रेलवे (संशोधन) विधेयक 2024 और इसका भारतीय रेलवे पर प्रभाव:
चर्चा में क्यों है?
- संसद के अंदर सरकार और विपक्ष के बीच गरमागरम बहस के बीच, 13 दिसंबर को लोकसभा ने रेलवे (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित कर दिया। यह विधेयक भारतीय रेलवे बोर्ड अधिनियम, 1905 को निरस्त करने और इसके प्रावधानों को रेलवे अधिनियम, 1989 में शामिल करने का प्रयास करता है।
- उल्लेखनीय है कि इस विधेयक की सामग्री को बहुत आलोचना नहीं मिली, लेकिन कई सांसदों ने इस विधेयक के बारे में चिंता व्यक्त की कि यह रेलवे से संबंधित बड़े मुद्दों जैसे सुरक्षा, रिक्तियों और क्षेत्रीय और मंडल स्तरों पर सत्ता के विकेंद्रीकरण को संबोधित करने में विफल रहा है।
इस विधेयक का उद्देश्य क्या है?
- इस विधेयक का उद्देश्य भारतीय रेलवे में दक्षता लाना है।
- उद्देश्य:
- रेलवे अधिनियम, 1989 में संशोधन करके रेलवे बोर्ड को वैधानिक समर्थन प्रदान करना, जिसने अपनी स्थापना के बाद से ही बिना किसी मंजूरी के काम किया है।
- परिचालन दक्षता में सुधार करना और शक्तियों का विकेंद्रीकरण करना, रेलवे क्षेत्रों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना।
- शुल्क, सुरक्षा और निजी क्षेत्र की भागीदारी सहित भारतीय रेलवे के विभिन्न पहलुओं की देखरेख के लिए एक स्वतंत्र नियामक की स्थापना करना।
केंद्र सरकार को विधेयक लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
- उल्लेखनीय है कि भारत के रेलवे नेटवर्क का निर्माण स्वतंत्रता से पहले लोक निर्माण विभाग की एक शाखा के रूप में शुरू हुआ था। जब नेटवर्क का विस्तार हुआ, तो विभिन्न रेलवे संस्थाओं के समुचित संचालन को सक्षम करने के लिए भारतीय रेलवे अधिनियम, 1890 को अधिनियमित किया गया। बाद में, भारतीय रेलवे बोर्ड अधिनियम, 1905 को अधिनियमित किया गया, ताकि रेलवे बोर्ड को भारतीय रेलवे अधिनियम, 1890 के तहत कुछ शक्तियां या कार्य प्रदान किए जा सकें।
- यद्यपि 1989 में रेलवे अधिनियम लागू होने के बाद 1890 का अधिनियम निरस्त कर दिया गया, परन्तु रेलवे बोर्ड अधिनियम, 1905 अस्तित्व में रहा तथा बोर्ड के अध्यक्ष एवं सदस्यों की नियुक्ति इसी कानून के तहत होती रही।
रेलवे विधेयक में प्रस्तावित सुधार और संरचनात्मक परिवर्तन:
स्वतंत्र नियामक का गठन:
- इस विधेयक में हितधारकों के हितों की रक्षा और प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने के लिए एक स्वतंत्र नियामक के गठन के प्रावधान शामिल हैं।
रेलवे जोन को स्वायत्तता:
- रेलवे जोनों के लिए स्वायत्तता में वृद्धि की मांग लंबे समय से की जा रही है, जिसका समर्थन 2014 की श्रीधरन समिति सहित विभिन्न समितियों ने किया है।
- इस विधेयक में वित्तीय और परिचालन संबंधी निर्णय लेने का अधिकार जोनों को देने का प्रस्ताव है, जिससे उन्हें बजट, बुनियादी ढांचे के काम और भर्ती का प्रबंधन करने का अधिकार मिलेगा।
रेलवे बोर्ड की नियुक्ति और संरचना:
- सरकार रेलवे बोर्ड के सदस्यों की संख्या, योग्यता और सेवा की शर्तें तय करेगी। यह बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया की देखरेख भी करेगी, जिससे शासन और जवाबदेही को सुव्यवस्थित किया जा सकेगा।
क्षेत्रीय विकास:
- इस विधेयक में धारा 24ए पेश की गई है, जिससे सरकार सुपरफास्ट ट्रेन संचालन और बुनियादी ढांचे के उन्नयन में तेजी ला सकेगी, जैसे कि अरुणाचल एक्सप्रेस को सीवान-थावे-कप्तानगंज-गोरखपुर मार्ग से आगे बढ़ाना।
रेलवे को लेकर विपक्ष की चिंताएँ:
- निजीकरण की आशंका: कांग्रेस सांसदों ने तर्क दिया कि यह विधेयक भारतीय रेलवे के निजीकरण का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिससे गरीबों के लिए इसकी पहुँच कम हो जाएगी।
- स्वायत्तता पर प्रभाव: कई सांसदों ने आशंका व्यक्त की कि रेलवे बोर्ड की नियुक्तियों पर सरकार का बढ़ता नियंत्रण भारतीय रेलवे की स्वायत्तता को खत्म कर सकता है।
- यात्री रियायत से जुड़ी आशंका: कई सांसदों ने वरिष्ठ नागरिकों, पत्रकारों और आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए किराए में रियायतें बहाल करने की माँग की, जिन्हें महामारी के दौरान बंद कर दिया गया था।
विधेयक को लेकर सरकार का बचाव:
- रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने निजीकरण के आरोपों को खारिज करते हुए दोहराया कि विधेयक का उद्देश्य भारतीय रेलवे को अधिक कुशल और आत्मनिर्भर बनाना है, साथ ही इसकी सामाजिक जिम्मेदारी को भी बरकरार रखना है। सरकार का कहना है कि विधेयक से रेलवे के शासन में सुधार होगा और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलेगा।
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