DRDO का स्क्रैमजेट परीक्षण और भारत की हाइपरसोनिक हथियारों की दौड़:
चर्चा में क्यों है?
- रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने हाल ही में भारत में पहली बार 120 सेकंड के लिए स्क्रैमजेट कॉम्बस्टर ग्राउंड टेस्ट का प्रदर्शन किया। रक्षा मंत्रालय (MoD) ने इसे अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक मिसाइलों के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया है।
- उल्लेखनीय है कि हाइपरसोनिक मिसाइलें उन्नत हथियारों का एक वर्ग है जो ‘मैक 5’ – ध्वनि की गति से पांच गुना अधिक- से अधिक गति से यात्रा करते हैं।
रैमजेट और स्क्रैमजेट इंजन क्या होता है?
- रैमजेट वायु-श्वसन जेट इंजन होते हैं जो बिना किसी घूमने वाले कंप्रेसर के इंजन में दहन के लिए आने वाली वायु को संपीड़ित करने के लिए वाहन की आगे की गति का उपयोग करते हैं। ईंधन को दहन कक्ष में इंजेक्ट किया जाता है जहां यह गर्म संपीड़ित हवा के साथ मिलकर प्रज्वलित होता है। रैमजेट-संचालित वाहन को गति बढ़ाने के लिए रॉकेट असिस्ट जैसे सहायक टेक-ऑफ की आवश्यकता होती है जहाँ यह थ्रस्ट पैदा करना शुरू कर देता है।
- रैमजेट मैक 3 के आसपास सुपरसोनिक गति पर सबसे अधिक कुशलता से काम करते हैं। हालांकि, वाहन के हाइपरसोनिक गति (मैक 5) से ऊपर पहुंचने पर रैमजेट दक्षता कम हो जाती है।
- यही वह जगह है जहाँ सुपरसोनिक दहन रैमजेट या ‘स्क्रैमजेट’ इंजन काम आता है। यह कुशलता से हाइपरसोनिक गति से संचालित होता है और सुपरसोनिक दहन की अनुमति देता है।
- स्क्रैमजेट में मूलभूत परिवर्तन यह है कि इसके दहन कक्ष में हवा धीमी नहीं होती है बल्कि पूरे इंजन में सुपरसोनिक रहती है। यह स्क्रैमजेट के डिजाइन, विकास और संचालन को और अधिक चुनौतीपूर्ण बनाता है।
120 सेकंड का स्क्रैमजेट ग्राउंड परीक्षण:
- नवीनतम 120 सेकंड का स्क्रैमजेट ग्राउंड परीक्षण DRDO की हैदराबाद स्थित सुविधा DRDL द्वारा किए गए व्यापक कार्य का परिणाम है। यह सुविधा एक लंबी अवधि के सुपरसोनिक दहन रैमजेट या स्क्रैमजेट-संचालित हाइपरसोनिक तकनीक विकसित करने की दिशा में काम कर रही है।
- DRDL ने भारत में पहली बार 120 सेकंड के लिए एक्टिव कूल्ड स्क्रैमजेट कॉम्बस्टर का सफल ग्राउंड परीक्षण किया, जिससे एक बड़ी उपलब्धि हासिल हुई। स्क्रैमजेट कॉम्बस्टर के ग्राउंड परीक्षण ने कई उल्लेखनीय उपलब्धियों को प्रदर्शित किया, जिसमें सफल प्रज्वलन और स्थिर दहन जैसे हाइपरसोनिक वाहनों में परिचालन उपयोग के लिए इसकी क्षमता का प्रदर्शन किया गया।
- हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों के विकास के बीच एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि थर्मल बैरियर कोटिंग (TBC) का विकास है जिसे हाइपरसोनिक उड़ान के दौरान आने वाले अत्यधिक तापमान का सामना करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। उच्च तापीय प्रतिरोध के साथ एक नया उन्नत सिरेमिक TBC, DRDL और विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
भारत में हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों का विकास:
- DRDO, इसरो और शिक्षा जगत तथा उद्योग जगत में उनके साझेदार पिछले दो दशकों से हाइपरसोनिक इंजन तथा हाइपरसोनिक प्रणालियों के लिए आवश्यक अन्य प्रौद्योगिकियों पर काम कर रहे हैं।
इसरो के तहत हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों का विकास:
- इसरो के एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन प्रोजेक्ट में एक महत्वपूर्ण विकास 28 अगस्त, 2016 को हुआ, जब इसके स्क्रैमजेट का सफल उड़ान परीक्षण किया गया। 22 जुलाई, 2024 को एयर ब्रीदिंग प्रोपल्शन तकनीक के प्रदर्शन के लिए एक और प्रायोगिक उड़ान की गयी।
- इसरो का ध्यान अब ‘हाइपरसोनिक एयर ब्रीदिंग व्हीकल विद एयर इंटीग्रेशन सिस्टम (HAVA)’ परियोजना और महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास पर है।
- इसरो अपने भविष्य के वाहनों के लिए स्क्रैमजेट तकनीक का उपयोग करने की भी योजना बना रहा है, क्योंकि स्क्रैमजेट इंजनों को ऑक्सीडाइज के रूप में ऑक्सीजन ले जाने की आवश्यकता नहीं होती है।
DRDO के तहत हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों का विकास:
- DRDO ने 2000 के दशक की शुरुआत में हाइपरसोनिक इंजन और उससे संबंधित प्रणालियों को विकसित करना शुरू किया था। 7 सितंबर, 2020 को, DRDO ने ओडिशा के तट से दूर व्हीलर द्वीप पर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम लॉन्च कॉम्प्लेक्स से ‘हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन वाहन (HSTDV)’ की उड़ान परीक्षण के साथ हाइपरसोनिक एयर-ब्रीदिंग स्क्रैमजेट तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया।
- दिसंबर 2020 में, DRDO ने हैदराबाद में उन्नत हाइपरसोनिक विंड टनल (HWT) परीक्षण सुविधा का उद्घाटन किया, जो मैक 5 से 12 की गति का अनुकरण कर सकती है। अमेरिका और रूस के बाद, आकार और संचालन क्षमता में इतनी बड़ी सुविधा रखने वाला भारत तीसरा देश बन गया।
शिक्षा जगत के तहत हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकियों का विकास:
- फरवरी 2024 में, भारत की पहली हाइपरवेलोसिटी एक्सपेंशन टनल टेस्ट सुविधा को IIT, कानपुर द्वारा सफलतापूर्वक स्थापित और परीक्षण किया गया। इस उपलब्धि ने भारत को इस उन्नत हाइपरसोनिक परीक्षण क्षमता वाले मुट्ठी भर देशों में शामिल कर दिया।
हाइपरसोनिक हथियारों का रणनीतिक महत्व:
- हाइपरसोनिक हथियारों में दुनिया भर की प्रमुख सैन्य शक्तियों की मौजूदा वायु रक्षा प्रणालियों को मात देने की क्षमता है, और वे उच्च प्रभाव वाले हमले कर सकते हैं।
- अमेरिका, रूस, भारत और चीन सहित कई देश सक्रिय रूप से हाइपरसोनिक तकनीक का अनुसरण कर रहे हैं और उन्होंने विकास के विभिन्न स्तरों का प्रदर्शन किया है।
- हाइपरसोनिक क्षेत्र में दौड़ का कारण यह है कि वे सशस्त्र बलों की सबसे उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियों से निपटने और न्यूनतम चेतावनी के साथ लक्ष्यों को भेदने की क्षमता को ढ़ाते हैं।
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