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ब्रह्मपुत्र पर चीनी बांध भारत में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को कैसे प्रभावित कर सकता है?

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ब्रह्मपुत्र पर चीनी बांध भारत में ब्रह्मपुत्र के प्रवाह को कैसे प्रभावित कर सकता है?

चर्चा में क्यों है?

  • हाल ही में असम के मुख्यमंत्री ने ब्रह्मपुत्र पर चीन के बांधों पर व्यक्त की जा रही चिंता को लेकर बहुत घबराने की आवश्यकता नहीं मणि और कहा कि नदी का 65-70% प्रवाह भारत में ही उत्पन्न होता है। उन्होंने कहा कि चीन से प्रवाह में कोई भी कमी असम की वार्षिक बाढ़ को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकती है।
  • उल्लेखनीय है कि तिब्बत में यारलुंग त्सांगपो के रूप में उत्पन्न होने वाली ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश में सियांग के रूप में भारत में प्रवेश करती है, असम से होकर बहती है और बांग्लादेश में जमुना बन जाती है।

मेडोग जलविद्युत परियोजना:

  • उल्लेखनीय है कि भारत ब्रह्मपुत्र के किनारे चीन की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर लगातार नजर रख रहा है, जिनमें से अधिकांश परियोजनाएं जलविद्युत आधारित हैं और इनमें जल भंडारण की क्षमता न्यूनतम है। ये नदी के ऊपर की ओर स्थित हैं और वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश या असम पर इनका कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं है।
  • यद्यपि तिब्बत के मेडोग काउंटी में ‘ग्रेट बेंड’ के निकट प्रस्तावित 60,000 मेगावाट की ‘मेडोग परियोजना’ बड़ी चिंता का विषय है।
  • यदि इसका निर्माण हो गया तो यह विश्व की सबसे बड़ी जलविद्युत सुविधा होगी – जो चीन के थ्री गॉर्जेस बांध की क्षमता से तीन गुना अधिक होगी।

चीन का ब्रह्मपुत्र पर बांध भारत के लिए एक ‘वाटर बॉम’:

  • भारत ने इस बांध को लेकर चिंता जताई है, क्योंकि यह न केवल चीन को नदी के जल प्रवाह को नियंत्रित करने का अधिकार देता है, बल्कि इसके विशाल आकार और पैमाने के कारण संभावित शत्रुता के दौरान बड़ी मात्रा में पानी छोड़ने से सीमावर्ती क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा भी पैदा करता है।
  • चीन ने पूर्व में ऐसे संकेत दिया है कि वह पानी का इस्तेमाल युद्ध हथियारों की तरह कर सकता है। वर्ष 2017 में डोकलाम तनाव के बाद चीन ने भारत के साथ ब्रह्मपुत्र नदी से में पानी से जुड़ी सूचनाओं को साझा नहीं किया था। जबकि 2006 में, भारत और चीन ने विभिन्न सीमा पार नदी मामलों को संबोधित करने के लिए विशेषज्ञ स्तरीय तंत्र (ELM) की स्थापना की थी, जिसके माध्यम से चीन बाढ़ के मौसम में भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलज नदियों पर हाइड्रोलॉजिकल डेटा प्रदान करता है।

ब्रह्मपुत्र नदी के जल संसाधन क्षमता में भारत का योगदान:

  • उल्लेखनीय है कि ब्रह्मपुत्र बेसिन का केवल 34.2% हिस्सा कवर करने के बावजूद, भारत इसकी कुल जल उपलब्धता में 80% से अधिक का योगदान देता है। इससे यह धारणा गलत साबित होती है कि चीन का तिब्बती पठार नदी का प्राथमिक स्रोत है। तिब्बती पठार पर बहुत कम वर्षा होती है (लगभग 300 मिमी प्रतिवर्ष), जबकि बेसिन के भारत वाले हिस्से में औसतन 2,371 मिमी वर्षा होती है, तथा बहुत कम क्षेत्रों में 1,200 मिमी से कम वर्षा होती है।
  • भारतीय क्षेत्र में भारी वर्षा, मानसून से पोषित सहायक नदियों और बर्फ पिघलने के कारण, चीन द्वारा नदी के ऊपरी भाग में हस्तक्षेप से भारत में ब्रह्मपुत्र के कुल प्रवाह में उल्लेखनीय कमी आने की संभावना नहीं है।
  • हालांकि तिब्बत में जलाशयों के कुप्रबंधन, बांधों की विफलता, भूस्खलन या भूकंपीय गतिविधि के कारण अप्रत्याशित बाढ़ आ सकती है, जिससे निचले इलाकों में खतरा पैदा हो सकता है।
  • इस तरह के खतरे से निपटने के लिए भारत भंडारण अवसंरचना का निर्माण करके प्रवाह परिवर्तनशीलता का प्रबंधन कर सकता है। भारत में बनने वाली अपर सियांग जलविद्युत परियोजना जैसी परियोजनाएं दोहरे उद्देश्य की पूर्ति कर सकती हैं – ऊर्जा उत्पादन और प्रवाह विनियमन।

‘अपर सियांग’ जलविद्युत परियोजना: चीन के ‘वॉटर बम’  को भारत का जवाब

  • अपर सियांग परियोजना अरुणाचल प्रदेश के अपर सियांग जिले में सियांग नदी (ब्रह्मपुत्र नदी) पर प्रस्तावित 11,000 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना है।
  • उल्लेखनीय है कि 2017 में, सरकार ने पहले से नियोजित 5,500 मेगावाट की सियांग अपर स्टेज-I और 3,750 मेगावाट की सियांग अपर स्टेज-II जलविद्युत परियोजनाओं को उच्च क्षमता वाली एकल, बहुउद्देशीय परियोजना – उपर्युक्त ‘अपर सियांग’ परियोजना से बदलने का प्रस्ताव रखा था। राष्ट्रीय जलविद्युत ऊर्जा निगम (NHPC) द्वारा निर्मित की जाने वाली इस परियोजना में 300 मीटर ऊँचा बाँध बनाया जाएगा, जो पूरा होने पर उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा बांध होगा।
  • केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण की नवंबर 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, सियांग नदी बेसिन में 29 जलविद्युत परियोजनाएँ (25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली) हैं, जिनकी संयुक्त स्थापित क्षमता 18,326 मेगावाट है। प्रस्तावित अपर सियांग परियोजना की स्थापित क्षमता इस आंकड़े का लगभग 60% है।
  • लेकिन इसकी जलविद्युत क्षमता से कहीं अधिक, इस बांध को त्सांगपो पर चीन की जलविद्युत परियोजनाओं का मुकाबला करने के लिए एक रणनीतिक अनिवार्यता के रूप में पेश किया जा रहा है। अपर सियांग परियोजना से जुड़ी परियोजनाओं के लिए कुल नौ अरब क्यूबिक मीटर पानी की स्टोरेज की व्यवस्था हो सकती है। इसका इस्तेमाल भविष्य में चीन की तरफ से पानी आपूर्ति में बाधा डालने की स्थिति में की जा सकती है।

 

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