत के कई अन्य हिस्सों में भी।

पृष्ठभूमि

जी और सार्वजनिक इमारतों (कभी-कभी सरकारी भवनों सहित) पर राष्ट्रवादी झंडे की लहराया, भारतीय आजादी के लिए क्रांतिकारी आंदोलन और क्रांतिकारी गदर पार्टी के सदस्यों के साथ विशेष रूप से विद्रोह का एक राष्ट्रवादी कार्य था। बाल गंगाधर तिलक , बिपीन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे राष्ट्रवादी नेताओं के उदय के साथ भारत के विद्रोह के इस तरह के कृत्यों ने मुद्रा भर ली।

ध्वज सत्याग्रह एक शब्द था जिसे ध्वज की उछाल का वर्णन नागरिक स्वतंत्रता पर ब्रिटिश लगाए गए प्रतिबंधों और भारत में ब्रिटिश शासन की वैधता के खिलाफ एक विद्रोह के रूप में किया गया था। असहयोग आंदोलन (1920-1922) और नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के एक प्रमुख तत्व के दौरान बढ़ते हुए, विद्रोह का अर्थ राष्ट्रवादी ध्वज के उत्थान को सत्याग्रह की तकनीक के साथ जोड़ना – गैर -विरोधी नागरिक अवज्ञा – महात्मा गांधी के रूप में अग्रणी। राष्ट्रवादियों को कानून का उल्लंघन करने और गिरफ्तार करने या पुलिस के खिलाफ प्रतिशोध के विरोध के बिना झंडा उड़ाया गया।

विद्रोह

संघर्ष और संघर्ष के दौरान गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्रवादी विद्रोहियों के दौरान ध्वज सत्याग्रहों के झगड़े सत्याग्रहों में से एक थे। राष्ट्रवादी ध्वज नियमित रूप से बड़ी प्रक्रियाओं और राष्ट्रवादी भीड़ द्वारा घोषित किया गया था। 31 दिसंबर 1929 को कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज की आजादी की घोषणा को कांग्रेस अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू के साथ रवि नदी के किनारे राष्ट्रवादी ध्वज फहराने का निष्कर्ष निकाला। 7 अगस्त 1942 को मुंबई में गोवालिया टैंक (तब बॉम्बे) में भारत छोड़ो विद्रोह के शुरू होने पर झंडा भी लगाया गया था।

नागपुर और जबलपुर का ध्वज सत्याग्रह 1923 में कई महीनों में हुआ था। राष्ट्रवादी प्रदर्शनकारियों की गिरफ्तारी ने झंडे को उछालने का अधिकार मांगने के कारण भारत भर में एक चिल्लाहट की वजह से गांधी को हाल ही में गिरफ्तार कर लिया गया था। सरदार वल्लभभाई पटेल, जमनालाल बजाज, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी , डॉ राजेंद्र प्रसाद और विनोबा भावे जैसे राष्ट्रवादी नेताओं ने विद्रोह का आयोजन किया और दक्षिण-पश्चिम में त्रावणकोर राज्य की रियासत  नागपुर और अन्य हिस्सों की यात्रा के दौरान विभिन्न क्षेत्रों के हजारों लोगों का आयोजन किया। नागरिक अवज्ञा में भाग लेने के लिए केंद्रीय प्रांतों (अब महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में)। अंत में, अंग्रेजों ने पटेल और अन्य कांग्रेस नेताओं के साथ एक समझौते पर बातचीत की, जिन्होंने प्रदर्शनकारियों को अपने मार्च का संचालन करने और गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को रिहा करने की अनुमति दी।

1938 में मैसूर (अब कर्नाटक में) में अन्य उल्लेखनीय ध्वज सत्याग्रह आयोजित किए गए थे। विद्रोहियों के कई समारोह और पुनर्मूल्यांकन सालगिरह समारोह, स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) और गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के हिस्से के रूप में हुए हैं।

