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संविधान का अनुच्छेद 361: राष्ट्रपति और राज्यपालों को संरक्षण

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संविधान का अनुच्छेद 361: राष्ट्रपति और राज्यपालों को संरक्षण

चर्चा में क्यों है?   

  • पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस सरकार और राज्यपाल सीवी आनंद बोस के बीच लंबे समय से चल रहा गतिरोध 2 मई को उस समय और गहरा गया जब टीएमसी ने राजभवन में एक महिला संविदा कर्मचारी के मामले को तूल दिया, जिसने आरोप लगाया कि राज्यपाल ने उसके साथ “छेड़छाड़” की थी। राज्यपाल महोदय भी ने पलटवार करते हुए कहा कि “सच्चाई की जीत होगी,” और वह “बनावटी आख्यानों से डरेंगे नहीं।”
  • उल्लेखनीय है कि राज्यपाल के खिलाफ कोलकाता में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली एक शिकायत दर्ज की गई है, लेकिन उन्हें प्राप्त संवैधानिक छूट पुलिस को राज्यपाल को आरोपी के रूप में नामित करने या यहां तक ​​कि मामले की जांच करने से रोकती है।

संविधान के तहत राष्ट्रपति और राज्यपालों को प्राप्त सुरक्षा:

  • संविधान का अनुच्छेद 361 जो राष्ट्रपति और राज्यपालों की प्रतिरक्षा से संबंधित है, कहता है कि वे “अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के अभ्यास और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी कार्य के लिए किसी भी अदालत के प्रति जवाबदेह नहीं होंगे”।
  • प्रावधान में दो महत्वपूर्ण उप-खंड भी हैं:
    • कि राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई भी आपराधिक कार्यवाही शुरू या जारी नहीं रखी जाएगी।
    • राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल की गिरफ्तारी या कारावास की कोई प्रक्रिया उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत से जारी नहीं की जाएगी।
  • वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “संविधान राज्यपाल पर मुकदमा चलाने पर पूरी तरह रोक लगाता है। उन्हे आरोपी नहीं बनाया जा सकता हैं। पुलिस केवल राज्यपाल के पद से हटने के बाद ही कार्रवाई कर सकती है, जो तब होता है जब या तो राज्यपाल इस्तीफा दे देते हैं या फिर उन्हे राष्ट्रपति का विश्वास प्राप्त नहीं होता है”।

राज्यपालों को अनुच्छेद 361 के तहत प्राप्त संरक्षण पर न्यायालय का मत:

  • 2006 में रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ के ऐतिहासिक फैसले में, जिसमें राज्यपाल को “व्यक्तिगत दुर्भावना के आरोप पर भी” प्राप्त छूट की रूपरेखा दी गई थी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “कानून में स्थिति यह है कि राज्यपाल को पूर्ण छूट प्राप्त है।”
  • कोर्ट ने कहा कि “राज्यपाल अपने पद की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन के लिए या उन शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग और प्रदर्शन में उनके द्वारा किए गए या किए जाने वाले किसी भी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं”। उल्लेखनीय है कि यह फैसला वास्तव में आपराधिक शिकायतों के लिए नहीं थी बल्कि विवेकाधीन संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग करने के संदर्भ में था।
  • हालाँकि, ऐसे उदाहरण भी हैं जहाँ राज्यपाल द्वारा अपना कार्यकाल पूरा करने तक आपराधिक कार्रवाई रोक दी गई थी। वर्ष 2017 में, सुप्रीम कोर्ट ने 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस में भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती के खिलाफ आपराधिक साजिश के नए आरोपों की अनुमति दी। हालांकि, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए सुनवाई नहीं हुई क्योंकि वह उस समय राजस्थान के राज्यपाल थे।
  • सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि “श्री कल्याण सिंह, राजस्थान के राज्यपाल होने के नाते, संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत तब तक छूट के हकदार हैं जब तक वह राजस्थान के राज्यपाल बने रहेंगे। जैसे ही वह राज्यपाल नहीं रहेंगे, सत्र न्यायालय उनके खिलाफ आरोप तय करेगा और कदम उठाएगा ”।

 

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