भारत में चरवाहा समुदायों को भूमि तक बेहतर पहुंच और अधिकारों की मान्यता की आवश्यकता:
चर्चा में क्यों है?
- चारागाह भूमि के क्षरण पर संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में करोड़ों चरवाहे जो पशुपालन करते हैं और आजीविका के लिए चारागाह भूमि जैसे घास के मैदानों, झाड़ियों और पठारों पर निर्भर हैं, उन्हें अपने अधिकारों और बाजारों तक पहुंच की बेहतर मान्यता की आवश्यकता है।
- संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन कॉम्बैटिंग डेजर्टिफिकेशन (UNCCD) की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की लगभग आधी चारागाह भूमि जलवायु परिवर्तन, जनसंख्या वृद्धि, भूमि-उपयोग परिवर्तन और बढ़ती कृषि भूमि के कारण बर्बाद हो गई है।
चारागाह भूमि की वस्तुस्थिति एवं जलवायु परिवर्तन से लड़ने में महत्व:
- उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर चारागाह भूमि 8 करोड़ वर्ग किमी में फैली हुई है, जो पृथ्वी की भूमि सतह का 54 प्रतिशत है। इनकी विशेषता कम वनस्पति और इसमें घास के मैदान, झाड़ियाँ, आर्द्रभूमि, रेगिस्तान, अर्ध-शुष्क भूमि, पहाड़ी चरागाह, पठार और टुंड्रा शामिल हैं।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ये रेंजलैंड या चारागाह भूमि जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र हैं क्योंकि वे कार्बन सिंक के रूप में कार्य करते हैं और मिट्टी के कटाव, भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण को रोकते हैं।
रिपोर्ट में भारत के चरवाहा समुदायों से जुड़ी चुनौतियां:
- हालांकि भारत में चरवाहा समुदायों की सटीक संख्या ज्ञात नहीं है, लेकिन उनकी आबादी, जिसमें मालधारी, वन गुज्जर और रबारी जैसे समूह शामिल हैं, अनुमानतः 2 करोड़ या उससे अधिक है।
- इस रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत में चरवाहा समुदाय एक हाशिए पर रहने वाला समुदाय है जिसका नीतिगत निर्णयों पर बहुत कम प्रभाव होता है, जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक भूमि और भूमि अधिकारों तक पहुंच में अनिश्चितता होती है।
- हालांकि भारत में घास के मैदानों को पारिस्थितिकी दृष्टि से चिंताग्रस्त तंत्र माना जाता है, लेकिन वानिकी-आधारित हस्तक्षेपों, जिसमें प्राकृतिक घास के मैदानों को वृक्षारोपण वनों या अन्य उपयोगों में परिवर्तित करना शामिल है, के पक्ष में पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली नीतियों में उन्हें वस्तुतः नजरअंदाज कर दिया गया है।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के 5 प्रतिशत से भी कम घास के मैदान संरक्षित क्षेत्रों में आते हैं, और 2005 और 2015 के बीच कुल घास के मैदान का क्षेत्र 18 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 12 मिलियन हेक्टेयर रह गया है।
चरवाहा समुदाय का देश में आर्थिक योगदान:
- चरवाहा समुदाय का पशुधन पालन और दूध उत्पादन के माध्यम से अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं।
- पशुधन क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 4 प्रतिशत और कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 26 प्रतिशत का योगदान देता है।
- विश्व की पशुधन आबादी का 20 प्रतिशत भी भारत में रहता है।
चरवाहा समुदाय के सशक्तिकरण का प्रयास:
- इस रिपोर्ट में चरवाहा समुदाय द्वारा प्राप्त लाभ के बारे में बात करते हुए कहा गया है कि वन अधिकार अधिनियम 2006 जैसे कुछ कानूनों ने चरवाहों को देश के सभी राज्यों में चराई के अधिकार प्राप्त करने में मदद की है। रिपोर्ट में रेखांकित की गई एक “सफलता” यह थी कि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद, वन गुज्जरों ने चराई के अधिकार जीत लिए और राजाजी राष्ट्रीय उद्यान में भूमि का मालिकाना अधिकार प्राप्त कर लिया।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में चारागाह भूमि और पशुचारण की सामाजिक-पारिस्थितिक भूमिका की पहचान की दिशा में धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है। इसमें राष्ट्रीय पशुधन मिशन, पशुपालन अवसंरचना विकास निधि और टिकाऊ डेयरी उत्पादन पर राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत पशुपालकों को प्रदान की गई कल्याणकारी योजनाओं और सहायता का उदाहरण दिया गया।
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