SOURCE-PIB

 

EUNAVFOR अभ्यास

समुद्री डकैती रोधी अभियानों के लिए तैनात भारतीय नौसेना का जहाज त्रिकंद आज से एडन की खाड़ी में भारतीय नौसेना और यूरोपीय संघ नौसैनिक बल के बीच संयुक्त नौसैनिक अभ्यास के लिए पहली बार भाग ले रहा है। दिनांक 18 और 19 जून 2021 को होने वाले इस अभ्यास में चार नौसेनाओं के कुल पांच युद्धपोत हिस्सा ले रहे हैं। अन्य युद्धपोतों में इतालवी नौसेना जहाज आईटीएस कैराबिनेरे, स्पेनिश नौसेना जहाज ईएसपीएस नेवोर्रा, और दो फ्रांसीसी नौसेना जहाज एफएस टोन्नेर्रे और एफएस सोरकुर्फ शामिल हैं।

दो दिवसीय अभ्यास में समुद्र में उच्च स्तरीय नौसैनिक अभियान आयोजित होंगे, जिसमें उन्नत वायु रक्षा और पनडुब्बी रोधी अभ्यास, क्रॉस डेक हेलीकॉप्टर ऑपेरशन, सामरिक युद्धाभ्यास, बोर्डिंग ऑपरेशन, अंडरवे रिप्लेनिश्मेन्ट, खोजबीन एवं बचाव, मैन ओवरबोर्ड ड्रिल्स तथा अन्य समुद्री सुरक्षा अभियान शामिल हैं। चार नौसेनाओं के जहाज समुद्री क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए एक एकीकृत बल के रूप में अपने युद्धकौशल और उनकी क्षमता को बढ़ाने और निखारने का प्रयास करेंगे। इसके साथ ही दिनांक 18 जून 2021 को भारतीय नौसेना इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर-हिंद महासागर क्षेत्र और मेरीटाइम सिक्यूरिटी सेंटर- हॉर्न ऑफ अफ्रीका के बीच एक आभासी ढंग से एक “सूचना साझा करने का अभ्यास” भी आयोजित किया जा रहा है।

यूरोपीय संघ नौसैनिक बल और भारतीय नौसेना विश्व खाद्य कार्यक्रम चार्टर (यूएन डब्ल्यूएफपी) के तहत तैनात समुद्री डकैती अभियानों और जहाजों की सुरक्षा सहित अनेक मुद्दों पर साथ काम करते हैं। भारतीय नौसेना और यूरोपीय संघ नौसैनिक बल बहरीन में सालाना आयोजित एसएचएडीई (शेयर्ड अवेयरनेस एंड डी-कोन्फ्लिक्शन) बैठकों के माध्यम से नियमित बातचीत भी करते हैं। यह आपसी संपर्क भारतीय नौसेना और यूरोपीय संघ नौसैनिक बल के बीच तालमेल, समन्वय और अंतर-संचालनशीलता के स्तर में वृद्धि को प्रदर्शित करता है। यह समुद्रों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने और एक खुली, समावेशी और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता के तौर पर साझेदार नौसेनाओं के रूप में साझा मूल्यों को भी रेखांकित करता है।

अदन की खाड़ी

अदन की खाड़ी (अरबी: خليج عدن‎; ख़लीज़ अदन) अरब सागर मे, यमन (अरब प्रायद्वीप के दक्षिणी तट) और सोमालिया (अफ्रीका का सींग) के मध्य स्थित है। लाल सागर और अदन की खाड़ी को केवल 20 किलोमीटर चौड़ा बाब अल-मन्देब जलडमरूमध्य आपस में जोड़ता है।

यह जलमार्ग उस स्वेज नहर जलयान मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण भाग है, जो भूमध्य सागर को अरब सागर के द्वारा हिन्द महासागर से जोड़ता है और इस खाड़ी को प्रति वर्ष लगभग 21,000 जलयान पार करते हैं। इस खाड़ी में समुद्री डाकुओं द्वारा बड़े पैमाने पर की जा रहीं गतिविधियों के चलते इसे ‘जलदस्यु मार्ग’ भी कहते हैं।

