सरकार ने प्राचीन भारतीय समुदायों की जड़ें खोजने के लिए अध्ययन शुरू किया:
परिचय:
- इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार सरकार ने प्राचीन भारतीय समुदायों की उत्पत्ति एवं प्रवास के बारे में परस्पर विरोधी सिद्धांतों के मध्य, दक्षिण एशिया के जनसंख्या इतिहास को “निर्णायक रूप से” जानने के लिए प्राचीन और आधुनिक जीनोमिक्स का उपयोग करके एक व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन शुरू किया है।
- यह अध्ययन भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) के माध्यम से किया जा रहा है, जो संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में कार्य करता है। इस परियोजना का क्रियान्वयन बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, लखनऊ के सहयोग से किया जा रहा है, जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीन कार्य करता है।
जीनोमिक्स क्या है?
- जीनोमिक्स जीवों के जीन के पूरे सेट (जीनोम) का अध्ययन है। इसमें यह अध्ययन किया जाता है कि जीन किस तरह काम करते हैं, एक दूसरे के साथ और पर्यावरण के साथ कैसे संपर्क करते हैं। जीनोमिक्स में आनुवंशिकी के तत्व शामिल हैं, लेकिन यह किसी जीव के सभी जीनों के लक्षण वर्णन से संबंधित है, न कि व्यक्तिगत जीन से।
परियोजना के बारे में:
- “प्राचीन और आधुनिक जीनोमिक्स का उपयोग करके दक्षिण एशिया के जनसंख्या इतिहास का पुनर्निर्माण” शीर्षक वाली इस परियोजना में भारत और पाकिस्तान के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों से एकत्र किए गए 300 प्राचीन कंकाल अवशेषों – मुख्य रूप से कपाल और अन्य हड्डियों के टुकड़े, जिनमें दांत भी शामिल हैं – का अध्ययन किया जाएगा।
- इनमें सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों जैसे हड़प्पा और मोहनजो-दारो (अब पाकिस्तान में), बुर्जहोम (जम्मू और कश्मीर), नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश), मास्की (कर्नाटक), रोपड़ (पंजाब) और लोथल (गुजरात) में स्वतंत्रता से पहले और बाद में की गई खुदाई के दौरान एकत्र किए गए अवशेष शामिल हैं।
- इन कंकाल अवशेषों की खुदाई 1922 और 1958 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई थी और बाद में इन्हें भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण को सौंप दिया गया, जो इन प्राचीन अवशेषों के संरक्षक के रूप में कार्य करता है।
इस डीएनए अध्ययन का महत्व:
- इस डीएनए विश्लेषण जैसी वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करते हुए किए गए इस अध्ययन का उद्देश्य भारत में प्राचीन आबादी के प्रवास के बारे में जानकारी प्रदान करना है।
- यह प्राचीन आहार, रहन-सहन की स्थिति, बीमारियों की व्यापकता, पर्यावरण के प्रति अनुकूलन, लोगों की आवाजाही/प्रवास के पैटर्न और समय के साथ उनकी अंतःक्रियाओं तथा जीन पूल के आदान-प्रदान के बारे में भी सुराग उजागर करेगा।
- सरल शब्दों में, यह शोध यह समझने में मदद करेगा कि लोग कहां से आए, वे कैसे रहते थे, और पर्यावरणीय परिवर्तनों ने उनके इतिहास और विरासत को कैसे आकार दिया
आर्यों का बाहरी बनाम मूल निवासी विवाद:
- 19वीं शताब्दी में, अनेक पश्चिमी विद्वानों ने भारत को लेकर ‘आर्यों का आक्रमण सिद्धांत’ का प्रस्ताव दिया है, जिसके अनुसार सिंधु घाटी काल (2000-1,500 ईसा पूर्व) के बाद मध्य एशिया से भारत में प्रवास करने वाले गोरी चमड़ी वाले, कृषि प्रधान लोगों के एक वर्ग, जिन्हें आर्य कहा गया, ने इस उपमहाद्वीप को सभ्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- हालांकि, भारत के कई आधुनिक पुरातत्वविदों के अनुसार, आर्य मूल निवासी थे जो मुख्य रूप से सरस्वती नदी के किनारे रहते थे। एक बार जब यह सूख गई, तो वे भारत के भीतर और बाहर के क्षेत्रों में चले गए और सिंधु घाटी में भी बस गए।
- हाल ही में, इन निष्कर्षों के आधार पर एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में कुछ बदलाव किए गए, जिसमें 5,000 वर्षों तक भारतीय सभ्यता की निरंतरता पर जोर दिया गया, जिससे आर्यन प्रवास पर संदेह पैदा हुआ।
- ऐसे में यह अध्ययन निर्णायक रूप से यह बता पाएगा कि आर्यों का प्रवास हुआ था या नहीं।
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) के बारे में:
- भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) सरकारी ढांचे के भीतर, मानव विज्ञान अध्ययन के लिए समर्पित एकमात्र शोध संगठन के रूप में एक अद्वितीय स्थान रखता है। इसकी जड़ें भारतीय संग्रहालय के प्राणी विज्ञान और मानव विज्ञान अनुभाग से जुड़ी हैं, जो 1916 में भारतीय प्राणी विज्ञान सर्वेक्षण के रूप में विकसित हुआ।
- बाद में, 1945 में, मानव विज्ञान अनुभाग एक स्वतंत्र निकाय, भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण में बदल गया, जिसके निदेशक डॉ. बिरजा शंकर गुहा थे। 1948 में इसका मुख्यालय बनारस से कलकत्ता स्थानांतरित हो गया।
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