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भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) में अपनी स्थिति कैसे मजबूत कर सकता है?

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भारत वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) में अपनी स्थिति कैसे मजबूत कर सकता है?

परिचय:

  • भारत की आबादी दुनिया की 18% है, लेकिन इसका वैश्विक GDP में योगदान 3.5% और वैश्विक व्यापार में योगदान 2% से भी काम है। वहीं, वैश्विक मूल्य श्रृंखलाएं (GVC) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 70% से अधिक योगदान देती हैं, इसलिए भारत की विकास यात्रा GVC में एकीकरण और विस्तार पर निर्भर करती है।
  • ऐसे में तेजी से विकास के लिए, भारत को निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जिसे वह GVC अग्रणी फर्मों के साथ अपनी विनिर्माण क्षमताओं को संरेखित करके और वैश्विक प्रतिस्पर्धी पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देकर हासिल कर सकता है।

भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर:

  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से स्मार्टफोन विनिर्माण, वैश्विक ब्रांडों का लाभ उठाने की क्षमता का उदाहरण है। 2016 में, भारत ने अपने लगभग 80% स्मार्टफोन आयात किए, लेकिन आज देश ने लगभग पूर्ण आयात प्रतिस्थापन हासिल कर लिया है और 15 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के स्मार्टफोन निर्यात कर रहा है।
  • इस सफलता को मुख्य रूप से Apple जैसी वैश्विक कंपनियों के साथ सहयोग करके आगे बढ़ाया गया है, जिसने 150,000 से अधिक ब्लू कॉलर नौकरियों का सृजन किया है, जिसमें 70% से अधिक कार्यबल महिलाएं हैं।
  • उल्लेखनीय है कि भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र अब एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है। यह 2030 तक 500 अरब डॉलर का उत्पादन प्राप्त कर सकता है, जिससे 2.4 करोड़ नौकरियां पैदा होंगी, या इस क्षमता के आधे से भी कम पर स्थिर हो सकता है।
  • ऐसे में इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करना भारत के स्थायी प्रतिष्ठान (PE) विनियमों में महत्वपूर्ण बाधाओं को दूर करने पर निर्भर करेगा जो वैश्विक ब्रांडों को भारत में अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को पूरी तरह से जोड़ने से हतोत्साहित करते हैं।

स्थायी प्रतिष्ठान (PE) क्या होता है?

  • स्थायी प्रतिष्ठान (PE) से तात्पर्य व्यवसाय के एक निश्चित स्थान से है जिसके माध्यम से कोई कंपनी किसी अन्य देश में, पूर्णतः या आंशिक रूप से, अपना व्यवसाय संचालित करती है। यह अंतर्राष्ट्रीय कराधान में एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो यह निर्धारित करती है कि कोई विदेशी कंपनी किसी विशेष देश में करों का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है या नहीं।
  • उल्लेखनीय है कि भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उद्योग के संदर्भ में, स्थायी प्रतिष्ठानों का विनियमन, वैश्विक ब्रांडों द्वारा अपनी आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने के तरीके को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे भारतीय बाजार में पूरी तरह से एकीकृत होने की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।

स्थायी प्रतिष्ठान (PE) का विनियम क्यों मायने रखता है?

  • भारत के स्थायी प्रतिष्ठान (PE) नियम इन्वेंट्री के भंडारण या पूंजीगत उपकरणों की खेप को कर योग्य उपस्थिति बनाने के रूप में मान सकते हैं। नतीजतन, इन विदेशी फर्मों के वैश्विक मुनाफे का एक हिस्सा भारतीय करों के अधीन हो सकता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण जैसे उद्योग के लिए, जहां प्रमुख फर्मों, अनुबंध निर्माताओं और सैकड़ों आपूर्तिकर्ताओं का समन्वय आवश्यक है, आपूर्ति श्रृंखला दक्षता महत्वपूर्ण होती है। उदाहरण के लिए, iPhone 50 देशों के 180+ आपूर्तिकर्ताओं के घटकों को एकीकृत करता है।
  • इसके अलावा, तकनीकी परिवर्तन की तीव्र गति का मतलब है कि उत्पादन लाइनों को बार-बार अपग्रेड या रीटूल करना होगा, जिसके लिए महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होगी। इसलिए कोई भी घर्षण – जैसे कि वेयरहाउसिंग या पूंजीगत उपकरणों को भेजने से उत्पन्न होने वाली अनुचित देनदारियां – GVC खिलाड़ियों को स्थानीय उपस्थिति स्थापित करने से रोकती हैं।
  • उल्लेखनीय है कि चीन और वियतनाम ने उपर्युक्त विनियामक बाधाओं को कम करके इलेक्ट्रॉनिक्स वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं (GVC) में दबदबा बना लिया है। यदि भारत एक प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यातक बनना चाहता है, तो उसे भी इन नियामक चुनौतियों को दूर करना होगा।