‘अदन की खाड़ी’ के तटीय कगार रिफ़्ट भ्रंशों से बने हैं, जो कि दक्षिण–पश्चिम की ओर अभिसरित होकर पूर्वी अथवा ग्रेट रिफ़्ट वैली के सीमांत कगारों के रूप में अफ़्रीका तक जाते हैं और पूर्वी अफ़्रीकी रिफ़्ट प्रणाली का एक हिस्सा है। अरब बेसिन ‘ओमान की खाड़ी’ के बेसिन से, एक संकरे, भूकम्प सक्रिय जलमग्न मर्रे कटक द्वारा विभाजित है, जो कि पूर्वोत्तर से दक्षिण–पश्चिम में विस्तृत होकर कार्ल्सबर्ग से मिलता है। खाड़ी में पहले से ही अमेरिका, रूस और अन्य यूरोपीय देशों के नौसैनिक पोत समुद्री लुटेरों के कारण गश्त लगाते रहते हैं। इसके बाद भी यहाँ डकैती और अपहरण की घटनाएँ हो रही हैं।

यूरोपियन यूनियन

यूरोपियन यूनियन 28 देशों का एक समूह है जो एक संसक्त आर्थिक और राजनीतिक ब्लॉक के रूप में कार्य करता है।

इसके 19 सदस्य देश अपनी आधिकारिक मुद्रा के तौर पर ‘यूरो’ का उपयोग करते हैं, जबकि 9 सदस्य देश (बुल्गारिया, क्रोएशिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया, स्वीडन एवं यूनाइटेड किंगडम) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं।

यूरोपीय देशों के मध्य सदियों से चली आ रही लड़ाई को समाप्त करने के लिये यूरोपीय संघ के रूप में एक एकल यूरोपीय राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा विकसित हुई जिसका द्वितीय विश्व युद्ध के साथ समापन हुआ और इस महाद्वीप का अधिकांश भाग समाप्त हो गया।

EU ने कानूनों की मानकीकृत प्रणाली के माध्यम से एक आंतरिक एकल बाज़ार (Internal Single Market) विकसित किया है जो सभी सदस्य राज्यों के मामलों में लागू होता है और सभी सदस्य देशों की इस पर एक राय होती है।

लक्ष्य

  • EU के सभी नागरिकों के लिये शांति, मूल्य एवं कल्याण को प्रोत्साहित करना।
  • आंतरिक सीमाओं के बिना स्वतंत्रता, सुरक्षा एवं न्याय प्रदान करना।
  • यह सतत् विकास, संतुलित आर्थिक वृद्धि एवं मूल्य स्थिरता, पूर्ण रोज़गार और सामाजिक प्रगति के साथ एक अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बाज़ार अर्थव्यवस्था और पर्यावरणीय सुरक्षा पर आधारित है।
  • सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का निराकरण।
  • वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना।
  • EU देशों के मध्य आर्थिक, सामाजिक और क्षेत्रीय एकजुटता एवं समन्वय को बढ़ावा देना।
  • इसकी समृद्ध सांस्कृतिक और भाषायी विविधता का सम्मान करना
  • एक आर्थिक और मौद्रिक यूनियन की स्थापना करना जिसकी मुद्रा यूरो है।

SOURCE-PIB

 

न्यूजऑनएयर रेडियो लाइवस्ट्रीम ग्लो बल रैंकिंग

आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) की 240 से भी अधिक रेडियो सेवाओं का ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाता है, जो प्रसार भारती का आधिकारिक एप है। ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर उपलब्धी आकाशवाणी की इन स्ट्रीम के श्रोतागण बड़ी संख्या में हैं जो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में 85 से भी अधिक देशों में और विश्वय भर के 8000 शहरों में भी हैं।

