भारत की अपनी तटरेखा में 3,500 किलोमीटर से अधिक की वृद्धि:
चर्चा में क्यों है?
- भारत की तटरेखा अब पहले से कहीं ज़्यादा लंबी हो गई है, यानी पहले की तुलना में लगभग 50% ज़्यादा। यह वृद्धि किसी भू-क्षेत्र अधिग्रहण के कारण नहीं हुई है, बल्कि हाल ही में किए गए ज़्यादा सटीक मापों के कारण हुई है।
- इसके अलावा, भारत में द्वीपों की संख्या में थोड़ी वृद्धि हुई है। संख्या में यह वृद्धि भारत द्वारा अपने अपतटीय द्वीपों के पुनर्मूल्यांकन और पुनर्गणना के कारण हुई है।
- उल्लेखनीय है कि समुद्रतट की लंबाई और द्वीपों की संख्या में वृद्धि प्रशासनिक और सामरिक दृष्टिकोण से दिलचस्प और महत्वपूर्ण है। हालाँकि, जमीनी हालात में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
भारत की तटरेखा का संशोधित मापन:
- भारत की तटरेखा की लंबाई 7,516 किमी (1970 के दशक का अनुमान) से संशोधित कर 11,098 किमी कर दी गई है, जो 3,582 किमी (लगभग 48%) की वृद्धि को दर्शाता है।
भारतीय तट रेखा में वृद्धि के कारण:
- मापन का बेहतर पैमाना:
- पहले के डेटा में 1:4,500,000 स्केल (कम रिज़ॉल्यूशन) का इस्तेमाल किया जाता था।
- हाल के मापों में 1:250,000 स्केल (उच्च रिज़ॉल्यूशन) का इस्तेमाल किया गया है, जिससे अधिक विवरण प्राप्त है।
- तटरेखाओं की अनियमित प्रकृति: तटरेखाएँ सीधी नहीं होती हैं; उनमें कई मोड़ और वक्र होते हैं। ऐसे में उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले उपकरण छोटी-छोटी अनियमितताओं को पकड़ लेते हैं, जिससे कुल मापी गई लंबाई बढ़ जाती है।
- तकनीकी प्रगति: मैनुअल तरीकों से आधुनिक जीआईएस सॉफ़्टवेयर में बदलाव ने माप की सटीकता और विवरण को बढ़ाया है।
- अपतटीय द्वीपों को शामिल करना: कई अपतटीय द्वीप, जो पहले डेटा सीमाओं या मैनुअल बाधाओं के कारण छूट गए थे, अब शामिल किए गए हैं।
तटरेखा विरोधाभास की अवधारणा और भारत की तटरेखा का पुनर्मूल्यांकन:
- अधिक सटीक तकनीक का उपयोग करने के बावजूद, भारत की 11,098 किलोमीटर की नई तटरेखा की लंबाई अभी भी सटीक लंबाई नहीं है।
- यह तटरेखा विरोधाभास के कारण है।
तटरेखा विरोधाभास:
- तटरेखा विरोधाभास एक अवधारणा जो बताती है कि तटरेखाओं जैसी अनियमित प्राकृतिक विशेषताओं की एक निश्चित लंबाई नहीं होती है क्योंकि मापी गई लंबाई उच्च रिज़ॉल्यूशन या माप की छोटी इकाइयों के साथ बढ़ जाती है तथा अधिक विस्तृत अवलोकन अधिक मोड़ और वक्र को पकड़ते हैं, जिससे कुल लंबाई बढ़ जाती है।
- व्यापक प्रासंगिकता:
- विरोधाभास अन्य प्राकृतिक विशेषताओं पर भी लागू होता है जैसे:
- नदी के किनारे (हालाँकि नदी की लंबाई आमतौर पर मुख्य धारा के साथ मापी जाती है)
- पर्वत श्रृंखलाएँ और भूभाग के किनारे
- पुनर्मूल्यांकन और तकनीकी प्रगति:
- भारत अब वैश्विक प्रथाओं के अनुरूप हर 10 साल में तटरेखा पुनर्मूल्यांकन अनिवार्य करता है।
- आवधिक अपडेट के कारण:
- तकनीकी प्रगति (जैसे, जीआईएस मैपिंग)
- प्राकृतिक परिवर्तन (जैसे, कटाव, समुद्र-स्तर में वृद्धि)
- मानव हस्तक्षेप (जैसे, भूमि पुनर्ग्रहण, बुनियादी ढांचे का विकास)
भारत के द्वीपों की गणना – एक मानकीकृत दृष्टिकोण
- समुद्र तट के विपरीत, द्वीपों की संख्या माप की समस्या नहीं बनती है। लेकिन अन्य प्रकार की अस्पष्टताएं हैं। उदाहरण के लिए, कोई स्थान उच्च ज्वार के दौरान एक द्वीप हो सकता है लेकिन कम ज्वार के दौरान भूमि से जुड़ा हो सकता है।
- 2016 में, भारत के महासर्वेक्षक कार्यालय के एक अभ्यास ने भारत में 1,382 अपतटीय द्वीपों को सूचीबद्ध किया था। हालांकि, राज्य सरकारों और तटरक्षक बल और नौसेना द्वारा की गई गणना में 1,334 की कम संख्या सामने आई थी।
- बाद में किए गए मानकीकृत गणना से देश में अपतटीय द्वीपों की एक नई संख्या 1,298 पर पहुंच गई। इस अभ्यास में 91 तटवर्ती द्वीपों को भी सूचीबद्ध किया गया। द्वीपों की कुल संख्या 1,389 है।
संशोधित तटरेखा और द्वीप डेटा का महत्व:
- हालाँकि भारत की तटरेखा की लंबाई और द्वीपों की संख्या के नए मापन से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं में कोई बदलाव नहीं आता है, लेकिन वे केवल अकादमिक नहीं हैं। इन अद्यतन आंकड़ों के व्यावहारिक निहितार्थ हैं।
प्रमुख लाभ:
- बेहतर प्रादेशिक समझ: बेहतर मानचित्रण भारत के भूगोल के ज्ञान को बढ़ाता है, जिससे योजना और शासन में सहायता मिलती है।
- प्रशासनिक और विकासात्मक निहितार्थ: तटीय और द्वीप क्षेत्रों में विकास परियोजनाओं, संसाधन आवंटन और बुनियादी ढाँचे की योजना को प्रभावित कर सकता है।
- सुरक्षा संबंधी विचार: सटीक डेटा समुद्री निगरानी, सीमा प्रबंधन और आपदा की तैयारी में मदद करता है।
- पर्यावरण और विनियामक प्रभाव: संशोधित तटरेखा तटीय विनियमन क्षेत्रों (CRZ) के दायरे को बदल सकती है। यह तटीय कटाव प्रबंधन और जलवायु लचीलापन रणनीतियों को प्रभावित कर सकता है।
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