हड़प्पा सभ्यता और वैदिक युग के लोगों के बीच सहसंबंध स्थापित करने के लिए शोध:
चर्चा में क्यों है?
- हड़प्पा सभ्यता और वैदिक युग के लोगों के बीच संभावित संबंध स्थापित करने के लिए शोध को आगे बढ़ाते हुए, पुरातत्वविदों का एक समूह अब ऋग्वेद के पाठ को समझने के लिए संस्कृत विद्वानों के साथ मिलकर काम कर रहा है।
- पुरातत्वविद् और डेक्कन कॉलेज, पुणे के पूर्व कुलपति वसंत शिंदे ने कहा कि हरियाणा के राखीगढ़ी और बनावली, हरियाणा-राजस्थान सीमा पर कालीबंगा और गुजरात के धोलावीरा में हड़प्पा बस्तियों की खुदाई में उनकी टीम द्वारा खोजे गए पुरातात्विक साक्ष्यों को वैदिक काल से सहसंबंधित करने के लिए ऋग्वेद पाठ में जो उल्लेख किया गया है, उसकी स्पष्ट समझ महत्वपूर्ण है।
हड़प्पा सभ्यता और वैदिक युग के बीच सहसंबंध के लिए शोध:
- NCERT ने हाल ही में कक्षा 12 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक, भारतीय इतिहास के विषय भाग 1 में, ईंटें, मनके और हड्डियां – हड़प्पा सभ्यता नामक अध्याय के अंतर्गत एक प्रमुख चीज जोड़ी है, जो 4,600 साल पुराने एक महिला के अवशेषों से प्राप्त डीएनए साक्ष्य पर आधारित है, जो यह दर्शाता है कि हड़प्पावासी मूल निवासी थे।
- उल्लेखनीय है कि पुरातत्वविद् वसंत शिंदे का काम अब इस परिकल्पना का परीक्षण करने पर केंद्रित है कि हड़प्पा और वैदिक लोग एक ही थे।
- श्री शिंदे ने कहा कि “राखीगढ़ी की साइट की खुदाई करते समय, हमें अनुष्ठान मंच और अग्नि वेदियों के साक्ष्य मिले। समानांतर रूप से, ऋग्वैदिक ग्रंथों में अग्नि पूजा का उल्लेख है। अब हमें इस बारे में अधिक समझ हासिल करने की आवश्यकता है कि ऋग्वैदिक ग्रंथों में क्या उल्लेख किया गया है, और उनमें से कितना पुरातात्विक साक्ष्य के साथ सहसंबंधित किया जा सकता है।
- उल्लेखनीय है कि वर्तमान में, वेदों की उत्पत्ति की अवधि के बारे में बहस चल रही है, इतिहासकारों का एक समूह मानता है कि वेदों की उत्पत्ति 2,000 ईसा पूर्व और 1,500 ईसा पूर्व के बीच हुई थी। हालांकि, श्री शिंदे सहित इतिहासकारों का एक अन्य समूह मानता है कि वेदों का इतिहास 2,500 ईसा पूर्व पहले का है।
- यह राखीगढ़ी साइट पर परीक्षण किए गए तत्कालीन हड़प्पा महिला की हड्डियों के नमूनों से प्राप्त आनुवंशिक साक्ष्य की आयु से मेल खाता है।
हड़प्पा सभ्यता और वैदिक युग के मध्य सामान्य सूत्र:
- पुरातत्वविद् वसंत शिंदे कहते हैं, “यदि ऋग्वेद में उस क्षेत्र का वर्णन देखें जहां लोग रहते थे, तो उसमें सरस्वती नदी का बार-बार वर्णन मिलता है। ऋग्वैदिक ग्रंथों में नदी का उल्लेख कम से कम 71 बार दर्ज है। पुरातात्विक खुदाई के दौरान, सरस्वती के किनारे हड़प्पा की अधिकांश बस्तियों की खोज की गयी है। सिंधु बेसिन और गुजरात में फैली लगभग 2,000 ज्ञात हड़प्पा बस्तियों में से लगभग दो-तिहाई, कम से कम 1,200, सरस्वती के बेसिन के किनारे स्थित हैं”।
- एक और संदर्भ बिंदु जो हड़प्पा सभ्यता को वैदिक काल से जोड़ सकता है, वह है गुजरात के कच्छ के सुरकोटदा क्षेत्र में दो पुरातत्व-प्राणी वैज्ञानिकों द्वारा पाया गया और उनका अध्ययन किया गया जानवर की हड्डियों का एक सेट। जबकि हंगरी के शोधकर्ताओं के एक समूह ने कहा कि ये हड्डियाँ एक उचित पालतू घोड़े की थी, रिचर्ड मीडो के नेतृत्व में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक अन्य समूह ने निष्कर्ष निकाला कि ये एक जंगली गधे की हड्डियां थीं। इससे बहस का मुद्दा उठता है।
- ऐसे में जो लोग मानते हैं कि हड़प्पा और ऋग्वेद के लोग एक ही हैं, वे हंगेरियन संदर्भ का हवाला देते हैं कि जानवरों की हड्डियां घोड़े की हैं, क्योंकि ऋग्वेद में घोड़ों का उल्लेख मिलता है।
- हालांकि, वे इतिहासकार जो ऋग्वेद को 2,000 ईसा पूर्व के बाद का मानते हैं, वे रिचर्ड मीडो के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं कि जानवरों की हड्डियां जंगली गधे की थीं, क्योंकि कुछ विद्वानों का कहना है कि पालतू घोड़े मध्य एशिया से 1,800 ईसा पूर्व के बाद ही भारत आए थे।
- लोथल और मोहनजो-दारो के हड़प्पा स्थलों से घोड़े जैसे जानवरों की कुछ टेराकोटा मूर्तियां खुदाई में मिली हैं।
आधुनिक दक्षिण एशियाई लोगों और हड़प्पा की महिला के कंकाल से अनुवांशिक समानता:
- पुरातत्वविद् वसंत शिंदे के समूह ने विभिन्न भाषाई और धार्मिक समूहों के 3,000 आधुनिक दक्षिण एशियाई लोगों के रक्त के नमूनों से डीएनए विश्लेषण किया और पाया कि उनमें से अधिकांश – अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से लेकर लद्दाख और कश्मीर तक और अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक – हड़प्पा की महिला के कंकाल से अनुवांशिक समानता रखते हैं।