भारत को अपनी ‘गहरे समुद्र’ की क्षमताओं को विकसित करने की आवश्यकता क्यों है?
परिचय:
- पिछले महीने, भारत ने अपने ‘मत्स्य-6000’ पनडुब्बी, का जल परीक्षण पूरा किया, जो तट से दूर पानी के नीचे खनिजों की तलाश करने के लिए सतह से 6 किमी नीचे तक गोता लगाने में सक्षम है। साथ ही इस साल के अंत में पहले गहरे समुद्र में मानवयुक्त वाहन के प्रक्षेपण की योजना बनाई गई है – यह भारत को उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल कर देगा जो इन गहराईयों में मनुष्यों को भेजने की क्षमता रखते हैं।
- उल्लेखनीय है कि पिछले हफ़्ते, चीन ने एक कॉम्पैक्ट गहरे समुद्र में केबल काटने वाला उपकरण पेश किया जिसे कुछ पनडुब्बियों पर लगाया जा सकता है – और जो दुनिया की सबसे मजबूत पानी के नीचे संचार या बिजली लाइनों को काटने में सक्षम है।
गहरे समुद्र में कार्य करने से जुड़ी चुनौतियाँ:
- गहरे समुद्र की बढ़ती आर्थिक और रणनीतिक महत्ता के कारण भारत को अपने अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में संसाधनों के दोहन और सुरक्षा के लिए उन्नत तकनीकों और क्षमताओं का विकास करना होगा।
- उल्लेखनीय है कि UNCLOS के अनुसार, EEZ समुद्र में 200 समुद्री मील (370 किमी) तक फैला होता है, जहाँ देश को सजीव और निर्जीव संसाधनों पर विशेष अधिकार प्राप्त होते हैं।
- भारतीय EEZ की औसत गहराई 3,741 मीटर है, जो मारियाना ट्रेंच की 10 किमी से अधिक गहराई की तुलना में उथली है, लेकिन फिर भी इसमें संचालन के लिए अत्यधिक विशिष्ट और महंगी तकनीकों की आवश्यकता होती है।
- उदाहरण के लिए, पानी के भीतर ध्वनि संचार तापमान, दबाव और लवणता से प्रभावित होता है, जिससे बहुत कम आवृत्ति (VLF) और अत्यंत कम आवृत्ति (ELF) ध्वनि तकनीकों के विकास की आवश्यकता होती है, जो अत्याधुनिक अनुसंधान और भारी निवेश की मांग करती हैं।
- इसके अलावा, समुद्र की गहराई के हर 10 मीटर पर दबाव एक वायुमंडल (atm) बढ़ जाता है, जिससे भारतीय EEZ के समुद्र तल पर दबाव पृथ्वी की सतह के मुकाबले 380 गुना अधिक होता है। इतनी गहराई में सुरक्षित संचालन के लिए विशेष सामग्री और इंजीनियरिंग प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है।
- इसलिए, भारत को गहरे समुद्र में अपनी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए तकनीकी नवाचार और अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है।
भारत को ‘गहरे समुद्र’ की क्षमताओं की आवश्यकता क्यों है?
- भारत को नीली अर्थव्यवस्था का लाभ उठाने और समुद्री संसाधनों (मछली, खनिज, गैस हाइड्रेट, तेल, गैस, न्यूट्रास्यूटिकल्स और जलवायु डेटा) का दोहन करने के लिए गहरे समुद्र की तकनीक विकसित करनी होगी।
- इसके लिए आवश्यक है कि:
- हाइड्रोग्राफिक अनुसंधान और अन्वेषण तकनीक की
- गोताखोरी, बचाव और पनडुब्बी बचाव क्षमताओं की
- निम्नलिखित समुद्री बुनियादी ढांचे के विकास की, जैसे:
- अंडरसी केबल (जो वैश्विक इंटरनेट ट्रैफिक का 95% संचारित करती हैं)
- तेल और गैस पाइपलाइन
- समुद्री खनन उपकरण और वैज्ञानिक अनुसंधान सुविधाएँ
- भारत को समुद्र तल के मानचित्रण और पानी के नीचे के डोमेन पर जागरूकता बनाए रखनी होगी ताकि सुरक्षा और रणनीतिक हितों की रक्षा की जा सके।
‘गहरे समुद्र’ की क्षमता विकसित करने की लिए क्या करना चाहिए?
- हर विशिष्ट तकनीक की तरह, गहरे समुद्र की तकनीक विकसित करने के लिए भी वित्तीय मजबूती, अनुसंधान क्षमता और कुशल मानव संसाधन आवश्यक हैं। इसलिए ही चीन, अमेरिका, फ्रांस, जापान और अन्य अग्रणी देश इस क्षेत्र में आगे हैं, विशेष रूप से चीन का निवेश उल्लेखनीय लाभ दे रहा है।
- भारत सरकार ने 2018 में, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत ‘गहरे समुद्र मिशन’ की शुरुआत की, जिसमें ‘मत्स्य-6000’ पनडुब्बी का विकास शामिल है।
- उल्लेखनीय है कि गहरे समुद्र अनुसंधान में उत्कृष्टता संस्थानों की स्थापना से इस क्षेत्र में शैक्षणिक उत्कृष्टता, विशेषज्ञता और कौशल का पोषण होगा।
- साथ ही भारत को इस मिशन को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए उदार वित्त पोषण और एक सशक्त निकाय की भी आवश्यकता है। इसलिए, महासागर विकास विभाग को कैबिनेट स्तर के मंत्रालय में परिवर्तित कर, इससे जुड़े सभी विभागों को इसके प्रति जवाबदेह बनाना चाहिए।
- इसके अलावा, भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि गहरे समुद्र की तकनीकें “दोहरे उपयोग” वाली होती हैं – यानी, महासागर अनुसंधान और दोहन के लिए विकसित उपकरण सैन्य उद्देश्यों में भी उपयोग किए जा सकते हैं। भारत को अपनी रणनीति में इस पहलू को भी सक्रिय रूप से शामिल करना होगा।
‘समुद्रयान’: भारत का पहला मानवयुक्त महासागर मिशन
- समुद्र की गहराई में छिपे कई रहस्यों को खोजने के लिए भारत ने मेगा महासागर मिशन ‘समुद्रयान’ शुरू किया है। इसका उद्देश्य मानवयुक्त पनडुब्बी वाहन ‘मत्स्या 6000’ के जरिए गहरे पानी के अंदर विशेषज्ञों की एक टीम को भेजना है।
- इसकी सफलता भारत को छह देशों (अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन) में से एक बना देगा, जिसने 5,000 मीटर से अधिक समुद्र के नीचे एक चालक दल के अभियान का संचालन किया है।
मत्स्य 6000 क्या है?
- यह राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT), चेन्नई द्वारा विकसित एक मानवयुक्त पनडुब्बी वाहन है। इसे गहरे समुद्र में मनुष्यों को खनिज संसाधनों की खोज में सुविधा प्रदान करने के लिए विकसित किया जा रहा है।
- इस गहरे समुद्र में 12 घंटे तक काम करने की क्षमता के साथ डिजाइन किया गया है, जबकि आपातकालीन स्थिति में यह मानव सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक उपायों के साथ 96 घंटे तक काम कर सकता है।
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