भारत को इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट हब बनाने की आवश्यकता:

  • मोबाइल निर्माण में लॉजिस्टिक्स जटिल है, जहाँ कॉन्ट्रैक्ट निर्माताओं को प्रतिदिन हज़ारों कंपोनेंट्स को संग्रहीत और असेंबली लाइनों में भेजना पड़ता है। वे सैकड़ों आपूर्तिकर्ताओं के साथ कीमत और गुणवत्ता पर भी बातचीत करते हैं, जिससे अनावश्यक घर्षण बढ़ता है।
  • दुनिया भर में इस समस्या का समाधान वेंडर मैनेज्ड इन्वेंट्री (VMI) मॉडल से किया गया है, जहाँ घटक विक्रेता ब्रांडों के साथ सीधे सौदे कर, इन्वेंट्री का प्रबंधन विनिर्माण स्थलों के पास गोदामों से करते हैं। इससे कीमत और देरी कम होती है, और निर्माता उत्पादन पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं।
  • हालांकि, भारत के PE नियम इस मॉडल को हतोत्साहित करते हैं, क्योंकि यदि कोई वैश्विक आपूर्तिकर्ता भारत में गोदाम रखता है, तो उसे स्थायी प्रतिष्ठान (PE) मानकर कर देयता लग सकती है। इससे अनुबंध निर्माताओं पर इन्वेंट्री प्रबंधन का अतिरिक्त बोझ आ जाता है। ऐसे में भारत में VMI को सक्षम करने से, अनुबंध निर्माताओं का परिचालन बोझ कम होगा, भारत में वैश्विक घटक केंद्रों की स्थापना होगी और स्थानीय उद्यमियों को अत्याधुनिक घटकों तक पहुंच मिलेगी, जिससे नवाचार और उत्पाद-अर्थव्यवस्था का विकास तेज होगा।

पूंजीगत उपकरणों की चुनौती का समाधान:

  • भारत में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए 40 अरब डॉलर के पूंजीगत उपकरण निवेश की जरूरत होगी। हालांकि, तकनीकी प्रगति के कारण उपकरणों का जीवनकाल छोटा होता है और बार-बार अपग्रेड की आवश्यकता होती है, जिससे अधिकांश अनुबंध निर्माता इतने बड़े निवेश में असमर्थ या अनिच्छुक रहते हैं।
  • चीन और वियतनाम में, वैश्विक ब्रांड निष्क्रिय स्वामित्व मॉडल अपनाते हैं, जहाँ वे खुद उपकरण खरीदकर निर्माताओं को निःशुल्क उपलब्ध कराते हैं। इससे पुराने उपकरणों का पुन: उपयोग संभव हो जाता है और खरीद प्रबंधन आसान हो जाता है।
  • लेकिन भारत में PE विनियमन इस मॉडल को अपनाने में बाधा डालते हैं, जिससे भारतीय निर्माताओं को पूरी पूंजी लागत खुद वहन करनी पड़ती है। इससे वे चीनी और वियतनामी प्रतिस्पर्धियों की तुलना में कमजोर पड़ते हैं। यदि इस मुद्दे को हल किया जाए, तो न केवल निर्माताओं का वित्तीय बोझ कम होगा, बल्कि सरकार द्वारा पूंजीगत उपकरणों की सब्सिडी की आवश्यकता भी घट जाएगी।

भारत में GVC एकीकरण और PE बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता:

  • उल्लेखनीय है कि इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में वैश्विक नेता बनने की भारत की महत्वाकांक्षा भारत में GVC ब्रांडों को आकर्षित करने और उनके संचालन को बढ़ाने की इसकी क्षमता पर निर्भर करती है। PE बाधाओं को संबोधित करना इस लक्ष्य को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण कदम है।
  • वित्त मंत्री ने गैर-निवासियों के लिए कर निश्चितता के लिए सुरक्षित बंदरगाह ढांचे की घोषणा की, जो निर्दिष्ट इकाइयों को घटकों की आपूर्ति के लिए इन्वेंट्री संग्रहीत करने की अनुमति देगा। हालांकि, सैकड़ों विक्रेताओं के लिए इस ढांचे में प्रवेश प्रशासनिक रूप से जटिल होगा, जिससे घटक खेप में और बाधाएं आ सकती हैं।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए, भारत के पास इलेक्ट्रॉनिक्स GVC में प्रमुख खिलाड़ी बनने के लिए सीमित समय है। यह सिर्फ कर बोझ कम करने का मामला नहीं है, बल्कि एक प्रतिस्पर्धी, नवाचार-समर्थक और सतत विकास वाला पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की आवश्यकता है।

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