पेरू की संपर्क रहित जनजाति ‘माशको पिरो’ के समक्ष आवास के संकट का खतरा:
चर्चा में क्यों है?
- स्वदेशी अधिकारों के लिए काम करने वाले एनजीओ सर्वाइवल इंटरनेशनल ने दुनिया की 100 से ज़्यादा संपर्क रहित जनजातियों में से एक ‘माशको पिरो’ जनजाति के लोगों की दुर्लभ तस्वीरें जारी की हैं।
- जून के आखिर में ली गई तस्वीरों में 50 से ज़्यादा इस जनजाति के लोग नदी के किनारे दिखाई दे रहे हैं, जहां लकड़ी काटने वाली कंपनियों को रियायतें दी गई है।
कौन हैं माशको पिरो जनजाति?
- उल्लेखनीय है कि लगभग सभी संपर्क रहित जनजातियाँ अमेजन और दक्षिण-पूर्व एशिया के जंगलों में रहती हैं। माना जाता है कि माशको पिरो, जिनकी संख्या संभवतः 750 से ज्यादा है, ऐसी जनजातियों में सबसे बड़ी है।
- माशको पीरो जनजाति को दुनिया में चल रही चीजों से कोई लेना देना नहीं है। यह लोग दुनिया के कटे हुए हैं और न ही उन्हें इससे कोई फर्क पड़ता है।
- ये खानाबदोश शिकारी-संग्राहक ब्राजील और बोलीविया के साथ पेरू की सीमा के नजदीक माद्रे डी डिओस क्षेत्र के अमेजन जंगलों में रहते हैं। माशको पीरो जनजाति नोमोल के नाम से भी जानी जाती है।
- पेरू की सरकार ने माशको पिरो के साथ सभी तरह के संपर्क पर रोक लगा दी है, क्योंकि उन्हें डर है कि आबादी में कोई बीमारी फैल सकती है।
- यह जनजाति बहुत ही एकांतप्रिय है, कभी-कभार ही मूल निवासी यिन लोगों से संपर्क करती है। माशको पिरो के बारे में जो कुछ भी जाना जाता है, वह यिन लोगों के द्वारा ही बाहर आया है।
माशको पिरो लोगों के समक्ष आवास का संकट क्या है?
- 2002 में, पेरू सरकार ने माशको पिरो के क्षेत्र की रक्षा के लिए ‘माद्रे डी डिओस प्रादेशिक रिजर्व’ बनाया। लेकिन उनके पारंपरिक मैदान का बड़ा हिस्सा रिजर्व के बाहर है। तब से जमीन के बड़े हिस्से को कटाई रियायतों के रूप में बेच दिया गया है, जिससे कंपनियों को लकड़ी और अन्य उपज के लिए सदाबहार जंगलों को काटने का अधिकार मिल गया है। माशको पिरो लोगों ने स्वयं यिन लोगों के समक्ष लकड़ी काटने वाली कंपनियों के प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है।
- हालांकि, यह पहली बार नहीं है कि माशको पिरो क्षेत्र पर अतिक्रमण किया गया है। 1880 के दशक में, पेरू के रबर बूम के दौरान, माशको पिरो उन कई जनजातियों में से एक थे जिन्हें जबरन उनकी जमीन से बेदखल कर दिया गया था, गुलाम बना लिया गया था और सामूहिक रूप से मार दिया गया था। बचे हुए लोग मानू नदी के ऊपर की ओर चले गए, जहाँ तब से माशको पिरो अलग-थलग रह रहे हैं।
- अब, जब लकड़ी काटने वाली कंपनियां उनके क्षेत्रों में भी अतिक्रमण कर रही हैं, तो विशेषज्ञों का कहना है कि उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं बची है।
- यही कारण है कि हाल के वर्षों में उनके देखे जाने की संख्या में वृद्धि हुई है, जिसमें माशको पिरो न केवल भोजन खोजने के लिए, बल्कि बाहरी लोगों को “भागने” के लिए भी अपने जंगलों से बाहर निकलते हैं।
नोट : आप खुद को नवीनतम UPSC Current Affairs in Hindi से अपडेट रखने के लिए Vajirao & Reddy Institute के साथ जुडें.
नोट : हम रविवार को छोड़कर दैनिक आधार पर करेंट अफेयर्स अपलोड करते हैं
Read Current Affairs in English ⇒