यहां भारत के अलावा उन शीर्ष देशों की भी एक झलक पेश की गई है, जहां ‘न्यूजऑनएयर’ सबसे लोकप्रिय है; दुनिया के बाकी हिस्सों में ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर उपलब्धय आकाशवाणी की शीर्ष स्ट्रीम की भी एक झलक पेश की गई है। आप इसका देश-वार विवरण भी देख सकते हैं। ये समस्तप रैंकिंग 1 जून से लेकर 15 जून, 2021 तक के पाक्षिक आंकड़ों पर आधारित हैं। इस डेटा में भारत शामिल नहीं है।

इन नई रैंकिंग में एक अहम बदलाव के तहत इन देशों में ‘न्यूजऑनएयर एप’ की लोकप्रियता के आधार पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने फ्रांस को पूरी दुनिया में शीर्ष देश के रूप में विस्थापित कर दिया है या पीछे छोड़ दिया है। फ्रांस अब दूसरे नंबर पर है। जापान शीर्ष 10 देशों की श्रेणी में शामिल होने वाला नया देश है।

SOURCE-PIB

 

विश्व सिकल सेल दिवस

जनजातीय कार्य मंत्री श्री अर्जुन मुंडा कल ‘सिकल सेल बीमारी’ पर हो रहे दूसरे राष्ट्रीय सिकल सेल कॉनक्लेव का वर्चुअल माध्यम से शुभारम्भ करेंगे। यह कॉनक्लेव हर साल की तरह इस बार भी 19 जून, 2021 को विश्व सिकल सेल दिवस के उपलक्ष्य में हो रही है। जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरुता इस कार्यक्रम में सिकल सेल बीमारी पर एक विशेष संबोधन देंगी।

सिकल सेल बीमारी (एससीडी), जो विरासत में मिला सबसे प्रचलित रक्त विकार है, भारत में व्यापक रूप से कई जनजातीय समूहों में पाई जाती है और यह कई राज्यों में स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। भले ही इसके कई किफायती उपचार हैं जिससे भारत में रोगियों की संख्या और मौत के मामलों में नाटकीय रूप से कमी आई है, लेकिन भारत के जनजातीय इलाकों में एससीडी उपचार तक पहुंच सीमित बनी हुई है। भारत में यह बीमारी मुख्य रूप से झारखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिमी ओडिशा, पूर्वी गुजरात और उत्तरी तमिलनाडु व केरल में नीलगिरी पहाड़ियों के कुछ इलाकों में प्रचलित है।

सिकल सेल जीन के इस अत्यधिक प्रसार के बावजूद भी, अधिकांश लोग माता-पिता से प्राप्त इस आनुवांशिक रोग के वैज्ञानिक आधार से अपरिचित हैं। यह हालात सिकल सेल रोगियों और उनके परिवार के लिये चिकित्सकीय बोझ के साथ-साथ गंभीर सामाजिक, मानसिक एवं आर्थिक कठनाई उत्पन्न करताहै। रोग से जुड़ा सामाजिक कलंक, उनकी पीड़ा को और अधिक बढ़ा देता है।

सिकल सेल रोग और पैथोफिजियोलोजी

सिकल सेल रोग/एनीमिया सिकल सेल रोग माता-पिता से प्राप्त असामान्य जीन से उत्पन्न आनुवांशिक विकार है। सामान्य लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) उभयावतल डिस्क के आकार की होती हैं और रक्तवाहिकाओं में आसानी से प्रवाहित होती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाएं का आकार अर्धचंद्र/हंसिया(सिकल) जैसा हो जाता है। ये असामान्य लाल क्त कोशिकाएं (RBC)कठोर और चिपचिपी होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं। अवरूद्ध रक्त प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और विभिन्न अंगो को क्षति पहुँचाता है। वैज्ञानिक अनुसंधान में पाया गया है कि सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान करता है और सामान्यतः मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है। जैव विकास के दौरान सिकल सेल जीन अफ्रीकी पूर्वजों में उत्पन्न हुआ और इसके मलेरिया प्रतिरोधी गुण के कारण अन्य मलेरियाग्रस्त क्षेत्रों में भी तेजी से फैल गया। यह अफ्रीका के अलावा भूमध्य सागर, मध्य पूर्व और भारत में पाया जाता है।यह बीमारी यूरोप, अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र में भी पायी गयी है भारत में यह छत्तीसगढ़, उड़ीसा, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और केरल के कुछ हिस्सों में पायी जाती है।

