जेलों में भीड़ कम करने के लिए विचाराधीन कैदियों की इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग की पायलट योजना:
चर्चा में क्यों है?
- भारत में जेल प्रणाली के समक्ष कई चुनौतियां हैं, जिनमें अत्यधिक भीड़भाड़ एक गंभीर मुद्दा है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसंधान एवं नियोजन केंद्र की एक हालिया रिपोर्ट में जेलों में अत्यधिक भीड़भाड़ को कम करने के लिए विचाराधीन कैदियों को रिहा करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग उपकरणों का उपयोग करने के लिए पायलट कार्यक्रम शुरू करने का आह्वान किया गया है।
- राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 5 नवंबर को जारी की गई रिपोर्ट “भारत में जेल – सुधार और भीड़भाड़ कम करने के लिए जेल मैनुअल और उपायों का मानचित्रण” में इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग की पायलट योजना शुरू करने का सुझाव दिया गया है।
इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग की पायलट योजना:
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में, समुदाय की तत्परता का आकलन करने के लिए, इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का एक पायलट रन सबसे पहले कम और मध्यम जोखिम वाले अच्छे आचरण वाले विचाराधीन कैदियों पर किया जा सकता है, जिन्हें पैरोल जैसी जेल छुट्टियों पर रिहा किया जा सकता है।
- अपराधी प्रबंधन में प्रौद्योगिकी के उपयोग की सफलता दर के आधार पर, इसे बाद में अन्य कैदियों तक बढ़ाया जा सकता है।
- जेल में कैदियों की भीड़ कम करने के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए राज्य द्वारा की जाने वाली किसी भी तरह की निगरानी के साथ सुरक्षा उपाय और दिशा-निर्देश भी होने चाहिए।
- इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस का उपयोग कर रहे हैं।
भारत में कैदियों की ‘इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग’ की आवश्यकता क्यों है?
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) का कहना है कि 31 दिसंबर, 2022 को भारत भर की सभी जेलों में कैदियों की संख्या 5,73,220 थी, जबकि जेलों की कुल क्षमता 4,36,266 है, जो 131% अधिभोग दर है। इसके अतिरिक्त, 4,34,302 कैदी (75.7%) मुकदमे की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
- मई 2023 में, गृह मंत्रालय ने ‘मॉडल जेल और सुधार सेवा अधिनियम, 2023’ को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उनके संबंधित अधिकार क्षेत्र में अपनाने के लिए भेजा। पहली बार, अधिनियम ने कैदियों पर इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग उपकरणों के उपयोग की शुरुआत की, जिसमें कहा गया है कि कैदियों को इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की इच्छा पर जेल की छुट्टी दी जा सकती है।
- मई 2017 में प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में भारत के विधि आयोग ने भी स्वीकार किया कि “इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग में भगोड़े दरों और सरकारी व्यय (राज्य के खर्च पर हिरासत में लिए गए प्रतिवादियों की संख्या को कम करके) दोनों को कम करने की क्षमता है।
कैदियों की ‘इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग’ को लेकर न्यायिक निर्णय:
- जुलाई 2022 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जालसाजी और धोखाधड़ी के एक मामले में आरोपी के लिए जमानत की शर्तों में से एक, उसे हर हफ्ते गूगल मैप्स पर अपना लाइव लोकेशन डालना होगा के साथ एक जमानत आदेश पारित किया।
- नवंबर 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत पर रिहा कर दिया, इस शर्त के अधीन कि वह राजस्थान के अलवर जिले से आगे नहीं जाएगा और चौबीसों घंटे जांच अधिकारी के मोबाइल फोन से अपना स्थान जोड़कर मोबाइल फोन के माध्यम से उपलब्ध कराएगा।
- लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 8 जुलाई, 2024 को अपने एक फैसले में इस प्रथा को अस्वीकार कर दिया। इसने कहा कि “जमानत की शर्त का उद्देश्य जमानत पर रिहा किए गए आरोपी की गतिविधियों पर लगातार नजर रखना नहीं हो सकता है”।
कैदियों की इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग प्रणाली की समीक्षा:
एक बहुत अच्छी पहल है:
- अनेक विशेषज्ञों द्वारा ट्रैकिंग डिवाइस के उपयोग को “एक बहुत अच्छी पहल” के रूप में स्वागत किया है। क्योंकि भारतीय जेलों में पहले से ही भीड़भाड़ है और परिवार के लोगों से मिलने में बहुत अंतर है, और कैदियों को असुविधा के अलावा बहुत मानसिक तनाव भी होता है।
- ऐसे में जेलों में बंद रखने के बजाय व्यक्तियों की निगरानी के लिए ट्रैकिंग डिवाइस का उपयोग करने से न केवल जेल के बुनियादी ढांचे पर बोझ कम होगा, बल्कि कैदियों के मानसिक तनाव को कम करने में भी मदद मिलेगी।
नागरिक स्वतंत्रता का संभावित उल्लंघन:
- वहीं कुछ अन्य कानूनी विशेषज्ञों ने इस प्रथा को सार्वभौमिक रूप से संस्थागत बनाने के बारे में संदेह व्यक्त किया, संभावित दुरुपयोग और नागरिक स्वतंत्रता के उल्लंघन की चेतावनी दी।
- उन लोगों का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग का विचार सार्वभौमिक अनुप्रयोग के लिए निर्धारित नहीं किया जा सकता है और न ही किया जाना चाहिए क्योंकि इसके सार्वभौमिक अनुप्रयोग का दुरुपयोग उन लोगों के खिलाफ भी किया जा सकता है जिन्हें अदालतों द्वारा जमानत दी गई है।
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