भारत को ‘चीन प्लस वन’ अवसर का लाभ उठाने में ‘सीमित सफलता’ मिली: नीति आयोग
चर्चा में क्यों है?
- नीति आयोग की ‘ट्रेड वॉच’ नामक पहली तिमाही रिपोर्ट के अनुसार, भारत को ‘चीन प्लस वन रणनीति’ द्वारा प्रस्तुत अवसरों का लाभ उठाने में सीमित सफलता मिली है।
- उल्लेखनीय है कि 2024 में वैश्विक व्यापार परिदृश्य भू-राजनीतिक घटनाक्रमों से काफी प्रभावित हुआ है, जबकि नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत को चीन के लिए एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- व्यापार और वाणिज्य पर अपनी पहली तिमाही रिपोर्ट जारी करते हुए नीति आयोग ने कहा कि वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया जैसे देशों ने अपने विनिर्माण आधारों में विविधता लाने की इच्छुक कंपनियों को आकर्षित करने में भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
ट्रंप की चीन नीति भारत के लिए अवसर:
- नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने अब तक जो भी घोषणा की है, जो आगे आने की संभावना है, वह भारत के लिए अवसर हैं। वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था में बहुत बड़ा व्यवधान होने वाला है, और अगर हम इसके लिए तैयारी करते हैं, तो व्यापार में भारी उछाल आएगा।
- ताजा व्यापार युद्ध इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत जैसी अर्थव्यवस्थाएं, जिन्हें तटस्थ माना जाता है, उन्हें डोनाल्ड ट्रंप के पहले कार्यकाल के बाद से दोनों देशों के बीच भू-राजनीतिक तनावों से लाभ मिला है।
- अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत-अमेरिका संबंध व्यापार से परे हैं, जो भू-राजनीतिक और सांस्कृतिक आयामों में गहराई से निहित हैं।
वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार में सुधार:
- उन्होंने आगे कहा कि वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार में सुधार से बहुत लाभ होगा। विश्व व्यापार का 70 प्रतिशत हिस्सा ऐसा है जिसमें हमारी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से भी कम है। यहीं पर अवसर छिपा है। हमें नए बाजार और नए उत्पाद तलाशने की जरूरत है।
अमेरिका और चीन के बीच एक नए व्यापार संघर्ष:
- यह रिपोर्ट दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, अमेरिका और चीन के बीच एक नए व्यापार संघर्ष में प्रवेश करने के ठीक एक दिन बाद आई है, जिसमें दोनों ने एक दूसरे पर एक दूसरे के खिलाफ व्यापार प्रतिबंध लगाए हैं।
- अमेरिका द्वारा कंप्यूटर चिप बनाने वाले उपकरण, सॉफ्टवेयर और हाई-बैंडविड्थ मेमोरी चिप्स पर निर्यात प्रतिबंध लगाने की घोषणा के बाद, चीन ने अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम, एंटीमनी और अन्य प्रमुख उच्च तकनीक सामग्री के निर्यात पर प्रतिबंध लगाकर जवाबी कार्रवाई की।
‘चीन प्लस वन’ रणनीति का लाभ अन्य देशों को ज्यादा:
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि वियतनाम, थाईलैंड, कंबोडिया और मलेशिया जैसे देश ‘चीन प्लस वन’ रणनीति के बड़े लाभार्थी बनकर उभरे हैं।
- सस्ते श्रम, सरल कर कानून, कम टैरिफ और मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर हस्ताक्षर करने में सक्रियता जैसे कारकों ने उनके निर्यात हिस्सेदारी के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि चीन के विकास और तकनीकी प्रगति को सीमित करने के लिए अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर लगाए गए सख्त निर्यात नियंत्रण उपायों से व्यापार विखंडन की स्थिति पैदा हुई है। जबकि चीन अधिकांश निर्यात श्रेणियों में भारत का प्रमुख प्रतिस्पर्धी बना हुआ है। हालांकि, मलेशिया और थाईलैंड चुनिंदा क्षेत्रों, जैसे कि इलेक्ट्रिकल मशीनरी में भारत से बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
यूरोपीय संघ के CBAM का भारत के इस्पात उद्योग पर दुष्प्रभाव:
- इस रिपोर्ट के अनुसार भारत के लिए, लोहा और इस्पात उद्योग, जो इसके यूरोपीय संघ के निर्यात का 23.5 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करता है, CBAM के तहत सबसे अधिक जोखिम का सामना करने वाले होंगे। ध्यातव्य है कि यूरोपीय संघ भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। 2023-24 में, देश के कुल निर्यात में इसका हिस्सा 17.4 प्रतिशत (76 अरब डॉलर) था।
- CBAM के तहत भारतीय फर्मों पर 20-35 प्रतिशत टैरिफ लग सकता है, जिससे लागत बढ़ सकती है, प्रतिस्पर्धा कम हो सकती है और यूरोपीय संघ के बाजार में मांग कम हो सकती है।
- CBAM (या कार्बन टैक्स): CBAM का उद्देश्य कार्बन रिसाव को रोकना है और यह जनवरी 2026 से सीमेंट, लोहा और इस्पात, एल्यूमीनियम, उर्वरक, बिजली और हाइड्रोजन जैसे उच्च जोखिम वाले आयातों पर लागू होगा। इसके लिए CBAM प्रमाणपत्रों की खरीद की आवश्यकता होती है, जो इन वस्तुओं से जुड़े कार्बन उत्सर्जन को दर्शाते हैं।
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