आनुवांशिकी

लाल रक्त कोशिकाएं, अस्थि-मज्जा में बनती हैं और इनकी औसत आयु 120 दिन होती है। सिकल सेल लाल रक्त कोशिकाएं का जीवन काल केवल 10-20 दिनों का होता है और अस्थि मज्जा उन्हें तेजी से पर्याप्त मात्रा में बदल नहीं पाती हैं। नतीजन शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं की समान्य संख्या और हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है। लाल रक्त कोशिकाएं के आकार में परिवर्तन हीमोग्लोबिन जीन के एक न्युक्लियोटाइड में उत्परिवर्तन से होता है। जिसके कारण असामान्य हीमोग्लोबिन का संश्लेषण होता है। सिकल सेल ट्रेट व्यक्ति को एक सामान्य जीन एक जनक से, और एक असामान्य जीन दूसरे जनक से प्राप्त होता है। इनमें आम तौर पर कोई लक्षण नहीं मिलते हैं, लेकिन वे अपनी संतान को सिकल हीमोग्लोबिन जीन प्रदान करते हैं।

स्थिति

सिकल सेल एनीमिया का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। हालांकि रोग की जटिलताओं के और एनीमिया के  उपचार से रोगियों में लक्षण और रोग की जटिलताओं को कम किया जा सकता है। रक्त मज्जा और स्टेम सेल प्रत्यारोपण के द्वारा सीमित लोगों  का इलाज किया जा सकता है। सिकल सेल एनीमिया हर व्यक्ति में भिन्न होता है। कुछ लोगों को दीर्घावधि दर्द या थकान होती है। हालांकि स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार, उचित देखभाल और उपचार के द्वारा रोगियों के जीवन में सुधार लाया जा सकता हैं। सिकल सेल एनीमिया के कई रोगी ऐसे भी हैं जो उचित उपचार और देखभाल की वजह से चालीसवें/पचासवें वर्ष या उससे अधिक आयु में भी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

पैथोफिजियोलॉजी

जीन उत्परिवर्तन के कारण हीमोग्लोबीन प्रोटीन के β चेन के छठे अमीनो एसिड ग्लुटामिक एसिड का वैलीन द्वारा प्रतिस्थापन हो जाता है। जिससे हीमोग्लोबीन की संरचना एवं क्रियाओं में बदलाव हो जाता है और सिकल सेल रोग उत्पन्न करता है। इस उत्परिवर्तन के कारण, ऑक्सीजन के सामान्य स्तर की स्थिति में सिकल हीमोग्लोबीन की सेकेण्डरी, टरशियरी या क्वाटरनरी संरचना पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं होता है। लेकिन ऑक्सीजन की कम उपलब्धता मं  सिकल हीमोग्लोबीन पोलीमेराइज होकर एक लम्बी तथा रस्सी जैसी संरचना बना लेती है। इस कारण आर.बी.सी. (R.B.C.) का आकार बदलकर हँसिये जैसा हो जाता है। ये विकृत आर.बी.सी. छोटी रक्त वाहिकाओं में अवरोध उत्पन्न करती हैं और रक्त वाहिकाओं तथा विभिन्न अंगों की संरचना को क्षति पहुँचाने के साथ-साथ दर्द एवं सिकल सेल रोग के अन्य लक्षण को उत्पन्न करती हैं।

