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ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम (GCP) क्या है, और इससे जुड़ी आलोचनाएं क्या है?

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ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम (GCP) क्या है, और इससे जुड़ी आलोचनाएं क्या है?

परिचय:

  • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 2023 में शुरू किए गए ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) को इसके शुरू होने से पहले ही कानून और न्याय मंत्रालय ने इसमें शामिल व्यापार मॉडल की वैधता को लेकर आपत्ति जताई थी।
  • इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य व्यापार योग्य ‘ग्रीन क्रेडिट’ के बदले, वृक्षारोपण से लेकर जल संरक्षण तक के क्षेत्रों में स्वैच्छिक भागीदारी को आमंत्रित करना है। वर्तमान में, वृक्षारोपण और बंजर भूमि की पारिस्थितिकी बहाली पर पायलट परियोजना चल रही है।

ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम (GCP) क्या है?

  • अक्टूबर 2023 में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम (GCP) एक बाजार-आधारित प्रोत्साहन प्रणाली है, जिसका उद्देश्य केवल कार्बन उत्सर्जन घटाना नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए सकारात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देना है। यह कार्यक्रम वृक्षारोपण, जल संरक्षण, अपशिष्ट प्रबंधन जैसी सात गतिविधियों में स्वैच्छिक भागीदारी को प्रोत्साहित करता है।
  • इन गतिविधियों में भाग लेने वालों को “ग्रीन क्रेडिट” दिए जाएंगे, जिन्हें घरेलू बाजार में खरीदा-बेचा जा सकता है।
  • ये क्रेडिट विकास परियोजनाओं में प्रतिपूरक वनीकरण जैसे कानूनी अनुपालन के लिए भी इस्तेमाल किए जा सकते हैं। उदाहरणस्वरूप फरवरी 2024 की अधिसूचना के अनुसार, विकास परियोजनाओं में उपयोग की गई वन भूमि के बदले ग्रीन क्रेडिट का उपयोग प्रतिपूरक वनीकरण के अनुपालन के लिए किया जा सकता है।
  • इसके अलावा, सूचीबद्ध कंपनियां इन क्रेडिट का उपयोग सेबी के BRSR (Business Responsibility and Sustainability Report) में पर्यावरणीय प्रयासों को दर्शाने के लिए कर सकती हैं।

ग्रीन क्रेडिट की गणना कैसे की जाती है?

  • ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम (GCP) की शुरुआत केंद्र सरकार ने वृक्षारोपण के पायलट प्रोजेक्ट से की थी, जिसे बाद में पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापन गतिविधियों जैसे झाड़ियों, जड़ी-बूटियों, घासों का रोपण, जल संरक्षण आदि तक विस्तारित किया गया।

पायलट योजना के प्रमुख प्रावधान:

  • इसके तहत भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE), देहरादून को नोडल प्रशासक नियुक्त किया गया है।
  • वृक्षारोपण बंजर भूमि, झाड़ीदार क्षेत्र, खुले जंगल और जलग्रहण क्षेत्रों में किया जाएगा, कम से कम 5 हेक्टेयर के प्लॉट पर। राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के वन विभाग इन भूमि पार्सलों की पहचान करेंगे।
  • इच्छुक प्रतिभागियों को ICFRE के साथ पंजीकरण और आवेदन करना होगा। आवेदन शुल्क और प्रक्रिया पूरी होने पर भूमि आवंटित की जाएगी।
  • वृक्षारोपण और उसका रखरखाव वन विभाग की जिम्मेदारी होगी, जिसे 2 साल के भीतर पूरा करना होगा।
  • प्रति हेक्टेयर कम से कम 1,100 पेड़ों के घनत्व के अनुसार हर पेड़ के लिए एक ग्रीन क्रेडिट दिया जाएगा, स्थानीय जलवायु और प्रमाणीकरण के आधार पर।

4 मार्च 2025 तक की प्रगति:

  • 17 राज्यों में 2,364 भूमि पार्सल, कुल 54,669.46 हेक्टेयर क्षेत्र में पंजीकृत।
  • 384 संस्थाओं ने भागीदारी के लिए पंजीकरण कराया, जिनमें से 41 सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हैं।

इस योजना की आलोचना क्यों की जाती है?

  • उल्लेखनीय है कि उद्योगों को वन भूमि के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करने का आरोप लगाया गया है, क्योंकि वे ग्रीन क्रेडिट खरीदकर अपने कानूनी दायित्व, जैसे प्रतिपूरक वनीकरण, पूरा कर सकते हैं।
  • साथ ही बंजर भूमि, खुले जंगलों और झाड़ीदार भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देने पर भी आलोचना हुई है, क्योंकि विशेषज्ञ मानते हैं कि ये क्षेत्र अपनी स्वतंत्र पारिस्थितिकी सेवाएं प्रदान करते हैं।
  • इस महीने की शुरुआत में, सुप्रीम कोर्ट ने वन संरक्षण अधिनियम में संशोधनों को चुनौती देने वाले एक चल रहे मामले में GCP पर हस्तक्षेप आवेदन पर भी सुनवाई की।
  • ध्यातव्य है कि भारत के वन (संरक्षण एवं संवर्धन) अधिनियम, 2023 के अनुसार, यदि उद्योग या विकास परियोजनाएँ वन भूमि का उपयोग करती हैं, तो उन्हें बराबर क्षेत्रफल की गैर-वन भूमि पर प्रतिपूरक वनीकरण करना अनिवार्य है। यदि गैर-वन भूमि उपलब्ध नहीं हो, तो बंजर या अवर्गीकृत वन भूमि के दोगुने क्षेत्र पर वनीकरण करना होता है, ताकि “भूमि के बदले भूमि” का सिद्धांत बना रहे।
  • GCP (ग्रीन क्रेडिट कार्यक्रम) इसके विपरीत, वृक्षारोपण के लिए क्षरित वन भूमि का उपयोग करता है। साथ ही यह अनुमति देता है कि कंपनियां पैसा देकर ग्रीन क्रेडिट खरीदें और अपने कानूनी वनीकरण दायित्वों को पूरा कर लें। इसका मतलब है कि यह योजना नए वन क्षेत्र बढ़ाने के बजाय पुराने वनों की भरपाई मात्र करती है।

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