मुख्यतः सिकल सेल रोग में हीमोलाइसिस और वैसो-ओक्क्लुसिव क्राइसिस होता है।

  • हीमोलाइसिस के परिणामस्वरुप एनीमिया तथा नाइट्रिक ऑक्साइड की कमी हो जाती है जो वेस्कुलर इण्डोथेलियल क्षति, पल्मोनरी हाइपरटेंशन, प्रायपिज्म और स्ट्रोक के रूप में जटिलताओं को जन्म देती है।
  • वेसो-ओक्लुसन के कारण इस्चिमिया, तेज दर्द और अंगों में क्षति होती है। सि कल सेल रोग, सिकल सेल एनीमिया के अलावा कम्पाउण्ड हेटेरोजाइगोटिक स्थिति को भी संदर्भित करता है।

कम्पाउण्ड हेटेरोजाइगोटिक स्थिति में एक β ग्लोबीन जीन में HbC, HbS β थेलेसेमिया HbD या HbO का उत्परिवर्तन होता है। सिकल सेल रोग में HbS कुल हीमोग्लोबिन का 50% से ज्यादा होता है।

SOURCE-PIB

 

वैश्विक शांति सूचकांक

Institute for Economics and Peace (IEP) सिडनी द्वारा Global Peace Index (GPI) के 15वें संस्करण को हाल ही में जारी किया गया।

मुख्य बिंदु

  • GPI वैश्विक शांति का विश्व का प्रमुख माप है।
  • यह सूचकांक 163 स्वतंत्र देशों और क्षेत्रों को उनकी शांति के स्तर के अनुसार रैंक करता है।
  • यह रिपोर्ट शांति की प्रवृत्तियों, इसके आर्थिक मूल्य पर एक व्यापक डेटा-संचालित विश्लेषण प्रदान करती है और शांतिपूर्ण समाजों को विकसित करने की सिफारिश करती है।

रैंकिंग

  • 2008 के बाद से आइसलैंड दुनिया भर में सबसे शांतिपूर्ण देश है।
  • आइसलैंड डेनमार्क, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल और स्लोवेनिया जैसे अन्य देश सबसे शांतिपूर्ण हैं।
  • अफगानिस्तान लगातार चौथे वर्ष फिर से सबसे कम शांतिपूर्ण देश है।
  • इसके बाद यमन, सीरिया, दक्षिण सूडान और इराक का स्थान है।

भारत और उसके पड़ोसी

  • भारत पिछले साल की रैंकिंग से दो पायदान ऊपर चढ़ गया है।यह 135वां सबसे शांतिपूर्ण देश बन गया है, जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र में 5वां शांतिपूर्ण देश है।
  • इस क्षेत्र में भूटान और नेपाल पहले और दूसरे सबसे शांतिपूर्ण हैं।
  • बांग्लादेश दुनिया भर के 163 देशों में से 91वें स्थान पर था जबकि दक्षिण एशिया में तीसरे स्थान पर था।
  • श्रीलंका 19वें स्थान की गिरावट के साथ 95वां शांतिपूर्ण देश बन गया, जबकि दक्षिण एशिया क्षेत्र में इसका चौथा स्थान है।
  • पाकिस्तान ने विश्व स्तर पर 150वीं रैंक हासिल की।

SOURCE-GK TODAY

 

विश्व प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक

विश्व प्रतिस्पर्धात्मकता सूचकांक (World Competitiveness Index) Institute for Management Development (IMD) द्वारा संकलित किया गया है जो दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं पर COVID-19 के प्रभाव की जांच करता है।

मुख्य बिंदु

इस सूचकांक में 64 देशों में भारत 43वें स्थान पर था।

  • स्विट्जरलैंड इस सूची में सबसे ऊपर है और उसके बाद स्वीडन, डेनमार्क, नीदरलैंड और सिंगापुर का स्थान है।
  • ताइवान को 8वेंस्थान पर रखा गया था , जो 33 वर्षों में पहली बार शीर्ष -10 में पहुंचा।
  • यूएई 9वें और अमेरिका 10वें स्थान पर हैं।
  • शीर्ष प्रदर्शन करने वाली एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में सिंगापुर (5वें), हांगकांग (7वें), ताइवान (8वें) और चीन (16वें) शामिल हैं।

IMD World Competitiveness Ranking

यह सूचकांक 64 अर्थव्यवस्थाओं को रैंक करता है और यह आकलन करता है कि कोई भी देश अपने लोगों की समृद्धि को किस हद तक बढ़ावा देता है। इस सूचकांक ने 33 साल पहले डेटा और अधिकारियों के सर्वेक्षण प्रतिक्रियाओं के माध्यम से देशों की भलाई को मापकर देशों की रैंकिंग शुरू की थी। इसे IMD World Competitiveness Center द्वारा जारी किया जाता है।

ब्रिक्स राष्ट्र

ब्रिक्स में चीन (16वें) के बाद भारत (43वें) दूसरे स्थान पर है। भारत के बाद रूस (45वें), ब्राजील (57वें) और दक्षिण अफ्रीका (62वें) स्थान पर है।

भारत की रैंक में सुधार कैसे हुआ?

कोविड-19 महामारी के बीच अपेक्षाकृत स्थिर सार्वजनिक वित्त के कारण भारत ने सरकारी दक्षता कारक (government efficiency factor) में सुधार दर्ज किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार नवाचार में निवेश, कल्याणकारी लाभ और नेतृत्व, डिजिटलीकरण जैसे गुणों ने देशों को उच्च रैंक प्राप्त करने में मदद की है।

SOURCE-GK TODAY

 

स्टाइगारक्टस केरलेंसिस

केरल में “स्टाइगारक्टस केरलेंसिस” (Stygarctus Keralensis) नाम की एक नई प्रजाति की पहचान की गई है। टार्डीग्रेड्स की इस छोटी और सख्त प्रजाति का नाम केरल के नाम पर रखा गया है।

टार्डिग्रेड्स (Tardigrades)

टार्डिग्रेड्स छोटी प्रजातियां हैं जिन्हें आमतौर पर ‘वाटर बियर’ (water bears) और ‘मॉस पिगलेट’ (moss piglets) कहा जाता है। वे इतने छोटे हैं कि उनका अध्ययन करने के लिए अत्याधुनिक सूक्ष्मदर्शी की आवश्यकता होती है। वे अपने आकार के बावजूद पृथ्वी पर सबसे कठोर जानवर भी हैं। उन्हें पहली बार 1773 में जर्मन प्राणी विज्ञानी जोहान अगस्त एप्रैम गोएज़ (Johann August Ephraim Goeze) द्वारा वर्णित किया गया था। उन्होंने इन प्रजातियों को क्लेनर वासरबार (Kleiner Wasserbar) कहा था।

स्टाइगारक्टस केरलेंसिस (Stygarctus keralensis)

यह नई टार्डीग्रेड प्रजाति जीनस स्टाइगारक्टस से संबंधित है। वे भारतीय जल से पहली टैक्सोनॉमिक रूप से वर्णित समुद्री टार्डिग्रेड हैं। Stygarctus keralensis की खोज उत्तरी केरल के वडकारा से हुई थी। ये जीनस स्टाइगारक्टस के तहत नामित आठवीं प्रजाति हैं। वे 130 माइक्रोमीटर (0.13 मिमी) की लंबाई तक बढ़ते हैं और पहाड़ की चोटी के साथ-साथ गहरे समुद्र में भी पाए जाते हैं।

स्टाइगारक्टस (Stygarctus)

Stygarctus परिवार Stygarctidae के tardigrades की एक प्रजाति है। इसका नाम 1951 में एरिच शुल्ज (Erich Schulz) ने रखा था।

SOURCE-THE HINDU

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